Thursday, 21 December 2023

(व्यंग्य चिंतन) फ़िर भी, हैप्पी न्यू ईयर

(व्यंग्य चिंतन)

 फ़िर भी, हैप्पी न्यू ईयर 

          अभी नये साल के  "हैप्पी" होकर आने में कई दिन बक़ाया थे कि 24 दिसंबर को किसी ने दरवाज़ा खटखटाया! मैंने घबराकर  दरवाज़ा खोला तो सामने चौधरी खड़ा था ! मुझे लगभग एक तरफ धकेलते हुए मेरी बेड तक आया औऱ रज़ाई में घुसते हुए बोला, 'घनी ठंढ करवा दी तने ! इब खड़े खड़े के कर रहो,कुर्सी पै बैठ जा- वर्ना ठंढ लग ज्या  गी "!
         " पर  वो तो मेरी रज़ाई है "!
    " वसुधैव कुटुम्बकम  का पालन करने  की जगह रज़ाई के खातर जान दे रहो ! दूजी रज़ाई नो है तेरे धौरे ! कदी तू भी आत्मनिर्भर हो लिया कर !!'
      मैं अंदर से एक औऱ रज़ाई ले आया औऱ सोफ़े पर बैठता  हुआ बोला,- ' बड़ी जल्दी उठ गए !"
     " मैं तुझे चेतावनी देने आया हूं  अक् इस बार मोय - हैप्पी न्यू ईयर- मत कहना "!
      " क्यों "?
 " गए साड़ तूने हैप्पी न्यू ईयर कहा, - खरी, चोकर, भूसा,सबै महंगा हो गयो ! इस बार अपनी काड़ी जुबान पै कंट्रोल रखना ! कदी कोरोना न आ  ज्या दुबारा-"!
      " पर  बीमार तो मैं हुआ था ! तुम्हें तो  ज़ुकाम तक न हुआ -"!
    " नू लगे  अक् तमै भी किसी की हैप्पी न्यू ईयर  लग  गी। पूरे साड़  तुझे हैप्पी न देखा कती, फ़िर काहे का हैप्पी न्यू ईयर ! तूझे आगाह करने आया हूं अक् इस बार अपना हैप्पी अपने धौरे रखना "!
    " इतनी नाराज़गी ठीक नहीं, आखिरकार तू मेरा तीस साल पुराना दोस्त है, हम बने तुम बने इक दूजे के लिए-'!
     "पता नहीं वा कूण सा मनहूस दिन था जिब मैंने तेरे गैल दोस्ती करी, हैप्पी होण कू तरस गयो -'!
        " झूठ ! तीस साल पहले जब तुम आये तो तुम्हारे तबेले में सिर्फ ढाई भैंस थीं, दो भैंस औऱ एक उनका बच्चा ! आज अट्ठाइस भैंसों वाला एक आत्मनिर्भर तबेला है तुम्हारे पास " !!
    'परे कर तबेला ने, अर् नू बता अक यू 'पनौती' कूण सी चीज़ है?"
  " विपक्ष का मनोबल बढ़ाने वाला यह एक ऐसा 'कोरो वॉरियंट'  था, जो क्रिकेट विश्वकप के फाइनल में लॉन्च हुआ औऱ चार राज्यों मे हुए चुनाव परिणाम सुनने के बाद 'वीरगति' को प्राप्त हुआ-" !
    " मैं समझा  को न्या?"
   " पनौती का अर्थ कैसे समझाऊ , यूँ समझ लो कि कमज़ोर,रणछोड़ और सुखद कल्पना में जीने वालों की खोज का नाम है पनौती ! इसकी आड़ में वह अपनी नाकामी को कुछ समय के लिए छुपा लेते हैँ !"
       " पर मोय नू लगे अक् तू मेरी भैंसों के लिये पनौती है"!
          'क्या ऐसा किसी भैंस ने कहा ?'
 ' वो तो शराफत में  कुछ नहीं कहतीं, संस्कारी जो  ठहरी ! पर मैंने भाँप लिया "!
     " क्यूँ नहीं, भैंसों के साथ रहते थोड़ा संस्कार तो तुम्हारे अंदर भी आ गया है"!  
   अचानक चौधरी मुझे घूरता हुआ बोला,- ' इब थारे धौरे भी एकाध बूँद संस्कार बचा हो तो चाय मंगा ले!" 
    तभी मेरा युवा बेटा चाय नमकीन औऱ पकौड़ी लेकर आया और चौधरी को नमस्ते कर मेज पर रख दिया ! चौधरी बोला, -' जीता रह बेटा !' फिर मेरी तरफ घूर कर बोला,-" थोड़ा संस्कार इस बच्चे ते सीख ले भारती -"!
      25 दिसंबर की रात डेढ़ बजे फ़िर किसी ने दरवाज़ा खटखटाया ! दरवाज़ा खोला तो सामने चौधरी की जगह सांता क्लॉज़ खडा था! उसकी हालत देख कर लगता था कि भागता हुआ आ रहा है ! पैंट नुचा हुआ था, एक तरफ की दाढ़ी लटक रही थी , मैंने पूछा,- 'ये क्या हाल बना रखा है, कुछ लेते क्यों नहीं ?' 
     "पूरे चौदह इंजेक्शन लेना पड़ेगा, पर अभी तो कुत्ते पीछे पड़े हैं। मुझे दौड़ा दौड़ा कर काटा है!"
  " अंदर आ कर आराम से बैठो "!
   " रंग बिरंगे कपड़े देख कर कुत्ते नाराज़ हो गए घाव को डेटॉल से धोना पड़ेगा ! जाने उनको नए साल से क्या दुश्मनी है !" 
         ' नये साल से ? '
    " हाँ , इधर से गुजरते देख एक कुत्ते ने भौंक कर मुझे देखा, मैंने उसे हैप्पी न्यू ईयर कह दिया ! गुस्से में वो मेरे पीछे दौड़ पड़ा ! उसके पीछे आधा दर्जन और कुत्ते थे ! शायद वो इलाके का मुखिया था  !"
    बाहर ठंढ और घात में बैठे कुत्ते दोनों थे, सांता वहीं सो गया ! सांता क्लॉज़ जब खर्राटे ले रहा था तो चौधरी ने रज़ाई में छुपा कर रखी बोतल निकाल लिया ! वो 31 तारीख तक और इन्तेज़ार नहीं कर सकता था !  न्यू ईयर के ख़ातिर  उसने 4 दिन पहले ही 2 बोतल 'हैप्पी' का इन्तेजाम कर लिया था ! फ़िर हैप्पी होने में देरी क्यों !!

             हैप्पी न्यू ईयर,,,,, रस्म दुनियां भी मौक़ा भी है- दस्तूर भी है ! और,,,, वैसे भी  जनवरी 2024 को 24  कैरेट 'हैप्पी' करने के लिए सरकार युध्दस्तर पर लगी हुई है ! इस साल को हैप्पी होने से कोई नहीं रोक सकता ! राम मंदिर बनकर तैयार है । सारे चैनल  हैप्पी होकर गा रहे हैं,- "पायो जी मैंने राम रतन धन पायो"-! कुछ मनहूस लोग इसके बाद भी विकास का रोना रो रहे हैं,- ' अबहूं न  आए बालमा सावन बीता जाये-'! नए साल को  सामने देख  विपक्ष हैप्पी होने की जगह आहत होकर कोरस में गा रहा है,- 'जाने कहाँ गए वो दिन,,,,'! 
    जिनकी कुंडली में  'बनवास' पसरा पड़ा हो, उनके लिए  'न्यू ईयर' भला "हैप्पी" कैसे हो सकता है ! ख़ैर,,, एक शे'र मुलाहिजा हो,,,,

झोपड़ी से महल तक आकाश से धरती तलक !
नफ़रतों  का खात्मा हो, "अम्न"  जिन्दाबाद हो !!

           Sultan bharti 
             (Journalist)
      


     
     

Friday, 15 December 2023

दिल्ली के द्वारका में हस्तशिल्पियों का महाकुंभ

दिल्ली के द्वारका में हस्तशिल्पियों का महाकुंभ 

        देश  की जानी मानी गैर सरकारी संस्था "फलाह" द्वारा आयोजित  Craft मेला अभी चार दिन पहले खत्म हुआ है ! वस्त्र मंत्रालय के सहयोग से 8 दिसंबर से 17 दिसंबर 2023 तक चलने वाले इस शिल्प मेले में पूरे देश से हस्तशिल्पियों का आगमन हुआ ! द्वारका के सेक्टर 11 में आयोजित इस विशाल मेले में लगभग 300 हस्तशिल्पियों ने अपने स्टॉल लगाए ! इसमें कई स्टेट और नैशनल अवार्ड पा चुके हस्त शिल्पी भी आए हुए थे !
            10 दिन तक चलने वाले इस मेले में आने वाले हस्त शिल्पी और दर्शकों के मनोरंजन के लिए हर शाम मनोरंजन के विभिन्न कार्यक्रम आयोजित होते रहे ! अंतिम तीन दिन तो गीत संगीत और नृत्य देखने वालों का तांता लगा रहा ! वैसे मनोरंजन के लिहाज से सबसे भव्य आयोजन " फैशन शो" का रहा, जिसमें लगभग देश विदेश की लगभग 80 माडल ने रैम्प पर जलवा बिखेरा!
          मिनिस्ट्री ऑफ textiles के सहयोग से इस तरह के मेले "फलाह" सोसाइटी पूरे देश में मेला आयोजित करती आई है ! एक संक्षिप्त मुलाकात में 'फलाह' के संचालक और जाने माने समाजसेवी  मुहम्मद यामीन खान ने  "राष्ट्रीय  विश्वास"  को बताया - "इस  तरह के मेले में हमारे देश की कला से लोग वाकिफ़ होते हैं ! हस्तशिल्पियों के बनाए माल को एक बड़ा बाजार और मुनाफा मिलता है ! सरकार उन्हें आकर्षक TA और DA भी देती है ! देश की जनता को इन मेलों में सही मायनों में एक "लघु भारत" का दर्शन होता है, और यही हमारे देश की विशेषता और खूबसूरती है "!

Saturday, 2 December 2023

सेवा,साहस और संकल्प-" रमेश बिधूड़ी"

(कवर स्टोरी)         रमेश बिधूड़ी ( भाजपा सांसद)
  सेवा, साहस और संकल्प की कहानी 

          अपने मित्र पत्रकार तबरेज खान के साथ मैं निर्धारित समय पर सुनपत पहुंच गया था! यह दक्षिणी दिल्ली के विश्व विख्यात मुहम्मद बिन तुगलक के एतिहासिक किले से लगा हुआ गाँव तुगलकआबाद  है! जब हम गांव में प्रवेश करते हैं तो विशाल किला हमारी बाईं तरफ नज़र आता है!  10 बजने में अभी 8 मिनट बाकी थे ! अंदर घुसते ही मेरा सामना 5 फीट 8 इंच लंबे एक खूबसूरत और कसरती युवक अनुज चौधरी से होता है ! मैं तबरेज के साथ अंदर के विशेष कमरे में बैठ जाता हूँ  ! अपनी अपनी समस्या लेकर आने वालो का तांता लगा है ! ये नज़ारा पिछले 30 सालों से  ऐसा ही है ! यहां पर हर दिन कोई न कोई चैनल वाले बैठे ही रहते हैं ! तीन दिन की लगातार कोशिश के बाद आज सांसद जी ने वक़्त दिया था ! दरअसल जनसेवा के आगे वो किसी भी चीज़ को कभी प्राथमिकता नहीं देते !
        एक घंटे लगातार जन शिकायतों के निवारण के बाद वो हाल में आकर कुर्सी पर बैठते ही बोलते हैं,- " भारती जी,  क्षेत्र में जाना है, पांच मिनट दे पाऊँगा बस-"!  और,,,, मैंने बगैर ताखीर के पहला सवाल दाग दिया----

     --- पांच राज्यों में मतदान और अब मतगणना का परिणाम आ गया!  इसका कितना असर लोकसभा चुनाव पर पड़ेगा-?
     " दोनों के मुद्दे अलग होते हैं! दिल्ली के चुनाव को  देख लीजिए! केजरीवाल की पार्टी अच्छे मार्जिन से  दिल्ली की सत्ता में है लेकिन लोकसभा चुनाव में दिल्ली के अंदर इनका खाता भी नहीं खुलता! स्टेट इलेक्शन और जनरल इलेक्शन में बड़ा फर्क होता।लोकसभा चुनाव में मोदी जी का चेहरा और उनके काम होते हैं, जिनसे देश की जनता दस साल से लाभान्वित हो रही है! विपक्ष के पास न ऐसा चेहरा है  न विकास का प्रमाण !और  शायद विकास की नीयत भी नहीं है "!

--- दिल्ली में केजरीवाल को चुनने वाली जनता लोक सभा में भाजपा को चुन लेती है! अब तो दिल्ली नगर निगम पर भी  "आप" का कब्जा है-?

   " आप को ये भी याद रखना चाहिए कि दिल्ली नगर निगम में लगातार  15 साल  भाजपा रही, कांग्रेस भी रही! अब अपने असंभव और झूठे वादों की बदौलत केजरीवाल की पार्टी बैठी है!  पांच सौ स्कूल बनाने का वादा किया, पचास भी नहीं बना पाए! जनता ने पहचान लिया है! झूठ बोलकर ज्यादा दिन तक जनता को बेवक़ूफ़ नहीं बना सकते-"!

-----' 2014 और  2019 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष विभाजित था,उनका कोई एक संयुक्त और सशक्त उम्मीदवार नहीं था ! मगर इस बार एनडीए के सामने 'इंडिया' का प्रत्याशी खड़ा मिलेगा! क्या ये एक मुश्किल चुनौती नहीं होगी-"?
       " देखिये, 2014 का आम चुनाव हो या 2019 का! मैं बिल्कुल स्पष्ट कर दूँ कि अगर जनता ने  पौने चार लाख वोटों से मुझे जिताया तो वो वोट जनता ने मोदी जी को दिया, उसमें रमेश बिधूड़ी की तारीफ़ नहीं है ! मोदी जी के नाम और काम का वही तिलिस्म इस बार भी घमंडिया गठबंधन पर बहुत भारी पड़ेगा! मोदी जी की कल्याणकारी योजनाएं हर सम्प्रदाय और व्यक्ति के लिए हैं! उनका लक्ष्य तुष्टिकरण नहीं विकास है ! ये बात अब मुसलामान भी समझ चुका है, इसलिए वो भी मोदी जी से जुड़ रहा है-"

-----' भाजपा का सबसे लोकप्रिय नारा है, सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास ! लेकिन जब चुनाव होता है तो उम्मीदवारों की सूची में मुसलमान का नाम नहीं होता - ये कैसा विश्वास है?"
     " ऐसा नहीं है, पिछले दिल्ली विधानसभा चुनाव में हम ने ओखला सीट पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारा था, पता है उसका क्या हस्र हुआ ! जमानत भी नहीं बची! मुसलामान ही उस  मुसलामान का  सपोर्ट नहीं करता,  जिसे भाजपा ने टिकट देकर उतारा हो ! इसके बावजूद बीजेपी विकास के मामले में मुस्लिमों से कोई भेदभाव नहीं करती !राष्ट्रवादीऔर प्रबुद्ध मुस्लिम अब धीरे धीरे हमारी पार्टी में आ रहे हैं ! विश्वास की ताली दोनों हाथ से बजती है-"!

----' आने वाले लोकसभा चुनाव 2024 में एनडीए  का मुकाबला एक संगठित गठबंधन " इंडिया"के उम्मीदवार से होने वाला है, क्या कहेंगे-?"
       ( गंभीर होकर)- " उसे इन्डिया मत कहें ! सिर्फ कह देने से वो इन्डिया नहीं हो जाता ! रह गया उनके उम्मीदवार की बात, तो  चार राज्यों में हुए चुनाव परिणाम कल देख लेना! मैं जमीनी हकीकत देख कर आया हूँ! जनता ने आईना दिखा दिया है! वो इन्डिया नहीं घमंडिया गठबंधन है! जनता को बातों से कब तक बेवक़ूफ़ बताओगे"!

,,,,,'   'आप' का आरोप है कि केजरीवाल की बढ़ती लोकप्रियता से घबराकर उनके नेताओ को जेल में डाला जा रहा है?'
  " गिरफतार लोगों के आरोप पत्र के साथ सबूतों की फेहरिश्त भी है! पार्टी की बात छोड़िए, जनता भी नहीं चाहती कि  उसके विकास का पैसा भ्रस्ट नेताओं की जेब में जाए ! जुर्म साबित होने के बाद भी मुज़रिम पर हाथ क्यों न डाला जाए! आखिर  पुलिस, 'ई डी',एसआईटी, सीबीआई जैसी एजेंसी किस लिए हैं ?  जैसी करनी वैसी भरनी- !'

,,,,,,' देश में  "विकसित भारत संकल्प यात्रा" चल रही है, जिसका समापन राम मंदिर के उद्धाटन के आसपास होगा ! जब इस तरह की यात्रा चलती है  तो कई बार संवेदनशील क्षेत्रों में तनाव फैल जाता है, अथवा  'मस्जिद से पथराव' के बाद दंगा हो जाता है! आखिर इस यात्रा से जनता को क्या हासिल होगा?' 
        " इसे यात्रा का नाम दिया गया है, लेकिन ये यात्रा नहीं है! ये  जनहित में शुरू की गई ज़न जागरण अभियान है! इस अभियान में जरूरत मंद लोगों की मुश्किलों को उनके दरवाज़े पहुंच कर हल किया जा रहा है, बजाय इसके कि जनता कार्यालयों के चक्कर काटे! सभी संबंधित अधिकारी  डीएम SDM आदि इलाके में आकर जनता की सेवा कर रहे हैं! उज्जवला योजना के लाभार्थी को मौके पर ही  गैस कनेक्शन मिल रहा है ! लोन वाले को लोन दिया जा रहा है,वहीं पर उसका आधार कार्ड बन रहा है! जीवन सुरक्षा के अंतर्गत बेटियों का बीमा हो रहा है, वहीं मौके पर ही श्रमिक कार्ड बन रहा है! ताकि जानकारी के अभाव में दर दर भटकती जनता को उसी के दरवाज़े सेवा दी जा सके -'!

