Monday, 27 December 2021

"सूर्योदय"

                     " सूर्योदय"

(गोंडवाना आदिवासी जीवन पर आधारित फिल्म)

      मूल लेखक,,,,,,,,, अभिलाष

          रूपांतरित भावरूप एवम संवाद

                   सुलतान  भारती


          (ताकि सनद रहे  ( Disclaimer))
               ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

(फिल्म की कहानी पूर्णतया काल्पनिक है इसमें फिल्माए गए  कथा,पात्र, नाम ,स्थान, संवाद या जीवन शैली का किसी जीवित व्यक्ति विशेष या वर्तमान स्थान अथवा सामाजिक परंपरा से कोई लेना देना नहीं है ! )

इंट्रो ,,,,,,,
      ( बैक ग्राउंड में एंकर की भारी आवाज़ गूंजती है!) जब एक बड़े धमाके के बाद हमारी पृथ्वी अपने वजूद में आई तो ये प्लैनेट आग का एक धधकता गोला था !)
     ( विजुअल् शुरु ,,,,,, कैमरा आग सी धधकती और अपने ऑर्बिट पर घूमती पृथ्वी पर फ़ोकस होता है ! पार्श्व में एक धीमी संगीत के साथ एक गीत उभरता है ! गीत के स्वर के साथ साथ पृथ्वी का स्वरूप बदलता जाता है!)
गीत,,,,,,,, 
पृथ्वी थी एक आग का गोला !
नर्म   हुई   फिर  थोडा  थोडा !!
 
फिर आकाश में बादल  आए!
जानें  कहां   से  पानी  लाए !

पर्वत ने जब  ली अंगड़ाई !
नन्हीं नदियां जमीं पे आई !!

बढता   पानी   बना  समंदर !
आग छुप गई ज़मी के अंदर!!

जंगल  फैले  जीवन  उपजा !
जिधर देखिए सब्जा सब्जा !! 

पृथ्वी पर फिर मानव  आए !
रिश्ते  बस्ती  मजहब लाए !!

नई   सभ्यता की पहचान !
जंगल का  दुश्मन  इंसान!!

शहरों  में   हैवान  बढ़े !
जंगल  में इंसान दिखे !!

जल, जंगल -जन जीवन की ! 
चली  कथा " सूर्योदय " की !!


 ( जंगल की खूबसूरत सुबह। ज़मीन और पहाड़ियों के सीने पर फैला हुआ जंगल! जहां तक नज़र जाती है, सागौन के कीमती पेड़ों का अंतहीन सिलसिला !! वातावरण में पक्षियों के चहचहाने की समवेत आवाजें जंगल को जगाते हुए !! प्रदूषण मुक्त प्राकृतिक सौंदर्य की अनुपम छटा दिखाता हुआ camera पहाड़ी नदी पर फोकस होता है , को जंगल के बीच से होकर बह रही है! प्रातःकाल के सूरज की सुर्ख रोशनी ने नदी की निर्मल धारा में जैसे सुनहरा रंग घोल दिया हो !
      अचानक नदी की सतह को चीरता एक युवती का चेहरा उभरता है ! वह गर्दन को झटका देती है तो उसके काले लंबे बाल पीठ से मूव करते हुए उसके सीने पर फैल जाते हैं ! युवती सूरज की तरफ़ मुंह करके हाथ जोड़े खड़ी है ! कमर तक पानी में खड़ी युवती की पीठ और कंधो  पर  "गोदना" गुदा है !
                          कैमरा पीछे हटता है तो युवती की तीन और आदिवासी  सहेलियां पानी में नहाती नज़र आती हैं ! अचानक उनमें से एक ( पार्वती )आगे बढ़ कर सौंदर्य वर्धक काली मिट्टी से दुर्गा की पीठ साफ करने लगती है !)

Scen  2
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

लोकेशन,,,,,, पहाड़ी नदी
इफेक्ट ,,,,,,,,,  सुबह
पात्र (कैरेक्टर) ,,,,,, दुर्गा, पार्वती, यमुना  आदि                                   आदिवासी युवतियां !

पार्वती        ( पीछे से हाथ बढ़ा कर लाल चूड़ियों से भरे दुर्गा के दोनो हाथ ऊपर उठाती है । दुर्गा धीरे धीरे पार्वती की ओर मुड़ती है ! उसके गोरे चेहरे पर मुस्कराहट है और  कमर से ऊपर की ओर नाभि तक गुदना गोदा हुआ है ! दुर्गा मुस्करा कर पूछती है !)

