Monday, 26 December 2022

(व्यंग्य भारती) "फिर भी,,,,, हैप्पी न्यू ईयर"

(व्यंग्य भारती)

"फिर भी हैप्पी न्यू ईयर "

          आप सबको हफ़ता भर पहले कैसे मालूम हो जाता है कि आने वाला साल हैप्पी होने जा रहा है ? हम बाइस साल की उम्र तक गांव में में रहे ! इस दौरान कभी नए साल को हैप्पी होकर आते नहीं देखा ! एक जानवरी को भी दुखीराम हैप्पी होने की जगह रोआंसे ही नज़र आते थे, " का बताई भइया  ! गेहूं तौ ठीक है, लेकिन सरसों मा "माहू" लाग गवा"!  कमबख्त माहू को भी यही खेत मिलता है, हर साल दुखीराम के खेत में घुस जाता था ! बगल पांचू लाला की दूकान में माहू कभी नहीं लगा ! पांचू लाला तांगा लेकर गेहूं खरीदने गांव गांव घूमते थे, जब वो लाला से सेठ हो गए तो  गांव खुद पांचू लाला के पास जाने लगा ! दुखी राम की लाइफ में नया साल कभी हैप्पी नहीं हुआ ! उसकी और पांचू सेठ के घोड़े की कुंडली एक जैसी थी ! दोनों अपनी अपनी दुर्भाग्य को ढो रहे थे ! घोड़ा पांच साल में मरा और दुखीराम पचास साल में ! सुविधा भोगी संत और विचारक कहते हैं कि परिश्रम करने से आदमी महान हो जाता है ! दुखीराम दिन के बारह घंटे फावड़ा चला कर भी पचास साल में महान नहीं हो पाए, पांचू सेठ विधवा आश्रम खोल कर पांच साल में महान हो गए! लगता है, आदमी होने से महान होना कहीं ज़्यादा आसान है!
    ज़माना कितना बदल गया, लोग उस  सांता क्लाज को भी लूट लेते हैं, जो कभी नियति के हाथों लुटे आदमी के आंसू पोछता था । फरवरी 2020 से कोरोना स्वच्छ भारत आभियान में लगा हुआ है ! तब से बुद्धिलाल जी फेसमास्क लगाकर गुटखा खाते हैं ! वो एक कवि हैं, कोरोना काल कवियों के लिए किसी पतझड़ से कम पीड़ादायक नहीं रहा !    'दो गज की दूरी ' मास्क ज़रूरी - का अर्थ अब जाकर समझ में आया ! बहादुर शाह ज़फ़र का एक शेर है,- दो गज जमीन भी न मिली कूचे यार में '- । दो गज का नारा "कब्र" (मौत) के लिए है ! कोरोना कहता है - मास्क ख़रीद कर पहनो नहीं तो कब्र में जाना तय है -! मौलाना साहब ये नहीं बता रहे कि कोरोना से वीरगति को प्राप्त होने पर जन्नत मिलेगी या दोजख ! कोरोना को कॉरपोरेट देवताओं ने मास्क का ब्रांड एंबेसडर बना कर अरबों डॉलर कमाए ! ज़िंदा लोग सदियों से मुर्दों का कारोबार संभालते आए हैं ! बहुत से विद्वान तो कोरोना को पूज्यनीय बनाना चाहते थे, पर इस असमंजस में आस्था दिग्भ्रमित थी कि 'वो' स्त्रीलिंग में आता है  या पुलिंग में ! ताली,थाली और गाली में से जाने उसे क्या सूट करता है !! 
        सही बोलूं तो कोरोना जैसी महान उपलब्धि के सामने 'मंदिर मस्जिद' का राग भी छोटा पड़ गया था ! इससे दुखी होकर कुछ महापुरुषों ने कोरोना का पीछा किया और  ' जमातियों' में उनका डीएनए ढूंढ लिया ! आंख और मुंह से गांधी जी का बंदर बन चुकी देश की मीडिया को भी मरकज और जमाती साक्षात कोरोना बम नज़र आने लगे थे !
जमातियों की शक्ल में कुछ लोगों को कोरोना के फूफा नजर आने लगे थे। कोरोना लाइलाज़ था, लेकिन फूफा जी का इलाज था ! पुलिस जमातियो को पकड़ पकड़ कर थाने ले जाने लगी! फिर पुलिस वालों ने गुहार लगाई कि फूफा जी बिरयानी मांग रहे हैं ! बिरयानी खिलाई गई तो पुलिस वालों ने बयान दिया कि फूफा जी थाली में थूक रहे हैं !  (गमीमत थी कि वो थाली में छेद करते नहीं पाए गए! ) सभ्य पुलिस वाले अतिथि देवो भव - का पालन करते हुए बिरयानी खिला रहे थे, और जनता घरों में कैद आर्तनाद कर रही थी, - ' कोरोना  तुम  कब जाओगे' ! 
        पिछले तीन साल भुगत चुका हूं, अब मैं किसी को नए साल के लिए - हैप्पी न्यू ईयर - का अभिशाप नहीं देने वाला ! साल 2021 में मुझे लोगों ने हैप्पी न्यू ईयर की बद्दुआ दी थी, 14 अप्रैल को कोरोना ने मुझे धर दबोचा , उस दिन पहला रोजा था ! खैर, ऑक्सीजन लेवल 80 और 83 के बीच पींग मारता रहा मगर मैं शायद अस्पताल न जाने की वजह से जिंदा बच गया ! या फिर इसलिए, क्योंकि कोरोना को जब पता चला कि मैं हिंदी का लेखक हूं तो वो खुद मुझे छोड़ कर चलता बना ! सोचा होगा, - हिंदी के लेखक को मरने के लिए कोरोना की जरूरत नहीं है ! जाते  हुए  ज़रूर  पाश्चाताप   किया  होगा, -' हम से भूल हो गई, हम का माफी दई दो , गलत घर में दाखिल हो गया यजमान '- !! 
        इधर सांताक्लॉज़ के साथ ट्रेजडी हो गई !नए साल से ठीक 6 दिन पहले हिरणों की स्लेज गाड़ी में बैठ कर 'जिंगल बेल' गाते हुए बस्ती की ओर जा रहे थे कि रास्ते में पुलिस ने रोक लिया ' कित जा रहो ताऊ?"
     " बस्ती में बच्चों को तोहफ़ा देना है और उनके साथ जिंगलबेल  गाना है "!
  " घनी जल्दी है  के !  थोड़ा 'जिंगल बेल' मन्ने भी दे दे।     
         " मैं समझा नहीं "?
    पुलिस वाले कोgu" समझदारी ने परे कर, अर नु  बता- ये गायों कू ठा कर कितै  जा रहो?"
           गाय का नाम  सुनते ही सांता क्लॉज़ कांप उठा-"गाय! मेरे पास तो बछड़ा भी नहीं है!"
     पुलिस वाले ने हिरणों की ओर उंगली उठाते हुए कहा-' तो फिर ये क्या है! आंखों में धूल झोंकते हो! के  करूँ थारा , "जिंगल बेल"  भी देने कू  त्यार न दीखे ताऊ -"!
     सांता थर्रा उठा ! बस्ती दूर और एनकाउंटर नज़दीक नजर आने लगा ! सांता ने हाथ जोड़ लिया- ' आप अफसर हैं, हिरण को  गाय भी साबित कर सकते हैं "
    " तो फिर जल्दी कर  ताऊ,  ' जिंगल बेल' दे दे-'तुष्टिकरण'  लेले ! ताउ समझा करो-'!
     मेरी समझ में नहीं आता कि नए साल के आने में  मुबारक जैसी क्या चीज होती है ! हमारे देश में तो मुसीबतों का आना जाना लगा ही रहता है, इसमें हैप्पी होने की क्या बात ! कभी बर्ड फ्लू तो कभी स्वाइन फ्लू ! अब तो हम आपदा को अवसर बनाने में विश्वगुरु होने के करीब हैं ! हमीं हैं जो बर्ड फ्लू से ग्रसित मुर्गे को  खाकर प्रोटीन प्राप्त करते हैं ! गनीमत है कि कोरोना कभी सशरीर सामने नहीं आया , वरना झुरहू चच्चा महुआ की दारू के साथ "चखना" के तौर पर नया प्रयोग कर डालते ! 
        राहुल गांधी जैसे ही राजस्थान से दिल्ली की ओर चले, वैसे ही मीडिया ने चीन से भारत की ओर पदयात्रा करते कोरोना को देख लिया ! वो भी भारत जोड़ो के समर्थन में चल पड़ा है! मानसून परख कर दूरदर्शी दुकानदारों ने  फेसमास्क से लेकर  अर्थी का सामान तक स्टॉक करना शुरू कर दिया है ! पांचू सेठ पंडित भगौतीदीन से कन्फर्म करने के लिए पूछ रहे हैं, - पंडित जी, आपका जंत्री क्या कहता है, अफवाह है या सचमुच कोरोन चल पड़ा है?' पंडित जी जानते थे कि सेठ को कौन सी चिंता खाए जा रही है ! उन्होंने फ़ौरन गंभीरता ओढ़ ली,- 'दुखद सूचना है यजमान ! कोरोना की कुंडली से शनि की साढ़े साती दूर हो चुकी है! मंगल खुद लालटेन हाथ में लेकर कोरोना को इधर आने का रास्ता दिखा रहा है ! देख लेना, इस बार गेहूं में बाली की जगह कोरोना ही नज़र आएगा ! नया साल मुबारक हो यजमान "!!

     इस "दुखद" भविष्यवाणी पर पांचू सेठ ने पहली बार पंडित जी को 11 रुपये की जगह  21 रुपए की दक्षिणा दी थी ! 
                                    Sultan bharti 
                                       (journalist )
 
          

Saturday, 24 December 2022

शायरी 1992

शायरी 1992         " तब्दीली"

ये  कैसी  रोशनी आने लगी  है!
अंधेरा  साथ  में  लाने  लगी है !!

नया  किरदार  देखा  बागबां का!
कली खिलने से डर जाने लगी है !!

धुआं है आग है नफ़रत तबाही !
नई  दुनियां नजर आने लगी है !!

कहीं मज़दूर की बस्ती जली है !
वो देखो चील मंडराने लगी  है !!

हमारी  मौत  पर  कोई  न रोया  !
नमी आंखों से उड़ जाने लगी है !!

बहुत हमदर्द है हाकिम हमारा !
हिफाजत लाश की होने लगी है

वफ़ा  खुद्दारी  ईमानो  हया अब!
ये दौलत कम नजर आने लगी है !!

सियासत की हया को देख कर अब !
तवायफ  को   शरम  आने  लगी है !!

सभी के वास्ते जो घर खुला था !
उसी पर बिजलियां गिरने लगी है !!
             

कोई "सुलतान" को अदना बना दे !
बुलंदी  खार   सी  चुभने  लगी  है !!

Monday, 19 December 2022

healthy heart

Healthy heart
Darood +११ baar " या कबी यो" +दरूद 

Sunday, 18 December 2022

(व्यंग्य भारती) शर्म इनको मगर नहीं आती

(व्यंग्य भारती)

"शर्म इनको मगर नहीं आती "

     अपने अपने तरीके से हर कोई आत्मनिर्भर होने में लगा है! लेकिन इस कालिकाल में उम्मीदों में बौर आने से पहले ही लसिया जाते हैं! जब कामयाब होने वाले कम हों और बेकारी के शिकार ज़्यादा, तो विरोध और विद्रोह में से कुछ भी हो सकता है! जहां संतोषम परम सुखम है, वो जगह क्रांति के लिए बंजर है ! क्रांति का अर्थव्यवस्था से भी गहरा नाता है ! रोटी की फिक्र आदमी को मेंदा से मस्तिष्क की ओर नहीं जाने देती ! धीरे धीरे आदमी पेट से सोचने लगता है ! ऐसी सिचुएशन में बहुमत के दिमाग को कुछ लोग हाइजैक कर नर्सरी बना लेते हैं ! अब वहां मनपसंद विचारधारा रोपी जाती है ! सर्वहारा वर्ग विचारधारा को ही गेहूं और धान समझकर आत्मनिर्भरता की ओर चल पड़ता है ! ऐसी नर्सरी का आविष्कार सबसे पहले कांग्रेस ने ही किया था, आज छोटे भाई ने संभाल लिया है!
रंग पर रिसर्च शुरु हो गया है !
       ये पहली बार है कि "रंग" बेशर्म नज़र आया है! कुछ लोग आहत होने वालों से पूछ रहे हैं कि अक्षय कुमार और मनोज तिवारी की फिल्मो से आस्था को इंफेक्शन क्यों नहीं हुआ था ! यहां तो फ़िल्म के नाम ( पठान) से ही आस्था आहत गैंग सड़क पर उतर आया  ! बुनियाद देख कर ही आत्मा आहत होने लगती है,ऊपर से जेएनयू में आस्था रखने वाली हीरोइन ! इस फिल्म को तो देखना भी महापाप है ! विरोध जायज है, जब इंडस्ट्री में कंगना जी जैसी संस्कारी और सात्विक विचार वाली हीरोइन साक्षात मौजूद है तो दीपिका को क्यों साइन किया गया ! किसने  ऐसी बेशर्मी की ! बहुत नाइंसाफी है यह! इसकी सजा मिलेगी ! ऐसे गानों को देख देख कर आठ आठ साल के बच्चे भी गुल्लक फोड़ कर फ़िल्म देखने भागेंगे ! ऐसे गानों से संस्कार को पाला मार सकता है !
         बायकॉट के विरोध में विपक्ष अड़ गया है, काहे बहिष्कार करें, अक्षय कुमार और निरहुआ के गाने का विरोध काहे नहीं किया । उस गाने में तो ज़्यादा वायरस थे , तब आस्था काहे नहीं आहत हुई ! अब तो आटा बेच कर फ़िल्म देखना है! फ़िल्म नहीं देखूंगा तो विपक्ष धर्म का पालन कैसे होगा ! फिल्म नहीं देखा तो दीपिका और शाहरुख के घर वाले भूखों मर जाएंगे । तुम्हारी आस्था को चोट पहुंच रही है,इधर मेरी आस्था को इसी गाने से फाइबर हासिल हो रहा है ! अब आस्था का ध्यान तो रखना होगा ! परिवार का ध्यान रखने के लिए 5 किलो गेहूं है न ! आस्था का ध्यान कौन रखेगा !  पहले तो लोग ही एक दूसरे की आस्था का ध्यान रखते थे ! तब वाली आस्था इतनी कुपोषित भी नहीं थी कि पीली धूप देख कर मुरझाने लगे !
         आज दोपहर होते होते आस्था आहत गैंग के वर्मा जी ने चौधरी के कान भर दिए! चौधरी सीधा मेरे पास आकर बोला, -" उरे कू सुण भारती ! कितै जा रहो आज फिल्मी छोरी के गैल"!
      " कौन छोरी?" 
" वही छोरी, जो पीला लंगोट बांध कर आस्था आहत कर रही है ! के नाम सै बेशर्म छोरी कौ "?
       " दीपिका पादुकोण"!
"घणी जल्दी याद आ गयो नाम ! कितै छुपा रख्या सै छोरी नै!!"
   " मैं शादीशुदा आदमी हूं, क्यों मेरी आस्था को आहत कर रहे हो?"
     "वर्मा नू बता रहो अक तू फिलम देखने कू तावला सै ?"
      " तौबा तौबा ! मैने आज तक तुम्हारे बगैर कोई फ़िल्म कभी देखी"?
   " नू बता, कूण सी फिलम आई है " बेशरम रंग" ।
       " गाना है, फ़िल्म नहीं "!
" गाने ते आस्था आहत हो रही, या फिल्म ते?"         "हीरोइन ने जो लंगोट बांध कर गाना गाया है, उस के रंग से ! अगर लंगोट का रंग हरा होता तो आस्था नॉर्मल होती!"
        चौधरी का दिमाग़ घूम गया, - " पर हीरोइन कू लंगोट पहनने की के जरूरत थी ! बाकी कपड़े चोरी हो गए  के "?
      चौधरी का सवाल जायज़ है! बात रंग की छोड़ दें तो सवाल है ये है कि हीरोइनों के बदन पर कपड़े सिमट क्यों रहे हैं? हालत ये है कि सूट सलवार और साड़ी जैसे गरिमापूर्ण भारतीय परिधान लगभग विलुप्त हो गए ! इस नंगेपन से हमारी आस्था क्यों नहीं आहत होती ! बेकारी और मंहगाई से आहत होने के लिए पब्लिक को लावारिस छोड़ दिया गया है ! प्रशासन कभी आहत नही होता ! करप्शन,सांप्रदायिकता और नफरत की आंच भी उनकी आस्था तक नहीं जाती । कितनी मोटी खाल है !! "बेशर्म रंग" कितना गाढ़ा चढ़ा हुआ है किरदार पर ! ज़िंदगी से थपेड़े मारती अभाव,संघर्ष और गुरबत की लहरें कहीं किसी दिन अपना रास्ता न बदल दें! भूख और बेकारी की समस्या को समाधान चाहिए, शब्द नही।
           सोशल मीडिया के समर्पित योद्धा आग बबूला हैं! संस्कार और संस्कृति को बचाने की सारी जिम्मेदारी इन्ही के कंधो पर है ! पिछले आठ सालों में एक से बढ़कर एक  क्रांति आई है! कोराेना भले जनता के लिए लाभदायक न रहा हो, लेकिन कुछ लोगो ने उस बंजर आपदा में भी नफरत उगाने का अवसर पैदा कर लिया ! कोरोना से मरे बाप की अर्थी को कंधा  न  देकर भी इनकी आस्था कभी शर्मिन्द न हुई  !  संप्रदाय विशेष के कंधों पर बाप चिता पर जाता रहा और बेटा अर्थी ढोने वालों के थूक में कोरोना की नर्सरी ढूंढता रहा। गंगा में लावारिस बहते रिश्ते सहारा ढूंढते रहे और  बेशर्म लोग रंग में नफरत !

       कबीर की एक उलटबांसी थी, - बरसे कंबल भीगे पानी -! सच को झुठलाने और झूठ को पुनर्जीवित करने का इतना बड़ा समुद्र मंथन पहले कभी नहीं हुआ !!

          

Monday, 5 December 2022

ग़ज़ल सर्द रातों में पसीना मुझे आता क्यों है!

(ग़ज़ल)
सर्द  रातों  में  पसीना  मुझे  आता  क्यूं  है !
खुशी में ज़ख्म का चेहरा नज़र आता क्यूं है !!

