Wednesday, 30 September 2020

" इश्क कमीना"!

          मुझे सचमुच नहीं मालूम था कि इश्क और गिरगिट में इतनी समानता होती है!अब देखिए ना, सतयुग में जो इश्क "इबादत" हुआ करता था, कलियुग में रंग बदल कर "कमीना" हो गया ! इश्क  का इतना अवमूल्यन तो भारतीय रुपये का भी नहीं हुआ ! पूजा,और इबादत से फिसलकर इश्क जीडीपी की तरह गिर गया ! ये प्यार मुहब्बत में संक्रमण की पहली शुरुआत थी !  इश्क मेें कमीनापन और रिश्तों में बाज़ारवाद उतार कर इश्क का वायरस समाज से कहता है , " आ गले लग जा "! इश्क का कमीना वायरस  कोरोना से ज्यादा स्पीड से इन्फेक्शन फैलाता है। इस इन्फेक्शन से पीड़ित जीव अपनी खाल नोचकर खुजली जैसे आनंद की अनुभूति पाता है ! ( वैसे, आजकल के आशिकों के इश्क और खुजली में कोई खास फ़र्क नहीं होता !)
      सतयुग बीता कलियुग आया ! जब सभ्यता गुफा युग से निकल कर एवरेस्ट पर चढ़ रही थी और डार्विन चच्चा बंदरों को पूंछ डिलीट करते और इंसान होते देख रहे थे, तब इश्क सात्विक हुआ करता था ! साइंस और सभ्यता ने इश्क को कमीना बनाने में कामयाब पहल की है ! साइंस ने तेज़ाब दिया और सभ्यता ने गर्लफ्रेंड का कॉन्सेप्ट ! लिविंग रिलेशनशिप की आज़ादी ने इश्क में प्रदूषण फैलाने वाले कमीनो को ऑक्सीजन दे दिया ! इसके बाद तो मुहब्बत के 72 टुकड़े होने ही थे! ( ऐसे आशिकों के भी 100 टुकड़े होने चाहिए ! ) कैसे कैसे गानों ने जन्म लिया है, - मुश्किल  कर  दे  जीना  इश्क कमीना -! अरे भैया काहे आग में हाथ डालते हैं! कमीने इश्क़ से दूर रहिए न ! काहे इश्क के चूल्हे में दिल को उपले की तरह सुलगाते हैं ! आप तो - जान  जले  जिया  जले - जैसी हालत में हैं ! आपको इश्क नहीं, बर्नाल की ज़रूरत है-!

       इश्क आखिर है क्या ? इस बारे में विद्वानों और भुक्तभोगियों की एक राय नहीं है!  जाकी रही भावना जैसी  वाला मामला है। सरमद का इश्क हकीकी था, सरमद की खाल खींची गई। किसी ने इश्क को आग का दरिया बताया तो किसी ने गुड़ भरी हसिया ! आज का आशिक लैला मजनू, शीरीन फरहाद और हीर रांझा को इश्क का लीजेंड तो मानता है पर कुर्बानी को अवॉयड करता है ! ये शातिर आशिक़ कुर्बानी वाले कालम में कामिनी लिख देते हैं ! इश्क कमीना हो जाए  तो आशिक के हरामीपन की सहज कल्पना की जा सकती है ! इस गाने ने हरामीपन को काफी प्रमोट किया है ! चरित्र की नई गाइड लाइन और चरित्र निर्माण का वर्तमान सेंटर बॉलीवुड है ! उनका परोसा हुआ यूनिफॉर्म सिविल कोड और कल्चर ही युवा पीढ़ी को भाता है! अब खुलेपन का रोना काहे रोते हो ! मन मंदिर में ऐसे 'आदर्श' होंगे तो पैदा होने वाला  'इश्क कमीना' ही होगा ! 
               आशिक के इश्क में कमीनेपन  का टपकना था कि फिल्मों में गीत का मुखड़ा बदल गया ! पहले इश्क का इज़हार करते हुए आशिक कितनी तहज़ब  के साथ फरियाद करता था,- ' तेरे प्यार का आसरा चाहता हूं ''-! आज के आशिक़ के पास इजहारे इश्क के लिए इतना फालतू वक्त नहीं है ! वो तो माशूका के मामले में भी आत्मनिर्भर  है ! उसके गुल्लक में तीन तीन गर्लफ्रैंड  हैं। वो प्रेमिका से डायरेक्ट कहता है " दे दे प्यार दे, प्यार दे, प्यार दे दे , हमे प्यार दे !" महबूबा धर्मसंकट में है, दरअसल घर से आते वक्त जल्दी में फोन लेकर  आ गई, प्यार वहीं छूट गया !
          इश्क़ थोड़ा और कमीना हुआ तो आशिक राहजनी पर उतारू हो गया । प्रेयसी से  इश्क फरमाने का उसका तरीका बिलकुल राहजनी जैसा है , " चुम्मा चुम्मा दे दे "! ( जितना भी पर्स में है सब दे दे!) कुछ आशिक तो शराफत की आख़िरी सीढ़ी पर खड़े हो जाते हैं, " अब करूंगा गन्दी बात "! पहले इश्क की भट्ठी में तपकर लोग शायर, कवि और लेखक हो जाया करते थे ! अब इश्क़ में कमीना  होकर तेज़ाब डाल देते हैं! आज कल फेसबुकिया इश्क की मण्डी में आशिक कम जेबकतरे ज़्यादा हैं। इनके कट पेस्ट आशिकी में कंक्रीट कम है कमीनापन ज्यादा ।
        विलियम वर्डस्वर्थ के एक कविता की लाइन है, ब्रैव मेन वर्क्स व्हाइल ऑदर स्लीप ( बहादुर लोग तब काम करते रहते हैं, जब बाकी सो जाते हैं)! हर मोहल्ले में ब्रेव मैन रतजगा कर रहे हैैं । जब बाप आटे का कनस्टर घर में रख कर सो जाता है तो युवा बेटा फ़ोन उठाकर दुनियां मुट्ठी में भर लेता है। कॉलोनी का चौकीदार चिलम पीकर सो रहा है ! उसे पता है मोहल्ले के आधा दर्जन कुंआरे युवा फ्रेंड रिक्वेस्ट की वैतरणी में तैर रहे हैं ! चौकीदार अपने स्मार्ट फोन से इलाके के चोर को मैसेज भेज रहा है, - ' साब जी, पांच और सात बजे के बीच में आना ! अभी लौंडे गर्लफ्रेंड के चक्कर में रतजगा कर रहे हैं ! आज रात तक पांच सौ वाला रिचार्ज करा देना, ढाई जीबी वाला पैक-' ! चोर , सबका साथ सबका विकास - पर अमल करता है ! बस अब चोर और चौकीदार दोनो पांच बजे तक सोएंगे और लौंडे रात भर जाग कर पांच बजे सोएंगे !  लौंडे इश्क़ के कमीनेपन में एक और साल गवायेंगे! तब तक चोर की अर्थव्यवस्था थोड़ा और मजबूत हो जाएगी  !

      स्वर्ग से धरती पर झांकते लैला मंजनू इश्क का कमीना पन देख कर सकते मेें हैं! इश्किया लौंडे का  स्मार्टफोन देखकर मजनू को हीनता का अनुभव हो रहा है। गली में जाग रहा चौकीदार का कुत्ता भौंक कर मानो लड़के से कह रहा है, " ओ मेरे बाप ! या तो तू जाग लेे, या मुझे जागने दे! एक मुहल्ले में दो युवा कुत्ते ठीक नहीं होते"!
      

Tuesday, 29 September 2020

" विक्रम और बेताल रिटर्न' " (शेष)

     ( पेड़ से बेताल का शव लेकर आगे बढ़ते ही विक्रम को शपथ देकर बेताल ने मौन रहने पर विवश कर दिया था ! अब बेताल बोल रहा था और विक्रम सुनने पर विवश था! और,,,,अब आगे)

    बेताल कह रहा था , " मुझे बहुत मजा आता है,जब मै अपने मन की बात करता हूं , और आप ना चाहते हुए भी उसे सुनते हैं- बड़े दिनों में खुशी का दिन आया ! आप की जेब में रखा  " दिल धक धक " गुटखे  का पाउच मैंने निकाल लिया है। बुरा मत मानना, पिछले जन्म में बिहार पुलिस में हुआ करता था। ख़ैर, आप को कहानी सुनाता हूं, मगर चेतावनी देता हूं कि बीच में कुछ बोल कर मौन भंग किया तो मै  शव लेकर ऐसे उड़ जाऊंगा, जैसे सतयुग के हाथ से अच्छे दिन के तोते उड़ गए "! 
        विक्रम मन ही मन  गालियां दे रहा था और बेताल एक करेंट कहानी शुरू कर चुका था ," कलियुग को धकेल कर सतयुग आ चुका था! पूरे देश में चारण बधाई गीत गा रहे थे, -  दुख भरे दिन बीते रे भैया सतयुग आयो रे -! लेकिन अभी सतयुग बकैयां बकैया  चलना सीख ही रहा था कि दूध में  "कोरोना" टपक पड़ा!  एक्ट ऑफ गॉड का करिश्मा देखिए , रोगी नज़र आ रहे थे और रोग नदारद ! जैसे जैसे कोरोना मजबूत हो रहा था, उसी रफ्तार से अर्थव्यवस्था मजबूत हो रही थी ।
  दुनिया दंग थी। सडक पर भय को हराकर भूख उतर पड़ी थी। देश के महानगरों को जोड़ने वाली सभी सड़कों पर पैदल चलने का मैराथन शुरू हो गया था। प्रशासन चाहता था कि - सर्वे भवन्तु सुखिन:.,,,,!और जनता सतयुग की भावना को  सम्मान देते हुए बसों को छोड़ कर पैदल चलने में आत्मनिर्भर होने में लगी थी ! चारों ओर हरियाली ही हरियाली नजर आ रही थी ! कोरोना सिर्फ अख़बार, न्यूज़ चैनल, अस्पताल और कबरस्तान में नज़र आ  रहा था।"
                                         थोड़ा रुक कर बेताल फिर शुरू हुआ, " राजन!  देश में कोरोना के बावजूद आत्मनिर्भर होने में किसी तरह की कमी नहीं पाई गई! चोर, गिरह कट , दुकानदार, प्राइवेट डॉक्टर, पुलिस सबको छुट्टा छोड़ दिया गया था। अब कारोबार और बेकारी के बीच  आत्मनिर्भरता भ्रमित होकर खड़ी थी कि जाएं तो जाएं कहां ! और  विपक्ष रामराज पर सवाल उठा रहा था , " हमारे अंगने में तुम्हारा क्या काम है!
               - राजन मेरा सवाल है कि जब एन डी ए के साथ साथ देश के समस्त ऋषि ,मुनि , मीडिया और देवताओं को सतयुग साफ साफ़ नज़र आ रहा है तो विपक्षी दलों को क्यों नहीं नज़र आता ? जवाब जानते हुए भी तुम अगर मौन रहे तो तुम्हारा सर जनता दल की तरह टुकड़े टुकड़े हो जाएगा "!
                 आगे कुआं पीछे खाइं! मजबूर विक्रम को मौन भंग करना पड़ा,-' सियासत में एक पुरानी परंपरा है बेताल ! विपक्ष को कभी सत्तापक्ष का  "विकास" नहीं नज़र आता! हमारे देश के विपक्ष ने ये रूटीन बना लिया है कि सत्ता से बेदखल होते ही वो आंखों पर गांधारी पट्टी बांध लेता है । सत्ता पक्ष की अच्छाई और विकास ना देखने की इस  ' धृतराष्ट्र परंपरा" को बड़ी निष्ठा और लगन से निभाया जाता है! इस काजल की कोठरी में कोई बेदाग नहीं है। मेरा मतलब,,,,, सास भी कभी बहू थी "!
      विक्रम के मौन भंग करते ही बेताल शव के साथ उड़ा और फिर उसी पेड़ की डाल से, फौजदारी के पुराने मुकदमे के फैसले की तरह, लटक गया ! 
  