,,,,,' अगले साल लोकसभा चुनाव है, एनडीए बनाम इंडिया! कैसा रहेगा रिजल्ट '?
      " 2014 में मोदी जी के नेतृत्व में 282 सीट आयी थी, 2019 में  303 सीट आई थी,इस 2024 में बार साढ़े तीन सौ से चार सौ सीट आएगी  ! लिख लीजिए, राजस्थान, मध्यप्रदेश और दिल्ली में विपक्षी गठबंधन को एक भी सीट नहीं मिलेगी "!

,,,,,,' आपके शुभचिंतकों और पारिवारिक सूत्रों से मिली जानकारी से आपके दिनचर्या की जो जानकारी मिलती रही है, वो किसी को भी हैरत में डाल सकती है ! एक बजे के बाद सोना और सुबह चार बजे उठ जाना ! ऐसी कठिन रुटीन में पिछले तीस साल कैसे निकले ! बहुत कठिन है डगर पनघट की '?
    ( थोड़ी देर के लिए अतीत में खोने के बाद वो मुहं खोलते हैं -)  " जनसेवा खानदानी विरासत है हमारी ! कभी आजतक बच्चों के साथ दो दिन भी दिल्ली से बाहर नहीं बिताया ! फिर भी परिवार ने बहुत मॉरल सपोर्ट किया! जब हमारे नेता आदरणीय मोदी जी सारा वक़्त राष्ट्र सेवा में दे रहे हैं तो हमें भी सेवा के उसी पथ पर सतत चलते रहना है! अब तो इसी अग्निपथ पर  मुझे आनंद और संतुष्टि मिलती है-"!
    इंटरव्यू खत्म हो चुका था ! वो उठे और जनसेवा के नियमित कर्त्तव्य पथ पर चले गए! 
       दो गाड़ियां एमबी रोड की ओर बढ़ रही थीं, और,,,,मेरे दिमाग में रह रह कर एक शे'र गूंज रहा था,,,,,

कोई तन्हा मुसाफिर कारवाँ बन जाता है जिस दिन!
उसी  दिन  मुश्किलों  के  हौसले  भी  टूट  जाते हैं!!

           ( Sultan bharti journalist)




Wednesday, 1 November 2023

(व्यंग्य चिंतन) " फिर भी नेता मुस्कराता है"!

"व्यंग्य चिंतन "

'फिर भी,,, नेता मुस्कराता है'!

     आज सुबह ही सुबह टीवी पर न्यूज देखा , एक  महान नेता मुस्कराता हुआ हाथ हिला रहा था! मैंने समझा चुनाव जीता है, मगर न्यूज रीडर बता रहा था  कि सैकड़ों करोड़ रुपये के घोटाले में ई डी ने सम्मन जारी किया है,और जांच एजेंसी चाहती है कि  आरोपी जांच में सहयोग करे ! ( आरोपी भी "अपने खिलाफ जांच' में सहयोग करते हैं"- ये ज्ञान मुझे स्तब्ध कर रहा था ! )  एजेंसी की जांच शायद आरोपी के सहयोग के बगैर आत्मनिर्भर नहीं हो पा रही थी ! शायद इसीलिए नेता मुस्करा रहा था। 

       आम आदमी और खास आदमी में यही  तो फर्क है! जेल की कल्पना मात्र से आम आदमी के प्राण सूख जाते हैं! प्राणी मुस्कराने की जगह रुआँसा हो जाता है! लेकिन सत्ता का सूप पी रहा "खास" आदमी"  जेल  की कल्पना मात्र से मुस्कराने लगता है! जांच एजेंसी उसकी जांच से  पहले उससे विनम्र निवेदन करती है कि  वो जांच में सहयोग करे !  'जांच में सहयोग' बड़ा  बहुआयामी शब्द है ! किसी छोटे मोटे गरीब या कुपोषित चोर, गिरहकट अथवा झपटमार से जांच में  सहयोग की अपील नहीं की जाती,बल्कि कुछ ऐसे केस मे भी उसे नत्थी कर दिया जाता है कि चोर खुद से सवाल पूछने लगता है, - ' वो चोरी मैंने कब की थी! क्या मुझे नींद में चोरी करने की बीमारी है' ? पुलिस उससे जांच में सहयोग की बजाय "पिटने" में सहयोग की मांग करती है! छोटी चोरी पर ज्यादा पिटना बेचारे का मुकद्दर है!
        न्यूज चौधरी ने भी देखा था ! आरोपी नेता को मुस्कराते देख चौधरी भी हैरान था ! उसने अपनी  हैरत  मुझ  से शेयर की,- ' उरे कू सुन भारती !'
      ' जी भाई!' 
 " टीवी वाड़ा नेता कौ बारे में नू कह रहो अक वा पै घोटाले कौ इल्ज़ाम सै , पर नेता घबराने की बजाय मुस्कराता हुआ हाथ हिला रहो -!'
     ' तुम इतने हैरान क्यों हो?'
     " उसकू डर न लग रहो कदी !"
          " क्यों डरे ! वो कोई शरीफ आदमी है क्या जो थाना पुलिस से डर जाए ! अव्वल तो अभी जांच जारी है! अगर जांच में दोषी साबित भी हो  गये तो भी चिंता की कोई बात नहीं है-'!
   ' पुड़िस पकड़ लेगी '!
   '  पुलिस चोर , गिरहकट और  शरीफ को पकड़ने के लिए है, इतने बड़े चोर को पकड़ने के लिए उनकी 'आत्मा'  तैयार नहीं होती ! नीरव मोदी से लेकर विजय माल्या तक कोई गिरफतार हुआ ?'
      " मन्ने के  बेरा ?"
     " कोई नहीं पकड़ा गया !"
            ' लेकिन क्यूँ-''!
     " क्योंकि  वो चोर नहीं डॉन  हैं ! और  डॉन के बारे में अमिताभ बच्चन बोल चुके हैं,- डॉन की तलाश तो ग्यारह मुल्कों की पुलिस कर रही है-! पुलिस को डॉन की  सिर्फ तलाश करना होता है , गिरफ्तारी नहीं ! पुलिस  को अगर चोर की तलाश होती तो अब तक एक की  जगह  चार को पकड़ लेती ! चोर के मामले में "जांच" और  सहयोग की बाध्यता भी नहीं होती !"
        " कोई नू कह रहो  अक दारु में घोटाला हुआ है! तू बता भारती , 'सकल' ते यू नेता भला आदमी लग  रहो !"
       " शक़्ल देखकर अपराध नहीं तय होता, एक शे'र  है- भोले भाली सूरत वाले होते हैं 'सैयाद' भी' !
          " इतना बड़ा इल्ज़ाम लग लिया, अर नेता हंसता हुआ हाथ हिला रहो!"
          " एक आत्म निर्भर नेता की यही पहचान है! वो इल्ज़ाम को भी भुना लेता है! ट्रेजडी देखिए, उसी पार्टी के दो निहायत ईमानदार नेता जेल काट रहे हैं और मुखिया बाहर खड़ा मुस्करा रहा है, "खांसी" सर्दी  न  मलेरिया हुआ-!"
        " विपक्ष साथ खडा सै !"
 " इजराइल ने गाजा में हज़ारों नागरिक के अलावा चार हजार के करीब बच्चे मार दिए ! मगर अमेरिका सहित पूरा यूरोप उसके साथ खडा है! इससे क्या इजराइल के पाप धुल जाते हैं "!
      " पर  नू बता भारती ! नेता हंसा क्यों ?"
   "  पहले जनता भी हंस लेती थी, अब सिर्फ नेता ही विपरीत परिस्थितियों में हंस पाता है ! वो अपनी चतुराई और जनता के  भोलेपन पर हंसता है ! चौधरी समझा करो !"
   " चतुराई ! मैं समझा कोन्या ?"
 " जनता को ये समझाना कि परिवार की तंदुरूस्ती और खुशहाली के लिए 'मोहल्ला क्लिनिक' जरूरी है और  मोहल्ला क्लिनिक की खुशहाली के लिए दारू की दुकान ज़रूरी है,- रिंद के रिंद रहे हाथ से  जन्नत न गई-!'
          ' वर्मा  नु  कह रहा-अक् -दारू वाड़े ने पैसा देकर नेता कू फंसा दई -"! 
        " फंसाया होता तो वो ऐसे  न मुस्कराते ! उनकी मुस्कराहट बताती है जैसे उनका नाम घोटाले में नहीं, नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किया गया हो- "!
            चौधरी का चेहरा बता रहा था कि वो अभी भी नेता की मुस्कराहट को लेकर चिंतित है!

              ( Sultan bharti journalist)

Friday, 27 October 2023

(व्यंग्य चिंतन)

(व्यंग्य चिंतन)

        "बाकी सब खैरियत है!"

          मैं दिल्ली पहुंच गया हूं ! रास्ते की हाल न पूछो ! सीट रिजर्व तो थी नहीं, मगर टीटी साक्षात धर्मराज युधिष्ठिर की तरह सतयुग से चल कर आए थे! पांच सौ रुपया लेकर थ्री टायर के डिब्बे में सफ़र करने की इजाज़त दे दी थी  ! सीट नहीं, सीट के बीच में सोने की इजाज़त ! सत्तू का  थैला सर के नीचे रख के मैं बेधड़क सो गया, मगर दाएं बायें सीट पर लेटे यात्री रातभर करवट बदल बदल कर जागते रहे ! हर  क्रिया की  प्रतिक्रिया होती है! बेटिकट होकर भी मेरा सोना क्रिया थी और सीट पर लेटकर यात्रियों का जागना प्रतिक्रिया ! यात्रियों को शंका थी कि उनके सोते ही मैं उनका सामान लेकर चलती ट्रेन से कूद जाऊँगा ! ( हालांकि उनके सूटकेस जंजीर में बंधे थे !)  लघुशंका के लिए हडबडी में उतरने की कोशिश में एक सज्जन ने अपना पैर मेरे हाथ पर ही रख दिया था   बाकी सब खैरियत है! 
         दिल्ली सुबह 5 बजे पहुंच गए थे ! डिब्बे से बाहर आते ही धर्मराज युधिष्ठिर  साक्षात  सामने थे!दो सौ मीटर प्लेटफॉर्म पर पूरब की ओर चल कर हम सभी एक टूटी हुई दीवार से बाहर आए! धर्मराज ने अंतिम संदेश दिया, -" बहुतै रिस्की काम होता है भाई तुम्हारा तो सिर्फ पांच सौ गया, हमारी  तो नौकरी चली जाती! लेकिन का करें, किसी की परेशानी हमसे देखी नहीं जाती, इसलिए- नेकी कर दरिया में डाल-! चलिए अब भवसागर पार हुआ-"। सत्तू का  थैला और धर्मराज का ज्ञान पाकर  हम चांदनी चौक की ओर चल पड़े ! रास्ते में आपस की बातचीत से पता चला कि धर्मराज ने किसी भी यात्री को टिकट नहीं दिया था !
            बाकी सब खैरियत है !
               अभी अभी सोकर उठा हूँ ! अखबार खोला तो पता चला कि चौक पर- हिन्दू मुस्लिम भाईचारा को मजबूत करने के लिए सभा का आयोजन हो  रहा है। मैं चाहकर भी खुद को नहीं रोक पाया, क्योंकि ये लाइलाज बीमारी मुझे बचपन से है ! इस बीमारी में पीड़ित व्यक्ति अपनी खाल नोच कर आनंदित होता है ! इस रोग को समाज सेवा भी कहते हैं ! शुक्र है कि ये इन्फेक्शन की श्रेणी में नहीं आता ! इस रोग से पीड़ित व्यक्ति  भूख प्यास की भी परवाह नहीं करते। रोगी पैदल यात्रा करने के मामले में बैल को भी पीछे छोड़ दे! उसे रोटी से ज्यादा ताली की दरकार होती है! मैं गया तो जरूर लेकिन जल्दी ही समझ में आ गया कि किसी को भी भाईचारा मजबूत करने की जल्दी नहीं थी !  एक वक्ता ने साफ साफ कह दिया कि जब तक उसे टिकट नहीं मिलेगा,तब तक इस इलाके में न सड़क मजबूत होगी ने भाईचारा !
         बाकी सब खैरियत है !!
           5 साल से बगैर नौकरी के हूँ, लेकिन खुशी की बात है कि अपना देश दुनियां की पांचवी आर्थिक महाशक्ति बन गया है ! विश्व गुरु होने ही वाले थे कि विधानसभा चुनाव आ गए ! अब 'ई वी एम' को लेकर विपक्ष विलाप शुरू करेगा ! (कोयल अपना अंडा हमेशा दूसरे के घोंसले में रख देती है!) जाने विपक्ष किसी को विश्वगुरु होते क्यों नहीं देख सकता ! हर आत्मनिर्भर गेहूँ के दाने में  'घुन' ढूढ़ना कब बंद करोगे ! पहले सिर्फ पंचायत होती थी, अब महापंचायत होने लगी है ! अब तो दिल्ली में भी पंचायत शुरू हो गई है ! किन्तु पंचायत होने से पहले ही प्रशासन को आकाशवाणी हो जाती है कि किस पंचायत से  'अमृतवर्षा' होगी और किस से शान्ति को डेंगू होने की उम्मीद है ! दिल्ली के रामलीला मैदान में होने वाली एक महापंचायत को रद्द कर दिया गया है, बाकी,,,सब खैरियत है!
          और,,,,,का बताएं चचा ! पहले पत्रकार खबरों की खोज के लिए जाने जाते थे, अब इतनी दूर की कौड़ी खोज लाते हैं कि सुनने वाले हफ्तों कोमा से बाहर नहीं आ पाते ! इधर जब से हमास और इजराइल के बीच जंग शुरू हुई एक स्वनामधन्य पत्रकार ने भारत के यादव और यहूदी को एक ही समुदाय  का बताकर दोनों को सकते में डाल दिया है! इतनी बड़ी खोज करने के पीछे उनका लक्ष्य क्या था, अभी ये खोज होना बाकी है! लेकिन देश के यादव समुदाय और उनके नेताओं में से किसी ने भी अभी तक अतीत के कुम्भ में खोए अपने इस नए भाई ( यहूदी) को  गले लगाने का कोई संकेत नहीं दिया है   ! हो सकता है कि आगामी लोकसभा चुनाव के पहले यादव और यहूदी में समानता की कोई नई एतिहासिक खोज और बरामद हो जाए,
      बाकी सब खैरियत है!
             कल से नवंबर शुरू हो रहा है, कई प्रदेशों में चुनाव है! प्रदेश कार्यालयों में विकास का टेंडर खुल रहा है ! कहीं खुशी  कहीँ ग़म ! कई लोग जिनको इस बार विकास  का टेंडर नहीं मिला , भावविह्वल होकर रोते देखे गए! गला  अवरुद्ध और आंखों से गंगा जमुना सरस्वती चालू ! बात ही ऐसी है, जिसने सिर्फ जनसेवा के लिए अवतार लिया हो, उसका टिकट कट जाए तो आत्मा कैसे कलपती है! दिसंबर मे आने वाले सारे सांताक्लॉज इधर नवंबर में ही गठरी लेकर निकलने वाले थे! अब कई लोग जमीन पर लोटपोट होकर अलाप रहे हैँ,- " मेरा सुन्दर सपना टूट गया !"
     सुबह चना खाकर निकला था, छह घंटे बाद घर लौट रहा हूँ! आज भी काम नहीं मिला! मन कर रहा है कि कहीं सेल्फी पॉइंट नजर आए तो किसी भरे पेट वाले के साथ सेल्फी ले लूँ !! भूखे पेट रह कर भी फील गुड वाला मौसम जो चल रहा है। 

बाकी,,,,, सब खैरियत है !!

