परेशान होने की जरूरत नहीं, ये हमारा राशन वाला है, जो मेरे टोकने के बाद शर्मिन्दा होने की नाकाम कोशिश करते हुए कह रहा था, ' मिलावट के लिए खेद है।' दरअसल इस बार के सरकारी राशन की दुकान से जो गेहूं लिया, उसमें गेहूं और कंकर की मिलावट का प्रतिशत 60- 40 का था । उसके बाद देश हित में हम दोनों के बीच कुछ इस तरह का वार्तालाप चला , " इस गेहूं को कोई कैसे खा सकता है ?"
" ऐसे मत खाया करें भारती जी, ऐसे तो गधे के भी दांत टूट जायेंगे ! गेहूं को पिसाना पड़ता है ! मुझे पिछले साल ही आपको बता देना था "!
" चुप रहो ! मेरा मतलब मिलावट से था !! इतना कंकर पत्थर ! पेट में सड़क बनानी है क्या?"
" हां, इस बार ऊपर से कुछ गलती हुई है "!
'" ऊपर से! तो क्या ये मिलावट ईश्वर कर रहा है?'
" मैंने देखा तो नहीं, लेकिन उसकी मर्ज़ी के बगैर गेहूं के बोरे में कंकर कैसे घुस सकता है "!
" यानि मिलावट का काम तुम्हारा नहीं है ?"
' मै कौन होता हूं ऐसा करने वाला! पर जो भी हो रहा है, वो जनहित और देशहित में ही हो रहा है"!
इतना बड़ा ज्ञान संभालना मुश्किल था, मैंने बड़ी मुश्किल से अपने आप को गिरने से संभाला ," गेहूं की मिलावट से होने वाला जनहित और देशहित मुझे क्यों नहीं नजर आ रहा !"
" बताता हूं, आबादी बढ़ रही है, खेत सिमट रहे हैं, किसान कर्ज़ लेकर खुदकुशी कर रहे हैं! खेत सिमटेगे तो उसका असर गेहूं की पैदावार पर होगा ! कब तक गेहूं इस आबादी को अकेले रोकेगा ! हमने गेहूं का साथ देने के लिए गेहूं के साथ साथ कंकर उतार दिया "!
" उससे तो आंतें ख़राब होंगी!"
" शुरू में होंगी, बट, धीरे धीरे आंते कंकर पत्थर पचाने में आत्मनिर्भर हो जाएंगी ! जिस दिन ऐसा हुआ, खाद्य संकट खत्म ! सोचो, हमे देखकर पहाड़ भी कांपने लगेगा। चीन जैसे बदमाश देश ने हमे फर्जी चावल, नकली मुर्गी का अंडा और ना जाने क्या क्या हजम कराया है ! लानत भेजो विदेशी प्रोडक्ट पर ! लोकल के लिए वोकल होना सीखो ! शपथ लो, कि अगले महीने आप फिफ्टी फिफ्टी वाला गेहूं घर लेे जाएंगे "
तब से मैं गेहूं की बोरी के सामने अगरबत्ती लिए बैठा हूं !
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