"आई लव हिंडी यू नो"
मैने बड़ी हैरत से देखा, बैंक के मैन गेट पर एक बड़ा सा बैनर लटक रहा था, जिसमें बैंक के ग्राहकों को याद दिलाया जा रहा था - ' हिन्दी में काम करना बहुत आसान ! हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है ! आइए हम इसे विश्व भाषा बनाएं -'! अंदर आने वाले ग्राहकों को विश्व भाषा बनाने में बड़ी दिक्कत पेश आ रही थी ! जिन्होंने बैनर देखा ही नहीं, वो हमेशा की तरह अंग्रेजी में विड्रॉल फॉर्म, चेक और डिपोजिट स्लिप भर कर सहज नजर आ रहे थे, मगर जिन्होंने पहली बार बैनर पढ़ा था ,वो बड़ेअसमंजस में थे, कि विश्व भाषा बनाने के लिए किस काउंटर पर जाएं! मुझे अपने कुपोषित खाते से पंद्रह सौ रुपए निकालने थे ! मैने विड्राल भर कर दे दिया ! क्लर्क ने एक बार भी नहीं पूछा किआज के दिन इंग्लिश में क्यों भरा !!
मैं हैरान था कि भला बैनर लटका देने से किस तरह हिन्दी की सफल सेवा की जा रही है! हिंदुस्तान में भी हिंदी का दिवस और पखवारे की ज़रूरत क्यों पड़ रही है? इंग्लैंड क्या इंग्लिश डे मनाता है !! सिर्फ नारा उछाल कर उपलब्धियां नहीं हासिल होती ! हिन्दी को सिर्फ राष्ट्रभाषा घोषित करने से काम नहीं चलेगा बल्कि उसे रोटी और रोजगार का व्यापक आधार देना होगा। साथ ही देश के एलीट वर्ग और प्रशासन में बैठे लोगों को चाहिए कि वह हिन्दी को बैनर से निकाल कर अपने बच्चों में ले आएं!
हमारे यूपी में हिंदी कक्षा एक से पढ़ाई जाती है और अंग्रेज़ी क्लास सिक्स से । शहर से लेकर सुदूर गांवों तक अंग्रेज़ी ड्रोसरा के ज़हरीले पौधे की तरह हिंदी का खून चूस रही है ! हिंदी को विश्व भाषा बनाने वाले नेताओं के बच्चे विदेशों में पढ़ते हैं। इसी से पता लगता कि हिन्दी के प्रति वो कितनी बड़ी कुर्बानी दे रहे हैं ! अंग्रेजी के प्रति बढ़ते मोह में हिंदी विकास की गति चिंतनीय है ! मिडिल क्लास वर्ग में भी घुटनों के बल चल रहे बच्चे को दूध कम अंग्रेज़ी ज़्यादा पिलाई जाती है। अपने
घर आए पड़ोसी से बच्चे के टेलेंट की नुमाइश की जाती है,-' शाशा ! अंकल से शेक हैंड करो !' लगता है कि हिंदी में सलाम नमस्ते करते ही बच्चे का भविष्य ख़राब हो जाएगा !!
सितंबर की बयार पाते ही हिन्दी प्रसार और प्रचार में लगी संस्थाएं उसे विश्व भाषा बनाने में जुट जाती हैं ! सरकारी अनुदान को ठिकाने लगाने के लिए अपने अपने गुल्लक के कवि, शायर, चारण,चिंतक और साहित्यकारों को काम में लगा दिया जाता है ,-'जागो मोहन प्यारे जागो -! इन्हीं साहित्यिक फावड़ों से हिन्दी विकास फंड को व्यवस्थित किया जाता है ! मरते दम तक साहित्य समंदर के यही "सील" मंचों पर पसरे होते हैं ! हिंदी को राष्ट भाषा से विश्व भाषा बनाने का भार इन्हीं के हड्डी विहीन कंधों पर है ! इनके होते नई पीढ़ी के ऊर्जावान साहित्यकारों को सिर्फ़ ऑक्सीजन पर जीवित रहना है !
कल पड़ोस में रहने वाले वर्मा जी मुझ पर रोब डालते हुए कह रहे थे, -' शुक्र है कि बेटे का एडमिशन हो गया ! सुनकर तुम्हारा तो खून जल गया होगा ! बुरा मत मानना, वहां पर छोटे मोटे या फर्जी पत्रकारों के बच्चे नहीं पढ़ सकते ! हिंदी बोलने पर जुर्माना भरना पड़ता है, यू नो !!" वर्मा जी खुद हिंदी मीडियम की उपज हैं किंतु बच्चे के अंग्रेज़ी ज्ञान को पूरे मोहल्ले में बांटते हैं ! मिडिल क्लास वर्ग से ब्याह कर आई महिलाएं अपने बच्चों को अंग्रेजी में ही दुलारती डांटती हैं, -' चिंटू ! डोंट ईट मिट्टी ! फेंको, थ्रो करो !!' बच्चा अंग्रेज़ी और हिन्दी के बीच फंस कर रोने लगता है -'! मां चाहती है कि उसका नौनिहाल रोए तो भी अंग्रेज़ी में ! मां और बाप को अंग्रेज़ी में 'मम्मी' और 'पापा' बोलना शुरू करे, तभी पेरेंट्स को मोक्ष की प्राप्ति होगी ! अगर गलती से भी बच्चे के श्री मुख से "अब्बा" या "पिता जी" जैसे रूढ़िवादी शब्द निकल गए , तो समझो कि जीवन अकारथ गया, और सोसायटी में उसकी प्रतिष्ठा का टाइटेनिक बगैर आइसबर्ग से टकराए डूब गया ।
इस वक्त मैं अपने कमरे में लेटा बेकारी की चौथी वर्षगांठ मना रहा हूं, और पड़ोस के वर्मा जी "आर डब्ल्यू ए" की मीटिंग में भीष्म प्रतिज्ञा करते हुए दहाड़ रहे हैं, -' हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है ! आओ हम सब मिलकर इसे विश्व भाषा बनाएं ! साथ ही इसमें अडंगा डालने वाले फर्जी पत्रकारों को पाकिस्तान भगाएं "!
हिंदी को आत्मनिर्भर बनाने के लिए लोग जोश में ताली बजा रहे हैं !! मुझे मालूम है कि अब 2023 वाले हिंदी पखवारे तक ज्यादातर मौसमी योद्धा कोमा में चले जाएंगे!!
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