जो मेरे ख्वाब की  ताबीर  नहीं बन सकता!
वो  तसव्वर  में  मेरे  बारहा  आता  क्यों है !!

सनद इंकार या इकरार की हासिल तो नहीं !
फिर  कोई  मेरी तरफ उंगली उठता क्यों है !!

मैं भी इंसान हूं  खुशियों की जुस्तजू  भी है !
मेरे  हिस्से  में  भला  दर्द  जियादा  कpp  है!!

हर एक दर पे तो झुकता नहीं है सर अपना !
इतनी  खुददारी  किसी एक को देता क्यूं है !!

हर  गुनहगार  को  बख्शेगा उसका वादा है !
फिर तू आमाल फरिश्तों से लिखाता क्यूं है !

मेरे  ख्वाबों में कोई रोता है सिसकी  लेकर !
क्या पता ज़ख्म और पहचान छुपाता क्यूं है!!

ज़िंदगी एक तामाशे के सिवा कुछ  भी नहीं !
मौत  बरहक है, भला मौत से डरता  क्यूं है !!

शरीक अपनी खुशी में सभी इन्सान को कर !
सबब ए अश्क भी मजलूम का बनता क्यूं है!!

अश्क भी आग से कमतर नहीं होते "सुलतान"!
इस  हकीकत  से कोई  आंख  चुराता  क्यूं  है !!

             ग़ज़ल गो,,,,,,( सुलतान भारती)

Sunday, 4 December 2022

शायरी

शायरी
मुझे झुकाने  की  चाहत में टूट जाओगे!
मिरे क़िरदार की बुनियाद में वो लोहा है!!

Monday, 28 November 2022

"व्यंग्य भारती" चंदन विष व्यापत नहीं,,,,,!

(व्यंग्य भारती)

" चंदन विष व्यापत नहीं,,,,"!

           अब हमका का पता, काहे ! कौन सवाल जवाब के कोल्हू में उंगली दे! स्कूल में पढ़ाते हुए 'पंडी' जी हों या  'माससाब' "क्यों" पूछने पर बांस की 'सुटकुनी' उठा लेते थे ! ये   सुटकुनी  ससुरी "छड़ी" से टोटल डिफरेंट थी ! हाथ के साथ पीठ पर भी विश्वत रेखा खींच देती थी। अभिव्यक्ति की आज़ादी मस्साब के पास हुआ करती थी , वही सवाल पूछते थे ! मुझे तभी से दोहे की ये लाइन खटकती थी ! काहे नाही विष व्यापत ! बचपन में "बीछी" (बिच्छू) का डंक खाकर मैं घर के साथ पूरा मुहल्ला सर पर उठा लेता था ! यहां तो बिच्छू की जगह भुजंग का मामला था। मुझे तो चंदन और मीडिया की सांठ गांठ मालूम होती है! मास्साब से शंका समाधान करता तो वो सुटकुनी से सर्जिकल स्ट्राइक कर देते ! का करें, 1970 में मरकहा गुरु भी  "गोबिंद" हुआ करता था, उस दौर में छात्र को पीटना गोविंद का सुटकुनी सिद्ध अधिकार हुआ करता था ! घर में मास्साब की शिकायत करने पर उल्टे अब्बा श्री से पिटाई की आशंका !
        सुनी सुनाई दंत कथा लिख कर लाल बुझक्कड को साहित्यकार हो जाने का अधिकार था ! बड़ा हो जाने पर पता चला कि चंदन ने खामखा भुजंग को बदनाम कर दिया है! वो बेचारा तो सपेरे से बचने के लिए सात दिन  से  भूमिगत था ! (जंगल में सपेरे आए थे । ) चंदन को खतरा वीरप्पन से था, और नाम भुजंग का बदनाम हो रहा था ! दरअसल सात दिन बाद अज्ञातवास से बाहर आकर बेचारा भुजंग  कौआ के अंडे खाने के लिए  एक पेड़ पर चढ़ गया ! उसे क्या पता कि पेड़ चंदन का है या धतूरे का !  उसके पहले वो कभी चन्दन पर चढ़ा भी नहीं था ! भुजंग को देखते ही कौआ उड़ गया और भूखा प्यासा भुजंग बिल में जाकर कोमा में चला गया। कौए ने भुजंग की इमेज खराब करने के लिए ये कहानी कवि को बता दी ।बस कवि ने चंदन को हीरो और भुजंग को अमरीश पुरी बना दिया ! उसके बाद आज तक कवियों ने वीरप्पन का कभी नाम नहीं लिया! इसे कहते हैं कि - जबरा मारे ( मगर) रोने न दे -!! साहित्यिक षडयंत्र कितना घातक होता है!
      नाग (भुजंग) बेचारा, भूख का मारा ! कौआ का अंडा खाने के लिए पहली बार चंदन पर चढ़ा था ! उसे क्या पता कि कौए ने अपना अंडा पहले ही कोयल के घोंसले में रख दिया है और फर्जी  घोंसला चंदन के पेड़ पर टांग दिया है ! कविता की तलाश में जंगल में घूम रहे कवि को कौआ मिल गया! कौए ने भुजंग को खलनायक और चंदन के पेड़ को नायक बना दिया ! कवि ने पहली बार चन्दन पर भुजंग देखा था, उसने कौए की कहानी पर भरोसा किया और बादशाह ने कवि की कविता पर !सत्यापन किसी ने नहीं किया, - महाजनों येन गता: स पंथ:- मान लिया गया ! कहावत बन गई तो चन्दन को "बेचारा" और भुजंग को राक्षस मान लिया गया ! वो तो भला हो वीरप्पन का, जिसने चंदन को गुमनामी से बाहर निकाला और  दुबारा लोकप्रियता दिलाईं ! जनता को यकीन दिलाया कि चंदन के पेड़ पर कोई भुजंग नहीं रहता ! तस्करी के लिए फॉरेस्ट और सियासत में बैठे दो  पैर वाले  भुजंगों  से साठ गांठ करनी पड़ती है । यही विधि का विधान है।
        प्रशासन ऐसे भुजंग से भरा हुआ है, जो जनहित में घातक हैं लेकिन उन्हे कोई कौआ किलहंटी या "तोता" चिन्हित नही करता ! बल्कि खुद मिडिया के कौए ही भुजंग की इमेज को चंदन से ओतप्रोत करते रहते हैं! कौए इनके प्रचार मंत्री हैं और तोता ताबेदार ! शत शत जोहार !! मिट्टी की जगह महल मे रहते और मलाई खाते इन भुजंगो पर किसी जहर का असर नहीं होता ! इन्हें चंदन से बड़ा लगाव होता है ! ये चंदन के पेड़ पर नहीं जाते, बल्कि चंदन खुद चलकर इनके पास आता है ! चंदन का वृक्षारोपण करते हुए फोटो खिंचवाना इन्हे अत्यंत प्रिय है । इनका जीवन चक्र चंदन के टीके से शुरू होकर चन्दन की चिता पर खत्म होता है!  
   वैसे,,,एक ठो "लघु" साइज वाली  "शंका"  है ! चंदन पर भुजंग के जहर का अगर असर नहीं होता तो क्या ये चंदन की विशेषता है या चंदन में कमी है ! इंसान ईश्वर की बनाई सर्वश्रेष्ठ रचना है, और उस पर तो भुजंग के विष का भरपूर असर होता है ! चंदन पर क्यों नहीं होता ! इसलिए नहीं होता, क्योंकि कहानी सच से कोसों दूर है! कौआ और वीरप्पन दोनों ने भुजंग के बहाने चंदन का शोषण किया ! कौआ ने चन्दन पर घोंसला बनाया, और वीरप्पन एक पेड़ छोड़ कर चंदन काटता रहा ! प्रशासन और वीरप्पन दोनों से प्रताड़ित भुजंग आखिरकार जंगल छोड़कर आबादी में चला गया ! लेकिन भुजंग के अज्ञातवास के बाद भी एनसीआरटी ने आजतक दोहे को पाठ्यक्रम से नहीं हटाया ।
     ये मुट्ठी भर वीरप्पन और कौए आज भी वैभव के चंदन से सर्वहारा वर्ग को दूर रखने के लिए "भुजंग" का खौफ़ खड़ा करते हैं, - "काम, क्रोध, मद और लोभ से दूर रहो ! पाप का चंदन मेरे जैसे निकृष्ट पापी के लिए छोड़ दो, और तुम कष्ट,अभाव और गुरबत की सलीब ढोते हुए स्वर्ग की बाधा दौड़ पूरी करो -"! बहुमत  जन्नत  के  लिए  खुद  को क्वालीफाई करने में लगा है !

 आज दोहा लिखने वाला बुनियादी कवि, वह कौआ और वीरप्पन में से कोई नहीं है, लेकिन चंदन के पीछे मुफ्त में बदनाम होने वाला बेचारा भुजंग आज भी अपने विष का दंश झेल रहा है !

  बुजुर्ग सही कहते हैं,- बद अच्छा, बदनाम बुरा -!

                              ( सुलतान भारती)

  

Sunday, 13 November 2022

किराए दार !

 किराए दार ध्यान दें!
  ( पूजा मिश्रा, रंजीत पंडित और हेरून मिश्रा जी)

श्रीमति/ माननीय, 
            मई 2022  के बाद इस मकान में नई नई समस्याओं का अंतहीन सिलसिला शुरू हो चुका है ! क्रैंपटन जैसी कंपनी के मोटर का बार बार खराब होना और  बंदरों के आतंक की जो कहानी मेरे छत पर पैदा होती है, वो अन्यत्र कहीं नहीं है! कोई भी मकान मालिक इतना नुकसान उठा कर नही चल सकता !  अत: अब मैने अंतिम फैसला किया है कि,,,,,
A,    आगे से बंदर सीढ़ी, पानी का पाइप या टंकी कुछ भी तोड़े, उसे किरायेदार ही लगवाएंगे, और वो पैसा किराए में एडजस्ट नहीं होगा !

B,,,,, अब अगर मोटर फूंकेगी तो आप जिम्मेदार हैं,    चाहे आपस में चंदा करके बनवाएं या अपनी मोटर ले आएं।

C,,,, मुझे रेंट एग्रीमेंट कराने हेतु आप तीनों फ्लेट के मुखिया का दो दो फोटो और आधार कार्ड की एक कॉपी चाहिए! मेरे व्हट्स ऐप पर भेज दें!
           ये जरूरी है, इसे अन्यथा न लें!

                      आपका
                    सुलतान भारती 
              9899962243 ,  9310608221
           

Friday, 11 November 2022

(कलाम विद लगाम) हृदय परिर्वतन का सीजन

(कलाम विद लगाम)           ( व्यंग्य)

            "हृदय परिर्वतन का सीजन"

      अल्लाह रहम करे, फिर एक चुनाव आ गया ! दिल्ली नगर निगम चुनाव ! ये मौसम नेताओं के लिए मधुमास जैसा सुखद है, और जनता के लिए एक बार फिर ठगे जाने का ! नेता के लिए चुनाव लडना कोई प्राब्लम नही है, उसने तो इसी के लिए इस धरती पर जन्म लिया है,- जब तक है जान जाने जहान,,,,! नेता के लिए सिर्फ एक समस्या होती है कि वो किस नए वादे और विकास का झुनझुना लेकर वोटर के बीच जाए कि पहचान लेने के बाद भी जनता खुद  को ठगे जाने से न बचा पाए ! इस दुरूह बाधा दौड़ को जीतने के बाद वो 5 साल के अज्ञातवास पर निकल जाता है, और पीछे जनता लक्षागृह में सुलगती रहती है, ( जैसा करम करेगा, वैसा फल देगा भगवान!)
        "फल" का सीजन आ पहुंचा है ! दिल्ली नगर निगम चुनाव अगले महीने होगा ! अगले महीने सांता क्लॉज के आने का शेड्यूल होता है, लेकिन अब सभी पार्टियों के सांता इसी महीने दिल्ली आ जायेंगे! सबके पास अपना अपना विकास है। सबकी स्लेज़ गाड़ी गिफ्ट से भरी है ! सब अपने अपने इलाके की जनता का दरवाज़ा खटखटा रहे हैं, -सोना लै जा रे ! चांदी लै जा रे ! विकास कैसे दे दूं ओ पब्लिक कि बड़ी नादानी होगी-! अगले वार्ड में दूसरी पार्टी सांताक्लॉज जनता को जन्नत का झांसा दे रहा है, - बड़ी दूर से आए हैं, साथ में 'झाड़ू' लाए हैं - ! ( एक बार और कुंडली पर फिरवा लो!)
जनता किवांड की दराज से झांक कर देखती है, कुछ पुराने तारणहार हैं जो पिछली बार किसी और पार्टी से आए थे, और अब किसी और पार्टी की तस्वीह पढ़ रहे हैं,- ' वो पार्टी जनहित में नहीं है, विकास का मौका ही नही देती , कहती है - न खाऊंगा न खाने दूंगा! तो क्या पांच साल व्रत रख कर गुजारा करूंगा?" 
      पार्टी के प्रति आस्था और वफादारी टिकट पर आकर टिक गई है! आज टिकट मिलने की आख़िरी तारीख है ! कई और सांता क्लॉज लाइन में लगे हैं ! कई अपने अपने स्लेज में लोहे का रॉड,हॉकी,पत्थर और लाठी भी लाए हैं! अगर विकास का टेंडर किसी और को मिला तो आस्था को ईंट में लपेट कर मारेंगे! कुछ तो दूसरी पार्टी से टिकट खरीद लेते हैं और कुछ अपनी ही पार्टी के लंका दहन के लिए आज़ाद उम्मीदवार बन कर मैदान में कूद जाते हैं ! ऊनके दोनों हाथों में लड्डू है, जीत गए तो 'विकास' करेंगे, हार गए तो विपक्षी पार्टी का पैसा गया ! ' तेरा था क्या जिसे खोने का शोक करता है !' पैसा तो वोट .काटने के लिए प्रमुख विपक्षी दल ने लगाया था ! वर मरे या कन्या, अपने "विकास" पर ओस नही गिरेगी ! 
       पार्टी की प्रॉब्लम सबसे बड़ी है ! सीट एक है और विकास का टेंडर लेने वाले कई ! टिकट किसी एक को ही मिलेगा,बाकी निष्ठा का लबादा उतार कर लंका दहन करेंगे ! निष्ठा टिकट से शुरू होकर टिकट पर ही ख़त्म हो जाती है ! इसका कार्यकाल 5 साल या 35 साल होना - इस  हाथ  दे उस  हाथ ले - पर डिपेंड करता है ! हर नेता में एक हनुमान ग्रंथि होती है, जो टिकट कटते ही उसे लंका दहन को उकसाती है ! बस यहीं से हृदय परिर्वतन का अंकुर फूटता है और कई प्राणी तराजू से कूद कर दूसरी पार्टी ज्वाइन कर लेते हैं! टिकट कटते ही प्राणी के अंदर अविश्वसनीय ज्ञान और दिव्य नेत्र ज्योति प्रगट होती है! अचानक ही उसे अपनी पार्टी के गेहूं में घुन और विरोधी पार्टी में फाइबर दिखाई देने लगता है !
         दिल्ली का संगम विहार ! इसे दिल्ली के लोग खांडवप्रस्थ और संकटविहार के नाम से जानते हैं ! यहां जनता कम और नेता ज़्यादा हैं, और यही सबसे बड़ी प्रॉब्लम है ! सियासत थोक में विकास न्यूनतम ! हमारे यूपी में एक कहावत है, - ज़्यादा जोगी मठ उजाड़ -! बस ये हाल है हम दीवानों का !
यहां 4 साल 11 महीने  एकता और विकास पर चर्चा होती है और चुनाव घोषित होते ही जनता खेमों में बंट जाती है ।  1993 से पार्टियां बारी बारी से इसे समग्र विकास देने में लगीं हैं, मगर पेयजल तक हर जगह उपलब्ध नहीं है ! आम आदमी पार्टी ने अपेक्षाकृत काफ़ी विकास किया, मगर पानी के लिए आज भी संकट जारी है। संगम विहार के दरवाज़े पर मेट्रो आ गई है, फिलहाल प्यास लगे तो इसी से काम चलाओ! मानसून में सड़कें और गालियां तालाब बन जाते है ! अब चुनाव में तारणहार फिर जन्नत देने आयेंगे, और हम फिर विकास का एक नया सपना लेकर ठगे जाएंगे!
         हर वार्ड में हंगामा है ! जिनका टिकट कट गया, शायद उन्हें इतना आघात नही पहुंचा जितना उनके समर्थकों को पहुंचा है! कुछ उतने आहत हैं गोया किसी ने उनकी किडनी निकाल ली हो ! कुछ औंधे मुंह ऐसे गिरे हैं जैसे उनका टाइटेनिक जहाज़ डूब गया हो ! चहेते उम्मीदवार को टिकट न मिलने का गम लिवर, किडनी और दिल तीनो में खुजली पैदा कर रहा है। ( ये रिश्ता क्या कहलाता है!!) जहां ऐसे संवेदनशील समर्थक  बैठे हों, जो विकास के बगैर भी उम्मीदवार के लिए जौहर व्रत पर उतारू हों, वहां विकास की ज़रूरत ही क्या है !!

             मैं फेसबुक देख रहा हूं, जिन्हें टिकट नहीं मिला, वो हृदयपरिर्वतन कर लोक परलोक सुधार रहे हैं ! सदमे में पड़े समर्थक भी २५ नवंबर तक सामान्य होकर मुख्य धारा से जुड़ जाएंगे, क्योंकि उन्हें पता है कि वार्ड को उम्मीदवार से ज्यादा उनकी ज़रूरत है! उन्हीं की तपस्या से विकास की
भागीरथी पृथ्वी पर आएगी ! आओ दधीचि! बची हुई हड्डियों को तारणहार लेने आए हैं! विकास के हवनकुंड में काम आएंगी !!

               सुलतान "भारती"   

Tuesday, 8 November 2022

अन्तरिक्ष की बेटी

" अभी नहीं , इंगेजमेंट के बाद"!
नाज़िम ने आह भरी और गाने लगा,- ' गोरी के नखरे प्यारे लगदे मैनू,,,,'!
     गुलनूर ने कृत्रिम गुस्से से उसे घूर कर देखा, तो नाजिम गाने लगा -' जाने फिर क्यूं सताती है दुनियां मुझे ! प्यार की आग में तन बदन जल गया,,,!'
     गुलनूर खिलखिला कर हंस पड़ी !!