दुर्गा                काए पार्वती ! का देखा थौ बहन ?
जमुना   (दूसरी युवती ) तोला पसंद हस ई लाल चूड़ी                  का ! मड़ई तौ ला दूं का ?
पार्वती   ( दुर्गा की चूड़ियों पर हाथ फेरते हुए ) अरे                    नाहीं,  ई लाल चूड़ी तौ हमर बहनी के हाथ मा                दमके बस !
          लड़कियों के हंसने की आवाज़ उभरती है ! कैमरा पुल बैक होता है तो गांव की कुछ और लड़कियां नहाती नज़र आती हैं ! किनारे एक बूढ़ी आदिवासी महिला भी बैठी नज़र आ रही है ! पास में युवतियों के घड़े भी रखे नज़र आ रहे हैं !)

दुर्गा।     ( पार्वती को बाहों में भर कर प्यार करती हुई)                मोरी सबसे प्यारी सहेली हस ! तोरा खातिर                  सब कुछ दे सक थौं !
डोकरी    (बूढ़ी औरत आवाज़ देती है ) काए रे  छोरिन् ! हो गई हंसी ठिठोली, तो गगरी में पानी भर कर चलो !
     ( सारी युवतियां पानी भरकर कमर और सर पर मटका रखकर पगडंडी के रास्ते घने जंगल की ओर बढ़ती हैं ! कैमरा लॉन्ग शॉट में उन्हें जाते हुए फोकस करता है !)

Scen 3
,,,,,,,,,,,,,,,
लोकेशन
इफेक्ट
कैरेक्टर

Friday, 24 December 2021

(बही खाता) " तमसो मा ज्योतिग़मय"

(व्यंग्य चिंतन)
               "तमसो मा ज्योतिर्गमय"

