Thursday, 29 October 2020

" शान्ति - सेवा - न्याय "!

                         अगर आप सौभाग्यवश पुलिस थाने में घुसते हैं तो बोर्ड पर लिखे तीन शब्दों पर नज़र पड़ती है,- शान्ति, सेवा और न्याय !  ये तीनों चीजें थाने में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं,पर मिलती उसे हैं जिसकी जेब में "सौभाग्य".होता है ! अगर आप के पर्स में सौभाग्य नहीं है तो आप की वापसी शांति पूर्वक संभव नहीं । आप हफ्तों अशांत हो सकते है! शान्ति के लिए कुछ भी करेगा। लोग शान्ति की खोज में हिमालय पर चले जाते हैं, लेकिन यहां थाने में आपका टीए - डीए  बच जाता है ! थाने की यही विशेषता है, यहां शान्ति के साथ शान्ति की उम्मीद में आने वाले अक्सर अशांत और असंतुष्ट होकर बाहर आते हैं ।
        पुलिस ने थाने के दरवाजे पर कंटिया डाल रखी है, 'यहां पर  शान्ति सेवा और न्याय मिलता  है '! कामयाब व्यापारी कभी दाम नहीं लिखता।  आप पहले अंदर तो आओ  फिर बताऊंगा कि शान्ति का बाज़ार भाव क्या है!
अंदर आप अपनी मर्जी से आते हैं,मगर जायेंगे शान्ति की मर्जी से। जब तक बीट कॉन्स्टेबल  संतुष्ट नहीं हो जाता कि अब आप "शान्ति" को अफोर्ड कर लेंगे, आप की कोचिंग चलती रहेगी ! शान्ति  बड़ी मुश्किल से मिलती है, इस हाथ दे - इस हाथ ले ! ( नहीं तो ले तेरी की ,,,!)
        कितनी अच्छी चीज़ हैं -.शान्ति, सेवा और न्याय ! पर लोग लेना ही नहीं चाहते ! थाने जाते हुए पैर कांपते हैं, बीपी बढ़ जाता है! लोग अक्सर अकेले जाने से कतराते हैं ! कोई पंगा हो जाए तो शान्ति के लिए लोग मोहल्ले के लुच्चे नेता को साथ लेकर थाने जाते हैं ! अब शान्ति का रेट थोड़ा और बढ़ जाता है, क्योंकि थोड़ा विकास नेता को भी चाहिए ! थाने वाले नेता को देखते ही ऐसे खिल उठते हैं गोया  आम के पेड़ में पहली बार बौर देखा हो ! तीनों अच्छी चीजें हैं, पर थाने से कोई लाना ही नहीं चाहता ! शरीफ़ आदमी थाने में घुसते हुए ऐसे घबराता है गोया  किसी का बटुआ चुराते हुए पकड़ा गया हो ! नमूने के तौर पर दिन दहाड़े थाने के पास लुटा शरीफ आदमी घबराया हुआ थाने में  "न्याय" की उम्मीद में जाता है ! बीट कॉन्स्टेबल पूछता है, -' के हो गयो ताऊ !"
        " एक बदमाश  मेरा पर्स छीन कर  भागा है "!
  " तो मैं के करूं ! तमै चोर कू दौड़ कर पकड़ना था!"
         " इस उमर में मैं भाग नहीं सकता।"
   " ता फिर इस उमर में नोट लेकर क्यों हांड रहो ताऊ! खैर, कितने रुपए थे?"
        " पांच हजार '!
    बीट कॉन्स्टेबल खड़ा हो गया, " नू लगे अक  कनॉट प्लेस का झपटमार था! इस इलाके के गरीब झपटमार पांच सौ से ऊपर की रकम नहीं छीनते"!
       " क्यों ?"
   " ग़रीब इलाका है, ऊपर से कोरोना का कहर! किसी की जेब में सौ पचास से ऊपर होता हो नहीं ! पिछले महीने एक थैला चीन कर एक  भागा था! बाद में ईमानदार झपटमार ने थैला यहां मालखाने में जमा करा दिया था !"
          " क्यों "? 
   " थैले में दो जोड़ी पुराने जूते थे, जो मरम्मत के लिए कोई ले जा रहा था। झपटमार ने समझा  "प्याज़" है "!
         '' मैं तो लुट गया, मेरी रिपोर्ट लिखो !"
        " कोई फायदा नहीं  ! दुनियां में किसी को ' 'एफ आई आर '  से शान्ति   नहीं मिलती! शान्ति मिलती है गीता के वचन दोहराने से, - ' तेरा था क्या जिसे खोने का शोक मनाते हो ! जो आज तेरा है, कल किसी और का हो जायेगा !  अब आत्मा को  "पर्स"  में नहीं  बल्कि "परमात्मा" में लगाओ! ये झपटमारी नहीं, विधि का विधान है ताऊ !"
     शान्ति के बाद नंबर आता है " सेवा" का ! ये चीज़ थाने में बगैर भेदभाव के मिलती है ! इसी के खौफ से काफ़ी लोग लुटने, पिटने और अपमानित होने के बाद भी थाने नहीं जाते ! सेवा के मामले में नर  नारी का भी भेदभाव नहीं है ! कुछ समय से नारी की  सेवा के लिए नारी पुलिस की व्यवस्था होने लगी है !. कभी कभी "सेवा" बर्दाश्त न कर पाने की वजह से  लोग थाने में ही वीरगति को प्राप्त हो जाते हैं ! इस तरह के सेवा भाव से प्राणी को मरणोपरांत मोक्ष मिले ना मिले, पर "सेवादार" को प्रमोशन ज़रूर मिलता है!
         थाने में उपलब्ध तीसरी दुर्लभ चीज़ है "न्याय" ! ये भी शान्ति और सेवा की तरह निराकार  होती है। थानेदार की पूरी कोशिश होती है कि थाने आने वाले सारे श्रद्धालुओं को न्याय की पंजीरी प्राप्त हो, पर नसीब अपना अपना ! दुविधा में दोनों गए, माया मिली न राम ! बीट कॉन्स्टेबल भी यही चाहता है कि वादी और प्रतिवादी दोनो को न्याय की लस्सी मिले! ऐसे में। कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है ! "सेवा" के इस मैराथन में जो ज़्यादा "खोता" है - उसे थोड़ा ज़्यादा न्याय मिलता है ! थाने से बाहर आकर वादी और प्रतिवादी दोनो महसूस करते हैं कि न्याय के नाम पर जो कुछ मिला, उसमे से "शान्ति" गायब है!     लेकिन,,,,,,,,,,,

 अब पछताए होत क्या - जब चिड़िया चुग गई खेत !

Wednesday, 28 October 2020

"मन की बात "!

            मैं क्या करूं, बहुत समझाया अपने दिल को - पर दिल है कि मानता नहीं ! मैंने लाख दलील दी कि इस दौर में कोई नहीं सुनेगा, लिहाज़ा सुनाना ही है तो मन की बात किसी पेड़ या सरकारी पुल को सुना दो। ज़्यादा से ज़्यादा सदमे में आ कर पेड़ सूख जायेगा या पुल को लकवा मार जायेगा ! पर जनाब, कोरोना में तपा हुआ दिले नाकारा  काम की बात की जगह मन की बात पर अड गया ! और ज़्यादा समझाने पर मुझ पर ही एहसान लादने लगा , -' शुक्र करो कि मन की बात पर अड़ा हूं, कहीं तुमसे ऑक्सीजन सिलेंडर मांगा होता तो ?"
      " देश में ऑक्सीजन की कोई कमी  नहीं है ! घर में गाय बांधा करो"!
  " कितनी ढिठाई से बता रहे हो ! जैसे मैंने हाथ पकड़ा हो ! अफ़सोस ! सद अफ़सोस !!"
     " किस बात का ?" मैंने दिल से पूछा !
  " मेरे साथ धोखा हुआ, फरिश्तों ने मुझे बताया ही नहीं कि जिसकी बॉडी में मुझे प्लांट कर रहे हैं, वो भविष्य में एक लेखक होने वाला है! काश मैंने तुम्हारी कुंडली देखी होती ! साठ साल के बाद जाऊं तो जाऊं कहां !"
    " तुम्हें तो गर्व करना चाहिए कि तुम एक विख्यात व्यंग्यकार का दिल हो !"
      " जिसके पास कभी कभी दाढ़ी बनवाने का भी पैसा नहीं होता " दिल भड़क उठा - ' कोई इज्जतदार आदमी होता तो कोरोना में निकल लेता या फ़िर खुदकुशी कर लेता ! आज के बाद मेरे मुंह मत लगना , कहे देता हूं!" 
      मुझे भी आदत पड़ गई है!  मन को समझाया,-' दिल की बात सुने दिलवाला ! मन तो मेरा भी करता है कि इकतारा बोले - टून्न टून्  ! पर सुनेगा कौन ! आजकल हर कोई मन की बात सुनाना चाहता है, पर सुनना नहीं चाहता ! मन की बात तो सिर्फ एक की सुनी जाती है ! हमारी तो काम की बात भी कोई नहीं सुनता ! मैं तो लोगों के  मन की बात भी इतनी श्रद्धा से सुनता हूं , गोया  कोई काम की बात हो ! मेरे जैसे निष्काम भक्त को ना काम मिल रहा है ना काम की बात ! हालत ये हो गई है कि मैं जब भी काम की बात करना चाहता हूं, मुंह से मन की बात निकलती है !
           मिर्ज़ा गालिब की भी यही प्रॉब्लम थी ! उनका "दिल" अपने मन की बात तो सुनाता था मगर  खुद गालिब के मन की बात नहीं सुनता था ! दिल की इसी डिप्लोमेसी से खीझ कर चचा गालिब ने एक शेर लिखा था , -
       "दिले नादां"  तुझे  हुआ  क्या  है !
        आखिर इस मर्ज की दवा क्या है !!
     कमाल है! चचा गालिब उसी नामाकूल दिल से दवा का पता पूछ रहे हैं जिसने मर्ज दिया है ! बकौल - तुम्हीं ने दर्द दिया है तुम्हीं दवा देना - ! मन की बात पर श्रोता की गाइड लाइन नहीं अप्लाई होती ! वो गाना तो सुना  होगा ,-. मै चाहे ये करू मैं चाहे वो करूं,,,,, मेरी मर्ज़ी ! मैं चाहता हूं कि जब मन की बात करूं तो मेरा दिल उसे काम की बात समझ कर - रोजा इफ़तार करे ! खिट खिट ना करे ! दिल में जीडीपी की चिंता नहीं, संतोषम परम् सुखम का होना ज़रूरी है !

                मैंने अपने पड़ोसी दोस्त चौधरी को टटोला, -' आज मैं तुमसे मन की बात करना चाहता हूं '! 
   " ये मुंह  अर - मसूर की दाल ! थारी मन की बात तो म्हारी भैंस भी ना सुने ! मोय पतो सै,  अक थारे मन कौ बात दूध की उधारी चालू करने के खातर होगी ! ना भाई ना , उधार प्रेम कौ कैंची सै। परे कर  मन की बात नै !"

         किससे कहूं मन की बात ! कोई सूरत नज़र नहीं आती !!
     


Tuesday, 27 October 2020

" कुछ अलग सी,,,फैमिली वाली फीलिंग !"