                          ******

    

Thursday, 3 November 2022

पत्रकार/समाज सेवी

            "पत्रकार/ समाज सेवी बैठक"

      एक स्वस्थ समाज की संरचना के लिए आधार, निर्माण, संवर्धन और सशक्तिकरण  में प्रथम भूमिका निभाने और अपराध, करप्शन तथा भय मुक्त समाज के ख्वाब को अमली जामा पहनाने के लिए जान पर खेलने वाले प्रत्रकार प्रजातंत्र के प्राण और प्रहरी होते हैं! उपभोक्ता वादी संस्कृति तथा अपराध और सियासत के बढ़ते गठजोड़ ने आज के पत्रकारों को ज़िम्मेदारी और जानलेवा खतरों के घेरे में खड़ा होकर अपनी भूमिका निभाने की चुनौती का चक्रव्यूह दे दिया है! 
            मेरी दिली ख्वाहिश है समाज और देश के कीट नाशकों के सफाए में लगे इन बहादुर पत्रकारों के साथ कुछ पल बिताकर मैं भी खुद को सम्मनित और गौरवान्वित महसूस करूं! मैने इन्ही खतरों की परछाइयों तले पत्रकरिता के पैंतीस साल निकाले हैं! क्षेत्र के प्रतिष्ठित विद्वान् प्रखर बुद्धिजीवी, समाज सेवी और अवध के प्रख्यात कवि कर्म राज शर्मा 'तुकांत' की सदारत में कल ( 05.11.2022) शनिवार को (समय एक बजे दिन) हम एक  विचार विनिमय संगोष्ठी में  बैठेंगे !
            आप मेरे आवास ( पटेला गांव,तहसील बल्दीराय) आकर बैठेंगे तो मुझे यकीनन आपके साथ वक्त बांट कर अजहद खुशी होगी ! चाय की चुस्की और नाश्ते के बीच हम अपने परिचय और अनुभव भी साझा कर लेंगे !

            तो,,,,आ रहे हैं  न आप  ?

                आपका अपना
               सुलतान  "भारती"
           जर्नालिस्ट और साहित्यकार
(मुंशी प्रेमचंद साहित्य सम्मान से सम्मानित)
   9899962243   9310608221



Monday, 24 October 2022

खुरदरी यादें

             "सखि! फिर से चुनाव आयो रे"

Sunday, 23 October 2022

" फिर से याद गांव की आई !!"

            ( यादों के दिए)

 "फिर से याद गांव  की आई"

           अवध के ऐतिहासिक जिला सुल्तानपुर का हमारा गांव " पटैला" ! बचपन मे झांकता हूं तो लंबा तबील वक्त भी मेरे बचपन की तस्वीर को रूबरू आने से रोक नहीं पाता ! मेरे बचपन की यादों से गुलज़ार मेरा गांव अचानक ही मेरी आखों के सामने नुमाया हो जाता है । बचपन के सारे संगी साथी (जो अब बूढ़े हो रहे हैं) अपनी उन्हीं शरारतों के साथ मेरे इर्द गिर्द जमा हो चुके हैं, और एक एक कर मुस्कराते हुए एलबम से बाहर आ रहे हैं,  ये आज अयाज़ है, ये झब्बन, बिक्कन , अनीस, सोमई, मेंहदी, संतू, बाबूलाल और ये ईश्वरदीन । मैं उन्ही के साथ सारी दुनियां भूल कर धीरे से अपने बचपन में उतर जाता हूं! वो मस्त मासूम और मोहक बचपन- जो  जाति धर्म, छुआछूत, ऊंच नीच और गरीबी अमीरी की दुनियावी सोच से मुक्त था !
       पटेला गांव सुन्नी शेख और सय्यदों का गांव है, जिसमें तब दस पन्द्रह घर दर्जी और बीस घर दलितों के थे, ( आज दलितों के पचास साठ घर हैं!) उनके बच्चे हमारे सहपाठी और दोस्त थे ! हम साथ साथ खेलते, कूदते और लड़ते थे ! हमारे दलित दोस्त बेधड़क हमारे घर में घुस आते थे ! हम शेख सय्यादों के बच्चों को कभी सिखाया ही नहीं गया कि दलितों से मेल जोल रखने पर मज़हब में इन्फेक्शन हो जाता है ! संतराम अखाड़ा कूदने में हमारा सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी था ! प्राइमरी स्कूल में बाबूलाल मेरा बेस्ट फ्रेंड था और ईश्वरदीन की हिंदी सुलेख से हमें बड़ी ईर्ष्या थी । बाबूलाल के घर के उबले हुए भुट्टे हम बगैर किसी संकोच के खा लेते थे ! (छीन कर खाने की अपनी लज़्जत थी !)
       उस वक्त हमारा गांव  बिजली की रोशनी से बहुत दूर था,मगर कुदरत ने हमारे दिलों को रोशन कर रखा था ! गांव में हर मौसम दिल खोल कर आता और हम बाहें फैला कर उसका खैर मकदम करते ! सर्दियों में ठंड के साथ भेड़ियों का खौफ भी हमें डराता था ! गरीबों के दुश्मन जाड़ा से लड़ने का क्या नायाब तरीका था!.धान के पुआल को कमरे में बिछाकर उस पर बिस्तरा लगा कर रजाई के नाम पर जो भी होता, ओढ़ कर सो जाते थे। हमारे ऑर्गेनिक गद्दे को देख लेता तो डनलप के गद्दे भी कोमा मे चले जाते ! बहुत गरीबी थी गांव में, पर कोई भूखा नहीं सोता था ! आपस में प्यार मोहब्बत और इत्तेहाद ने सबको समेट रखा था ! हमारे खेल भी दहलाने वाले थे, तालाब के किनारे खड़े महुआ के पेड़ से तालाब के पानी में छलांग मार कर फेंके हुए ईंट को ढूंढ कर निकालना ! ईट तो किसी एक को मिलती थी, लेकिन जोंकें सबको मिल जाती थीं । पूरी रात घर से दूर कब्रस्तान के नज़दीक जुते हुए खेत में कबड्डी खेलते थे और फजर की अजान से पहले भाग कर घर आ जाते थे। ( ताकि पता न चले कि बेटा खाट पर नहीं था !) फजर की अज़ान वो अलार्म थी जो हिंदू मुस्लिम दोनों की दिनचर्या  शुरु करने का संकेत देती थी ! ( वही अजान आज कुछ लोगों को सरदर्द दे रही है !)
       बसंत के मेले का इंतजार पूरे साल करते थे ! पांच किलोमीटर का कच्चा रास्ता खेलते कूदते पार कर लेते थे ! दो रुपये बहुत बड़ी रकम थी ! हम डेढ़ रुपए में कायनात खरीद लेते थे ! ये रुदौली की पपड़ी रही और उधर कोने में राधे की चाट पकौड़े की दुकान ! मैं मुरीद था उसके चाट का ! मेले में काले गन्ने का खास क्रेज था । और फिर आखीर में हम मिठाई के दुकानों पर ललचाते हुए पहुंचते थे ! इनके दाम हमें जलेबी की ओर धकेल देते ! हमारे सबसे अजीज़ दोस्त इब्राहीम के पास एक बेहतरीन तर्क होता था, -" ये सारी मंहगी मिठाइयां रात में जिन्न खरीदने आते हैं-" ( गुरबत कहां कहां से हौंसले लेती थी !)
     दीवाली पर कुम्हार हमारे घरों में भी दिए, जटोले और घरोंधे दे जाते थे! त्योहार और खुशियों का तब कोई बटवारा नहीं था ! ईद सबके लिए थी, दलितो के परिवार की महिलाएं सिवईऔर खाना हमारे घरों से लेकर जाती थीं ! हर मुस्लिम परिवार पड़ोसी के हक की सुन्नत अदा करता था ! सर्दियों में जब गन्ने कट कर आते तो पकते हुए गुड की खुशबू से गांव मुअत्तर हो जाता ! फिर रात की गहराती खामोशी मे एक से एक रहस्यमय, और तिलिस्मी कहानियां सुनने को मिलती ! सुनते सुनते अक्सर हम वहीं लुढ़क कर सो जाते थे !  क्या दिन थे , तब शायद चांद सचमुच हमारा ' मामा' था ! चांद और वैसी चांदनी फिर कभी नहीं देखी ! रात में आसमान की ओर देखता तो ऐसा लगता गोया चांद कह रहा हो, "- सो जा भांजे, मुझे पूरी रात तारों से गुजरना है ! तू सो जा तो आगे जाऊं, वरना बहन नाराज़ होगी "!
       हम क्यों बड़े हो गए ! हर खुशी छिन गई ! आज भी गांव जाकर स्कूल के पास जाकर दीवार और दरखतों को बड़ी  हसरत से देखता हूं ! लगता है पेड़ मुझे पहचानने की कोशिश कर रहे हैं ! मै अक्सर  पेड़ से अपनी पीठ सटा कर खडा हो जाता हूं ! सोचता हूं कि अभी वो मुझे अपनी शाखाओं में समेट लेगा ! यादों के दरीचे खुल जाते हैं पर दरखत की बाहें  नहीं खुलतीं ! लगता है पेड़ को बड़े घाव लगे हैं ! नई पीढ़ी को रिश्ते और दर्द का एहसास भी अब कहां  है।

   आ जा बचपन एक बार फिर,,,,,,,!!

                    --   ( सुलतान भारती)

           

Thursday, 20 October 2022

"क्रॉफ्ट मेला का उदघाटन संपन्न "

    फलाह द्वारा आयोजित क्रॉफ्ट मेला शुरू
विख्यात भाजपा नेता "जॉली" ने फीता काटा 

    पश्चिमी दिल्ली के द्वारका  सेक्टर 1 स्थित 
डीडीए ग्राउंड में क्रॉफ्ट मेला का उदघाटन भाजपा के विख्यात विधायक श्री विजय जॉली के हाथों संपन्न हुआ ! कल मेला ग्राउंड पहुंच कर भाजपा नेता ने फीता काटा और दीवाली मेला की विधिवत शुरुवात की औपचारिकता पूरी की ! मेला 30 तीस अक्टूबर तक चलेगा। मेले में हस्त शिल्प कला के उत्पाद के अलावा मनोरंजन और खाने पीने के काफी स्टॉल लगाए गए हैं!
   स्मरण रहे कि मिनिस्ट्री ऑफ टेक्सटाइल द्वारा पोषित और समर्थित ये क्रॉफ्ट मेला पूरे देश में लगता है, जिसमें देश की संस्कृति और सभ्यता से जुड़ी हस्तकला कौशल के नायाब उत्पाद और कारीगर ( आर्टिजन) देखने को मिलते हैं ! पूर्व सरकारों की अपेक्षा वर्तमान मोदी सरकार ने विलुप्त होती हस्त कला और कलाकारों को बचाने और आर्थिक पोषण देने में उल्लेखनीय काम किया, जिसका असर खुल कर सामने नज़र आता है। हस्त करघा मंत्रालय आर्टिजन और उनसे जुड़ी गैर सरकारी संस्थानों ( एनजीओ) को हर तरह का संभव सहयोग दे रही है!
      उदघाटन के मौके पर लोकप्रिय भाजपा नेता श्री विजय जॉली को नजदीक से देखने के लिए दर्शक और दुकानदार दोनो भारी संख्या में एकत्र हो गए थे! श्री जौली ने अपने संक्षिप्त संबोधन में कहा, ' दीवाली के इस पावन पर्व पर लक्ष्मी मां आप सबकी मनोकामना पूरी करें -!" मेला अथॉरिटी के अनुरोध पर भाजपा नेता ने दस्तकारों द्वारा तैयार किए गए उत्पाद को स्टॉल पर जाकर देखा और प्रसन्नता व्यक्त की । 
            मेले का आयोजन दिल्ली और देश की जानी मानी एनजीओ " फलाह" हैंडीक्राफ्ट सोसाइट  के द्वारा किया जा रहा है! इस अवसर पर कई समाजसेवी, पत्रकार और इस क्राफ्ट मेला के मुख्य आयोजक मोहम्मद यामीन ख़ान, वरिष्ठ प्रबंधक शशि रंजन दूबे, इवेंट मैनेजर गुलज़ार, यश कुमार और जयप्रकाश  भी  मौजूद रहे !

   मेला तीस अक्टूबर तक चलेगा !

Tuesday, 11 October 2022

(कलाम विद लगाम) "ऐसी वाणी बोलिए,,,,,,"

(कलाम विद लगाम)

      ऐसी वाणी बोलिए मन का "आपा" खोए 

    अब मै क्या बताऊं कि आत्मनिर्भरता ने कहां कहां रफ्तार पकड़ा है। वैसे तो झूठ,फरेब,छल, कपट, धोखा और मिलावट ने भी बड़ी तरक्की की  है ,लेकिन नफ़रत के सेंसेक्स ने आत्मनिर्भरता में जो छलांग मारी उसने सबको पीछे छोड़ दिया है ! तब से सहिष्णुता और मीठी वाणी मुंह के बल गिरे पड़े हैं! पता नही वो दोहा किस सतयुग में लिखा गया था !
ऐसी वाणी  बोलिए मन का आपा  खोए!
औरन को शीतल करेआपहुँ शीतल होय!!
      आज के दहकते  युग में ऐसी 'शीतल वाणी' का अमृत महोत्सव चल रहा है ! ऐसी दुःख भजन वाणी बोलने में दरोगा, संत और सांसद एक कतार में हैं ! वाणी के मानसून में विधायिका और न्यायपालिक बगैर छाता के भीग रही है ! 
          इधर इस दोहे के  "मन का आपा खोए" शब्द ने कुछ बुध्दिजीवियों के कान खड़े कर दिए हैं! उनका मानना है कि "आपा खोना". क्रोधित होने का संकेत है! दोहा लिखने वाला तो बवाल करने की सलाह दे रहा है,- ऐसी वाणी बोलिए कि सामने वाला "आपा खो कर" पथराव शुरू कर दे !( वैसे आज कल इस दोहे पर खुल कर अमल हो रहा है) एक से एक 'शीतल वाणी' सुनाई पड़ रही है,- ' इन लोगों का आर्थिक बहिस्कार करो '! जनहित में बोली गई इस देव वाणी को मिली तालियों की गड़गड़ाहट ने एक संत को इससे भी ज्यादा शीतल वाणी की प्रेरणा दे दी, -' उनका हाथ काटो! ज़रूरत पड़े तो उनका गला भी काटो -'! पुलिस गश्त मार रही है, कि ऐसी शीतल वाणी से आपा खो कर कोई पथराव करता नजर आ जाए तो उस पर बुल्डोजर छोड़ा जाए !!
         इस शीतल वाणी की महती कृपा से आए दिन बुलडोजर का अमृत महोत्सव नजर आ रहा है। जब किसी का घर गिरता है तो सिर्फ उस घर के लोग दुखी होते हैं, लेकिन घर के गिरने से "औरन के मन को" जो शीतलता मिलती है, उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती ! लिहाजा "ऐसी वाणी" को थोड़ा और 'शीतल' करने का प्रयोग रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है। महापुरुषों के बारे में कहा गया है, - महाजनो येन गता: स पंथा -!  ( महापुरूष जिस रास्ते पर चलें,वही  (अनुकरणीय) रास्ता है -!)
अब महापुरुष शीतल वाणी के साथ निकल पड़े हैं, और एक भारी भीड़ (विवेक और) "आपा" खोकर जनहित में सत्य मार्ग पर चल पड़ी है!
       अज्ञान काल में झूठ, द्वेष और नफ़रत को अच्छा नहीं समझा जाता था ! प्रभु की कृपा से अब जाकर अज्ञानता का कार्बन और जनता का दुर्दिन दूर हुआ हैं। वैसे भी हर घूरे के दिन फिरते हैं। तीनो ( झूठ, द्वेष और नफ़रत) एक दम से विजय माल्या की तरह आत्मनिर्भर हो चुके हैं ! सौभाग्य से दबी कुचली और शोषित नफ़रत को अब जाकर न्यायोचित सम्मान मिल पाया है !इस वक्त नफरत अपनाने, दुलारने और जबान में रोपने वाले ज्ञानी पुरूषों की भरमार है । एक ढूंढों हजार मिलते हैं, जैसी प्रचुरता है !
      तो,,, भद्रजनों! - ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोए - का अक्षरश: पालन हो रहा है ! न वाणी की धार कुंद हो रही है न आपा खोने वालों का कोई अकाल  है! कवि ने आपा खोने का अर्थ कुछ और लगाया था, परंतु महापुरुषों ने "मरा मरा"
समझ कर ज्ञान की गठरी बांध ली ! अभिव्यक्ति की आजादी के मेन गेट पर जांच अधिकारी बैठते हैं, पर पिछवाड़े गेट की जगह "टटिया" लगाई जाती है, ताकि "शीतल वाणी" पूरी आजादी से अभिव्यक्त हो सके! मन का आपा खोने में कोई अवरोध नहीं आना चाहिए !
           ऐसी "शीतल वाणी" पहले कभी कभी सुनाई पड़ती थी,अब प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है । सुबह से शाम आकाश वाणी चलती रहती है ! इसे सबसे पहले सुनने और जनहित में प्रसारित करने के लिए सोशल मीडिया के अग्निवीर काफी आगे हैं! इस प्रतिस्पर्धा में कभी कभी घटना घटने से  पहले ही घटना की खबर आ जाती हैं! शीतल वाणी सुनते ही बड़े चैनल कई पार्टियों के अग्नवीरो को डिबेट में जमा करते है और फिर कई वीरपुरुष आपा खो कर पहले से ज्यादा 'शीतल' वाणी का प्रयोग करने लगते है ! डिबेट के अंत में एंकर ऐलान करता है,- ' तो,, बुद्धिजीवियों के विचार, तमाम साक्ष्य और प्रत्यक्षदर्शियों के बयान से ज़ाहिर होता है कि गलती एक सम्प्रदाय विशेष की है ! उन्हें उस दिन मस्जिद में नमाज पढ़ने जाना ही नहीं था, जिस दिन उधर से मूर्ति विसर्जन जुलूस को जाना था ! खैर आप सभी बुद्धिजीवी रिसेप्शन काउंटर से अपना अपना "लिफाफा" लेकर जाइएगा "!
                        क्योंकि
      आपा खोने के लिए लिफाफा बहुत जरूरी है !

