Wednesday, 28 October 2020

"मन की बात "!

            मैं क्या करूं, बहुत समझाया अपने दिल को - पर दिल है कि मानता नहीं ! मैंने लाख दलील दी कि इस दौर में कोई नहीं सुनेगा, लिहाज़ा सुनाना ही है तो मन की बात किसी पेड़ या सरकारी पुल को सुना दो। ज़्यादा से ज़्यादा सदमे में आ कर पेड़ सूख जायेगा या पुल को लकवा मार जायेगा ! पर जनाब, कोरोना में तपा हुआ दिले नाकारा  काम की बात की जगह मन की बात पर अड गया ! और ज़्यादा समझाने पर मुझ पर ही एहसान लादने लगा , -' शुक्र करो कि मन की बात पर अड़ा हूं, कहीं तुमसे ऑक्सीजन सिलेंडर मांगा होता तो ?"
      " देश में ऑक्सीजन की कोई कमी  नहीं है ! घर में गाय बांधा करो"!
  " कितनी ढिठाई से बता रहे हो ! जैसे मैंने हाथ पकड़ा हो ! अफ़सोस ! सद अफ़सोस !!"
     " किस बात का ?" मैंने दिल से पूछा !
  " मेरे साथ धोखा हुआ, फरिश्तों ने मुझे बताया ही नहीं कि जिसकी बॉडी में मुझे प्लांट कर रहे हैं, वो भविष्य में एक लेखक होने वाला है! काश मैंने तुम्हारी कुंडली देखी होती ! साठ साल के बाद जाऊं तो जाऊं कहां !"
    " तुम्हें तो गर्व करना चाहिए कि तुम एक विख्यात व्यंग्यकार का दिल हो !"
      " जिसके पास कभी कभी दाढ़ी बनवाने का भी पैसा नहीं होता " दिल भड़क उठा - ' कोई इज्जतदार आदमी होता तो कोरोना में निकल लेता या फ़िर खुदकुशी कर लेता ! आज के बाद मेरे मुंह मत लगना , कहे देता हूं!" 
      मुझे भी आदत पड़ गई है!  मन को समझाया,-' दिल की बात सुने दिलवाला ! मन तो मेरा भी करता है कि इकतारा बोले - टून्न टून्  ! पर सुनेगा कौन ! आजकल हर कोई मन की बात सुनाना चाहता है, पर सुनना नहीं चाहता ! मन की बात तो सिर्फ एक की सुनी जाती है ! हमारी तो काम की बात भी कोई नहीं सुनता ! मैं तो लोगों के  मन की बात भी इतनी श्रद्धा से सुनता हूं , गोया  कोई काम की बात हो ! मेरे जैसे निष्काम भक्त को ना काम मिल रहा है ना काम की बात ! हालत ये हो गई है कि मैं जब भी काम की बात करना चाहता हूं, मुंह से मन की बात निकलती है !
           मिर्ज़ा गालिब की भी यही प्रॉब्लम थी ! उनका "दिल" अपने मन की बात तो सुनाता था मगर  खुद गालिब के मन की बात नहीं सुनता था ! दिल की इसी डिप्लोमेसी से खीझ कर चचा गालिब ने एक शेर लिखा था , -
       "दिले नादां"  तुझे  हुआ  क्या  है !
        आखिर इस मर्ज की दवा क्या है !!
     कमाल है! चचा गालिब उसी नामाकूल दिल से दवा का पता पूछ रहे हैं जिसने मर्ज दिया है ! बकौल - तुम्हीं ने दर्द दिया है तुम्हीं दवा देना - ! मन की बात पर श्रोता की गाइड लाइन नहीं अप्लाई होती ! वो गाना तो सुना  होगा ,-. मै चाहे ये करू मैं चाहे वो करूं,,,,, मेरी मर्ज़ी ! मैं चाहता हूं कि जब मन की बात करूं तो मेरा दिल उसे काम की बात समझ कर - रोजा इफ़तार करे ! खिट खिट ना करे ! दिल में जीडीपी की चिंता नहीं, संतोषम परम् सुखम का होना ज़रूरी है !

                मैंने अपने पड़ोसी दोस्त चौधरी को टटोला, -' आज मैं तुमसे मन की बात करना चाहता हूं '! 
   " ये मुंह  अर - मसूर की दाल ! थारी मन की बात तो म्हारी भैंस भी ना सुने ! मोय पतो सै,  अक थारे मन कौ बात दूध की उधारी चालू करने के खातर होगी ! ना भाई ना , उधार प्रेम कौ कैंची सै। परे कर  मन की बात नै !"

         किससे कहूं मन की बात ! कोई सूरत नज़र नहीं आती !!
     


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