                                 विक्रम सर पकड़ कर बैठ गए ।  " दिल धक धक" गुटखे की पहली दुकान यहां से तीन किलोमीटर दूर थी।

Sunday, 27 September 2020

"बिक्रम और बेताल रिटर्न"!

         अगस्त 2020 ! रात के डेढ़ बजते ही महाराजा विक्रम महल से बाहर आए ! बाहर घनघोर खामोशी थी, गलियों में कुत्ते तक कवारेंटाइन होकर  कोरोना नियमों का पालन कर रहे थे ! थोड़ी देर पहले ही बारिश हुई थी और अब बादल सोशल दिस्टेंसिंग के बगैर आसमान में चहल कदमी कर रहे थे! महाराजा विक्रम काफ़ी रफ्तार के साथ नगर से जंगल को जाने वाले रास्ते पर आगे बढ़ रहे थे। महारानी के जागने से पहले ही उन्हें वापस महल लौट कर आना था !
                      थोड़ी देर बाद वो घने जंगल के रास्ते श्मशान की ओर बढ़ रहे थे ! विक्रम ने अपने  ' ओप्पो ' चाइनीज़ फ़ोन में टाइम देखा, रात के १.४५ हो चुके थे। आसमान में चांद बादलों के पीछे दुर्भाग्य की तरह मुस्करा रहा था । ओस की बूंदें नेताओं के आश्वासन की तरह टपक रहीं थीं! अंधेरे में जंगली जानवर इस तरह इधर उधर दौड़ रहे थे,जैसे कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल कर युवक पकौड़े का  "ठीया" तलाश रहे हों ! दूर किसी बस्ती में कोई कुत्ता बड़ा इरिटेट होकर भौंक रहा था, जैसे देहात का कोई कुत्ता शहर के कुत्ते से अपने रिश्तेदार का पता पूछ रहा हो !
                     महाराजा विक्रम तेज़ी से आगे बढ़े! अभी वो श्मशान के सामने पहुंचे ही थे कि ठिठक कर रुक गए ! बड़ा खौफनाक मंज़र था ! श्मशान के मेन गेट के सामने चटाई बिछाकर एक शेर बैठा था ! दोनों एक दूसरे को बड़ी देर तक ताडते रहे ! आखिरकार शेर ने मुंह खोला , " काहे नर्भसाए खड़े हो ? डरिए मत, ऊ का है कि अब हम भेजिटरियन हो गया हूं- टोटल शाकाहारी ! हमने तो अपने गुफा के सामने  नोटिस बोर्ड लगा दिया हूं कि  'कृपया गाय, बैल, भैंस, बकरा बकरी सब इहां से दूर जाकर चारा खाएं! चारा,,,,,मतलब घास "!
      महाराजा विक्रम की जान में जान आई, क्योंकि शेर खुद को शाकाहारी बता रहा था। विक्रम ने भोजपुरी बोल रहे शेर से पूछा ," एक्सक्यूज मी सर ! आप गौवंश का शिकार नहीं करते , वो बात समझ में आती है ! भैंस का शिकार नहीं करते, क्योंकि कई बार संख्या बल आप पर भारी पड़ता है ! पर,,,, बकरे के शिकार में क्या खतरा है! बकरे को काहे अवॉयड किया सर ?"
                                                                                           शेर ने माथा पीट लिया, - " कोरोना में एकदम बुडबक  हो गए हो का! सोशल मीडिया नहीं देखते ? आप का चाहते हो, कि हम बकरा का शिकार करूं और हमारा विरोधी लोग मीडिया से मिलकर ऊ बकरे को गाय साबित कर दें! हमरी तो हो गई "माब लिंचिंग" ! यही अनुष्ठान करवाना चाहते हो का ! हम कोई अजूबा वाली बात नहीं कह रहा हूं! ऐसा चमत्कार कई बार हो चुका है ! त्रिफला का चूर्ण है तुम्हारे पास ?"
    " वो क्या करेंगे सर ?"
 " का बताएं, परसो  डिनरवा  में बगैर सत्तू मिलाए चारा खा लिया था, तब से पेट अपसट है! ख़ैर अब आप जाइए, हम योगा करूंगा! आप जाकर कहानी सुनिए! पूरा देश बेताल से कहानी ही सुन रहा है ! रोज नई नई कहानी ! इतने दिन से रोज कहानी सुन रहे हो,पर लगता है कि अभी तक आत्मनिर्भर नहीं हुए ! बहुत ढीले हो! कुछ लेते क्यों नहीं !"
    शर्मिन्दा हो कर विक्रम श्मसान की ओर बढ़ गए जहां चिताएं विपक्ष के अरमानों की तरह जल रही थीं। एक बड़े बृक्ष की ऊंची डाल पर बेताल का शव , सुशांत सिंह राजपूत के संदिग्ध हत्यारे के गिरफ़्तारी के उम्मीद की तरह, लटका हुआ था । विक्रम ने पेड़ के नीचे से बेताल को आवाज़ दी, " तू जीडीपी की तरह नीचे आएगा या बेरोजगारी की तरह मै ऊपर आऊं ?" 
    बेताल रोज़गार की तरह ख़ामोश था ।
                          अब विक्रम पेड़ पर डॉलर की तरह चढ़ा, और बेताल के शव को कंधे पर लाद कर चीन के चरित्र की तरह नीचे आया ! अभी बिक्रम ने मुश्किल से दो चार कदम बढ़ाए थे कि शव में स्थित बेताल बोल पड़ा, " राजन ! तेरा धैर्य मायावती जी की तरह प्रशंसनीय है! जिस निष्ठा, धैर्य और उम्मीद से तू मुझे ढो रहा है, उस तरह तो सतयुग मेंश्रवण कुमार ने अपने मां बाप को भी नहीं ढोया होगा ! ख़ैर, मै तेरी थकावट उतारने के लिए तुझे एक कहानी सुनाता हूं, मगर सावधान राजन ! अगर तुमने कुछ बोल कर मौन भंग किया तो शव लेकर मै वैसे ही उड़ जाऊंगा- जैसे बैंकों की इज्ज़त लूट कर  "विजय माल्या " उड़ गया  !"।       
         ( क्रमश:)
      
      ( मौन होकर कहानी सुनने पर विवश विक्रम को बेताल ने कौन सी कहानी सुनाई ! और,,,,, विक्रम ने उसके प्रश्न का जवाब क्या दिया !  ब्लॉग केअगले लाजवाब एपिसोड में पढ़ना ना भूलें मित्रों !)

Friday, 25 September 2020

" आज की बड़ी खबर "!

