"नफरत का संस्कार "
अब का बताएं कि - यू पी में का बा ! घटना मुजफ्फर नगर की है! एक महिला टीचर ने एक मुस्लिम बच्चे को सजा दी कि उसके क्लासफेलो उसे बारी बारी से थप्पड़ मारते रहे और अपने ही हमउम्र सहपाठियों से अपमानित होता हुआ मुस्लिम बच्चा फ़ूट फ़ूट कर रोता रहा ! नस्लीय घृणा की ये एक ऐसी खौफनाक घटना है जो हज़ारों सवालों को जन्म देती है! मासूम बच्चों को शिक्षा देने की ज़िम्मेदारी क्या ऐसे लोगो को देनी चाहिए जो जातिगत और नस्लीय नफरत की दूषित मानसिकता की गिरफ्त में हों ? हैरत होती है कि ऐसे घृणित मानसिकता वालों का बचाव करने वालो की भी कोई कमी नहीं है! वो तो भला हो किसान नेताओं का जिन्होंने तुरंत संज्ञान लेते हुए दोनों सम्प्रदाय के बच्चों को आपस में गले मिलवा कर नफरत की बयार को आँधी बनने से पहले ही नाकाम कर दिया!
महिला टीचर को 'विकलांगता' का ग्रेसमार्क दिलाने के लिए कुछ लोग फौरन सक्रिय हो गए ! ये वहीं लोग हैं जो हर बार ज़ख्म,पीडा और दर्द को धर्म के चश्मे से देख कर प्रतिक्रिया देते हैं !अगर पीड़ित व्यक्ति संप्रदाय विशेष का है तो इनके शब्द कोमा मे चले जाते हैं, या आरोपी सहानुभूति का पात्र नज़र आने लगता है ! बिलकीस बानो के बलात्कारियों की याद तो अभी ताज़ा होगी? वही ग्यारह बलात्कारी जिन्हें "अच्छे चाल चलन" और "संस्कारी" होने के कारण बरी कर दिया गया था !
अब करें भी तो क्या करें, बिलकीस बानो का आरोप था कि आरोपी क़ातिल और बलात्कारी हैँ ! जांच मे अपराध साबित भी हो गया, किन्तु सजा के दौरान अचानक पता चला कि सभी बलात्कारी संस्कारी हैँ ! ( उन्होंने जो भी किया था- संस्कार के चलते किया !.) चरित्र का इंडेक्स देख न्याय पालिका भी दुविधा में पड़ गई ! संस्कार का वजन बलात्कार पर भारी पड़ रहा था ! पैरवी करने वाली संस्था ने यकीन दिलाया कि आरोपी पहले से ही संस्कारी थे,ये तो महिला का दोष था जो उनके संस्कार के सामने आ गई। उनका संस्कार उस दिन कुछ ज्यादा ही पूजयनीय साबित हुआ ! पहले संस्कारी गैंग ने परिवार के पूरे सात लोगों की बलि ले ली , फिर बिल्कीज़ बानो के साथ बलात्कार करने से पहले उसकी साढ़े तीन साल की बेटी को कत्ल कर दिया, ताकि बलात्कार का कोई गवाह न बचे और संस्कार सुरक्षित रहे।
उन ग्यारह बलात्कारियों को भी कहाँ पता था कि वो इतने संस्कारी हैं ! वो तो खुद को कुछ औऱ ही समझ रहे थे ! अब जाकर उनको यकीन हुआ कि उन्होंने प्रेगनेंट बिलकीस के साथ जो किया वो संस्कार में आता है ! ( पहले संविधान के कारण वो डर गए थे !) और अब,,,, सम्मानित होने के बाद तो उन्हें भी अपने संस्कारी होने पर गर्व होने लगा है !हो सकता है कि ये "सम्मानित संस्कारी" कल को सरकार से मुआवजा भी मांगे ! आखिर ऐसे सम्मानित, देवतुल्य संस्कारी लोगों को जेल में क्यों डाला गया था ! आगे इस तरह की शिकायत मिले तो पीड़िता को ही जेल में डाला जाए, ताकि बलात्कार करने वाले संस्कारी 'संतो" के साथ ऐसा अन्याय न हो सके !
राम रहीम,आसाराम से असीमानंद तक संस्कार के कई कुतुबमीनार मौजूद हैं!. जब एक बार संस्कार परवाज़ भरता है तो जेल से पहले जमीन पर लैंड नहीं करता ! मैं सोचता हूं कि बाबाओं के प्रति आस्था अगर कहीं बुद्धि के भरोसे रही होती तो आत्मनिर्भर नहीं हो सकती थी !
पहले और अब वाले संस्कार में काफी फर्क आ गया है। पहले अपराधी का अपराध देख कर दंड का प्रावधान था ! अब भी है, किंतु अब अपराध के जींस में गुमशुदा संस्कार भी ढूंढ़ा जाता है ! बिलकीस के केस में इस बात का कोई खुलासा नहीं किया गया कि ये ग्यारह लोग पहले से ही संस्कारी थे या बलात्कार करने के बाद "देवतुल्य" हो पाए !
पहले संत में संस्कार पाया जाता था, अब लुच्चों ने कॉपी राइट ले लिया है ! पाप और संस्कार की पहले वाली परिभाषा में बड़ा झोल है - न्याय पालिका कहती है _ ' सौ गुनाहगार बेशक बरी हो जाएं , किंतु किसी निर्दोष और पीड़ित को सजा नही होना चाहिए '! हर्ष का विषय है कि दोषी भी बरी हो गए और पीड़िता (बिल्कीस) भी सजा पाने से बच गई !!
इधर अध्यापिका भी कह रही है कि गलती पीड़ित लड़के की है ! उसने तो बच्चे के सुनहरे भविष्य को लेकर पिटवाया है ! इस सीक्वेंस पर एक दोहा मुलाहिजा हो--
'गुरु कुम्हार शिष्य कुम्भ है गढ गढ काढे खोट' !
अंदर हाथ सहार दे बाहर बाहर चोट !!
विकलांगता के चलते अध्यापिका को "चोट" मारने वाला नेक काम दूसरों को देना पड़ा !
सिद्ध हुआ कि जो हुआ वो पिटाई बच्चे के 'खोट' को दूर करने के लिए थी ,गलती सरासर बच्चे और उसके परिवार की थी ! ,,,,,
( सुलतान "भारती")
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