                           (सुलतान"भारती") सीसी

Tuesday, 4 October 2022

(कलाम विद लगाम) "रावण इज बैक"

(कलाम विद लगाम)

   "रावण इज बैक"

      आज रावण बहुत अच्छे मूड में था, सुबह ही सुबह देवलोक में स्थित उसके फ्लैट की कालबेल बजी! एक देवदूत ने उसे शुभ सूचना दी, -' तुम्हारी छुट्टी मंजूर हो गई! अब तुम दिल्ली की रामलीला देखने पृथ्वीलोक जा सकते हो ! आज पांच अक्टूबर है ! ये रहा तीन दिन और अठारह घंटे का वीज़ा "! 
     " मेरे अस्त्र शस्त्र?"
" उसकी कोई जरूरत नहीं। इस सूटकेस में तुम  दोनो के कपड़े हैं ! धोती कुर्ता में मत जाना "!
    " दोनों कौन, क्या मंदोदरी भी जाएगी?"
   " मंदोदरी नहीं, शूर्पनखा !"
  नहीं"! रावण चिल्लाया!
       " हां ! तुम्हारी कुंडली का सबसे ताकतवर नक्षत्र वही है ! पैरोल पर छूटे हो, बहन को भी दिल्ली घुमा दो !"
         " क्या हम लंका नही जा सकते?"
" नहीं, वहां के हालात खराब हैं, तुम्हारे वर्तमान रिश्तेदार देश छोड़ कर भाग गए हैं! पूरे देश में लंका दहन चल रहा है ! जल्दी करो"!
       एक घंटे बाद सुबह के ठीक पांच बजे रावण अपनी छोटी बहन शूर्पनखा के साथ दक्षिण दिल्ली के संगम विहार वाले जंगल में लैंड हुआ ! वहां से बाहर आकर दोनों ने एक ऑटो रिक्शा वाले से पूछा, - इंडिया गेट चलोगे "? 
   रिक्शा चालक ने शूर्पनखा को ऊपर से नीचे तक
देखते हुए पूछा, " मैडम आप भी चलेंगी?"
      " हां" !
" आप चलेंगी तो मीटर से चल दूंगा, ताऊ जी चलेंगे तो इंडिया गेट का चार सौ रुपया"!
      रावण खून का घूंट पी कर रह गया, जब कि शूर्पनखा मुस्कराई, - तुम्हारी शादी हो गई कि नहीं?"
      अड़तीस साल उम्र में तीन बच्चों का बाप बन चुका आटो चालक कान पकड़ कर बोला, " राम का नाम लो जी, अट्ठाइस साल की उम्र भी भला शादी करने की होती है! वैसे,,,आप जैसी कोई मैरी ज़िंदगी में आए तो  'बाप'. बन जाएं "!
   "गाड़ी चला " रावण गरजा- " वरना कन्यादान की जगह मैं यहीं तेरा पिंडदान कर दूंगा"!
     ऑटो वाला गुर्राया, - " क्यों मेरे हाथों वीरगति पाना चाहते हो ! ये संगम विहार है ताऊ, यहां पर अक्सर आत्मा का परमात्मा से मिलन चलता रहता है! "!
           देवलोक के दिशा निर्देश से बंधा रावण कोई एक्शन नहीं ले सकता था। आधे घंटे बाद आटो रिक्शा इंडिया गेट पर रुका। शूर्पणखा ने रावण से कहा, -"क्या मैं उधर नौका विहार करने जाऊं डैड "?
       " कदापि नहीं शूर्पी ! ये सतयुग नहीं है , मैं चलता हूं तुम्हारे साथ "! 
     नौका विहार करते हुए रावण ने देखा कि संगम विहार वाला ऑटो ड्राइवर भी एक नाव पर धूम रहा था ! खतरा भांप कर रावण ने बहन को चेतावनी दी, -" अब कलियुग में भी मेरी नाक कटवाओगी क्या ! इस ऑटो वाले की यहीं जलसमाधि बनाता हूं! तुम्हारी च्वाइस इतनी घटिया कैसे हो गई?"
      "तो क्या करूं! शाही फेमिली के लोग मुझे पसंद करने की जगह मेरी नाक काट लेते हैं ! अब इस कलियुग में तो संगम विहार वाले ही  मिलेंगे बिग ब्रदर ! "
     " मै इसी लिए तुम्हारे साथ नहीं आना चाहता था, तुम्हारी सोच ब्यूटी पार्लर से हुक्का पार्लर तक
ही चलती है ! चलो चांदनी चौक चलते हैं "!
  " लेकिन यहां से लोदी गार्डेन ज्यादा नज़दीक है ! ऐसा करते हैं कि आप चांदनी चौक चले जाओ, मैं लोदी गॉर्डन हो कर आती हूं!"
      "नहीं !" रावण गरजा - " मैं तुम्हें अकेले नहीं जानें दूंगा "! 
   "क्यों?"
"सतयुग में दूध से जला था, तब से मट्ठा भी फूंक फूंक कर पीता हूं ! मै भी लोदी गार्डेन चलूंगा "!
    " वहां कोई भी लड़की अपने भाई को लेकर नही जाती, भाई समझा करो!"
   रावण ने मैप देखते हुए कहा, -" न लोदी गार्डेन और न चांदनी चौक ! जंतर मंतर चलते हैं!"
      " ठीक है,लेकिन संगम विहार वाले ऑटो से चलते हैं , क्या म्यूजिक लगा रखा था - 'मुस्किल कर दे जीना इश्क कमीना-!' 
         रावण की आंख आज सुबह से ही थोड़ी थोड़ी फड़क रही थी, अब एक दम से स्पार्क करने लगी ! जंतर मंतर के इंट्री गेट पर खड़े सब इंस्पेक्टर ने शूर्पनखा और ऑटो वाले को तो अंदर जाने दिया और रावण को गेट पर ही रोक लिया! रावण गुस्से में आ गया, - " मुझे क्यों रोका?"
       " थारे लक्षण ठीक न लगे मोय ! के नाम सै?"
        "रावण" !
    " कश्मीर ते आया है न ! हवलदार ! तलाशी लेना इसकी , अर  इसकी मूछों में कंघी मार कर देख लेना , के बेरा हशीश या हथगोला न छुपा रक्ख्या हो ! घणा खतरनाक दीखे "!
    बगैर किसी जुर्म के पकड़े जाने पर रावण का ब्लड प्रेशर बढ़ गया । हालांकि तलाशी में कुछ भी नही निकला था फिर भी सब इंस्पेक्टर धमका रहा था, -' सही बता दे, किसका आदमी है - हिजबुल का या लश्कर का"?
    "मेरे पास कुछ मिला क्या ?"
"अच्छा !  तो बेटा सुन ले ,मैं जो चाहूंगा वो तेरे धोरे बरामद हो ज्यागा "!
   " कैसे"! 
               " तीन घंटे थारी कारसेवा करूंगा, तू सब कुछ बरामद करवा देगा ! दिल्ली में घूम रहा है अर सूटकेस में दो सौ रुपए भी नही ! फ़कीर कहीं का !!" 
      रावण का दिल बैठ गया। कमबख्त ऑटो वाले के साथ शुर्पी ने पलट कर भी सुध नहीं ली थी! तभी एक लंबी कर रुकी और एक एसएचओ ने बाहर आकर सब इंस्पेक्टर को फटकारा, ' मेरे रिश्तेदार को क्यों रोक रखा है बेवकूफ?"
     " सॉरी सर ! इन्होंने बताया नहीं "!
"शट अप "!
        कार में बिठाकर आगे बढ़ते हुए दरोगा ने कहा, -" हैरान मत हो , मैं देवदूत हूं, दिल्ली देख कर पेट भर गया, या अभी लाल किले  जाकर रावण दहन भी देखना है?"
        " शूर्पि कहां है?"
 " वहीं चल रहा हूं, लोदी गार्डेन ! ऑटो वाला उसे बंगाल ले जाकर बेचने की प्लानिंग कर रहा है ! कलियुग में लोगों के कैरेक्टर में इतना प्रदूषण भर चुका है कि एक बार पूरी धरती को जोतना पड़ेगा।"
            रावण की बोलती बंद थी । सफेद रंग की बीएमडब्ल्यू कार तेजी से लोदी गार्डेन की ओर दौड़ रही थी!          (   क्रमश: )
   

Monday, 19 September 2022

(कलाम विद लगाम)

(कलाम विद लगाम)

        "केसरिया "चीता" पधारो म्हारे देश"!

   अब ये हंगामा है क्यूं बरपा - चीता ही तो आया है! इतनी हाय तौबा काहे की! मीडिया बताए तो सही कि उसे चीते के आने से इतना सदमा क्यों लगा है ! अरे भय्या, हम हैजा , महंगाई, बर्ड फ्लू से प्रदूषित मुर्गा, कोरोना सब झेल कर बैठे हैं- चीता की क्या चिंता ! वो बेचारा तो खुद नामिविया के नीग्रो से दुखी होकर आया है, जो उसके मुंह से हिरन छीन कर खा लेते हैं ! तारणहार की जय हो ।जो  हालात के मारे चीते को यहां ले आए ! लेकिन भारतीय मीडिया ने चीते के स्वागत में इतना झांझ मजीरा बजाया कि चीता घबरा कर खुद को कुछ और समझने लगा ! उधर विरोध को अपना राजधर्म समझने वाले विपक्ष ने चीते को निशाना बना कर हमला शुरू कर दिया - सोशल मीडिया पर भी सेनाएं सजने लगीं।
        ख़बर जंगल पहुंची, शेर ने व्हिप जारी कर दिया ! सारे जानवर इकट्ठा हुए ! शेर ने चिंता प्रकट की, -' सुना है अपने जंगल में कोई घुसपैठिया आ रहा है? जानवर हैरान! हिरन ने अपनी राय दी, -' राजा जी ! हमे चीते से डर नहीं लगता, इंसानों के प्यार से डर लगता है '! शेर ने अपनी समस्या रख दी , - ' मैं तो लगभग शाकाहारी हो चुका हूं , टोटल भेजिटेरियन ! सन दो हजार उन्नीस के बाद अपनी गुफा के बाहर नोटिस बोर्ड लगवा दिया हूं कि कृपया गाय, भैंस, बकरी बकरा यहां से दूर जाकर घास चरें "!
     मुंह लगे लोमड ने पूछा, " गाय पर तो रोक है, पर भैंस और बकरा बकरी का शिकार करना क्यों छोड़ा?"
     " खतरा है जान जाने का ! मैं बकरे का शिकार करूं और हमारे विरोधी उसे गाय साबित कर दें तो,,,! हमारी तो हो गई मॉब लिंचिंग! न बाबा न ! अपन शाकाहारी ठीक हैं ! अब ई चीता यहां क्यों आया ! लगता है मुझे नामीविया भागना पड़ेगा "!
       तो,,, चीता आ गया है। चीता लाने वाले ने भी नहीं सोचा होगा कि मीडिया को चीते से  इतनी ऊर्जा और फाइबर हासिल होगा ! लगता है इसके पहले मीडिया ने चीते का फोटो भी नहीं देखा था! इतना  मान  सम्मान  देख कर खुद चीता सदमे में है, - कहीं चुनाव न लडवा दें ! हे वन देवी रक्षा करना, मीडिया के लक्षण ठीक नहीं लगते- ' !
     फ़िलहाल चीता आ गया है, उम्मीद है कि अब महंगाई जन बचाकर भागेगी! एक म्यान में दो तलवार नहीं रह सकती ! तभी तो दूर दृष्टि से मालामाल मीडिया देश हित में इतना खुश है ! चीता  इन, महंगाई आउट ! नो डाउट !! सावन की जगह चीता को आने दो ! यूपी के अवध क्षेत्र में धान के खेत सूख रहे थे ! मानसून लेट था, चीता टाइम पर आ गया ! चीता के आते ही बारिश शुरू !अब किसान और मीडिया दोनों खुश हैं ! केसरिया "बालम" पधारो म्हारे देस !! 

    खैर चीता आ गया है ! मीडिया न बताती तो कैसे बता चलता देश में चीता आया है! सरहद से घुसपैठिये अंदर आ जाते हैं तो मीडिया को पता नहीं चलता, उसके अंडर कवर एजेंट तब चीता ढूंढ रहे होते हैं ! अब तक चीता नामीबिया में था , तभी महंगाई अंदर आ गई ! अब चीता अंदर है तो महंगाई और बेकारी  नामीबिया  का पता पूछ रही हैं ! मीडिया के तमाम 'अंडर कवर एजेंट' चीता के इर्द गिर्द घूम रहे हैं -" तेरे चेहरे से नज़र नहीं हटती, महंगाई हम क्या देखें ! भीड़ और मीडिया का मारा चीता सड़मे में है ! चीता का आना बेशक एक मानवीय पहल हो ,पर मीडिया को पूरा यकीन है कि एक दिन ओज़ोन के परत में हो रहे छेद को भी यही चीता बंद करेगा  !   तो,,,,,,,,
  
चीता आ गया है, शायद अब कोरोना चला जाए !!
       

"अन्तरिक्ष की बेटी"

              "अन्तरिक्ष की बेटी"

         अवध एक्सप्रेस से महज़ आठ किलोमीटर के फासले पर बाजगढ़ का सराना घाट ! रात नौ बजते ही बाबू मल्लाह ने नाव को खूंटे से बांधा और घर में उतारी महुआ की तेज़ शराब पीकर नाव में ही रजाई ओढ़ कर लेट गया ! उसके आज घर न जाने की वजह यह थी क्योंकि बसंतपुर के मेले में बाजगाढ़ के पठानों के आठ दस लड़कों को नौटंकी देख कर रात में ही नदी के उस पार उतारना था ! बाबू मल्लाह को इस वीराने में अब दर नहीं लगता था, यहां के पशु पक्षी नीलगाय और मैदानी इलाकों में कभी कभी नज़र आने वाले भेड़िए तक उसे पहचान गए थे । सराना घाट के जंगल तरह तरह की आवाज से गूंज रहा था ?
       अचाननक बाबू उछलकर उठ बैठा ! नींद से जाग कर वह आंखें फाड़ फाड़ कर चारों ओर देखने लगा! उसने किसी तेज़  धमाके की आवाज़ सुनी थी ! आसमान में चांद सहमा हुआ नीचे झांक रहा ! यकायक उसने महसूस किया कि वह गरमी और पसीने से भीग रहा है !  आसपास का वातावरण अचानक गर्म हो उठा था! उसने गबराई हुई नजरों से  बाईं तरफ नदी की ओर देखा तो खौफ से दहल गया ! एक बीघे के क्षेत्र में नदी का पानी खौल कर उबल रहा था और मछलियां तड़पती हुईं उछल रही थीं ! जैसे एक बीघे के पानी को आग के ऊपर रख दिया गया हो !
         अचानक दाईं तरफ से उसे किसी ने पुकारा ! उसने घूम कर देखा, तो ऐसा लगा कि उसका कलेजा उछलकर गले से बाहर आ जायेगा ! गोमती नदी के पानी की जलधारा में दो लड़कियां खड़ी थीं। चालीस साल से नाव चला रहे बाबू मल्लाह ने कभी इतनी खूबसूरत लड़कियां नहीं देखी थीं ! जहां वो खड़ी थीं, नदी का पानी उनकी कमर तक था ! जब की बाबू जानता था कि उस जगह पानी की गहराई तीस फीट से कम नहीं थी ! लड़कियों के काले लिबास से  कई किस्म  की रोशनी फूट रही थी ! उन्हें जल देवता की बेटी समझ कर बाबू ने हाथ जोड़ कर नमस्ते किया तो दोनों लड़कियां खिलखिला कर हंसने लगीं ! 
            बड़ी वाली लड़की ने  बाबू मल्लाह की ओर देख कर कुछ कहा ! बाबू मल्लाह को लगा कि कुछ अजनबी शब्द हवाओं से गुज़रे और फिर उसे अपनी भाषा में सुनाई पड़ा,-' मैं और मेरी छोटी बहन तुम्हारी नाव पर घूमना चाहते हैं"!!
  
                 ( अगले महीने आने वाले मेरे उपन्यास "अंतरिक्ष की बेटी"   से  चंद लाइनें ")

Wednesday, 14 September 2022

(कलाम with लगाम) "आई लव हिंडी यू नो" !

