अब थोड़ा थोड़ा एक्ट ऑफ गॉड समझ में आया ! पहले जब आबादी और पोल्यूशन कम था तो ' गॉड' और 'एक्ट ऑफ गॉड' दोनों पृथ्वी पर नज़र आते थे ! अब एक्ट तो रतौंधी के बावजूद नज़र आता है, मगर गॉड कोरोना की तरह अन्तर्ध्यान बना हुआ है। वो ऊपर स्वर्ग में बैठे भू लोक के लोगों को पाताल लोक के कीड़ों की तरह रेंगते देख कर चिंतित होते रहते हैं! पास खड़े सुर, मुनि, किन्नर,निशाच, देव आदि चारण गीत गाते रहते
हैं, " दुख भरे दिन बीते रे भैया- सतयुग आयो रे !"
अगस्त की दुपहरी में सावन नदारद था, पर एक्ट ऑफ गॉड देख कर जनता गांधारी बनी नाच रही थी! ईमानदार देवता गॉड को वास्तु स्थिति से आगाह कर रहे थे ,- सर ! पृथ्वीलोक पर हाहाकार मचा है, पेट में आग जल रही है, और चूल्हे ठंडे होते जा रहे हैं!"
गॉड के बोलने से पहले ही एक मुंहलगा चारण बोल
पड़ा,- ' पेट की आग को चूल्हे में डालो ! आग को पेट में नहीं , चूल्हे में जलना चाहिए ! आग के लिए चुल्हा सही जगह है ।"
गॉड ने प्रशंसनीय नज़रों से चारण को देखा !
कल्, मेरे कोलोनी में भैंस का तबेला चलाने वाले चौधरी ने मुझसे पूछा, - ' उरे कू सुन भारती ! एक्ट ऑफ गॉड के बारे में तमें कछु पतो सै ?"
' बहुत लंबी लिस्ट है, जो भी दुनियां में हो रहा है , सब एक्ट ऑफ गॉड में शामिल है"!
" मन्नें के बेरा ! साफ साफ बता !'
"जैसे बाढ़ सूखा भूकंप कोरोना आदि,,,, सब एक्ट ऑफ गॉड की सूची में है! जैसे मेरे ऊपर आठ महीने से दूध की उधारी चढ़ी है,और मै लगातार गिरती जीडीपी के कारण तुम्हें पेमेंट नहीं दे नहीं पा रहा हूं तो उसके लिए मैं नहीं, एक्ट ऑफ गॉड ज़िम्मेदार है"!
" मै गॉड के धोरे क्यूं जाऊं ! मैं थारी बाइक बेक द्यूं ! इब तो मोय एक्ट ऑफ गॉड के मामले में कछु काडा लग रहो ! दूध कौ मामलो में एक्ट ऑफ गॉड की बजाय मोय
एक्ट ऑफ गुरु घंटाल दीखे सै "!
चौधरी भी कैसा पागल आदमी है! "एक्ट ऑफ गॉड" को एक्ट ऑफ ' गुरु घंटाल' बता रहा है !!
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