Monday, 19 September 2022

"अन्तरिक्ष की बेटी"

              "अन्तरिक्ष की बेटी"

         अवध एक्सप्रेस से महज़ आठ किलोमीटर के फासले पर बाजगढ़ का सराना घाट ! रात नौ बजते ही बाबू मल्लाह ने नाव को खूंटे से बांधा और घर में उतारी महुआ की तेज़ शराब पीकर नाव में ही रजाई ओढ़ कर लेट गया ! उसके आज घर न जाने की वजह यह थी क्योंकि बसंतपुर के मेले में बाजगाढ़ के पठानों के आठ दस लड़कों को नौटंकी देख कर रात में ही नदी के उस पार उतारना था ! बाबू मल्लाह को इस वीराने में अब दर नहीं लगता था, यहां के पशु पक्षी नीलगाय और मैदानी इलाकों में कभी कभी नज़र आने वाले भेड़िए तक उसे पहचान गए थे । सराना घाट के जंगल तरह तरह की आवाज से गूंज रहा था ?
       अचाननक बाबू उछलकर उठ बैठा ! नींद से जाग कर वह आंखें फाड़ फाड़ कर चारों ओर देखने लगा! उसने किसी तेज़  धमाके की आवाज़ सुनी थी ! आसमान में चांद सहमा हुआ नीचे झांक रहा ! यकायक उसने महसूस किया कि वह गरमी और पसीने से भीग रहा है !  आसपास का वातावरण अचानक गर्म हो उठा था! उसने गबराई हुई नजरों से  बाईं तरफ नदी की ओर देखा तो खौफ से दहल गया ! एक बीघे के क्षेत्र में नदी का पानी खौल कर उबल रहा था और मछलियां तड़पती हुईं उछल रही थीं ! जैसे एक बीघे के पानी को आग के ऊपर रख दिया गया हो !
         अचानक दाईं तरफ से उसे किसी ने पुकारा ! उसने घूम कर देखा, तो ऐसा लगा कि उसका कलेजा उछलकर गले से बाहर आ जायेगा ! गोमती नदी के पानी की जलधारा में दो लड़कियां खड़ी थीं। चालीस साल से नाव चला रहे बाबू मल्लाह ने कभी इतनी खूबसूरत लड़कियां नहीं देखी थीं ! जहां वो खड़ी थीं, नदी का पानी उनकी कमर तक था ! जब की बाबू जानता था कि उस जगह पानी की गहराई तीस फीट से कम नहीं थी ! लड़कियों के काले लिबास से  कई किस्म  की रोशनी फूट रही थी ! उन्हें जल देवता की बेटी समझ कर बाबू ने हाथ जोड़ कर नमस्ते किया तो दोनों लड़कियां खिलखिला कर हंसने लगीं ! 
            बड़ी वाली लड़की ने  बाबू मल्लाह की ओर देख कर कुछ कहा ! बाबू मल्लाह को लगा कि कुछ अजनबी शब्द हवाओं से गुज़रे और फिर उसे अपनी भाषा में सुनाई पड़ा,-' मैं और मेरी छोटी बहन तुम्हारी नाव पर घूमना चाहते हैं"!!
  
                 ( अगले महीने आने वाले मेरे उपन्यास "अंतरिक्ष की बेटी"   से  चंद लाइनें ")

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