Sunday, 23 April 2023

("व्यंग्य"भारती) अब किसी बात पर नही आती

"व्यंग्य" भारती

,,,,"अब किसी बात पर नहीं आती"

         अब का बताएं भैया, मेरी हंसी खो गई है ! कोरोना के दौरान भी हंसी का ऑक्सीजन लेवल ठीक था ! हंसी तब भी क्रिटिकल नहीं थी जब यदा कदा डॉक्टरों ने मरना शुरू किया था ! जब मरणासन्न नींबू 280 रुपए किलो बिक रहे थे, तब भी मैं गाहे ब गाहे हंस लेता था ! जब विपक्ष बाढ़, सूखा और चक्रवातीय समुद्री तूफान के पीछे सत्तारूढ़ दल को जिम्मेदार ठहरा रही थी तो भी मेरी हंसी आत्मनिर्भर थी ! जब खेतों में गेहूं की फसल बारिस में तबाह होने पर भी मीडिया खाद्यान व्यवस्था को पहले से ज्यादा मजबूत बता रही थी, तो मेरी हंसी भी अर्थव्यवस्था की तरह मजबूत हो रही थी ! जब धार्मिक जुलूस के बाद उपद्रव से भाईचारा मजबूत हो रहा था ,तो भी हंसी में कोई इन्फेक्शन नहीं पैदा हुआ !
      लेकिन अब,,,, गज़ब भयो रामा जुलम भयो रे !
ऐसा लगा जैसे हंसी कोमा में चली गई! सारे टोटके आजमा लिए, हंसी नहीं आ रही ! वैसे मेरे घनिष्ट मित्रों में ऐसे ऐसे 'शुभचिंतक' हैं जो मुझे हंसता हुआ देख लें तो उनका 200 ग्राम खून जल जाए ! मैने सोचा, क्यों न उन्ही से किसी एक से शुरूआत करूं! सबसे पहले मैने वर्मा जी से ही दुख बांटना बेहतर समझा, मैंने जान बूझ कर काफ़ी गमगीन लहज़े में कहा, -" मेरे ऊपर तो मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा है -"!
         'मेरे ऊपर मुसीबत'- शब्द सुनते ही वर्मा जी के चेहरे की रौनक और चमक एक दम से बढ़ गई, फिर अचानक ही जबरदस्ती मायूस होने की नाकाम कोशिश करते हुए बोले, -" भगवान की जैसी मर्जी ! होनी को कौन टाल सकता है, तो,,,यह  पहला हार्टअटैक था क्या?"
     " नहीं "! 
   " ओह, तो दूसरा था  ! सद अफ़सोस !! अब सिर्फ़ एक अटैक और पेंडिंग है! भाई कहा सुना माफ़ करना ! जीवन चला चली का मेला है!'
   " वो बात नहीं है -'!
वर्मा जी की आंतरिक खुशियों पर जैसे नींबू की पहली बूंद गिरी हो ! थोड़ा शंकित होकर उन्होंने पूछा, -" तो,,, क्या है -?"
    "पिछले हफ्ते से मुझे हंसी नहीं आ रही है !"
      ऐसा लगा जैसे उनकी आखों में क्रोध का ज्वालामुखी फूट पड़ा हो ! अपनी खुशियों की भ्रूण हत्या होती देख वो क्रोध में दुर्वासा ऋषि नज़र आने लगे, - " तुझे हंसी नहीं आ रही और मुझे अब अपने आप पर रोना आ रहा है ! मुझे पता होता तो मैं कभी दरवाज़ा न खोलता -!"
  " तो गोया आप मेरे आकस्मिक मृत्यु से खुश होने वाले थे ?"
   अब वर्मा जी को लगा कि उन्होंने खुशी प्रकट करने की जल्दबाजी में पर्याप्त सावधानी नहीं बरती, खुद को संभालते हुए उन्होंने मामले पर मिट्टी डाली, - ' तुम्हारे बारे में दुखद खबर सुनकर मेरा हार्ट अटैक हो जाता तो,,,?'
     मैं जानता था कि उनकी सुखद कल्पनाओं पर वज्रपात हो चुका है , कुछ देर और रुक कर मैं उनके घाव पर नींबू नहीं टपकाना चाहता था! मैने अपने दूसरे मित्र चौधरी के पास जाकर अपनी समस्या बताई, -' मुझे हंसी नहीं आ रही है -'!
