ऐसी वाणी बोलिए मन का "आपा" खोए
अब मै क्या बताऊं कि आत्मनिर्भरता ने कहां कहां रफ्तार पकड़ा है। वैसे तो झूठ,फरेब,छल, कपट, धोखा और मिलावट ने भी बड़ी तरक्की की है ,लेकिन नफ़रत के सेंसेक्स ने आत्मनिर्भरता में जो छलांग मारी उसने सबको पीछे छोड़ दिया है ! तब से सहिष्णुता और मीठी वाणी मुंह के बल गिरे पड़े हैं! पता नही वो दोहा किस सतयुग में लिखा गया था !
ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोए!
औरन को शीतल करेआपहुँ शीतल होय!!
आज के दहकते युग में ऐसी 'शीतल वाणी' का अमृत महोत्सव चल रहा है ! ऐसी दुःख भजन वाणी बोलने में दरोगा, संत और सांसद एक कतार में हैं ! वाणी के मानसून में विधायिका और न्यायपालिक बगैर छाता के भीग रही है !
इधर इस दोहे के "मन का आपा खोए" शब्द ने कुछ बुध्दिजीवियों के कान खड़े कर दिए हैं! उनका मानना है कि "आपा खोना". क्रोधित होने का संकेत है! दोहा लिखने वाला तो बवाल करने की सलाह दे रहा है,- ऐसी वाणी बोलिए कि सामने वाला "आपा खो कर" पथराव शुरू कर दे !( वैसे आज कल इस दोहे पर खुल कर अमल हो रहा है) एक से एक 'शीतल वाणी' सुनाई पड़ रही है,- ' इन लोगों का आर्थिक बहिस्कार करो '! जनहित में बोली गई इस देव वाणी को मिली तालियों की गड़गड़ाहट ने एक संत को इससे भी ज्यादा शीतल वाणी की प्रेरणा दे दी, -' उनका हाथ काटो! ज़रूरत पड़े तो उनका गला भी काटो -'! पुलिस गश्त मार रही है, कि ऐसी शीतल वाणी से आपा खो कर कोई पथराव करता नजर आ जाए तो उस पर बुल्डोजर छोड़ा जाए !!
इस शीतल वाणी की महती कृपा से आए दिन बुलडोजर का अमृत महोत्सव नजर आ रहा है। जब किसी का घर गिरता है तो सिर्फ उस घर के लोग दुखी होते हैं, लेकिन घर के गिरने से "औरन के मन को" जो शीतलता मिलती है, उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती ! लिहाजा "ऐसी वाणी" को थोड़ा और 'शीतल' करने का प्रयोग रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है। महापुरुषों के बारे में कहा गया है, - महाजनो येन गता: स पंथा -! ( महापुरूष जिस रास्ते पर चलें,वही (अनुकरणीय) रास्ता है -!)
अब महापुरुष शीतल वाणी के साथ निकल पड़े हैं, और एक भारी भीड़ (विवेक और) "आपा" खोकर जनहित में सत्य मार्ग पर चल पड़ी है!
अज्ञान काल में झूठ, द्वेष और नफ़रत को अच्छा नहीं समझा जाता था ! प्रभु की कृपा से अब जाकर अज्ञानता का कार्बन और जनता का दुर्दिन दूर हुआ हैं। वैसे भी हर घूरे के दिन फिरते हैं। तीनो ( झूठ, द्वेष और नफ़रत) एक दम से विजय माल्या की तरह आत्मनिर्भर हो चुके हैं ! सौभाग्य से दबी कुचली और शोषित नफ़रत को अब जाकर न्यायोचित सम्मान मिल पाया है !इस वक्त नफरत अपनाने, दुलारने और जबान में रोपने वाले ज्ञानी पुरूषों की भरमार है । एक ढूंढों हजार मिलते हैं, जैसी प्रचुरता है !
तो,,, भद्रजनों! - ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोए - का अक्षरश: पालन हो रहा है ! न वाणी की धार कुंद हो रही है न आपा खोने वालों का कोई अकाल है! कवि ने आपा खोने का अर्थ कुछ और लगाया था, परंतु महापुरुषों ने "मरा मरा"
समझ कर ज्ञान की गठरी बांध ली ! अभिव्यक्ति की आजादी के मेन गेट पर जांच अधिकारी बैठते हैं, पर पिछवाड़े गेट की जगह "टटिया" लगाई जाती है, ताकि "शीतल वाणी" पूरी आजादी से अभिव्यक्त हो सके! मन का आपा खोने में कोई अवरोध नहीं आना चाहिए !
ऐसी "शीतल वाणी" पहले कभी कभी सुनाई पड़ती थी,अब प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है । सुबह से शाम आकाश वाणी चलती रहती है ! इसे सबसे पहले सुनने और जनहित में प्रसारित करने के लिए सोशल मीडिया के अग्निवीर काफी आगे हैं! इस प्रतिस्पर्धा में कभी कभी घटना घटने से पहले ही घटना की खबर आ जाती हैं! शीतल वाणी सुनते ही बड़े चैनल कई पार्टियों के अग्नवीरो को डिबेट में जमा करते है और फिर कई वीरपुरुष आपा खो कर पहले से ज्यादा 'शीतल' वाणी का प्रयोग करने लगते है ! डिबेट के अंत में एंकर ऐलान करता है,- ' तो,, बुद्धिजीवियों के विचार, तमाम साक्ष्य और प्रत्यक्षदर्शियों के बयान से ज़ाहिर होता है कि गलती एक सम्प्रदाय विशेष की है ! उन्हें उस दिन मस्जिद में नमाज पढ़ने जाना ही नहीं था, जिस दिन उधर से मूर्ति विसर्जन जुलूस को जाना था ! खैर आप सभी बुद्धिजीवी रिसेप्शन काउंटर से अपना अपना "लिफाफा" लेकर जाइएगा "!
क्योंकि
आपा खोने के लिए लिफाफा बहुत जरूरी है !
(सुलतान"भारती") सीसी
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