       अभी  ताज़ा मामला है, हमारे पड़ोस के बुद्धिलाल जी ने अपनी प्रेमिका को लेकर  एक मोटी किताब लिख डाली  -' रात के 12 बजे"- ( दरअसल इक तरफा प्यार में भूसे की तरह सुलग रहे बुद्धिलाल जी ने एक रात दीवार कूद कर अपनी प्रेमिका को उसके घर में जा दबोचा ! लेकिन अंधेरे की वज़ह से टार्गेट उल्टा पडा, रज़ाई के नीचे प्रेमिका की जगह प्रेमिका की अम्मा थीं!) मामला ठंढ़ा होने पर बुद्धि लाल ने एक प्रेमकथा लिख डाली -'रात के 12 बजे' - !  लेकिन बौड़म से सीधे बुद्धिजीवी होकर भी वो संतुष्ट नहीं हुए ! अब वो अपनी पांडुलिपि प्रकाशित करवाना चाहते हैं  ताकि दुनियां जान ले कि एक और  'कालिदास' कुल्हाड़ी लेकर साहित्य की डाल पर  बैठ गया है। आज कल वो प्रकाशक खोज रहे हैँ !  उन्हें मशहूर होने की जल्दी है ! एक महीने  शहर में जूते घिसने के बाद  उन के जोश और गलतफहमी का इंडीकेटर ज्वार से भाटा तक आ गया। शहर में प्रकाशक 'आपदा' की तरह प्रचुर मात्रा में थे , पर फ्री में किताब छापने वाले ' अवसर ' की तरह गायब  थे ! इस नवोदित लेखक और बरामद प्रकाशक के बीच एक दिन कुछ ऐसा संवाद शुरू होता है, -' मैं अपनी किताब छपवाना चाहता हूं "!
          " पहले कभी छपे हो?"
   " ये मेरी पहली किताब है! "
"ये मेरे सवाल का जवाब नहीं है ! मैंने पूछा , पहले कभी छपे हो ?"
       " नहीं सर !" बुद्धिलाल का कॉन्फिडेंस पिघलने लगा !
" तो मैं भी नहीं छाप सकता ! मैं नए घोड़े पर पैसा नही लगाता "!!
     भरी दुपहरी में लेखक की प्रतिभा का टाइटैनिक डूबता नजर आया ! एक सौ नब्बे पेज की पांडुलिपि पहली बार गोबर्धन पहाड़ जैसी वजनी लगी ! उसने अपने टूटते ख्वाबों का कचरा आख़री  बार सहेजने की कोशिश की, -' हर लेखक कभी न कभी नया घोड़ा होता है सर ! एक बार काठी लगा कर तो देखो "!
      " एक बार मैंने जो कमिटमेंट कर दिया तो कर दिया "! 
       लेखक को इस सदमे से उबरने में हफ़ते भर लगा !  उसके बाद एक फेसबुकिया विद्वान् मित्र ने उन्हें अंधेरे में रोशनी दिखाई, -' काहे सती होने की सोच रहे हो ! प्रकाशक तो तुम्हारी जेब मे बैठा आवाज़ लगा रहा है कि बोलो जी तुम क्या क्या खरीदोगे ! फेस बुक वॉल पर पब्लिशर ऐसे थोक में बैठे हैं जैसे शहतूत के पेड़ पर टिड्डी दल -"!
         वो दिन और आज़ का दिन , लेखक टेलेंट हंट से बाहर नहीं निकल पाया ! पहला विशाल पब्लिशर यूपी से बहुत दूर विशाखापत्तनम  में बरामद हुआ ! उसके वर्कशॉप में सिर्फ वेस्ट सेलर ऑथर  की ही बुक छपती थी ! प्रकाशक बरामद हुआ तो लेखक को अपनी प्रतिभा के वाटर लेवल पर शक हो गया ! लिहाजा उसने पब्लिशर से अपनी दुविधा शेयर की , - " मुझे कैसे यकीन होगा कि मैं बेस्ट सेलरऑथर हूं -"?
        " दुविधा में रहोगे तो बेस्ट सेलर की जगह ऑथर भी नहीं बन पाओगे ! मैं तुम्हारे व्हाट्स ऐप पर बेस्ट सेलिंग ऑथर होने के लिए ज़रूरी पैकेज भेजता हूं, सिलेक्ट करो  ! जल्दी करो, तुम्हारे अंदर  बेस्ट सेलिंग ऑथर होने के सारे लक्षण मुझे  विशाखापत्तम से ही नज़र आ रहे हैं  "! 
             बेस्ट सेलर ऑथर होने के लिए वो  तंदूर में अभी झांक ही रहा था कि मित्र ने नया सुझाव दिया , -' इतनी दूर जाकर बेस्ट सेलर होने की ज़रूरत नहीं है, और भी गम है ज़माने में मुहब्बत के सिवा -!  नज़दीक में ही कोई बेस्ट सेलिंग ऑथर बनाने वाला मिल जाए तो आखिर क्या बुरा है  ?"