             ( झुरहू चच्चा )

Friday, 20 October 2023

बाइक

           Sale letter  ( बिक्री प्रपत्र)
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
      ताकि सनद रहे,
               मैंने अपनी पुरानी TBS बाइक  
           को मात्र 3000/ रुपये में बेच दिया है!  (only Three thausand rupees)  बाइक को  खरीदने वाले की डिटेल्स निम्नलिखित है,,,,,,,

नाम ( खरीदार),,,,,
आधार कार्ड नंबर,,,
फोन नंबर,,,,,,,,,,,,

विक्रेता का नाम,,   
आधार कार्ड नंबर 
फ़ोन नंबर         

हस्ताक्षर                              हस्ताक्षर 
( विक्रेता)                           ( खरीदार)
( खरीदार)
                                
        
    

Saturday, 14 October 2023

( फिलिस्तीन ) आग के दरिया में डूबता शहर

 (फिलिस्तीन)
       "आग के दरिया में डूबता शहर" 

आसमान से कार्पेट बमबारी, ज़मीन से टैंकों की बढ़ती हुई कतार और सामने 12/41  किलोमीटर का खंडहर मे तबदील होता हुआ एतिहासिक 'गजा' शहर ! नेतन्याहू और वृहत्तर इज़राइल के सपने के मध्य खड़ी 23 लाख की आबादी का अवरोध लगभग खत्म होने को है ! जो बेगुनाह  खंडहर में दफन हो गए वो लोग भी हमास की  लिस्ट मे नत्थी मान लिए जायेंगे ! प्रचंड नफरत के इस दौर में कटे फटे बच्चों के जिस्म की तस्वीरें भी अब सभ्य समाज को आनंद देने लगी हैं  ! नफ़रत की खमीर से बनी बारुद ने मानवीय संवेदनाओं की शक़्ल सूरत ही बदल दिया है ! शायद  नफ़रत में बारूद से  ज्यादा ज़हर उतर आया है ! हाँ  तो नफरत ही विनाश की प्राणवायु है!
    जो इस दौर में भी ईमानदारी से इतिहास को याद रख पाए हैं, उन्हें मालूम होगा कि एडोल्फ हिटलर ने यहूदियों के सामुहिक नरसंहार के पहले जर्मनी को किस क़दर नफरत मे डुबोया था ! उसने एक नारा दिया था,- जूडाह वेरेका -! ( यहूदियों का सर्वनाश हो-!) फिर उसके बाद एक पूरी कौम को खत्म करने का जघन्य अपराध इतिहास ने देखा, जिसमें 60 लाख बेकसूर लोग मारे गए और 30 लाख लोग पूरी दुनियां में छुपने के लिए भागे ! फिर भी ईसाई जगत हिटलर को  आज भी आतंकी नहीं कहता ! उन्हीं दिनों (1943 मे) पानी के एक जहाज से भागे हुए हज़ारों शरणार्थी इजराइली फिलिस्तीन के तट पर जा पहुँचे ! अरब मुस्लिमों ने उन्हें शरण दिया जिन्हें हिटलर के खौफ से फ्रांस ने भी मना कर दिया था,और आज उन्हीं के बंशज़ यहूदी लोग अरबों से कह रहे हैं, - शहर खाली कर दो- और  मिस्र चले जाओ -"! ( बाबा भारती ने डाकू खड़क सिंह से कहा था, -" घोड़ा ले  जाओ मगर इस घटना का जिक्र किसी से मत करना, वर्ना लोग मुसीबत में पड़े आदमी की मदद नहीं करेंगे-"! 
      शायद गाजा के नए तामीर हो रहे कब्रिस्तान पर फिर बस्तियाँ आबाद हों! शायद फिर कोई गाजी सलाहुद्दीन आए ! लगता है कि बैतुल मुकद्दस के इर्द गिर्द की ज़मीन को सदियों से इंसानी लहू  पीने की आदत पड़ चुकी है ! लोग कहते हैं कि हम गुफा युग से निकल कर सभ्यता के माउंट एवरेस्ट पर जा पहुंचे हैं  ! हम नई सभ्यता के ध्वजवाहक हैं, जो शांति के कबूतर उड़ाती है, शांति के लिए नोबेल पुरस्कार देती है और दस्ताने पहन कर मासूमों को कत्ल करती है, ताकि दामन पर लहू के छींटे न दिखाई दें !  हम सभ्य तो हैं मगर न्याय देने मे अदालत नहीं, जिसकी लाठी उसकी भैंस पर ही अमल करते हैं ! लाठी धारी मुल्कों का अपना गैंग,अपनी अदालत है! वो जिसे अपराधी कह दें वही मुज़रिम ! उनके एनकाउन्टर पर कोई सवाल नहीं उठाता ! ये नए मिजाज़ की अदालत है, जहां मानव अधिकार, रेडक्रॉस और इंसाफ़ के नाम पर संयुक्त राष्ट्र संघ सब कुछ है जो एक इशारे पर लकवा ग्रस्त हो जाता है !
        तो,,,,,दुआ करें ! शायद हमारी दुआओं से ऊपर वाला कोई चमत्कार कर दे ! वैसे,,,1948 से आज तक फिलिस्तीन के मसले में कोई आसमानी चमत्कार हुआ नहीं है ! सुना है 57 मुस्लिम देश हैँ, पर पिछले 5 जंगों में फिलिस्तीन की झोली में सिर्फ़ दुआएं ही आती हैं,- बिखरी हुई, दयनीय, मजलूम और पसमांदा दुआएं !!

            Sultan bharti (journalist)

Wednesday, 4 October 2023

सिडबी सम्मान मेला

     "सिडबी" का स्वावलंबन मेला संपन्न 
(  कई हस्तशिल्पी सम्मानित! भव्य समापन !!)

         नई दिल्ली स्थित आगा खान भावन में 'सिडबी' (भारतीय लघुउद्योग विकास बैंक) द्वारा आयोजित ,( 24 सितंबर से 28 सितंबर तक  चलने वाले  5 दिवसीय  स्वावलंबन मेला  के  अंतिम दिन कई उत्कृष्ट हस्तशिल्पियों को  आर्थिक प्रोत्साहन द्वारा सम्मानित किया गया ! विदित रहे कि इस स्वावलंबन मेला में गुजरात और मणिपुर समेत देश के विभिन्न प्रदेशों से आए हुए काफी हस्तशिल्पी स्वनिर्मित हस्त उत्पाद के साथ साथ शामिल हुए थे ! सिडबी की दिल्ली शाखा के कई वरिष्ठ अधिकारी पूरे 5 दिवसीय मेला के दौरान  यहां बने रहे,ताकि सुदूर प्रदेशों से आए हस्तशिल्पियों और उनके  परिश्रम एवं प्रयास को स्वावलंबन  की दिशा दी जा सके!
          हस्तशिल्प हमारी सभ्यता एवं संस्कृति की एक समृद्ध विरासत है जिसे विलुप्त होने से बचाने, खोजने,निखारने और विकसित करने के पीछे विगत सरकारों ( कॉंग्रेस,जनता पार्टी,और जनता दल) की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता, लेकिन इस कला को संपूर्ण विकास, आर्थिक प्रोत्साहन और बड़ा बाजार देने के लिये वर्तमान मोदी सरकार और सिडबी की पेशक़दमी ने बहुत अहम भूमिका निभाई है! नब्बे के दशक में अस्तित्व में आए भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक ( सिडबी) ने आर्थिक झटके खा रहे इस हस्तशिल्प कला की दशा और दिशा ही बदल दी ! ऊपर से वर्तमान मोदी सरकार की गहन संजीदा दिलचस्पी ने  शिल्प और शिल्पियों के  प्रयासों को नए जीवन,स्वप्न, और उड़ान का प्लेटफार्म और प्रोत्साहन दिया ! सिडबी ने उनके छोटे सपनों को बड़ा आकाश दिया और आर्थिक स्वावलंबन में बड़ी भूमिका निभाई। आज का आर्टिजन पूरे देश और दुनियां मे अपनी कला के  साथ उड़ान भरने को तैयार है।स्वावलंबन मेला उसी परवाज का एक जरूरी पडाव है। 
       आगा खान भवन ( नई दिल्ली) में आयोजित इस स्वावलंबन मेला में आए हस्तशिल्पियों को आधुनिक बाजार के साथ चलने के कई गुर सिखाये गए  ! इसी में शामिल था- ओ एन डी सी (ओपेन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स)  जिसकी भूमिका आज बड़ी रफ्तार से बढ़ रही है! ये नेटवर्क क्रेता और विक्रेता के बीच एक मजबूत पुल की भूमिका निभाने का काम करता है ! क्योंकि आधुनिक बाजार में वही टिकेगा जो व्यापार के बदलते हुए आयाम से वाकिफ होगा।  सिडबी की  भूमिका अन्य बैंकों से बिल्कुल अलग इसलिए भी है, क्योंकि सिडबी दूर तक व्यापारिक रिश्ते निभाता है , बिल्कुल अपनों की तरह!
        स्वावलंबन मेले के आखिरी दिन कई शिल्पियों को कैश पुरस्कार से नवाजा गया, ताकि उनके जोश को नई गति और  स्थायित्व दिया जा  सके! पुरस्कार और प्रोत्साहन के इन खूबसूरत पलों में उत्साह के रंग भरने के लिए सिडबी की   तरफ से वहाँ मौजूद थे, नई दिल्ली के सिडबी शाखा प्रमुख श्री एन के सोलंकी ( उप महा प्रबंधक) , सुधा परमार ( निदेशक CSCC) और संजय मिश्रा जी। अंत में, पाठकों की जानकारी के लिए ये जानना आवश्यक है कि ये सारा आयोजन " सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ कास्ट एंड कैपिटलिज्म" की तरफ से था, जो सदैव समाज के पिछड़े अति पिछड़े और वंचित समाज के लोगो के पुनरूत्थान के लिए सतत प्रयासरत रहता है!  सिडबी ने इस आयोजन को अर्थिक सहयोग दिया था !
        सबकुछ इतना बेह्तरीन रहा कि दिल्ली से वापस अपने गृह प्रदेश में लौट कर भी स्वावलंबन मेले के ये खुशगवार पल शिल्पियों को लंबे समय तक याद आते रहेंगे !!

                   (   Sultan bharti journalist )

Thursday, 14 September 2023

(व्यंग्य भारती) "हिन्दी दिवस का बर्थ डे केक"

व्यंग्य भारती
          हिन्दी दिवस का बर्थ डे केक 

   मंत्री जी ने कई दिनों पहले कार्ड न्योता भेज  दिया था।  चौदह सितंबर को सभी "गणमान्य" श्रेणी के मेहमान मंत्री जी के आवास पर आ गए! सरकारी आवास के विशाल लान मे लोग कुर्सियों पर  बैठे ! एक बड़ी मेज पर एक बड़ा केक रखा गया।  मंत्री जी के मुहँ लगे उनके निजी कवि ने सबसे पहले हिन्दी मे एक ताजी कविता सुनाई जो हिन्दी दिवस की अपेक्षा मंत्री जी को ज्यादा समर्पित थी,- ----
हिन्दी आज महान  है!
भारत की पहचान  है!!

मंत्री जी के  प्रयासों से !
जन जन की पहचान है !!

आमंत्रित कवि विद्वानों का!
करते    वो   सम्मान    हैं !!

  कविता के तीसरे अंतरे में ही कवि ने  मंत्री जी को याद दिला दिया कि पिछले साल जैसा प्रोग्राम मत करना! ( पिछले हिन्दी दिवस पर अंग वस्त्र के साथ सम्मान राशि नहीं दी गई थी!)
     आमंत्रित मेहमान जहां सम्मान की  कल्पना में मगन थे  वहीं मंत्री चिंतित होकर अपने पी ए के कान मे कह रहे थे,- ' अब गलती मत करना,अगले साल किसी नए कवि को हायर करना "!
       कविता के बाद मंत्री जी के सचिव हिन्दी भाषा की उपयोगिता और महत्व पर प्रकाश डालने लगे, -' हिन्दी लैंग्वेज बोलने में बहुत  इजी है, तभी ये नैशनल लैंग्वेज बन पायी है, यू नो ! हमें इस लैंग्वेज पर प्राउड फील होना चाहिए-! हमारे विद्वान मंत्री जी का गवर्नमेंट से अपील है कि वो हिन्दी को वर्ल्ड लैंग्वेज बनाए ! हम सबको अपने फॅमिली मेंबर्स से सिर्फ हिन्दी में डिस्कशन करना चाहिए-यू नो ! !हिन्दी के ग्लोबल लैंग्वेज बनते ही हमारे विश्वगुरु होने के सारे स्पीड ब्रेकर खत्म हो जायेंगे ! हिन्दी के डेवलपमेंट के लिए मेरे साथ नारा लगायें -

हिन्दी ही अपनायेंगे !
इंग्लिश मार भगाएंगे !! "

      सचिव ने बैठने से पहले बड़ी गर्वित नजरों से उन श्रोताओं पर नजर डाली जो अभी भी इंग्लिश को मार भगाने का आवाहन कर रहे थे! इसके बाद हिन्दी के समर्थन में एक प्रचंड पहलवान ने माइक थाम लिया -" माँ सरस्वती की अपार अनुकंपा से हम हिंदी को राष्ट्रभाषा से विश्व भाषा बनाने के प्रगति पथ पर अग्रसर हैं ! हमारे आदरणीय मंत्री जी और सशक्त राष्ट्र के सतत प्रयास और संघर्ष से  ये संभव हो पाया है !  मंत्री जी  शतायु हों, जिससे पूरे ब्रह्माण्ड में चर अचर सभी जीवों की भाषा हिंदी और केवल हिंदी हो !यही मंत्री जी और सरकार दोनों का संयुक्त प्रयास है! अंतरिक्ष में हिंदी भाषा के विकास के लिए चांद पर हिंदी भाषा विकास संस्थान खोला जाए , - जय हिंदी! जय राष्ट्र भाषा-!"
     अब लोगों की नजरें वक्ताओं पर कम केक पर ज्यादा थी ! लोगों की अगाध श्रद्धाकेंद्र का सही आकलन कर मंत्री जी ने समापन भाषण दिया,-"आप लोगोँ का हिंदी प्रेम देख कर मुझे पूरा यकीन है कि हिंदी देश की राष्ट्रभाषा भले न  बन पाये , यूनिवर्सल भाषा पहले बनेगी ! शायद आप लोग भी देश की अपेक्षा हिंदी को यूनिवर्सल भाषा बनाने के लिये ज्यादा समर्पित हैं ! आपकी उस विलक्षण दूरदृष्टि को सलाम है, हिंदी के विकास के  लिए जिसका प्रथम प्रयास अपने बच्चों को अंगेजी मीडियम से पढ़ाना होता है ! अंग्रेजी भाषा के प्रति इतना प्यार,आकर्षण और समर्पण देख कर मुझे पूरा विश्वास है कि हिंदी को विश्व भाषा बनाने का कितना बड़ा समुद्र मंथन आप  चला रहे हो- ! मेरे परिवार में सारे धार्मिक कर्मकांड निपटाने वाले पंडित जी के दोनों बच्चे भी कॉन्वेंट में पढ़ते हैं! उनको भी सादर प्रणाम है-! आइए अब हिंदी के इस समग्र विकास की खुशी का केक काटते हैं-"!
         आज एक विद्वान ने सोशल मीडिया पर पोस्ट में सवाल पूछा है, - क्या दुनियां में किसी और  भाषा का पखवारा मनाया जाता है ? हो सकता है, मुझे तो नहीं पता! मुझे तो ये भी नहीं पता कि पखवारा मनाने से  हिंदी का कितना विकास होता है ! हिंदी विकास के नाम पर बने सफेद हाथी जैसे संस्थानों की ओर से कोई प्रगति रिपोर्ट आती हो तो मुझे उसका भी पता नहीं! हिंदी भाषी लेखकों का इस पखवारे में कितना विकास हो रहा है, मुझे कुछ नहीं पता! अलबत्ता ये पता है कि हिंदी के अधिकांश लेखक अपने लेखक होने की सज़ा काट रहे हैं! उनके साहित्य और हिंदी समर्पण को इन संस्थानों से कोई ऑक्सीजन नहीं 
मिलती! पेंशन भी नहीं ! ( कर्म और फल के अध्यात्म पर संदेह कैसा!)
       हिन्दी भाषा विकास की सारी औपचारिकता  जिवित हो उठी है !  सरकारी बैंक ने  इंट्री गेट पर हिंदी पखवारे का बैनर लगा दिया है , - कृपया फॉर्म , चैक और  विदड्रॉल  हिंदी  में भरें -!  लेकिन अंदर सारा काम अँग्रेजी में चल रहा था ! जैसे बैनर खुद कह रहा हो- 16 दिन की तो बात है, हंसते हंसते कट जाये रस्ते-! तीस सितंबर के  बाद सरकारी विभाग ये बैनर अगले साल सितंबर के लिए समेट कर आलमारी में रख देंगे ! ऐ राष्ट्रभाषा! हम तेरे लिए  एक पखवारे का बलिदान तो दे ही सकते हैं  न ! इसी से अपने पूरे साल का  हीमोग्लोबिन दुरुस्त कर लेना !
    हिंदी विकास के कथित प्रयास पर एक शे'र पेश करते हैं,,,,,,,
ये तो माना कि  तगाफुल  न करोगे  लेकिन !
खाक हो जायेंगे हम तुमको खबर होने तक !!

     ( Sultan bharti)


Tuesday, 5 September 2023

आगाज तो अच्छा था- अंजाम खुदा जाने

                 " आज का मुस्लिम "
आगाज़ तो अच्छा था- अंजाम,,,,,,,खुदा जाने 

     अवध के एक  जमीनी  शायर  एम जे  सिद्दीकी ने 1965 के इंडिया पाक जंग के हीरो अब्दुल हमीद ( परम वीर चक्र विजेता) की शहादत पर लिखा था _

मुसलामां हिंद का गाजी मुजाहिद !
लहू  में   दौड़ती  'ईमां'  की  धारा !!
शहादत   सुर्खरू  अपनी  रवायत !
वतन ने जब कभी  हमको पुकारा !!

       इसमें कोई दो राय नहीं कि इस्लाम की नीव में इबादत,सखावत, शुजाअत और शहादत की बहुत बड़ी भूमिका है! अपने मजहब और मुल्क के लिए शहादत देने में इस जंगबाज कौम का कोई मुकाबला नहीं है! सातवीं सदी (610 ईस्वी) में उदय और सोलहवीं सदी (1570 ईस्वी) में शौर्य, शासन, सभ्यता और न्याय के शिखर पर चमकते इस्लामी हुकूमत का अगले दो सौ साल में ऐसा पतन हुआ कि दुनियां आज भी हैरान है ! आज उसी शासक कौम के लोग बदहाली के ऐसे दौर से गुजर रहे हैं जहां से वापसी के लिए कोई शॉर्ट कट रास्ता नहीं है । अपनी बदहाली के लिए खुदा और नाखुदा दोनों को कोसती ये कौम अपने गिरेबां में झांकने को बिल्कुल तैयार नहीं! इस्लाम के मूलभूत सिद्धांतों से भटक गई ये अपार भीड़ अपनी सियासी और सामाजिक नेतृत्व विहीनता के चलते  राजनैतिक पार्टियों के बीच फुटबाल बन कर  रह गई है! आज इस जमात में आला और पसमांदा दोनों शरीक हैं ! शोषण और दमन की इस फेहरिस्त में इदरीसी बिरादरी अकेली नहीं है! पूरी कौम ए मुस्लिमाँ उनके साथ खड़ी मिलेगी ! आइए,आज हम अपने देश में चल रहे   'प्रचंड' विकास,सामाजिकऔर आर्थिक भागेदारी तथा राजनीतिक भूमिका में  इस ' नेतृत्व विहिन भीड़' की दिशाहीनता और दुर्दशा का आकलन करते हैं!

शिक्षा,,,,,
       2011 के सर्वे के मुताबिक़ मुसलामानों की कुल जनसंख्या का 43% भाग अशिक्षित था ! कैसी विडंबना है कि जिस कौम की पवित्र पुस्तक कुरआन के आगाज का  पहला शब्द ही "इकरा" (यानि - "पढ़") हो, आज उस कौम के अनुयायी शिक्षा के क्षेत्र में इतने उदासीन  क्यों ! आबादी के पहले ब्रिटिश हुकूमत में, आई ए एस IPS जैसे उच्च पदों पर मुस्लिमों की भागीदारी 5% थी, आज इतनी  अधिक आबादी के बावजूद 3% है ! शिक्षा के क्षेत्र में जो लोग मदरसों की भूमिका पर उंगली उठाते हैं, तो उनके लिए हैरान करने वाला आंकड़ा ये है कि मुसलमानों के सिर्फ 4% बच्चे ही मदरसा जाते हैं, बाकी 96% बच्चे सरकारी और प्राइवेट स्कूल्स का रुख करते हैं ! इनमे एक बड़ा तबका उन बच्चों का है जो मिडिल क्लास के बाद आगे जाते ही नहीं! अब खुद सोचो कि ऐसे में अगर कोई  'अब्दुल' के साथ "पंचर" शब्द जोड़ रहा है तो उसके लिए कौन जिम्मेदार है! राजा राम मोहन राय जैसे विश्वविख्यात समाज सुधारक देश को देने वाले मदरसों को पेट्रो डॉलर और आतंकवाद से जोड़ा जा रहा है!

