पुलिस ने थाने के दरवाजे पर कंटिया डाल रखी है, 'यहां पर शान्ति सेवा और न्याय मिलता है '! कामयाब व्यापारी कभी दाम नहीं लिखता। आप पहले अंदर तो आओ फिर बताऊंगा कि शान्ति का बाज़ार भाव क्या है!
अंदर आप अपनी मर्जी से आते हैं,मगर जायेंगे शान्ति की मर्जी से। जब तक बीट कॉन्स्टेबल संतुष्ट नहीं हो जाता कि अब आप "शान्ति" को अफोर्ड कर लेंगे, आप की कोचिंग चलती रहेगी ! शान्ति बड़ी मुश्किल से मिलती है, इस हाथ दे - इस हाथ ले ! ( नहीं तो ले तेरी की ,,,!)
कितनी अच्छी चीज़ हैं -.शान्ति, सेवा और न्याय ! पर लोग लेना ही नहीं चाहते ! थाने जाते हुए पैर कांपते हैं, बीपी बढ़ जाता है! लोग अक्सर अकेले जाने से कतराते हैं ! कोई पंगा हो जाए तो शान्ति के लिए लोग मोहल्ले के लुच्चे नेता को साथ लेकर थाने जाते हैं ! अब शान्ति का रेट थोड़ा और बढ़ जाता है, क्योंकि थोड़ा विकास नेता को भी चाहिए ! थाने वाले नेता को देखते ही ऐसे खिल उठते हैं गोया आम के पेड़ में पहली बार बौर देखा हो ! तीनों अच्छी चीजें हैं, पर थाने से कोई लाना ही नहीं चाहता ! शरीफ़ आदमी थाने में घुसते हुए ऐसे घबराता है गोया किसी का बटुआ चुराते हुए पकड़ा गया हो ! नमूने के तौर पर दिन दहाड़े थाने के पास लुटा शरीफ आदमी घबराया हुआ थाने में "न्याय" की उम्मीद में जाता है ! बीट कॉन्स्टेबल पूछता है, -' के हो गयो ताऊ !"
" एक बदमाश मेरा पर्स छीन कर भागा है "!
" तो मैं के करूं ! तमै चोर कू दौड़ कर पकड़ना था!"
" इस उमर में मैं भाग नहीं सकता।"
" ता फिर इस उमर में नोट लेकर क्यों हांड रहो ताऊ! खैर, कितने रुपए थे?"
" पांच हजार '!
बीट कॉन्स्टेबल खड़ा हो गया, " नू लगे अक कनॉट प्लेस का झपटमार था! इस इलाके के गरीब झपटमार पांच सौ से ऊपर की रकम नहीं छीनते"!
" क्यों ?"
" ग़रीब इलाका है, ऊपर से कोरोना का कहर! किसी की जेब में सौ पचास से ऊपर होता हो नहीं ! पिछले महीने एक थैला चीन कर एक भागा था! बाद में ईमानदार झपटमार ने थैला यहां मालखाने में जमा करा दिया था !"
" क्यों "?
" थैले में दो जोड़ी पुराने जूते थे, जो मरम्मत के लिए कोई ले जा रहा था। झपटमार ने समझा "प्याज़" है "!
'' मैं तो लुट गया, मेरी रिपोर्ट लिखो !"
" कोई फायदा नहीं ! दुनियां में किसी को ' 'एफ आई आर ' से शान्ति नहीं मिलती! शान्ति मिलती है गीता के वचन दोहराने से, - ' तेरा था क्या जिसे खोने का शोक मनाते हो ! जो आज तेरा है, कल किसी और का हो जायेगा ! अब आत्मा को "पर्स" में नहीं बल्कि "परमात्मा" में लगाओ! ये झपटमारी नहीं, विधि का विधान है ताऊ !"
शान्ति के बाद नंबर आता है " सेवा" का ! ये चीज़ थाने में बगैर भेदभाव के मिलती है ! इसी के खौफ से काफ़ी लोग लुटने, पिटने और अपमानित होने के बाद भी थाने नहीं जाते ! सेवा के मामले में नर नारी का भी भेदभाव नहीं है ! कुछ समय से नारी की सेवा के लिए नारी पुलिस की व्यवस्था होने लगी है !. कभी कभी "सेवा" बर्दाश्त न कर पाने की वजह से लोग थाने में ही वीरगति को प्राप्त हो जाते हैं ! इस तरह के सेवा भाव से प्राणी को मरणोपरांत मोक्ष मिले ना मिले, पर "सेवादार" को प्रमोशन ज़रूर मिलता है!
थाने में उपलब्ध तीसरी दुर्लभ चीज़ है "न्याय" ! ये भी शान्ति और सेवा की तरह निराकार होती है। थानेदार की पूरी कोशिश होती है कि थाने आने वाले सारे श्रद्धालुओं को न्याय की पंजीरी प्राप्त हो, पर नसीब अपना अपना ! दुविधा में दोनों गए, माया मिली न राम ! बीट कॉन्स्टेबल भी यही चाहता है कि वादी और प्रतिवादी दोनो को न्याय की लस्सी मिले! ऐसे में। कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है ! "सेवा" के इस मैराथन में जो ज़्यादा "खोता" है - उसे थोड़ा ज़्यादा न्याय मिलता है ! थाने से बाहर आकर वादी और प्रतिवादी दोनो महसूस करते हैं कि न्याय के नाम पर जो कुछ मिला, उसमे से "शान्ति" गायब है! लेकिन,,,,,,,,,,,
अब पछताए होत क्या - जब चिड़िया चुग गई खेत !
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