      और,,, वो फेस बुक मंडी में  दूसरे वैंडर की खोज में लग गया ! इस बार उसे अदभुत प्रकाशक मिला,जो शायद संत कबीर के परिवार से आया था ! उसने अपने बारे में लिखा था, - " क्या आप अपनी किताब छपवाना चाहते हैं? किताब कहीं से भी छपवा लो, पर सलाह हम से लो ! हम बताएंगे कि आप कैसे और कहां से किताब छपवा कर पूरी दुनियां में मशहूर हो सकते हैं ! फौरन नीचे दिया हुआ 'अप्लाई ' का बटन दबाकर क़िस्मत का बंद फाटक खोलें"!
      वह यही तो चहता था , लेकिन इस बार भी क़िस्मत बनाने वाला कारपेंटर आरी लेकर चेन्नई में बैठा था ! दुखी लेखक को उसके मित्र ने फिर समझाया,  - ' बेस्ट सेलिंग ऑथर होने के लिए जल्दी मत करो ! फिर से ट्राई करते हैं, हो सकता है , किसी ने नजदीक में ही वर्कशॉप खोल रखा हो ! " मित्र का अनुमान सही था - जिन खोजा तिन पाइयां !! प्रकाशक बरामद हो गया ! लेखक ने इस बार जोश के बजाय होश इस्तेमाल किया, -'  एक सौ नब्बे पेज का नॉवेल है, चार्ज बताइए "! 
    उधर कंटिया और कैलकुलेटर लेकर फेसबुक वॉल पर बैठा पब्लिशर तैयार था़, -" सिर्फ पंद्रह हजार नौ सौ निन्नानबे"! लेखक दूध का जला था, उसने मट्ठे में भी फूंक मारी, -' इतने में किताब छप जाएगी न ?"
    " हां, इतने में सिर्फ किताब ही छपेगी ! कवर पेज, एडीटिंग , सेटिंग , प्रूफ रीडिंग, पेपर बैक, जैकेट पेज और आईएसबीएन नंबर का खर्चा अलग है !"  लेखक को लगा कि कमरे में जल रहा इकलौता बल्ब फ्यूज हो गया है ! इस जन्म में मशहूर हो पाना कठिन होता जा रहा था ! फिर भी उसने एक आख़री  कोशिश की , -" इतने झमेले के बाद तो मैं बेस्ट सेलर ऑथर हो जाऊंगा न ?"
        " नहीं ! बत्तीस हजार  खर्च करने के बाद आप लेखक हो जाएंगे ! सोचिए, कितने काम पैसों में कितना बड़ा सम्मान घर लेकर जायेंगे "!
       " मगर मुझे तो बेस्ट सेलर ऑथर होना है !"
          अच्छा वो ! देखिए वो पैकेज आप अफोर्ड नहीं कर पाएंगे ! बड़ा महंगा है !!"
          " कोई बात नहीं - मुझको चांद लाकर दो"!
           " ठीक है, वो पैकेज है तो एक लाख रुपए का , लेकिन आप जैसे बुद्धिजीवी को अस्सी हज़ार में दे देता हूं   - कैश सब्सिडी अट्ठारह हज़ार ! तो,,, कब हो रहे हैं बेस्ट सेलर ऑथर ?"
   " आप को कैसे पता कि मैं बुद्धिजीवी हूं! गांव में सारे लोग मुझे बौड़म कहते हैं ?" 
       "आप मुफ़्त में कभी भी बुद्धिजीवी नहीं हो सकते ! कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है ! तो कब खो रहे हैं आप,,,,, मेरा मतलब - कब बुद्धिजीवी हो रहे हैं आप "?
              इस बार लेखक बिलकुल मायूस नहीं हुआ ! वो बेस्ट ऑथर और बुद्धिजीवी बनाने वाला पाइथागोरस का फॉर्मूला समझ गया था ! अगले दिन लोगों ने फेसबुक वॉल पर एक नया विज्ञापन देखा, -  क्या आप अठारह दिन में बेस्ट सेलिंग बुक लिखना चाहते हैं ! फ़ौरन हमारे दिए हुए लिंक पर क्लिक करें ! हम बनाएंगे आप जैसे "भिंडी" को "बुद्धिजीवी !! आप से क्या छुपाना - सास भी कभी बहू थी ! जल्दी करें, सीटें सीमित हैं और बौड़म ज्यादा।"।  
           ( कथित बुद्धिजीवियों के कमेन्ट आना चालू है!)

