सोच कर रह जाता हूं! वो ना पाजीपन से बाज आ रहा है, ना मैं पेशेंस का पिंड छोड़ रहा हूं ! ( दोनों तरफ़ है आग बराबर लगी हुई!) वो अपने संस्कार से आगे निकल रहा है,मै अपने संस्कार से डंक खा रहा हूं!
वो हमारा पड़ोसी देश है, इसलिए पाजीपन पर उसका कॉपीराइट है , और पेशेंस पर हमारा ! (हमारे सभी पड़ोसी हमारे संस्कार का प्लग चेक करते रहते है! )हैरत ये है कि मार खाकर भी पाजीपन से उनका लगाव दूर नही होता । अब ऐसे में हमारे सामने धर्मसंकट खड़ा हो जाता है कि हम पेशेंस की पूंछ छोड़ें या नहीं ! यही धर्मसंकट सत्ता में बैठे मुखिया को भी होता है । ऐसे पाजीपन के मौके पर पहले वाले मुखिया फौरन " कड़े कदम" उठाने की चेतावनी जारी कर देते थे ! ( मगर जाने वो "कड़ा कदम" कहां छुपा कर रखते थे कि उसके उठने से पहले नए पाजीपन की खबर आ जाती थी !)
शुक्र है कि अब ऐसा नहीं है, पाजीपन का जवाब तो दिया जा रहा है, पर लगता नहीं वो पाजीपन से बाज आ रहा है। दरअसल कई पाजियों ने मिलकर अपना क्लब बना लिया है ! दुनिया को देखता हूं तो लगता है कि यहां पाजीपन वाले ज़्यादा हैं ! जो जितना बड़ा पाजी, वो उतना बड़ा इज्जतदार! पेशेंस वाला बगैर गलती के पंचायत का फ़ैसला सर माथे लेता है, ' आप उसके मुंह क्यों लगते है, आप तो इज्जतदार आदमी हैं!"(ऐसी दिव्य पंचायत के फ़ैसले से पेशेंस वाले को पहली बार अपने "इज्ज़तदार"होने पर गुस्सा आता है!)
गांव में खेत के बटवारे में भी शरीफ और इज्जतदार आदमी पाता कम है खोता ज्यादा है! पाजी आदमी के पास पेशेंस नहीं होता, और पेशेंस वाले के पास पाजी पन ! लेकिन पाजी कभी पेशेंस की तरफ झांकता भी नहीं! उसे अपने पाजीपन का महत्व पता है। वो पेशेंस, शराफत, इज्ज़त और बढ़िया छवि जैसी दिव्य उपलब्धि नहीं चाहता ! वो मरने के बाद नहीं, जीते जी स्वर्ग चाहता है। अपने पाजी पन की गाढ़ी कमाई से वो ज़मीन, कार, कोठी, जायदाद, बैलेंस ,और कभी कभी तो पूरा का पूरा बैंक बना लेता है। पेशेंस वाला मोक्ष की चाहत में सपनों का गला घोंटता हुवा जिंदगी की कुपोषित इनिंग पूरी करता है ! ( यहां का नर्क काट लिया, स्वर्ग की राम जाने!)
(आस पास गौर से देखिए, पेशेंस वालों को परेशान और पाजी लोगों को प्रोग्रेस करते पायेंगे ! अपवाद हो सकता है, पर अपवाद से परिभाषा नहीं बनती मित्र !)
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