            फेमिली वाली फीलिंग       ( व्यंग्य)

           अब क्या बताऊं जी, जब से जेठ का महीना लगा है - मुझे फेमिली वाली फीलिंग नहीं आ रही है ! बुद्धिजीवी लोग पूछ सकते हैं कि गर्मी के महीने का फेमिली वाली फीलिंग से क्या संबंध है ! जो लोग कॉविड के लपेटे में नहीं आए हैं , उनको तो ऐसी फीलिंग आयेगी ही ! उन लोगों से पूछिए जिनके घर में कोरोना ने कुंडी खटखटाई और घर के बुजुर्ग ने दरवाजा खोल दिया ! बुजुर्ग के बीमार होते ही पहले मुहल्ले वाली फीलिंग दफा हुई और जब बुजुर्ग मर के अजनवी कंधों पर रवाना हुआ तो फेमिली वाली फीलिंग भी दम तोड गई! टीवी खराब है और सोशल मीडिया पर न सतयुग की ख़बर आ रही
 है  न  फैमिली वाली फीलिंग ! बस हर चैनल पर कोविड वैक्सीन छितराई हुई है ।  
          विज्ञापन देख रहा हूं, एक सुंदर महिला को सरसों के तेल में ' फेमिली वाली फीलिंग' आ रही है ! ये जो फैमिली वाली फीलिंग है न , आजकल फेमिली के अलावा जाने कहां कहां से आ रही है। ( मेरो बेगम को मायके जाने पर ही ये फीलिंग आती है! )  ये  फेमिली वाली फीलिंग अजीब अजीब सी चीजों से आने लगी है। मूड की बात है, आने पर उतारू हो जाए तो बीबी के मायका चले जाने पर भी आ जाए , और ना आना हो तो करवा चौथ के रोज फेमिली वाली फीलिंग की जगह महाभारत वाली फीलिंग आ जाए ! कुछ लोगों को फैमिली वाली फीलिंग बहुत आती है, कुछ को ढूंढने पर भी नहीं बरामद होती! बहुत से लोग ऐसे हैं कि उनकी फीलिंग में फैमिली होती ही नहीं ! कुछ लोगों में ऐसी फीलिंग तभी आती है अब फेमिली पड़ोस की हो !.कुछ प्राणियों का घर खाली हो तभी फेमिली वाली फीलिंग अंदर आती है !
        आख़िर कैसे आती है ये फैमिली वाली फीलिंग ! सुना है ,- मार्केट में कोई आटा आया है, जिसकी रोटी खाने से भी ' फैमिली वाली फीलिंग' आती है। (फीलिंग का गेहूं से बड़ा गहरा रिश्ता है ! पेट भरा हो तो डकार में भी फेमिली वाली फीलिंग होती है ! ( पेट खाली हो तो दिल में चूहे और चिंगारी की फीलिंग आती है !) मुंशी प्रेमचंद जी की कहानी  ' सवा सेर गेहूं' ऐसी ही फीलिंग के ऊपर है ! घर के मटके में गेहूं हो तो खाली पेट भी फैमिली वाली फीलिंग आती है ! मटका ख़ाली हो तो फैमिली की जगह क्रान्ति की फीलिंग आती है ! गेहूं का क्रान्ति से बडा गहरा संबंध है! व्यंग्य सम्राट परसाई जी कहते हैं,-" घर में गेहूं हो तो पूरा विश्व  ''संकट विहीन" नजर आता है"!
                        मैं पहले फेमिली वाली फीलिंग को बहुत अच्छा समझता था! ( ये तब की बात है जब कोरॉना ने मुझे बेरोजगार नहीं किया था !) हफ्ते में एक दिन घर पर होता था ! चारों तरफ अगरबत्ती की खुशबू जैसी फैमिली वाली फीलिंग महसूस करता था ! फिर कोरोना आया और फिर उसके बाद चिरागों में रोशनी ना रही,,,,! अब संडे  तो शनि बनकर कुंडली में पसर गया है ! कोरोना के आते ही कनस्टर का आटा और फेमिली वाली फीलिंग दोनो विलुप्त ! ( हालांकि मेहमान और कौआ दोनो गायब हैं) जिन मर्दे मुजाहिद पतियों ने लॉक डाउन का लंबा कारावास घर में काटा है, उन्हें तो सहनशीलता के लिए गैलेंट्री एवार्ड मिलना चाहिए! ऐसे किसी वीर पुरुष से कभी मार्च से मई के बीच की ' फेमिली वाली फीलिंग ' के बारे में पूछ कर देखो - लाठी लेकर दौड़ा लेगा ! 
                         फीलिंग ने बाजारवाद को हवा दी है । कुछ वॉल पेपर आए हैं जिन्हें कच्चे फर्श पर लगाने से फेमिली को  ' टाइल ' वाली फीलिंग आती है। ( ये ठीक ऐसे है जैसे पनीर टिक्का खाकर कोई चिकन टिक्का वाली फीलिंग स्पार्क करे!) इस फीलिंग के चलते कई महापुरुषों ने हल्दी में घोड़े की लीड मिला कर बेच दिया , पर फेमिली को उल्टी की फीलिंग नहीं हुईं ! मै चार दिन से टीवी नहीं देख पा रहा हूं, चाहता हूं कि महाभारत के संजय वाली फीलिंग आए, पर बार बार धृतराष्ट्र वाली आ जाती है। टीवी ठीक कराऊंगा तो बेगम -  कौन बनेगा करोड़पति - देखना शुरू कर देंगी ! ( केबीसी देखने से ही कुछ लोगों में कड़की के अंदर करोड़पति होने की फीलिंग आ जाती है! )ज़िंदगी के रेगिस्तान में भटक रहे साहित्यिक जीव को  नखलिस्तान की फीलिंग ही नहीं आ रही !
      
       हालात ने एनेस्थीसिया की शक्ल लेली है, फैमिली वाली हो या दुश्मन वाली - कोई भी फीलिंग महसूस नहीं हो रही । कोरोना होने पर गंध को फीलिंग नहीं होती ! दुकानदार और प्राइवेट डॉक्टर में इंसानियत की फीलिंग नहीं रही !  सियासत की "होलिका" में भाई चारे की फीलिंग नहीं होती ! कोरोना हमारे संस्कार में घुस गया शायद ! स्पुतनिक और कोविड शील्ड का कोई चक्रव्यूह काम नहीं कर रहा ! रिश्तों की फीलिंग खत्म हो रही है ! हम इंसान की जगह तमाशबीन बन कर खड़े हैं ! सड़क पर भीड़ किसी को कत्ल करती है और हम में बचाने की फीलिंग नहीं आती !

         नया बाजारवाद हमे नया संस्कार दे रहा है! आटे में फेमिली की फीलिंग, टाइल में मार्बल की फीलिंग , मां बाप को वृद्धाश्रम में रख कर मदर और फादर्स डे की फीलिंग ! ज़हरीली शराब से गरीबों को मार कर अनाथालय बनवाने की फीलिंग ! ऐसी भीड़ में भला मुझ तक फेमिली वाली फीलिंग आए भी तो किधर से !! नींद तक रात में नहीं आती !!
                                  ( सुलतान भारती )


Sunday, 25 October 2020

" की टुक टुक - बिहार मा चुनाव छे !"

            मुझे बगैर टीवी देखे यकीन हो गया कि बिहार को स्वर्ग से सुंदर बनाने के दिन आ गए । अब बिहार में दरवाज़ा खटखटा कर लोगों को नौकरी दी जायेगी, - बड़ी दूर से आए हैं ' हाथ में लड्डू लाए हैं ' ! कोई दस लाख नौकरी लाया है, तो कोई उन्नीस लाख़ ! ( जाने आज तक किस गोदाम में संभाल कर रखी थीं !) लोग दुर्दिन के लिए ही तो बचा कर रखते हैं ! कोरोना में छीनकर लॉकर में रख दिया था, अब चुनाव में काम आएंगी ! कई पार्टियां सकते में हैं ! इतनी सारी नौकरिया इन दोनों ने बांट दी, अब मै क्या बांटू ! झोले में रखी जन्नत में दीमक ना लग जाए !
                पूरे अड़सठ साल में जहां जहां सड़क नहीं बन पाई थी, अब आठ हफ्ते में लाकर वहां सड़क रख रख दी जायेगी ! सड़क होगी तभी तो विकास गाँव तक पहुंचेगा ! ( जहां सड़क नहीं है, विकास ग्राम प्रधान के घर से आगे जाता ही नहीं !) सड़क कितनी ज़रूरी है, ये तो अप्रैल और मई में ही पता  चल गया था जब लॉक डॉउन में पूरे देश के मज़दूर शहरों से पैदल ही गांवों को चल पड़े थे ! सड़क बहुत ज़रूरी है ताकि शहर से गांव तक पैदल आने में असुविधा न हो ! ( रहा कोरोना , तो प्राकृतिक आपदा का इलाज तो अमेरिका और रूस के पास भी नहीं है ! यही क्या कम है कि  "वैक्सीन" ना होते हुए भी हम फ्री देने जा रहे हैं!)
            जिसके गुल्लक में ज़्यादा चैनल है, वो चुनाव से पहले जीत रहा है! जिसके पास नहीं है वो मतगणना का इंतज़ार करेगा ! साम दाम दण्ड भेद का इस्तेमाल कर हवा बनाई जा रही है ।वोटर अपने विधान सभा की सर्वे रिपोर्ट सुनकर सकते में हैं कि जनता तो विरोध में है , फिर ये किसके वोट से जीतते नजर आ रहे हैं ! हर दिन एक सर्वे आ रहा है, रोज के रोज बिहार सुशासन और विकास के कारण जापान से आगे जा रहा है ! जनता की सांस फूल रही है , इतना विकास सम्हाले कैसे ! हालांकि बगल झारखण्ड और बंगाल बेहाल हैं, पर उनके लिए अभी  "कृपा " रूकी हुई है !
         वैसे विकास बांटने में केजरीवाल जी अभी भी प्रथम स्थान पर बने हुए हैं! पानी और बिजली इतना बांटा की दिल्ली अभी भी सदमे से उबर नहीं पाई !. बीच में पानी बिजली छोड़ कर मरकज में जाकर कोरोना भी बांट आए । अब उन्हें लगा कि  सही विकास तो यही है। फिर क्या था, उन्हें सत्य का ज्ञान हो गया और  " ईश वाणी " भी सुनाई देने लगी थी कि दिल्ली दंगो का मास्टर माइंड कौन है ! तब से आजतक वो जब भी विकास करना चाहते हैं, कोरोना उनका हाथ पकड़ लेता है !
       चुनाव ना आए तो कभी पता न चले कि जनता ने पिछले ५ साल में कितना "सुशासन" भोगा है! चुनाव में ही पता चलता है कि हंस कौन है और कौआ कौन ! तो,,, नए नए खुलासे हो रहे हैं ! कई तारणहार धोती में गोबर लगाए गलियों में आवाज़ लगाते घूम रहे हैं, -' सोना लै जा रे ! चांदी लै जा रे !" कोई पैर में कीचड़ लगाए आवाज़ लगा रहा है, "  ये  ' हाथ ' हमे दे दे ठाकुर "! कोई स्लोगन दे रहा है , " लालटेन फिर आई है !
                          बिजली तो हरजाई है !!"
         पढ़े लिखे बेरोजगार को अब कहीं जाने की ज़रूरत नहीं है! घर बैठे पंद्रह सौ की पेंशन लें और मछली उद्योग में मन लगाएं! चुनाव से पहले जितनी जन्नत बटोरनी हो बटोर लो ! चुनाव के बाद - ढूंढते रह जाओगे ! नक्सल और बाढ़ एक बड़ी समस्या है! नक्सल विपक्ष की देन है और बाढ़ विधाता की ! दोनो को जीतने के बाद ही सबक सिखाया जायेगा !  तब तक,,,,,

       रुकावट के लिए खेद है !!
           ,,

Thursday, 22 October 2020

' मास्क ' है तो मुमकिन है!