      आज की  "बड़ी खबर" ! इतनी बड़ी कि दिमाग़ नाप ना सके। मगर सुनने में, - पिद्दी ना पिद्दी का शोरबा ! आप खबर देख कर सोच रहे हैं - ये कब से बड़ी खबर में आ गई! इधर काफ़ी दिनों से प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया पर ' बड़ी खबर ' का कलेवर बदल गया है ! इस सांचे में ऐसी ऐसी खबरें आ रही हैं कि सुन कर श्रोता सदमे में आकर सोचने लगता है कि मैंने इतनी बड़ी खबर देखी ही क्यों ! कई  "बड़ी खबर " तो इतनी बड़ी हो चुकी हैं कि जून से अब तक खत्म नहीं हो पाईं !
                                            हर चैनल की अपनी  'बड़ी खबर '  है , जो एक बार बड़ी हो गई तो महीनों उसका द इंड नहीं आता ! ऊब कर दर्शक ही कभी कभी टीवी से सन्यास ले लेता है। आप देखो या भाड़ में जाओ, मगर बड़ी खबर आपका पिंड नहीं छोड़ सकती ! सुबह हो गई मामू! कोशिश कर के भी आप सारी रात सोए नहीं! रोज़गार, आत्मनिर्भर होने की तलाश, गरीबी रेखा के नीचे जाता भविष्य, किसान आंदोलन में भ्रमित दिन की शरूआत ! आप बड़ी उम्मीद से सुबह टीवी ऑन करते  हैं, बस,,,फिर उसके बाद चिरागों में रोशनी ना रही।
       स्क्रीन पर एक अतृप्त आत्मा की शक्ल में एंकर नमूदार होता है! वो एक सड़क पर बदहवास सा लगभग दौड़ता हुआ चीख रहा है, - ' आज की सबसे बड़ी खबर, इस वक्त आप देख रहे हैं मुंबई की वो सड़क जिस पर से होकर "गांजा गैंग" की हीरोइन अपनी कार से गुजरने वाली है ! अभी गोवा से आने वाला उनका चार्टर्ड प्लेन वहां से रवाना नहीं हुआ है । तब तक सात आठ घंटे बने रहिए आप हमारे साथ! अभी आप इस सड़क को बनाने वाले ठेकेदार गिट्टीलाल से मिलिए जो खुद सुबह चार बजे से कंबल ओढ़े फुटपाथ पर बैठे हैं कि कब हीरोइन की कार निकलेगी '!
      अगले चैनल पर और  भी  'बड़ी खबर ' आ रही थी ! यहां एंकर ने गांजा को बाकायदा अध्यात्म से जोड़ दिया है। !. गांजा और चरस के गूढ़ रहस्यवाद पर बहस के लिए एक से एक कोलंबस आमंत्रित हैं ! आज की बड़ी बहस का मुद्दा है ,  " गांजा विमर्श"! इस गूढ़ विषय से अध्यात्म की गुठली निकालने के लिए आमंत्रित मुख्य वक्ता हैं , ' बाबा चिलमानंद जी ' ! एंकर सफाई दे रहा था, " गांजा विमर्श" पर बहस कराने के पीछे गांजे का प्रचार नहीं, ड्रग्स का गंभीर विरोध है ! गांजा,चरस दोनों जनहित में कितने अहितकर हैं, इसे बताने के लिए अब बाबा चिलमानंद जी  ज्ञान की गठरी खोलेंगे "!
      बाबा शायद गांजा पर डिप्लोमा लेकर आए थे। उनका गांजा विमर्श आख्यान- भूतो न भविष्य यति था! वो डकार लेे कर बोले, ' महीनों से गांजा गाथा चल रही है, पर किसी को गांजे का गधा बराबर ज्ञान नहीं! मै यूपी का ठहरा ! बचपन से ही देसी गांजा और नेपाली गांजे का अंतर जानता था ! यूं कहें कि गांजा और चिलम के साथ ही खेल कर बड़ा हुआ ! पत्ती में कितना अध्यात्म मिलता है और कली में कितना रहस्यवाद , यें अनाड़ी लोग क्या जाने! मेरे जैसे परम ज्ञानी ही जानते है कि दूसरी फसल के गांजे की कली को चिलम में डाल कर एक टान मारने पर कोरोना सहित तमाम दैहिक दैविक भौतिक रोग से मुक्ति मिल जाती है ! हमारे यूपी में तो एक कहावत है , जो ना पिए गांजे की कली ! उस लौंडे से लौंडिया भली !! कैसी कहीं?'
      बड़ी खबर जारी है ! देश नशा मुक्त हो रहा है! हर चैनल अपने अपने तरीके से सतयुग की संरचना में लगा है। देश कांग्रेस मुक्त ना  सही - नशा मुक्त हो जाए, यही बहुत है! इस महान लक्ष्य में महाराष्ट्र बाधा बन गया । कभी किसी ने सोचा भी न होगा कि देवताओं के देश में इतने गंजेहडी निकल आएंगे ! और,,, फ़िल्म इंडस्ट्री, वहां के लोग तो तीन साल पहले देवताओं के वंशज हुआ करते थे! एक दम से वंशावली बदल गई !

    आंची मुंबई ! सतयुग के लिए तू तो हानिकारक है!!

Wednesday, 23 September 2020

" कहो ना ' चोर ' है !"

"कहो ना चोर है"


                       मेरे गांव में चोर को चोर नहीं कहा जाता ! कैसे कहें- चोर बुरा मान जायेगा ! फिर गांधी जी ने कहा भी है कि बुरा मत मत कहो , बुरा मत सुनो और बुरा मत देखो ! गांव वाले अक्षरशः पालन करते हैं - चोरी करते देख कर लोग आंखों पर गांधारी पट्टी बांध लेते हैं ! चोर को बुरा कहने की जगह पीड़ित की गलती निकालते हैं ! चोर के अतीत और वर्तमान पर कुछ इस तरह अध्यात्म छिड़कते हैं, " वो अगर चोर है तो इसके लिए वो नहीं उसके " हालात" कुसूरवार हैं ! चोर को नहीं हमें उसके हालात की निन्दा करनी चाहिए "! पाप और पापी का ये रहस्यवाद गांव वाले निगल रहे हैं ! अब आगे से जब भी चोरी होगी , चोर की जगह हालात को ढूंढा जाएगा ! अपराध की इस नई नियमावली से सबसे ज्यादा स्थानीय पुलिस वाले  ख़ुश है !
        गांव वाले जानते हैं कि वह चोर है पर संस्कार से मजबूर हैं , चोर को चोर नहीं कह सकते ! चोर को चोर कहने के लिए जो नैतिक साहस चाहिए वो अब ऑउट ऑफ डेट हो चुका है ! उल्टे गांव के लोग चोर से बडे़ सम्मान के साथ पेश आते हैं ! चोर - भय बिन होय न प्रीत - की हकीक़त जानता है ! कई लोग उसके फन से भयभीत होकर इसके पक्के समर्थक बन गए हैं ! उनमें से कई उसके चौपाल में चिलम पीने भी पहुंच जाते हैं !  चोर का जनाधार बढ़ रहा है मगर गांव बट रहा है ! समर्थक उसके पक्ष में चमत्कारी दलील दे रहे हैं, ' वो चोर नहीं दरअसल संत है ! विरोधियों को चोरी नहीं करने दे रहा है इसलिए वो लोग एक संत को चोर कह रहे हैं ! संत के आने के बाद विरोधियों की आपदा बढ़ गई और चोरी करने का अवसर गायब हो गया !"
        चोर का एक और समर्थक आध्यात्म का सहारा ले रहा है , "- हमे चोर से नहीं चोरी से घृणा करना चाहिए ! क्या पता कब चोर का हृदय परिवर्तन हो जाए ! अंगुलिमाल पहले डकैत थे - बाद में संत हो गए ! ये जो चोर और डाकू होते हैं न ! उन्हें " संत" होते देर नहीं लगती ! हमें तो भइया पूरा यकीन है कि सिद्ध प्राप्ति का कठिन मार्ग चोरी और डकैती  से ही निकल कर जाता है ! अपन तो कभी भी उसे चोर नहीं मानते, क्या पता कब चोर और भगवान  दोनों बुरा मान जाएं !" ( भगवान तो मान भी जाते हैं पर चोर की नाराज़गी अफोर्ड नहीं कर सकते ! क्या पता कल आंख खुले तो तो घर " स्वच्छ भारत अभियान " से गुजर चुका हो !)
         गांव के दो चार मुहल्ले अभी भी विरोध में हैं, पर नक्कारखाने में तूती की आवाज कौन सुने ! जबकि अब खुलकर चोर को संत घोषित किया जा रहा है ! सुबह देर से उसके चौपाल में पहुंचा एक समर्थक चोर को सूचना दे रहा है, - " पिछली रात सुकई चाचा के घर में चोर घुसा और सब कुछ लूट लिया ! ग़लती सरासर सुकई की है , उसे आंख खोल कर सोना चाहिए था "! ( काश, सुकई को आंख खोल कर सोने की कला आती!)
       चोर ने मुंह खोला, -" मै तो गांव हित में सोता ही नहीं ! पूरी रात चिंतन, मनन और खनन में बीत जाती है ! ख़ैर, पोलिस भी आई होगी ?"
    "  हां, आई थी और चोरी के जुर्म में सुकई को पकड़ कर थाने ले गई ! दरोगा जी कह रहे थे , " ज़रूर तूने इस गांव के किसी संत को फसाने के लिए अपने घर में चोरी की होगी  ! जब तक जुर्म कबूल नहीं करेगा - छोड़ूंगा नहीं "!
     " किसी संत पर इल्ज़ाम नहीं लगाना चाहिए "!
          " और क्या ! पिछले हफ़ते जगेसर के घर में चोरी हुई और चोर अपनी सीढ़ी छोड़ गया ! पूरे गांव में किसी ने सीढ़ी को नहीं पहचाना कि उसका मालिक कौन है ! दरोगा जी ने तीसरे दिन जगेसर को पीट कर थाने में बंद कर दिया ! शाम होते होते जगेसर ने कबूल कर लिया कि उसी ने अपने घर में चोरी की थी"!
                    कुछ प्रशंसक अब बाकायदा चारण हो गए हैं , हर जगह चोर के शौर्य,सदाचार और सत चित आनंद का गुणगान करते रहते हैं , -" अगर वो कभी चोर था तो वो उसका अतीत था ! वर्तमान में वो संत है- हमें उस पर गर्व करना चाहिए !" चोर को अपने फन पर गर्व है ! कभी कभी वो चोरी और गर्व साथ साथ कर लेता है ! गांव के कुछ चारण तो उसके ' फन ' में भी रहस्यवाद ढूंढ़ रहे हैं ! चाय की गुमटी के पास शाम को एक चारण गांव बालों से कह रहा था ,- " संत और फकीरों की बातें वही जानें !उनके हर काम के पीछे दूरदृष्टि या कोई दिव्य मकसद होता है ! प्रथम दृष्टया जो हमें चोरी लग रही है, वो आत्मनिर्भरता हो सकती है " ! ( जैसे सुकई और जगेसर के दिन फिरे !) गांव वाले बहुमत का रुझान देख कर भी कन्विंस नहीं हो रहे हैं ! ये वो लोग हैं जिन्होंने कई बार रात के अंधेरे में चोर को  " आत्मनिर्भर " होकर लौटते हुए देखा है ! ( उनके मनमंदिर से वो 'दिव्य छवि ' अब तक नहीं उतरी !)
              
            आत्मनिर्भर  " संत"  अब " सरपंच " बनने की ओर अग्रसर है !.मगर गांव का दुर्भाग्य देखिए , कि "संत" की मौजूदगी के बाद भी गांव और गांव वाले ग़रीबी रेखा के नीचे जा रहे हैं !

               ( सुलतान भारती )
             

Sunday, 20 September 2020

" ड्रग " डार्लिंग" और " मासूम सैयां"!