सरकार की भूमिका,,,,,,

          आजादी के बाद जब कॉंग्रेस की सरकार बनी तो देश का पहला केंद्रीय शिक्षा मंत्री एक मुसलामान को बनाया गया ! ( मौलाना अबुल कलाम आजाद) उसके पहले ऊर्दू को मुख्य भाषा का दर्जा हासिल था ! कॉंग्रेस के शासन में ऊर्दू का वो रुतबा और दर्जा खत्म होता रहा! बंटवारे मे  मुस्लिम समुदाय को नेतृत्व दे रही शख्सियत और असरदार लोग पाकिस्तान चले गए और भारत से मुहब्बत करने वाले आला और पसमांदा मुस्लिम यहीं रुक गए ! राष्ट्रनिर्माण और कुर्बानी देने मे अग्रणी रहे इस कौम के अनुयायी आज भी पाकिस्तान के निर्माण के लिए ताने सुन रहे हैं ! इस  कौम को सत्ता और सर्विस मे वो भागीदारी क्यों नहीं दी जाती जिसकी हकदार है! मुस्लिमों का तुष्टिकरण करने का आरोप झेल रही कांग्रेस ने मुसलामानों को आखिर दिया क्या है? जो दिया है, पूरा देश जानता है! मुस्लिमों की दयनीय दुर्दशा को उजागर करने वाली रंगनाथ और सच्चर कमेटी की रिपोर्ट पर आज तक कितना अमल हुआ ?

नेतृत्व की भारी कमी,,,,,

       केन्द्रीय अल्पसंख्यक मंत्री स्मृति ईरानी के अनुसार आज मुसलामानों की आबादी देश की कुल आबादी का 19% है ! ( यह संख्या पाकिस्तान की कुल आबादी से ज्यादा है! पर इस बेहाल और बदहाल कौम के पास आज की तारीख में न कोई एक सर्वस्वीकृत धार्मिक नेता है न सियासी ! इतनी बड़ी आबादी चौराहे पर खड़े उस निरीह चौपाये की तरह है जो भ्रमित है कि किधर जाये ! उसने हमेशा दूसरे धर्म के लोगों को अपना नेता बनाया,फिरभी उसी से देशभक्ति की सनद मांगी जाती है! हर पार्टी चुनाव के वक़्त उससे यही आकांक्षा रखती है कि वो वोटर बन कर  रहे जन प्रतिनिधि नहीं !

हाल क्या है,,,,,,?

 1-   हमें अपने मतभेद बलाए ताक रख कर  एक।       मंच पर आना होगा!
2-     'अशिक्षा'  का कलंक मिटाने के लिए युद्ध             स्तर पर काम करने की जरूरत है! हमारे       नबी का  शिक्षा के लिए जो फरमान था,( शिक्षा     के लिए हिजरत करने का सुझाव) उसे  अपनी जिंदगी में उतारना होगा ! 
3-     हर  मुस्लिम माँ बाप को अहद करना होगा।           कि हमारा बच्चा ऊंची तालीम हासिल।                 करेगा !
4-      सफेद हाथी साबित हो  रहे  बड़ी बड़ी मुस्लिम संगठन अगर स्कूल नहीं खोल रहे तो उनसे दूरी बनाए!
5-        सिर्फ वोटर बनकर मत रहें, सत्ता में अपनी भागीदारी के लिए संघर्ष करें, जागरूक             होकर अपना हक मांगे!
6-       मस्जिद जाना शुरू करें और नमाज के बाद  देश,कौम, समाज और अपने बेहतर भविष्य के लिए  चर्चा करें ! याद  रखें, हमें अपने हक और संवैधानिक अधिकार के लिए खुद संगठित होकर संघर्ष करना होगा ! अल्लामा इकबाल ने कहा था-
7-     हमें अपने बच्चों को वीर अब्दुल हमीद और           ब्रिगेडियर उस्मान बनाना होगा, जो हमारे               मुल्क और कौम का नाम दुनियां में रोशन             करें ! हम सरकार से मांग करते हैं कि वीर            अब्दुल हमीद के नाम से गाजीपुर या दिल्ली        में एक यूनिवर्सिटी खोली जाए !
अपनी हिम्मत अपनी कूवत अपने बाजू तौलकर!
कूचा ए हस्ती में उड़ना है तो उड़  पर खोल कर!!

        इदरीसी समाज संगठित हो रहा है, ये देख कर खुशी होती है ! अब बहुत सी राजनैतिक दलों के लोग आप के पास आयेंगे ! आपको पसमांदा बताकर आपके सर्व विकास का वादा करेंगे! आप  मिलें, सुनें और अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें  ! अपने नेतृत्व की वकालत करें ! अपने संवैधानिक अधिकार को हासिल करना होगा! हमें आरक्षण क्यूँ नहीं मिलता? ये कौन बतायेगा ! देश की आर्थिक शक्ति में रीढ़  की भूमिका निभा रहे इस श्रमजीवी समुदाय मे अब घनघोर जनजागरण शुरू करने का  वक़्त आ गया है ! 
     हमारे आज के हालात को अर्सा पहले विश्व विख्यात शायर और क्रान्तिकारी योद्धा मौलाना अल्ताफ हुसैन "हाली"  ने  हूबहू  कुछ  यूं बयान किया है,,,,,,,

न अहले हुकूमत के हमराज़ हैं हम !
न  दरबारियों  में  सरफराज  हैं हम !!
न रखते हैं कुछ मंजिलत नौकरी में!
न   हिस्सा  हमारा  है  सौदागरी  में !!

 तो,,,,बस तैयार हो जाओ शिक्षित और संगठित होकर हमें इस परिभाषा को बदल देना है ! हमें याद रखना होगा कि,,,,,,,

कोई तन्हा मुसाफिर कारवाँ बन जाता है जिस दिन 
उसी  दिन  मुश्किलों  के  हौसले  भी  टूट जाते  हैं!!

        और,,,खुदा  की   कसम ! आज हम   तन्हा नहीं हैं !!

            ,,,,,,,, अबुल हाशिम ,,,,,,

Friday, 1 September 2023

(व्यंग्य 'भारती') "चंदा मामा या मामू "

व्यंग्य 'भारती'

 "चाँद"- तुझे "मामा" कहूँ - या  "मामू" 

          अब तो पहचान बतानी होगी ! बहुत हो गया छुपा छुपी ! चंदा मामा तुम्हें भी डॉक्यूमेंट दिखाना पड़ेगा ! तुम्हारे धर्म को लेकर बहुतै कन्फ्यूजन है  ! तुम मामा हो या मामू ? कौन से धर्म में आते हो ! बताना पड़ेगा ! मामा और मामू  में से एक को  चुनना पड़ेगा ! एक म्यान  में मामा मामू दोनों नहीं रह सकते ! चन्द्रयान, विक्रम और प्रज्ञान  तीनों नाम सनातनी हैँ ! इसलिए तुम भी मामा बन कर रहो, मामू नहीं ! अब मामा और मामू में से किसी एक को सिलेक्ट कर लो !  शराफत से मान जाओ तो ठीक है मामा, वर्ना चलनी से देखना ही नहीं, चलनी मे पानी भरवाना भी हमें आता है !
              राजधानी दिल्ली के एक संत का सुझाव है कि तुम्हें हिन्दू राष्ट्र घोषित कर दिया जाए ! क्या हुआ? इतने में ही नर्भसा गए  का ! मामा समझा करो ! यहां हमारे प्लेनेट पर  बहुतै पंगा है ! हम  का  करें, विपक्ष है कि मानता नहीं ! सरकार जनता को हिंदू राष्ट्र देना चाहती है, मगर  विपक्ष  है  कि  टमाटर नींबू और प्याज का रोना रो रहेहैं ! विपक्ष कभी नौकरी मांगता है कभी सस्ता टमाटर ! घोर कलियुग है जी ! स्वर्ग और मोक्ष की जगह उन्हें सस्ता सिलेंडर चाहिए !
         सुनो मामा जी ! आराम से मान जाओ तो बढ़िया है ! वर्ना हम तुम्हारे पूरे ग्रह को दिल्ली के प्रॉपर्टी  डीलरों को 99 साल के लीज पर दे देंगे! उसके बाद तो तुम पूरे ब्रह्माण्ड  में ओरिजिनल काग़ज़ लेकर दौड़ते रहोगे, मगर अपनी ही प्रॉपर्टी पर कब्ज़ा नहीं  पाओगे ! हमारे ग्रह पर ऐसे ऐसे प्रॉपर्टी डीलर हैँ जो तुम्हें तुम्हारे ग्रह के मालिकाना हक का काग़ज़ उस  वक़्त  का  दिखा देंगे जब तुम्हारे ग्रह का जन्म भी नहीं हुआ था ! अब बताओ क्या करोगे ! घबरा गए न! इसलिए कहता हूं मामा जी अभी समय है ! वैसे  हिन्दू राष्ट्र घोषित होने में तुम्हारा कोई नुकसान भी नहीं है ! सोचो पृथ्वी से कितने श्रद्धालु हम से वीज़ा लेकर तुम्हें देखने आयेंगे !  महिलाएँ चलनी से देख देख कर बोर हो गई हैं ! अब साक्षात दर्शन करेंगी ! रक्षा बंधन पर कितना रश रहा करेगा !
          अब काहे चिंतित हो ! देखो ऐसा है कि  कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है! दोनों हाथों में लड्डू नहीं  होगा ! मामा होने के लिए मामू का मोह छोड़ना पड़ेगा ! हमें तुम्हारी कला और कलाकारी दोनों का पता है ! तुम कब भगवान के माथे पर होते हो कब भाग्यचक्र में -हमें मालूम है! इतना सम्मान रास नहीं आ रहा है  का ! ईद से एक दिन पहले दिखाई देने का मोह छोड़ना पड़ेगा ! अब ये- खाओ ब्रिटानिया फिफ्टी फिफ्टी - नहीं चलेगा !
        अब काहे सोच में पड़ गए ! हिन्दू राष्ट्र घोषित होने से क्या होगा ? ये सब कुछ जनता के लिए होगा ! वैसे,,,,हो सकता है कि जनता को भी न पता हो कि वो हिन्दू राष्ट्र चाहती है ! एक दिन ईंटभट्टा पर काम करने वाले कई मज़दूरों से मैंने भी यही सवाल पूछा था- " आपको क्या चाहिए-'?
  -" अगर ठेकेदार समय पर पैसा दे दे तो इस बार गिरवी रखा खेत छुड़ा लूँगा बाबूजी ! दो साल पहले बेटी की शादी के लिए गिरवीं रखा था!"
    "और तुम ?"
    " एकलौता बेटा सफ़ाई कर्मी था, तीन साल पहले सीवर की सफ़ाई करते वक़्त जहरीली गैस से मर गया था ! हम चाहते हैं कि मुआवजे के साथ किसी एक को नौकरी भी मिल जाए!"
     ' और  आप?' वो एक बुजुर्ग मजदूर था 
     " बाबूजी मेरी नज़र कमज़ोर हो गई है  ! मैं पिछले अट्ठारह साल से ईंट भट्टा पर हूँ। हर साल सर्दी में सोचता हूं कि आंख खुलवा लूँगा, पर इतना बचता ही नहीं! कस्बा भी दूर है यहां से !'
    "और काकी तुम?"
       " आदमी के मरने के बाद पतोहू ने निकाल दिया घर से! जब तक हाथ पाँव चल रहा है , भीख नहीं मांगूंगा- बेटे से न गाँव वालों से "!
     सुन लिया न , तो मामा जी उनमे से तो किसी को हिन्दू राष्ट्र नहीं चाहिए ! हो सकता है कि ये लोग जनता की  गिनती न आते हों ! तो,,,,प्रस्ताव आना शरू है ! चुनाव से पहले तुम्हें  हिन्दू राष्ट्र  बनना होगा ! और हाँ,  फिर पूछ रहा हूँ- कहीं किसी और मजहब का ऑफर तो नहीं पकड़ा न ! पहले कोई नील आर्म स्ट्रॉन्ग और बज एल्डरिन आए थे ! वैसे तो पहले पूरा ब्रह्मांड सनातनी था ! तलवार के डर से बीच में कुछ लोग फिसल गए थे ! तो क्या हुआ, अब घर वापसी कर लो  ! ऐसा कुछ हो  गया हो तो बता देना, संपूर्ण शुद्धीकरण के लिए तुलसी पत्र, गंगाजल और गौमूत्र की  कोई  कमी नहीं है l 

Friday, 11 August 2023

(व्यंग्य "भारती") "फ्लाइंग् किस "!

(व्यंग्य भारती")
         फ्लाइंग  किस !

      अरे  भैया ! ई  का किया आपने! आए थे हरि भजन को - ओटन लगे कपास !  फ्लाइंग किस  की का जरूरत थी ! भारत जोड़ो में ये कार्यक्रम भी शामिल था  क्या ! फिर काहे बखेड़ा पैदा कर दिया! देख रहे हैं कि महिलाएँ कितना क्रोधित हैँ ! संस्कारी महिलाएँ बहुत क्रोध में हैँ ! इस तरह तो आपको भारत जोड़ो नहीं करने देंगी, - बाबा  समझा करो ! ये  संविधान भवन है, संसद है- 'सी बीच'  नहीं है ! वो तो गनीमत समझो  कि नेताओं का बुद्धि विवेक पार्टी के गाइड लाइन के हिसाब से जागता और सोता है, वर्ना स्वयं संज्ञान से मुसीबत हो जाती ! उसका शुभ लाभ भी मिला आपको, फ्लाइंग किस पर जब एनडीए की कुछ महिलाएँ विरोध कर रही थीं  तो 'इंडिया' की प्रगति शील महिलाएँ  मेज थप थपा रही थीं। एक तरफ संस्कार आहत होता नज़र  आ  रहा था, वहीं दूसरी तरफ रूढ़िवादी परम्पराएं टूट रही थीं, और देश गुफा युग से निकल कर राकेट युग में दाखिल हो रहा था !
जाकी रही भावना जैसी !
      का सोच कर फ्लाइंग् किस  फेंका था ! ई कोई 
फेंकने की चीज़ थी ! यहां तो फेंकने वाले एक से एक सुपरमैन बैठे हैं ! वो  विकास और  विश्व गुरु के अलावा और कुछ  नहीं फेंकते ! ऐसे मुकाम पर आप  हवा में चुंबन फेंक रहे हो  ! बड़े ढीठ हो यार ! प्यार के इस प्रतीक को लेकर अंदर कैसे आ  गए  डर  नहीं लगा आपको ! काहे मुहब्बत की दुकान खोलने पर आमादा हो ! मौसम और मानसून काहे नहीं देखते ! अब मुहब्बत और दुकान दोनों टार्गेट पर है ! मुहब्बत  यानि 'लव' की बात करोगे तो दुकान में  'जेहाद' उड़ेल दिया जाएगा ! कहां सोये हुए हो, जब से  'लव' ने 'लालच' में  आकर धर्म परिवर्तन कर लिया है, वो जेहाद हो गया है ! पहले अज्ञानता वश लोग उसे "लव" कहते थे ! ऐसे संक्रमित  लव के शुद्धीकरण  के  लिए अब  घर वापसी का विकल्प खुला है !
        वैसे कमाल है बाबा, क्या नाम और  नारा ढूँढ़ निकाला है,- मुहब्बत की दुकान ! 1992 में ये "दुकान" एक दम से बंद हो गई थी, फिर 31 साल तक दुकान खोलने की सुध नहीं आयी ! अब इतने दिनों में तो बंद दुकान में रखा माल ( मुहब्बत) सड़ गया होगा मान्यवर ! काहे ऐसे सड़े हुए माल की  "दुकान" खोलना चाहते हैं , जिससे फूड पॉइंजिनिंग का खतरा हो ! मुहब्बत की दुकान खोलने का आइडिया आपका है या पार्टी के किसी और महापुरुष का ! सुझाव देने वाले उन 'महान आत्मा ' से मुझे पूछना था कि मुहब्बत की ये दुकानें क्या उसी तरह खोली जाएंगी, जैसे 22  मई 1987 को हाशिम पुरा और  मलयाना  में   खोली  गई थीं ! दुकान के  कई दर्ज़न ग्राहक हिंडन नदी में बहते हुए नजर आए थे। और जिन क़ातिल वर्दी वालों ने 'मुहब्बत' मे आकर गोलियों से  भूना था,उन्हें भी बरी कर दिया गया था ! बाबरी मस्जिद जिन्न ने  आपकी मुहब्बत वाली पार्टी को वनवास पर भेजा !अब आप फ्लाइंग् किस और मुहब्बत लेकर आए हैं! खुदा बचाए इस मुहब्बत से !
            आपकी धर्मनिरपेक्षता भी ग़ज़ब है ! शायद आप  समझ नहीं पा रहे कि शिवभक्त होने में फायदा है या मुहब्बत की दुकान खोलने में ! भारत जोड़ो का तो  मैं भी कायल हूँ, हिम्मत और हौसले का काम था, परिपक्व हो गए हैं आप ! अब ये आंख मारना और फ्लाइंग किस जैसी बचकाना हरकत से बाहर आइए, क्योंकि आपके मुकाबले   जो शख्स रुबरु है,वो नंबर और आयु में ही नहीं,-शब्द,सामर्थ्य,सियासत,सूझबूझ और  व्यूह संरचना का महारथी है ! ये विराट दौलत उसके संघर्ष की उपलब्धि है, विरासत की नहीं ! सच कडुआ सही, तहे दिल से कुबूल करना चाहिए !
        राजस्थान में भी आपकी  मुहब्बत वाली दुकान है, नासिर और जुनेद को जिंदा जलाने वाले मोनू मानेसर उर्फ मोहित यादव को आज तक नहीं पकड़ा गया ! काहे भैय्या !! ई  जिम्मेदारी खाली डबल इंजन सरकार की है  का ! वो तो नहीं पकड़ेंगे, पूछो क्यों? मामला  उस  दोहे के जैसा  है कि  - कस्तूरी कुंडल बसे, मृग ढूंढे बन मांहि,,-! तो,,, 'कुंडल' के अलावा तमाम दुनियां में  "कस्तूरी" की  तलाश जारी है  ! चलिए कोई बात नहीं, आपका ध्यान अगले साल होने वाले आम चुनाव पर है अभी ! कहां कहां दुकान खुल सकती है, ये मुद्दा पहले है ! इस तरह की घटनायें तो  वोट बैंक को मोबलाइज भी  करती हैं !
 ये जो वोटर हैँ न, इनकी याददाश्त पांच साल से पहले संक्रमित हो जाती है! इसी के चलते एक से बढ़कर एक मुंगेरीलाल हसीन सपने बेच जाते हैं !

