Friday, 24 March 2023

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         ( "व्यंग्य भारती")

      " अपना कटोरा और कर्ज़ का घी "

        अपना अपना स्टाइल है, अपनी अपनी किस्मत ! कोई बोरे में नोट रखकर भी घी नहीं खा पाता और कोई कर्ज़ लेकर घी पीता है ! मैंने दोनों तरह के आदमी देखे हैं। हमारे यूपी में एक कहावत कही जाती है, - समय से पहले और किस्मत से ज्यादा कुछ नहीं मिलेगा  -! ये चार्ज ऊपरवाले पर लगाया जाता है, कि उसने भैंस किसी को दी, और घी किसी और के लिए फिक्स कर दिया ! मामला गंभीर है, जिन्हें ईश्वर, समाज और बैंक तीनों लोन नहीं देते - वो क्या करें !!
       घी के बारे में तमाम कहावतें हैं! एक कहावत है कि - कुत्ते को घी हजम नहीं होता -! पर ये पता कैसे चला ! शंका स्वाभाविक है, हड्डी तक हजम करने वाले कुत्तों को घी हज़म क्यो नहीं है! हमारे वर्मा जी कहते हैं, - ' कांग्रेस के आने से पहले देश में घी दूध की नदियां बहती थीं, कुत्तों को उल्टी लग गई थी ! ये जो कुत्ते हैं, उन्हें अमृत कहां सूट करता है -! '
    ' वो घी दूध की नदियां कहां चली गई?'
 ' उसके पीछे गौ तस्करों का हाथ है, धीरे धीरे नदियों में दूध की जगह बरसात का पानी बहने लगा। लोगों ने दूध में पानी मिलाकर बेचना शुरू कर दिया! फिर नकली घी आ गया जिसे आदमी और कुत्ते दोनों ने एडजस्ट कर लिया - '!
    ' आपने खाकर देखा?'
   उन्होंने मुझे खा जाने वाली नज़र से देखते हुए चेतावनी जारी की -' इस कॉलोनी में कुछ बांग्लादेशी घुसपैठिए फर्जी कागज़ात बनवा कर रह रहे हैं , मैं जल्दी ही उनके पीछे बुल्डोजर लगवाता हूं , तू भी शक के दायरे में है  - !
      मामला घी का था, मैंने अपने एक और अजीज़ मित्र से राय लेना जरूरी समझा! उनका घी दूध दोनों से गहरा रिश्ता था ! रोजा खोलने के बाद मैं जाकर उनसे मिला! मुझे देखते ही चौधरी ने चेतावनी जारी किया,- ' मन्ने दूध कौ दाम एक रुपया बढ़ा दिया, के करूं - जीडीपी घणी नीचे पौंच गी , ऊपर ठाना पड़ेगो ' !
      ' अभी रोजे चल रहे हैं, रमजान के बाद जीडीपी बढ़ा लेते -!'
   '  काल्ह करे सो आज कर ! नेक काम इसी महीने कर लें तो बढ़िया होगा -'!
    ' घी के बारे में कुछ पूछना था ' !
' मेरी भैंसों ने तय किया है कि वो बगैर घी वाड़ा दूध लिकाडेंगी -'!
    ' मैंने खरीदना नहीं है, सिर्फ पूछना है कि क्या घी के लिए कर्ज़ मिल सकता है -'!
   " मन्ने के बेरा ! भैंसन ते पूछ ले '!
          वैसे मैंने गांव में एक आदमी देखा है जो आज़ भी ज़िंदा है और बयासी साल की उम्र में भी काफ़ी तंदुरुस्त है! ग्रामीण बैंक में लोन की कोई भी स्कीम आए, वो फ़ौरन ले लेता है! लोन की वसूली करने वालों का न खौफ, न लौटाने की फिक्र ! बैंक अधिकारी को घर जाकर भी बैरंग लौटना पड़ता था! एक बार तो पुलिस को देखते ही दस लीटर केरोसिन के डिब्बे में रखा सारा पानी अपने ऊपर उड़ेल कर उसने दूर से ही बैंक वालों को ललकारा, -' गोहार लागो गांव वालों! बैंक वाले मुझे मिट्टी का तेल डाल कर जिंदा जलाने जा रहे हैं -!'
     उस दिन बैंक अधिकारियों ने हाथ जोड़ कर बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचाई थी! 
      बैंकों की आबरू लूट कर विदेश भागने वाले माल्या और मोदी ( नीरव) जैसे महापुरुष 'ऋणम कृत्वा घृतम पिवेत'- पर कितनी आस्था रखते हैं! कर्ज यहां लिया और घी विदेश में पी रहे हैं ! कर्ज़ को लेकर अपने देश में आम लोगों की सोच बढ़िया नहीं है! सज्जन और शरीफ आदमी कर्ज लेकर मुसीबत में फंस जाता है ! शातिर आदमी कर्ज लेकर घी  खाता  है और शरीफ आदमी जेल की हवा ! किसान  कर्ज लेता है और  किश्त चुकाने में असमर्थ होते  ही बैंक उसकी भैंस तक खोल लेता है !  बड़ा आदमी लोन के साथ बैंक को ही भैंस समझ कर गठरी में बांध कर उड़ लेता है !
       घी  का जो रिश्ता भैंस से होता है, वही रिश्ता खाने  वाले  का  घी से होता है ! भैंस पालने वाला  अकसर घी नहीं खाता, और घी खाने वाले अक्सर  भैंस नहीं पालते ! और,,,,घी  के  लिए  रॉ मैटेरियल ( दूध) मुहैया कराने वाली बेचारी भैंस को सूंघने के लिए भी घी नहीं मिलता ! दूसरों के पैसे से घी पीने वाले हर युग और दौर में बरामद हुए हैं! इस कलियुग में उनकी तादाद  सबसे ज्यादा है ! मुहल्ले में 'कमेटी ' डालने से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर चिट फंड कंपनी के नाम से यही लोग जनता को भैंस समझ कर घी निकाल रहे हैं ! इस घी में स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों  का भी हिस्सा तय होता है ! एक लूट कर भागता है तो दूसरा नए नाम के साथ शहर में सतयुग लेकर आ जाता है,- एक  लगाओ तीन पाओ -!

     दूसरों के पैसे से मुफ्त में घी पीने वाले इन्ही "वीर पुरुषों" की स्तुति में एक कहावत है, -शक्कर खोर' (ठग) को शक्कर ( घी), और टक्कर खोर (पीड़ित व्यक्ति) को टक्कर ( शोषण) मिलती है -! (जाकी रही भावना जैसी -! (प्रतिरोध जब समर्पण में बदलता है, तब समाज को केंचुआ बनाने वाली ऐसी कहावतें जन्म लेती हैं! ताकि जनता घी खिलाने को "कर्म" और  शोषण को अपनी "नियति" समझ ले !)
   इस "शक्करखोर जमात" के कई महारथी समाज को दुहने के बाद आज सियायत को अपनी सेवाएं दे रहे हैं ! वैसे जहां तक घी पीने की बात है, जनता को 5 साल में एक बार वायदों की शक़्ल में मिल ही जाता है  !!

       ,,,,, कि मैं कोई झूठ बोल्या !!

     

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