     मेट्रो रेल बंद होने के बाद आज पहली बार मेट्रो का सफ़र किया , मज़ा आ गया ! DMRC ने सीटों को कोरोना की सहूलियत के हिसाब से अरेंज किया है!  एक सीट छोड़ कर बैठने की व्यवस्था की गई है! ( ताकि बीच में कोरोना के बैठने की सहूलियत रहे!) कोरोना चलने फिरने में चूंकि लाचार होता है,। इसलिए उसकी संख्या और विकलांगता को देखते हुए हर डब्बे में उसकी सीटें सुरक्षित की गई हैं ! डीएमआरसी  हर स्टेशन के इंट्री गेट पर यात्री के हाथ का टेंप्रेचर जांच कर उसे कोरोन फ़्री मान लेती है ! अब अगर कोरोना यात्री के पीठ पर बैठ कर अन्दर आ गया तो ये कोरोना की गलती है, डी एम आर सी  की नहीं !
                          अंदर मेट्रो ट्रेन ख़ाली सी लगी! मेट्रो के नए नियम और कोरोना के खौफ ने सूरत ही बदल रखा है ! अगर सांसों के आवागमन से परेशान हो कर किसी ने फेस मास्क उतार दिया तो बगल बैठा यात्री घबरा जाता है। ऐसा लगता है गोया सारा कोरोन्ना सिर्फ मुंह के रास्ते अंदर जाने का इंतज़ार कर रहा हो ! (मुंह के अलावा और कहीं से जाना ही नहीं चाहता!) फेस मास्क के बावजूद दोनो कान खुले होते हैं, मगर उधर से जाने के लिए - कोरोना है कि मानता नहीं ! कान के रास्ते अंदर जाने में कोरोना को क्या प्रॉब्लम है, इसपर रिसर्च की ज़रूरत  है ! मेरे ख्याल से, नाक और मुंह के रास्ते में तमाम खतरे हैं! आदमी दाल रोटी के साथ कोरोना को भी खा जायेगा ! नाक में और भी  खतरा है, आदमी ने छिनका तो तो मलबा के साथ कोरोना की पूरी कॉलोनी दलदल में गाना गाती नजर आयेगी, " ये कहां पे आ गए हम - सरे राह चलते चलते !" फिर भी - कोरोना है कि मानता नहीं!
        फेस मास्क की आड़ में पुलिस वाले आत्मनिर्भर होने में लगे हैं! जैसे जैसे कोरोना का ग्राफ गिर रहा है, प्राईवेट अस्पताल और पुलिस की बैचैनी बढ़ रही है! ट्रैफिक पुलिस आपके स्वास्थ्य को लेकर कितनी चिंतित है, इसका पता मुझे कल चला जब, चलती कार के ठीक सामने आकर पुलिस वाले ने मेरे दोस्त की गाड़ी रोक कर फेस मास्क चेक किया! सबके चेहरे पर मास्क पाकर उसके चेहरे पर जो निराशा मैंने देखी, तो ऐसा लगा गोया अभी अभी उसका टाइटेनिक जहाज़ डूबा हो! जनता के स्वास्थ्य को लेकर पुलिस की इतनी चिंता और  बेचैनी कभी देखी नहीं ! फेस मास्क के बगैर चेहरा तुम्हारा! वसूली हमारा! मिले सुर मेरा तुम्हारा !!
      मुझे कोरोना के कैरेक्टर पर शुरू से ही डाउट रहा है, चीन से आए माल का क्या भरोसा ! लगता है साले चीन ने कोरोना को सिखा पढ़ा कर भेजा है कि -' फेसमास्क के बगैर मानना मत , कम्पनियों से हमारी डील हो चुकी है। फेस मास्क देखते ही पतली गली से निकल लेना - पापी पेट का सवाल है! आजकल वैसे भी इंडिया वाले हमारे पेट पर लात मार रहे हैं !' दो लोगों के बीच की खाली सीट पर मरणासन्न अवस्था में लेटा कोरोना दो लोगों  की बात सुन कर अपना बीपी बढ़ा रहा है , ' ये साला मनहूस कब दफा होगा इंडिया से ?'
      " बिहार का चुनाव हो जाने दो, फिर इसी का लिट्टी चोखा खायेंगे ! वैसे भी चाइनीज़ माल की होली तो जलानी तय है !"
              " इस वायरस का फेस मास्क से क्या लेना देना है?"
        " वो कहावत तो सुनी होगी, मुंह लगना। गंदे लोग हमेशा मुंह लगने के फ़िराक़ में रहते हैं, इसलिए हमने मुंह पर फेस मास्क लगा लिया है! वैसे, मैं तो चाहता हूं कि ये मरदूद एक बार घुसे तो सही मुंह के अंदर !"
   " फ़िर तो बहुत बुरा हाेगा !"
           " वही तो ! रोटी रोज़ी की तलाश में भटक रहे इन्सान के लिए दस रुपए का फेस मास्क भी भारी पड़ रहा है ! भूख और गुस्से की आग में उसकी आंतें नाग की तरह फनफना रही हैं ! एक बार कोरोना अंदर गया कि भूखे इन्सान ने डकार मारी ! कोरोना की पूरी कॉलोनी एक बार में ' स्वाहा '!! देख रहे हो कि पिछले दस दिन में कोरोना की आबादी कितनी घटी है?"
     " हां, सर्दियों में भूख बहुत लगती है "! 

    कोरोना अगले स्टेशन पर उतर कर अपनी फेमिली की गिनती करने लगा !

Tuesday, 20 October 2020

" ब्रेकिंग न्यूज़" !

         आजकल न्यूज का अकाल है, मगर ब्रेकिंग न्यूज़ की भरमार है ! पहले न्यूज़ की भरमार थी, ब्रेकिंग न्यूज़ कभी कभी शुतुरमुर्ग की तरह नज़र आता था। अब तो हालत ये है कि हर घंटे ब्रेकिंग न्यूज़ सामने आ रही है। ख़बर भी ऐसी कि सुनकर दिल ब्रेक हो जाए ! सारे चैनल न्यूज़ छोड़ कर ब्रेकिंग न्यूज़ के पीछे लाठी लिए दौड़ रहे हैं । कुछ ब्रेकिंग न्यूज़ की बानगी देखिए, - ' हरियाणा में एक किसान ने अपने पालतू  "भैंसे" का नाम  सुलतान  रखा है '! अगले चानल की ब्रेकिंग न्यूज़, ' पाकिस्तान में  "आटा" महंगा - तख्ता पलट की आशंका बढ़ी '! एक दूसरे चैनल की खोज, - ' राजस्थान  की  "नृत्य करने वाली बकरी".पर आज रात नौ बजे  विशेष कवरेज देखिए "! ( इन्हें देश में कहीं भी भूख, बेकारी, महंगाई, दुख संताप या समस्या नज़र ही नहीं आई  ! दैहिक दैविक भौतिक तापों ने कोरोना आते ही देश छोड़ दिया था!)
         आजकल लोग अनुष्का शर्मा के होने वाले बच्चे को लेकर खासे उत्साहित हैं ! हमारे दिव्य चैनलों की व्याकुलता बढ़ती जा रही है ! एंकर और कैमरामैन खाना पीना भूल कर विराट कोहली और अनुष्का के घर की परिक्रमा कर रहे हैं। कई न्यूज़ चैनल के अंडर कवर एजेंट अस्पतालो का इंट्री रजिस्टर चेक कर रहे हैं ! कल्पना कीजिए कि बच्चे की डिलीवरी के लिए अनुष्का के अस्पताल में भर्ती होते ही ये चैनल किस किस्म की 'ब्रेकिंग न्यूज़" प्रसारित करेंगे ! चलिए कुछ नमूने से आपको वाकिफ कराते हैं ! 
       सबसे पहले हर ख़बर पर पहली नज़र रखने वाले चैनल का एंकर ,-" यही है वो सौभाग्यशाली अस्पताल जिसमें सुबह तीन बजकर तेरह मिनट पर अनुष्का शर्मा एडमिट हुई हैं ! अस्पताल में किसी को जाने की इजाज़त नहीं हैं! अस्पताल के गेट पर भारी सुरक्षा व्यवस्था है! गेट से दस गज दूर एक कुत्ता आने जाने वालों को बड़े गौर से गिन रहा है! हमारे साथ इस वक्त अस्पताल के लेबर रूम की एक नर्स गुलाबो सिताबो खड़ी हैं, चलिए हम उनसे बात करते हैं , " गुलाबो जी, आप कब से यहां पर हैं ?"
       ' अभी आधा घण्टे से,!" 
"नहीं मेरा मतलब इस अस्पताल में ?"
       " बीस साल हो गए , "!
        " इस अस्पताल की सबसे बड़ी खूबी क्या है?"।          " दो तीन डॉक्टरों का कैरेक्टर ढीला है ! एक डॉक्टर पर इल्ज़ाम है कि अपेन्डिक्स के ऑपरेशन में सड़ी हुई आंत के साथ  उन्होंने मरीज़ की एक किडनी भी निकाल ली थी !"
     अगले चैनल का एंकर बड़े राजदार अंदाज़ में बोल रहा था, "देर से टीवी खोलने वाले अपने दर्शकों को हम बता दें कि ये वही अस्पताल है जिसमे अनुष्का शर्मा को एडमिट कराया गया है। पहली बार इस अस्पताल की एक्सक्लूसिव तस्वीरें आप हमारे चैनल पर देख रहे हैं! इस सदी की सबसे बड़ी ब्रेकिंग न्यूज़ ! क्रिकेट रैंकिंग में शीर्ष पर रहने वाले विश्व विख्यात खिलाड़ी विराट कोहली की पत्नी और देश की जानी मानी अभिनेत्री अनुष्का शर्मा का बच्चा इसी अस्पताल में जन्म लेने वाला है ! आप सब बने रहिए हमारे साथ !" 
      अगले चैनल पर आंखो पर चश्मा चढ़ाए एक सज्जन ऐसे चीख रहे थे, गोया मधुमक्खियों के छत्ते पर पत्थर फेंक कर भागे हों -' मैंने आठ महीने पहले ही कह दिया था कि अपने बच्चे की डिलीवरी के लिए अनुष्का जी यही अस्पताल चुनेंगी ! सिर्फ हमारे चैनल को ये सटीक अंदाजा था, क्योंकि सिर्फ हम जानते थे कि समंदर की हवा नवजात शिशुओं के लिए बहुत स्वास्थवर्धक होती है ! हमारी संवाददाता मिस पूतना अस्पताल के आसपास के माहौल पर कड़ी नजर बनाए हुए हैं ! अस्पताल में उन्हें घुसने नहीं दिया गया, इसके लिए हम महाराष्ट्र  पुलिस की कड़ी निंदा करते हैं"!
         चौबीस में से अट्ठारह घण्टे हिन्दू मुसलमान की राग दरबारी अलापने वाला एक  चैनल  इस खबर को कुछ इस अंदाज में ब्रेकिंग न्यूज़ बनायेगा , " सबसे बड़ी ब्रेकिंग न्यूज़ ! आप सब सिर्फ मेरे चैनल पर देख रहे है। अभी छे घंटे पहले अनुष्का शर्मा जी यहां बच्चे की डिलीवरी के लिए एडमिट कराईं गई हैं! सबसे पहले इस अस्पताल की प्री डिलीवरी तस्वीरें आप सिर्फ मेरे चैनल पर देख रहे हैं ! तसवीर में अस्पताल को देख कर मुझे भी काफ़ी खुशी हो रही थी, मगर अभी अभी पता चला है कि अस्पताल से सिर्फ एक किलोमीटर दूर एक मदरसा भी है ! मदरसे का अस्पताल से इतना नजदीक होना एक हिन्दू बच्चे  के लिए ठीक नहीं है ! जाने महाराष्ट्र सरकार इस मुस्लिम तुष्टिकरण से कब बाज आयेगी "!
        डिबेट के शौकीन  एक अभूतपूर्व चैनल कुछ इस अंदाज़ में डिबेट चलायेगा  "आज की सबसे बड़ी ब्रेकिंग न्यूज़ ! अनुष्का शर्मा अपने बच्चे को जन्म देने के लिए मुंबई के शानदार अस्पताल में भर्ती ! बेकारी  और विज्ञापन की परवाज़ न करते हुए आप सब बने रहिए हमारे साथ ! डिलीवरी के बाद  अनुष्का शर्मा  सबसे पहले किसे फ़ोन करेंगी ? इसी बड़ी बहस में भाग लेने के लिए हमारे स्टूडियो में इस वक्त मौजूद हैं विख्यात बंगाली तांत्रिक सूफ़ी जिन्नात अली, डाक्टर का पेशा छोड़ कर राजनीति में आए डॉक्टर प्राणहरण जी और आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने वाले बाल क्रंदन जी ! आप सभी का हम हार्दिक आभार व्यक्त करते हैं ! कहीं मत जाइयेगा, हम तुरंत हाज़िर होते हैं, एक छोटे से ब्रेक के बाद ,,,,,,,,"!

    (  सावधान ! ब्रेकिंग न्यूज़ चल रही है!)

Monday, 19 October 2020

"शुगरिया" ने हाय राम बडा़ दुख दीन्हा !

