"जंगलराज" बनाम "सुशासन "!
अभी जुम्मा जुम्मा आठ दिन भी नहीं बीते हैं, जब वहां चारों तरफ सुशासन लहराता नज़र आ रहा था ! महामानव से मीडिया तलक सबको साफ़ साफ़ सुशासन नज़र आ रहा था।! रतौंधी वाले पत्रकार भी पूरे जोश में विरुदावली गा रहे थे,- 'दुख भरे दिन बीते रे भइया - सुशासन आयो रे ! जंगल राज में फिर से सतयुग छायो रे !' हालांकि महंगाई, बेकारी, अपराध, नाव दुर्घटना, अपहरण, हृदय परिवर्तन कुछ नहीं बदला था, किंतु सुशासन की सुनामी नज़र आ चुकी थी ! बदलाव देखने की नहीं, महसूस करने की चीज होती है ! सुशासन एक ऐसी अनुभूति है जो सत्तापक्ष को सबसे पहले नज़र आती है और विपक्ष को कभी नहीं ! मज़े की बात है कि दोनों चाहते हैं कि जो वो देख रहे हैं जनता उस पर यकीन करे, अपनी आंख पर नहीं !
कुछ दिन पहले वहां सत्ता पक्ष को सुशासन और विपक्ष को जंगलराज नज़र आ रहा था ! (दोनों में से किसी को भी प्रदेश नहीं नज़र आ रहा था!) करोड़ों लोग नौकरी पाने की उम्मीद का सत्तू फांक कर अगले दिन का सुशासन झेलते थे ! पक्ष और विपक्ष दोनों " करोड़" से कम नौकरी देने को राज़ी नहीं थे ! बेकारी के शिकार लाखों शिक्षित युवा इस सियासी " के बी सी" देख देख कर ओवर एज हो रहे थे कि तभी अचानक 'सुशासन बाबू' ने "महावत" बदल दिया ! बस - उसके बाद चिरागों में रोशनी न रही -!
जैसे सावन में साक्षात जेठ का महीना उतर आया हो, चारों तरफ़ से मीडिया के हाहाकार की आवाजे आने लगी। महावत बदलते ही सतयुग की जगह कलियुग की आधियां चलने लगीं ! सुशासन खत्म दुशासन चालू ! मीडिया ने तुरंत फतवा जारी किया, - प्रदेश में दुबारा जंगलराज शुरु -! ये जंगलराज अब तक कहां छुपा कर रखा गया था, ये खुलासा अब तक नही किया गया है। मिडिया जिसे जंगलराज बता रही थी, विपक्ष उसे जनता की आज़ादी बताने में लगा था । जनता को जाने क्यों दोनों की बातों पर यकीन नहीं हो रहा था ! दोनों ने अपनी सत्ता में जनता को छकाया था ! जनता को अब तक मंहगाई और बेकारी के अलावा कुछ न देकर भी तारणहार यह साबित करने में लगे थे कि सारा समुद्रमंथन जनता के कल्याण के लिए था । जनता इतनी बार ठगी जा चुकी थी कि उसे अब जंगलराज भी सुशासन जैसा ही लगता था !
मीडिया मंच पर अवतरित महापुरुष अमृत वर्षा कर रहे थे ! एक पक्ष दलील दे रहा था कि प्रदेश आठ दिनों में किस तरह सतयुग से फिसल कर गुफ़ा युग में जा गिरा है, वहीं दूसरी तरफ वनवास काट कर सुशासन का लिंटर डाल रहे यदुवंशी वीर दावा कर रहे थे कि-" पिछली सरकार के शासन काल में ज़रूरत से ज़्यादा 'सुशासन' आ जाने से बॉडी में ज़हर फैल गया था , डैमेज कंट्रोल में टाइम लगेगा - चच्चा समझा करो" !! लेकिन समझने के लिए कोई तैयार नहीं है ! समझने के चक्कर में कहीं मानसून न निकल जाए ! हमला जारी है, उन नौकरियों का हिसाब मांगा जा रहा है जो दी तो गईं थीं, लेकिन लोगों को मिली नहीं!
कल मैंने वर्मा जी से पूछा, ' पिछली बार देश में सुशासन कब आया था ?'
वर्मा जी सीरियस हो कर बोले, - ' तब मेरी उम्र दस बारह साल थी ! गांव के गांव मरघट बन गए थे ! चूहों से फैला था -!!" " " वर्मा जी, मैं 'हैजा' की नहीं "सुशासन" की बात कर रहा हूं "!
वो तुरंत श्राप देने की मुद्रा में आ गए, -" विनाश काले जदयू बुद्धि ! अच्छा भला सुशासन चल रहा था कि पांडव को हटाकर धृतराष्ट्र को ले आए ! जैसा करम करेगा वैसा फल देगा भगवान - अब भुगतो जंगलराज "!
तारणहार नूरा कुश्ती लड़ रहे हैं और जंगलराज और सुशासन को लेकर जनता का कन्फ्यूजन गहराता जा रहा है कि आखिरकार दोनों में से किसके अंदर फाइबर ज़्यादा है ।उधर गुजरात प्रशासन ने गर्भवती बिल्क्कीस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार करने वाले सभी ग्यारह अपराधियों को जेल से रिहा करते हुए जंगलराज और सुशासन के बीच का फर्क खत्म दिया है !
What a political satire.. zabardast vyang ...
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