Wednesday, 13 July 2022

(व्यंग्य भारती) "पत्रकारिता में पसरा पतझड़" !

(व्यंग्य भारती)

"पत्रकारिता में पसरा पतझड़" 

             आज़ का दौर देखिए, पत्रकारों की बाढ़ आई हुई है लेकिन पत्रकारिता में पतझड़ चल रहा है! पत्रकार का कलम और आत्मा से नाता लगभग टूट चुका है !आत्मा में रखी सच की स्याही लगभग सूख चुकी है ! पत्रकार ने दिल के ऊपर तख्ती लटका रखी है, - बिकाऊ है खरीदार चाहिए -! मंडी में पत्रकार बहुत हैं,खरीदार कम ! ऐसे में बिकाऊ पत्रकार की मार्केट वैल्यू गिरना ही था , लिहाज़ा कथित पत्रकारों की खुद्दारी का इंडेक्स झरने के पानी की तरह एक बार गिरना शुरू हुआ तो गिरता ही चला गया ! आज हालत ये है कि खरीदार गुण नहीं गिरावट देखकर उन्हें खरीद रहा है!  मंडी में ऐसे पत्रकार की डिमांड है,  जो बगैर रीढ़ और 'किडनी' का हो ! जिसकी आत्मा में  खुद्दारी, स्वाभिमान, सच बोलने और लिखने की जुर्रत जैसे दोष न हों !  
           जबसे कलम की जगह कॉलर वाला माइकआया है,पत्रकार के लिए लेखन की  अनिवार्यता खत्म हो गई। बस,,,,फिर इसके बाद चिरागों में रोशनी न रही! और,,, सही पूछो तो पत्रकारों के लिए अब रोशनाई की जरूरत भी नहीं! अब तो ऐसे ऐसे दिव्य पत्रकार मैदान में हैं जो घटना की पूर्वसूचना तक हासिल कर लेते हैं ! सच के लिए सीने पर चाकू खाने वाले संस्कारी पत्रकार सिर्फ हिंदी फिल्मों में बचे हैं! व्यभिचार,अत्याचार, अनाचार, भ्रष्टाचार और अव्यवस्था के खिलाफ़ लड़ने वाली पत्रकार जमात लगभग विलुप्ति की कगार पर है ! अब खोजी पत्रकार को  ' स्कूप ' (विषफोटक खबर) बरामद होने पर दिखाने से पहले चैनल के सुप्रीमो से पूछना पड़ता है! वही तय करता है कि खबर में कंक्रीट है या नही !
        सियासत और पत्रकारिता दोनों जगह आत्मा का होना दुखदाई है ! हर्ष का विषय है कि सियासत के अधिकतर जागरूक जीवों ने आत्मा के बगैर जीना सीख लिया है ! पत्रकार वर्ग के अंदर काफ़ी लोग अभी भी आत्मा की आवाज़ सुनने का जोखिम उठा रहे हैं ! ऐसे गिने चुने सरफिरों को लगता है कि वो किडनी और रीढ़ के बगैर जी नहीं पाएंगे ! हमारे एक मित्र हैं, राष्ट्रीय स्तर के धाकड़ व्यंग्यकार हैं! अक्सर कड़वा और घातक सच लिखते हैं ! संपादक ने बहुत समझाया, नहीं माने तो उनको छापना कम कर दिया ! 
         अब पत्रकारिता सर्व सुलभ है ! शहर से गांव तक पत्रकार उपलब्ध हैं ! सैकड़ों पत्रकार गांव से तहसील तक ग्रामप्रधान, बीडीसी, पटवारी और बीडीओ , एसडीएम और ब्लॉक प्रमुख के छत्ते में शहद ढूंढते रहते हैं। गांव मे आज  कुछ यू ट्यूबर पत्रकार इतने सक्रिय हैं कि एक एक दिन में कई जगह  न्योता अटेंड करने जाना पड़ता है! शहर से लेकर गांव तक के पत्रकार में एक चीज कॉमन है, दोनों को ही सच जानने और बोलने से वैर है ! पत्रकारों के सैंकड़ों संगठन हैं, बहुत कम पत्रकार मिलेंगे को दूसरे पत्रकार को 'पहले' नमस्ते करना पसंद करता हो ! इस लंका में हर कोई अपने आप को कुंभकरण समझ रहा है !
     आज के पत्रकार बहुधा दो प्रकार के होते हैं, बड़ा पत्रकार और छोटा पत्रकार ! बड़े पत्रकार का पसंदीदा विषय है,- हिंदू मुस्लिम, भारत पाकिस्तान, मंदिर मस्जिद, नमाज़, लाउड स्पीकर आदि !उसकी नजर में यही वो वास्तविक मुद्दे हैं जिनसे देश का विकास और कल्याण संभव है। इसी फर्टिलाइजर से भाईचारा उर्वर बनाना है, और इसी रामधुन से विश्वशांति लानी है ! इसलिए हर डिबेट में इसी समुद्र मंथन से अमृत निकालता है ! छोटे पत्रकार का दायरा छोटा होता है, वह सरकारी नलके पर औरतों की लड़ाई से लेकर मुहल्ले वाले नेता के बर्थ डे तक की न्यूज न्यूज देता रहता है। इलाके का जेबकतरा और बीट कांस्टेबल दोनों उसे प्रिय हैं ! वोह- न काहू से वैर -के फार्मूले पर अमल करना है। आसपास झगड़ा होने पर दरोगा जी से मिल कर पांच हज़ार का मसला दस हज़ार में निपटा कर जनसेवा का कोटा पूरी कर देता है! क्षेत्र में अवैध शराब कौन बेच रहा है, उसे पता है ! मगर  यहां भी वो गांधीवाद का पालन करता है, - पाप से नफ़रत करो पापी से नहीं - ! 
           मैं वर्मा जी को फूटी आंख नहीं सुहाता.! उन्हें मेरे पत्रकार होने से सख्त नाराजगी है ।वो फेसबुक पर लिख कर भी खुद को बड़ा पत्रकार मानते हैं और मुझे पत्रकार तक नहीं मानते ! कल उन्होंने मुझे सलाह देते हुए कहा, -' ये बड़े अख़बार भरोसे के नहीं रहे! इन में लिखना छोड़ और सोशल मीडिया पर मुझे फॉलो कर , वरना कॉलोनी छोड़ कर कहीं और चला जा ! मैं यहां भाईचारा खराब नहीं करने दूंगा -! फकीरा चल चला चल -'!

       इस वक्त रात के साढ़े ग्यारह बज रहे हैं। मेरे सिरहाने खड़ी किताबों की आलमारी में र
खी मेरी हस्तलिखित किताबें जैसे मुझे चुनौती दे रही हों! लगभग रोज रात में ये किता
बें मुझे घेर कर पूछती हैं, - ' क्या हासिल किया तूने मुझे लिख कर , मुझमें अप


नी रूह उतार कर -'!!  मेरी पास ७कोई जवाब नहीं है ! मैं  इस कमरे में सोना छोड़ दूंगा! मैं जानता हूं कि जब पत्रकार की कलम से पंख फूटते हैं तो वो लेखक बन जाता है, पर अकसर ये पंख उसे परवाज़ नहीं दे पाते !!

शायद मैं इन पंखों को कभी नोच नहीं पाऊंगा !!

       बायो

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