              अब और क्या कहूं, बाकी सब खैरियत  है ! खैरियत की लिस्ट दिनों दिन आत्मनिर्भर हो रही है, आप को भी बता देता हूं ! अठारह साल से शुगर है। दो साल से काम धंधा बंद है । आठ महीने से कोरोणा की लोरी सुन रहा हूं, " सो जा राजदुलारे सो जा "! मगर इतनी उपलब्धियों के बाद नींद कहां आती है ! शुगर ने जीवन की लज्ज़त से चीनी छीन लिया है ! शुगर सुनने में बडा़ स्वादिष्ट लगता है, मगर ज़िंदगी में ढेर सारी कड़वाहट घोल देती  है  ! 
                     ।     एन एन मेरी ज़िन्दगी का बचपना चालीस साल तक मेरे साथ रहा ! खुदा का शुक्र है कि ईमानदारी की छोटी सैलरी में बड़ी बरकत रही। लेकिन जाने कब बरकत के ढेर में छुप कर हलकट शुगर आ गई, फिर उसके बाद चिरागों में रोशनी ना रही,,,,। बात २००५ की है, किसी की सलाह पर मैंने अपनी शुगर चेक किया ! उस मनहूस दिन को कैसे भूल सकता हूं, शुगर थी - 325 एम सी जी ! चेक करने वाला घबरा गया ! बस उसके बाद - आज तक आह भर रहा हूं,- " हमसे का भूल हुई, ई जो सज़ा हमका मिली "! उसके बाद आजतक सलाह देने वालों की सूनामी ज़ारी है!
            मेरे फेमिली मित्र  " वर्मा जी ' जैसे मेरे ही बीमार होने का ही इंतजार कर रहे थे । उन्होंने आते ही मुझे टटोला " सुना है, तुम्हें शुगर हो गई है! बहुत खतरनाक बीमारी है, अल्ला जाने क्या होगा आगे ! बीमा करवाया है कि नहीं ?" 
      " करवा लिया था, मुझे पता था कि मोहल्ले में मेरी लंबी उमर की चाहत रखने वालों की कोई कमी नहीं है"!
      वर्मा जी को धक्का लगा, लेकिन उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी, " तीन सौ पच्चीस तो बहुत ज़्यादा है! इतनी शुगर में तो दोनो किडनी पंचर हो जाती है"!
  "  वो भी चेक करवा लिया। किडनी के साथ साथ लिवर, हार्ट, पेनक्रियाज सब कुछ ठीक है"!
        वर्मा जी की आशाओं पर गाज गिरी! उन्होंने फौरन मैदान छोड़ दिया, ' चलता हूं, कभी भी हार्ट फेल होता दिखे तो फोन कर देना "! अगला वेलविशर हमारा जिगरी दोस्त और पड़ोसी जगदीश चौधरी था , " उ रे कू सुन भारती ! सुना है अक  तमै शुगर  हो - गी ?"
           " हां, आज कल तो ये बीमारी आम है "!
     " रजिस्टर देख कै बताऊं सू "! 
     " रजिस्टर में क्या देखना है ?"
            " थारी दूध कौ उधारी! लेना देना खरा होना चाहिए ! थारा के भरोसा इब ! वैसे तू बढ़िया आदमी था, पर होनी कू कूण टाल सके! के बताया डॉक्टर नै ?"
       " डॉक्टर ने कहा है कि सुबह शाम उधार दूध पीने से चार महीने में शुगर गायब हो जाती है!"
         " मेरी भैंस इब ना ठा सके थारी जिम्मेदारी "!
इसके बाद मुझे पता चला कि मोहल्ले में कितने हकीम लुकमान और धन्वंतरि वैद्य मौजूद हैं ! रजाई भरने वाले रज्जू काका ने कीमती सुझाव दिया -' मेरठ में एक बाबा शुगर की दवाई देते हैं ! उनकी दवाई से छे महीने में शूगर के कीड़े मर जाते हैं "!
      " शुगर में कीड़े !!" मैं चिल्लाया
   " हां, ज्यादा मिठाई में कीड़े पड़ते हैं !"
                   एन  गांव के छेदी बाबा ने बताया, " सुबह शाम नीम की पत्ती पेट भर कर खाया करो, शुगर और अर्थव्यवस्थ दोनो कंट्रोल हो जायेगी "! तीसरा सुझाव अनोखा था, " सारी समस्या का जड़ खान पान है । हमारे ऋषि मुनि कंद मूल खा के दो ढाई सौ साल तक रिसर्च करते थे ! हिमालय पर जाकर रहो, शुगर और आबादी दोनों कंट्रोल में रहेगी "!

         पर उपदेश कुशल बहुतेरे !   ग़ालिब ने कहा है कि , मैं ना अच्छा हुआ - बुरा ना हुआ '! मुझे यकीन है कि उन्हें भी शुगर थी, और लोगों की सलाह से परेशान होकर उन्होंने ठीक ना होने का फैसला किया होगा ! अजब दुनियां के ग़ज़ब लोग, दूसरों को तब तक बीमारी भूलने ही नहीं देते, जब तक वो शरसैया पर ना लेट जाए !!

Saturday, 17 October 2020

" आओ तुम्हें मै "हीरो" बना दूं "!

           मैं बड़ा कन्फ्यूज हूं। अब देखिए ना, भरे अक्टूबर में सौभाग्य दरवाज़ा खटखटा रहा है- ' खोलो प्रियतम खोलो द्वार '! ये तो ठीक ऐसा है जैसे पानी के लिए रेगिस्तान में भटक रहे किसी इंसान को रूहअफ्जा की पेशकश की जाए ! पिछले दो साल से भाग्य चक्र में जमा सौभाग्य गायब था। काम धंधा खत्म ! साहित्य से ऑक्सीजन गायब !! पिछले साल अक्टूबर में सड़क के किनारे बैठे एक ज्योतिषी को हाथ दिखाया था! मुझे याद है ज्योतिषी और उसके पालतू तोते, दोनों ने मुझे हैरत से देखा था ! ज्योतिषि ने शंकित होकर पूछा था, " जेब में चालीस पचास रुपए होंगे ?" 
      ' पैंतीस रुपए हैं, एक किलो आलू लेना है!'
      इतना सुनना था कि तोते ने शोर मचा दिया ! मैंने ज्योतिषि से पूछा, -' क्या हो गया इसे !'
   " तोता कह रहा है, आलू वाले को ही हाथ दिखाना!"
   " आलू कल खरीद लूंगा , तुम हाथ देखो!"
" हाथ तोता देखता है, मै अनुवाद करके बताता हूं!"
       " मुझे कैसे पता चलेगा कि तुम तोते की भविष्यवाणी का सही अनुवाद कर रहे हो?"
    इस बार तोता गुस्से में साफ साफ चिल्लाया , " भाग !भाग !! भाग !!
        तोता गुस्से में मुझे ऐसे घूर रहा था,गोया कह रहा हो, " मेरे टैलेंट पर शक करता है !  कैसे कैसे गधों से साबका पड़ रहा है!"
                                     उस दिन पैंतीस रुपए की कुर्बानी देने के बाद मुझे ज्योतिषी ने बताया था ,' अगले साल ( 2020 में ) अक्टूबर में तुम्हारी किस्मत पर जमी बर्फ पिघल जायेगी "! अगले साल किस्मत में कोरोना और पतझड़ साथ साथ आए ! नौकरी मिली नहीं, उल्टे कारबार डूबने लगा ! कई साहित्यिक मित्रों ने सलाह दी कि गैंगवॉर पर आधारित अपनी किताबों को फ़िल्म प्रोड्यूसरों तक पहुंचाओ। मैंने कहा कि इंडस्ट्री तक अपनी कोई अप्रोच नहीं है, मै क्या करूं !
    मगर अक्टूबर लगते ही चमत्कार शुरू हो गया ! फेस बुक पर थोक के भाव फिल्मों के स्क्रिप्ट राइटर ठीया लगाने लगे ! सब के सब "प्रतिभशाली"  लेकिन  "फ्रेश स्क्रिप्ट राइटर" की तलाश में क्षीर सागर से निकल कर आए थे।शुरू में एक दो स्क्रिप्ट राइटर नज़र आए , फ़िर लाइक और कमेंट में प्रतिभाओं की सूनामी देख "साइबेरियन सारस ' का  पूरा  का पूरा झुंड फेस बुक पर जलवागर हो गया ! हर कोई कोरोना के कारण  "रूकी हुई कृपा" की डिलीवरी  देने आया था !
       आज तो सुबह छे बजते ही मैंने फेस बुक खोल कर देखा, शुरुआत में ही दो " हातिमताई" कंटिया डाले नज़र आए। एक को फ़िल्मों के लिए " फ्रेशर चेहरों" की तुरंत ज़रूरत थी । दूसरे, स्क्रिप्ट राइटिंग सिखाने के लिए ऑनलाइन वेब क्लॉस लेकर आए थे ! मेरे जैसे लोग इतनी सुविधा देखते ही धर्म संकट में घिर जाते हैं, ' गुरु गोविन्द दोऊ खड़े - काके लागूं पाय,,,!' जब इस तरह का अमृत बटता है, तो  " सीटें" बहुत   "सीमित" होती हैं! प्राणी अमृत घट के धोखे में भटकटैया चुन लेता है!
         मज़े की बात देखिए हर कोई फिल्मी दुनियां के स्क्रिप्ट राइटिंग सर्कल से जुड़ा है! हर किसी ने कई हिट फिल्में और सीरियल लिखे हैं ! हर कोई विख्यात है मगर मैंने कभी उनका नाम सुना नहीं था ! ( ये तो मेरी गलती है, ना खुद विख्यात हो रहा हूं, ना किसी को विख्यात होते देख रहा हूं ! ये तो हद हो गई !) फ़िल्मों में लिखने का ख़्वाब मैंने आठवीं कक्षा में ही देख लिया था! अब पूरे ४० साल बाद विख्यात होने का ऑफ़र आया था, सोचा -  मत चूको चौहान !
       अगर फेस बुक के फ़्लैश बैंक में जायेंगे तो आपको पता चलेगा कि अरसा पहले नवोदित लेखकों की किताबें छापकर उन्हें बेस्ट सेलर लेखक बनाने वाले दयालु कृपालु प्रकाशक भी थोक में उग आए थे ! फिर एकदम से पता चला कि- जो बेचते थे दर्दे दवा ए दिल, वो दुकान अपनी बढ़ा गए ! चन्द फंदेबाजों के लिए फेसबुक बड़ा पोटेंशियल तालाब बन गया है, जहां वो नए नए चारे का इस्तेमाल कर " मछलियों" को लुभाते हैं !

   बच के रहना रे बाबा , तुझ पे नज़र है !!

Thursday, 15 October 2020

" कुत्ता "

                        "व्यंग्य" 

                    ' कुत्ता कहीं का '

                          माफ करना मै किसी का अपमान नहीं कर रहा हूं। (मैं कुत्तों का बहुत सम्मान करता हूं। ) मैं कुत्तों के मामले में दखल नहीं देता ! कुत्ते इंसान के मुआमलों में बिलकुल दखल नहीं देते ! लेकिन दोनों की फिजिक और फितरत में भी बहुत फ़र्क है ! ( आदमी  कुत्ते जैसा वफादार नहीं होता !) लोग कहते हैं, - तुख्म तासीर सोहबते असर ! मगर कुत्ता पाल कर भी इंसान के अंदर कुत्ते वाली वफादारी नहीं आती ! चचा डार्विन से पूछना था कि जब बंदर अपनी पूंछ खोकर इंसान हो रहे थे तो कुत्ते कहां सोए हुए थे ? या फ़िर इंसान होना कुत्ते अपना अपमान समझ रहे रहे थे।  
                कुत्तों से मेरा बहुत पुराना याराना रहा है ! दस साल की उम्र में मुझे मेरे ही पालतू कुत्ते ने काट खाया था ! ( मगर तब कुत्ता तो कया नेता के काटने पर भी रेबीज़ का खतरा नहीं था !) मुझे आज भी याद है कि कुत्ते ने मुझे क्यों काटा था ! झब्बू एक खुद्दार कुत्ता था जो अपने सर पर किसी का पैर रखना बर्दाश्त नहीं करता था़ ! और उस दिन मैंने यही अपराध किया था ! झब्बू ने मेरे दाएं पैर में काट खाया था ! तब टेटनस और रेबीज दोनों का एक ही इलाज था , आग में तपी हुई हंसिया से घाव को दागना ! ( इस इलाज़ के बाद टिटनस  और रेबीज उस गांव की तरफ दोबारा झांकते भी नहीं थे ! ) ये दिव्य हंसिया ऑल इन वन हुआ करती थी , फसल और टेटनस के अलावा नवजात शिशुओं की गर्भनाल  काटने में भी काम आती थी ! 
          मुखे आज भी याद है कि जब गर्म दहकती हंसिया से मेरा इलाज़ हो रहा था तो मेरे कुत्ते की खुशी का ठिकाना नहीं था। वो खुशी से अपनी पूंछ दाएं बाएं हिला रहा था। दूसरी बार कुत्ते ने मझे पच्चीस साल की उम्र में तब काटा जब मैं दिल्ली में था ! उस दिन कुछ आवारा कुत्ते सड़क किनारे भौंक भौंक कर आपस में डिस्कस कर रहे थे ! ऐसी सिचुएशन में समझदार और संस्कारी लोग कुत्तों के मुंह नहीं लगते ! मगर मैं ठहरा गांव का अक्खड़ - खामखाह उनकी पंचायत में सरपंच बनने चला गया। उन्होंने मुझे दौड़ा लिया ! छे कुत्ते अकेला मै,  एक कुत्ते ने दौड़ कर पैंट का पाएंचा फाड़ा और पिंडली में काट खाया ! मगर इस बार भी मैंने रेबीज़ का इंजेक्शन नहीं लगवाया ! ( आदमी हूं, मुझे दिल्ली के प्रदूषण और अपने ज़हर पर भरोसा था !)
                  कुत्तों के काटने की दोनों घटनाएं सच हैं। मैंने कुत्तों पर बड़ी रिसर्च की है ! हम इंसान गहन छानबीन के बाद भी किसी इंसान की पूरी फितरत नहीं जान पाते। कुत्ते इंसान को सूंघकर ही उसका बायोडाटा जान लेते हैं! आपने कई बार देखा होगा कि स्मैकिए और पुलिस वालों को देखते ही कुत्ते भौंकने लगते है!  वहीं - पत्नी पीड़ित पति, रिटायर्ड मास्टर और हिंदी के लेखकों को देखते ही कुत्ते पूंछ हिलाने लगते हैं, गोया दिलासा दे रहे हों, " रूक जाना नहीं तुम कहीं हार के बाबाजी- हम होंगे कामयाब एक दिन " !
        गांव के कुत्ते और शहर के डॉगी में वही फर्क होता है जो खिचड़ी और पिज्जा में होता है ! कुत्ता ऊपर वाले के भरोसे जीता है , इसलिए किसी कुत्ते को कोरोना नहीं होता ! डॉगी को पूरे साल घर में रहने की कीमत चुकानी पड़ती है ! कुत्ता हर संदिग्ध पर भौंकता है, जबकि डॉगी चोर और मालिक की सास के अलावा है हर किसी पर भौँकता है। डॉगी को सबसे ज्यादा एलर्जी इलाके के कुत्तों से होती है जो उसे खुले में रगेद कर सबक देने की घात में होते हैं ! कुत्ते जेब नहीं काटते और भूखे होने पर भी चोरी नहीं करते ! कुत्ते और भिखारी  में आदमी से ज़्यादा पेशेंस होता है!
        १८ साल दिल्ली के गोल मार्केट में रहा ! यहां मुझे एक जीनियस कुत्ता मिला, जिसे कॉलोनी के चौकीदार ने पाला हुआ था। वो जब भी मुझे देखता, दोस्ताना तरीके से पूंछ भी हिलाता और हल्के हल्के गुर्राता भी ! उसके दोहरे चरित्र से मै चार साल कन्फ्यूज़ रहा ! चौकीदार अक्सर रात में दारू पीकर कुत्ते को समझाता ,- ' देख ! कभी दारू मत पीना, इसे पीने वाला बहुत दिनों तक बीबी के लायक नहीं रहता !" कुत्ता पूरी गंभीरता से पूंछ हिलाकर चौकीदार का समर्थन करता था। पी लेने के बाद चौकीदार अपने कुत्ते पर रोंब भी मारता था! एक दिन डेढ़ बजे रात को जब मै एक लेख कंप्लीट कर रहा था, तो फ्लैट के नीचे नशे में चूर चौकीदार कुत्ते पर रोब मार रहा था , " पता है- परसों रात में मेरे सामने शेर आ गया ! मैंने उसका कान पकड़ कर ऐंठ दिया था! वो पें पे करता भाग गया ! डरपोक कहीं का "! जवाब में कुत्ता जोर से भौंका, गोया कह रहा हो, " साले नशेड़ी ! वो मेरा कान था , अभी तक ठीक से सुनाई नहीं  दे रहा है "!!