 "कलाम विद लगाम "

   "आई  लव  हिंडी  यू  नो"

      मैने बड़ी हैरत से देखा, बैंक के मैन गेट पर एक बड़ा सा बैनर लटक रहा था, जिसमें बैंक के ग्राहकों को याद दिलाया जा रहा था - ' हिन्दी में काम करना बहुत आसान ! हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है ! आइए हम इसे विश्व भाषा बनाएं -'! अंदर आने वाले ग्राहकों को विश्व भाषा बनाने में बड़ी दिक्कत पेश आ रही थी ! जिन्होंने बैनर देखा ही नहीं, वो हमेशा की तरह अंग्रेजी में विड्रॉल फॉर्म, चेक और डिपोजिट स्लिप भर कर सहज नजर आ रहे थे, मगर जिन्होंने पहली बार बैनर पढ़ा था ,वो बड़ेअसमंजस में थे, कि विश्व भाषा बनाने के लिए किस काउंटर पर जाएं! मुझे अपने कुपोषित खाते से पंद्रह सौ रुपए निकालने थे ! मैने विड्राल भर कर दे दिया ! क्लर्क ने एक बार भी नहीं पूछा किआज के दिन इंग्लिश में क्यों भरा !!
        मैं हैरान था कि भला बैनर लटका देने से किस तरह हिन्दी की सफल सेवा की जा रही है! हिंदुस्तान में भी हिंदी का दिवस और पखवारे की ज़रूरत क्यों पड़ रही है? इंग्लैंड क्या इंग्लिश डे मनाता है !! सिर्फ नारा उछाल कर उपलब्धियां नहीं हासिल होती ! हिन्दी को सिर्फ राष्ट्रभाषा घोषित करने से काम नहीं चलेगा बल्कि उसे रोटी और रोजगार का व्यापक आधार देना होगा। साथ ही देश के एलीट वर्ग और प्रशासन में बैठे लोगों को चाहिए कि वह हिन्दी को बैनर से निकाल कर अपने बच्चों में ले आएं!
          हमारे यूपी में हिंदी कक्षा एक से पढ़ाई जाती है और अंग्रेज़ी क्लास सिक्स से । शहर से लेकर सुदूर गांवों तक अंग्रेज़ी ड्रोसरा के ज़हरीले पौधे की तरह हिंदी का खून चूस रही है ! हिंदी को विश्व भाषा बनाने वाले नेताओं के बच्चे विदेशों में पढ़ते हैं। इसी से पता लगता कि हिन्दी के प्रति वो कितनी बड़ी कुर्बानी दे रहे हैं ! अंग्रेजी के प्रति बढ़ते मोह में हिंदी विकास  की गति चिंतनीय है ! मिडिल क्लास वर्ग में भी घुटनों के बल चल रहे बच्चे को दूध कम अंग्रेज़ी ज़्यादा पिलाई जाती है। अपने 
घर आए पड़ोसी से बच्चे के टेलेंट की नुमाइश की जाती है,-' शाशा ! अंकल से शेक हैंड करो !' लगता है कि हिंदी में सलाम नमस्ते करते ही बच्चे का भविष्य ख़राब हो जाएगा !!
      सितंबर की बयार पाते ही हिन्दी प्रसार और प्रचार में लगी संस्थाएं उसे विश्व भाषा बनाने में जुट जाती हैं ! सरकारी अनुदान को ठिकाने लगाने के लिए अपने अपने गुल्लक के कवि, शायर, चारण,चिंतक  और साहित्यकारों  को   काम   में   लगा  दिया  जाता  है ,-'जागो मोहन प्यारे जागो -! इन्हीं साहित्यिक फावड़ों से हिन्दी विकास फंड को व्यवस्थित किया जाता है ! मरते दम तक साहित्य समंदर के यही "सील" मंचों पर पसरे होते हैं ! हिंदी को राष्ट भाषा से विश्व भाषा बनाने का भार इन्हीं के हड्डी विहीन कंधों पर है ! इनके होते नई पीढ़ी के ऊर्जावान साहित्यकारों को सिर्फ़ ऑक्सीजन पर जीवित रहना है !
        कल पड़ोस में रहने वाले वर्मा जी मुझ पर रोब डालते हुए कह रहे थे, -' शुक्र है कि बेटे का एडमिशन हो गया ! सुनकर तुम्हारा तो खून जल गया होगा ! बुरा मत मानना, वहां पर छोटे मोटे या फर्जी पत्रकारों के बच्चे नहीं पढ़ सकते ! हिंदी बोलने पर जुर्माना भरना पड़ता है, यू नो !!"  वर्मा जी खुद हिंदी मीडियम की उपज हैं किंतु बच्चे के अंग्रेज़ी ज्ञान को पूरे मोहल्ले में बांटते हैं ! मिडिल क्लास वर्ग से ब्याह कर आई महिलाएं अपने बच्चों को अंग्रेजी में ही दुलारती डांटती हैं, -' चिंटू ! डोंट ईट मिट्टी ! फेंको, थ्रो करो !!' बच्चा अंग्रेज़ी और हिन्दी के बीच फंस कर रोने लगता है -'! मां चाहती है कि उसका नौनिहाल रोए तो भी अंग्रेज़ी में ! मां और बाप को अंग्रेज़ी में 'मम्मी' और 'पापा' बोलना शुरू करे, तभी पेरेंट्स को मोक्ष की प्राप्ति होगी ! अगर गलती से भी  बच्चे के श्री मुख से "अब्बा" या  "पिता जी" जैसे रूढ़िवादी शब्द निकल गए , तो समझो कि जीवन अकारथ गया, और सोसायटी  में उसकी प्रतिष्ठा का टाइटेनिक  बगैर आइसबर्ग से टकराए डूब गया ।

      इस वक्त मैं अपने कमरे में लेटा बेकारी की चौथी वर्षगांठ मना रहा हूं, और पड़ोस के वर्मा जी "आर डब्ल्यू ए" की मीटिंग में भीष्म प्रतिज्ञा करते हुए दहाड़  रहे हैं, -' हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है ! आओ हम सब मिलकर इसे विश्व भाषा बनाएं ! साथ ही इसमें अडंगा डालने वाले फर्जी पत्रकारों को पाकिस्तान भगाएं "!

     हिंदी को आत्मनिर्भर बनाने के लिए लोग जोश में ताली बजा रहे हैं !! मुझे मालूम है कि अब 2023 वाले हिंदी पखवारे तक ज्यादातर मौसमी योद्धा कोमा में  चले जाएंगे!!
       

Sunday, 4 September 2022

( कलाम विद लगाम) "ठेस रहित अपमान"

(कलाम विद लगाम)

        " ठेस रहित अपमान"

       महापुरूष ने धर्म विशेष पर फिर अनर्गल टिप्पणी कर दी , और बावेला मचने पर कहा, - ' मेरा मतलब वो नहीं था जो समझा गया' -! मतलब साफ़ है, सुनने वालों को गलतफहमी में ठेस पहुंची थी ! इस हालत में जनता को मान्यवर जी से ठेस सहित माफ़ी मांगनी चाहिए.!   उनका ससम्मान जेल आगमन होता है, इस संवैधानिक अनुष्ठान से उनकी लोकप्रियता बढ़ती है और वो इसी बेलगाम बयानों से,,,,,, 'हृदय सम्राट' हो जाते हैं! चरित्र निर्माण में ये कबीर के उलटवांसी - बरसे कंबल भीगे पानी- जैसी है ! किसी के धर्म का चीरहरण करने  से  भी  अब अपने चरित्र का डैमेज कंट्रोल  किया जाता है ।
          जब से अवतारों ने पृथ्वी पर आना छोड़ा है, तभी से बाबाओं का आगमन जोरों से है ! ये बाबा कलयुग के वो एलियन है जो बगैर उड़न तश्तरी के आते हैं और रुकी हुई  कृपा बरसा कर चार्टर्ड प्लेन से आश्रम लौट जाते हैं। भक्तों को मोहमाया से परे रहने का कीमती सुझाव देकर माया और मोहिनी दोनों पर झपट्टा मारते हैं! सियासत का उचित मानसून देख कर इनमे से कुछ बाबा दूसरे धर्म पर बेलगाम होकार ज्ञानवाणी सुना कर फॉलोअर्स को मंत्रमुग्ध करते हैं! प्रशासन को खर्राटा भरते देख  जबान बेलगाम होकर विधर्मियों के नरसंहार का सुझाव तक दे देती है ! बड़े चैनल उनके संविधान विरोधी बयान को "बिगड़े बोल" कहकर भार रहित कर देते हैं ! बाबा इस आस्था के बदले मीडिया को आशीर्वाद देते है ।  एंकर फुल बेशर्मी के साथ बाबा के "ठेस रहित" बयान की पैरवी करता है! देश विश्व गुरु होने की दिशा में धीरे से एक कदम और आगे जाता है! 
          'कलाम बेलगाम वाले' वाले  बुद्धिजीवियों की तादाद बढ़ रही है । दूसरे के धर्म में घुन तलाशने के लिए  कई  अंधे  दूरबीन लेकर आ गए हैं ! आए दिन कहीं न कहीं बेलगाम हो कर नफ़रत का सशक्तीकरण करते रहते हैं ! इधर कई महीनों सेआस्था में घातक परिर्वतन देखा गया है ! मंदिर के सामने से खामोशी से गुजर जाते हैं और मस्जिद को देखते ही अखंड कीर्तन और महा आरती के लिए व्याकुल हो जाते है ! आस्था में इतना समाजवाद पहले कभी नहीं देखा गया !
             ये नए मिजाज़ का संस्कार है ! पहले आस्था के साथ खिलवाड़ किया जाता है , और जब संवैधानिक शिकंजा कसता है तो कहते हैं, -' मुझे क्या पता कि इतने कम तापमान वाले अपमान से भी ठेस पहुंच जायेगी ! मेरा इरादा किसी को ठेस पहुंचाना नहीं था ! मैं तो आज कल ठेस रहित बयान देता हूं" !  (आखिर उन्हें जमानत भी तो लेना होता है !) नेता जी अपने ज़हरीले किंतु ठेस रहित बयानों के लिए काफ़ी लोकप्रियता बटोर चुके हैं ! वह काफ़ी सजग रहते हैं,और जैसे ही उन्हें महसूस होता है कि उनकी लोकप्रियता का तापमान गिर रहा है - वो तुरंत एक ज़हरीला बयान देकर लोकप्रियता का सेंसेक्स लुढ़कने से रोक देते हैं ! बिगड़े और विवादास्पद बयान उनके चरित्र निर्माण में उर्वरक  की भूमिका निभाते हैं!
       घनघोर कलिकाल में  जनता की जागरूकता प्रशंसनीय है! लोग तरकारी छोड़ कर ताजमहल खोदने पर उतारू हैं। जो गुस्सा तरकारी के महंगा होने पर उमड़ रहा था,उसे ताजमहल की ओर डाइवर्ट कर दिया गया ! महंगाई और बेकारी वाले गुस्से को पहले से ही झेल रहा ताजमहल सकते में है ! इस जनजागरण से आत्मनिर्भरता नजदीक और जीडीपी दूर होती नज़र आती है ! समस्याओं के निराकरण के लिए अब पंचवर्षीय योजनाओं से बढ़िया भारत पाक क्रिकेट मैच हो गया है ! जनता की बौद्धिक जागरूकता का कुछ ठिकाना नहीं कि कब महंगाई से डाइवर्ट होकर मैच से ऑक्सीजन लेने लगे !

    जहां तक  "ठेस" का सवाल है, जनता के अलावा किसी को नहीं लगनी  चाहिए ! नेता और पुलिस को तो बिलकुल ठेस नहीं लगनी चाहिए! जनता का क्या है, उसे तो आए दिन ठेस लगती है ! दो चार दिन सुकून से निकल जाए और ठेस न लगे तो जनता घबरा जाती है , - ' तीन दिन पहले ठेस लगी थी, पूरे बहत्तर घंटे बीत गए - मौला जाने क्या होगा आगे !  पहली बार ऐसा हुआ है जब देश में अजान,नमाज और मदरसों को देख कर भी कुछ लोगों को "ठेस" लगने लगी है ! 

        फिर कोई रूट डायवर्ट हुआ है !!

              
                    
          

Friday, 2 September 2022

संगम विहार परबड़े चैनल" की कृपा !

            ( अग्नि दृष्टि)

  संगम विहार पर "बड़े चैनल" की कृपा" !

      अगस्त की 25 तारीख़ को पौने चार बजे स्कूल से घर लौट रही सोलह वर्षीय नैना मिश्रा पर चलाई गई गोली की गूंज में कई सवालों के जवाब अभी भी हवा में तैर रहे हैं ! आख़िर मासूम छात्रा पर गोली किसने चलाई !!  डीसीपी  (दक्षिण दिल्ली) "विनीता मेरी" जी हमलावर का नाम बॉबी कुमार बताती हैं, तिगड़ी  थाना अधिकारी भी उसी का नाम लेते हैं ! लेकिन निन्दनीय अपराध की इस घटना में हिन्दू मुस्लिम, लव जेहाद और मदरसों को घसीटने वालों को इस नाम में हीमोग्लोबिन और फाइबर नही नज़र नहीं आता ! लिहाजा उनके सारे जिक्र की सूई अमानत अली उर्फ अली के इर्द गिर्द घूमती रही !
            इसमें कोई शक नहीं कि इकतरफा प्यार की असफल कोशिश के नतीजे में तीसरे अपराधी अमानत अली ने इस षडयंत्र का तानाबाना बुना था और घटना को अंजाम देने के लिए उसी ने दो देसी कट्टे और कारतूस का प्रबंध किया था ! उसके दोनों आवारा दोस्त ( बॉबी कुमार और सुमित कुमार) इस षडयंत्र में उसके सहयोगी बने! घटना वाले दिन अली बाइक चला रहा था और दोनो असलहे के साथ पीछे बैठे थे ! गोली बॉबी ने चलाई जो सर की जगह बाएं कंधे में घुस गई! लड़की को फौरन पास के बत्रा हॉस्पिटल में ले जाया गया , नैना अब खतरे से बाहर - लेकिन जेरे इलाज है! तेजतर्रार पुलिस उपायुक्त मेरी जी की तत्परता से बनाई गई रणनीति और संगम विहार पुलिस के जबर्दस्त ऐक्शन ने, सभी आरोपी हमलावारों की धर दबोचा और संगम विहार को नफरत और सियासत का अखाड़ा बनाने वाले लोगों का मंसूबा फेल कर दिया।
        1 सितंबर और 02 सितंबर 2022 कई बार  नंबर वन का दावा करने वाले चैनल ने प्राइम टाइम में अपने न्यूज में संगम बिहार की इस घटना पर फोकस किया, एंकर ने अपने विशिष्ट अंदाज़ में इस घटना के द्वारा दर्शकों को बताया कि " गोली अली उर्फ अमानत ने चलाई है"! समझ में नहीं आता कि बॉबी कुमार का नाम लेने से क्या चैनल की "टीआर पी ' गिर जाती !! यह साम्प्रदायिक नहीं तो और क्या हैं ! लव जेहाद के फ़ोकस में सिर्फ अमानत अली प्रमुखता से नजर आ रहा था और बाइक पर सवार  सुमित कुमार तथा गोली चलाने वाला बॉबी कुमार बिलकुल नहीं नज़र आ रहे थे!  ऐसा भी क्या नज़रिया सच बोलने की इजाज़त न दे! सांप्रदायिकता शायद ईमानदार पत्रकारिता और आंख के  "रेटीना" पर भी घातकअसर डालती है , तुलसी दास जी कहते हैं --

जाकी  रही भावना जैसी !
प्रभु मूरत देखी त्यों तैसी !! 

         गनीमत रही कि 32 साल से सुख दुख में एक दूसरे के साथ रह रहे संगम विहार के हिन्दू मुसलमानों की राष्ट्रीय एकता इतनी मज़बूत है कि नफ़रत की ऐसे हवाएं उनके इत्तेहाद की बुनियाद नहीं हिला पातीं ! खैर, आगे से दोनों समुदाय को सतर्क रहकर समाज के बीच रह रहे ऐसे अमानत अली  और बॉबी का इलाज ढूंढना होगा ! क्योंकि ऐसे ही ज़हरीले वायरस हमारे भाईचारे की जड़ों में मट्ठा डाल कर उसे  बर्बाद करते हैं !
  
याद रखें, -- बेटियां हमारी ज़ीनत हैं ! और,,,,,
अपराधी से हमारा कोई रिश्ता नहीं!!

     (  जनहित में कमेंट और लाइक जरुर करें !)
     

      

Wednesday, 31 August 2022

संगम विहार

     (अग्नि दृष्टि) 

"संगम विहार का नया संकट"!

        अगर दर्द का संप्रदाय करण किया जाए तो समाज कहां जाएगा! यदि ज़ख्म और तकलीफ को धर्म के फीते से नापा जायेगा तो मानवता आहत होगी और सामाजिक संरचना छिन्न भिन्न होने लगेगी ! ऐसी स्थिति में राष्ट्रीय एकता को घातक चोट पहुंचती है और साम्प्रदायिक को ताकत हासिल होती है ! यह समाज के लिए दुखदाई स्थिति होती है ! पैंतीस साल से चट्टान सी मजबूत दक्षिण दिल्ली स्थित संगम विहार के हिंदू मुस्लिम इत्तेहाद को आज अचानक उसी पीड़ा के रूबरू खड़ा करने का प्रयास किया जा रहा है ! घटना की शुरुआत कुछ यूं है ! 
            अगस्त के आखिरी हफ़्ते के शुरुआती दिनों में ( आज से आठ दिन पहले) संगम विहार के E ब्लॉक में अपनी मां के साथ घर आ रही एक लड़की को बाइक सवार तीन लड़कों ने पीछा किया और मौका पाते ही लडकी ( नैना मिश्र) पर गोली चला दी ! घायल लड़की को पास के बत्रा हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया, जहां आज भी वो जेरे इलाज है! पुलिस ने प्रशंसनीय तत्परता दिखाते हुए दो लड़कों ( बॉबी कुमार और सुमित)  को गिरफ्तार कर लिया ! (लड़की पर गोली सुमित ने ही चलाई थी!.) तीसरा अपराधी  (अमानत अली उर्फ अरमान अली)जो बाइक चला रहा था, भागने में सफल रहा था था !  पोलिस सारे संभावित ठिकानों पर दविश दे रही है ! स्थानीय पत्रकार मोमिना ने इसे सबसे पहले कवर किया था, और उसने अपराध और अपराधी को बगैर नमक मिर्च के दिखाया था ! 
     लेकिन जैसे ही मीडिया को खबर मिली कि तीनों अपराधियों में फरार होने में सफल रहा अपराधी सम्प्रदाय विशेष का है, बस अपराध की इस घटना को साम्प्रदायिक मोड़ दे दिया गया ! इस महान काम में एक यू ट्यूब पत्रकार ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए आधी अधूरी जानकारी लेकर खुल कर हिन्दू मुस्लिम किया ! ऐसा दिखाने का प्रयास किया गया गोया गोली भी फरार अपराधी ने ही मारी है, और मास्टर माइंड वही है! यहां तक तो ठीक था, आगे सीधे उसी को निशाना बनाकर संप्रदाय विशेष पर ज़हरीली टिप्पणी शुरू हो गई!
      विहिप ने क्षेत्र में मीटिंग की , और उस आक्रोश सभा में अपराधी विशेष की आड़ में जमकर मस्जिद और  मदरसे तक को आतंकी अड्डा और जाने क्या क्या कहा गया ! बत्तीस साल से मैने संगम बिहार में हिंदू मुस्लिम नहीं देखा ! यहां का हिन्दू मुस्लिम सौहार्द अतुल्य है!. दोनों समुदाय एक दूसरे के साथ जिस तरह प्यार मोहब्बत से रहते हैं, उसने साम्प्रदायिक शक्तियों की आंख में मिर्च डाल दी है! यहां की दीवाली और ईद मशहूर है! 
       विगत वर्ष इन्ही दिनों  पूरा संगम विहार         राविया हत्याकांड से थर्रा उठा था, संगम विहार के सभी हिन्दू मुस्लिम जनता ने कंधे से कंधा जोड़ कर इन्साफ की लड़ाई लड़ी थी ! तब किसी दर्दमंद नेता को बाहर से आकर संगम विहार की बेटी के लिए आक्रोश रैली करने की हूक नहीं उठी थी , क्योंकि शायद पीड़ित लड़की का नाम "राबिया" था ! दर्द का मजहब नहीं होता और अपराध का संप्रदाय से कोई नाता नहीं ! पानी, परिवहन, परिवेश और अपराध की दारुण समस्याओं से मिल कर लड़ रहे संगम विहार को एक नई मुसीबत "सांप्रदायिकता" में न घसीटा जाए !
       सरकारी उपेक्षा की शिकार और सत्ता संघर्ष में पिस रही इस बस्ती मे पहले से ही क्या कम मुसीबतें हैं ! अपराधी को सख्त सजा दे, अपराधी कोई भी हो, उसके के साथ उसका संप्रदाय नहीं खड़ा है ! पुलिस प्रशासन को अपना काम करने दें! नफ़रत फैलाना भी क्राइम में शुमार किया जाए!
लेकिन लगता नहीं।

Saturday, 27 August 2022

सुनहरा मौका ! मुफ्त ट्रेनिंग लें!! घर से कमाएं !!