     अपना मीडिया महान ! इतना महान कि अकबर, अशोक और अलेक्ज़ेंडर जैसी महान्  शख्सियत अगर मीडिया के सामने पड़ जाएं तो हीनता  के चलते पानी पानी हो जाएं ! हीनता इस बात की कि उनके "महान" होने का क्या फ़ायदा, अगर उन्हें " गांजे" के बारे में कुछ  नहीं पता ! जीवन अकारथ गया, वह महान बनने के चक्कर में  "चरस" से वंचित रहे ! अब तीनो स्वर्ग में बैठे अपने दुर्लभ "बौद्धिक क्षति" का आकलन करके कह रहे होंगे  " काश , हमारे दौर में भी ये मीडिया होती"!
      दुर्भाग्य से मुझे भी गांजा चरस के बारे में पहले इतना गहरा ज्ञान नहीं था। भांग को तो खैर हमारी आस्था से भी 'एन ओ सी"  मिली हुई है! गांजा और चरस को मै पहले अंडर स्टीमेट कर देता था ! हाई लेवेल के ड्रग के बारे में मै घोर अज्ञानी था। अब कैफियत ये है कि पिछले पंद्रह दिन से  ड्रग के ऊपर बैठी मीडिया की खाप पंचायत देख कर पहली बार मुझे मालूम हुआ कि "गांजा ज्ञान" मै अभी नाबालिग हूं ! ( मेरी जगह कोई हयादार आदमी होता तो अब तक चुल्लू भर पानी में,,,,,,!)
      ड्रग के आभामंडल में तीनों की अपनी अपनी भूमिका देखिए,  'डार्लिंग' अपने निर्दोष और मासूम प्रेमी के लिए ड्रग का जुगाड करती है !  चरित्रवान ब्वॉयफ्रेंड गांजा ज़रूर पीता है लेकिन -  ड्रग्स के सेवन के बावजूद वो निर्मल और निर्दोष है,- ( चंदन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग।) "डार्लिंग" के दबाव में मासूम प्रेमी गांजा पी कर गा रहा है, - मुश्किल कर दे जीना इश्क कमीना !' सारी गलती इश्क के कमीनेपन की है !श्रद्धालु जनता तो कोरोना से लगभग कुंठित हो चुकी बुद्धि के चलते  ये फैसला करने में भी असमर्थ कि  अगर अपने प्रेमी की डिमांड पर ड्रग का जुगाड करने वाली डार्लिंग गुनाहगार है तो गांजा पीने वाला प्रेमी क्यों नहीं ?
     ड्रग पर डमरू बजा रही मीडिया पिछले दो महीने से असली " क़ातिल" को बेनकाब करने में समुद्र मंथन में लगी है,पर अमृत की जगह हलाहल बरामद हो रहा है ! गांजा के साथ डार्लिंग अंदर गई मगर कातिल अब तक बरामद नहीं! प्रेमी गांजा पी कर भी मासूम- और प्रेमिका गांजा खरीद कर ड्रग पैडलर ! बरसे कम्बल भीगे पानी का मौसम देखिए, दानव ही देवता को संस्कार की दीक्षा दे रहे हैं !
       पिछले कुछ दिनों के मीडिया मंथन से मुझे ये यकीन हो गया कि  पृथ्वी पर अगर कहीं "राक्षस" हैं तो सिर्फ  '  महाराष्ट्र' में हैं ! ( पहले नहीं थे, एक दम से धर्म परिवर्तन हुआ है!) अब तो पब्लिक को भी यकीन हो गया है कि जहां जहां राक्षस हैं, वहां वहां "कोरोना" का कलियुग है, जहां  "देवता" सत्ता में हैं, वहां सतयुग है! ख़ास कर महाराष्ट्र के कोरोना के कहर की खबरें सुन सुन कर तो  ऐसा लगने लगा है कि वहां आदमी तो आदमी शायद खुद कोरोना  को  अपनी इज्जत बचाने में दिक्कत आ रही होगी ! ये कोरोना की हिम्मत है जो ऐसे राक्षस राज़ में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है!
          दो दिन से जबलपुर में हूं, मीडिया , रिया और कंगना के ऐतिहासिक संघर्ष से अपडेट नहीं हूं! ये प्रसन्नता का विषय है कि गांजा, चरस, हशीश , हेरोइन जैसे ड्रग्स से महाराष्ट्र मुक्त हो रहा है ! (बाकी देश में ऐसी कोई प्रॉब्लम नहीं है।)  वैसे उद्धव ठाकरे चाहें तो जनहित में इस्तीफा देकर भी वो महाराष्ट्र को  "ड्रग मुक्त" बना सकते हैं! भ्रष्टाचार, अपराध, माफिया और कोरो ना से संपूर्ण मुक्ति के लिए यही रामबाण विकल्प है!

   वैसे,,,, इस विषय में ,- हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है!!
 

Wednesday, 16 September 2020

" क्या आप (दुर्भाग्य से) "लेखक" हैं"!

         आजकल फेसबुक पर प्रकाशकों का झुंड उतरा हुआ है। दर्जनों प्रकाशकों ने सोशल मीडिया पर कंटिया डाल रखी है, - ' मेरी छतरी के नीचे आ जा , क्या सोचे लेखक खड़े खड़े r' लेखक धर्मसंकट में  हैै , दिल चारा खाने से रोक रहा है और अंदर का "छपास रोग" उसे उकसा रहा है -.' चढ़ जा बेटा सूली पर भली करेंगे राम '!
राम की दख़ल के बाद उसने फौरन फ़ैसला कर लिया कि
अब उसे महान लेखक बन जाना चाहिए !
        अब थोड़ा लेखक के दर्द की क्रोनोलोजी समझिए!
वो प्रकाशकों का रेगिस्तान पार कर के आया है ! दुर्भाग्य से अपने लेखक होने का पता उसे शादी के फौरन बाद चला, फिर उसके बाद चिरागों में रोशनी ना रही ! ज़िंदगी के २५वें बरस में बसंत उतरा था और २६ वें में पतझड़ के आसार नजर आ रहे थे! फरवरी में ही बैशाख के पसरने की नौबत आ रही थी ! सबने उसे लेखक होने से बचने की सलाह दी थी मगर , करम गति टारे नाहि टरे !
वो साहित्य जगत का उद्धार करने उतर पड़ा !
                       तो जनाब आपके अंदर प्रतिभा हो या ना हो, आपको बेस्ट सेलर लेखक बनाने वाले प्रकाशक आ चुके हैं।आपके अंदर लेखक होने की छटाक भर प्रतिभा भले ना हो, आप को ये प्रकाशक - हुड़ हुड़ दबंग दबंग - क़िस्म का लेखक बना देंगे ! सोशल मीडिया पर उतरे ये प्रकाशक इतने समाजवादी क़िस्म के हैं कि लेखक बनाने के लिए 'कालिदास और कल्लू मामा " में कोई भेद भाव नहीं मानते ! ( टैलेंट के आधार पर लेखक बने तो क्या बने !)
         फेसबुक पर तख्ती लेकर बैठे ये दिव्य प्रकाशक तुम्हारी पहली किताब को देश और दुनियां के ५००० हज़ार स्टाल पर बेचने को उतारू हैं! ( बेशक लतापत्र लेने के बाद वो २०० किताबें भी ना छापें!) आप के टैलेंट का वज़न पैकेज के भारीपन से तय होगा। जितना बड़ा बैंक बैलेंस इतना बड़ा लेखक ! 
     लेखक और वो भी हिंदी का, करेला और नीम चढ़ा ! एक बार आपने लेखक होने की कमेंटमेंट कर ली तो फिर आप अपने बाप की भी नहीं सुनते ! सोशल मीडिया पर  लाइक औरकॉमेंट बटोर कर हर कोई गलतफहमी के झूले पर झूल रहा है ! वो ६ महीने पोस्ट डालता है, आठवें महीने बुद्धिजीवी होने का मुगालता पाल लेता है। दसवें महीने "विश्व विख्यात" लेखक बनाने के विज्ञापन पर उसकी नजर पड़ती है और १२वें महीने साहित्य के क्षितिज पर एक  अल्पकालिक लेखक जन्म ले लेता है!
                          अब,,,,, लेखक होकर वो और दुखी है। विदेश की कौन कहे देश के किसी कोने से बधाई संदेश नहीं आ रहा है ! उसके टैलेंट की दियासलाई से साहित्य जगत में कहीं आग लगती नज़र नहीं आई ! अब लेखक का गुस्सा ईश्वर पर फूट रहा है , ' दुनियां बनाने वाले काहे को लेखक बनाया "! ताज़ी कैफियत ये है कि फेसबुकिया पब्लिशर्स से लगातार तीन नॉवेल छपवा कर  "अवसर"  से घोर "आपदा" मे आये लेखक ने अभी अभी ईश्वर को अपनी आखिरी इच्छा से अवगत कराने वाला पोस्ट डाला है। _ 

        " अगले जनम मोहे लेखक ना कीजो"!

Tuesday, 15 September 2020

' बीमार होने का बड़प्पन"!