                      कई सालों से मुझे ऐसा लगता है गोया मैं कुत्तों की भाषा समझता हूं । इस दिव्य विशेषता के बारे में मैंने किसी दोस्त को इस डर से नहीं बताया कि लोग मिलना जुलना बंद कर देंगे ! शाहीन बाग़ में नॉनवेज होटल और ढाबे बहुत हैं! यहां के कुत्ते भी आत्मनिर्भर नजर आते हैं ! एक दिन घर के नीचे बैठे एक दीन हीन कुत्ते को मैं रोटी देने गया ! कुत्ते ने मेरा मन रखने के लिए रोटी को सूंघा और मुझे देखकर गुर्राया ! मैं समझ गया - वह कह रहा था, - " खुद चिकन गटक कर आया है और मुझे.'नीट' रोटी दे रहा है ! मैं आज भी फेंकी हुई रोटी ( बोटी के बगैर) नहीं उठाता "!

               मैं घबरा कर वापस आ गया !

      ( सुलतान भारती )


" अंकल" जी नमस्ते !

         अजीब सी बदलाव की बयार आई है! अब देखिए ना, अपने गांव वाले  'चच्चा ' पहले चाचा हुए फिर सीधे "अंकल" जी हो गए  ! अंकल जी होते ही उनके कैरेक्टर में परमाणु विखंडन के बाद वाली ऊर्जा आने लगी ! अब वो  "अंकल" जी को भी ओवरटेक करने का ख़्वाब देखने लगे ! मेरा अपना सोशल रिसर्च है कि ज़्यादातर अंकल जी बड़े खतरनाक होते हैं। उन्हें बुज़ुर्ग कह दो या आशीर्वाद मांग लो तो क्रोध में उनके अंदर दुर्वाशा ऋषि फूट पड़ते हैं! दरअसल साठ साल तक प्राणी अपनी उम्र कम बताता है और साठ के बाद ज्यादा ! 
                              क्या बीती होगी उनके दिल पर जब कॉलोनी की वो महिला जिसके लिए उन्होंने जुल्फ़ों पर इतनी मेहनत की थी, उनको देखते ही ' अंकल जी नमस्ते ' बोल दिया ! ( इस के साथ तो अंकल जी ने बद्दुआ के साथ शपथ भी ली होगी , ' तेरी गलियों में ना रखेंगे कदम - आज के बाद !")  -तमसो मा ज्योतिर्गमय - की कोशिश में लगे किसी बुज़ुर्ग को कोई रमणी भरी दुपहरी अंकल जी कह दे तो अंदर फेफड़े को जाती ऑक्सीजन भी कार्बन डाई ऑक्साइड में बदल जाती है ! केश और काया से ' बाबा ' नजर आ रहे कवि की पीड़ा देखिए, --' चन्द्र बदन मृगलोचनी बाबा कही कहि जाएं '! लागा कैरेक्टर में कोरोना, महिला ने कवि को बाबा की नज़र से देखा और बाबा को महिला  मृगलोचनी नज़र आई ! अब ' मास्साब ' क्लॉस  के छात्रों से बाबा की नीयत में  "अद्वैतवाद" ढूंढने को कहेंगे !( हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है!)
       जवानी के लिए हर किसी का जिया बेकरार होता है। लेकिन ये ज़वानी भी कब बता कर आती है। गरीबों के घर में बगैर बताये चली आती है। देखते ही गरीब डर जाता है,- ' इस गुरबत में बच्चों पर जवानी ! ऊपर वाले तेरा जवाब नहीं, कब दे क्या दे हिसाब नहीं '! जवानी तो सब पर आती है, पर हर किसी को देखने की फुरसत नहीं होती ! ज़िंदगी की भीड़ में , कशमकश के थपेड़ों में परिवार की नाव खेने में लगे कई इंसान किशोरावस्था से सीधे बुढ़ापे में जा खडे होते हैं ! फ़र्ज़ और पारिवारिक जिम्मेदारियों ने उनसे  "बूढ़ा" होने का एहसास ही छीन लिया ! एक लाजवाब शेर याद आता है,- 

जिम्मेदारियों की फेहरिस्त कितनी तबील है !
मेरे   बच्चे    मुझे   "बूढ़ा"  नहीं   होने   देते !!

            कौन बूढ़ा होना चाहता है। दो साल पहले मुझे पहली बार किसी ने अंकल कहा, सच कहूं - तन  बदन मेें लंका जल उठी!  ' तू अंकल -  तेरे खानदान के नौनिहाल तक अंकल !  ५५ साल में तो सपने तक नहीं पकते, उम्र कैसे पक गई ! ज़रूर तेरी आंख में मोतियाबिंद होगा ! अबे लौंडे! हम यूपी वाले तो साठ साल में जवान होते हैं ! सुना नहीं, - साठा  में पाठा -!! हम यूपी वाले ज़वानी की "बोंजई" नस्लें हैं ! हमारे यहां फौजदारी और लठैती के केस में नामजद लोगों में ज़्यादातर ५० साल से ऊपर वाले मिलेेगे। 
             शहर के अंकल ज़्यादा ख़तरनाक होते हैं। बुढ़ापे से दूर भागने में ये सबसे आगे है। फैशन इतना कि वॉकिंग और जॉगिंग के लिए भी सूट मुकर्रर है ! गोया ट्रैक सूट के अलावा धोती कुर्ता या कुर्ता पाजामा पहन कर मॉर्निंग वॉक पर गए तो  बीपी और शुगर जैसी बीमारियां नाराज़ हो जायेंगी! ऐसे अंकल बगुले से ज़्यादा सफेद कपड़ पहनते हैं और ईश्वर से निराश प्राणियों को मोक्ष और " रुकी हुई कृपा" रिलीज़ करते हैं। जबसे भाजपा आई, ऐसे  ' बगुलों ' की कुण्डली में शनि भारी पड़ गया । उन्हें  रामराज सूट नहीं कर रहा है !

     ये शब्द " अंकल जी"  जो है, देखन मे छोटो लगे - घाव करे गम्भीर ! सुनने और सुलगने के बाद प्राणी घर आकर शीशे में चेहरा देखता है। कहां कहां से " अंकल जी" झांक रहे हैं! बालों ने बिगुल बजाया है! क़िले पर शत्रु चढ़ गया,अब आसानी से तमाम कंगूरे ध्वस्त कर देगा ! ज़वानी के सारे पेंडिंग स्वप्न  "स्वाहा"! तभी तो कहूं, पिछली सर्दियों में घुटनें इशारा क्योें कर रहे थे ! अबे बुढ़ापे ! तू अस्सी के बाद यमराज के भैंसे के साथ साथ आ  जाता ! ऐसी भी क्या जल्दी !!

    अभी मैंने जी भर के देखा नहीं है!

Tuesday, 13 October 2020

नमस्ते "अंकल" जी !

        अब आप खुद सोचिए कि जिसके लिए आप बन ठन कर घर से निकले , सामने पड़ते ही वही महिला आप को देखते ही - ' नमस्ते अंकल जी ' कह दे तो दिले नादान पर और 

Monday, 12 October 2020

" सावन को आने दो "!

           मैंने सावन के बारे में बहुत सुना है ! कॉन्फिडेंस से कह सकता हूं कि सावन के बारे में कोरोना से ज्यादा जिज्ञासा थी ! पैदा होने से पच्चीस साल की उम्र तक गांव से जुड़ा रहा! उस दौरान सावन, लाला के तगादा की तरह, बार बार सामने आता रहा ! सावन आते ही गांव में झूले पड़ जाते थे लड़के झुलाते थे और लड़कियां झूलती थीं ! लोग इन्तज़र करते थे, - सावन तुम कब आओगे ! आकाश में बदली, रिमझिम  फुहार और नीचे  "कजरी" गाती झूले पर युवा महिलाएं ! इस झूले के दौरान इश्क की कई क्लासिक कहानियां जन्म लेती थी ! 
       वो गाना याद आ रहा है, - बचपन के दिन भुला ना देना ! अरे कैसे भूल सकता हूं भइया ! वही खुबसूरत और रंगीन यादें तो कुपोषित हसरतों को आज भी ऑक्सीजन देती हैैं ! प्यार मुहब्बत भी याद है और दोस्तों के साथ लड़ाइयां भी। एक बार तो   "मोहब्बत" इतनी घातक हो गई कि मै अपने अजीज़ दोस्त कमाल अहमद से मारपीट कर बैठा था!   ( दरअसल मामला  'एक म्यान में दो तलवार ' वाला  था !) खैर, सावन में बादलों के नजदीक "बिजली" के आने से इतनी गरज चमक तो स्वाभाविक है !
                 गांव क्या छूटा, सावन छूट गया ! अड़तीस साल से दिल्ली में हूं! कभी सावन को आते जाते नहीं देखा!     जब जब सावन ढूंढने की कोशिश की, तो कभी बादलों से आसाराम झांकते नजर आए तो कभी बाबा राम रहीम ! ओरिजिनल सावन लापता है। पहले बसंत लापता हुआ अब सावन ! क्या पता दस साल बाद हमें पता चले कि अमेरिका ने सावन को पेटेंट करा लिया है !अब आगे से सावन वहीं पाया जायेगा ! हमें पता है कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है। अभी हमें  "विश्व गुरू" का सिंहासन पाना है! खोने की लिस्ट लंबी है, इसलिए - सावन को जाने दो!
        पिछले सावन में मै गांव गया था । बड़ा जोश में था कि सावन से मुलाकात होगी ! पंद्रह दिन फेरी वालों की तरह हांडता रहा, मगर सावन नजर नहीं आया ! अब नीम के पेड़ पर झूले भी नहीं पड़ते ! झूला झुलाने वाले युवा ज़्यादातर शहर चले गए और जो बचे वो झूले पर पींग मारने की जगह ' गांजे ' की पींग मार कर आसमान में उड़ते हैं ! अब इधर सावन की जगह   "मनरेगा" आने लगा है ! मनरेगा ने सावन को निगल लिया है ! तमाम पनघट में नालों का कब्ज़ा है ! बसन्त और सावन का पंचांग अब  ग्राम प्रधान और  बीडीओ साहब बनाते हैं!
         बसन्त का और बुरा हाल है! अब इसकी भी मोनोपोली खत्म कर दी गई है!  फरवरी के जिस महीने में पहले बसंत आता था, अब वैलेंटाइन आता है ! युवाओं को अब वैलेंटाइन के मुकाबले बसन्त में  चीनी कम  नज़र आ रही है ! रोना ये है कि वैलेंटाइन का इन्फेक्शन कोरोना की रफ्तार से गांव तक पहुंच गया है। ऐसे में बसन्त हो या सावन , उनकी विलुप्त होने की आशंका "बाघ" जैसी होती जा रही है। जहां बसन्त है वहां वैलेंटाइन ने ठीया लगा लिया, और सावन बेचारा मनरेगा से दुखी है। जाएं तो जाएं कहां!

