Saturday, 24 December 2022

शायरी 1992

शायरी 1992         " तब्दीली"

ये  कैसी  रोशनी आने लगी  है!
अंधेरा  साथ  में  लाने  लगी है !!

नया  किरदार  देखा  बागबां का!
कली खिलने से डर जाने लगी है !!

धुआं है आग है नफ़रत तबाही !
नई  दुनियां नजर आने लगी है !!

कहीं मज़दूर की बस्ती जली है !
वो देखो चील मंडराने लगी  है !!

हमारी  मौत  पर  कोई  न रोया  !
नमी आंखों से उड़ जाने लगी है !!

बहुत हमदर्द है हाकिम हमारा !
हिफाजत लाश की होने लगी है

वफ़ा  खुद्दारी  ईमानो  हया अब!
ये दौलत कम नजर आने लगी है !!

सियासत की हया को देख कर अब !
तवायफ  को   शरम  आने  लगी है !!

सभी के वास्ते जो घर खुला था !
उसी पर बिजलियां गिरने लगी है !!
             

कोई "सुलतान" को अदना बना दे !
बुलंदी  खार   सी  चुभने  लगी  है !!

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