Thursday, 22 October 2020

' मास्क ' है तो मुमकिन है!

     मेट्रो रेल बंद होने के बाद आज पहली बार मेट्रो का सफ़र किया , मज़ा आ गया ! DMRC ने सीटों को कोरोना की सहूलियत के हिसाब से अरेंज किया है!  एक सीट छोड़ कर बैठने की व्यवस्था की गई है! ( ताकि बीच में कोरोना के बैठने की सहूलियत रहे!) कोरोना चलने फिरने में चूंकि लाचार होता है,। इसलिए उसकी संख्या और विकलांगता को देखते हुए हर डब्बे में उसकी सीटें सुरक्षित की गई हैं ! डीएमआरसी  हर स्टेशन के इंट्री गेट पर यात्री के हाथ का टेंप्रेचर जांच कर उसे कोरोन फ़्री मान लेती है ! अब अगर कोरोना यात्री के पीठ पर बैठ कर अन्दर आ गया तो ये कोरोना की गलती है, डी एम आर सी  की नहीं !
                          अंदर मेट्रो ट्रेन ख़ाली सी लगी! मेट्रो के नए नियम और कोरोना के खौफ ने सूरत ही बदल रखा है ! अगर सांसों के आवागमन से परेशान हो कर किसी ने फेस मास्क उतार दिया तो बगल बैठा यात्री घबरा जाता है। ऐसा लगता है गोया सारा कोरोन्ना सिर्फ मुंह के रास्ते अंदर जाने का इंतज़ार कर रहा हो ! (मुंह के अलावा और कहीं से जाना ही नहीं चाहता!) फेस मास्क के बावजूद दोनो कान खुले होते हैं, मगर उधर से जाने के लिए - कोरोना है कि मानता नहीं ! कान के रास्ते अंदर जाने में कोरोना को क्या प्रॉब्लम है, इसपर रिसर्च की ज़रूरत  है ! मेरे ख्याल से, नाक और मुंह के रास्ते में तमाम खतरे हैं! आदमी दाल रोटी के साथ कोरोना को भी खा जायेगा ! नाक में और भी  खतरा है, आदमी ने छिनका तो तो मलबा के साथ कोरोना की पूरी कॉलोनी दलदल में गाना गाती नजर आयेगी, " ये कहां पे आ गए हम - सरे राह चलते चलते !" फिर भी - कोरोना है कि मानता नहीं!
        फेस मास्क की आड़ में पुलिस वाले आत्मनिर्भर होने में लगे हैं! जैसे जैसे कोरोना का ग्राफ गिर रहा है, प्राईवेट अस्पताल और पुलिस की बैचैनी बढ़ रही है! ट्रैफिक पुलिस आपके स्वास्थ्य को लेकर कितनी चिंतित है, इसका पता मुझे कल चला जब, चलती कार के ठीक सामने आकर पुलिस वाले ने मेरे दोस्त की गाड़ी रोक कर फेस मास्क चेक किया! सबके चेहरे पर मास्क पाकर उसके चेहरे पर जो निराशा मैंने देखी, तो ऐसा लगा गोया अभी अभी उसका टाइटेनिक जहाज़ डूबा हो! जनता के स्वास्थ्य को लेकर पुलिस की इतनी चिंता और  बेचैनी कभी देखी नहीं ! फेस मास्क के बगैर चेहरा तुम्हारा! वसूली हमारा! मिले सुर मेरा तुम्हारा !!
      मुझे कोरोना के कैरेक्टर पर शुरू से ही डाउट रहा है, चीन से आए माल का क्या भरोसा ! लगता है साले चीन ने कोरोना को सिखा पढ़ा कर भेजा है कि -' फेसमास्क के बगैर मानना मत , कम्पनियों से हमारी डील हो चुकी है। फेस मास्क देखते ही पतली गली से निकल लेना - पापी पेट का सवाल है! आजकल वैसे भी इंडिया वाले हमारे पेट पर लात मार रहे हैं !' दो लोगों के बीच की खाली सीट पर मरणासन्न अवस्था में लेटा कोरोना दो लोगों  की बात सुन कर अपना बीपी बढ़ा रहा है , ' ये साला मनहूस कब दफा होगा इंडिया से ?'
      " बिहार का चुनाव हो जाने दो, फिर इसी का लिट्टी चोखा खायेंगे ! वैसे भी चाइनीज़ माल की होली तो जलानी तय है !"
              " इस वायरस का फेस मास्क से क्या लेना देना है?"
        " वो कहावत तो सुनी होगी, मुंह लगना। गंदे लोग हमेशा मुंह लगने के फ़िराक़ में रहते हैं, इसलिए हमने मुंह पर फेस मास्क लगा लिया है! वैसे, मैं तो चाहता हूं कि ये मरदूद एक बार घुसे तो सही मुंह के अंदर !"
   " फ़िर तो बहुत बुरा हाेगा !"
           " वही तो ! रोटी रोज़ी की तलाश में भटक रहे इन्सान के लिए दस रुपए का फेस मास्क भी भारी पड़ रहा है ! भूख और गुस्से की आग में उसकी आंतें नाग की तरह फनफना रही हैं ! एक बार कोरोना अंदर गया कि भूखे इन्सान ने डकार मारी ! कोरोना की पूरी कॉलोनी एक बार में ' स्वाहा '!! देख रहे हो कि पिछले दस दिन में कोरोना की आबादी कितनी घटी है?"
     " हां, सर्दियों में भूख बहुत लगती है "! 

    कोरोना अगले स्टेशन पर उतर कर अपनी फेमिली की गिनती करने लगा !

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