         मैं सावन को लेकर संशय में हूं, और बसन्त को लेकर दुखी ! युवाओं की चिन्ता वैलेंटाइन को लेकर है! क्या पता गांव से शहर तक "सावन"  को निगल चुका कोरोना फरवरी में वैलेंटाइन के साथ क्या करे ! सतयुग में सब कुछ संभव है !कल के सूरज और आज की गहराती शाम के बीच ख्वाबों के पनपने के लिए एक बंजर रात का फासला सामने है !

         शब बखैर दोस्तों !

Friday, 9 October 2020

" उरे कू सुण भारती " ( चौधरी स्पेशल )

        मै रात बड़ी मुश्किल से सोया था। ख़्वाब में देखा कि कोई मेरा जूता चुरा ले गया ! दयनीय अर्थव्यवस्था के इस दौर में एक बड़ा नुकसान था! मैं नींद में चोर को बददुआ दे ही रहा था कि धमाका हुआ ! मै जाग गया, बाहर से किसी ने दरवाजा खटखटाया था! मैंने सोचा, हो सकता है चोर जूता वापस देने आया हो ! फिर मेरी नज़र बेड के नीचे रखे जूते पर पड़ी तो मैंने जल्दी से उठ कर दरवाजा खोल दिया ! 
        सामने चौधरी खड़ा था !
            अंदर आकर सोफे पर पसरता हुआ चौधरी बोला, " लेे इब थारी मौज हो - ली ! थारे आत्मनिर्भर होने कौ दिन आ लिए"! 
       " हां, बड़ी मुश्किल से जूते बचे हैं, खैर तुम बताओ कहां रहे दो महीने "!                                                 " गाम ( गांव) लिकड़ गया हा ! के करूं, इतै दिल्ली में  कती उधार खाने बाड़े बैठे सूं ! खून पी लई ठाइस साड में "!
   " मैं जानता हूं कि तुम्हारा इशारा किधर है, खैर उधारी प्यार मुहब्बत के लिए फेवीकोल है ! हां तो तुम किसी खुशखबरी की बात कर रहे थे ?" 
          " कूण बनेगो करोड़पति - देखा है कदी ?"
    " बेगम देखती हैं, मैं नहीं देखता "! 
" इब खुश हो लेे, उपले की तरह सूखी थारी किस्मत का गेट इब  'खुल ज्या सिम सिम ' होने वाडा सै "!
   मै खुश होते होते रह गया, " मैंने तो लॉटरी का कोई टिकट भी नहीं खरीदा था !"
     " परे कर टिकट नै ! मेरे धोरे  'केबीसी ' ते बड़ा प्रोग्राम कौ आइडिया है, थारी आने वाड़ी चौदह जन्मों की किस्मत कौ कुपोषण दूर हो ज्यागा "!
    " मेरा पुनर्जन्म का कोई इरादा नहीं है !"
 " ता  फिर इसी जनम में  आत्मनिर्भर हो लेे! लोकल किस्मत कू  वोकल कर लेे जल्दी ते"!
    " मुझे करना क्या होगा !"
    " करोड़ पति बनना सै"!
  मैं फिर निराश हो गया, "  आख़री वक्त में क्या ख़ाक मुसलमां होंगे , खैर प्लान बताओ"!
     " नू लगे, अक - करोड़पति हो कै मुझ पै एहसान कर रहो, खैर तू दोस्त है म्हारो ! सुन, मै एक ऐसा प्रोग्राम लाना चाहूं, जिसमें पूछे जाने वाले सवाड़ इतने आसान होंगे के गधे से गधा आदमी भी केबीसी होने कू बावला हो ज्या "!
         " एकाध सवाल का नमूना बताओ"!
  " म्हारे या प्रोग्राम में  करोड़पति होने खातर कुल  तीन सवाड कौ जवाब देना होगा "!
     " सवाल क्या हैं ?"
    " पहला सवाड़,- गधे के कितने पैर होते हैं?"
                " चार"!
     " गधे कू काफ़ी नज़दीक से जानते हो, खैर दूजा सवाड़ - दिन में सूरज लिकड़ता सै, अर  रात में ?"
       " चांद "!
    " घणा बुद्धिजीवी दीखे , ख़ैर - इब सब ते तगडा सवाड़ कौ बारी ! भैंस अर बैल में दूध कौन देवे ?"
        " भैंस !"
    " करोड़पति होने की घणी जल्दी है तमै !"
 " इन सवालों के जवाब तो कोई भी गधा दे सकता है"!
       "वो तो मन्ने देख लिया "!
  " जीतने वाले को ईनाम में क्या दोगे"?
         सोने की एक भैंस  "!
   " नहीं" !  मै चिल्लाया !
     "हंबे" चौधरी मुस्कराया " तीनों सवाल कौ सही जवाब देने बाड़े कू सोने की एक भैंस दी ज्यागी ! प्रतियोगिता में हिस्सा लेने बाड़े कू सिर्फ दो हजार रुपए की इंट्री फीस देनी होगी ; समझा कोन्या ?"
         " समझ गया,  तुम भी लगे हाथ समझ लो कि ये सवाल इतने आसान हैं कि जीतने वाले इतने होंगे कि पूरा तबेला बेच कर भी तुम एक विजेता को सोने की भैंस नहीं दे पाओगे "!
       चौधरी मुस्कुराया " गलतफहमी है थारी, हम दोनों करोड़पति हो  ज्यांगें "!
      मेरी आंखें उबल पड़ी, " भला वो कैसे ?
           " ठंढ रख, कदी  करोड़पति होने की खुशी में वीरगति कू प्राप्त ना हो ज्या ! देख , आसान सवाड़  अर  सोने की भैंस कू सुन कर अक्ल ते पैदल लोग भी प्रतियोगिता का प्रवेश शुल्क दो हज़ार रुपए जमा कर देंगे ! अगर एक लाख लोगों का पैसा आ गया तो सोच, थारा के होगो भारती"!
     "बीस करोड़ कमाने के चक्कर में हम दोनो कंगाल हो ज्यांगे ! सवाड इतने आसान सूं, अक लाखों लोग विजेता हो ज्यांगें  "! 
   "हम पांच भाग्यशाली विजेताओं का लक्की ड्रॉ लिकाडेंगे! इब अकल पर गिरा गोबर परे कर बावड़े ! विजेता होने अर भाग्यशाली होने में घणा अंतर सै"!
  " फिर भी हमारी लुटिया बिक जाएगी ! एक भैंस का वजन छे सात कुंटल होता है , सोने की एक भैंस" अरबों रुपए की तैयार होगी ! "!
          मुझे देखता हुआ चौधरी धीरे से मुस्करा कर बोला, " मैंने  "सोने की भैंस" देने की बात की है, पर वज़न का कोई जिकर नहीं किया  है ! सोने की भैंस एक टन की भी हो सके, अर - एक "तोले" की भी"! 

   तब से मैं आंखें फाड़े चौधरी को देख रहा हूं!  

Thursday, 8 October 2020

" डांस इंडिया डांस"!

          अब मैं कैसे यकीन दिलाऊं कि ज़माना कितना बदल गया है! बचपन में मुझे इस बात का घमंड था कि मुझे नाचना नहीं आता ! आज इसी हीनता के बोझ से कमर की नाप उखड रही है कि मुझे नाचना नहीं आता ! शादी ब्याह में लोगों को नाचते देख कर अपनी अधूरी योग्यता पर गुस्सा आता है और अब्बा श्री की नसीहत पर खीज़ ! नाचना तो दूर - अब्बा श्री नाच देखने के भी विरोधी थे। ( जैसे कि उन्हें पता था कि शादी के बाद तो बाकी जिन्दगी नाचना ही है!)
         वक्त की धार ने कई पुरानी परिभाषाओं की ज़ंग उतार दी है !अब नाचना इज्ज़त की बात है, स्टेट्स सिंबल है ! मैंने कई शादियों में देखा है, पति जब ' डांस ' करता है तो पत्नी उसे ऐसे गर्व से देखती है, गोया पति ने योग्यता की सारी बाधाएं पार कर ली हों और अब वो परमवीर चक्र पाने के करीब है ! कई "खुले विचार" वाले पति अपनी पत्नी को नाचते देख कर ऐसे खुश होते हैं गोया पत्नी ने भरे दरबार में नाच कर उनकी लाज़ रख ली हो। लड़का नाच रहा है, और गर्वित मां बाप वहां मौजूद रिश्तेदारों को अपने होनहार बेटे के बारे में बता रहे हैं, " मैट्रिक में भले तीन साल लगे हों, पर डांस में हमारे चिंटू ने हमेशा बाजी मारी है"!
     पहले हमारे अध्यापक हमें सीख देते थे, - पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब! नाचोगे कूदोगे होंगे खराब !! हम नाच से नवाब की ओर गए, मगर क्या फ़ायदा ! दुविधा में दोनो गए माया मिली न राम ! नवाब बन नहीं पाए, और नाच से वंचित होकर लेखक हो कर रह गए ! ना खुदा ही मिला न विसालेे सनम - न इधर के रहे ना उधर के रहे। बचपना था, नाच के महत्व से अनभिज्ञ था! " मास्साब" की गलत सीख ने मेरे सौभाग्य पर नींबू टपका दिया है। अब इस उम्र में नाच में आत्मनिर्भर होना बड़ा मुश्किल लग रहा है !
                नाचना इतना ग्लैमरस कभी नहीं था! कई चैनल इसी के भरोसे ऑक्सीजन लेे रहे हैं ! बच्चे स्कूल बैग फेंक कर " बूगी वूगी " में करिअर बना रहे हैं ! नाच इंडिया नाच ! क्योंकि नाचने से ही अर्थव्यवस्था में सुधार होगा, आत्मनिर्भरता बढ़ेगी और कोरोना भाग खड़ा होगा। नाचने से आत्मविश्वास बढ़ता है, और गरीबी दूर करने के लिए आत्मविश्वास ज़रूरी है! देखा जाए तो इस वक्त देश आआत्मविश्वास से ही चल रहा है! नाचना कितना ज़रूरी होगा, कि कुछ चैनल दो दशक से नाच का टैलेंट हंट चला रहे हैं ! कल के नौनिहाल से लेकर चाचा रामपाल तक नाचने आ रहे हैं! बच्चा और चच्चा दोनों नाच रहे है, और देश आगे बढ़ रहा है!
         कोई चैनल बच्चों का टैलेंट हंट चला रहा है तो कोई घरेलू महिलाओं का ! घर का टैलेंट स्टेज़ पर जलवागर है और पति घर के मुन्ने को लोरी सुना रहा है, -" सो जा राजदुलारे सो जा "! पत्नी डांस में लगी है और पति डायपर बदलने में! कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है! पत्नी पाने की ओर अग्रसर है, और पति  गा रहा है, " मेरा चैन वैन सब लूटा - ज़ालिम नजर उठा ले,,,,,,"! पालना छोड़ कर छोटे छोटे बच्चे नाचने आ गए हैं, गोया क्या जीना इसके बिना ! देश का सारा टैलेंट नाचने में ही सिमट गया है!

          टैलेंट की इंतेहा देखिए! पहले लोग सिर्फ पैर के बल नाचते थे, अब सर के बल भी नाच रहे हैं! (टैलेंट सरफिरा हो रहा है!) नाच में जिमनास्ट को घोल दिया गया है! डांस के कास्ट्यूम ऐसे हैं कि दर्शकों को अन्दर का सारा "टैलेंट" साफ साफ नजर आ रहा है! 

