वो गाना याद आ रहा है, - बचपन के दिन भुला ना देना ! अरे कैसे भूल सकता हूं भइया ! वही खुबसूरत और रंगीन यादें तो कुपोषित हसरतों को आज भी ऑक्सीजन देती हैैं ! प्यार मुहब्बत भी याद है और दोस्तों के साथ लड़ाइयां भी। एक बार तो "मोहब्बत" इतनी घातक हो गई कि मै अपने अजीज़ दोस्त कमाल अहमद से मारपीट कर बैठा था! ( दरअसल मामला 'एक म्यान में दो तलवार ' वाला था !) खैर, सावन में बादलों के नजदीक "बिजली" के आने से इतनी गरज चमक तो स्वाभाविक है !
गांव क्या छूटा, सावन छूट गया ! अड़तीस साल से दिल्ली में हूं! कभी सावन को आते जाते नहीं देखा! जब जब सावन ढूंढने की कोशिश की, तो कभी बादलों से आसाराम झांकते नजर आए तो कभी बाबा राम रहीम ! ओरिजिनल सावन लापता है। पहले बसंत लापता हुआ अब सावन ! क्या पता दस साल बाद हमें पता चले कि अमेरिका ने सावन को पेटेंट करा लिया है !अब आगे से सावन वहीं पाया जायेगा ! हमें पता है कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है। अभी हमें "विश्व गुरू" का सिंहासन पाना है! खोने की लिस्ट लंबी है, इसलिए - सावन को जाने दो!
पिछले सावन में मै गांव गया था । बड़ा जोश में था कि सावन से मुलाकात होगी ! पंद्रह दिन फेरी वालों की तरह हांडता रहा, मगर सावन नजर नहीं आया ! अब नीम के पेड़ पर झूले भी नहीं पड़ते ! झूला झुलाने वाले युवा ज़्यादातर शहर चले गए और जो बचे वो झूले पर पींग मारने की जगह ' गांजे ' की पींग मार कर आसमान में उड़ते हैं ! अब इधर सावन की जगह "मनरेगा" आने लगा है ! मनरेगा ने सावन को निगल लिया है ! तमाम पनघट में नालों का कब्ज़ा है ! बसन्त और सावन का पंचांग अब ग्राम प्रधान और बीडीओ साहब बनाते हैं!
बसन्त का और बुरा हाल है! अब इसकी भी मोनोपोली खत्म कर दी गई है! फरवरी के जिस महीने में पहले बसंत आता था, अब वैलेंटाइन आता है ! युवाओं को अब वैलेंटाइन के मुकाबले बसन्त में चीनी कम नज़र आ रही है ! रोना ये है कि वैलेंटाइन का इन्फेक्शन कोरोना की रफ्तार से गांव तक पहुंच गया है। ऐसे में बसन्त हो या सावन , उनकी विलुप्त होने की आशंका "बाघ" जैसी होती जा रही है। जहां बसन्त है वहां वैलेंटाइन ने ठीया लगा लिया, और सावन बेचारा मनरेगा से दुखी है। जाएं तो जाएं कहां!
मैं सावन को लेकर संशय में हूं, और बसन्त को लेकर दुखी ! युवाओं की चिन्ता वैलेंटाइन को लेकर है! क्या पता गांव से शहर तक "सावन" को निगल चुका कोरोना फरवरी में वैलेंटाइन के साथ क्या करे ! सतयुग में सब कुछ संभव है !कल के सूरज और आज की गहराती शाम के बीच ख्वाबों के पनपने के लिए एक बंजर रात का फासला सामने है !
शब बखैर दोस्तों !
इस ब्लॉग ने गांव की और खासकर बचपन की सैर करा दी। दिल को गहराई तक ख़रोंच गया। इतने कम शब्दों में गांव और शहर दोनों की ज़िंदगी मे हुए अभूतपूर्व बदलाव को इतने प्रभावी तरीके से बयान कर पाना आपके लिए ही मुमकिन है।
ReplyDelete