क्या बीती होगी उनके दिल पर जब कॉलोनी की वो महिला जिसके लिए उन्होंने जुल्फ़ों पर इतनी मेहनत की थी, उनको देखते ही ' अंकल जी नमस्ते ' बोल दिया ! ( इस के साथ तो अंकल जी ने बद्दुआ के साथ शपथ भी ली होगी , ' तेरी गलियों में ना रखेंगे कदम - आज के बाद !") -तमसो मा ज्योतिर्गमय - की कोशिश में लगे किसी बुज़ुर्ग को कोई रमणी भरी दुपहरी अंकल जी कह दे तो अंदर फेफड़े को जाती ऑक्सीजन भी कार्बन डाई ऑक्साइड में बदल जाती है ! केश और काया से ' बाबा ' नजर आ रहे कवि की पीड़ा देखिए, --' चन्द्र बदन मृगलोचनी बाबा कही कहि जाएं '! लागा कैरेक्टर में कोरोना, महिला ने कवि को बाबा की नज़र से देखा और बाबा को महिला मृगलोचनी नज़र आई ! अब ' मास्साब ' क्लॉस के छात्रों से बाबा की नीयत में "अद्वैतवाद" ढूंढने को कहेंगे !( हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है!)
जवानी के लिए हर किसी का जिया बेकरार होता है। लेकिन ये ज़वानी भी कब बता कर आती है। गरीबों के घर में बगैर बताये चली आती है। देखते ही गरीब डर जाता है,- ' इस गुरबत में बच्चों पर जवानी ! ऊपर वाले तेरा जवाब नहीं, कब दे क्या दे हिसाब नहीं '! जवानी तो सब पर आती है, पर हर किसी को देखने की फुरसत नहीं होती ! ज़िंदगी की भीड़ में , कशमकश के थपेड़ों में परिवार की नाव खेने में लगे कई इंसान किशोरावस्था से सीधे बुढ़ापे में जा खडे होते हैं ! फ़र्ज़ और पारिवारिक जिम्मेदारियों ने उनसे "बूढ़ा" होने का एहसास ही छीन लिया ! एक लाजवाब शेर याद आता है,-
जिम्मेदारियों की फेहरिस्त कितनी तबील है !
मेरे बच्चे मुझे "बूढ़ा" नहीं होने देते !!
कौन बूढ़ा होना चाहता है। दो साल पहले मुझे पहली बार किसी ने अंकल कहा, सच कहूं - तन बदन मेें लंका जल उठी! ' तू अंकल - तेरे खानदान के नौनिहाल तक अंकल ! ५५ साल में तो सपने तक नहीं पकते, उम्र कैसे पक गई ! ज़रूर तेरी आंख में मोतियाबिंद होगा ! अबे लौंडे! हम यूपी वाले तो साठ साल में जवान होते हैं ! सुना नहीं, - साठा में पाठा -!! हम यूपी वाले ज़वानी की "बोंजई" नस्लें हैं ! हमारे यहां फौजदारी और लठैती के केस में नामजद लोगों में ज़्यादातर ५० साल से ऊपर वाले मिलेेगे।
शहर के अंकल ज़्यादा ख़तरनाक होते हैं। बुढ़ापे से दूर भागने में ये सबसे आगे है। फैशन इतना कि वॉकिंग और जॉगिंग के लिए भी सूट मुकर्रर है ! गोया ट्रैक सूट के अलावा धोती कुर्ता या कुर्ता पाजामा पहन कर मॉर्निंग वॉक पर गए तो बीपी और शुगर जैसी बीमारियां नाराज़ हो जायेंगी! ऐसे अंकल बगुले से ज़्यादा सफेद कपड़ पहनते हैं और ईश्वर से निराश प्राणियों को मोक्ष और " रुकी हुई कृपा" रिलीज़ करते हैं। जबसे भाजपा आई, ऐसे ' बगुलों ' की कुण्डली में शनि भारी पड़ गया । उन्हें रामराज सूट नहीं कर रहा है !
ये शब्द " अंकल जी" जो है, देखन मे छोटो लगे - घाव करे गम्भीर ! सुनने और सुलगने के बाद प्राणी घर आकर शीशे में चेहरा देखता है। कहां कहां से " अंकल जी" झांक रहे हैं! बालों ने बिगुल बजाया है! क़िले पर शत्रु चढ़ गया,अब आसानी से तमाम कंगूरे ध्वस्त कर देगा ! ज़वानी के सारे पेंडिंग स्वप्न "स्वाहा"! तभी तो कहूं, पिछली सर्दियों में घुटनें इशारा क्योें कर रहे थे ! अबे बुढ़ापे ! तू अस्सी के बाद यमराज के भैंसे के साथ साथ आ जाता ! ऐसी भी क्या जल्दी !!
अभी मैंने जी भर के देखा नहीं है!
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