    और हम,,,,,,आश्वासन को विकास समझ कर उम्र के 5 साल शीत निद्रा में काट देते हैं ! दुनियां में "विश्वगुरु" के अकेले दावेदार जो ठहरे !!

Monday, 7 August 2023

(व्यंग्य "भारती") "गुंडा" रक्षक दल !

व्यंग्य "भारती"
सियासत की नाभि मे "गुंडा"

           'मंगनी राम' दरोगा अभी गुटखे का ठीक से आनंद भी नहीं ले पाए थे कि हेड कांस्टेबल नकछेद ने आकर सूचना दी, - ' चार जेन्ट्लमैंन आए हैं "!
    मंगनी राम ने गुटखे की पिचकारी मारते हुए कहा-" का  प्रॉब्लम है?"
       " पड़ोसी राज्य से आए हैं,  " मंगू मवाली" के बारे में जानकारी चाहते हैँ "!
      " बुला लो "! 
सादी वर्दी में पड़ोसी राज्य से चार पुलिस वाले आए थे आए हुए एक सब इंस्पेक्टर ने कहा,- ' का करें ! हम जानते हैं कि मंगू मवाली गुंडा है और दोनों  लड़कों को उसी ने जिंदा जलाकर मार डाला था, पर उसे हमारे इलाके में ये सब करने की क्या जरूरत थी? इस दंगा के बाद  हमारे ऊपर बड़ा दबाव है ! थोड़ा हेल्प करिए!"
   मंगनी राम ने गले मे फंस रहे गुटखे को फिर थूक दिया-' हम भी धर्म संकट में हूँ! ऊपर से दबाव है कि उसे हर उस जगह तलाशा जाए, जहां वो बिल्कुल नहीं है, बूझा का?"
      " दिल्ली से दबाव है, दंगा के बाद 

Thursday, 29 June 2023

(व्यंग्य भारती)। "आस्था ही तो है"

"व्यंग्य भारती"

    "आस्था ही तो है"

           अपने देश में आस्था भी है और अमृतकाल भी ! सौभाग्य से दोनों प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं! बस - साधारण आंखों से नज़र नहीं आती,- जिन खोजा तिन पाइयाँ -! अमृतकल है लेकिन विरोधी और विपक्ष को बिलकुल दिखाई नहीं देता ! कारण - जाकी रही भावना जैसी -! भावना तो है किंतु उसमे आस्था नहीं है ! भावना में आस्था न हो तो मोतियाबिंद हो जाता है ! अमृतकाल का रसपान करना है तो आस्था पैदा करो ! फिर तो,,, तेरे द्वार खड़े भगवान भगत भर ले रे झोली -! आस्था नहीं है तो झोला उठा कर चलते बनो ! आस्था ने प्रगति करने में सबको पीछे छोड़ दिया है, ( कलि) "काल" का सारा "अमृत" आस्था की बदौलत है !
            पहले आस्था सात्विक और शाकाहारी हुआ करती थी, बाद में मोनोपॉली बरकरार रखने के चक्कर में आस्थाओं में टकराव पैदा हुआ और आस्था में हिंसा की घुसपैठ हो गई ! फिर आस्था ने आस्था पर हमला बोल दिया, -' भला उसकी आस्था मेरी आस्था से श्रेष्ठ कैसे -'! वो और होंगे जो जियो और जीने दो - जैसे रूढ़िवादी विचारधारा पर अमल करते हैं, हम एक म्यान में दो आस्था नहीं रखने वाले ! तुम अपनी आस्था को लेकर पाकिस्तान चले जाओ ! ये हमारी आस्था का देश है, इस मामले में, एक बार मैने जो कमेंटमेंट कर दिया तो फिर हम संविधान की भी नहीं सुनते ! आस्था और बलि का पुराना रिश्ता रहा है ! पहले सरकारी पुल बनाने में भी लोहा,सीमेंट और बालू से ज़्यादा आस्था का ख्याल रखा जाता था, इसलिए नीव में मसाले से ज्यादा मानव बलि का ध्यान रखना पड़ता था ! जब से आस्था रहित पुल और फ्लाईओवर बनने लगे, आए दिन गिरने लगे हैं ! 
        आस्था आहत हो रही है, चोटिल हो रही है और प्रचंड हो रही है ! कभी कभी तो ये आस्था किसी खास समुदाय वाले सिंगल पर्सन को देखने पर आगबबूला भी हो जाती है ! पिछले हफ्ते हरिद्वार में गंगाघाट पर कुछ दाढ़ी वाले युवकों को घूमते देख कर भी आस्था को क्रोध आ गया था ! अच्छा हुआ कि " एंटी आस्था एलिमेंट" वक्त की नज़ाकत को भांप कर वहां से हट गए, वरना चोटिल आस्था की टोह लेने वाले मीडिया के '        महावीर ' माइक लेकर पूछ रहे होते, - ' क्या तुम को पता नहीं कि तुम्हें देखने मात्र से आस्था आहत होने लगी है, फिर भी यहां चले आए! इस साज़िश में और कौन कौन शामिल है ! अपना नाम बताइए?"
        आस्था को लेकर मल्ल युद्ध जारी है ! डिबेट में आने वाले बुद्धिजीवी अगर मारपीट करने में अक्षम और अनुभवहीन हैं तो उनका लाइव चीरहरण तय है ! पिछले दिनों एक योद्धा को महिला द्वारा - बडे़ बे आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले - से गुजरते देखा गया ! पहले कभी आस्था इतनी सेंसेटिव नहीं थी ! आज वाली आस्था में सहिष्णुता की मलाई नही है!
      अब सियासत के भीष्म पितामह की समझ में आ गया है कि जनता को क्या चाहिए! अब आस्था में विकास की गति देख कर जनता खुश है ! बाकी विकास अभी पाइप लाइन में हैं! हॉर्न बजाते रहो, जगह मिलने पर साइड दी जाएगी! विकास की वरीयता क्रम में अभी आस्था के बाद दूर दूर तक कोई नहीं है ! पहले और अब की आस्था में बहुत अंतर है ! वर्तमान आस्था मोनोपोली चाहती है। इसलिए तमाम धर्म वैज्ञानिक फावड़ा लेकर दूसरों के धर्म की खुदाई में लग गए हैं! सारा गेहूं घुना हुआ साबित करना है ! नकली इतिहास खुरच कर हटाना है और असली को खोद कर निकालना है ! इतिहास के मर्मज्ञ फावड़ा लेकर काम में लग गए हैं, दुनियां हमारी जागरूकता देख कर हीनभावना के चलते सकते में है।
    अब तो सियासत और समाज दोनो आस्था से चल रहे हैं ! अब तो आस्था ही पंच वर्षीय योजनाओं का मेरुदंड है ! आस्था  सत्ता की नाभि का कल्याणकारी अमृत है, और आस्था ही सबसे बड़ा विकास !  इसलिए, धर्म की जय हो ! विश्व का विकास हो ! ( हमारा जो होना था हो गया!)  सभी मानव एक हों ! ( यहां रुकावट के लिए खेद है!)  तमसो मा ज्योतिर्गमय है -! ( अंदर का धर्मयोद्धा जाग रहा है, सारे घर के बदल डालूंगा !)

           विगत दस दिन से अब मेरी सारी आस्था यूनिफॉर्म सिविल कोड की ओर मुड़ गई है !!

        
        

Sunday, 18 June 2023

"व्यंग्य भारती"। 72 हूरों का पैकेज

(व्यंग्य "चिंतन")

    " 72   हूरों   का पैकेज"

               मीडिया का कब्ज इस बार हूरों की बदौलत दूर हो रहा है ! कुछ लोगों के लिए तो हूर का ज़िक्र ही झंडू पंचारिष्ठ का काम करता है और अगर मामला इकट्ठा 72 हूरों का हो तो महान लोग  स्वर्ग की अप्सराओं का मोह छोड़ कर हूरों के हवनकुंड में कूदने आ जाते हैं ! इस स्वादिष्ट शास्त्रार्थ में चैनल के मीडिया प्रभारी कुछ अधेड़ "हूरों" को भी शामिल कर लेते हैं ताकि बूढ़े दर्शकों की भी आस्था बनी रहे। हूरें सदैव से आकर्षण का केंद्र रही हैं, अब बहस इस बात को लेकर है कि किसी सम्प्रदाय विशेष को ऐसा बड़ा पैकेज क्यों ! ये तो ईश्वर द्वारा किया गया  सरासर तुष्टिकरण का केस है ! ज़िंदगी में चार हूरों का पैकेज और मरने के बाद 72 हूरों का ! इस तुष्टिकरण के खिलाफ चैनलों ने जेहाद छेड़ दिया है! ऊपरवाला बरामद नहीं हो रहा है, इसलिए नीचे दाढ़ी वालों के पीछे माइक लेकर दौड़ रहे हैं!
       चैनल वाले लिफाफा में 'पंजीरी' भी देते हैं, इसलिए दोनों संप्रदाय के धर्मयोद्धा डिबेट में आ जाते है ! देवपुरुष से ज़्यादा , डिबेट में आईं (एक्सपायरी डेट छूती) हुरें गुस्सा हैं ! एक हूर कुपित होकर दाढी वाले पर गुस्सा निकाल रही है, - ' तुम मर्दों के लिए बहत्तर हूरें, हमारे लिए क्या -!'
     दाढी वाले सन्न ! बुढ़ापे के दहलीज़ पर खड़ी "हूर" जन्नत में मिलने वाले पैकेज को लेकर अभी से चिंतित है ! चिंता वाजिब भी है , कहीं स्वर्ग के संविधान में हूरों के पैकेज में पृथ्वी की तरह ब्वॉयफ्रेंड और लिव इन रिलेशनशिप की सुविधा न हुई तो ,,,! ( क्या जीना तेरे बिना -!) हूरों पर हुंकार भरते लोग और फुफकार मारती टीआरपी देखकर हर चैनल ने व्हिप जारी कर दिया, - ' मंहगाई, अपराध और समंदरी तूफ़ान जैसे सांसारिक विषय में कोई प्रोटीन नहीं है ! सारे लोग कैमरा और माइक लेकर मुस्लिम मोहल्लों में फेरी लगाओ, मस्जिदों की परिक्रमा करो !  सारे सवाल 72 हूरों को लेकर पूछो ! मगर सावधान, पढ़े लिखे से नहीं अनपढ़ और मज़दूर लोगों की बाइट ज़्यादा लेना ! हमारी टीआरपी और तुम्हारी सेलरी का फाइबर वहीं से आएगा , वरना यू आर फायर्ड -'!
     दिव्य पत्रकारों की अक्षौहिणी सेना कुरुक्षेत्र की ओर प्रस्थान कर गई ! ठेले पर आम बेचते एक दाढ़ी वाले को देख कर एक पत्रकार ने अपना माइक संभाला, -' क्या नाम है आपका?' 
       ' कलीम नाम है, सब कल्लू कहते हैं '!
          " हूर के बारे में क्या कहना है?"
      कल्लू भाई ने समझा कि कोई नए नस्ल का आम आया है , - ' मंडी में ढूंढ लो बाबू, अभी शायद गोदाम से निकला नहीं । वैसे मेरे पास तोतापरी है, बढ़िया जायका है -'!
     " हूर आम की नस्ल में नहीं आती ! मैं उस हूर की बात कर रहा हूं जो आप लोगों को मरने के बाद जन्नत में मिलती हैं -'!
       " तब तो मेरे दादा ही बता सकते हैं आपको, चलिए मैं उनकी कब्र दिखा देता हूं, आप खुद ही पूछ लेना - ! मुझे तो बहुत गाली देते थे -'!
        एक पत्रकार अपने केमरामैन के साथ पंचर बनाने वाले अब्दुल की दूकान पर जा पहुंचा ! लंच का वक्त था कल्लू भाई बिरयानी खा रहे थे! भूखे पत्रकार ने अब्दुल से पूछा,- ' अब्दुल भाई, बडे़ की बिरयानी है क्या?'
    ' बड़े की बिरयानी तो बडे़ लोगों को नसीब होती है बाबू जी ! हम तो पंचर जोड़ने वाले छोटे लोग हैं, बकरा और मुर्गा से ही काम चला लेते हैं '!
      ' हैसियत'  की ऐसी कबीर वाणी सुन एंकर हीनता के चलते सदमे में आ गया ! थोड़ी देर में खुद को संभाल कर अब्दुल से पूछा, -'  बहत्तर हूरों के बारे में कुछ बताएंगे -?'
      " हां हां बिल्कुल !"
एंकर ने चैन की सांस ली, -' सुना है कि मरने के बाद बहत्तर हूरें मिलती हैं आप लोगों को ! कैसी होती हैं देखने में -?'
    " काहे जल्दी मचा रहे हैं बाबू जी ? मरने के बाद हूरें मिलती हैं न ! पहले मरने तो दीजिए -! अभी से परेशान हो , चलिए ऑक्सीजन आने दीजिए -'!
     गली में रद्दी पेपर खरीदने वाले अच्छन मियां से एक पत्रकार ने पूछा, - ' ये बहत्तर हूरों का क्या मामला है मियां जी ?' 
     " पता नहीं बाबू! हमारे मोहल्ले में सत्तार मियां ही अकेले ऐसे मर्द हैं जो "दो" हूरों को झेल रहे हैं ! हालांकि चार हूरों की छूट है, पर दो हूरों के सिलबट्टे में पिस कर पहलवान सत्तार मियां दस साल में पचासी किलो से पचास किलो  पर  आकर अटके हैं ! बड़ा कलेजा है भाई का, पिसे जा रिया है !"
        पत्रकार बहत्तर हूरों तक पहुंच ही नहीं पा रहा था !  अच्छन मियां बता रहे थे, -' मुहल्ले के जो नवजवान लौंडे चार शादियों का नमकीन ख्वाब देखते थे, अब सत्तार मियां का हस्र देखकर तौबा तौबा करते हैं ! पर मियां तुम बताओ ये बहत्तर हूरों वाला कौन मर्द मुजाहिद है, अभी जिंदा है क्या?'
      एक यू ट्यूबर सब्जी बेचने वाले बाबू मियां से पूछ रहा था, -'  ये हूरें दिखने में कैसी होती हैं खां साहब?'
    "बिल्कुल टमाटर की तरह सुर्ख़ रंग , मूली के पत्ते की तरह हरी आंखें, शहतूत जैसे होंठ ,तरोई जैसी पतली कमर,  गरदन जैसी कोई सब्जी फिलहाल दूकान में नहीं है! कुल मिलाकर ये समझो बाबू जी, कि उनमें कोई आदत हमारी बीवियों जैसी नहीं होगी, कि घर में घुसे नहीं कि जेब पर डाका पड़ा -'!
          " तुम्हें तो मरने के बाद 72 हूरें मिल जाएंगी, औरतों को क्या मिलेगा ?'
      " यहां की दुनियां में ज़्यादा से ज़्यादा चार हूरों की इजाजत है, वहां ये आंकड़ा बहत्तर तक है ! पर न तो यहां हर कोई चार हूरों के साथ चैन से जीता है न वहां बहत्तर के साथ जन्नत में जी पाएगा।  बाकी मैं तो ठहरा जाहिल, मौलाना साहब  सही जानकारी देंगे आपको -'!

      उधर एक चैनल के डिबेट में दाढ़ी वाले एक युवक ने ये कह कर आग पर घी डाल दिया था, - ' जैसा अमल होगा वैसा ईनाम मिलेगा ! गीता में भी कहा गया है कि - जैसा करम करोगे वैसा फल देगा भगवान' -! बस फिर क्या था, डिबेट में बैठीं तीन अधेड़ "हूरों" ने इसे अपने "कर्म" पर कटाक्ष समझ कर दाढ़ी वाले पर सर्जिकल स्ट्राइक शुरू कर दी थी ! 

        दर्शकों में उत्साह छा गया , एक धर्मविशेष का चीर हरण देख कर विरोधियों को घर का कनस्तर बगैर आटे के भरता हुआ नज़र आ रहा था, देश आत्मनिर्भर हो रहा था और ऐसा लगता था कि विश्व गुरु होने के रास्ते की सारी बाधाएं अब जाकर दूर हुई हैं !   

   72 हूरों  के चलते प्रगति के कितने सारे मेगा प्रोजेक्ट रूक  गए थे !

       -  Sultan bharti - [Satirist]

 

Thursday, 15 June 2023

(व्यंग्य भारती) "सपनों का नया पैकेज "!