      टैलेंट आगे बढ़ रहा है, कोरोना पीछे हट रहा है!!

Wednesday, 7 October 2020

" गॉड इज़ ग्रेट "!

           मै भी कुबूल करता हूं कि ' गॉड इज़ ग्रेट, यानी अल्लाहु अकबर ! अर्थात्  " ईश्वर महान है "! मैं बाकी दुनियां की बात नहीं जानता,पर हमारे देश को तो गॉड इज़ ग्रेट ही चला रहा है। दुनियां और हमारे देश में सबसे बड़ा अंतर ये है कि बाकी देशों के लिए ईश्वर चिंतित होता है, परंतु हमारा देश ईश्वर के लिए चिंतित होने वाला पहला देश है! ईश्वर को  "घर" देना या ना देना मनुष्य तय करता है ! अगर मनुष्य ने तय कर लिया कि ईश्वर के साथ अन्याय हो रहा है तो वह ईश्वर को न्याय दिलाने के लिए अदालत भी जा सकता है! ( बेशक इस धार्मिक अनुष्ठान में कुछ मानव आहुतियां भी देनी पड़ें !)
      कभी ईश्वर चमत्कारी हुआ करता था,अब ये काम भी मनुष्य ने अपने हाथ में ले लिया है! ( एकाधिकार से अहंकार पैदा होता है!) मनुष्य चमत्कारी हो गया किन्तु अहंकारी नहीं। वो अपनी असीमित शक्तियों का क्रेडिट आज भी ईश्वर को दे रहा है, " परसों ट्रैफिक पुलिस से बच बचा कर  साक्षात ईश्वर मेरे घर आए थे! ( उनके पास फेस मास्क नहीं था!) उन्होंने मानव कल्याण के लिए मुझे नॉमिनेट कर दिया ! आज से,ब्लडप्रेशर,गठिया,
शुगर और जवानी दीवानी से सम्बन्धित तमाम दिव्य औषधियों का हकीम लुकमान मैं ही हूं! ये ईश्वर की महान अनुकंपा है मुझ पर ! बगैर अवरोध के " कृपा" आती रही तो मै शीघ्र ही ईश्वर के लिए एक भव्य मन्दिर बनाऊंगा"!
        गॉड इज़ ग्रेट ! कैसे कैसे काम करता है! उसकी मर्ज़ी के बगैर कुछ होता ही नही, और,,,,जो कुछ होता हुआ नजर आता है, उसकी मर्ज़ी मान लें तो आस्था लीक होने लगती है ! बाढ़, सूखा, सूनामी,अकाल, कोरोना आदि को एक्ट ऑफ गॉड मान लेते हैं,पर मॉबलिंचिंग, डकैती, लूट और मासूमों के साथ  बलात्कार को उसकी मर्ज़ी कैसे मान लें ! इन्ही अपराधों पर गहन अध्ययन और चिंतन " दिव्य" बाबाओं के आध्यात्मिक व्यापार को प्रेरणा और प्रोग्रेस देता है!
          ट्रेन के टॉयलेट से लेकर टाटा के ट्रकों तक ऐसे बाबाओं के विज्ञापन छाए हुए हैं, ' खुदा ने चाहा तो खून के आंसू नहीं रोने दूंगा" ( बाबा करामत अली बंगाली) कितना शातिर बाबा है! सारा इल्ज़ाम खुदा पर डाल रहा है ! खुदा ने चाहा तो,,,,,! नुक़सान होने पर हाथ खड़े कर लेगा ," क्या करूं, खुदा ने इस केस में  कोआपरेट  नहीं किया ! थोड़ा और 'लोबान ' डालो!" ये जितने मुस्लिम बंगाली बाबा जन शौचालय में अपना परिचयपत्र छोड़ते हैं, करीब करीब सारे  "वशीकरण" से लैस होते हैं ! सभी बाबा मनचाही लड़की को गर्ल फ्रैंड बनाने से लेकर गुप्त रोग के निवारण में डिप्लोमा लिए बैठे हैं!

     अब कॉलेज के लौंडे को पूरा यकीन है कि अगर चमत्कारी बाबा ने चाहा तो मोहल्ले की सलमा तो क्या "सनी लियोनी" को भी उसके आगे पीछे घूमने पर मजबूर हो जायेगी ! अब वो आस्था का लोबान सुलगा रहा है और शातिर बंगाली बाबा भरोसा दिला रहा है , " खुदा ने चाहा तो सनी लियोनी के साथ सुष्मिता सेन भी तुम्हारे ऊपर फिदा हो सकती हैं! क्या पता तुम्हारे ही चक्कर में सुष्मिता ने आज तक शादी न किया हो! लोबान डालते रहो, गॉड इज़ ग्रेट !"

     ऊपर बैठा गॉड हैरत में पड़ा सोच रहा होगा, - मुझे चुनौती देने वाली ये दिव्य रचना क्या मैंने ही बनाई है !!



Tuesday, 6 October 2020

" नाच मीडिया नाच"

                      मै सिर्फ इतना कह सकता हूं कि शर्म इनको मगर नहीं आती ! खाल इतनी मोटी और चिकनी कर  ली है कि शर्म, हया, संकोच या गैरत आते ही फिसल जाती है। यकीन नहीं होता कि कभी इसी मीडिया को प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता था ! मै ये सोच कर सिहर उठता हूं कि अगर ऐसी मीडिया को "स्तंभ" समझ कर प्रजातंत्र की हिफाज़त में लगा दिया जाए तो प्रजातंत्र का क्या हाल होगा ! इन्होंने मीडिया को ख़बर से इतना दूर कर दिया है कि इन्हें तो  "तन्त्र" के आगे "प्रजा" नजर ही नहीं आती  !
                                 ।अब जब प्रजातंत्र और स्तम्भ की बात आ ही गई तो मीडिया पर थोड़ा और मट्ठा मथ लेते हैं। आप टी वी तो देखते हैं न ! मै भी जलभुन कर देख लेता हूं। ( हालांकि बाद में सोचता हूं कि क्यों देखा!) विडम्बना देखिए, जो चैनल जितना बड़ा झूठ बोलता है वो उतनी ज़ोर से दावा करता है , " हम सिर्फ़ सच दिखाते हैं"! ( ऐसा  "सच" दिखाने वाले सारे चैनल दो दिन से कोमा में पड़े हैं, जब से एम्स के डॉक्टर गुप्ता ने खुलासा कर दिया कि सुशांत सिंह राजपूत ने खुदकशी की थी!) अब जनता जानना चाहती है कि जून से अब तक बोला गया टनों झूठ का मकसद क्या था! ( पूछता है "भारती" )
        ऐसे चैनल्स अपने झूठ की मार्केटिंग करते हुए खुद को    "निर्भीक ' और  "निष्पक्ष" ज़रूर बताते हैं ! इधर कोरोना के आने के बाद ये सारे के सारे कुछ ज़्यादा ही निष्पक्ष और निर्भीक हो गए हैं! निर्भीक होने का ये आलम है कि झूठ बोलने में ईश्वर का भी लिहाज़ नहीं करते, और,,,, "निष्पक्ष" इतने कि  सत्ता पक्ष के अलावा और किसी का पक्ष नहीं लेते! पूरी निष्पक्षता का पालन करते हुए  "जन" को अनाथ छोड़ दिया है, और  " तंत्र" की परिक्रमा करते हुए गा रहे हैं, ' तुम्हीं हो माता पिता तुम्हीं हो,,,"! 
                                      कल के हाहकारी दिन की बात बताऊं! हाथरस रेप केस पर जानकारी के लिए मैंने टीवी खोला ! पहले चैनल पर बैठा मायूस एंकर बिहार चुनाव में "लोजपा" के भविष्य को लेकर खासा चिंतित था ! अगले चैनल पर भयभीत चीन और भिखमंगे पाकिस्तान की दुर्दशा पर ख़बर थी ! बड़ी उम्मीद से अगला कदम उठाया। इस चैनल पर एक  "महान" एंकर ऐसे चीख रहा था - गोया उसे अभी अभी ततैया ने काटा हो ! वो एम्स के डॉक्टर पर बहुत नाराज़ था! मुझे लगा कि सुशांत सिंह राजपूत के पोस्टमार्टम में इसे ना बुलाकर गलती से किसी  "डॉक्टर गुप्ता" को बुला लिया गया था ।
              इंफेक्शन का दौर जारी है। मीडिया संक्रमित होकर थोड़ा सा और निष्पक्ष हो गया है। अगले निर्भीक चैनल पर रेप के आरोपियों के पक्ष में सवर्ण सभा की ख़बर है। एंकर भारी धर्मसंकट में हैै , उसे मृतक परिवार की भूमिका भी संदेहास्पद लग रही है ! ( क्या पता इस "किलिंग" के पीछे किसी किस्म का "ऑनर" ना हो ! वैसे कई ऑनर वाली महिला नेताओं के कपडे फाड़ कर रेप के आरोपियों को सबक सिखाया जा चुका है!) दंगे तो बरामद हो गए ! दंगाई लोगों की खोज जारी है ! नया ज्ञान खोज लिया गया है; जहां भी रेप होगा, उसके पीछे बलात्कारी नहीं दंगाई तलाशे जाएं !
      आख़िरी चैनल देखने के लिए कलेजा मजबूत करता हूं। इसके एंकर ने कोलंबस से बड़ी खोज की है ! एंकर बता रहा है , " दो रेपिस्ट तो उस दिन उस वक्त वहां थे ही नहीं "! रहस्य खुलता जा रहा है। निष्पक्ष और निर्भीक खोज का दायरा मासूम बलात्कारियों से हट कर दंगाइयों की ओर जा रहा है। अब मुझे पूरा भरोसा है कि दंगाई बच नहीं पाएंगे । चलो असली गुनहगार की जल्दी पहचान हो गई, वरना चार मासूम सजा काटते। अब देर सबेर दंगाई खुद ही कबूल कर लेंगे कि रेप,कत्ल और दंगे के इस साजिश में  "मृतका" लड़की भी शामिल थी या नहीं !
       एक शेर याद आ रहा है,

अब भला और कहां  ढूंढोगे मेरा  क़ातिल !
तुम मेरे क़त्ल का इल्ज़ाम हमीं पर रख दो !!


Saturday, 3 October 2020

" वो चिंतित हैं!"

           मै उनको लंबे अरसे से जानता हूं! वो अक्सर चिंतित होते रहते हैं ! वो बड़े जागरूक चिन्तक हैं! पिछले दस साल से मैंने उन्हें चिन्ता व्यक्त करते पाया है। चिन्ता व्यक्त करने के मामले में वो जड़ और चेतन में भेद भाव नहीं करते ! क्षेत्र के पत्रकारों का फोन नंबर उनके पास है, वो फौरन अपनी चिन्ता से मीडिया को अवगत करा देते हैं ! लोगों को मालूम भी होना चाहिए कि नेताजी कितने चिंतित हैं ! वो अपनी चिन्ता को कभी लावारिस नहीं छोड़ते ! वो हमारे मोहल्ले के नेता हैं।
               पिछली बार  बारिश के आने से पहले ही वो बारिश के लिए चिंतित हो गए थे! ( उनका आकलन था कि सूखा पड़ेगा।) जब बारिश हुई तो जाम लगने से चिंतित रहने लगे। दिल्ली में पानी की कमी को लेकर वो साल के चार महीने चिंतित रहते हैं! जब कभी वो अपनी चिन्ता को लेकर क्षेत्रीय विधायक या पार्षद के ऑफिस कूच करते हैं,वो लोग ऑफिस से भाग खड़े होते हैं ! विधायक का आरोप है कि वो  ' पकाते बहुत हैं!' सत्ता में बैठा 'महाबली ' जनता को अनारकली समझता है, देश हित में नाचते रहो, लेकिन नो चिन्ता - ऑनली  सावन ही सावन !
                      इस वक्त वो हाथरस को लेकर चिंतित हैं! लेकिन इस बार चिंतित होने में वो चार दिन लेट हो गए! दरअसल घर का टीवी सेट खराब था और कोरोना की चिन्ता में चौराहे तक भी ना आ सके। लेकिन जैसे ही घटना से अपडेट हुए, फौरन चिन्ता व्यक्त करने लगे, -" हमारी पार्टी सत्ता में थी, तो इस तरह के बलात्कार कभी नहीं हुए ! सरकार को नैतिक आधार पर इस्तीफा दे देना चाहिए"! ( इतनी शर्म होती तो लोग सियासत में क्योें आते!)
   
