Friday, 2 October 2020

" दवा बनाम दारू "

                            अल्ला दुहाई है दुहाई है ! ये दारू चीज़ क्या बनाई है ! पीने के बहाने लाखों हैं,,,! तभी तो लोग दारू को दवा बताकर पी जाते हैं।एक ऐसी दवा, जो परिवार की जड़ों को खोखला कर देती है! लोग दारू पीकर दोष ईश्वर पर डाल देते हैं -" ये लाल रंग कब मुझे छोड़ेगा !" ( अबे बहाना और बोतल दोनो छोड़ !) पीने वाले की क्रोनोलॉजी समझिए, पहले खुशी सेलिब्रेट करने की आड़ में पी गया! अब जब बीबी के गहने बिक गए तो देसी ठर्रा चढ़ा कर गा रहा है,- " गम भुलाने के लिए मै तो पिये जाता हूं "! 
           दारू अच्छी चीज़ है या बुरी चीज़ ! इस बारे में,- मुंडे मुंडे मतिर भिन्ना है! इसे असुरों की दारू समझ कर पियो चाहे देवताओं का सोमरस ! दारू को लेकर   सरकार हमेशा कंफ्यूजन में होती है। देश में देव कम हैं, दानव ज़्यादा ! दोनो  के सहयोग से सरकार बनाई जाती है ! दोनो आपस में प्याले टकराकर सत्ता का  "सोमरस" पीते हैं ! आए दिन लोग ज़हरीली दारू पीकर एक्सपायर होते हैं ! देवता दिखावटी विरोध करते हैं तो दानव दारू से आने वाली एक्साइज ( कमाई) याद दिला देते हैं ! ऊपर से सरकारी कवि समर्थन कर देता है, ' मंदिर मस्जिद बैर कराते  मेल कराती मधुशाला "! (सरकार फौरन देश हित में ढाई हज़र ठेके और खुलवा देती है ! भाईचारा  बहुत ज़रूरी चीज़ है!)
           जब पीना है तो नाली का क्योें, मल्टी नैशनल का पियो ! लिहाज़ा मंदिर मस्जिद में मेल कराने के लिए बाहर की कंपनियां दारू लेकर आ गईं ! गली गली में भाईचारा मजबूत होने लगा। हालांकि घरेलू औरतों ने बहुत कहा कि मोहल्ले में ठेका खुलने से भाईचारे का तो पता नहीं पर उनकी गृहस्थी बर्बाद हो जायेगी ! पर सरकार को " मंदिर मस्जिद" के मेल की ज़्यादा चिन्ता थी। हर मुहल्ले में मेल मिलाप की सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए ! भाईचारा और अर्थव्यवस्था इतनी बुरी तरह कभी मजबूत नहीं हुये ! इस नए किस्म का "भाईचारा" मजबूत करने में केजरी वाल का भी उल्लेखनीय योगदान रहा !
           कितना कन्फ्यूजन है दारू के चरित्र को लेकर। विपक्ष में आने से पहले किसी पार्टी को दारू के दुर्गुण ही नहीं नज़र आते। सरकार दारू को ना पीने की दलील नहीं देती, बल्कि दारू पीने की उम्र तय करती है , " बेटा ज़रा एक साल और रुक जाओ ! अगले साल तुम वोट भी दे सकोगे और मुफ्त में पी भी सकोगे - धर लेे धीर जिगरिया में,,,,!"
           पीने वालों को पीने का बहाना चाहीए! कुछ सुपरहिट बहानों की बानगी देखिए, ' ये शराब नहीं - बीयर है!'  '. अरे, ये दारू नहीं, ब्रांडी है! सर्दी के लिए टॉनिक है "! भाई साहब, ये शराब नहीं , मृत संजीवनी सुरा है। ठंड लग जाए तो बच्चे को भी दे सकते हैं"! दारू को प्रमोट करने में फिल्में सबसे आगे हैं! बहुत कम फिल्मों में दिखाया जाता है कि टल्ली होने पर हीरो नाकारा साबित होता है, वरना ज्यादातर फिल्मों में धर्मेद्र, अमिताभ, महाबली सलमान, मिथुन दा पीने के बाद गुण्डो की फौज पर भी भारी पड़ते हैं! युवा तो सुपरमैन बनेगा ही , " चल मेरे भइया दे दारू"!
      सिगरेट की दुकान पर बड़ा सा कट आउट लगा है, - एक आदमी हीरोइन के साथ खड़ा सिगरेट पी रहा है, और नीचे लिखा है -" ज़िन्दगी के शाही मज़े लीजिए "! वहीं सिगरेट के पैकेट पर पुलिस में ईमानदारी की तरह बेहद बारीक शब्दों में लिखा होता है, ' सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है ! अब दुकान के सामने खड़ा स्कूल का लौंडा भारी धर्मसंकट में हैै !उसके समझ में नहीं आ रहा है कि वह जिंदगी के शाही मज़े ले,या कैंसर से डरे ! (हीरोइन की तसवीर के सामने कैंसर बड़ा असहाय लग रहा है।)
       हमारे पड़ोसी गांव के हर शरण सिह चाचा पीने के बाद बादशाह हो जाया करते थे। एक बार तो इतना चढ़ा लिया कि कुर्ता उतार फेंका और धोती हाथ में लेकर पैदल ही निकल पड़े। ठेकेवाले ने बड़ी मुश्किल से उन्हें बगैर धोती के जाने से रोका था। वो असली पियक्कड़ थे, बहुत नशा चढ़ जाने पर कहीं भी लेट कर सो जाते थे। कभी पीने के बाद किसी के साथ गाली गलौज नहीं करते थे ! हिन्दू मुसलमान दोनों के चहेते थे।
      अब दारू भी कल्चर का हिस्सा बन गई है। लोग बड़े गर्व से कहते हैं, ' मेरी ब्रांड हर जगह मिलती कहां है। मै या तो प्रिंस हेनरी लेता हूं या  ग्रेट बर्मूथ ! मुझे सिवास रीगल या बोडका सूट ही नहीं करता - यू नो!" ऐसे लोगों को अपने देश के बैंक भी सूट नहीं करता आई इसलिए वो गठरी गठरी फुटकर पाप विदेशी बैंको में जमा करते रहते हैं , और एकदिन खुद भी नीरव मोदी होकर उड़ लेते हैं ! उन्हें देसी ब्रांड कभी नहीं भाता।

     मैंने तो ये नतीजा निकाला कि वफादार और सर्वहारा लोग देसी पीते हैं और  शातिर लोग देश को ! यही विधि का विधान है !

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