                          ( सुलतान भारती)
              

Wednesday, 22 December 2021

आत्म कथ्य "बही खाता"

                   "   बही खाता"

        इस "तंज" समंदर  की  लहर दूर तलक  है!


         आज़ भी मुझे बहुत अच्छी तरह वह दिन याद है जब मैं नई दिल्ली में सुलतान भारती से पहली बार मिला था़ ! जिस अंदाज़ में मेरे परिचित ने मुझसे उनका ज़िक्र किया था, मेरे मस्तिष्क में उनकी छवि एक विराट शख्सियत के कद्दावर साहित्यकार की थी ! मैं नया नया गांव से आया था और थोड़ा घबराया हुआ भी था,पर मिला तो पांच फुट छे इंच के सुलतान भारती को देख कर मेरा उखड़ा हुआ कॉन्फिडेंस वापस आ गया ! लेकिन जब बातचीत शुरू हुई और दस मिनट में अपनेपन की जो बयार हमारे बीच बही कि मुझे यकीन करना मुश्किल हो गया कि मैं उनसे पहली बार मिल रहा हूं!
उनके लहजे में अवध की खुशबू है और आम बातचीत में व्यंग्य की बयार ! वो दिन और आज़,,,,,, हमारे संबंध युवा होते गए और हमारे रिश्तों के आधार में कंक्रीट बढ़ता ही  चला गया ।
      मैंने अपने पब्लिकेशन से उनकी चार किताबें प्रकाशित की ! हिंदी,उर्दू, अंग्रेजी और संस्कृत का ज्ञान रखने वाले भारती जी का शब्दकोश बेहद समृद्ध और खूबसूरत है ! उनकी शैली सबसे अलग है और उस पर किसी एक भाषा का आधिपत्य नही है ! उपन्यासकार सुलतान भारती - व्यंग्यकार सुलतान भारती से बिलकुल अलग नजर आते हैं ! हालांकि व्यंग्यकार सुलतान भारती का नाम, काम और कद उपन्यासकार सुलतान भारती से बहुत बड़ा  है , फिर भी भारती जी आज भी खुद को उपन्यासकार  कहलवाना ज़्यादा पसंद करते हैं।
       आज वो व्यंग्य लेखन में एक सफल, सक्षम और सशक्त शख्सियत हैं ! देश के लगभग सभी पत्र पत्रिकाओं में सामयिक विषय और मुद्दों पर उनका तीखा व्यंग्य प्रकाशित होता रहता है ! हद से ज्यादा स्वाभिमान उन्हें किसी भी परिस्थिति में झुकने नहीं देता , और शायद इसी लिए वो लेखकों के किसी गैंग में आज तक शामिल भी नहीं हुए ! बड़े निर्भीक व्यंग्यकार हैं, और इसका सबूत उनके व्यंग्य आलेख में नजर आ जाता है !
          वो हर हफ्ते अपने ब्लॉग पर एक व्यंग्य डालते हैं, और हर साल एक उपन्यास लिखते हैं ! " बही खाता" उनका तीसरा और बिलकुल ताज़ा व्यंग्य संग्रह है ! उनके शब्दों में व्यंग्य -  " विषम परिस्थितियों में सच लिखने के साहस का नाम है ! व्यवस्था के विरोध की साहित्यिक अभिव्यक्ति है !! समाज के भ्रष्ट और छुपे सफेदपोशो के चरित्र का " बही खाता" है -" !!!  
          " बही खाता" व्यंग्य संग्रह पढ़ कर पाठक खुद यकीन कर लेंगे कि "भारती" जी के चाहने वाले क्यों उन्हें व्यंग्य का "सुलतान" कहते हैं !  'वीएलएमएस' प्रकाशन  "बही खाता" को प्रकाशित कर एक बार फिर खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा है!

                                   नित्यानंद  तिवारी
                                       ( प्रकाशक )

Wednesday, 15 December 2021

(बही खाता) फिर भी - हैप्पी न्यू ईयर !

(व्यंग्य चिंतन)

          " फिर भी - हैप्पी न्यू ईयर "!

