"गरीब का मौसम"
मेहरबान ! कदरदान !! मौसम कोई भी हो, गरीब के हित में कोई नहीं ! शहर से लेकर गाँव तक, गर्मी से लेकर सर्दी तक हर मौसम गरीब विरोधी है, गरीब का दुश्मन है। सर्दी, गर्मी बरसात सभी अपने अपने नाखून उसी के खाल पर परखते हैं ! अमीर वर्ग जहां हर मौसम की केस हिस्ट्री में अपनी ऐयाशी का 'डीएनए' ढूँढ लेता है,वहीं गरीब आदमी मौसम की पदचाप से ही सिहर उठता है । हर मौसम सर्वहारा वर्ग का जानी दुश्मन है! अप्रैल में पुरवाई तेज होते ही गरीब आदमी अपनी पत्नी बुधना से शंका जाहिर करता है,- ' लगता है, फिर आँधी आएगी, कहीं छपरा न उड़ जाये-'!
घर वाली की आशंका और भी भयावह है,-'पिछली आँधी में ये नीम का पेड़ उखड़ कर बस गिरने ही वाला था कि 'धमसा माँई' ने बचा लिया था !'
" कैसे ?'
" जैसे ही पेड़ ने आँधी में झूमना शुरू किया, मैंने धमसा माई को सुमिरन करके मन्नत मांग ली '!
'कौन सी मन्नत ?' मजदूर को लगा कि आज तो नीम के पेड़ को गिरने से से कोई नहीं बचा सकता !
' हे धमसा माई ! ई आँधी मा हमार छपरा न उड़ा तो तुम्हें एक बकरा भेंट दूंगी '!
सुनकर दुखीराम का कलेजा दहल गया आज फिर नीम का पेड़ झूमने लगा था ! उसने चिल्ला कर कहा,-' इस बार मन्नत मत मांगना '!
बुधना ( दुखीराम की लुगाई ) ने अपराध बोध से भरी आंखों से पति को देखा-' मन्नत तो मांग ली-" !
दुखीराम को लगा कि नीम का पेड़ उखड़ कर सीधा सीने पर गिरा हो ! उसने घबरा कर सामने देखा, पेड़ अपनी जगह पर था ! आँधी थम गई थी मगर दुखीराम को लग रहा था जैसे नीम का पेड़ ज़बान निकाल कर उसे चिढ़ा रहा हो!
गर्मी में भी दुखीराम पर मौसम की खास मेहरबानी होती है ! जब पूरे गाँव के घरों में बिजली के पंखे और कूलर चलते हैं तो दुखीराम का हाल चाल पूछने के लिए पूरे गाँव के मच्छर उसके लेटने का इन्तेज़ार करते हैं ! दिन भर की हड्डी तोड़ मेहनत के बाद दुखीराम ऐसे सो जाता , कि मच्छर खून पी कर उसी की नाक मे घुस कर सो जाते थे ! कभी कभी ऐसा भी होता था कि पड़ोसी झुरहू अपने बैलों को मच्छर से बचाने के लिए भूसा सुलगाता और ऊपर से नीम की हरी पत्ती डालता, तब ज़रूर मच्छर घबरा कर दुखीराम को छोड़ कर भाग जाते थे !
बरसात में मुसीबत बांध तोड़ कर बहती हुई दुखीराम के घर आती ! सामने गली में बहता हुआ पानी बगैर रोक टोक के घर के अंदर घुस आता था! बारिस मे पानी सिर्फ सामने के दरवाज़े से ही नहीं छत से भी टपकता था ! अबकी तीसरी बरसात थी मगर इस बार भी दुखीराम का छपरा बजट के बाहर था ! क्या करें, प्रधान कह रहे थे कि सरकार मनरेगा में पैसा ही नहीं डाल रही है ! बादल गरज गरज कर बताते कि बिजली की नजर उसके छपरा पर है ! उधर,,,गाँव के जमालू भी जाग रहे होते! अमीर लोगों के लिए बारिस संगीतमय होती है,मगर जमालू के लिए सितम ढाती रात ! हर गरज के साथ जमालू का यक़ीन पक्का हो जाता कि गिरने के लिए बिजली उन्हीं का घर ढूंढ रही है!
सर्दी - दुखीराम और जमालू दोनों के लिए क़हर की तरह थी! जमालू के घर के मुख्य दरवाज़े की लकड़ी सड़ कर टूट चुकी थी और वहाँ से घूस, चूहे और नेवले के साथ छोटे कद के कुत्ते तक बेखटके अंदर आकर जमालू की रजाई में घुस जाते थे! गुरबत ने घर में ऐसा समाजवाद ला दिया था कि जमालू की रज़ाई में घुसा कुत्ता उसी रज़ाई मे मौजूद बिल्ली पर एतराज नहीं करता था ! लगातार शक़्ल सूरत खो कर चादर की तरह पतली हो रही रज़ाई ओढ़ने वाले जमालू इस समाजवाद के अंदर छुपे 'रहस्यवाद' से पूरी तरह परिचित थे !
जमालू को आज भी याद है कि बचपन कैसा गुजरा था ! जब फसल कटकर किसानों के घर चली जाती तो जमालू ऐसे खेतों मे छुट गई गेहूँ की बाली ,चने की ठोठी , मकई की बाली ढूंढ कर घर लाते ! जमालू और दुखीराम दोनों भूमिहीन ! दोनो के पेट और पीठ के बीच में न जाने कहाँ भूख बैठी थी,एक ऐसी खौफनाक भूख जो रोटी न मिलने पर गरीब के सपने, सेहत सौंदर्य और,,,उम्र भी खा लेती है ! इस गाँव ने इंद्र की तरह उनसे पसलियों तो नहीँ मांगी ,लेकिन वक़्त सब कुछ तो ले चुका था ! दोनों में एक समानता और थी! दुखीराम खेत में चूहों के बिल खोद कर गेहू की बालियां निकाल कर चूहों को आशीर्वाद देता था और जमालू रज़ाई में बच्चे देने वाले चूहों को गालियाँ ! जमालू की बीबी खैरूल चूहों की इस हरकत के लिए भी जमालू को ही जिम्मेदार ठहराती थी, -' ये सब तुम्हारी वज़ह से हुआ है-'!
चार चार बच्चों के बाप जमालू ने इस आरोप को लेकर एक बार सफाई देते हुए दुखीराम से कहा था-' चुहिया ने जो भी बच्चा दिया, उसमे मेरा कोई हाथ नहीं है -'!
सवाल उठता है कि ऊपर वाला गरीब को पैदा क्यों करता है। जवाब है,- गरीब के लिए यह दुनिया नहीं बनाई गयी, अल्बत्ता इस दुनियां के लिए गरीब बनाया गया है! अमीरों के लिए,गरीब खुशहाली का फर्टिलाइजर है ! निर्माण का मसाला है ! इतिहास में कभी दर्ज न होने वाली गुमनाम शहादत की फेहरिश्त है,और,,,,,सभ्यता तथा संस्कृति के कॉरीडोर मे बिछा हुआ वो लाल कालीन है , जो गरीब के लहू से सुर्खरूं हुआ है ; फिर क्या फर्क पड़ता है कि उसका नाम जमालू हो या दुखीराम !!
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