' पैंतीस रुपए हैं, एक किलो आलू लेना है!'
इतना सुनना था कि तोते ने शोर मचा दिया ! मैंने ज्योतिषि से पूछा, -' क्या हो गया इसे !'
" तोता कह रहा है, आलू वाले को ही हाथ दिखाना!"
" आलू कल खरीद लूंगा , तुम हाथ देखो!"
" हाथ तोता देखता है, मै अनुवाद करके बताता हूं!"
" मुझे कैसे पता चलेगा कि तुम तोते की भविष्यवाणी का सही अनुवाद कर रहे हो?"
इस बार तोता गुस्से में साफ साफ चिल्लाया , " भाग !भाग !! भाग !!
तोता गुस्से में मुझे ऐसे घूर रहा था,गोया कह रहा हो, " मेरे टैलेंट पर शक करता है ! कैसे कैसे गधों से साबका पड़ रहा है!"
उस दिन पैंतीस रुपए की कुर्बानी देने के बाद मुझे ज्योतिषी ने बताया था ,' अगले साल ( 2020 में ) अक्टूबर में तुम्हारी किस्मत पर जमी बर्फ पिघल जायेगी "! अगले साल किस्मत में कोरोना और पतझड़ साथ साथ आए ! नौकरी मिली नहीं, उल्टे कारबार डूबने लगा ! कई साहित्यिक मित्रों ने सलाह दी कि गैंगवॉर पर आधारित अपनी किताबों को फ़िल्म प्रोड्यूसरों तक पहुंचाओ। मैंने कहा कि इंडस्ट्री तक अपनी कोई अप्रोच नहीं है, मै क्या करूं !
मगर अक्टूबर लगते ही चमत्कार शुरू हो गया ! फेस बुक पर थोक के भाव फिल्मों के स्क्रिप्ट राइटर ठीया लगाने लगे ! सब के सब "प्रतिभशाली" लेकिन "फ्रेश स्क्रिप्ट राइटर" की तलाश में क्षीर सागर से निकल कर आए थे।शुरू में एक दो स्क्रिप्ट राइटर नज़र आए , फ़िर लाइक और कमेंट में प्रतिभाओं की सूनामी देख "साइबेरियन सारस ' का पूरा का पूरा झुंड फेस बुक पर जलवागर हो गया ! हर कोई कोरोना के कारण "रूकी हुई कृपा" की डिलीवरी देने आया था !
आज तो सुबह छे बजते ही मैंने फेस बुक खोल कर देखा, शुरुआत में ही दो " हातिमताई" कंटिया डाले नज़र आए। एक को फ़िल्मों के लिए " फ्रेशर चेहरों" की तुरंत ज़रूरत थी । दूसरे, स्क्रिप्ट राइटिंग सिखाने के लिए ऑनलाइन वेब क्लॉस लेकर आए थे ! मेरे जैसे लोग इतनी सुविधा देखते ही धर्म संकट में घिर जाते हैं, ' गुरु गोविन्द दोऊ खड़े - काके लागूं पाय,,,!' जब इस तरह का अमृत बटता है, तो " सीटें" बहुत "सीमित" होती हैं! प्राणी अमृत घट के धोखे में भटकटैया चुन लेता है!
मज़े की बात देखिए हर कोई फिल्मी दुनियां के स्क्रिप्ट राइटिंग सर्कल से जुड़ा है! हर किसी ने कई हिट फिल्में और सीरियल लिखे हैं ! हर कोई विख्यात है मगर मैंने कभी उनका नाम सुना नहीं था ! ( ये तो मेरी गलती है, ना खुद विख्यात हो रहा हूं, ना किसी को विख्यात होते देख रहा हूं ! ये तो हद हो गई !) फ़िल्मों में लिखने का ख़्वाब मैंने आठवीं कक्षा में ही देख लिया था! अब पूरे ४० साल बाद विख्यात होने का ऑफ़र आया था, सोचा - मत चूको चौहान !
अगर फेस बुक के फ़्लैश बैंक में जायेंगे तो आपको पता चलेगा कि अरसा पहले नवोदित लेखकों की किताबें छापकर उन्हें बेस्ट सेलर लेखक बनाने वाले दयालु कृपालु प्रकाशक भी थोक में उग आए थे ! फिर एकदम से पता चला कि- जो बेचते थे दर्दे दवा ए दिल, वो दुकान अपनी बढ़ा गए ! चन्द फंदेबाजों के लिए फेसबुक बड़ा पोटेंशियल तालाब बन गया है, जहां वो नए नए चारे का इस्तेमाल कर " मछलियों" को लुभाते हैं !
बच के रहना रे बाबा , तुझ पे नज़र है !!
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