               मेरा मानना है कि बड़े आदमी की हर बात बड़ी होती हैं! छोटा आदमी छींकने में भी उसका मुकाबला नहीं कर सकता! अमूमन आम आदमी नाक से छीकता है, पर बड़े आदमी के ऊपर ऐसी कोई पाबंदी नहीं होती ! वो कहीं से भी छींक सकता है! ग़रीब और शरीफ़ आदमी छींक आने पर घबरा कर इधर उधर देखता है कि कहीं उससे कोई गलती तो नहीं हो गई! बडा आदमी अदा के साथ छींकता है, और फिर आस पास मौजूद लोगों की ओर ऐसे देखता है, गोया छींक कर उसने बड़ा एहसान किया हो । अगर वो ना छीकता तो चीन अब तक जाने कितना अंदर आ जाता ! 
          बड़े आदमी की हर बात बड़ी होती है! उसकी बीमारी के सामने गरीब आदमी के स्वास्थ्य की नाक बहने लगती है! बड़ा आदमी अपने बीमारी का बखान ऐसे करता है कि गरीब आदमी को अपने बीमार ना होने  का गम सताने लगता है! पिछले हफ़ते की बात है,  मै अपने दोस्त कादरी साहब के पास गया। पता चला कि उनके  "अब्बा श्री' की तबीयत ख़राब थी ! मैंने पूछा, - ' हुआ क्या था ?' तब से आज तक मेरा कॉन्फिडेंस नार्मल नहीं हो पाया ! पेशे से बिल्डर कादरी साहब ने बीमारी का बड़प्पन पेश करते हुए कहा ' हार्ट ब्लॉकेज का केस था ! अपोलो हॉस्पिटल में  एसी रूम बुक करवाया था ! बीस लाख का पैकेज था! ऐसे मामलों में भला पैसे का मुंह क्या देखना , यू नो !!" 
          वो बोल रहे थे और मै हीनता से सिकुड़ रहा था। वो खर्च करते हुए पैसे का मुंह नहीं देख रहे थे, और मुझे खर्च करने के लिए पैसे का मुंह देखना मुश्किल हो गया था ! वो बीस लाख खर्च करके भी मुस्करा रहे थे, और मेरी जेब से बीस रुपए भी नहीं गिरे थे फिर भी चेहरे से ऐसा लग रहा - गोया डूबने वाला " टाइटेनिक जहाज़" मेरा ही था ! सारे जहां का दर्द हमारे जिगर में है! मै जानता था कि - साक़िया आज मुझे नींद नहीं आएगी !
      सर्वहारा लोगों ने ही दुनियां की पहली ' लोरी ' की
रचना की होगी ! जब झोपड़ी में पैदा होकर बच्चे ने चांद मांगा होगा ! लेकिन उस लोरी की मार्केटिंग किसी बड़े आदमी ने कि होगी तभी गीत पॉपुलर हुआ होगा। बेशक ९९ प्रतिशत गरीब ही गरीब के काम आता हो, पर गरीब को गरीब कभी पोटेंशियल नहीं नजर आता ! इसलिए वो भीड़ बन कर बगैर चेहरे के फना हो जाता है! 
      बड़े आदमी की बड़ी बात । पैदा होने से लेकर मरने तक वो अपने बड़प्पन का ख़्याल रखता है । सरकारी ठेकेदार अग्रवाल साहब अपने बाप के  "भव्य" अंतिम संस्कार का वर्णन चार दिन बाद अपने मित्रों में कुछ इस तरह कर रहे थे -' पिता जी गांव के आदमी थे, देसी घी बहुत खाते थे ! मैंने कोरोना काल में भी उनकी चिंता पर पांच टीना शुद्ध घी उड़ेला था, पिता जी खुशी खुशी जल गए ! अब ऐसे में पैसे का मुंह क्या देखना! पिता जी कौन सा रोज़ रोज़ मरते हैं"!

              श्मशान दूर था और देसी घी हैसियत से परे , वरना उनके कई मित्र हीनता के चलते वहीं चिता सजा लेते !      ( ये जीना भी कोई जीना है लल्लू !!)

Monday, 14 September 2020

" भाग दौड़ !"

              मै कन्फ्यूज़ हूं , समझ नहीं पा रहा हूं कि भागूं या दौड़ू। संक्रमित बुद्धि वालों को भाग और दौड़ के बीच का अंतर समझ में नहीं आ आ रहा होगा ! सुनने में भागना और दौड़ना एक जैसा लगता है, लेकिन दोनों में ' मालगाड़ी ' और ' रेल गाड़ी' वाला फर्क होता है ! भागना अपनी मर्जी से होता है और दौड़ना सामने वाले की मर्जी से ! कुछ प्राणियों का कन्फ्यूजन इतना प्रगाढ़ होता है कि पूरी ज़िन्दगी ये समझने में खर्च देते हैं, पहले भागें या फिर दौड़ें ! इस कशमकश में ' - कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे , हो जाता है!
       वक्त बदल गया है ! पहले भाग दौड़ करने से घर चल जाता था ! अब भाग दौड़ करने से घर चलने की बजाय घर का गेहूं बिक जाता है। आदमी दिन भर भाग दौड़ कर जेब की आख़री अठन्नी खर्च कर लौट के बुद्धू घर को आ  जाते हैं! भाग दौड़ से भी कुछ आउट पुट निकलता नजर नहीं आता ! ज़िंदगी आश्वासन पर टिक कर रह गई है। विडंबना यह है कि आश्वासन से आटे का कनस्टर नहीं भरता।                                                            मै रोज दस लोगों को फ़ोन करता हूं । पता चलता है कि सभी भाग दौड़ कर रहे हैं। दोपहर तक रोटी रोज़ी के लिए और उसके बाद बिजली के तुगलकी बिल के लिए ! होता कुछ नहीं, काम को कोरोना निगल गया और बिजली के बढ़े हुए बिल के लिए आपका "वोट" ज़िम्मेदार है! तो,,,, कुल मिलाकर कोरो  और आपदा दोनों के लिए आप खुद ज़िम्मेदार हैं !
     मैं भी भाग दौड़ कर रहा हूं। इस शृंखला में दिल्ली की सारी सड़के नाप डाली हैं ! काम तो मिला नहीं, लेकिन अंदर से मिल्खा सिंह होने की फीलिंग आ रही है! कल की भाग दौड़ के लिए यही फीलिंग काफ़ी है। भाग दौड़ के मामले में अब मेरे आत्मनिर्भर  होने की शुरुआत हो चुकी है।

Sunday, 13 September 2020

" हम को ' हिंडी' मांगटा , यू नो !"

    ( "व्यंग्य" भारती )  " हम को हिंडी मांगटा"

अपने देश की राष्ट्र भाषा   "हिन्दी" है , इसका पता दो दिन पहले मुझे तब लगा जब मै अपने बैंक गया था! आत्मनिर्भर होने के एक कुपोषित प्रयास में मुझे अकाउंट से तीन सौ रुपया निकालना था। बैंक के गेट पर ही मुझे पता चल गया कि देश की राष्ट्रभाषा हिन्दी है ! गेट पर एक बैनर लगा था,  ' हिंदी में काम करना बहुत आसान! हिंदी में खाते का संचालन बहुत आसान  है! हिंदी अपनाएं ! हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है"!
      अंदर सारा काम अंग्रेजी में चल रहा था! मैंने मैडम को विथड्राल फॉर्म देते हुए कहा," सो सॉरी, मैंने अंग्रेजी में भर दिया है !" उन्होंने घबरा कर विदड्रॉल फॉर्म को उलट पलट कर देखा, फिर मुस्करा कर बोली,' थैंक्स गॉड! मैंने समझा हिंदी में हैै ! दरअसल वो क्या है कि माई हिंदी इज सो वीक "!
       '" लेकिन बैंक तो हिंदी पखवाड़ा मना रहा है ?" 
         " तो क्या हुआ ! सिगरेट के पैकेट पर भी लिखा होता है, -स्मोकिंग इज़ इंजरस टू हेल्थ ! लेकिन लोग पीते है ना "!  
         लॉजिक समझ में आ चुका था ! सरकारी बाबू लोग अंग्रेजी को सिगरेट समझ कर पी  रहे थे, जिगर मा बड़ी आग है ! ये आग भी नासपीटी इंसान का पीछा नहीं छोड़ती! शादी से पहले इश्क के आग में जिगर जलता है और शादी के बाद जिंदगी भर धुंआ देता रहता है ! अमीर की आंख हो या गरीब की आंत ! हर जगह आग का असर है। सबसे ज़्यादा सुशील, सहृदय और सज्जन समझा जाने वाला साहित्यकार भी आग लिए बैठा है ! लेखक को इस हकीकत का पता था, तभी उसने गाना लिखा था, " बीड़ी जलइले जिगर से पिया ! जिगर मा बड़ी आग है "! आजकल जिगर की इस आग को थूकने की बेहतरीन जगह  है -  सोशल मीडिया -! (कुछ ने तो बाकायदा सोशल मीडिया को टायलेट ही समझ लिया है, कुछ भी हग देते हैं !)  साहित्यकार और सरकारी संस्थान न हों तो कभी न पता चले कि- हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है-! वो बैनर न लगाएं तो हमें कभी पता न चले कि अंग्रेज़ी द्वारा सजा काट रही हिंदी को पैरोल  पर बाहर लाने का महीना आ गया है !
         अंग्रेजी अजगर की तरह हिंदी को धीरे धीरे निगल रही है, और सरकार राष्ट्रभाषा के लिए साल का एक महीना ( सितंबर) देकर आश्वस्त है ! देश में शायद ही कोई एक विभाग होगा जिसका सारा काम अंग्रेज़ी के बगैर हो रहा हो, मगर ऐसे हजारों महकमे हैं, जो हिंदी के बगैर डकार मार रहे हैं! सितंबर आते ही ऐसे संस्थान विभाग को आदेश जारी करते हैं, -' बिल्डिंग के आगे पीछे -  ' हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है ' - का बैनर लगवा दो ! एक महीने की तो बात है - !  हंसते हंसते कट जाए रस्ते - यू नो !'
            सितंबर की बयार आते ही मरणासन्न हिंदी साहित्यकार का ऑक्सीजन लेवल नॉर्मल हो जाता है ! कवि कोरोना पर लिखी अपनी नई कविता गुनगुनाने लगता है - ' तुम पास आए, कवि सम्मेलन गंवाए ! अब तो मेरा दिल हंसता न रोता है ! आटे का कनस्तर देख कुछ कुछ होता है -' ! मुहल्ले का एक और कवि छत पर खड़ा अपनी नई कविता का ताना बाना बुन ही रहा था कि सामने की छत पर सूख रहे कपड़ों को उतारने के लिए एक युवती नज़र आई ! बस उसकी कविता की दिशा और दशा संक्रमित हो गई ! अब थीम में कोरोना भी था और कामिनी भी ! इस सिचुएशन में निकली कविता में दोनों का छायावाद टपक रहा था, - कहां चल दिए इधर तो आओ - मेरे पेशेंस को न आजमाओ ! एक डोज से क्या होता है - अगली डोज भी देकर जाओ ' !!
      अपने बच्चों को इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ाने वाले हिंदी के अध्यापक 'बुद्धिलाल' जी क्लॉस में छात्रों को शिक्षा दे रहे हैं, - ' हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है, आओ इसे विश्वभाषा बनाएं ! रमेश ! गेट आउट फ्रॉम द क्लास ! नींद आ रही है, सुबह ब्रेकफास्ट नहीं लिया था क्या ! यू आर फायर्ड फ्रॉम द क्लॉस ! नॉनसेंस !!" (अंग्रेज़ी बेताल बनकर हिंदी की पीठ पर सवार है!)
           राष्ट्रभाषा हिन्दी का ज़िक्र चल रहा है ! सरकारी प्रतिष्ठान जिस हिंदी के प्रचार प्रसार की मलाई सालों साल चाटते हैं, उन में ज़्यादातर परिवारों के बच्चे अंग्रेजी मीडियम स्कूल में पढ़ते हैं ! हिंदी को व्यापक पैमाने पर रोटी रोज़ी का विकल्प बनाने की कंक्रीट योजना का अभाव है ! लिहाज़ा हिंदीभाषी ही सबसे  ज़्यादा पीड़ित हैं। सरकारी प्रतिष्ठान सितंबर में हिंदी पखवाड़ा मना कर बैनर वापस आलमारी में रख देते हैं ! अगले साल सितंबर में वृद्धाश्रम से दुबारा लाएंगे !