      मैं बड़े धर्मसंकट में हूं, दिसंबर 2024 के  टपकने में जब गिनती के घंटे बचे थे, औऱ नया साल ३१ दिसंबर की आधी रात को खिड़की के रास्ते घरों में  झाँक रहा था तथा गली के लौंडे डेक चलाकर जब गा रहे थे - मुश्किल कर दे जीना, इश्क़ कमीना -! उस वक़्त चौधरी पहली बोतल खोल कर बड़बड़ा रहा था , - 'इसके पहले कि भारती इतै फ़ोन कर के हैप्पी न्यू ईयर की बद्दुआ दे, मैं बचा खुचा हैप्पी पी लेता हूं !'  कहते हैं की बिच्छू के बच्चे बिच्छू को मार कर पैदा होते हैं! नए साल की पैदाइश के साथ भी कुछ ऐसा ही मामला है ! साल 2023 किसी बिच्छू से कम नहीं रहा ! पूरी दुनियां उस के डंक से अब तक कराह रही है ! पहले यूक्रेन और रूस, फ़िर इज़राइल और हमास जंग का श्रेय इसी साल को जाता है ! फिर भी,,,,, हैप्पी न्यू ईयर !
       मेरे बुजुर्ग,संत और उस्ताद मुझे बचपन से नसीहत देते रहे कि मोह माया से दूर रहना ! ये सीख इतनी बार दी गई कि आखिरकार समझ में आ गया कि मोह माया के अलावा संसार में बाकी सब मिथ्या है, क्षणभंगुर है ! नतीजा यह हुआ कि बड़ा होते होते मैं 'मोह माया'  के अलावा हर चीज़ से दूर हो गया ! लेकिन ट्रेज़डी देखिए, कि प्रचुर मात्रा में "मोह" के बावजूद अभी तक "माया" पकड़ से बाहर है ! प्रॉब्लम ये है कि गेहूं खरीदने  के लिए मोह नहीं माया चाहिए ! लेखक के लिए भी गेहूं से दूर रहना संभव नहीं है ! बस यहीं से मोह माया के प्रति मिली दीक्षा का अतिक्रमण हो गया ! गेहूं  चीज़ ही ऐसी है ! आदि पुरुष बाबा आदम को भी इसी गंदुम ने जन्नत से बेदखल करवाया था ! केजरीवाल को इस गेहूं के अंदर छुपी ऊर्जा का पता था , इसलिए दिल्ली वालों को फ्री गेंहू बांट कर भाजपा की किडनी  निकाल ली ! फिर काहे का हैप्पी न्यू ईयर !!( यह तो सितम है !) 
         जनता को विटामिन, प्रोटीन और कैल्शियम देने वाला चुनावी बसंत अभी से जनता का दरवाजा खटखटा रहा है, - खोलो प्रियतम खोलो द्वार -! लेकिन प्रियतम सहमे हुए हैं! जन्नत के पैकेज में भी प्रियतम को फफूंद नज़र आ रही है ! हर पार्टी का अपना अपना रामराज है ! प्रियतम घनघोर कन्फ्यूजन में हैं , - ' जाने किसके वादे में फाइबर  है ' !! इसलिए - काके लागूं पांय - का भ्रम बना हुआ है ! बाकी तो  देश में कुरुक्षेत्र उतरा हुआ है ! सारे दलों के महारथी अपना अपना चक्रव्यूह बना रहे हैं !  तारणहार ठेले पर  रेवड़ी और  रामराज साथ साथ लाए हैं ! 'हाथी' अभी कंफ्यूजन में है कि किसके साथ चले, इस महादशा  में वो सबको जनहित के लिए नुकसानदेह बता रहा है ! कांग्रेस के "शिवभक्त" अभी फ़ैसला नहीं कर पाए हैं कि इस बार "जनेऊ" सदरी के ऊपर पहनना ठीक  रहेगा या सदरी के नीचे ! विगत विधानसभा चुनाव परिणाम ने आस्था पर घातक असर डाला है !
        दिसंबर के आखरी हफ्ते में सांताक्लॉज सदमे में था कि इस बार क्या बांटे ! आने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र हर पार्टी ने अपने अपने सांता क्लॉज अभी से भेज दिए हैं ! वह लोग दिसंबर से ही धोती में गोबर लगाए गांव में घूम रहे हैं ! उनका पैकेज ओरिजनल वाले सांता से काफी ज्यादा दिव्य है !  सांताक्लाज के झोले में सब कुछ 18 साल से नीचे वालों के लिए है , जब कि सियासी "सांताओं" के झोले में बालिगों के लिए बेकारी भत्ता से लेकर दारू, मुर्गा,  साड़ी औऱ सिलाई मशीन जैसी हिट चीजें है  - !  सारा पैकेज - जाकी रही भावना जैसी ' के आधार पर  है ! हर साल दिसंबर में आने वाले सांता अब सोने की छड़ें तो अफोर्ड नहीं कर सकते, सतयुग में ये काम काफ़ी रिस्की  भी है ! सांता पर सोने की स्मगलिंग का केस लग सकता है !  हिरनो को स्लेज गाड़ी में जोत कर जिंगल बेल गाते हुए शहर या बस्ती में जाना और भी जोख़िम भरा है ! पुलिस ऐसा केस बनाएगी कि अगले दिसंबर तक जमानत भी नही होगी ! और कही बारी से पहले प्रमोशन की घात में बैठे, किसी पुलिस के हत्थे चढ़ गए तो सांता क्लॉज़ की मॉब लिंचिंग तय है !  क्योंकि हिरन को गाय साबित करना अब ज्यादा मुश्किल काम नहीं रहा !
           आने वाले साल को लेकर मेरे अंदर कोई जोश नहीं है !( जो था कोरोना और केजरीवाल को दे चुका हूं!) अन्दर  जिगर में  बीड़ी  सुलगाने लायक भी आग नहीं बची !अब खाली हाथ कंबल ओढ़ कर जनवरी की जान मार ठंढ में हैप्पी न्यू ईयर ढूंढ रहा हूँ ! तमाम रतौंधी वालों को जो न्यू ईयर 31 दिसम्बर को ही "हैप्पी" नज़र आ गया था, वो मुझे 8 जनवरी तक भी नहीं नज़र आया ! शायद कुहरा  हटे तो मुझे भी  'हैप्पी'  वाला न्यू ईयर नज़र आए ! नए साल में सब कुछ है- सिर्फ "हैप्पी" गायब है ! लगता है कि "हैप्पी" कुम्भ के मेले में कहीं ,,,,,!
     