"व्यंग्य" भरती
                "सपनों का नया पैकेज"

     अब का बताएं भइया ! आम में भले बौर न आए, विकास मे भरपूर आता है! परसों मोहल्ले के नेता के बेटे का बर्थडे था, भूतपूर्व विधायक जी भी आए थे! ( भूतपूर्व होने के बाद प्राणी मुख्य धारा में आने के लिए कितना व्याकुल होता है!) मुहल्ले के लोगों को थोक में देख कर वो केक की जगह सपने बांटने लगे, -' आधा जून निकल गया,बारिश नहीं हुई! मैं जब विधायक था तो आंधी,तूफान, बारिश,आम का बौर हो या गोमती मे बाढ़ सब कुछ वक्त पर आती थी ! कोई समस्या हो तो बताएं?'
                    समवेत स्वर में कई समस्याएं पेश हुईं, -' आपने जितने फार्म भरवाए थे, किसी को पेंशन नहीं मिली '!
      ' अभी तक मुझे आवास नहीं मिला '! 
    ' गांव तक आने वाली जो सड़क विधायक फंड से बनवाया था, वो एक बरसात में बह गई  '!
    ' मनरेगा में काम तो हुआ लेकिन मजदूरी नहीं मिली'!
    ' पुष्टाहार योजना का चना नही मिल रहा '!
" बिजली बराबर नहीं आ रही '-!
    आख़िरी शिकायत में फाइबर था, नेता जी को ऑक्सीजन मिली, - ' देखिए, ये सरकार जन विरोधी है।देश को बाइसवीं सदी में ले जानें की जगह गुफा युग में ले जा रही है ! अगले साल आपको इनके षड्यंत्र से बाहर निकलना है"!
 मुहल्ले के एक बुजुर्ग ने नेता जी की दुखती रग पर हाथ रखा दिया, -'  नये विधायक ने कहा है कि वो आपकी जांच करवाएगा, किस चीज की जांच?"
    नेता जी को लगा केक का कोई टुकड़ा गले में फंस गया है, गुस्सा पीकर वो मुस्कराए,  -' सत्ता पक्ष का काम है विपक्ष पर झूठे आरोप लगाना, मैं इसका बुरा नहीं मानता ! अभी तीन साल बाकी है, तब तक जानें कितने आरोप लगेंगे! मैंने तो जनता के उद्धार के लिए ही अवतार लिया है -'!
        इस वक्त देश में अमृतकाल चल रहा है ! कहां से आया और क्यों चल रहा है, छोड़ो ये न पूछो ! इस वक्त विकास को लेकर परस्पर विरोधी 

Saturday, 20 May 2023

"व्यंग्य भारती" दो हजार का नोट

"व्यंग्य" भारती

              दो हज़ार का नोट

         आज सुबह ही सुबह चौधरी ने आकर मुझे टटोला, - ' उरे कू सुण भारती ! तेरी तो लुटिया ही डूब गी , इब के करेगो !'
      मैं हैरान था, मेरी लुटिया डूब गई थी और मुझे बिल्कुल पता नहीं था! मैंने हैरत से बताया, - ' कैसे डूब गई, जब कि मेरे पास तो एक भी लुटिया नहीं थी -! फिर भी मुझे उसके डूबने का अफसोस है -!'
      " घणा पत्रकार बना हांड रहो, अर इतनो भी ख़बर नो है अक दो हज़ार कौ लोट बंद हो गयो, इब के करेगो '!
      " सरकार को धन्यवाद दूंगा ! सच कहूं आंखों को ठंढक पहुंचाने वाली ख़बर सुनाई है तुमने! कंबख्त को मैं फूटी आंख भी नहीं देखना चाहता था ! जब भी किसी को वो गिनते हुए देखता तो मन ही मन सोचता, काश उसकी उंगलियां जकड़ जाएं या जेब में आग लग जाए-'!
      " क्यों" 
   " क्यों कि मेरी जेब में लाल रंग के ये क्रान्तिकारी नोट कभी आये ही नहीं ! मेरी तो समझ में नहीं आता कि ये नोट निकाला ही क्यों जो सबका साथ सबका विकास के अनुकूल न हो ! सामने वाले को गिनते देख हमेशा हीनता आ जाती थी! पचास रुपए से ऊपर का नोट छपना ही नही चाहिए, तभी डिजिटल इंडिया बन पाएगा -'!
   " कूण बना रहो डिजिटल इंडिया -'?
  ' कई लोग इस काम में लगे हैं! तुम्हें तो दूध का दही बनाने से फुर्सत मिले तभी तो डिजिटल इंडिया बनाओगे! तुम तो हर चुनाव में बेवकूफ बनते रहो,बस !'
       " के करूं, मने कदी बनाया कोन्या ! लोग उधार खा खा कर उल्लू बना दें! अच्छा याद दिलाया तने, कद चुका रहो पिछले साड़ की उधारी"?
        " इस साल उधारी की नहीं, प्यार मुहब्बत की बात करो, सुना नहीं, उधार प्यार की कैंची है! हमें तो कैंची का जिक्र भी नहीं करना चाहिए, खैर अब ये तो बता दो कि घर में दो हज़ार वाले कितने पड़े हैं? उन्हें देख कर घबराना मत, मैं हूं न !"
       " अच्छा याद दिलाया, नू बता, वो सीआईडी वाड़ा के मामला हा ?"
      " सीआईडी वाला ! मैं समझा नहीं?"
     " वर्मा नू बता रहो अक - बंद हुए दो हजार वाड़े नोट में सरकार ने सीआईडी फिट किया हा "!
     " अच्छा, तुम्हारा मतलब चिप्स ! हां, सुना तो मैने भी था, पर टटोल कर कभी देखा नहीं "! 
      " पर लगाया किस लिए था ?"
    " सरकार ने चिप्स लगा कर नोट को छोड़ दिया था, कि जहां जहां नोट जाएगा, सरकार को ख़बर लग जाएगी कि उस नोट के इर्द गिर्द कितने काले धन वाले नोट हैं ! चिप्स की आपसी बात चीत रिकॉर्ड होते ही ईडी वाले जाकर जमाखोरों को पकड़ लेने वाले थे "।
    " जमाखोर कूण सै "? 
     " कैसे बताऊं ! ऐसा समझ लो जैसे किसी दूध बेचने वाले के धौरे बगैर हिसाब के नोट आ जाए और वो फिर भी शरीफ़ लोगों से उधारी वसूलने की चिन्ता में दुबला होता रहे ! साठ साल की उम्र में तो  मोह माया से दूर रहना चाहिए "!
    चौधरी ने घूर कर देखा, - ' जो पूछ रहा, वो बता दे ! जिब नोट बढ़िया काम कर रहा था, फेर बंद करने की के ज़रूरत पड़   गी "?
     " वही तो रोना है चौधरी, नोट नाकारा साबित हुआ ! बिलकुल बिलल्ला !!"
        "  कैसे ?"
     " नोट को इसलिए स्पेशल बनाकर छोड़ा गया था कि वो काले धन को ख़त्म करेगा, पर वो खुद काले धन कुबेरों के साथ गलबहियां डाल कर गाने लगा, -' हम बने तुम बने इक दूजे के लिए -'!
    " कती धोखेबाज लिकडा -"!
  "जमाना घणा बुरा सै चौधरी! कितने लाड प्यार और उम्मीद से पाल पोस कर उसे मिशन में लगाया गया था, पर - सब धन धूल समान- ! इसलिए महाबली के आदेश पर नोट की किडनी निकाल ली गईं, और उसे  देश निकाला दे दिया गया - चल उड़ जा रे पंछी कि अब ये देश हुआ बेगाना -- "!
    " काड़े धनवाड़ा ?"
  " उसे पकड़ने के लिए कोई नया नोट और नया तरीका निकाला जायेगा! वैसे देखा जाए तो बड़ी विकट समस्या है, जिसे काले धनकुबेर पर लगाम लगाने के लिए भेजा जाता है, वही अपनी पीठ पर काठी लगा कर उनके सामने हिनहिनाने लगता है "!
    " कितै छुपा बैठो है यू काड़े धन वाड़ा ?"
एक बारगी तो मेरे मन में आया कि 'वर्मा जी' का नाम ले लूं, फिर सोचा कि तीनों का संडे खराब हो जायेगा ! मैंने चौधरी को समझाया, -' सरकार ने नोट बंद कर के सर्जिकल स्ट्राइक तो कर दी है!"
   " के    मतबल !!"
   " काले धनकुबेरों के लिए काला धन ही ऑक्सीजन है, ऑक्सीजन बंद तो सांस बंद! इस वक्त काले धन वालों को दिन रात हिचकी आ रही है, क्योंकि सरकार ने दो हज़ार का नोट बंद करके उनकी ऑक्सीजन सप्लाई रोक दी! वैसे तुम्हारे पास लाल रंग वाला कितना काला धन है '?
   ' कटे घाव पे कटहल मत गिरा ! किस्मत में काड़ा सफेद कैसा भी नोट कोन्या ! देखने कू कती तरस गयो ! किस्मत कती खराब सै, तीस साड़ पहले तू आयो अर तीन साड़ ते कोरोना ! जिब ते कुंडली की सांस उखड़  गी ! लोग नू कहें अक उधार देने ते बरकत उड़ ज्या! आखिरकार तेरी उधारी के चलते दो हज़ार का नोट उड़ गया -! चल इब लौटा दे बरकत नै -!"

  चौधरी को उधारी की हिचकी शुरु हो गई थी , मैने चुप हो जाना ही बेहतर समझा !




Tuesday, 2 May 2023

व्यंग्य भारती "मैं बपुरा बूडन डरा,,,!"

(व्यंग्य भारती)

     मैं बपुरा बूड़न डरा,,,,,,"!

     अब क्या बताऊं कि मैं लीगल काम करने में भी कितना डरता हूं ! मैं विचार करने में उम्र खर्च करता रहा और भद्र जन विकास करते रहे ! जितनी देर मैं आत्मनिर्भर होने के बारे में सोचता हूं, उतनी देर में लोग एन जी ओ बनाकर दूसरों को आत्मनिर्भर करने में लग जाते हैं ! शायर लोगों ने मेरी इसी लेट लतीफी पर एक शेर भी कहा है, -' कारवां निकल गया गुबार देखते रहे -'! अब भैया क्या बताऊं, इतनी बार गुबार को देखा कि आंख और दिल दोनों में मोतियाबिंद का खतरा  है !
     2020 के बाद जब रोटी रोजी में कोरोणा लगा तो मेरे जैसे लोग आपदा में घिर गए, लेकिन साहसी लोग अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने लगे । यही वो लोग थे जो आपदा और अवसर दोनों का मर्म समझते थे ! ऑक्सीमीटर से लेकर ऑक्सीजन सिलेंडर तक एक दम से उड़ गए, तो यही वीर पुरूष संजीवनी बूटी ढूंढ कर लाते रहे! ऐसे ही वीरों के बारे में साहित्यकारों ने कहा है, - वीर भोग्या वसुंधरा -! (कलियुग में कुछ लोगों ने इन वीरों की प्रगति से कुपित होकर उन्हें  "कालाबाजारी" करने वाला तक कह दिया ! का करें, लोग तो संतो को भी नहीं बख्शते!) 
          जो प्राणी आपदा की आहट पाकर ही पसीने पसीने हो जाता हो , वो क्या ख़ाक अवसर का लाभ उठाएगा! यहां तो अवसर का विज्ञापन देख कर आपदा की गंध महसूस होती है ! परसों शाहीन बाग के बस स्टॉप पर - ' प्रतिदिन 1200/ से 3500/तक कमाएं -' का विज्ञापन देखा ! बेकारी का पतझड़ झेल रहे शख्स के लिए ये बहुत बड़ी रकम थी ! फौरन दिए हुए नंबर पर फ़ोन मिलाया ! उधर से बताया गया कि मैं बड़ा भाग्यशाली हूं, क्योंकि अब सिर्फ़ एक ही सीट बची है -!' कायदे से तो मुझे खुश होना चाहिए था, लेकिन मुझे अवसर और ऑफर की जगह मछली फांसने का कांटा नजर आने लगा ! उधर से एक लडकी बेहद मधुर आवाज़ में बता रही थी,-' मैं फर्म का एकाउंट नंबर व्हाट्स ऐप कर रही हूं, आप सिक्योरिटी के तौर पर सात हजार पांच सौ रुपया फौरन डिपॉजिट करवा दो, आपका अपॉइंटमेट लेटर भेज दिया जाएगा ! हैव ए गुड डे सर -'! 
         एक बार फिर मैं खुद को अवसर के ऑउटर पर खड़ा हुआ देख रहा था !
             किसी के पास घर न हो और उसे ये विज्ञापन नज़र आ जाए तो,,,,,,- दिल्ली से बीस मिनट की दूरी पर ग्रेटर नोएडा में अपना आशियाना बनाएं, सिर्फ 4500/ प्रति गज के रेट पर! दस हज़ार देकर  कब्जा  पाएं, बाकी  आसान किश्तों पर -! इस सादगी पे कौन न लुट जाए ऐ खुदा ! पढ़ते ही खाट समेत घर नज़र आने लगता है। फिर भी मैं बपुरा बूडन डरा,,,! तमाम सवाल कांटों की तरह हलक उग आए, - ' ये सतयुग वाला प्रॉपर्टी डीलर कौन आ गया ! दिल्ली से बीस मिनट के फासले पर ? पैदल या बुलेट ट्रेन से बीस मिनट !!
कनॉट प्लेस से बीस मिनट या कड़कड़डूमा से बीस मिनट !! पैतालीस सौ का रेट तो तुगलकाबाद किले के अंदर भी नही है -!'  अपने आप से इतने सवाल !! एक बार फिर मैं वीर भोग्या वसुंधरा - का अवसर खो बैठा था।
       बेहद सज्जन आदमी और भेड़ में बड़ी समानता होती है, दोनों ही नियमित रूप से मूंडे जाते हैं ! देश में कभी पब्लिशर प्रचुर मात्रा में थे, लेखक कम थे ! आज लेखकों की सुनामी आई हुई है,मगर फ्री में छापने वाले देसी घी की तरह दुर्लभ हैं ! कैफियत ये है कि लेखक - हरि अनंत हरि कथा अनंता - की तरह हर मोहल्ले में व्याप्त है, किंतु कैश की जगह कंटेंट के आधार पर रचना छापने वाला प्रकाशक , ईश्वर की तरह होते हुए भी, नज़र नहीं आता ! फिर  कालिकाल  में  अचानक ही  मामला, - बरसे कंबल भीगे पानी - जैसा सरल हो गया ! यानि जो लेखक पहले प्रकाशक को ढूंढ रहे थे, उन्हें अचानक प्रकाशक पुकारने लगे, - आवाज़ दो कहां हो -! सोशल मीडिया पर बरसीम की तरह पब्लिशर उगने लगे ! ये प्रकाशकों की वो दिव्य प्रजाति थी जो हर ' निरहुआ' को "नामवर"  बनाने  पर उतारू थे ! लगभग हर प्रकाशक हर रचना को एक सौ पैंसठ देशों में बेचने का दावा कर रहा है , साथ में सौ फीसदी रॉयल्टी वाला थैला ! मेरा मन भी ज्वालामुखी में फौरन कूद पड़ने को आतुर था, पर 2999 रूपए का पैकेज देखकर एक बार फिर हलक में सवाल उग आए, और एक बार फिर मैं - "सौ प्रतिशत रॉयल्टी और विश्व विख्यात"- होने से महरूम हो गया ! कारण,,,,,?
   मैं बपुरा बूड़न डरा ! ये जो बुद्धिजीवी होते हैं न! ये कभी रिस्क नहीं लेते ! आपदा में खुश रह लेंगे, लेकिन डूबने का रिस्क नहीं लेंगे ! अपनी शादी को छोड़ कर हर अवसर को  शक  की  नजर  से देखते हैं !  2999रुपए का पैकेज देखते ही जहां नया लेखक फौरन विश्वविख्यात होने को व्याकुल हो जाता है, वहीं बुद्धिजीवी लेखक सवाल खड़ा कर देता है, इतनेकम पैसे में - कागज़, टाइपिंग, प्रिंटिंग, प्रूफ रीडिंग, पैकिंग,,, ! ज़रूर कुछ घपला है ! अब आप खुद सोचो, भला इतने शक्की साहित्यकार को इस दौर का सतयुग कैसे सूट करेगा ! इसलिए ऐसे खुन्नसी लेखक सत्तर साल की उम्र में भी वरिष्ठ और विख्यात होने से वंचित होते हैं,और एक दिन उन्हीं बागी तेवरों के साथ "वीरगति" को प्राप्त होते हैं ! और फिर,,,, उनके विरोधी भी मंच पर उन्हें "महान" घोषित करते हुए ऐलान करते हैं,- ' खुदा  बख्शे, बहुत  सी  खूबियां  थीं  मरने  वाले में - !'