     ऐ हिंदी ! पंद्रह दिन बहुत हैं, ग्यारह महीने सब्र कर ! अगले बरस तेरी चूनर को  "धानी" कर देंगे!

                   ( सुलतान भारती )

Friday, 11 September 2020

" मिलावट के लिए खेद है!"

       आप सोच रहे होंगे, ' कितना हयादार आदमी है जो मिलावट करने के बाद शर्मिन्दा हो रहा है ! इस कोरोना कलियुग में अवतार लेकर भी बेईमानी से संक्रमित नहीं होना चाहता ! मंहगाई और बेकारी छेड़खानी पर उतारू हैं लेकिन ये - इंसाफ की डगर पर बच्चों दिखाओ चल के,- पढ़ कर आया होगा ! भुखमरी से पहले मानेगा नहीं! आप सोच रहे होंगे कि शायद इसे इतिहास में दर्ज होने की बड़ी जल्दी है। कौन है ये !
          परेशान होने की जरूरत नहीं, ये हमारा राशन वाला है, जो मेरे टोकने के बाद शर्मिन्दा होने की नाकाम कोशिश करते हुए कह रहा था, ' मिलावट के लिए खेद है।' दरअसल इस बार के सरकारी राशन की दुकान से जो गेहूं लिया, उसमें गेहूं और कंकर की मिलावट का प्रतिशत 60- 40 का था । उसके बाद देश हित में हम दोनों के बीच कुछ इस तरह का वार्तालाप चला , " इस गेहूं को कोई कैसे खा सकता है ?"
     " ऐसे मत खाया करें भारती जी, ऐसे तो गधे के भी दांत टूट जायेंगे ! गेहूं को पिसाना पड़ता है ! मुझे पिछले साल ही आपको बता देना था "!
     " चुप रहो ! मेरा मतलब मिलावट से था !! इतना कंकर पत्थर ! पेट में सड़क बनानी है क्या?"
          " हां, इस बार ऊपर से कुछ गलती हुई है "!
   '" ऊपर से! तो क्या ये मिलावट ईश्वर कर रहा है?'
 " मैंने देखा तो नहीं, लेकिन उसकी मर्ज़ी के बगैर  गेहूं के बोरे में कंकर कैसे घुस सकता है "! 
   " यानि  मिलावट का काम तुम्हारा नहीं है ?" 
' मै कौन होता हूं ऐसा करने वाला! पर जो भी हो रहा है, वो जनहित और देशहित में ही हो रहा है"!
   इतना बड़ा ज्ञान संभालना मुश्किल था, मैंने बड़ी मुश्किल से अपने आप को गिरने से संभाला ," गेहूं की मिलावट से होने वाला जनहित और देशहित  मुझे क्यों नहीं नजर आ रहा !"
    " बताता हूं, आबादी बढ़ रही है, खेत सिमट रहे हैं, किसान कर्ज़ लेकर खुदकुशी कर रहे हैं! खेत सिमटेगे  तो उसका असर गेहूं की पैदावार पर होगा ! कब तक गेहूं इस आबादी को अकेले रोकेगा ! हमने गेहूं का साथ देने के लिए गेहूं के साथ साथ कंकर उतार दिया "!
   " उससे तो आंतें ख़राब होंगी!"
 " शुरू में होंगी, बट, धीरे धीरे आंते कंकर पत्थर पचाने में आत्मनिर्भर हो जाएंगी ! जिस दिन ऐसा हुआ, खाद्य संकट खत्म ! सोचो, हमे देखकर पहाड़ भी कांपने लगेगा। चीन जैसे बदमाश देश ने हमे फर्जी चावल, नकली मुर्गी का अंडा और ना जाने क्या क्या हजम कराया है ! लानत भेजो विदेशी प्रोडक्ट पर ! लोकल के लिए वोकल होना सीखो ! शपथ लो, कि अगले महीने आप फिफ्टी फिफ्टी वाला गेहूं घर लेे जाएंगे "

               तब से मैं गेहूं की बोरी के सामने अगरबत्ती लिए  बैठा हूं !       

Thursday, 10 September 2020

पाजी पन "उनका" पेशेंस "हमारा"!

          मैंने उसे कई बार समझाया कि - मेरे दिल से दिल्लगी मत कर ! पर उसका दिल है कि मानता नहीं ! अब देखिए ना, वो पाक की तरह पाजीपन से बाज नहीं आता, और मै  हूं कि - धीरज, धरम, मित्र अरु नारी,,,,की
सोच कर रह जाता हूं! वो ना पाजीपन से बाज आ रहा है, ना मैं पेशेंस का पिंड छोड़ रहा हूं ! ( दोनों तरफ़ है आग बराबर लगी हुई!) वो अपने संस्कार से आगे निकल रहा है,मै अपने संस्कार से डंक खा रहा हूं! 
                              वो हमारा पड़ोसी देश है, इसलिए पाजीपन पर उसका कॉपीराइट है , और पेशेंस पर हमारा ! (हमारे सभी पड़ोसी हमारे संस्कार का प्लग चेक करते रहते है! )हैरत ये है कि मार खाकर भी पाजीपन से उनका लगाव दूर नही होता । अब ऐसे में हमारे सामने धर्मसंकट खड़ा हो जाता है कि हम पेशेंस की पूंछ छोड़ें या नहीं ! यही धर्मसंकट सत्ता में बैठे मुखिया को भी होता है ।  ऐसे पाजीपन के मौके पर पहले वाले मुखिया फौरन " कड़े कदम" उठाने की चेतावनी जारी कर देते थे ! ( मगर जाने वो "कड़ा कदम" कहां छुपा कर रखते थे कि उसके उठने से पहले नए पाजीपन की खबर आ जाती थी !)
      शुक्र है कि अब ऐसा नहीं है, पाजीपन का जवाब तो दिया जा रहा है, पर लगता नहीं वो पाजीपन से बाज आ रहा है। दरअसल कई पाजियों ने मिलकर अपना क्लब बना लिया है ! दुनिया को देखता हूं तो लगता है कि  यहां पाजीपन वाले ज़्यादा हैं ! जो जितना बड़ा पाजी, वो उतना बड़ा इज्जतदार! पेशेंस वाला बगैर गलती के पंचायत का फ़ैसला सर माथे लेता है, ' आप उसके मुंह क्यों लगते है, आप तो इज्जतदार आदमी हैं!"(ऐसी दिव्य पंचायत के फ़ैसले से पेशेंस वाले को पहली बार अपने  "इज्ज़तदार"होने पर गुस्सा आता है!)
      गांव में खेत के बटवारे में भी शरीफ और इज्जतदार आदमी पाता कम है खोता ज्यादा है! पाजी आदमी के पास पेशेंस नहीं होता, और पेशेंस वाले के पास पाजी पन ! लेकिन पाजी कभी पेशेंस की तरफ झांकता भी नहीं! उसे अपने पाजीपन का महत्व पता है। वो  पेशेंस, शराफत, इज्ज़त और बढ़िया छवि जैसी दिव्य उपलब्धि नहीं चाहता ! वो मरने के बाद नहीं, जीते जी स्वर्ग चाहता है। अपने पाजी पन की गाढ़ी कमाई से वो ज़मीन, कार, कोठी, जायदाद,  बैलेंस ,और कभी कभी तो पूरा का पूरा बैंक बना लेता है। पेशेंस वाला मोक्ष की चाहत में सपनों का गला घोंटता हुवा जिंदगी की कुपोषित इनिंग पूरी करता है ! ( यहां का नर्क काट लिया, स्वर्ग की राम जाने!)

          (आस पास गौर से देखिए, पेशेंस वालों को परेशान और पाजी लोगों को प्रोग्रेस करते पायेंगे ! अपवाद हो सकता है, पर अपवाद से परिभाषा नहीं बनती मित्र !)

Wednesday, 9 September 2020

" रिया" आउट "कंगना" इन ! ताक धिना धिन् !!

     अब संजय राउत पूछ रहे हैं-  हंगामा है क्यों बरपा ! थोड़ी सी तो  'तोड़ी' है ! पर लग रहा है , गोया ततैया का छत्ता छेड़ दिया है! मीडिया से ये  "अत्याचार" बिलकुल नहीं देखा जा रहा। ( पहली बार ज़िंदगी में बुलडोजर को इतना बड़ा पाप करते देखा है !)रिया के जेल जाने के बाद कोमा में पड़े मीडिया के कैमरे फौरन जागरूक हो कर "बाबर" वाले महाराष्ट्र की ओर दौड़ पड़े ! रिया को फांसी ना मिलने के गम से जूझ रही मीडिया को इस अत्याचारी बुलडोजर ने ऑक्सीजन दे दी!
       अब हर खबर पर पैनी नज़र रखने वाले सारे चैनल झांझ मजीरा बजाने लगे, ' इतना बड़ा अन्याय !' एक बारगी तो हमारे  सुकई चच्चा भी घबरा कर पूछ बैठे ' का भइया ! चीन कौनों दूसरा कीड़ा छोड़ गया  का ?'  मैं क्या जवाब दूं, मैं तो मीडिया का कैरेक्टर और कलिवर दोनों देख कर दंग हूं! पिछले पांच दिन से " गांजा गांजा" इतना जपा, कि करोड़ों बच्चों के समझ में आ गया कि  "गांजा"  भी हीरो हीरोइन की तरह फ़िल्मी चीज़ है ! बड़े ज्ञानी महात्मा बैठे हैं चैनलों पर, गांजे पर कितना ज्ञान रखते हैं ! 
      सच के अलावा इन्हें और किसी चीज से परहेज़ नहीं है। सच के अलावा सब कुछ साफ साफ़ नजर आता है ! सच की सरहद पे खड़े होते ही धृतराष्ट्र हो जाते हैं, या गांधारी पट्टी बांध कर आगे बढ़ते हैं ! इन्हें दिल्ली में हुई मोवलिंचिंग नही नजर आई, मुंबई में बुल्डजर नज़र आ गया ! नज़र तो आना ही था, देश में बुल्डजर चलने वाला इकलौता केस था ! रेगिस्तान में मिला इकलौता पानी का सोता ! हफ्तों डिबेट की खुराक देगा ! तब तक रिया ज़मानत पर बाहर आ जायेगी, और  "गांजे" के अगले चरण का प्रसारण शुरू हो जाएगा!
       इसी बीच हम दबे पांव सबको पछाड़ कर कोरोना में नंबर वन हो जाएंगे और मीडिया को शायद ये बुल्डजर दिखाई भी ना दे!!