 न्यू ईयर के "हैप्पी" होने को लेकर चौधरी अभी भी नाराज़ है , -" इब तू बता , अक  इकत्तीस दिसम्बर की रात कू जिब नया साड़ पहले ते  हैप्पी हो रहो , तो तमैं उस तारीख में हैप्पी होने की  के  जरूरत पड़  गी ! आगे पाच्छे हो लेता ?"

     तब से मेरा रहा सहा  "हैप्पी" भी लापता हैं !!

                                            (सुलतान भारती)

Wednesday, 1 December 2021

(बही खाता) भाग्य विधाता और "भगवान"

(बही खाता)
              " भाग्य विधाता" और "भगवान"

     अब आप कहेंगे कि दोनों एक ही महाशक्ति के  lदो नाम हैं ! कभी थे, पर अब  ऐसा नहीं है ! मुझे भी जो कुछ स्कूल में पढ़ाया गया था, उसके मुताबिक़ कालिकाल से पहले भगवान ही भाग्य विधाता हुआ करते थे ! कलिकाल आते ही ईश्वर, अल्ला तेरो नाम पर सवाल उठने लगे !भगवान  को  चुनौती देने वाले ऐसे कई भाग्य विधाताओं" ने अलग अलग स्थाrनों पर अवतार ले लिया था़। भगवान को बेरोजगार करने वाले कई  महकमें भाग्य विधाताओं ने खुद संभाल लिया ! कुछ काम तो ऐसे हैं जहां भाग्यविधाता ने भगवान को भी  ओवरटेक  कर रक्खा है ! ऐसे कई मंत्रालय जो पहले भगवान के हाथ में थे ,अब भाग्यविधाता ने हथिया लिये हैं! संतान के मामले में ईश्वर के हाथ खड़ा कर लेने पर ये केस भाग्य विधाता ले लेते हैं!
           रोटी रोजी भले ईश्वर के हाथ में हो लेकिन सरकारी टेंडर भाग्यविधाता के हाथ में है! टेंडर का न्यूनतम रेट अपने चहेते ठेकेदार को बताकर मुनाफे में अपना हिस्सा तय करना भाग्यविधाता की पहचान है ! ये काम इतनी गोपनीयता से सम्पन्न होता है कि  ठेकेदारों की विसात क्या खुद ईश्वर को कानों कान ख़बर नहीं होती की भाग्य विधाता ने क्या रेट क्वोट किया है! भाग्यविधाता की इसी कार्यकुशलता पर एक कहावत ने जन्म लिया - देवो न जाने कुतो मनुष्य: -!   ( ध्यान रहे, यहां पर टेंडर न पाने वाले ठेकेदारों को " मनुष्य:"  कहा गया है !) कालांतर में इस कहावत की किडनी निकल ली गई और   कहावत में टेंडर की जगह -' त्रिया चरित्रम पुरुषस्य भाग्यम -' कर दिया गया ! तब से भाग्यविधाता और ठेकेदार के षड्यंत्र का खामियाजा बेचारी महिलाएं भुगत रही हैं !
              अब तो भगवान का काफी काम यह भाग्यविधाता संभाल चुके हैं ! आजकल डॉक्टर भी उसी भाग्यविधाता की श्रेणी में आते हैं ! इनके चमत्कारी कामों के कारण कुछ चारण इनको भगवान भी कहते हैं ! ये अलग बात है कि ऐसे कई  'भगवान' युवा महिला मरीज़ को 'पकवान' और गरीब पेशेंट को  'नाशवान' समझते हैं ! ऐसे काफी भगवान केमिस्ट और दवा कंपनियों से सांठ गांठ कर मरीजों को मोक्ष देते रहते हैं ! इनकी सेहत का हीमोग्लोबिन खून पीने से नार्मल होता है ! कोरोना  काल में जब आत्मनिर्भर होने का मानसून आया तो कई ऐसे " भगवान"  अपने अस्पताल को दिल, फेफड़ा और किडनी के मामले में भी आत्मनिर्भर  बना  गए ! उनके प्राईवेट हॉस्पिटल में आज़ हर साइज की किडनी उपल्ब्ध है ! ( ऐसा काम सिर्फ भाग्यविधाता ही कर सकता है, क्योंकि भगवान सिर्फ किडनी बनाता है, अभी फ़िलहाल ट्रांस्प्लाट नहीं करता !)
