" चंदन विष व्यापत नहीं,,,,"!
अब हमका का पता, काहे ! कौन सवाल जवाब के कोल्हू में उंगली दे! स्कूल में पढ़ाते हुए 'पंडी' जी हों या 'माससाब' "क्यों" पूछने पर बांस की 'सुटकुनी' उठा लेते थे ! ये सुटकुनी ससुरी "छड़ी" से टोटल डिफरेंट थी ! हाथ के साथ पीठ पर भी विश्वत रेखा खींच देती थी। अभिव्यक्ति की आज़ादी मस्साब के पास हुआ करती थी , वही सवाल पूछते थे ! मुझे तभी से दोहे की ये लाइन खटकती थी ! काहे नाही विष व्यापत ! बचपन में "बीछी" (बिच्छू) का डंक खाकर मैं घर के साथ पूरा मुहल्ला सर पर उठा लेता था ! यहां तो बिच्छू की जगह भुजंग का मामला था। मुझे तो चंदन और मीडिया की सांठ गांठ मालूम होती है! मास्साब से शंका समाधान करता तो वो सुटकुनी से सर्जिकल स्ट्राइक कर देते ! का करें, 1970 में मरकहा गुरु भी "गोबिंद" हुआ करता था, उस दौर में छात्र को पीटना गोविंद का सुटकुनी सिद्ध अधिकार हुआ करता था ! घर में मास्साब की शिकायत करने पर उल्टे अब्बा श्री से पिटाई की आशंका !
सुनी सुनाई दंत कथा लिख कर लाल बुझक्कड को साहित्यकार हो जाने का अधिकार था ! बड़ा हो जाने पर पता चला कि चंदन ने खामखा भुजंग को बदनाम कर दिया है! वो बेचारा तो सपेरे से बचने के लिए सात दिन से भूमिगत था ! (जंगल में सपेरे आए थे । ) चंदन को खतरा वीरप्पन से था, और नाम भुजंग का बदनाम हो रहा था ! दरअसल सात दिन बाद अज्ञातवास से बाहर आकर बेचारा भुजंग कौआ के अंडे खाने के लिए एक पेड़ पर चढ़ गया ! उसे क्या पता कि पेड़ चंदन का है या धतूरे का ! उसके पहले वो कभी चन्दन पर चढ़ा भी नहीं था ! भुजंग को देखते ही कौआ उड़ गया और भूखा प्यासा भुजंग बिल में जाकर कोमा में चला गया। कौए ने भुजंग की इमेज खराब करने के लिए ये कहानी कवि को बता दी ।बस कवि ने चंदन को हीरो और भुजंग को अमरीश पुरी बना दिया ! उसके बाद आज तक कवियों ने वीरप्पन का कभी नाम नहीं लिया! इसे कहते हैं कि - जबरा मारे ( मगर) रोने न दे -!! साहित्यिक षडयंत्र कितना घातक होता है!
नाग (भुजंग) बेचारा, भूख का मारा ! कौआ का अंडा खाने के लिए पहली बार चंदन पर चढ़ा था ! उसे क्या पता कि कौए ने अपना अंडा पहले ही कोयल के घोंसले में रख दिया है और फर्जी घोंसला चंदन के पेड़ पर टांग दिया है ! कविता की तलाश में जंगल में घूम रहे कवि को कौआ मिल गया! कौए ने भुजंग को खलनायक और चंदन के पेड़ को नायक बना दिया ! कवि ने पहली बार चन्दन पर भुजंग देखा था, उसने कौए की कहानी पर भरोसा किया और बादशाह ने कवि की कविता पर !सत्यापन किसी ने नहीं किया, - महाजनों येन गता: स पंथ:- मान लिया गया ! कहावत बन गई तो चन्दन को "बेचारा" और भुजंग को राक्षस मान लिया गया ! वो तो भला हो वीरप्पन का, जिसने चंदन को गुमनामी से बाहर निकाला और दुबारा लोकप्रियता दिलाईं ! जनता को यकीन दिलाया कि चंदन के पेड़ पर कोई भुजंग नहीं रहता ! तस्करी के लिए फॉरेस्ट और सियासत में बैठे दो पैर वाले भुजंगों से साठ गांठ करनी पड़ती है । यही विधि का विधान है।
प्रशासन ऐसे भुजंग से भरा हुआ है, जो जनहित में घातक हैं लेकिन उन्हे कोई कौआ किलहंटी या "तोता" चिन्हित नही करता ! बल्कि खुद मिडिया के कौए ही भुजंग की इमेज को चंदन से ओतप्रोत करते रहते हैं! कौए इनके प्रचार मंत्री हैं और तोता ताबेदार ! शत शत जोहार !! मिट्टी की जगह महल मे रहते और मलाई खाते इन भुजंगो पर किसी जहर का असर नहीं होता ! इन्हें चंदन से बड़ा लगाव होता है ! ये चंदन के पेड़ पर नहीं जाते, बल्कि चंदन खुद चलकर इनके पास आता है ! चंदन का वृक्षारोपण करते हुए फोटो खिंचवाना इन्हे अत्यंत प्रिय है । इनका जीवन चक्र चंदन के टीके से शुरू होकर चन्दन की चिता पर खत्म होता है!
वैसे,,,एक ठो "लघु" साइज वाली "शंका" है ! चंदन पर भुजंग के जहर का अगर असर नहीं होता तो क्या ये चंदन की विशेषता है या चंदन में कमी है ! इंसान ईश्वर की बनाई सर्वश्रेष्ठ रचना है, और उस पर तो भुजंग के विष का भरपूर असर होता है ! चंदन पर क्यों नहीं होता ! इसलिए नहीं होता, क्योंकि कहानी सच से कोसों दूर है! कौआ और वीरप्पन दोनों ने भुजंग के बहाने चंदन का शोषण किया ! कौआ ने चन्दन पर घोंसला बनाया, और वीरप्पन एक पेड़ छोड़ कर चंदन काटता रहा ! प्रशासन और वीरप्पन दोनों से प्रताड़ित भुजंग आखिरकार जंगल छोड़कर आबादी में चला गया ! लेकिन भुजंग के अज्ञातवास के बाद भी एनसीआरटी ने आजतक दोहे को पाठ्यक्रम से नहीं हटाया ।
ये मुट्ठी भर वीरप्पन और कौए आज भी वैभव के चंदन से सर्वहारा वर्ग को दूर रखने के लिए "भुजंग" का खौफ़ खड़ा करते हैं, - "काम, क्रोध, मद और लोभ से दूर रहो ! पाप का चंदन मेरे जैसे निकृष्ट पापी के लिए छोड़ दो, और तुम कष्ट,अभाव और गुरबत की सलीब ढोते हुए स्वर्ग की बाधा दौड़ पूरी करो -"! बहुमत जन्नत के लिए खुद को क्वालीफाई करने में लगा है !
आज दोहा लिखने वाला बुनियादी कवि, वह कौआ और वीरप्पन में से कोई नहीं है, लेकिन चंदन के पीछे मुफ्त में बदनाम होने वाला बेचारा भुजंग आज भी अपने विष का दंश झेल रहा है !
बुजुर्ग सही कहते हैं,- बद अच्छा, बदनाम बुरा -!
( सुलतान भारती)
No comments:
Post a Comment