 ' पर मन्ने त घणा रोना आ रहो ! कूण सा बुरो बखत हा, जिब थारे बगल आके बस गयो! कोरोना कती पीछा न छोड़ रहो! आजकड़ सेहत अर खुशी सिर्फ डॉक्टरन के धौरे मिलेगी -'!
  " हंसी के लिए मैं डॉक्टर को अफोर्ड नहीं कर सकता "!
    अचानक ही चौधरी को कुछ याद आ गया, -'उरे
कू सुन भारती! यू सतपाल मलिक कूण सै?'
     " गृहमंत्री ने पत्रकारों से एक सवाल पूछ कर सतपाल मलिक की सारी इमेज को ही कटघरे में खडा कर दिया कि अगर वो इतने बड़े सत्यवादी हैं तो इतने दिन खामोश क्यों थे? अब कुर्सी से हटने के बाद सत्यवादी होने की क्यों सूझी !! खैर, मैं क्या करूं, मुझे हंसी नहीं आ रही है ?'
      " तेरी वजह ते बहुतों को हंसी न आ रही, भगवान के घर देर है, पर अंधेर कोन्या -!'
       वहां से निकल कर मैंने पड़ोस के ही एक छायावादी कवि से समस्या साझा की,-' क्या करें,- '
पहले आती थी हाले दिल पे हंसी!
अब  किसी  बात  पे  नहीं  आती !!'
      उनके मुरदार चेहरे पर ग्राहक पाने वाली खुशी नज़र आई  ! वो चहक कर बोले - " बहुत दिनों के बाद इतनी विलक्षण क्रान्तिकारी कविता का सृजन हुआ हुआ है, तुम्हारा सौभाग्य है कि तुम सही मुहूर्त में आए हो "!
            न जाने क्यों मुझे ऐसा लगा कि मैं दलदल में फंसने वाला हूं ! कवि का मुझे देखते ही इतना खुश होना,,,,मुझे शक हो रहा था। कवि तुरंत बगल वाले कमरे में घुसा, मैने समझा नाश्ता लाने गया है, परंतु उसे एक रजिस्टर के साथ लौटते देख मेरा शक भय में बदल गया ! रजिस्टर खोलते हुए कवि मेरी तरफ़ देख कर मुस्कराया, - ' मुझे पूरा यकीन है  कि मेरी कविता सुनकर आपकी खोई हुई हंसी वापस लौट आएगी "!
       मेरा गला सूख रहा था, मैंने धड़कते दिल के साथ पूछा, -' ये कविता संग्रह है क्या ?'
       ' और नहीं भाई, ये एक ही कविता है, एक सौ पैंसठ पेज लंबी ! इसे गिनीज़ बुक में ले जाना है, किंतु कोई सुनने को राज़ी नहीं है ! देखिए, आज़ आप  हत्थे चढ़ गए ! ख़ैर,,,इस कविता का शीर्षक है  "मय्यत" !
    सुनकर  मेरी आंखों के आगे अंधेरा सा छा गया ! मेरे दो घंटे का जनाजा उठने वाला था ! कवि मेरे सामने इस तरह बैठा था कि मैं भाग भी नही सकता था ! कवि ने अभी पहला पेज खोला ही था कि दरवाज़ा धड़ाक से खुला और चौधरी अंदर आया ,  -' उ रे कू सुन भारती ! दूध अर घी दोनों तोल दिया है, इब चलकर  ठा ले "!
     मैं जान बचा कर भागा ! कवि मेरी तरफ़ ऐसे देख रहा था गोया, किसी ने बिल्ले के मुंह से कबूतर छीन लिया हो ! रास्ते में  चौधरी  मुझसे कह रहा था, -' थारी किस्मत अच्छी थी , अक मन्ने तुझे कवि के घर में घुसते देख लिया हा, वरना आज तू ढाई घंटे ते पहले लिकड़ न पाता ! कवि कू घने दिन ते या कविता सुनने वाड़ों की तलाश सै ! एक दिन वा ने दो लाइनें मेरी भैंस कू सुना दी, भैंस नै दूध देना कती बंद कर दिया ! उसे नॉर्मल होने में हफ्ता लिकड़ गया ! कदी मैं फंस जाऊं त फिर तू भी मेरो ध्यान रखियो' - ! 

  अब कैफियत ये है कि जब भी भैंस को देखता हूं, बेशाख्ता हंसने लगता हूं !

  

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