।अब जब प्रजातंत्र और स्तम्भ की बात आ ही गई तो मीडिया पर थोड़ा और मट्ठा मथ लेते हैं। आप टी वी तो देखते हैं न ! मै भी जलभुन कर देख लेता हूं। ( हालांकि बाद में सोचता हूं कि क्यों देखा!) विडम्बना देखिए, जो चैनल जितना बड़ा झूठ बोलता है वो उतनी ज़ोर से दावा करता है , " हम सिर्फ़ सच दिखाते हैं"! ( ऐसा "सच" दिखाने वाले सारे चैनल दो दिन से कोमा में पड़े हैं, जब से एम्स के डॉक्टर गुप्ता ने खुलासा कर दिया कि सुशांत सिंह राजपूत ने खुदकशी की थी!) अब जनता जानना चाहती है कि जून से अब तक बोला गया टनों झूठ का मकसद क्या था! ( पूछता है "भारती" )
ऐसे चैनल्स अपने झूठ की मार्केटिंग करते हुए खुद को "निर्भीक ' और "निष्पक्ष" ज़रूर बताते हैं ! इधर कोरोना के आने के बाद ये सारे के सारे कुछ ज़्यादा ही निष्पक्ष और निर्भीक हो गए हैं! निर्भीक होने का ये आलम है कि झूठ बोलने में ईश्वर का भी लिहाज़ नहीं करते, और,,,, "निष्पक्ष" इतने कि सत्ता पक्ष के अलावा और किसी का पक्ष नहीं लेते! पूरी निष्पक्षता का पालन करते हुए "जन" को अनाथ छोड़ दिया है, और " तंत्र" की परिक्रमा करते हुए गा रहे हैं, ' तुम्हीं हो माता पिता तुम्हीं हो,,,"!
कल के हाहकारी दिन की बात बताऊं! हाथरस रेप केस पर जानकारी के लिए मैंने टीवी खोला ! पहले चैनल पर बैठा मायूस एंकर बिहार चुनाव में "लोजपा" के भविष्य को लेकर खासा चिंतित था ! अगले चैनल पर भयभीत चीन और भिखमंगे पाकिस्तान की दुर्दशा पर ख़बर थी ! बड़ी उम्मीद से अगला कदम उठाया। इस चैनल पर एक "महान" एंकर ऐसे चीख रहा था - गोया उसे अभी अभी ततैया ने काटा हो ! वो एम्स के डॉक्टर पर बहुत नाराज़ था! मुझे लगा कि सुशांत सिंह राजपूत के पोस्टमार्टम में इसे ना बुलाकर गलती से किसी "डॉक्टर गुप्ता" को बुला लिया गया था ।
इंफेक्शन का दौर जारी है। मीडिया संक्रमित होकर थोड़ा सा और निष्पक्ष हो गया है। अगले निर्भीक चैनल पर रेप के आरोपियों के पक्ष में सवर्ण सभा की ख़बर है। एंकर भारी धर्मसंकट में हैै , उसे मृतक परिवार की भूमिका भी संदेहास्पद लग रही है ! ( क्या पता इस "किलिंग" के पीछे किसी किस्म का "ऑनर" ना हो ! वैसे कई ऑनर वाली महिला नेताओं के कपडे फाड़ कर रेप के आरोपियों को सबक सिखाया जा चुका है!) दंगे तो बरामद हो गए ! दंगाई लोगों की खोज जारी है ! नया ज्ञान खोज लिया गया है; जहां भी रेप होगा, उसके पीछे बलात्कारी नहीं दंगाई तलाशे जाएं !
आख़िरी चैनल देखने के लिए कलेजा मजबूत करता हूं। इसके एंकर ने कोलंबस से बड़ी खोज की है ! एंकर बता रहा है , " दो रेपिस्ट तो उस दिन उस वक्त वहां थे ही नहीं "! रहस्य खुलता जा रहा है। निष्पक्ष और निर्भीक खोज का दायरा मासूम बलात्कारियों से हट कर दंगाइयों की ओर जा रहा है। अब मुझे पूरा भरोसा है कि दंगाई बच नहीं पाएंगे । चलो असली गुनहगार की जल्दी पहचान हो गई, वरना चार मासूम सजा काटते। अब देर सबेर दंगाई खुद ही कबूल कर लेंगे कि रेप,कत्ल और दंगे के इस साजिश में "मृतका" लड़की भी शामिल थी या नहीं !
एक शेर याद आ रहा है,
अब भला और कहां ढूंढोगे मेरा क़ातिल !
तुम मेरे क़त्ल का इल्ज़ाम हमीं पर रख दो !!
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