Monday, 7 September 2020

" कॉन्फिडेंस" !

           "  कॉन्फिडेंस"       

               मैने सिर्फ़ नाम सुना था पर जानता नहीं था कि कॉन्फिडेंस इतना पॉवरफुल होता है ! वक्त के साथ अक्ल का ताल मेल बिगड़ जाए तो कुंडली में शनि  बैठ जाता है ! कॉन्फिडेंस हो तो ऑक्सीजन लेवल कम होने पर भी बंदा बच जाता है ! पिछले तीन साल से देश  कॉन्फिडेंस से ही चल रहा है !  मै इसकी पॉवर देखकर हैरान हूं  ! खाली पेट डकार मारना सबके बस की बात नहीं ! यहां तो डिलीवरी के १५ दिन बाद ही एलपीजी सिलेंडर संदिग्ध लगने लगता है! सितम देखिए, गैस एजेंसी आपको दोषी ठहरा देती है -" यहां से पूरा सिलेंडर जाता है, आप रेगुलेटर बदलवाएं "!. 
     देश कॉन्फिडेंस से ही चल रहा है ! जिनमें अपार कॉन्फिडेंस है वो चला रहे हैं,और जिनके कॉन्फिडेंस का सिलेंडर खाली है वो चल रहे हैं ! कुछ लोगों का कॉन्फिडेंस बाढ़, भूकंप, सूखा , बर्ड फ्लू जैसी महामारी में ही एक्टिवेट होता है !दरबार श्री  आत्मनिर्भर बनाना चाहते हैं,किंतु  एक्ट ऑफ गॉड रोड़ा बन जाता है ! भगवान का दिया हुआ सब कुछ है देश में, पर जनता को ठीक से जीना नहीं आता, वरना कब की आपदा दूर हो जाती !
    कल पेट भर खाना खा कर डकार लेते हुए  ' वर्मा जी' पड़ोसियों को समझा रहे थे , " सकल पदारथ है जाग मा ही ! कर्महीन नर पावत नाहीं!" पड़ोसियों में कई लोग बेकारी का अज्ञातवास काट रहे  थे, उन्हें वर्मा जी के जेठ में उतरे सावन का " अद्वैतवाद" समझ में ना आया और वो मारपीट पर आमादा हो गए ! तबसे वर्मा जी का कॉन्फिडेंस संक्रमित हुआ पड़ा है !
    खैर, मै कॉन्फिडेंस की बात कर रहा था ! हर आदमी में इसका लेवेल अलग अलग होता है । युवा वर्ग में किसी किसी का कॉन्फिडेंस इतना ज़बरदस्त होता है कि अगर उसे गर्लफ्रेंड के बर्थडे पर गिफ्ट देना हो तो वो सोते हुए अब्बजान की जेब तक काट लेते हैं! उनका कॉन्फिडेंस इतने पर ही नहीं रुकता, वो गर्लफ्रेंड को गिफ्ट देकर अपने विलक्षण कॉन्फिडेंस का सारा श्रेय अब्बा जान को देते हुए गाते भी हैं, -" पापा कहते हैं बड़ा काम कर करेगा "!  ( किया तो!)
        क्या बताऊं, पहले मेरा कॉन्फिडेंस गरीबी रेखा के नीचे हुआ करता था ! कॉन्फिडेंस इतना कुपोषित था कि मैं शरीफ आदमी होकर भी पुलिस को देखकर डर जाता था !  बट गॉन द डेज ! अब बड़ा आत्मनिर्भर क़िस्म का कॉन्फिडेंस रखता हूं! अब तो ऐसा कॉन्फिडेंस है कि पुलिस को देखकर  घबराने की जगह मुस्कराता हूं ! और,,,,मुझे मुस्कराते देख पुलिस वाला घबरा कर सोचने लगता है, ' मुझे देखकर मुस्करा रहा है, शरीफ़ आदमी तो नहीं हो सकता! हो ना हो जेबकतरा या चैन स्नैचर होगा ! दुख भरे दिन बीते र भैया,,,,,,,"!

   ( ऐसे कॉन्फिडेंस के लिए आजकल हिंदी न्यूज चैनल देख रहा हूं !)

Saturday, 5 September 2020

' एक्ट ऑफ गॉड !'

                        अब जाके आया मेरे- बेचैन दिल को करार ! बड़े दिनों बाद  "एक्ट ऑफ गॉड" समझ में आया है ! अभी तक गॉड ही समझ में नहीं आया था एक्ट कहां समझ में आता ! गलती मेरी है , आपदा के कई अवसर पर गॉड ने मेरा दरवाज़  खटखटाया था ,- तेरे द्वार खड़ा भगवान भगत भर ले रे झोली '! मै ये सोच कर घर से बाहर नहीं निकला कि कहीं चौधरी उधारी वसूलने ना आया हो। एक्ट ऑफ गॉड को एक्ट ऑफ चौधरी समझने के फेर में आत्मनिर्भर होने से रह गया! गलती मेरी भी नहीं, आजकल लोग अपने गुनाहों का  ' अंडा' गॉड के घोसले में रखने लगे हैं !
       अब थोड़ा थोड़ा  एक्ट ऑफ गॉड समझ में आया ! पहले जब आबादी और पोल्यूशन कम था तो  ' गॉड' और 'एक्ट ऑफ गॉड' दोनों पृथ्वी पर नज़र आते थे ! अब एक्ट  तो रतौंधी के बावजूद नज़र आता है, मगर गॉड कोरोना  की तरह  अन्तर्ध्यान बना हुआ है। वो ऊपर स्वर्ग में बैठे  भू लोक के लोगों को पाताल लोक के कीड़ों की तरह रेंगते देख कर चिंतित होते रहते हैं! पास खड़े सुर, मुनि, किन्नर,निशाच, देव आदि चारण गीत गाते रहते
हैं,  " दुख भरे दिन बीते रे भैया- सतयुग आयो रे !"
     अगस्त की दुपहरी में सावन नदारद था, पर एक्ट ऑफ गॉड देख कर जनता गांधारी बनी नाच रही थी! ईमानदार देवता गॉड को वास्तु स्थिति से आगाह कर रहे थे ,- सर ! पृथ्वीलोक पर हाहाकार मचा है, पेट में आग जल रही है, और चूल्हे ठंडे होते जा रहे हैं!"
     गॉड के बोलने से पहले ही एक मुंहलगा चारण बोल
पड़ा,- ' पेट की आग को चूल्हे में डालो ! आग को पेट में नहीं , चूल्हे में जलना चाहिए ! आग के लिए चुल्हा सही जगह है ।"
      गॉड ने प्रशंसनीय नज़रों से चारण को देखा !
                 कल्, मेरे कोलोनी में भैंस का तबेला चलाने वाले चौधरी ने मुझसे पूछा, - ' उरे कू सुन भारती ! एक्ट ऑफ गॉड के बारे में तमें कछु पतो सै ?"
        ' बहुत लंबी लिस्ट है, जो भी दुनियां में हो रहा है , सब एक्ट ऑफ गॉड में शामिल है"!
       " मन्नें  के बेरा ! साफ साफ बता !'
"जैसे बाढ़ सूखा भूकंप कोरोना आदि,,,, सब एक्ट ऑफ गॉड की सूची में है! जैसे मेरे ऊपर आठ महीने से दूध की उधारी चढ़ी है,और मै लगातार गिरती जीडीपी के कारण तुम्हें पेमेंट नहीं दे नहीं पा रहा हूं तो उसके लिए मैं नहीं, एक्ट ऑफ गॉड ज़िम्मेदार है"!
    " मै गॉड के धोरे क्यूं जाऊं ! मैं थारी बाइक बेक द्यूं ! इब तो मोय एक्ट ऑफ गॉड के मामले में कछु काडा लग रहो ! दूध  कौ मामलो में एक्ट ऑफ गॉड की बजाय मोय
 एक्ट ऑफ गुरु घंटाल दीखे सै "!
 
  चौधरी भी   कैसा पागल आदमी है!  "एक्ट ऑफ गॉड" को एक्ट ऑफ  ' गुरु घंटाल' बता रहा है !!

Friday, 4 September 2020

" आवाज़ दो कहां हो !"