Sunday, 23 April 2023

("व्यंग्य"भारती) अब किसी बात पर नही आती

"व्यंग्य" भारती

,,,,"अब किसी बात पर नहीं आती"

         अब का बताएं भैया, मेरी हंसी खो गई है ! कोरोना के दौरान भी हंसी का ऑक्सीजन लेवल ठीक था ! हंसी तब भी क्रिटिकल नहीं थी जब यदा कदा डॉक्टरों ने मरना शुरू किया था ! जब मरणासन्न नींबू 280 रुपए किलो बिक रहे थे, तब भी मैं गाहे ब गाहे हंस लेता था ! जब विपक्ष बाढ़, सूखा और चक्रवातीय समुद्री तूफान के पीछे सत्तारूढ़ दल को जिम्मेदार ठहरा रही थी तो भी मेरी हंसी आत्मनिर्भर थी ! जब खेतों में गेहूं की फसल बारिस में तबाह होने पर भी मीडिया खाद्यान व्यवस्था को पहले से ज्यादा मजबूत बता रही थी, तो मेरी हंसी भी अर्थव्यवस्था की तरह मजबूत हो रही थी ! जब धार्मिक जुलूस के बाद उपद्रव से भाईचारा मजबूत हो रहा था ,तो भी हंसी में कोई इन्फेक्शन नहीं पैदा हुआ !
      लेकिन अब,,,, गज़ब भयो रामा जुलम भयो रे !
ऐसा लगा जैसे हंसी कोमा में चली गई! सारे टोटके आजमा लिए, हंसी नहीं आ रही ! वैसे मेरे घनिष्ट मित्रों में ऐसे ऐसे 'शुभचिंतक' हैं जो मुझे हंसता हुआ देख लें तो उनका 200 ग्राम खून जल जाए ! मैने सोचा, क्यों न उन्ही से किसी एक से शुरूआत करूं! सबसे पहले मैने वर्मा जी से ही दुख बांटना बेहतर समझा, मैंने जान बूझ कर काफ़ी गमगीन लहज़े में कहा, -" मेरे ऊपर तो मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा है -"!
         'मेरे ऊपर मुसीबत'- शब्द सुनते ही वर्मा जी के चेहरे की रौनक और चमक एक दम से बढ़ गई, फिर अचानक ही जबरदस्ती मायूस होने की नाकाम कोशिश करते हुए बोले, -" भगवान की जैसी मर्जी ! होनी को कौन टाल सकता है, तो,,,यह  पहला हार्टअटैक था क्या?"
     " नहीं "! 
   " ओह, तो दूसरा था  ! सद अफ़सोस !! अब सिर्फ़ एक अटैक और पेंडिंग है! भाई कहा सुना माफ़ करना ! जीवन चला चली का मेला है!'
   " वो बात नहीं है -'!
वर्मा जी की आंतरिक खुशियों पर जैसे नींबू की पहली बूंद गिरी हो ! थोड़ा शंकित होकर उन्होंने पूछा, -" तो,,, क्या है -?"
    "पिछले हफ्ते से मुझे हंसी नहीं आ रही है !"
      ऐसा लगा जैसे उनकी आखों में क्रोध का ज्वालामुखी फूट पड़ा हो ! अपनी खुशियों की भ्रूण हत्या होती देख वो क्रोध में दुर्वासा ऋषि नज़र आने लगे, - " तुझे हंसी नहीं आ रही और मुझे अब अपने आप पर रोना आ रहा है ! मुझे पता होता तो मैं कभी दरवाज़ा न खोलता -!"
  " तो गोया आप मेरे आकस्मिक मृत्यु से खुश होने वाले थे ?"
   अब वर्मा जी को लगा कि उन्होंने खुशी प्रकट करने की जल्दबाजी में पर्याप्त सावधानी नहीं बरती, खुद को संभालते हुए उन्होंने मामले पर मिट्टी डाली, - ' तुम्हारे बारे में दुखद खबर सुनकर मेरा हार्ट अटैक हो जाता तो,,,?'
     मैं जानता था कि उनकी सुखद कल्पनाओं पर वज्रपात हो चुका है , कुछ देर और रुक कर मैं उनके घाव पर नींबू नहीं टपकाना चाहता था! मैने अपने दूसरे मित्र चौधरी के पास जाकर अपनी समस्या बताई, -' मुझे हंसी नहीं आ रही है -'!
 ' पर मन्ने त घणा रोना आ रहो ! कूण सा बुरो बखत हा, जिब थारे बगल आके बस गयो! कोरोना कती पीछा न छोड़ रहो! आजकड़ सेहत अर खुशी सिर्फ डॉक्टरन के धौरे मिलेगी -'!
  " हंसी के लिए मैं डॉक्टर को अफोर्ड नहीं कर सकता "!
    अचानक ही चौधरी को कुछ याद आ गया, -'उरे
कू सुन भारती! यू सतपाल मलिक कूण सै?'
     " गृहमंत्री ने पत्रकारों से एक सवाल पूछ कर सतपाल मलिक की सारी इमेज को ही कटघरे में खडा कर दिया कि अगर वो इतने बड़े सत्यवादी हैं तो इतने दिन खामोश क्यों थे? अब कुर्सी से हटने के बाद सत्यवादी होने की क्यों सूझी !! खैर, मैं क्या करूं, मुझे हंसी नहीं आ रही है ?'
      " तेरी वजह ते बहुतों को हंसी न आ रही, भगवान के घर देर है, पर अंधेर कोन्या -!'
       वहां से निकल कर मैंने पड़ोस के ही एक छायावादी कवि से समस्या साझा की,-' क्या करें,- '
पहले आती थी हाले दिल पे हंसी!
अब  किसी  बात  पे  नहीं  आती !!'
      उनके मुरदार चेहरे पर ग्राहक पाने वाली खुशी नज़र आई  ! वो चहक कर बोले - " बहुत दिनों के बाद इतनी विलक्षण क्रान्तिकारी कविता का सृजन हुआ हुआ है, तुम्हारा सौभाग्य है कि तुम सही मुहूर्त में आए हो "!
            न जाने क्यों मुझे ऐसा लगा कि मैं दलदल में फंसने वाला हूं ! कवि का मुझे देखते ही इतना खुश होना,,,,मुझे शक हो रहा था। कवि तुरंत बगल वाले कमरे में घुसा, मैने समझा नाश्ता लाने गया है, परंतु उसे एक रजिस्टर के साथ लौटते देख मेरा शक भय में बदल गया ! रजिस्टर खोलते हुए कवि मेरी तरफ़ देख कर मुस्कराया, - ' मुझे पूरा यकीन है  कि मेरी कविता सुनकर आपकी खोई हुई हंसी वापस लौट आएगी "!
       मेरा गला सूख रहा था, मैंने धड़कते दिल के साथ पूछा, -' ये कविता संग्रह है क्या ?'
       ' और नहीं भाई, ये एक ही कविता है, एक सौ पैंसठ पेज लंबी ! इसे गिनीज़ बुक में ले जाना है, किंतु कोई सुनने को राज़ी नहीं है ! देखिए, आज़ आप  हत्थे चढ़ गए ! ख़ैर,,,इस कविता का शीर्षक है  "मय्यत" !
    सुनकर  मेरी आंखों के आगे अंधेरा सा छा गया ! मेरे दो घंटे का जनाजा उठने वाला था ! कवि मेरे सामने इस तरह बैठा था कि मैं भाग भी नही सकता था ! कवि ने अभी पहला पेज खोला ही था कि दरवाज़ा धड़ाक से खुला और चौधरी अंदर आया ,  -' उ रे कू सुन भारती ! दूध अर घी दोनों तोल दिया है, इब चलकर  ठा ले "!
     मैं जान बचा कर भागा ! कवि मेरी तरफ़ ऐसे देख रहा था गोया, किसी ने बिल्ले के मुंह से कबूतर छीन लिया हो ! रास्ते में  चौधरी  मुझसे कह रहा था, -' थारी किस्मत अच्छी थी , अक मन्ने तुझे कवि के घर में घुसते देख लिया हा, वरना आज तू ढाई घंटे ते पहले लिकड़ न पाता ! कवि कू घने दिन ते या कविता सुनने वाड़ों की तलाश सै ! एक दिन वा ने दो लाइनें मेरी भैंस कू सुना दी, भैंस नै दूध देना कती बंद कर दिया ! उसे नॉर्मल होने में हफ्ता लिकड़ गया ! कदी मैं फंस जाऊं त फिर तू भी मेरो ध्यान रखियो' - ! 

  अब कैफियत ये है कि जब भी भैंस को देखता हूं, बेशाख्ता हंसने लगता हूं !

  

Friday, 7 April 2023

(व्यंग्य "भारती") " तीन एंकर "

( व्यंग्य "भारती")

              तीन एंकर

      महानगर में दंगा हो गया! पूरी रात शहर दंगाईयों के कब्जे में रहा ! गरीबों को लूटने और घर जलाने के साथ साथ मस्जिदों में तोड़ और आगजनी भी की गई ! दंगाईयों ने हथियार लहराते हुए पीड़ितों पर ईट पत्थर फेंके, मस्जिदों पर हमला किया, नमाजियों के साथ मार पीट की और एक प्राचीन मदरसे में आग लगा दी ! अगले दिन दोपहर  तक मीडिया के लोग सक्रिय हो गए। एक एंकर जलाए गए मुहल्ले में, दूसरा उस मस्जिद मे जिसके नमाजियों को घुस  कर पीटा गया था, और तीसरा एंकर जलाए गए प्राचीन मदरसे में जा पहुंचा !
               ( पहला एंकर )
   ' मैं उस मुहल्ले में हूं , जहां 'कथित' रूप से लूटपाट और आगजनी हुईं है ! हर्ष का विषय है कि  भीड़ ने किसी को जान से नहीं मारा ! इसका अर्थ है कि अभी भी अपने देश के लुटेरों में दया, भाईचारा और सहिष्णुता का अभाव नहीं है ! किसी विद्वान ने क्या खूब कहा है, -' दया समान धर्म नहीं दूजा -!   इस मोहल्ले में दंगाईयों ने लूटा पीटा, आग लगाया किन्तु दया और इंसानियत पर अटल रहे ! हमें उनसे सीख मिलती है कि दंगे के समय भी दया और मानवता नहीं त्यागना चाहिए -'!
       मीडिया को देखकर जले हुए घरों से कुछ लोग निकल कर देखने लगे थे, एंकर माइक लेकर एक महिला के पास जा पहुंचा , - ' धार्मिक जुलूस था, आप लोगों की तरफ से उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए पथराव किया गया था ! पहला पत्थर आप में से किसने फेंका था -'?
     " किसी ने नहीं !'
          पत्रकार की भावना को ठेस पहुंची,- ' ठीक से सोचो ! बगैर पथराव के दंगा कैसे हो सकता है ! लगता है सदमे की वजह से तुम्हारी याददाश्त जा चुकी है , अब तो अगले दंगे में ही याददाश्त वापस लौट पाएगी-!'
     'हम सब मज़दूर हैं, पथराव क्यों करते! जुलूस तो पिछले साल भी आया था- '!
   ' अच्छा! तो पिछले साल आप लोगों ने पथराव नहीं किया था, तो इस साल भी न करते ! चलिए अब उस मास्टर माइंड का नाम बताइए, जिसने पथराव और दंगे की प्लानिंग बनाई थी?"
   तभी एक और महिला चिल्लाई, -' मार दहिजरे को ! हमारा घर जला और हमारे ही आदमी जेल में बन्द किए गए,  ये घाव पर नमक छिड़क रहा है -'! 
   औरतों की भीड़ को पत्थर ढूढते देख एंकर और कैमरामैन भाग निकले! 
                 ( एंकर नंबर 2 )
      ये एंकर ठीक उस वक्त मस्जिद के अंदर पंहुचा जब लोग रोजा इफ्तार की तैयारी कर रहे थे। माइक और कैमरा देखकर कुछ बुजुर्ग नमाज़ी पास आ गए ! एंकर ने पूछा, -' परसों आख़िर हुआ क्या था ?'
     सर पर पट्टी बंधवाए हुए एक बुजुर्ग बताने लगे, -' हम लोग रोजा खोल रहे थे, तभी लाठी डंडे और लोहे की सरिया लेकर भीड़ अंदर आई और मार पीट शुरु कर दिया!"
     ' एफ आई आर में जिक्र है कि मस्जिद से पथराव हुआ था,आप लोग इफ्तारी में भी पत्थर लेकर बैठते हैं - ' ?
   ' हमारी इफतारी चेक कर लीजिए !'
' अगर आपने पथराव नहीं किया तो जुलूस वालों को चोट कैसे लगी! आपमें तो कोई घायल नहीं हुआ ?'
      ' शायद आपको हमारे सर पर बंधी पट्टी भी नज़र नहीं आ रही '-!
 " पट्टी से तो पता नहीं चलेगा कि पत्थर जुलूस की तरफ़ से आया या मस्जिद की तरफ से ! क्या पता आप किसी नमाज़ी के पथराव का निशाना बने हों! किसी नमाज़ी से कोई पुरानी रंजिश - ?'
    बुजुर्ग अपना बाल नोचता हुआ चीखा, -' खुदा के वास्ते मस्जिद से निकल जा ! वर्ना हम सब पागल हो जाएंगे -'!
   मस्जिद से बाहर आकर एंकर माइक पर व्यूअर्स को बताने लगा, -' दर्शक सीधी तस्वीरें उस मस्जिद की देख रहे हैं, जहां से परसों धार्मिक जुलूस पर पथराव हुआ था और भक्तों को गंभीर चोटें आईं थीं! मस्जिद में आज भी काफ़ी लोग जमा है, और पुलिस का दूर दूर तक कोई पता नहीं है ! ऐसे में कोई जुलूस निकला तो मस्जिद की तरफ से पथराव होना तय है ! कैमरामैन धृतराष्ट्र के साथ मैं कुमार दिव्य दृष्टि!"

                          ( तीसरा एंकर)

      यह एक जला हुआ प्राचीन मदरसा था जहां सैकड़ों दुर्लभ मजहबी ग्रंथ जला डाले गए थे! मदरसे के एक बुजुर्ग टीचर एंकर को दिखाते हुए बता रहे थे, -' ये इतना बड़ा नुकसान है, जिसकी भरपाई नहीं हो सकती "!
     '  क्यों ?'
" सैकड़ों साल पुरानी किताबें कहां से आएंगी!'
      ' आग लगाने वाले कौन थे '?
 ' हिंसक भीड़ थी, भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता ! मदरसे की पहचान जिन किताबों के बदौलत दुनियां में थी, उसे जला दिया गया -'!
    ' ऐसा लगता है पड़ोसी राज्य बंगाल से उपद्रवी आए थे, आपका क्या कहना है?'
      ' मैं कैसे बता सकता हूं, ये तो जांच करने के बाद पता चलेगा -'!
   " बंगाल के लोग मछली बहुत खाते हैं,यहां चारों ओर मछली की गंध फैली हुई है! आप हमारे कैमरे पर बयान दीजिए कि दंगाई लोग पश्चिम बंगाल से आए थे -'!
 "ये महक मछली की नहीं , मिट्टी के तेल की है ! दंगाईयों ने मिट्टी का तेल डालकर आग लगाई थी '!
   एंकर बिलकुल हताश नज़र आने लगा था, बुजुर्ग टीचर बता रहे थे, - ' मछली तो हम भी खाते हैं "!
      " तो फिर,,, हो सकता है, मदरसे में उस दिन मछ्ली पकाते हुए आग लगी हो ! याद कर के बताओ, उस दिन कौन सी मछ्ली पका पका रहे थे आप लोग -"?
     बुजुर्ग को बिलकुल गुस्सा नहीं आया, - " वो दूसरी इमारत है, जहां खाना बनता है, उसमें आग नहीं लगाई गई, आइए छत पर चलते हैं "!
         छत पर सीमेंट, ईट और रोड़ी पड़ी थी, देखते ही एंकर का मायूस चेहरा खिल उठा , -' तो,,, यही है वो गुप्त जगह, जहां से उस दिन धार्मिक जुलूस पर पथराव किया गया था ! कितने आदमी थे ? '
         " उस दिन कोई जुलूस नहीं निकला था , भीड़ आई थी जो लूटमार और आगजनी करके चली गई -'!
     " अच्छा ! मतलब आप लोगों ने जुलूस को निकल जाने दिया, पीछे चल रही भीड़ पर पथराव किया था ! पथराव करने में आप के साथ मदरसे के और कितने आदमी थे ?"
     बुजुर्ग टीचर गंभीर होकर बोला,-' मुझे तो पत्थर बाज़ साबित ही कर दिया तुमने, बाकी की पहचान भी तुम्हीं बता दो -! बस इतना और बता दो, कि इतना इल्म लाते कहां से हो  -'!!
       आधे घंटे बाद मदरसे से बाहर आकर एंकर अपने कैमरे  के सामने बोल रहा था, -' हर्ष का विषय है कि मदरसे की छत से हुए  पथराव से भीड़ को चोट नहीं लगी ! लगता है जैसे, पथराव से क्रुद्ध भीड़ ने ही मदरसे में आग लगाई थी ! अगर मदरसे के स्टॉफ और छात्रों पर सख्ती की जाए तो ईंट का ईंट और मछ्ली का मछ्ली पता चल जायेगा -' !!

           मछली वाले बर्तन की खोज जारी है !!
                 

Thursday, 30 March 2023

व्यंग्य "भारती" 'पत्रकारिता का मूत्र स्तर'

व्यंग्य 'भारती'

