साहित्यिक रस ( वीर रस, श्रृंगार रस, वीभत्स रस, सौन्दर्य रस , करुण रस आदि) मिल कर भी निन्दा रस का मुकाबला नहीं कर सकते! निंदा रस ने सदियों से सबका टीआरपी गिरा रखा है ! सारे रसों के लिए महाबली निंदा रस कोरोंना साबित हुआ है !ये एक ऐसा रस है जिसका ज्ञान जेनेटिक होता है! किसी से पूछने की ज़रूरत नहीं पड़ती ! हमारे वर्मा जी कद में छोटे हैं, पर - घाव करें गंभीर - की खासियत रखते हैं ! उनके पास निंदा रस का पूरा गोदाम रहता है! पहले आओ - पहले पाओ की सहूलियत भी है ! वो बगैर दोस्ती दुश्मनी के भी बिलकुल निर्विकार भाव से निंदा करते हैं !
पिछले हफ्ते की बात है, मोहल्ले के कवि बुद्धि लाल " पतंग" के लिए चंदा लेने वर्मा जी मेरे घर आए! मैंने पूछा, ' उनके कविता की "पतंग" मोहल्ले से बाहर भी उड़ती है या नहीं "?
बस निंदारस का क्रेटर खुल गया। वर्मा जी बगैर नफा नुक़सान के "अमृत" उगलने लगे, " सारे मंचो से धक्का देकर खदेड़ा हुआ कवि है। पूरे शहर से इसकी पतंग कट गई है, वो तो मैंने हाथ पकड़ लिया। तुम्हें तो पता है कि मैं कितना दयालु और कृपालु हूं। कोई कुछ भी मांग ले, मैं मना नहीं कर पाता"!
" मुझे अर्जेंट पांच हज़ार रुपए की जरूरत है"!
वर्मा जी के निंदा रस की पाइप लाइन मेरी तरफ घूम गई, ' बाज़ार लगी नहीं कि गिरहकट हाज़िर "! इतना कहकर वो बगैर चन्दा लिए झपाक से निकल लिए!
कुछ लोगों ने तो अपनी जीभ को निंदा रस का गोदाम बना लिया है ! दिन भर बगैर ऑर्डर के सप्लाई चलती रहती है ! उनके रूटीन में निंदा ही नाश्ता है और निंदा ही उपासना ! उपासना पर हैरत में मत पड़िए, वो गाना सुना होगा, कैसे कैसों को दिया है - ऐसे वैसों को दिया है '! यहां बन्दा ईश्वर की निन्दा कर रहा है कि " तूने अपने बंदों को छप्पर फाड़कर देने में बड़ी जल्दबाजी की है, पात्र कुपात्र भी नहीं देखा ! मेरे जैसे होनहार और सुयोग्य के होते हुए भी सारी पंजीरी " ऐसे वैसों" को बांट दी !" ( कम से कम पूछ तो लेते !)
कुछ लोग निंदा रस को अपनी लाइफ का आइना बनाकर जीते हैं ! वो अपनी निंदा में अपने चरित्र की परछाईं देखते हैं, ' निंदक नियरे राखिए - आंगन कुटी छवाय "! जब निंदा रस का जिक्र होता है तो महिलाओं को कैसे इग्नोर कर दें ! इस विधा में भी महिलाओं ने बाजी मार रखी है। अपनी आदत से मजबूर कुछ महिलाओं ने इस कला में डिप्लोमा और डिग्री दोनो ले रखी है ! ख़ास कर गांवों में कुछ महिलाओं के योगदान स्वरूप अक्सर दो परिवारों में लाठियां चल जाती हैं! गांव हो या शहर निंदा रस लबालब है। लगभग हर आदमी भुक्तभोगी है। अपने फ्रैंड सर्कल में कंघी मार कर देखिए, कोई ना कोई बरामद हो जायेगा, जिसने आपको कभी ना कभी ज़रूर ये कहा होगा, ' फलां आदमी से आपके रिश्ते ख़राब चल रहे हैं क्या ? परसो ऐसे ही मुलाकात हो गई तो कह रहा था, - किसी से बात ही नहीं करते, बड़े सड़े दिमाग़ के आदमी हैं "!
आप कई दिन बेचैन रहते हैं! बार बार खुद को सूंघते हैं, क्या पता , कहीं सचमुच तो नहीं सड़ गया !!
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