       .       अब आप सोचोगे कि मैं कोरोना काल में किसे ढूंढ रहा हूं ! ज्ञानी पुरुष अपने अपने हिसाब से कयास लगा रहे होंगे , आत्मनिर्भरता - जी डी पी - अच्छे दिन - नौकरी ,,,! गोली मार भेजे में, असंभव के लिए प्रयास क्यों ? चूल्हे की आग में तीन स्वस्थ आलू डाल दिया है, भुन् जाए तो नमक के साथ खाकर विश्व की गिरती हुई अर्थ व्यवस्था पर चिंता व्यक्त करूंगा ! पेट भरा हो तो दुनियां के प्रति मै एक दम से जागरूक हो जाता हूं ! ( खाद्य संकट पर चिंता व्यक्त करने के लिए घर में आटे का कनस्टर ज़रूरी है !)
                                                 लेकिन आप ये मत सोच लेना कि आलू नमक का सेवन करने के बाद मै समाजवाद लाने का नुस्खा बताऊंगा ! मै तो कुछ और ढूंढ रहा हूं !दरअसल कल मैंने एक फिल्म देखी, जिसमें गांव में जन्म लेने वाले गरीब हीरो ने पीपल के पेड़ के नीचे वाले सिंगल मास्टर स्कूल में पढ़ाई कर गांव के जमींदार ठाकुर और सूदखोर लाला की लंका फूंक दिया ! साथ ही जमींदार की इकलौती कन्या से शादी कर साम्यवाद की झोपड़ी से पूंजीवाद के स्वीमिंग पूल में छलांग लगा दी! ( रिंद के रिंद रहे - हाथ से जन्नत ना गई !)
     बस तभी से गांव के प्रति मेरा नज़रिया  ही बदल गया, और मै देश के नक्शे में वो गांव ढूंढ रहा हूं जो हिंदी फिल्मों में जब तब दिखाया जाता है! अहा, क्या लाजवाब गांव है ! गांव का पनघट और पनघट पे गोरी ! ( इसी गोरी के चलते दर्शक जमींदार और लाला को भी ढाई घंटे सहन कर लेते हैं!) गोरी अचानक घाट से पानी में उतर जाती है और अपनी दर्जन भर निठल्ली सहेलियों के साथ पानी में कबड्डी खेलने लगती है ! ( दर्शकों का दिल हलक में अटका हुआ है।)
  मैं उसी गांव को ढूंढ रहा हूं, जहां गरीब हीरो को जमींदार के अलावा किसी और की बेटी से इश्क ही नहीं होता ! हालांकि उसकी माता जी को  कोविड 19से भी भयानक खांसने की बीमारी है,! हीरो के बचपन में जब उसकी माता जी  खांसती थीं तो मुझे भी यकीन था कि हीरो बड़ा होकर खांसी की दवा ज़रूर लाएगा ! मगर विधवा माता जी का दुर्भाग्य देखिए कि हीरो दवा की जगह इश्क पर फोकस किये बैठा है ! अब ऐसे गैर ज़िम्मेदार, नालायक और निकम्मे हीरो को जमीदार कैसे अपनी बेटी दे दे ! 
   विचित्र गांव है! गेहूं की खड़ी फसल में हीरो हिरोइन गाना गाते हुए इश्क कर रहे हैं और कोई किसान ऑब्जेक्शन भी नहीं करता ! पीपल के नीचे स्कूल चलाने वाले गांधी वादी टीचर जाने किस ग्रह से आए हैं , मैंने उन्हें किसी फिल्म में फीस मांगते या खाना खाते नहीं देखा, फिर भी चेहरे पर आत्म निर्भरता वाली लाली है ! किस जिले में है भैया ये गांव जहां इश्क करना इतना आसान है ! हमारे यूपी के गाओं में किसान अपने नवविवाहित बेटे को भी दिन में  घर के अंदर "इश्क" नही करने देते !
               उस गांव का यारो क्या कहना , जहां सदियों से एक बांध तामीर हो रहा है मगर आजतक बन नहीं पाया ! पता नहीं किसे ठेका दिया है! हर कोई बांध की ओर भागता है, क्योंकि बांध खुड़कशी के लिए बड़ा पोटेंशियल है !  
      ऐसे बांध शायद भविष्य में बहुत सारे बनवाने पड़ें !

Thursday, 3 September 2020

" ये "रिया" "रिया" क्या है"!!

      मैं डायनिंग टेबल के सामने बैठा खाने का इंतजार कर रहा हूं! बेगम किचन में खाना बनाने घुसी हैं वहां उन्होंने तवे के बगल फोन रख दिया है। फ़ोन पर   ' कब्र तक " न्यूज चैनल पर  "देश की एक मात्र खुदकुशी" के ऊपर डिबेट चल रहा है। बेगम पिछले डेढ़ महीने से सुशांत के कातिलों के गिरफ़्रतारी की  तमन्ना में फोन से उम्मीद लगाए बैठी है ।  " कब्र तक" चैनल से उन्हें लगभग रोज भरोसा हो जाता है कि तवे पर अगली रोटी जलने से पहले  सीबीआई   रिया चक्रवर्ती  को फांसी पर चढ़ा देगी ! ( "कब्रतक" चैनल भरोसा दिला रहा है कि उसके पास मुर्दे का एक्सक्लासिव बयान है।)
     आधा घंटा बीत  चुका है, अब भूख ने मेरा पेशेंस कुतरना शुरू कर दिया है !  बीबी के सामने मेरी स्थिति भारतीय विपक्ष की तरह दयनीय है। (कोरोना काल में बेकारी के शिकार पतियों को झेल रही बीवियां वैसे भी खाड़ी युद्ध का बहाना ढूंढ रही हैं।)  अजीब स्थिति है! मुझे रोटी चाहिए , बेगम को रिया की गिरफ़्तारी। मेरा मन रोटी में लगा है और बीबी का रिया चक्रवर्ती में! मेरा दिल और तवे पर पड़ी रोटी , दोनों जल रहे हैं। मै रोटी के लिए आवाज़ देने ही वाला था कि बेगम की आवाज आई," सुनो जी!  ये कलमुही कब तक पकड़ी जायेगी"?
        " मेरे रोटी खाने के बाद शायद पकड़ में आ जाए! भूख की हालत में तो मुझसे दौड़ा भी नहीं जायेगा"!
   बेगम ने फटकारा ," एक लड़का जान से गया  और तुम्हें रोटी की पड़ी है ! कुछ तो शर्म करो !"
   " रोटी जल रही है"!
लेकिन रोटी पूरी तरह जल गई थी ! उन्होंने दूसरी लोई बेल कर तवे पर चढ़ाते हुए पूछा -" पिछले महीने तो ये लड़की कातिल बताई जा रही थी, अब नशा पत्ती वाली  बात क्यों कर रहे हैं?" 
  "मैने पैंतालीस दिन पहले क्या कहा था! यही ना, कि ये खुदकुशी का केस है! दो चार दिन और रोटियां जला लो, फिर यही बात बेहया चैनल वाले भी बोलने लगेंगे"!
     सब्जी रोटी रख कर  बीबी ने आंखें तरेरी -" रोटी और रिया के अलावा भी कुछ याद रहता है "! 
       मैं हैरान था -" मैंने तो रिया चक्रवर्ती का नाम भी नहीं लिया !"
  "वही तो ! क्यों नहीं लेते उसका नाम ? उसके खिलाफ लिखो, उसे अन्दर कराओ - फांसी दिलवाओ "!
 " पहले खाना खा लेने दो! अगली रोटी भी जल रही है "!
मुझे घूरती हुई बेगम किचन में लौट कर फिर  "कब्रतक" 
के डिबेट में असली कातिल को बेनकाब देखने की जुस्तजू में रोटी जलाने में लग गईं !                          और मै सोचने लगा कि आजकल ना जाने कितने पतियों को भूख की हालत में  ' रोटी 'की जगह  " रिया" को निगलना पड़ रहा होगा !  अबे मीडिया के लौंडो ! काहे बग़ैर खमीर के  ' नान ' सेंक रहे हो !!
 


Wednesday, 2 September 2020

" सावधान- आगे " थाना" है!!"

           अब  तक तो मै नार्मल था, लेकिन जैसे ही थाने के बोर्ड पर नजर पड़ी , दिल से आवाज़ आई ,' सावधान आगे थाना है !'
    मैंने हैरान हो कर पूछा " हैै तो हुआ करे , मै कोई चोर या झपटमार तो हूं नहीं ! निहायत शरीफ आदमी  हूं"!
    " तभी तो कह रहा हूं "!
मैं दंग रह गया ," मगर मैंने कोई क्राइम नहीं किया है "?
     " तभी तो कह रहा हूं!"
अब मुझे सचमुच  डर लगने लगा था ! रात अभी शुरू हुई थी और थाना दो सौ मीटर दूर था ! मैंने दिल से पूछा, " जहां तक मुझे याद है, मैंने कभी किसी से लड़ाई तो दूर- गाली गलौज तक नहीं की?"
     " तभी तो कह रहा हूं"!
मेरा गला सूखने लगा , धड़कने ऐसे बढ़ने लगीं गोया मै किसी के गले से चेन खींच कर भाग रहा हूं! मैंने अपने दिल को तसल्ली दी - " मै क्यों घबराऊं! मैंने किसी के गले से चेन भी नहीं खींची ?'
     ' तभी तो कह रहा हूं !" 
"मै स्मगलर, ड्रग डीलर, माफिया या अपराधी नेता भी नहीं हूं ?"
"तभी तो कह रहा हूं!"
           थाना नज़दीक आ रहा था, मै बुरी तरह घबरा चुका था! मुझे खुद अपने ऊपर हैरत थी कि २४ कैरेट शुद्ध शरीफ नागरिक होकर मै भला थाना पुलिस के नाम से इतना क्यों डर रहा हूं ! मैंने अपने दिल से फरियाद की, "  आखिर मै क्यों डरूं ?"
   " तुम भरपूर डर रहे हो, और तुम्हें डरना भी चाहिए ! तुम्हें  ही क्या, हर शरीफ आदमी को डरना चाहिए ! क्योंकि तुम जैसों को हर  वक्त कुछ ना कुछ  "खोनें " का डर लगा रहता है । इस अनजान खौफ ने तुम्हें कीड़ा बना दिया है, जो रीढ़ के बावजूद समाज में रेंग कर जीते हैं ! उनके इस खौफ से असामाजिक तत्वों को ऑक्सीजन और आत्मविश्वास हासिल होता है ! इसके लिए पुलिस नहीं, तुम खुद जिम्मेदार हो; और डरो !"
     " अबे बच्चे की जान लेगा क्या ? " मै चिल्लाया !

   और,,,,,, चिल्लाते है मेरी नींद  खुल गई !

Tuesday, 1 September 2020

" आया ऊंट पहाड़ के नीचे,,,!

एक दिन मिला  "कोरोना" बिलकुल फटेहाल बदहाल!
मैंने    पूछा,  "  कैसे    हो   गए   इतने    खस्ता  हाल !!
इतने     खस्ताहाल !    यतीमी     टपके     तन     से!
हे    "क्रोना कृशकाय" ! भला     आ   रहे   कहां   से "!!

बोला  कोरोना - " एक  'डिबेट ' को  झेल    लिया  है  !
अपने   से    भी  बडा   "कोरोना"   देख    लिया    है !!
उस    दिन   से    "दुख भंजन चूरन"  फांक   रहा  हूं !
भूखा   हूं,  पर  " मोर"   से   बढ़िया   नाच   रहा   हूं !!