सुनहरा मौका !               सुनहरा  मौका !!

घर के पास मुफ़्त ट्रैनिंग लें  !     घर से कमाएं !!

      कोरोना से जूझती  पूरी दुनियां आर्थिक संकट से गुजर रही है , हमारे देश को भी शिक्षित और अशिक्षित बेकारी का सामना करना पड़ रहा है! सरकार भरसक प्रयास कर रही है कि हर हाथ को रोज़गार मयस्सर हो, और देश का युवा रोज़गार हासिल कर देश के निर्माण और आर्थिक समृद्धि में अपना योगदान दे ! सर्व विकास की इसी कड़ी में देश का हस्त शिल्प कला मंत्रालय महिलाओं को रोज़गार देने की कई महत्वपूर्ण और कामयाब योजनाओं को घर घर सफलता पूर्वक पहुंचा रहा है!  स्वरोज़गार की ये योजना उसी सरकारी प्रयास का एक हिस्सा है!
       घर में बैठे शिक्षित/अशिक्षित बालिग लड़की / लडको, विधवा और हाउस वाइफ के लिए ये सुनहरा मौका है कि वो घर के नज़दीक खुल रहे इस हस्त कला ट्रेनिंग सेंटर में दाखिला लें और 4 से 6 माह की मुफ़्त ट्रेनिग लेकर अपने घर से काम शुरु करें ,और घर की माली हालत को मजबूत आर्थिक आधार दें ! आपका तैयार किया गया माल पूरे देश में बेचने के लिए सरकार बाज़ार उपलब्ध कराती है ! दूसरी सूरत ये है कि ट्रेनिंग लेने के बाद आप हमारे साथ सैलरी के आधार पर काम कर सकती/ सकते हैं ! इस सरकारी योजना में हर हाल में आपको  रोजगार देने की गारंटी है!
     ट्रेनिंग के लिए  "सौ" (लड़कियां+लड़के) का पहला बैच सितंबर के आख़िरी हफ़्ते में ट्रेनिंग शुरु करने की योजना है! संगम विहार वालों के लिए बहुत खूबसूरत मौका है ! बैच को सिलाई, कढ़ाई, कटिंग, ब्लॉक पेंटिंग, टाई डाई, ज़री जरदोजी, क्लच, पर्स मेकिंग, बीड ज्वैलरी, डिज़ाइन और मार्केटिंग की ट्रेनिंग दी जाएगी !( प्रशिक्षण कार्यकाल 4 से 6 माह केवल !) याद रखें, ट्रैनिंग से मार्केटिंग तक आपको पैसा देना नहीं बल्कि कमाना है !
 जल्दी करें ! तुरंत नामांकन कराएं!

कुछ भी जानने के लिए सेंटर के अधिकारी से फ़ोन पर अभी संपर्क करें!!

     ज़ोबिया ख़ान  9312209276
             (नीचे सेंटर का पूरा पता)

Tuesday, 23 August 2022

(व्यंग्य भारती) "नफरत का "संस्कार "

.          (व्यंग्य भारती)

"नफरत का संस्कार "

              अब  का  बताएं कि - यू पी में  का  बा ! घटना  मुजफ्फर नगर की है! एक महिला टीचर ने एक मुस्लिम बच्चे को सजा दी कि उसके क्लासफेलो उसे बारी बारी से थप्पड़ मारते रहे और अपने ही हमउम्र सहपाठियों से अपमानित होता हुआ मुस्लिम बच्चा फ़ूट फ़ूट कर रोता रहा ! नस्लीय घृणा की ये एक ऐसी खौफनाक घटना है जो हज़ारों सवालों को जन्म देती है! मासूम बच्चों को शिक्षा देने की ज़िम्मेदारी क्या ऐसे लोगो को देनी चाहिए जो जातिगत और नस्लीय नफरत की दूषित मानसिकता की  गिरफ्त में हों ? हैरत होती है कि ऐसे घृणित मानसिकता वालों का बचाव करने वालो की भी कोई कमी नहीं है! वो तो भला हो किसान नेताओं का जिन्होंने तुरंत संज्ञान लेते हुए दोनों सम्प्रदाय के बच्चों को आपस में गले मिलवा कर नफरत की बयार को आँधी बनने से पहले ही नाकाम कर दिया!
         महिला टीचर को  'विकलांगता' का ग्रेसमार्क दिलाने के लिए कुछ लोग फौरन सक्रिय हो गए ! ये वहीं लोग हैं जो हर बार ज़ख्म,पीडा और दर्द को धर्म के चश्मे से देख कर प्रतिक्रिया देते हैं !अगर पीड़ित व्यक्ति संप्रदाय विशेष का है तो इनके शब्द कोमा मे चले जाते हैं, या आरोपी सहानुभूति का पात्र नज़र आने लगता है ! बिलकीस बानो के बलात्कारियों की  याद तो अभी ताज़ा होगी? वही ग्यारह बलात्कारी जिन्हें "अच्छे चाल चलन" और "संस्कारी" होने के कारण बरी कर दिया गया था !
        अब करें भी तो क्या करें, बिलकीस बानो  का आरोप था कि  आरोपी क़ातिल और  बलात्कारी हैँ ! जांच मे अपराध साबित भी हो गया, किन्तु सजा के दौरान अचानक पता चला कि सभी  बलात्कारी   संस्कारी हैँ !  ( उन्होंने जो भी किया था- संस्कार के चलते किया  !.) चरित्र का  इंडेक्स देख न्याय पालिका भी दुविधा में पड़ गई  ! संस्कार का वजन बलात्कार पर भारी पड़ रहा था ! पैरवी करने वाली संस्था ने यकीन दिलाया कि आरोपी पहले से ही संस्कारी थे,ये तो महिला का दोष था जो उनके संस्कार के सामने आ गई। उनका संस्कार उस दिन कुछ ज्यादा ही पूजयनीय साबित हुआ ! पहले संस्कारी गैंग ने परिवार के पूरे सात लोगों की बलि ले ली , फिर बिल्कीज़ बानो के साथ बलात्कार करने से पहले उसकी साढ़े तीन साल की बेटी को कत्ल कर दिया, ताकि बलात्कार का कोई गवाह न बचे और संस्कार सुरक्षित रहे।
        उन ग्यारह बलात्कारियों को भी कहाँ  पता  था कि वो इतने संस्कारी हैं ! वो तो खुद को कुछ औऱ ही समझ रहे थे ! अब जाकर उनको  यकीन हुआ कि उन्होंने प्रेगनेंट बिलकीस के साथ जो किया वो संस्कार में आता है ! ( पहले संविधान के कारण वो डर गए थे !) और अब,,,, सम्मानित होने के बाद तो उन्हें भी अपने संस्कारी होने पर गर्व होने लगा है !हो सकता है कि ये "सम्मानित संस्कारी" कल को सरकार से मुआवजा भी मांगे ! आखिर  ऐसे सम्मानित, देवतुल्य  संस्कारी लोगों को जेल में क्यों डाला गया था ! आगे इस तरह की शिकायत मिले तो पीड़िता को ही जेल में डाला जाए, ताकि बलात्कार करने वाले संस्कारी 'संतो" के साथ ऐसा अन्याय न हो सके !
         राम रहीम,आसाराम से असीमानंद तक संस्कार के कई कुतुबमीनार मौजूद हैं!. जब एक बार संस्कार परवाज़ भरता है तो जेल से पहले जमीन पर लैंड नहीं करता ! मैं सोचता हूं कि बाबाओं के प्रति आस्था अगर कहीं बुद्धि के भरोसे  रही होती तो आत्मनिर्भर नहीं हो सकती थी !
          पहले और अब वाले संस्कार में काफी फर्क आ गया है। पहले अपराधी का अपराध देख कर  दंड का प्रावधान था ! अब भी है, किंतु अब अपराध के जींस में गुमशुदा संस्कार भी ढूंढ़ा जाता है ! बिलकीस  के केस में इस बात का कोई खुलासा नहीं किया गया कि ये ग्यारह लोग पहले से ही संस्कारी थे या बलात्कार करने के बाद "देवतुल्य" हो पाए !  
            पहले संत में संस्कार पाया जाता था, अब लुच्चों ने कॉपी राइट ले लिया है ! पाप और संस्कार की पहले वाली परिभाषा में बड़ा झोल है -  न्याय पालिका कहती है _ ' सौ गुनाहगार बेशक बरी हो जाएं , किंतु किसी निर्दोष और पीड़ित को सजा नही होना चाहिए '!  हर्ष का विषय है कि दोषी भी बरी हो गए और पीड़िता (बिल्कीस) भी  सजा पाने से बच गई !!

    इधर अध्यापिका भी कह रही है कि गलती पीड़ित लड़के की है ! उसने तो बच्चे के सुनहरे भविष्य को लेकर पिटवाया  है ! इस सीक्वेंस पर एक दोहा मुलाहिजा हो--

'गुरु कुम्हार शिष्य कुम्भ है गढ गढ काढे खोट' !
अंदर   हाथ   सहार   दे   बाहर   बाहर   चोट  !!

        विकलांगता के चलते अध्यापिका को "चोट" मारने वाला नेक काम दूसरों को देना पड़ा !

    सिद्ध हुआ कि जो हुआ वो पिटाई बच्चे के 'खोट' को  दूर करने के लिए थी ,गलती सरासर बच्चे और उसके परिवार की थी ! ,,,,,

                  ( सुलतान "भारती") 

Friday, 19 August 2022

"अग्नि दृष्टि"

("अग्नि दृष्टि")

               " बिलकीस" होने का दर्द!"

            " मुझे अकेला छोड़ दो ! मुझे अपनी बेटी सालिहा के लिए दुआ करने दो !" ये शब्द भारत की सबसे दुखियारी बेटी और गुजरात दंगे की पीड़िता बिल्कीस बानो के हैं, जो सन 2003 से लेकर आज तक हर दिन  शारीरिक मानसिक और न्यायिक दंश की अंतहीन पीड़ा झेल रही है! इसी पंद्रह अगस्त को जब पूरा देश आज़ादी के अमृत महोत्सव में डूबा था तो अपने परिवार के कातिल और बलात्कारियों को आज़ाद कर देने की खबर सुन कर वो सन्न रह गई ! उसके गुनाहगार पूरे ग्यारह बलात्कारी और परिवार के कातिल  रिहा कर दिए गए थे ! ये वो कातिल और नृशंस बलात्कारी थे जिन्होने बगैर किसी जुर्म के पहले परिवार के सात सदस्यों की हत्या की,  फिर परिवार की पांच माह की गर्भवती बहू  (बिलकीस बानो) के साथ सामूहिक बलात्कार किया! ब्लातकार से पहले इन नरपिशाचों ने बिल्कीस की तीन वर्षीय अबोध बेटी सालिहा को भी मौत के घाट उतार दिया था ।
        इस पंद्रह अगस्त को घर घर तिरंगा फहरा कर जब देश जश्ने आज़ादी मना रहा था तो ये  ग्यारह गुनहगार आज़ाद कर दिए गए! देश की न्यायपालिका पर यकीन करने वाले करोडों देशवासियों के लिए ये खबर खून को जमा देने वाली थी ! ये बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ आंदोलन के मुंह पर एक बड़ा तमाचा था ! एक बार फिर दर्द और जुख्म को धर्म के चश्में से देखा गया था ! एक बार और जुर्म की गहराई को सांप्रदायिक फीते से नापा गया ! एक बार फिर किसी पीड़िता की चीख और घुटन के दर्द पर खामोशी ओढ़ी गई, और एक बार फिर इंसाफ को अंधा साबित कर दिया गया ! दर्द फिर बेआवाज नज़र आया,-

आंसू घुट कर के ज़ज्ब होते रहे!
दर्द   कांधा  तलाशता  ही  रहा !!
    कोर्ट का ये फैसला देश के करोड़ों अमन और इंसाफ पसंद लोगों को दर्द दे रहा है। बड़े अखबार और टीवी चैनल को सांप सूंघ गया है! ज़मीर फरोश मीडिया को बिलकिस के साथ हुए "इंसाफ"  में कुछ नया,गलत या हैरत अंगेज नहीं नज़र आ रहा है! ऐसा लगता कि पूरे देश में बिल्कीस ही अकेली "हव्वा" की बेटी है ! सेक्स के लिए गर्भवती का भी लिहाज़ न करने वाले ये ग्यारह नरपिशाच अब आज़ाद हैंऔर समाज में लौट आए हैं !. कौन गारंटी देगा कि ये "बेगुनाह" कातिल फिर किसी हव्वा की बेटी के जिस्म पर गुनाह के नए अध्याय अब नहीं लिखेंगे !!
     सोशल मीडिया पर एक आंदोलन उठ खड़ा हुआ है ! देश के संवेदनशील और जिंदा ज़मीर लोग सवाल उठा रहे हैं, - तथाकथित नारीवाद के समर्थक आज कोमा में क्यों हैं ! हमारे समाज की एक हिन्दू बहन का दर्द एक सवाल की शक्ल में सोशल मीडिया पर सामने आया है, - ऐसा लगता है कि "निर्भया" अगर मुस्लिम समाज की होती तो कभी इतना बड़ा आन्दोलन न खड़ा होता !" ये सवाल भी है व्यवस्था पर तमाचा भी ! तो गोया दर्द अब "हमारा" न होकर "मेरा" और "तुम्हारा" बनाया जाएगा ! तो क्या सत्ता परिवर्तन ही इंसाफ का भविष्य तय करेगा !! 
    नहीं, इन्साफ को सत्ता का भविष्य तय करना होगा !! वैसे,,,,एक सुप्रीम अदालत और भी है, जिसके बारे में किसी शायर ने कहा है , -

जो चुप रहेगी जबाने खंजर !
लहू  पुकारेगा  आस्तीं   का !! 

      Justice for BILKiS BANO 
          



               ( सुलतान भारती)

           

Tuesday, 16 August 2022

(व्यंग्य भारती) "जंगल राज" बनाम "सुशासन "

(व्यंग्य भारती)

"जंगलराज" बनाम "सुशासन "!

        अभी जुम्मा जुम्मा आठ दिन भी नहीं बीते हैं, जब वहां चारों तरफ सुशासन लहराता नज़र आ रहा था ! महामानव से मीडिया तलक सबको साफ़ साफ़ सुशासन नज़र आ रहा था।! रतौंधी वाले पत्रकार भी पूरे जोश में विरुदावली गा रहे थे,- 'दुख भरे दिन बीते रे भइया - सुशासन आयो रे ! जंगल राज में फिर से सतयुग छायो रे !' हालांकि महंगाई, बेकारी, अपराध, नाव दुर्घटना, अपहरण, हृदय परिवर्तन कुछ नहीं बदला था, किंतु सुशासन की सुनामी नज़र आ चुकी थी ! बदलाव देखने की नहीं, महसूस करने की चीज होती है ! सुशासन एक ऐसी अनुभूति  है जो सत्तापक्ष को सबसे पहले नज़र आती है और विपक्ष को कभी नहीं ! मज़े की बात है कि दोनों चाहते हैं कि जो वो देख रहे हैं जनता उस पर यकीन करे, अपनी आंख पर नहीं !
      कुछ दिन पहले वहां  सत्ता पक्ष को सुशासन और विपक्ष को  जंगलराज नज़र आ रहा था ! (दोनों में से किसी को भी प्रदेश नहीं नज़र आ रहा था!) करोड़ों लोग नौकरी पाने की उम्मीद का सत्तू फांक कर अगले दिन का सुशासन झेलते थे ! पक्ष और विपक्ष दोनों " करोड़" से कम नौकरी देने को राज़ी नहीं थे ! बेकारी के शिकार लाखों शिक्षित युवा इस सियासी  " के  बी  सी" देख देख कर ओवर एज हो रहे थे कि तभी अचानक  'सुशासन बाबू' ने  "महावत" बदल दिया ! बस - उसके बाद चिरागों में रोशनी न रही -! 
          जैसे सावन में साक्षात जेठ का महीना उतर आया हो, चारों तरफ़ से मीडिया के हाहाकार की आवाजे आने लगी। महावत बदलते ही सतयुग की जगह कलियुग की आधियां चलने लगीं ! सुशासन खत्म  दुशासन चालू ! मीडिया ने तुरंत फतवा जारी किया, - प्रदेश में दुबारा जंगलराज शुरु -! ये जंगलराज अब तक कहां छुपा कर रखा गया था, ये खुलासा अब तक नही किया गया है। मिडिया जिसे जंगलराज बता रही थी, विपक्ष उसे जनता की आज़ादी बताने में लगा था । जनता को जाने क्यों दोनों की बातों पर यकीन नहीं हो रहा था ! दोनों ने अपनी सत्ता में जनता को छकाया था ! जनता को अब तक मंहगाई और बेकारी के अलावा कुछ न देकर भी तारणहार यह साबित करने में लगे थे कि सारा समुद्रमंथन जनता के कल्याण के लिए था । जनता इतनी बार ठगी जा चुकी थी कि उसे अब जंगलराज भी सुशासन जैसा ही लगता था !
       मीडिया मंच पर अवतरित महापुरुष  अमृत वर्षा कर रहे थे ! एक पक्ष दलील दे रहा था कि प्रदेश आठ दिनों में किस तरह सतयुग से फिसल कर गुफ़ा युग में जा गिरा है, वहीं दूसरी तरफ वनवास काट कर सुशासन का लिंटर डाल रहे यदुवंशी वीर दावा कर रहे थे कि-" पिछली सरकार के शासन काल में ज़रूरत से ज़्यादा 'सुशासन' आ जाने से बॉडी में ज़हर फैल गया था , डैमेज कंट्रोल में टाइम लगेगा - चच्चा समझा करो" !! लेकिन समझने के लिए कोई तैयार नहीं है ! समझने के चक्कर में कहीं मानसून न निकल जाए ! हमला जारी है, उन नौकरियों का हिसाब मांगा जा रहा है जो दी तो गईं थीं, लेकिन लोगों को मिली नहीं!
                 कल मैंने वर्मा जी से पूछा, ' पिछली बार देश में सुशासन कब आया था ?'
        वर्मा जी सीरियस हो कर बोले, - ' तब मेरी उम्र दस बारह साल थी ! गांव के गांव मरघट बन गए थे ! चूहों से फैला था -!!"                            " " वर्मा जी, मैं  'हैजा'  की नहीं "सुशासन" की बात कर रहा हूं "!
                वो तुरंत श्राप देने की मुद्रा में आ गए, -" विनाश काले जदयू बुद्धि ! अच्छा भला सुशासन चल रहा था कि पांडव को हटाकर धृतराष्ट्र को ले आए ! जैसा करम करेगा वैसा फल देगा भगवान - अब भुगतो जंगलराज "!

