Tuesday, 2 May 2023

व्यंग्य भारती "मैं बपुरा बूडन डरा,,,!"

(व्यंग्य भारती)

     मैं बपुरा बूड़न डरा,,,,,,"!

     अब क्या बताऊं कि मैं लीगल काम करने में भी कितना डरता हूं ! मैं विचार करने में उम्र खर्च करता रहा और भद्र जन विकास करते रहे ! जितनी देर मैं आत्मनिर्भर होने के बारे में सोचता हूं, उतनी देर में लोग एन जी ओ बनाकर दूसरों को आत्मनिर्भर करने में लग जाते हैं ! शायर लोगों ने मेरी इसी लेट लतीफी पर एक शेर भी कहा है, -' कारवां निकल गया गुबार देखते रहे -'! अब भैया क्या बताऊं, इतनी बार गुबार को देखा कि आंख और दिल दोनों में मोतियाबिंद का खतरा  है !
     2020 के बाद जब रोटी रोजी में कोरोणा लगा तो मेरे जैसे लोग आपदा में घिर गए, लेकिन साहसी लोग अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने लगे । यही वो लोग थे जो आपदा और अवसर दोनों का मर्म समझते थे ! ऑक्सीमीटर से लेकर ऑक्सीजन सिलेंडर तक एक दम से उड़ गए, तो यही वीर पुरूष संजीवनी बूटी ढूंढ कर लाते रहे! ऐसे ही वीरों के बारे में साहित्यकारों ने कहा है, - वीर भोग्या वसुंधरा -! (कलियुग में कुछ लोगों ने इन वीरों की प्रगति से कुपित होकर उन्हें  "कालाबाजारी" करने वाला तक कह दिया ! का करें, लोग तो संतो को भी नहीं बख्शते!) 
          जो प्राणी आपदा की आहट पाकर ही पसीने पसीने हो जाता हो , वो क्या ख़ाक अवसर का लाभ उठाएगा! यहां तो अवसर का विज्ञापन देख कर आपदा की गंध महसूस होती है ! परसों शाहीन बाग के बस स्टॉप पर - ' प्रतिदिन 1200/ से 3500/तक कमाएं -' का विज्ञापन देखा ! बेकारी का पतझड़ झेल रहे शख्स के लिए ये बहुत बड़ी रकम थी ! फौरन दिए हुए नंबर पर फ़ोन मिलाया ! उधर से बताया गया कि मैं बड़ा भाग्यशाली हूं, क्योंकि अब सिर्फ़ एक ही सीट बची है -!' कायदे से तो मुझे खुश होना चाहिए था, लेकिन मुझे अवसर और ऑफर की जगह मछली फांसने का कांटा नजर आने लगा ! उधर से एक लडकी बेहद मधुर आवाज़ में बता रही थी,-' मैं फर्म का एकाउंट नंबर व्हाट्स ऐप कर रही हूं, आप सिक्योरिटी के तौर पर सात हजार पांच सौ रुपया फौरन डिपॉजिट करवा दो, आपका अपॉइंटमेट लेटर भेज दिया जाएगा ! हैव ए गुड डे सर -'! 
         एक बार फिर मैं खुद को अवसर के ऑउटर पर खड़ा हुआ देख रहा था !
             किसी के पास घर न हो और उसे ये विज्ञापन नज़र आ जाए तो,,,,,,- दिल्ली से बीस मिनट की दूरी पर ग्रेटर नोएडा में अपना आशियाना बनाएं, सिर्फ 4500/ प्रति गज के रेट पर! दस हज़ार देकर  कब्जा  पाएं, बाकी  आसान किश्तों पर -! इस सादगी पे कौन न लुट जाए ऐ खुदा ! पढ़ते ही खाट समेत घर नज़र आने लगता है। फिर भी मैं बपुरा बूडन डरा,,,! तमाम सवाल कांटों की तरह हलक उग आए, - ' ये सतयुग वाला प्रॉपर्टी डीलर कौन आ गया ! दिल्ली से बीस मिनट के फासले पर ? पैदल या बुलेट ट्रेन से बीस मिनट !!
कनॉट प्लेस से बीस मिनट या कड़कड़डूमा से बीस मिनट !! पैतालीस सौ का रेट तो तुगलकाबाद किले के अंदर भी नही है -!'  अपने आप से इतने सवाल !! एक बार फिर मैं वीर भोग्या वसुंधरा - का अवसर खो बैठा था।
       बेहद सज्जन आदमी और भेड़ में बड़ी समानता होती है, दोनों ही नियमित रूप से मूंडे जाते हैं ! देश में कभी पब्लिशर प्रचुर मात्रा में थे, लेखक कम थे ! आज लेखकों की सुनामी आई हुई है,मगर फ्री में छापने वाले देसी घी की तरह दुर्लभ हैं ! कैफियत ये है कि लेखक - हरि अनंत हरि कथा अनंता - की तरह हर मोहल्ले में व्याप्त है, किंतु कैश की जगह कंटेंट के आधार पर रचना छापने वाला प्रकाशक , ईश्वर की तरह होते हुए भी, नज़र नहीं आता ! फिर  कालिकाल  में  अचानक ही  मामला, - बरसे कंबल भीगे पानी - जैसा सरल हो गया ! यानि जो लेखक पहले प्रकाशक को ढूंढ रहे थे, उन्हें अचानक प्रकाशक पुकारने लगे, - आवाज़ दो कहां हो -! सोशल मीडिया पर बरसीम की तरह पब्लिशर उगने लगे ! ये प्रकाशकों की वो दिव्य प्रजाति थी जो हर ' निरहुआ' को "नामवर"  बनाने  पर उतारू थे ! लगभग हर प्रकाशक हर रचना को एक सौ पैंसठ देशों में बेचने का दावा कर रहा है , साथ में सौ फीसदी रॉयल्टी वाला थैला ! मेरा मन भी ज्वालामुखी में फौरन कूद पड़ने को आतुर था, पर 2999 रूपए का पैकेज देखकर एक बार फिर हलक में सवाल उग आए, और एक बार फिर मैं - "सौ प्रतिशत रॉयल्टी और विश्व विख्यात"- होने से महरूम हो गया ! कारण,,,,,?
   मैं बपुरा बूड़न डरा ! ये जो बुद्धिजीवी होते हैं न! ये कभी रिस्क नहीं लेते ! आपदा में खुश रह लेंगे, लेकिन डूबने का रिस्क नहीं लेंगे ! अपनी शादी को छोड़ कर हर अवसर को  शक  की  नजर  से देखते हैं !  2999रुपए का पैकेज देखते ही जहां नया लेखक फौरन विश्वविख्यात होने को व्याकुल हो जाता है, वहीं बुद्धिजीवी लेखक सवाल खड़ा कर देता है, इतनेकम पैसे में - कागज़, टाइपिंग, प्रिंटिंग, प्रूफ रीडिंग, पैकिंग,,, ! ज़रूर कुछ घपला है ! अब आप खुद सोचो, भला इतने शक्की साहित्यकार को इस दौर का सतयुग कैसे सूट करेगा ! इसलिए ऐसे खुन्नसी लेखक सत्तर साल की उम्र में भी वरिष्ठ और विख्यात होने से वंचित होते हैं,और एक दिन उन्हीं बागी तेवरों के साथ "वीरगति" को प्राप्त होते हैं ! और फिर,,,, उनके विरोधी भी मंच पर उन्हें "महान" घोषित करते हुए ऐलान करते हैं,- ' खुदा  बख्शे, बहुत  सी  खूबियां  थीं  मरने  वाले में - !'

No comments:

Post a Comment