सर्द रातों में पसीना मुझे आता क्यूं है !
खुशी में ज़ख्म का चेहरा नज़र आता क्यूं है !!
जो मेरे ख्वाब की ताबीर नहीं बन सकता!
वो तसव्वर में मेरे बारहा आता क्यों है !!
सनद इंकार या इकरार की हासिल तो नहीं !
फिर कोई मेरी तरफ उंगली उठता क्यों है !!
मैं भी इंसान हूं खुशियों की जुस्तजू भी है !
मेरे हिस्से में भला दर्द जियादा कpp है!!
हर एक दर पे तो झुकता नहीं है सर अपना !
इतनी खुददारी किसी एक को देता क्यूं है !!
हर गुनहगार को बख्शेगा उसका वादा है !
फिर तू आमाल फरिश्तों से लिखाता क्यूं है !
मेरे ख्वाबों में कोई रोता है सिसकी लेकर !
क्या पता ज़ख्म और पहचान छुपाता क्यूं है!!
ज़िंदगी एक तामाशे के सिवा कुछ भी नहीं !
मौत बरहक है, भला मौत से डरता क्यूं है !!
शरीक अपनी खुशी में सभी इन्सान को कर !
सबब ए अश्क भी मजलूम का बनता क्यूं है!!
अश्क भी आग से कमतर नहीं होते "सुलतान"!
इस हकीकत से कोई आंख चुराता क्यूं है !!
ग़ज़ल गो,,,,,,( सुलतान भारती)
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