            तारणहार नूरा कुश्ती लड़ रहे हैं और जंगलराज और सुशासन को लेकर जनता का कन्फ्यूजन गहराता जा रहा है कि आखिरकार दोनों में से किसके अंदर फाइबर ज़्यादा है ।उधर गुजरात प्रशासन ने गर्भवती बिल्क्कीस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार करने वाले सभी ग्यारह अपराधियों को जेल से रिहा करते हुए जंगलराज और सुशासन के बीच का फर्क खत्म दिया है !

Tuesday, 9 August 2022

(व्यंग्य भारती) " मिले सुर मेरा तुम्हारा"

(व्यंग्य भारती)

       " मिले सुर मेरा तुम्हारा"!

      अब यही समस्या है दुरंत,,,,,! ससुरा सुर ही नहीं मिल रहा। समान सुर की तलाश में कब से अलाप रहा हूं, - मुझको आवाज़ दो, छुप गए हो कहां -! लेकिन सुर है कि मांगलिक लड़की की कुंडली हो गया है, - मिलती ही नहीं -! नौकरी और सुर दोनों नहीं मिल रहे हैं! रोटी की जगह परमाणु बम की ज्यादा डिमांड है! एक से एक नारंगीलाल परमाणु बम का फार्मूला ढूंढ रहे हैं, जिनके खुद के आटे का कनस्तर खाली होता है, उन्हें चोकर में सबसे ज्यादा फाइबर नज़र आता है ! पाकिस्तान को देखिए , चीन के उईगर मुसलमानों पर हो रहे  नारकीय अत्याचार उसे नहीं नज़र आते, बल्कि वो भारतीय मुसलमानों के " दर्द" से ज्यादा दुखी है ! इसी मक्कारी की आलमी जकात से उसका पेट भरता है! दुनियां में आंख वाले अंधे ज़्यादा हैं!
         हर इन्सान सुर की तलाश में है, मिले सुर तेरा हमारा ! सुर का सजातीय और विश्वसनीय सुर से मिलना सौभाग्य की बात है ! सुर से सुर मिल जाए तो सत्ता का बनवास भोगता प्राणी तेजस्वी यादव हो जाता है, और सरगम से सुर निकल भागे तो अच्छे भले बसंत में जीवात्मा मुख्यमंत्री से सीधे उद्धव ठाकरे होकर रह जाती है।सुर से सुर मिलाना आसान है, साधे रखना बहुत मुश्किल !  सावधानी  हटी  कि " एकनाथ शिन्दे" घटी ! अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत ! दिल तो पागल है जी, क्या पता कब तलाक ले कर विरोधी से हलाला कर ले !
      कांग्रेस सरकार के वक्त दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाला  वो विज्ञापन मैने भी देखा है,- मिले सुर मेरा तुम्हारा -! कांग्रेस से बेहतर सुर की समझ किसे होगी ! कब भिंडरवाले से सुर मिलाना है और कब स्वर्ण मंदिर पर गोले बरसाने है ! कब मुसलमानों की पीठ ठोकनी है और कब मलियाना कांड ! और,,,,आज , गाली कूचे में आवाज़ लगाते घूम रहे हैं, - मिले सुर मेरा तुम्हारा -! सुर मिलाना तो दूर, लोग पास में खड़े होने को राजी नहीं ! सहयोगी सुरों का भी सत्यानाश न हो जाए ।
       सुर से सुर मिल जाए तो अस्थिर सरकार भी पांच साल निकाल लेती है। किस्मत खराब हो तो अपने भरोसे का सुर भी सरगम से निकल भागता है! सुर सिर्फ प्यार मुहब्बत से नहीं साधे जाते ! कभी कभी सुर मलाई की चाहत में बेसुरा हो जाता है और सरगम छोड़ कर निकल भागता है! अब प्यार मुहब्बत की जगह उसे सूटकेस दिखाया जाता है! वो फ़ौरन आत्मा की आवाज़ पर घर वापसी कर लेता है। हृदय परिवर्तन होते होते रह जाता  है !
 कई बार सुर लूट लिए जाते हैं! बसपा वाले इसके गवाह हैं, हाथी के टिकट पर जीत कर सायकल चलाने लगते हैं । इससे पता चलता है कि सियासत में नमक कितना होता है।
          जिसकी सत्ता उसका सुर ! इसलिए - समरथ को नहिं दोष गुसाईं -! समर्थ आदमी सुर साधने के लिए पहले समझाता है, फिर 'ईडी' भेजता है ! ईडी उसके चाल चरित्र और चेहरा का सारा आमालनामा खोद कर उसे दिखाती है, प्राणी तुरंत सुर मिलाकर सरगम निकालने लगता है ! सुर से सुर मिलाना सुगम नही होता ! इसलिए बहुत सावधानी बरतनी चाहिए, वरना जरा सा पैर फिसला नहीं कि स्वर्ग से गिरे खजूर में अटके। कभी कभी ऐसा होता है कि हम जिसे सुर समझते हैं वो असुर साबित होते हैं, सरगम बनती ही नहीं।

         सत्ता पक्ष और विपक्ष का सुर कभी नहीं मिलता! सत्ता पक्ष कितना भी जोर लगा ले, - मिले सुर मेरा तुम्हारा -! विपक्ष का जवाब होगा, - तेरे सरगम में न रक्खेंगे कदम,,,, आज के बाद -! हमारे देश में विपक्ष ने विरोध को अपना राजधर्म मान लिया है! वो इसी राजमार्ग से सिंहासन बत्तीसी हासिल करेंगे ! विपक्ष बड़ा है किंतु -ज़्यादा जोगी मठ उजाड़- से जूझ रहा है! सब अपने अपने सुर को सुरसा समझ रहे हैं! मोह माया को अंतरात्मा की आवाज़ मान कर गुप्त मतदान में विपक्ष की कई आत्माएं "परमात्मा" को वोट दे आती  हैं !

           ऐसे में विपक्ष का सरगम कैसे बनेगा !! 

Wednesday, 20 July 2022

"अग्नि दृष्टि"

"अग्नि दृष्टि "

                  लावारिस दर्द 

     मैने बहुत सोच समझ कर इस दर्दनाक और रोंगटे खड़े कर देने वाली अपराध कथा को शूट करने के बावकूद प्रसारित करने का फैसला टाल दिया है! ये फैसला मैंने अभी अभी लिया है, जब कि इस दर्द, संताप और मानसिक पीड़ा से भरी कहानी के कई पात्रों से मिलकर मैं न्यूज विडियो अपलोड करने ही जा रहा था ! अजीब कशमकश की हालात से अब उबर चुका हूं ! किसी की मासूम और मायूस खामोशी ने मेरा फैसला बदल दिया ! दर्द कई तरीकों से अपनी कहानी सुनाता है! (कभी कभी इसकी ख़ामोशी सैंकड़ों आवाज़ों पर भारी पड़ती है!) 
                कल की न्यूज को आज़ एक छोटी कहानी में पिरो कर पेश कर रहा हूं ! कहानी में सर से पैर तक सच्चाई का अक्स है, बस कई मासूम इंसानों की इज्जत और अज़मत बेपर्दा न हो, इसलीए उनके नाम बदल दिए हैं ! आज 20 जुलाई है, और इस वक्त शाम के साढ़े सात बजे हैं! आसमान दुबारा बादलों से ढकता जा रहा है, लगता है कि फिर बारिश होगी !  बारिश दोबारा शुरू हो गई है और कार की हैडलाइट में आसमान से चमकती हुई पानी की बूंदें मुझे पिछले चौबीस घंटे के घटनाक्रम को जैसे अब सिलसिलेवार जोड़ रही हैं। मैं तफ्सील से बताता हूं!
         इसी महीने 06.07.2022 को, इटावा शहर से चालीस  किलोमीटर   उत्तर   में   आबाद   गांव  सोढ़ी ( परिवर्तित नाम) के राजेंदर शाक्य (बदला हुआ नाम) की तेरह वर्षीय अवयस्क बेटी दीप्ति (बदला गया नाम) गांव के स्कूल के लिए घर से निकली तो शाम तक लौटी ही नही ! तरह तरह की शंका आशंका और मानसिक पीड़ा से गुजर रहे दीप्ति के पिता के पास उसी दिन शाम को एक अज्ञात आदमी का फ़ोन आया ! कोई दूसरी तरफ से कह रहा था,-' लडकी को ढूढने की जरूरत नहीं है,  लडकी ने अपनी मर्जी से शादी कर ली है! अगर तुमने पुलिस थाना करने की जलती की तो  उसका अंजाम बहुत बुरा होगा"!
     परिवार पर जैसे पहाड़ गिरा!  बारह साल आठ महीने की लड़की ने किससे शादी कर ली !! राजेंद्र सिंह थाना गए रिपोर्ट दर्ज कराने! वहां एक पोलिस वाले ने उनसे प्रार्थना पत्र लेते हुए जबान से बेहद ज़हरीला तीर छोड़ा, -' क्यों गंदगी को घर लाना चाहते हो !' घटना के तेरह दिन बाद कल इटावा के पोलिस अधीक्षक (SP) के ऑफिस से निकलते हुए राजेंद्र सिंह की आवाज़ में  उस दिन का दर्द बिल्कुल ताज़ा था, ' जो उन्हें गंदगी नज़र आ रही है, वो मेरी बेटी है  -! वो भला बुरा समझने की उम्र से बहुत पीछे है बाबू '! आगे उनकी आवाज रूंध गई थी ! किसी लड़के के साथ लड़की का भागना गांव में मां बाप के लिए जीते  जी  मर जाने जैसा था ! सब्जी बेच कर गुजारा करने वाले किसान राजेंद्र सिंह दारुण मानसिक यंत्रणा से गुजर रहे थे! 
        उधर,,,,,,    दो दिन बाद आठ जुलाई को भरथना थाने में पुलिस ने प्रथमिकी दर्ज की और ग्यारह जुलाई को अचानक लड़की घर आ गई ! पुलिस ने मेडिकल कराया, रिपोर्ट में अवयस्क लड़की के साथ दुष्कर्म की पुष्टि हो गई !लड़की ने जब बयान दिया तो पता चला कि - उस घर को आग लग गई घर के चिराग से -! गांव में राजेंद्र के एक रिश्तेदार "सुनीता" ( बदला नाम) के घर में एक युवक अभिनव ( बदला नाम) का आना जाना था, जिसका सुनीता की लड़की नीतू  (बदला नाम) से प्रेम प्रसंग था ! परिवार होने के नाते दीप्ति का भी इस घर में आना जाना था! इसी का फायदा उठाकर अभिनव ने सुनीता और नीतू से अपने दोस्त सुमित (बदला हुआ नाम) का जिक्र किया और फिर सुनीता के घर में दीप्ति से मुलाकात का सिलसिला चलने लगा!
            दीप्ति के बयान के मुताबिक - छे जुलाई को एक कार लेकर अभिनव और सुमित गांव के बाहर ही दीप्ति का इंतजार कर रहे थे! स्कूल के लिए घर से निकली दीप्ति सीधे राजस्थान पहुंचा दी  गई ! वहां वो पांच दिन सुमित के परिवार के साथ रही! इस बीच दीप्ति के परिवार की भागदौड़ और पुलिस की एक्टिविटी की सारी सूचना सुनीता और उसकी लडकी फोन से सुमित को बताते रहे! उसी के निर्देश पर घटना से पांच दिन बाद सुमित लड़की को सोढ़ी गांव के पास छोड़ कर लौट गया था! शाक्य राजपूत परिवार के राजेन्द्र सिंह के एक दूर के मुस्लिम राजपूत रिश्तेदार को दिल्ली में खबर मिली ! वो हर तरह से रसूख वाले आदमी हैं !  उनके साथ हम दो पत्रकार इटावा पहुंचे, जहां दो निर्भीक स्थानीय पत्रकार ( मोहिनी सिंह और संदीप मिश्रा) भी हम से होटल में आकर मिले !
  कल यानी बीस जुलाई की सुबह दीप्ति को लेकर उसके परिवार वाले आकर मिले! हमने लड़की से परिवार के सामने पूछताछ की ! उसने पूरी मासूमियत और सच्चाई से सारी बातें बताई! वो इतनी कम उम्र की नासमझ लड़की है कि हम कुछ सवाल तो पूछ भी न सके! आठ दिन बीत चुके थे, भरथना पुलिस ने इस अपहरण और बलात्कार में संलिप्त किसी अपराधी को गिरफ्तार ही नहीं किया था ! हमने ठीक एक बजे विशेष पुलिस अधीक्षक के सामने लड़की को पेश करवा दिया! वहां मौजूद कुछ स्थानीय पत्रकारो ने पीड़ित लड़की का बयान भी लिया! पुलिस अधीक्षक ने तुरंत थाने को फ़ोन भी किया!
          हम तीन पत्रकार और  इस केस को दौड़ा देने वाले दिल्ली से आए लड़की के दूर के दबंग मुस्लिम रिश्तेदार तीन बजे भरथना थाने पहुंचे! थाना प्रभारी  कृष्ण पटेल और केस के जांच अधिकारी मुनीश्वर सिंह  ने पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया और एफआईआर की कॉपी दिखाते हुए बताया कि फरार अभियुक्तों को जल्द पकड़ कर अपहरण, बलात्कार और पाक्सो एक्ट के अंतर्गत कार्रवाई की जाएगी! इसके बाद हमारी टीम २८ किलोमीटर दूर एक गांव पहुंची जहां लडकी का परिवार हमारा इंतेजार कर रहा था! मैंने उन्हें इतना खुश कभी नहीं देखा था !हर कोई कृतज्ञ नज़र आ रहा था! मैंने राजेन्द्र सिंह को दिन भर में पहली बार तनाव मुक्त देखा तो ऐसा लगा गोया मुझे कोई बड़ा एवार्ड मिला हो ! 
          सात बजे हमने दोनों पत्रकारों ( संदीप और मोहिनी ) को इटावा छोड़ा और दिल्ली को निकल पड़े ! आखिरी वक्त में मैंने पूरी ख़बर को वायरल करने का इरादा तर्क कर दिया था ! हम किसी के लावारिस दर्द को अपनाने और कम करने गए थे, न  कि उनके दर्द की मार्केटिंग करने ! यमुना एक्सप्रेस हाई वे पर रात नौ बजे एक खेत के किनारे चाय की गुमटी देख कर "खान साहब"  नमाज़ के लिए रुके तो  गुमटी मालिक रूद्राक्ष धारी बुजुर्ग ने वजू के लिए पानी का बंदोबस्त किया !   हमें अपना ही एक शे'र बरबस याद आ गया ! 

 मायूसी  कुफ्र  है  ऐ  दोस्त  अंधेरों  से  न  डर !
रोशनी  बाकी  है  जब  तक जले हुए हैं चिराग़ !!

                                ,,,,  (सुलतान भारती)
          
           

Tuesday, 19 July 2022

प्रार्थना पत्र

सेवा में,
   आदरणीय पुलिस अधीक्षक
     जिला     इटावा  उत्तर प्रदेश

संदर्भ,,,,,,,,नाबालिग लड़की के अपहरण और दुष्कर्म के आरोपियों पर संवैधानिक कार्रवाई में देरी करने के विरुद्ध प्रार्थना पत्र।
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    मान्यवर,
               करबद्ध प्रार्थना है कि प्रार्थी ( राजीव कुमार शाक्य s/० विजय कुमार शाक्य, ग्राम मोढ़ी थाना भरथना जनपद इटावा यूपी) की पुत्री तृप्ति उर्फ लक्ष्मी का इसी माह 06जुलाई 2022 को स्कूल जाते वक्त रास्ते में अपहरण हो गया । उसी दिन शाम को एक अज्ञात व्यक्ति ने  अपने  9627092913  नंबर से फ़ोन करते हुए मुझे बताया कि लड़की की शादी हो गई है और उसे ढूंढने की कोशिश न की जाए!
  
      मैने तत्काल उसी दिन थाना भरथना में इस घटना की लिखित सूचना  दे  दी थी !  पांच दिन बाद लड़की घर आ गई! मेडिकल रिपोर्ट में लड़की के साथ दुष्कर्म करना साबित हो गया! 16 जुलाई 2012 के बर्थ डेट वाली अवयस्क लड़की के साथ बेहद घिनौना अपराध हुआ है ।
    लडकी की वापसी पर घर वालों ने पूछताछ की तो तो पता चला कि तृप्ति को अमित के साथ भगाने में तृप्ति की ताई अनीता और अनीता की लडकी अनामिका का गहरा हाथ है! लडकी तृप्ति के हलाफिया बयान के मुताबिक अनामिका के बॉयफ्रेंड अभिषेक और अमित गहरे दोस्त हैं ! लडकी को भगाकर राजस्थान के किसी गांव ले जाया गया और अनीता के सुझाव पर अमित ने लड़की तृप्ति को दुबारा उसके गांव के पास लाकर छोड़ते हुए अभियुक्तों ने हिदायत दी कि घर वालों को कुछ मत बताना।
       लडकी को बहला फुसलाकर ले जाने, पांच दिन तक गायब रखने, लड़की के घर वालों को धमकाने और दुष्कर्म करने वाले अपराधी आज भी छुट्टा घूम रहे हैं। यह लड़की और लड़की के परिवार वालों के लिए सामाजिक और मानसिक तनाव और पीड़ा के दिन हैं!
       कृपया अपराधियों ( अमित, अनीता,अभिषेक और अनामिका ) को अविलंब गिरफ्तार कर जेल भेजा जाए और मुझे संवैधानिक सहायता एवम सुरक्षा दी जाए !.
       आशा है आप संबद्ध थाने को त्वरित कार्रवाई के लिए सम्यक आदेश देंगे,   धन्यवाद

             
   प्रार्थी 

राजीव कुमार
F/o तृप्ति
गांव मोढी थाना भरथना
जनपद इटावा यूपी
फोन 9456073148

Wednesday, 13 July 2022

(व्यंग्य भारती) "पत्रकारिता में पसरा पतझड़" !

