अपने देश की राष्ट्र भाषा "हिन्दी" है , इसका पता दो दिन पहले मुझे तब लगा जब मै अपने बैंक गया था! आत्मनिर्भर होने के एक कुपोषित प्रयास में मुझे अकाउंट से तीन सौ रुपया निकालना था। बैंक के गेट पर ही मुझे पता चल गया कि देश की राष्ट्रभाषा हिन्दी है ! गेट पर एक बैनर लगा था, ' हिंदी में काम करना बहुत आसान! हिंदी में खाते का संचालन बहुत आसान है! हिंदी अपनाएं ! हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है"!
अंदर सारा काम अंग्रेजी में चल रहा था! मैंने मैडम को विथड्राल फॉर्म देते हुए कहा," सो सॉरी, मैंने अंग्रेजी में भर दिया है !" उन्होंने घबरा कर विदड्रॉल फॉर्म को उलट पलट कर देखा, फिर मुस्करा कर बोली,' थैंक्स गॉड! मैंने समझा हिंदी में हैै ! दरअसल वो क्या है कि माई हिंदी इज सो वीक "!
'" लेकिन बैंक तो हिंदी पखवाड़ा मना रहा है ?"
" तो क्या हुआ ! सिगरेट के पैकेट पर भी लिखा होता है, -स्मोकिंग इज़ इंजरस टू हेल्थ ! लेकिन लोग पीते है ना "!
लॉजिक समझ में आ चुका था ! सरकारी बाबू लोग अंग्रेजी को सिगरेट समझ कर पी रहे थे, जिगर मा बड़ी आग है ! ये आग भी नासपीटी इंसान का पीछा नहीं छोड़ती! शादी से पहले इश्क के आग में जिगर जलता है और शादी के बाद जिंदगी भर धुंआ देता रहता है ! अमीर की आंख हो या गरीब की आंत ! हर जगह आग का असर है। सबसे ज़्यादा सुशील, सहृदय और सज्जन समझा जाने वाला साहित्यकार भी आग लिए बैठा है ! लेखक को इस हकीकत का पता था, तभी उसने गाना लिखा था, " बीड़ी जलइले जिगर से पिया ! जिगर मा बड़ी आग है "! आजकल जिगर की इस आग को थूकने की बेहतरीन जगह है - सोशल मीडिया -! (कुछ ने तो बाकायदा सोशल मीडिया को टायलेट ही समझ लिया है, कुछ भी हग देते हैं !) साहित्यकार और सरकारी संस्थान न हों तो कभी न पता चले कि- हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है-! वो बैनर न लगाएं तो हमें कभी पता न चले कि अंग्रेज़ी द्वारा सजा काट रही हिंदी को पैरोल पर बाहर लाने का महीना आ गया है !
अंग्रेजी अजगर की तरह हिंदी को धीरे धीरे निगल रही है, और सरकार राष्ट्रभाषा के लिए साल का एक महीना ( सितंबर) देकर आश्वस्त है ! देश में शायद ही कोई एक विभाग होगा जिसका सारा काम अंग्रेज़ी के बगैर हो रहा हो, मगर ऐसे हजारों महकमे हैं, जो हिंदी के बगैर डकार मार रहे हैं! सितंबर आते ही ऐसे संस्थान विभाग को आदेश जारी करते हैं, -' बिल्डिंग के आगे पीछे - ' हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है ' - का बैनर लगवा दो ! एक महीने की तो बात है - ! हंसते हंसते कट जाए रस्ते - यू नो !'
सितंबर की बयार आते ही मरणासन्न हिंदी साहित्यकार का ऑक्सीजन लेवल नॉर्मल हो जाता है ! कवि कोरोना पर लिखी अपनी नई कविता गुनगुनाने लगता है - ' तुम पास आए, कवि सम्मेलन गंवाए ! अब तो मेरा दिल हंसता न रोता है ! आटे का कनस्तर देख कुछ कुछ होता है -' ! मुहल्ले का एक और कवि छत पर खड़ा अपनी नई कविता का ताना बाना बुन ही रहा था कि सामने की छत पर सूख रहे कपड़ों को उतारने के लिए एक युवती नज़र आई ! बस उसकी कविता की दिशा और दशा संक्रमित हो गई ! अब थीम में कोरोना भी था और कामिनी भी ! इस सिचुएशन में निकली कविता में दोनों का छायावाद टपक रहा था, - कहां चल दिए इधर तो आओ - मेरे पेशेंस को न आजमाओ ! एक डोज से क्या होता है - अगली डोज भी देकर जाओ ' !!
अपने बच्चों को इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ाने वाले हिंदी के अध्यापक 'बुद्धिलाल' जी क्लॉस में छात्रों को शिक्षा दे रहे हैं, - ' हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है, आओ इसे विश्वभाषा बनाएं ! रमेश ! गेट आउट फ्रॉम द क्लास ! नींद आ रही है, सुबह ब्रेकफास्ट नहीं लिया था क्या ! यू आर फायर्ड फ्रॉम द क्लॉस ! नॉनसेंस !!" (अंग्रेज़ी बेताल बनकर हिंदी की पीठ पर सवार है!)
राष्ट्रभाषा हिन्दी का ज़िक्र चल रहा है ! सरकारी प्रतिष्ठान जिस हिंदी के प्रचार प्रसार की मलाई सालों साल चाटते हैं, उन में ज़्यादातर परिवारों के बच्चे अंग्रेजी मीडियम स्कूल में पढ़ते हैं ! हिंदी को व्यापक पैमाने पर रोटी रोज़ी का विकल्प बनाने की कंक्रीट योजना का अभाव है ! लिहाज़ा हिंदीभाषी ही सबसे ज़्यादा पीड़ित हैं। सरकारी प्रतिष्ठान सितंबर में हिंदी पखवाड़ा मना कर बैनर वापस आलमारी में रख देते हैं ! अगले साल सितंबर में वृद्धाश्रम से दुबारा लाएंगे !
ऐ हिंदी ! पंद्रह दिन बहुत हैं, ग्यारह महीने सब्र कर ! अगले बरस तेरी चूनर को "धानी" कर देंगे!
( सुलतान भारती )
As always amazing words
ReplyDeleteLajwab vyang rachna. Hindi bhasha ki durdasha par sarkar sirf dikhane ke prayas krti hai.Is natak ko lekhak ne benakaab kr diya .
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