"पत्रकारिता का मूत्र स्तर"
      अपराधी मूत रहा है! पीछे खड़ी पुलिस अपराधी को देख रही है, और पुलिस के पीछे खड़ी मीडिया मूत देख रही है -जाकी रही भावना जैसी -!
पुलिस आपस में बात कर रही है, -' एक मिनट के लिए ढील नहीं देना है , क्या पता रास्ते में इसके साथी इसे छुड़ाने की कोशिश करें -' !
      पीछे थोक में खड़ी मीडिया मूतने की लाइव कवरेज दिखाने में आ रही दिक्कत को लेकर परेशान है! सबसे बड़ी दिक्कत पुलिस की वजह से है! हर ख़बर पर पहली नज़र रखने वाले चैनल का एंकर अपने कैमरामैन पर नाराज हो रहा है, -' जब सारा 'पानी' खेत में समा जाएगा,तब दिखायेगा क्या? ट्रायपॉड ऊंचा कर -'!
   ' इससे ऊंचा नहीं हो सकता '!
   नंबर वन चैनल वाला एंकर थोड़ा आगे था, उसने कमेंट्री शुरू कर दिया था, - ' दर्शक सुन सकते हैं, मूतने की आवाज़ यहां तक आ रही है, शायद पूरा तालाब पी कर आया है ! उसके खड़े होकर मूतने की एक्स्लेसिव तस्वीरें दर्शक सीधे देख रहे हैं! धैर्य रखिए, हम कोशिश कर रहे हैं कि दर्शकों को धार भी दिखा सकें -!'
     एक अन्य एंकर दर्शकों को अपने बलिदान और चिन्ता से अवगत करा रहा है, -' हमें क्या पता था कि 'भाई'  मूतने के लिए ये जगह सिलेक्ट करेगा, पता होता तो दो दिन पहले ही खेत में कैमरा छुपा दिया होता ! तब दर्शक पीठ की जगह प्रत्यक्ष देख रहे होते '!
           तभी नंबर वन चैनल का एंकर खुशी से ऐसे  चिल्लाया, गोया उसकी लॉटरी निकल आई हो, - "दर्शक अपने अपने टीवी सेट की आवाज थोड़ा कम कर लें, मूतने की आवाज़ के साथ धार भी दिखाई दे रही है ! ये तस्वीरें सबसे पहले आप मेरे चैनल पर देख रहे हैं -'!
                 डांट खा चुका उसका कैमरामैन गुस्से में बड़बड़ाया, - ' अब दिखाने के लिए हमारे पास बस यही सब  बचा है -'!
      एंकर अपनी खुशी नहीं छुपा पा रहा, -' हमारे मेगा फिक्सल कैमरे और "धार" के बीच में साठ फीट का फासला है, बीच में पुलिस बाधक न होती तो हम कैमरा लेकर बिलकुल धार के सामने खड़े होते ! पुलिस ने हमेशा अभिव्यक्ति की आज़ादी में रोड़ा अटकाया है -'!
              एक चैनल का एंकर ऐसे चिल्लाता हुआ दौड़ रहा था गोया उसने दोनों पैरों में गर्म तवा बांध लिया  हो, जिससे एकजगह टिक कर बोलना मुश्किल हो - ' वो खड़े होकर मूत रहा है! हालांकि उसके धर्म में खड़े होकर मूतने पर पाबंदी है ! इतनी मीडिया और पुलिस की मौजूदगी में भी वो खुलेआम अपने सामाजिक नियमों का उल्लंघन कर रहा है! इससे पता चलता है कि ये कितना जघन्य अपराधी है -' ! 
       "धार"  न  देख  पाने  से  आहत एक चैनल का एंकर अपराधी पर अपना शोध प्रस्तुत कर रहा था -' उसने पुलिस वैन से उतरते ही मूंछें ऐंठ कर मीडिया को देखा था ! लगभग बीस साल से इसकी मूछें ऐसी ही हैं! उसे मूछों से बहुत प्यार है, अगर पुलिस इसकी मूंछ काट ले तो ये अपने आप मर जायेगा , आज़ तो गाड़ी का पलटना थोड़ा मुश्किल लगता है -'!
      नंबर वन चैनल का एंकर चीखा, - ' धार तेज़ हो रही है, इसका मतलब उसे वाकई बहुत देर से पेशाब की हाजत बनी हुई थी ! दर्शक देख सकते हैं कि धार का रंग क्रिस्टल की तरह सफेद है, लगता है जैसे इसे किसी किस्म की बीमारी नहीं है ! मुझे तो कोरोना काल में ही शुगर हो गई थी -'!
    एक एंकर दावा कर रहा था -' जिन लोगों ने देर से टीवी सेट खोला है, उन्हें अपडेट कर दूं कि जिस खेत में वो मूत रहा है, उसमें गेहूं की फसल नहीं बोई गई थी, वरना आज अनर्थ हो जाता ! मानव मूत्र में अल्कोहल  होता  है जो गेहूं के पौधे को जला देता है ! इसलिए धान हो या गेहूं , दोनों  को सार्वजनिक शौचालय से दूर रखा जाता है -'!
    धार का फ्लो धीमा होता देख नंबर वन चैनल का एंकर निराश लग रहा था, - ' धार का फ्लो धीमा हो गया है, दर्शक देख सकते हैं! आखिरकार हर मूत का एक अंत होता है ! और,,,, लीजिए धार का नज़र आना बंद हो गया ! अब वो घूमने की मुद्रा में है ! वो वैन की तरफ वापस आएगा ! काश वो पांच मिनट और मूतता ! उससे खेत को नुकसान हो सकता है, पर उसके मूतने से हमारी टीआरपी तो बढ़ रही थी -'!
         मूतने के बाद अपराधी पुलिस वैन की ओर वापस लौट रहा था ! सारे मीडिया कर्मी वैन की ओर लपके ! दिव्य ज्ञान से सराबोर कई सवाल पेंडिंग थे ! सबसे पहले  हर ख़बर पर पहली नज़र रखने वाले एंकर ने सवाल दागा,-' जो आपने मूता, वो एनकाउंटर के डर के कारण था, या सचमुच प्रेसर बना हुआ था?'
              अपराधी कुछ जवाब देता, उसके पहले ही  नंबर  वन  चैनल  के एंकर ने  सवाल  दाग दिया,-' काफ़ी सारा मूता तुमने,अब कैसा फील हो रहा है -?'
     तभी पीछे से एक पुलिस ऑफीसर ने एंकर से कहा, - ' मुलजिम को  जितना ( आग) मूतना  था, मूत चुका है ! अब तो पिंड छोड़ो - ' !!

     मूतने को लेकर कई भ्रूण सवालों ने हलक में ही दम तोड़ दिया! अपराधी वैन में बैठ चुका था !

             ( सुलतान "भारती")

Friday, 24 March 2023

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         ( "व्यंग्य भारती")

      " अपना कटोरा और कर्ज़ का घी "

        अपना अपना स्टाइल है, अपनी अपनी किस्मत ! कोई बोरे में नोट रखकर भी घी नहीं खा पाता और कोई कर्ज़ लेकर घी पीता है ! मैंने दोनों तरह के आदमी देखे हैं। हमारे यूपी में एक कहावत कही जाती है, - समय से पहले और किस्मत से ज्यादा कुछ नहीं मिलेगा  -! ये चार्ज ऊपरवाले पर लगाया जाता है, कि उसने भैंस किसी को दी, और घी किसी और के लिए फिक्स कर दिया ! मामला गंभीर है, जिन्हें ईश्वर, समाज और बैंक तीनों लोन नहीं देते - वो क्या करें !!
       घी के बारे में तमाम कहावतें हैं! एक कहावत है कि - कुत्ते को घी हजम नहीं होता -! पर ये पता कैसे चला ! शंका स्वाभाविक है, हड्डी तक हजम करने वाले कुत्तों को घी हज़म क्यो नहीं है! हमारे वर्मा जी कहते हैं, - ' कांग्रेस के आने से पहले देश में घी दूध की नदियां बहती थीं, कुत्तों को उल्टी लग गई थी ! ये जो कुत्ते हैं, उन्हें अमृत कहां सूट करता है -! '
    ' वो घी दूध की नदियां कहां चली गई?'
 ' उसके पीछे गौ तस्करों का हाथ है, धीरे धीरे नदियों में दूध की जगह बरसात का पानी बहने लगा। लोगों ने दूध में पानी मिलाकर बेचना शुरू कर दिया! फिर नकली घी आ गया जिसे आदमी और कुत्ते दोनों ने एडजस्ट कर लिया - '!
    ' आपने खाकर देखा?'
   उन्होंने मुझे खा जाने वाली नज़र से देखते हुए चेतावनी जारी की -' इस कॉलोनी में कुछ बांग्लादेशी घुसपैठिए फर्जी कागज़ात बनवा कर रह रहे हैं , मैं जल्दी ही उनके पीछे बुल्डोजर लगवाता हूं , तू भी शक के दायरे में है  - !
      मामला घी का था, मैंने अपने एक और अजीज़ मित्र से राय लेना जरूरी समझा! उनका घी दूध दोनों से गहरा रिश्ता था ! रोजा खोलने के बाद मैं जाकर उनसे मिला! मुझे देखते ही चौधरी ने चेतावनी जारी किया,- ' मन्ने दूध कौ दाम एक रुपया बढ़ा दिया, के करूं - जीडीपी घणी नीचे पौंच गी , ऊपर ठाना पड़ेगो ' !
      ' अभी रोजे चल रहे हैं, रमजान के बाद जीडीपी बढ़ा लेते -!'
   '  काल्ह करे सो आज कर ! नेक काम इसी महीने कर लें तो बढ़िया होगा -'!
    ' घी के बारे में कुछ पूछना था ' !
' मेरी भैंसों ने तय किया है कि वो बगैर घी वाड़ा दूध लिकाडेंगी -'!
    ' मैंने खरीदना नहीं है, सिर्फ पूछना है कि क्या घी के लिए कर्ज़ मिल सकता है -'!
   " मन्ने के बेरा ! भैंसन ते पूछ ले '!
          वैसे मैंने गांव में एक आदमी देखा है जो आज़ भी ज़िंदा है और बयासी साल की उम्र में भी काफ़ी तंदुरुस्त है! ग्रामीण बैंक में लोन की कोई भी स्कीम आए, वो फ़ौरन ले लेता है! लोन की वसूली करने वालों का न खौफ, न लौटाने की फिक्र ! बैंक अधिकारी को घर जाकर भी बैरंग लौटना पड़ता था! एक बार तो पुलिस को देखते ही दस लीटर केरोसिन के डिब्बे में रखा सारा पानी अपने ऊपर उड़ेल कर उसने दूर से ही बैंक वालों को ललकारा, -' गोहार लागो गांव वालों! बैंक वाले मुझे मिट्टी का तेल डाल कर जिंदा जलाने जा रहे हैं -!'
     उस दिन बैंक अधिकारियों ने हाथ जोड़ कर बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचाई थी! 
      बैंकों की आबरू लूट कर विदेश भागने वाले माल्या और मोदी ( नीरव) जैसे महापुरुष 'ऋणम कृत्वा घृतम पिवेत'- पर कितनी आस्था रखते हैं! कर्ज यहां लिया और घी विदेश में पी रहे हैं ! कर्ज़ को लेकर अपने देश में आम लोगों की सोच बढ़िया नहीं है! सज्जन और शरीफ आदमी कर्ज लेकर मुसीबत में फंस जाता है ! शातिर आदमी कर्ज लेकर घी  खाता  है और शरीफ आदमी जेल की हवा ! किसान  कर्ज लेता है और  किश्त चुकाने में असमर्थ होते  ही बैंक उसकी भैंस तक खोल लेता है !  बड़ा आदमी लोन के साथ बैंक को ही भैंस समझ कर गठरी में बांध कर उड़ लेता है !
       घी  का जो रिश्ता भैंस से होता है, वही रिश्ता खाने  वाले  का  घी से होता है ! भैंस पालने वाला  अकसर घी नहीं खाता, और घी खाने वाले अक्सर  भैंस नहीं पालते ! और,,,,घी  के  लिए  रॉ मैटेरियल ( दूध) मुहैया कराने वाली बेचारी भैंस को सूंघने के लिए भी घी नहीं मिलता ! दूसरों के पैसे से घी पीने वाले हर युग और दौर में बरामद हुए हैं! इस कलियुग में उनकी तादाद  सबसे ज्यादा है ! मुहल्ले में 'कमेटी ' डालने से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर चिट फंड कंपनी के नाम से यही लोग जनता को भैंस समझ कर घी निकाल रहे हैं ! इस घी में स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों  का भी हिस्सा तय होता है ! एक लूट कर भागता है तो दूसरा नए नाम के साथ शहर में सतयुग लेकर आ जाता है,- एक  लगाओ तीन पाओ -!

     दूसरों के पैसे से मुफ्त में घी पीने वाले इन्ही "वीर पुरुषों" की स्तुति में एक कहावत है, -शक्कर खोर' (ठग) को शक्कर ( घी), और टक्कर खोर (पीड़ित व्यक्ति) को टक्कर ( शोषण) मिलती है -! (जाकी रही भावना जैसी -! (प्रतिरोध जब समर्पण में बदलता है, तब समाज को केंचुआ बनाने वाली ऐसी कहावतें जन्म लेती हैं! ताकि जनता घी खिलाने को "कर्म" और  शोषण को अपनी "नियति" समझ ले !)
   इस "शक्करखोर जमात" के कई महारथी समाज को दुहने के बाद आज सियायत को अपनी सेवाएं दे रहे हैं ! वैसे जहां तक घी पीने की बात है, जनता को 5 साल में एक बार वायदों की शक़्ल में मिल ही जाता है  !!

       ,,,,, कि मैं कोई झूठ बोल्या !!

     

Wednesday, 8 March 2023

( बही खाता) "गरीब का मौसम"

" बही खाता"

                 "गरीब का मौसम"

       मेहरबान ! कदरदान !!  मौसम कोई भी हो, गरीब के हित में कोई नहीं ! शहर से लेकर गाँव तक, गर्मी से लेकर सर्दी तक हर मौसम गरीब विरोधी है, गरीब का दुश्मन है। सर्दी, गर्मी  बरसात सभी अपने अपने नाखून उसी के खाल पर परखते हैं ! अमीर वर्ग जहां हर मौसम की केस हिस्ट्री में अपनी ऐयाशी का 'डीएनए' ढूँढ लेता है,वहीं गरीब आदमी मौसम की पदचाप से ही सिहर उठता है । हर मौसम सर्वहारा वर्ग का जानी दुश्मन है! अप्रैल में पुरवाई तेज होते ही गरीब आदमी अपनी पत्नी बुधना से शंका जाहिर करता है,- ' लगता है, फिर आँधी आएगी, कहीं छपरा न उड़ जाये-'!
 घर वाली की आशंका और भी भयावह है,-'पिछली आँधी में ये नीम का पेड़ उखड़ कर बस गिरने ही वाला था कि 'धमसा माँई' ने बचा लिया था !'
    " कैसे ?'
  " जैसे ही पेड़ ने आँधी में झूमना शुरू किया, मैंने  धमसा माई को सुमिरन करके मन्नत मांग ली  '!
     'कौन  सी मन्नत ?' मजदूर को लगा कि आज तो नीम के पेड़ को गिरने से से कोई नहीं बचा सकता !
   ' हे धमसा माई ! ई  आँधी मा हमार छपरा न उड़ा तो तुम्हें एक बकरा भेंट दूंगी '! 
     सुनकर दुखीराम का कलेजा दहल गया  आज फिर नीम का पेड़ झूमने लगा था ! उसने चिल्ला कर कहा,-' इस बार मन्नत मत मांगना '!
            बुधना ( दुखीराम की लुगाई ) ने अपराध बोध से भरी आंखों से पति को देखा-' मन्नत तो मांग ली-" !
    दुखीराम को लगा कि नीम का पेड़ उखड़ कर सीधा सीने पर गिरा हो ! उसने घबरा कर सामने देखा, पेड़ अपनी जगह पर था ! आँधी थम गई थी मगर दुखीराम को लग रहा था जैसे नीम का पेड़ ज़बान निकाल कर उसे चिढ़ा रहा हो!
        गर्मी में भी दुखीराम पर मौसम की खास मेहरबानी होती है ! जब पूरे गाँव के घरों में बिजली के पंखे और कूलर चलते हैं तो दुखीराम का हाल चाल पूछने के लिए पूरे गाँव के मच्छर उसके लेटने का इन्तेज़ार करते हैं ! दिन भर की हड्डी तोड़ मेहनत के बाद दुखीराम ऐसे सो जाता , कि मच्छर खून पी कर उसी की नाक मे घुस कर सो जाते थे ! कभी कभी ऐसा भी होता था कि पड़ोसी झुरहू अपने बैलों को मच्छर से बचाने के लिए भूसा सुलगाता और ऊपर से नीम की हरी पत्ती डालता, तब ज़रूर  मच्छर घबरा कर दुखीराम को छोड़ कर भाग जाते थे !
       बरसात में मुसीबत बांध तोड़ कर बहती हुई दुखीराम के घर आती ! सामने गली में बहता हुआ पानी बगैर रोक टोक के घर के अंदर घुस आता था! बारिस मे पानी सिर्फ सामने के दरवाज़े से  ही नहीं  छत से भी टपकता था ! अबकी तीसरी बरसात थी मगर इस बार भी दुखीराम का छपरा बजट के बाहर था ! क्या करें, प्रधान कह रहे थे कि सरकार मनरेगा में पैसा ही नहीं डाल रही है ! बादल गरज गरज कर बताते कि बिजली की नजर उसके छपरा पर है ! उधर,,,गाँव के जमालू भी जाग रहे होते! अमीर लोगों के लिए बारिस संगीतमय होती है,मगर जमालू के लिए सितम ढाती रात ! हर गरज के साथ जमालू का यक़ीन पक्का हो जाता कि गिरने के लिए बिजली उन्हीं का घर ढूंढ रही है!
        सर्दी - दुखीराम और जमालू दोनों के लिए क़हर की तरह थी! जमालू  के घर के मुख्य दरवाज़े की लकड़ी सड़ कर टूट चुकी थी और वहाँ से घूस, चूहे और नेवले के साथ छोटे कद के कुत्ते तक  बेखटके अंदर आकर जमालू की रजाई में घुस जाते थे! गुरबत ने  घर में ऐसा समाजवाद ला दिया था कि जमालू की रज़ाई में घुसा कुत्ता उसी रज़ाई मे मौजूद बिल्ली पर एतराज नहीं करता था ! लगातार शक़्ल सूरत खो कर चादर की तरह पतली हो रही रज़ाई ओढ़ने वाले जमालू  इस समाजवाद के अंदर छुपे 'रहस्यवाद' से पूरी तरह परिचित थे !
    जमालू को आज भी याद है कि बचपन कैसा गुजरा था ! जब फसल कटकर किसानों के घर चली जाती तो जमालू ऐसे खेतों मे छुट गई गेहूँ की बाली ,चने की ठोठी , मकई की बाली ढूंढ कर घर लाते ! जमालू और दुखीराम दोनों भूमिहीन ! दोनो के पेट और पीठ के बीच में न जाने कहाँ भूख बैठी थी,एक ऐसी खौफनाक भूख जो रोटी न  मिलने पर गरीब के सपने, सेहत सौंदर्य और,,,उम्र भी खा लेती है ! इस गाँव ने इंद्र की तरह उनसे पसलियों तो नहीँ मांगी ,लेकिन वक़्त  सब कुछ तो ले चुका था ! दोनों में एक समानता और थी! दुखीराम खेत में चूहों के बिल खोद कर गेहू की बालियां निकाल कर चूहों को आशीर्वाद देता था और जमालू रज़ाई में बच्चे देने वाले चूहों को गालियाँ ! जमालू की बीबी खैरूल चूहों की इस हरकत के लिए भी जमालू को ही जिम्मेदार ठहराती थी, -' ये सब तुम्हारी वज़ह से  हुआ है-'!
       चार चार बच्चों के बाप जमालू ने इस आरोप को लेकर एक बार सफाई देते हुए दुखीराम से कहा  था-' चुहिया ने जो भी बच्चा दिया, उसमे मेरा  कोई हाथ नहीं है -'!

         सवाल उठता है कि ऊपर वाला गरीब को पैदा क्यों करता है। जवाब है,- गरीब के लिए यह दुनिया नहीं बनाई गयी, अल्बत्ता इस दुनियां के लिए गरीब बनाया गया है! अमीरों के लिए,गरीब खुशहाली का फर्टिलाइजर है ! निर्माण का मसाला है ! इतिहास में कभी दर्ज न होने वाली गुमनाम शहादत की फेहरिश्त है,और,,,,,सभ्यता तथा संस्कृति के कॉरीडोर मे बिछा हुआ वो लाल कालीन है , जो गरीब के लहू से सुर्खरूं  हुआ है ; फिर क्या फर्क पड़ता है कि उसका नाम जमालू हो या दुखीराम !!