(व्यंग्य भारती)

"पत्रकारिता में पसरा पतझड़" 

             आज़ का दौर देखिए, पत्रकारों की बाढ़ आई हुई है लेकिन पत्रकारिता में पतझड़ चल रहा है! पत्रकार का कलम और आत्मा से नाता लगभग टूट चुका है !आत्मा में रखी सच की स्याही लगभग सूख चुकी है ! पत्रकार ने दिल के ऊपर तख्ती लटका रखी है, - बिकाऊ है खरीदार चाहिए -! मंडी में पत्रकार बहुत हैं,खरीदार कम ! ऐसे में बिकाऊ पत्रकार की मार्केट वैल्यू गिरना ही था , लिहाज़ा कथित पत्रकारों की खुद्दारी का इंडेक्स झरने के पानी की तरह एक बार गिरना शुरू हुआ तो गिरता ही चला गया ! आज हालत ये है कि खरीदार गुण नहीं गिरावट देखकर उन्हें खरीद रहा है!  मंडी में ऐसे पत्रकार की डिमांड है,  जो बगैर रीढ़ और 'किडनी' का हो ! जिसकी आत्मा में  खुद्दारी, स्वाभिमान, सच बोलने और लिखने की जुर्रत जैसे दोष न हों !  
           जबसे कलम की जगह कॉलर वाला माइकआया है,पत्रकार के लिए लेखन की  अनिवार्यता खत्म हो गई। बस,,,,फिर इसके बाद चिरागों में रोशनी न रही! और,,, सही पूछो तो पत्रकारों के लिए अब रोशनाई की जरूरत भी नहीं! अब तो ऐसे ऐसे दिव्य पत्रकार मैदान में हैं जो घटना की पूर्वसूचना तक हासिल कर लेते हैं ! सच के लिए सीने पर चाकू खाने वाले संस्कारी पत्रकार सिर्फ हिंदी फिल्मों में बचे हैं! व्यभिचार,अत्याचार, अनाचार, भ्रष्टाचार और अव्यवस्था के खिलाफ़ लड़ने वाली पत्रकार जमात लगभग विलुप्ति की कगार पर है ! अब खोजी पत्रकार को  ' स्कूप ' (विषफोटक खबर) बरामद होने पर दिखाने से पहले चैनल के सुप्रीमो से पूछना पड़ता है! वही तय करता है कि खबर में कंक्रीट है या नही !
        सियासत और पत्रकारिता दोनों जगह आत्मा का होना दुखदाई है ! हर्ष का विषय है कि सियासत के अधिकतर जागरूक जीवों ने आत्मा के बगैर जीना सीख लिया है ! पत्रकार वर्ग के अंदर काफ़ी लोग अभी भी आत्मा की आवाज़ सुनने का जोखिम उठा रहे हैं ! ऐसे गिने चुने सरफिरों को लगता है कि वो किडनी और रीढ़ के बगैर जी नहीं पाएंगे ! हमारे एक मित्र हैं, राष्ट्रीय स्तर के धाकड़ व्यंग्यकार हैं! अक्सर कड़वा और घातक सच लिखते हैं ! संपादक ने बहुत समझाया, नहीं माने तो उनको छापना कम कर दिया ! 
         अब पत्रकारिता सर्व सुलभ है ! शहर से गांव तक पत्रकार उपलब्ध हैं ! सैकड़ों पत्रकार गांव से तहसील तक ग्रामप्रधान, बीडीसी, पटवारी और बीडीओ , एसडीएम और ब्लॉक प्रमुख के छत्ते में शहद ढूंढते रहते हैं। गांव मे आज  कुछ यू ट्यूबर पत्रकार इतने सक्रिय हैं कि एक एक दिन में कई जगह  न्योता अटेंड करने जाना पड़ता है! शहर से लेकर गांव तक के पत्रकार में एक चीज कॉमन है, दोनों को ही सच जानने और बोलने से वैर है ! पत्रकारों के सैंकड़ों संगठन हैं, बहुत कम पत्रकार मिलेंगे को दूसरे पत्रकार को 'पहले' नमस्ते करना पसंद करता हो ! इस लंका में हर कोई अपने आप को कुंभकरण समझ रहा है !
     आज के पत्रकार बहुधा दो प्रकार के होते हैं, बड़ा पत्रकार और छोटा पत्रकार ! बड़े पत्रकार का पसंदीदा विषय है,- हिंदू मुस्लिम, भारत पाकिस्तान, मंदिर मस्जिद, नमाज़, लाउड स्पीकर आदि !उसकी नजर में यही वो वास्तविक मुद्दे हैं जिनसे देश का विकास और कल्याण संभव है। इसी फर्टिलाइजर से भाईचारा उर्वर बनाना है, और इसी रामधुन से विश्वशांति लानी है ! इसलिए हर डिबेट में इसी समुद्र मंथन से अमृत निकालता है ! छोटे पत्रकार का दायरा छोटा होता है, वह सरकारी नलके पर औरतों की लड़ाई से लेकर मुहल्ले वाले नेता के बर्थ डे तक की न्यूज न्यूज देता रहता है। इलाके का जेबकतरा और बीट कांस्टेबल दोनों उसे प्रिय हैं ! वोह- न काहू से वैर -के फार्मूले पर अमल करना है। आसपास झगड़ा होने पर दरोगा जी से मिल कर पांच हज़ार का मसला दस हज़ार में निपटा कर जनसेवा का कोटा पूरी कर देता है! क्षेत्र में अवैध शराब कौन बेच रहा है, उसे पता है ! मगर  यहां भी वो गांधीवाद का पालन करता है, - पाप से नफ़रत करो पापी से नहीं - ! 
           मैं वर्मा जी को फूटी आंख नहीं सुहाता.! उन्हें मेरे पत्रकार होने से सख्त नाराजगी है ।वो फेसबुक पर लिख कर भी खुद को बड़ा पत्रकार मानते हैं और मुझे पत्रकार तक नहीं मानते ! कल उन्होंने मुझे सलाह देते हुए कहा, -' ये बड़े अख़बार भरोसे के नहीं रहे! इन में लिखना छोड़ और सोशल मीडिया पर मुझे फॉलो कर , वरना कॉलोनी छोड़ कर कहीं और चला जा ! मैं यहां भाईचारा खराब नहीं करने दूंगा -! फकीरा चल चला चल -'!

       इस वक्त रात के साढ़े ग्यारह बज रहे हैं। मेरे सिरहाने खड़ी किताबों की आलमारी में र
खी मेरी हस्तलिखित किताबें जैसे मुझे चुनौती दे रही हों! लगभग रोज रात में ये किता
बें मुझे घेर कर पूछती हैं, - ' क्या हासिल किया तूने मुझे लिख कर , मुझमें अप


नी रूह उतार कर -'!!  मेरी पास ७कोई जवाब नहीं है ! मैं  इस कमरे में सोना छोड़ दूंगा! मैं जानता हूं कि जब पत्रकार की कलम से पंख फूटते हैं तो वो लेखक बन जाता है, पर अकसर ये पंख उसे परवाज़ नहीं दे पाते !!

शायद मैं इन पंखों को कभी नोच नहीं पाऊंगा !!

       बायो

Sunday, 3 July 2022

(अग्नि दृष्टि)

( अग्नि दृष्टि)?

  ,,, "ताकि सनद रहे "

       मुझे हौज खास मेट्रो स्टेशन से शाहीन बाघ जाने के लिए मेजेंटा लाइन पकड़नी थी। उस डब्बे में काफ़ी युवा थे जो उदयपुर कांड पर ज़ोर ज़ोर से बात कर रहे थे! एक युवक विडियो देख कर क#& ,b  ह रहा था ,-' वकीलों ने इलाज कर दिया दोनों हत्यारों का ! पोलिस कस्टडी में पेशी पर #&आए दोनों मुजरिमों को पीट दिया '-! वकीलों ने पुलिस की मौजूदगी में मुजरिमो को पीट कर मृतक के प्रति अपनी सहानुभूति का परिचय दिया। किसी भी बड़े चैनल के जागरूक विद्वान को इस नेक काम में संविधान का उल्लंघन बिलकुल नहीं नज़र आया ! वकीलों ने पहली पेशी पर ही मुजरिम पर लात घूंसे बरसा कर फास्ट ट्रेक कोर्ट का परिचय दिया ! वकीलों के हाथों मरने से बचा कर पुलिस ने अपना कर्तव्य निभाया,- रिंद के रिंद रहे हाथ से जन्नत न गई ! 
   बेशक वो दोनों वहशी हत्यारे हैं, जिसकी सजा सजाए मौत से कमतर नहीं होगी ! होनी भी चाहिए, भला इन कातिलों।(रियाज़ और गौस) को कत्ल करने का अधिकार किसने दिया? कानून हाथ में लेने का किसी को कोई हक नही, इसलिए पूरे देश की जनता ने दोनों के लिए जल्दी से जल्दी फास्ट ट्रैक कोर्ट द्वारा उन्हें सजाए मौत देने की मांग की ! किसी मुसलमान ने उनके घिनौने जुर्म की वकालत नही की, उनके पक्ष में कोई पोस्ट नहीं डाली और एक भी नारा नही सुनाई पड़ा ! इसके बाद भी मुस्लिम समुदाय को गाली देने,चुनौती देने, समूल नष्ट करने और निकाल बाहर करने का जहरीला आह्वान जारी रहा !
       सोशल मीडिया पर विवेकहीन वीर पुरूषों की भरमार रही । उदयपुर कांड के लिए नूपुर शर्मा को जिम्मेदार ठहराने वाले जजों (सूर्यकांत और पारदीवाला) की टिप्पणी से भी लोग आक्रोश में आने लगे ! (ऐसा पहले कभी नहीं हुआ!)नूपुर के वकील अमन लेखी को भी ऐसी टिप्पणी की आशा नहीं थी । ऐसा लगता था, गोया क्रोध फूट पड़ने का रास्ता ढूंढ रहा था ! घूम फिर कर सुई मुसलमान और इस्लाम पर आकर अटक  जाती  थी ! चैनलों पर बैठे तथाकथित "विद्वान" डिबेट में आए मुस्लिम पार्टिसिपेंट को आक्रामक अंदाज में उनकी कम्यूनिटी का बहीखाता बताते नज़र आए!
         मैं हैरान भी हूं और दुखी भी ! दुखी इसलिए कि एक इंसान का बेरहमी से कत्ल हुआ ! इस्लाम कहता है  - एक बेगुनाह का कत्ल सारी मानवता का कत्ल है,-! यह अक्षम्य है। यह अकेले कन्हैया लाल का कत्ल नहीं था, उस दिन वहां  कन्हैया के बच्चों के मुस्तकविलका भी कत्ल हुआ था। उनके सुखद सपनों को भी तहे तेग किया गया। उनके 
ख्वाबों का भी कत्ल हुआ था ! एक औरत के सुहाग का भी कत्ल हुआ था ! एक परिवार की सुखद कल्पनाओं को पल भर में नजरे आतिश किया गया था! कई पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों को विकलांग और उम्मीद से महरूम कर दिया गया ! इतने गुनाहों को ढोने वाले मुजरिम के लिए मौत की सजा भी नाकाफी है।
       लेकिन,,,,,, हम उम्मीद करते हैं कि भविष्य में हर मासूम के कत्ल पर ऐसी ही मानवीय संवेदना, सहृदयता,सामूहिक आक्रोश ,सामूहिक क्रोध और इंसाफ की आवाज बुलंद की जाएगी! उम्मीद करता हूं कि नफ़रत की गिलोटिन के नीचे कत्ल होने वाले किसी भी बेगुनाह का दर्द धर्म के चश्में से नहीं देखा जाएगा ! न मरने वाले के दर्द संप्रदाय के फीते से नहीं नापा जाएगा ! हमें भूलना नहीं चाहिए कि इसी राजस्थान में गैंती से मर कर घायल किसी बेगुनाह मजदूर को ज़िंदा जला कर उसका भी विडियो वायरल किया गया था ! तब कातिल को सम्मान देने वाले कौन थे ? ताली दोनों हाथो से बजनी चाहिए ! हिमायत दर्द की होनी चाहिए कातिल की नही ! बेहतर होगा कि कोई भी शख्स कानून हाथ में लेने से दूर रहे । न्याय पालिका का सम्मान अनुशासन और राष्ट्रप्रेम की प्रथम शर्त है। नफरत और प्रतिशोध की स्याही से लिखी गई एक इबारत पूरे अध्याय को कलंकित कर देती है !
       बहुत हो गई नफ़रत ! इस नफ़रत से हमें मिला कुछ नहीं, खोया बहुत कुछ है! हमे अपने सामुदायिक हित को राष्ट्र हित में समाहित करना होगा ! इंसानियत के आधार पर एक मंच पर आकर राष्ट्र निर्माण में खुद को समर्पित करना होगा ! वरना नफरत का ये उबलता लावा एक दिन हमसे सब कुछ छीन लेगा।

कुछ ऐसा करें मिल के सभी हिंदू मुसलमान !
फिर  हिंद  को  सारे  जहां से अच्छा बना दें !!x।rob

Thursday, 23 June 2022

(व्यंग्य भारती) ,"नेता गिरा तराज़ू में "

"व्यंग्य भारती "

       "नेता गिरा तराजू में"

        मानसून घर से निकल चुका है! इधर मानसून निकला उधर एकनाथ शिंदे ने पिंजरा उठाया, बागी नेताओं को पिंजरे में डाला और मिल्खा सिंह की रफ्तार से सूरत निकल भागे ( नज़दीक में और कोई अभयारण्य नही नज़र आया!) जैसे ही 'गढ़ आला ' की खबर मिली, मीडिया मुगल सोहर गाने लगे, दुख भरे दिन बीते रे भैया, सतयुग आयो रे ! बाला साहेब वाला। हिंदुत्व लायो रे '! शिन्दे के इस महान् कृत्य पर छाती पीटने वालों के खिलाफ फेसबुकिया योद्धाओं की पूरी पलटन सोशल मीडिया पर उतर आई! महाराष्ट्र और रामराज के बीच की दूरी घटती देख सारे 'देवता' वरदान देने को आतुर थे ! 
       दिव्य मीडिया उद्घव ठाकरे के कर्मपत्र पर टिप्पणी कर रही थी,- ' महाराष्ट्र में कोरोना और कानून व्यवस्था दोनों की हालत खराब हो गई थी '!
उधर एकनाथ शिंदे ने सच्चे समाज सुधारक होने का परिचय देते हुए बयान दिया,- मैं महाराष्ट्र में बाला साहेब ठाकरे वाला हिंदुत्व लाना चाहता हूं "!
और क्या चाहिए! (इसके बाद विकास के लिए और कुछ बचता ही नहीं !) अज्ञातवास काट रहे पांडव प्रमुख मीडिया को बयान देने लगे, - सत्य परेशान हो सकता है, पर सिंहासन से दूर नहीं रह सकता! अब सतयुग आएगा कलियुग जायेगा -!!
     विपक्ष विलाप कर रहा है ! वह हृदय परिअर्तन को हॉर्स ट्रेडिंग कह रहा है! हृदय परिवर्तन पर इतनी हाय तौबा क्यों! ऐसा मानसून तो तुम्हें भी खूब रास आता था ! परिभाषा तो आपने ही सिखाई थी भ्राता श्री -समरथ को नहिं दोष गुसाईं-!
ये जो हृदय है न, i समर्थन के लिए काम, परिवर्तन के लिए ज़्यादा व्याकुल रहता है । अनुकूल मानसून पाते ही प्राणी की आस्था समर्थन के पलड़े से कूदकर  विरोधी  से  गलबहियां होकर गाने लगती है, - ' तुमसे मिलने को जी करता है रे बाबा -' अब चाहे मां रूठे या पापा यारा मैंने तो हां कर ली '!
     सियासत में हृदय परिवर्तन एक शाश्वत परंपरा है! पक्ष विपक्ष दोनों चुनाव के बाद तराजू लटका कर ऑफर वायरल कर देते हैं, ' खुला है मेरा पिंजरा आ मोरी मैना -'! मैना सूटकेस का साइज देखती है और आत्मा की आवाज़ से टेली करती है! आत्मा पर चढ़ी कार्बन की मोटी परत से आवाज़ आती है, - ' साक्षात गंगा स्नान का ऑफर है, स्वीकार कर ले !पाप धुल जाएंगे '-!! प्राणी का फौरन हृदय परिवर्तन हो जाता है, और एक घंटे बाद वो प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताता है, ". उस पार्टी में अभिव्यक्ति की आज़ादी का ऑक्सीजन लेवल बहुत कम था , सांस घुट रही थी ! अब ऑक्सीजन की मात्रा और आत्मसंतुष्टि दोनों में आत्मनिर्भर हो चुका हूं! गोवा है तो भरोसा है!"
         सोशल मीडिया यूनिवर्सिटी में चहल पहल बढ़ गई है । पक्ष विपक्ष के वीर विद्वान ज्ञान पंजीरी बांट रहे हैं! ज्यादातर विद्वान  महाराष्ट्र में कोरोना और कलियुग के लिए उद्धव ठाकरे को दोषी मान रहे हैं! कुछ सोशल मीडिया इतिहासकार कंगना रनौत के ऊपर हुए जुल्म को इस बगावत से जोड़ रहे हैं!. ऐसा लग रहा है किअगर अब भी बगावत न होती तो महाराष्ट्र गुफा युग में चला जाता ! शुभ मुहूर्त में हुए शिंदे के हृदय परिवर्तन से सत्य और न्याय का रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू हो पाया, और बाला साहेब  वाले हिंदुत्व की वापसी का मार्ग प्रशस्त हुआ ! आगे  का काम  'मार्ग दर्शक'  महापुरुषों  का है !
     
     हृदय परिवर्तन हो चुका है, अब आत्मा परमात्मा से मिलने के लिए व्याकुल है! आत्मा ही स्वामिभक्ति या बगावत के लिए ज़िम्मेदार है। आत्मा ही हृदय परिवर्तन कराती है और आत्मा ही बगावत ! इतनेअपराध करने वाली आत्मा को न तो आग जला सकती है न सुनामी डुबा सकती है ! क्योंकि आत्मा तो अजर अमर है! प्राणी नश्वर है ।(इन्ना लिल्लाहे वा इन्ना इलैहे राजेऊन) जो नश्वर है उसकी कोई गलती नहीं, जो सारी खुराफात की जड़ है उस आत्मा का कोई दोष नहीं।

             क्या करें, आत्मा है कि मानती नहीं !!