       वो मूर्ख नहीं है! वो चिन्ता का महत्व जानते हैं! अभी उनकी चिन्ता में हिंसा नहीं है, इसलिए सरकार को कोई चिन्ता नहीं है! अभी उनकी चिन्ता ने समूह और समाज को समेटा नहीं है, वरना उनका सियासी आभामंडल सीमित न होता ! वो जानते हैं कि राजनीति में चिन्ता की राष्ट्रव्यापी फसल बो कर सत्ता को किस तरह आत्मनिर्भर बनाया जाता है! वो आश्वस्त हैं, जानते हैं कि यही चिन्ता उन्हे दोबारा सिंहासन तक लायेगी !

     चिन्ता लगातार उन्हें उज्ज्वल भविष्य का भरोसा दे रही है! चिन्ता उनके लिए  "अमृत कलश"  है!
     वो सामाजिक चिन्ता के जागरूक परजीवी हैं !

Friday, 2 October 2020

" दवा बनाम दारू "

                            अल्ला दुहाई है दुहाई है ! ये दारू चीज़ क्या बनाई है ! पीने के बहाने लाखों हैं,,,! तभी तो लोग दारू को दवा बताकर पी जाते हैं।एक ऐसी दवा, जो परिवार की जड़ों को खोखला कर देती है! लोग दारू पीकर दोष ईश्वर पर डाल देते हैं -" ये लाल रंग कब मुझे छोड़ेगा !" ( अबे बहाना और बोतल दोनो छोड़ !) पीने वाले की क्रोनोलॉजी समझिए, पहले खुशी सेलिब्रेट करने की आड़ में पी गया! अब जब बीबी के गहने बिक गए तो देसी ठर्रा चढ़ा कर गा रहा है,- " गम भुलाने के लिए मै तो पिये जाता हूं "! 
           दारू अच्छी चीज़ है या बुरी चीज़ ! इस बारे में,- मुंडे मुंडे मतिर भिन्ना है! इसे असुरों की दारू समझ कर पियो चाहे देवताओं का सोमरस ! दारू को लेकर   सरकार हमेशा कंफ्यूजन में होती है। देश में देव कम हैं, दानव ज़्यादा ! दोनो  के सहयोग से सरकार बनाई जाती है ! दोनो आपस में प्याले टकराकर सत्ता का  "सोमरस" पीते हैं ! आए दिन लोग ज़हरीली दारू पीकर एक्सपायर होते हैं ! देवता दिखावटी विरोध करते हैं तो दानव दारू से आने वाली एक्साइज ( कमाई) याद दिला देते हैं ! ऊपर से सरकारी कवि समर्थन कर देता है, ' मंदिर मस्जिद बैर कराते  मेल कराती मधुशाला "! (सरकार फौरन देश हित में ढाई हज़र ठेके और खुलवा देती है ! भाईचारा  बहुत ज़रूरी चीज़ है!)
           जब पीना है तो नाली का क्योें, मल्टी नैशनल का पियो ! लिहाज़ा मंदिर मस्जिद में मेल कराने के लिए बाहर की कंपनियां दारू लेकर आ गईं ! गली गली में भाईचारा मजबूत होने लगा। हालांकि घरेलू औरतों ने बहुत कहा कि मोहल्ले में ठेका खुलने से भाईचारे का तो पता नहीं पर उनकी गृहस्थी बर्बाद हो जायेगी ! पर सरकार को " मंदिर मस्जिद" के मेल की ज़्यादा चिन्ता थी। हर मुहल्ले में मेल मिलाप की सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए ! भाईचारा और अर्थव्यवस्था इतनी बुरी तरह कभी मजबूत नहीं हुये ! इस नए किस्म का "भाईचारा" मजबूत करने में केजरी वाल का भी उल्लेखनीय योगदान रहा !
           कितना कन्फ्यूजन है दारू के चरित्र को लेकर। विपक्ष में आने से पहले किसी पार्टी को दारू के दुर्गुण ही नहीं नज़र आते। सरकार दारू को ना पीने की दलील नहीं देती, बल्कि दारू पीने की उम्र तय करती है , " बेटा ज़रा एक साल और रुक जाओ ! अगले साल तुम वोट भी दे सकोगे और मुफ्त में पी भी सकोगे - धर लेे धीर जिगरिया में,,,,!"
           पीने वालों को पीने का बहाना चाहीए! कुछ सुपरहिट बहानों की बानगी देखिए, ' ये शराब नहीं - बीयर है!'  '. अरे, ये दारू नहीं, ब्रांडी है! सर्दी के लिए टॉनिक है "! भाई साहब, ये शराब नहीं , मृत संजीवनी सुरा है। ठंड लग जाए तो बच्चे को भी दे सकते हैं"! दारू को प्रमोट करने में फिल्में सबसे आगे हैं! बहुत कम फिल्मों में दिखाया जाता है कि टल्ली होने पर हीरो नाकारा साबित होता है, वरना ज्यादातर फिल्मों में धर्मेद्र, अमिताभ, महाबली सलमान, मिथुन दा पीने के बाद गुण्डो की फौज पर भी भारी पड़ते हैं! युवा तो सुपरमैन बनेगा ही , " चल मेरे भइया दे दारू"!
      सिगरेट की दुकान पर बड़ा सा कट आउट लगा है, - एक आदमी हीरोइन के साथ खड़ा सिगरेट पी रहा है, और नीचे लिखा है -" ज़िन्दगी के शाही मज़े लीजिए "! वहीं सिगरेट के पैकेट पर पुलिस में ईमानदारी की तरह बेहद बारीक शब्दों में लिखा होता है, ' सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है ! अब दुकान के सामने खड़ा स्कूल का लौंडा भारी धर्मसंकट में हैै !उसके समझ में नहीं आ रहा है कि वह जिंदगी के शाही मज़े ले,या कैंसर से डरे ! (हीरोइन की तसवीर के सामने कैंसर बड़ा असहाय लग रहा है।)
       हमारे पड़ोसी गांव के हर शरण सिह चाचा पीने के बाद बादशाह हो जाया करते थे। एक बार तो इतना चढ़ा लिया कि कुर्ता उतार फेंका और धोती हाथ में लेकर पैदल ही निकल पड़े। ठेकेवाले ने बड़ी मुश्किल से उन्हें बगैर धोती के जाने से रोका था। वो असली पियक्कड़ थे, बहुत नशा चढ़ जाने पर कहीं भी लेट कर सो जाते थे। कभी पीने के बाद किसी के साथ गाली गलौज नहीं करते थे ! हिन्दू मुसलमान दोनों के चहेते थे।
      अब दारू भी कल्चर का हिस्सा बन गई है। लोग बड़े गर्व से कहते हैं, ' मेरी ब्रांड हर जगह मिलती कहां है। मै या तो प्रिंस हेनरी लेता हूं या  ग्रेट बर्मूथ ! मुझे सिवास रीगल या बोडका सूट ही नहीं करता - यू नो!" ऐसे लोगों को अपने देश के बैंक भी सूट नहीं करता आई इसलिए वो गठरी गठरी फुटकर पाप विदेशी बैंको में जमा करते रहते हैं , और एकदिन खुद भी नीरव मोदी होकर उड़ लेते हैं ! उन्हें देसी ब्रांड कभी नहीं भाता।

     मैंने तो ये नतीजा निकाला कि वफादार और सर्वहारा लोग देसी पीते हैं और  शातिर लोग देश को ! यही विधि का विधान है !

Thursday, 1 October 2020

"साहित्यिक हादसा"

         मैं इस दुनियां में पैदा हुआ, ये मेरे माँ बाप के लिए खुशी की बात हो सकती है! मैं बहुत शैतान बच्चा था, ये मेरे मित्रों के लिए खुशी की बात हो सकती है। पढ़ने में ठीक ठाक था, ये अध्यापकों के लिए सुखद ख़बर हो सकती है! काॅलेज के बाद मेरी शादी वहीं हुई, जहां मैं चाहता था ! ( ये मित्रों के लिए ईर्ष्या भरी खुशी की बात हो सकती है!) गृहस्थी चलाने के लिए सरकारी नौकरी पकड़ने की बजाय साहित्य पकड़ लिया, ये मेरे भविष्य के लिए बिलकुल अच्छी चीज़ नहीं थी। क्योंकि मै जैसे ही साहित्य की ओर गया, फिर उसके बाद चिरागों में रोशनी ना रही !
                अब चूंकि साहित्य को घर दिखाने का कुसूर मेरा था, लिहाज़ा रेगिस्तान कुंडली में शनि बनकर बैठ गया ! सम्मान और प्रशंसा की सूनामी आ रही थी,मगर दुर्भाग्यवश सम्मान को ब्रेकफास्ट या डिनर में खाने का प्रावधान नहीं था। साहित्यि में कारावास काट रहे साधकों ने समझाया ," नो चिन्ता! धीरे धीरे आपको प्रशंसा से पेट भरना आ जायेगा ! आंतों को हालात से एडजस्ट करना आ जायेगा ! और,,,तब आपको संतोषम परम् सुखम की आदत पड़ जायेगी ! वैसे भी अब आप साहित्य के अलावा किसी काम के नहीं रहे ! लिहाज़ा इस जवानी में भी आप साहित्य साधना में डूब कर कबीर का निर्गुण गाएं , " माया महा ठगिनी हम जानी "!
                       मेरे रिसर्च के मुताबिक अपने देश में साहित्यकारों की तीन प्रजातियां पायी जाती हैं! तीसरी किस्म का साहित्यकार खुद नहीं जानता कि वो साहित्य के लायक है या नहीं! रिटायरमेंट के पहले तक वो साहित्य और साहित्यकार से घोर नफरत करता है! उसे साहित्य से इतनी एलर्जी है कि अख़बार भी वो तभी पढ़ता है जब पेट साफ नहीं होता । वो सत्ता के गलियारों में बैठा नौकरशाह होता है,जिसे करप्शन के सभी बही खातो की जानकारी होती है। बस, रिटायर होते ही वो एक धमाकेदार किताब लिख कर बेस्ट सेलर लेखक बन जाता है !
           दूसरे किस्म का साहित्यकार जुगाड़ू और चोर होता है ! वो प्रतिभा के बल पर विख्यात होने का जोखिम  नहीं उठाता। मगर उसके कॉन्टैक्ट जबरदस्त हैं। उसकी साधारण रचना भी आराम से प्रकाशित हो जाती है ! किताब की समीक्षा और समाचार भी अख़बार में आ जाता है और फटाफट पुरस्कार आने लगते है!  वो जवानी में ही वरिष्ठ और विख्यात हो जाता है।जल्द ही वो अपने संपर्क और जुगाड से साहित्य में "डॉक्टर" हो जाता है । डॉक्टर बनते ही वो स्वस्थ साहित्य की किडनी निकालने लगता है।
              पहले यानी अव्वल किस्म का साहित्यकार दुर्भाग्य वश पैदाइशी साहित्यकार होता है! उस वक्त ईश्वर कतई अच्छे मूड में नहीं होता जब वो किसी सच्चे साहित्यकार को पैदा करता है। अपनी कालजई इस असाधारण रचना को अप्रतिम बुद्धि वैभव के साथ उसे कुंटल भर खुद्दारी भी दे देता है! अब वो इस नश्वर संसार में किसी से कॉम्प्रोमाइज नहीं करेगा , भले उसका पूरा परिवार खुदकशी कर ले !  लेखक के लिए उसूल और आत्मसम्मान परिबार से काफी है! अब कैफियत ये है कि "सरस्वती" उसे शाबासी देती रहेंगी और  "लक्ष्मी" लाठी। बेमिसाल साहित्य देकर भी जीते जी ( अक्सर) वो "अच्छे दिन" के इन्तजार में गाता रहता है," अबहू ना आए बालमा सावन बीता जाए"!!       
         भागने का कोई रास्ता छोड़ा ही नहीं! कबीर ने शायद लेखकों के बारे में ही कहा था," जो घर फूंके आपनो, चले हमारे साथ "! ( मगर ये तब समझ में आया,जब घर को लाईटर दिखा चुका था! आठवीं कक्षा में  "मास्साब"  ने बिलकुल गलत अर्थ बताया था!) मै चालीस साल की उम्र तक तो साहित्यिक हादसों से भागने का रास्ता ढूढता रहा, बाद में इसी दरिया ए में लिंटर डाल दिया। ग़ालिब ने कहा है," दर्द का हद से गुजर जाना है दवा होना "! उसके दर्द का हद एवरेस्ट जितना ऊंचा है ।

      हर सच्चा साहित्यकार शायद ज़िन्दगी का सलीब ढोता हुआ अपने दर्द के हद से गुजरने का इन्तजार करता है, कि,,,,, देखना है ज़ोर कितना,,,,,,,,!!