         मजार पर बैठ कर लोगों को चुड़ैल, खबीस, भूत प्रेत से मुक्त कराने वाले सिद्ध बंंगाली बाबा "जिन्नात  शाह" भी काफी सफल भाग्यविधाता हैं !  ' वन वे इश्क ' के केस में नींद गंवाने वाले लौंडे को भी  सौ पर्सेंट कामयाबी की ताबीज़ देकर ऊपर वाले को भी हैरत  में डाल देते हैं ! ( अलबत्ता ऐसे केस में   "लोबान" का खर्चा ज्यादा आता है ! ) बाबा जिन्नात शाह जिस मजार पर बैठ कर अल्लाह को चुनौती देते रहते हैं, उन "शदीद बाबा"की खोज और नामकरण भी उन्होंने ही  किया है ! जैसे जैसे बाबा जिन्नात शाह का पोर्टफोलियो बड़ा हो रहा है, मोहल्ले के लोगों में "ऊपर वाले" वाले की मोनोपोली कम हो रही है ! अब तो बाबा बेऔलाद महिलाओं को औलाद प्रोवाइड  कराने की ताबीज़ भी देने लगे हैं ! ( इस चमत्कारी ताबीज़ के लिए आस्थावान महिला को बाबा के कमरे में अकेले आना पड़ता है !) बाबा 'जिन्नात शाह' के बारे में उनके कुछ मुरीदों का दावा है  कि  बाबा  ने  जिन्नात  को  वश  में कर रखा है! ( कुछ महिलाओं ने तो बाबा के साथ एकांत मुलाकात  में "साक्षात जिन्नात" का  दीदार  भी किया है!)
          भगवान के देखते देखते कई भाग्य विधाता ठेला लगाते लगाते अपना मॉल खोल बैठे !  तरक्की का ये पाइथागोरस प्रमेय मुझे आज तक नहीं  आया ! हमारे पांचू सेठ को ही लीजिए, चालीस साल पहले सायकल पर गांव गांव फेरी लगा कर मसाला बेचा करते थे ! आज पांचू लाला से 'पांचू सेठ' हो चुके हैं ! मसाले में अपने पालतू घोड़े की लीद मिलाते मिलाते एक दिन मसाले  की फैक्ट्री  डाल ली ! पहले वो ईश्वर पर भरोसा करते थे, आज काफी लोग उन्हे ही ईश्वर मान बैठे हैं ! भाग्यविधाता होते ही पांचू सेठ ने नारी मुक्ति आश्रम खोल लिया ! पांचू सेठ परित्यकता युवतियों  के दुर्भाग्य का सारा क्रेडिट ईश्वर को देते हैं,-' भगवान नहीं चाहते कि तुम्हारा उद्धार हो , लेकिन मैं हूं न ! और,,,,,जब हम हैं -.तो  क्या गम है!"
         "भाग्य विधाता" कभी भी अपनी उपलब्धियों का क्रेडिट खुद नहीं लेता ! वो सारा क्रेडिट ईश्वर को देते हुए कहता है, -'  शराब की एजेंसी का होलसेल लाइसेंस मिल गया , सब ईश्वर की कृपा है ! मैंने कोई मजार ,दरगाह, तीर्थ स्थान छोड़ा नहीं जहां चढ़ावा न भेजा हो ! क्योंकि ना जानें किस भेष में बाबा मिल जाएं भगवान ! पूरे प्रदेश में दारू की सप्लाई का  आशीर्वाद प्राप्त हुआ है ! परसों से सात दिन तक अखंड भंडारा चलेगा ! मान गया, प्रभु के घर देर है अंधेर नहीं है ! पहले दवा कंपनी की एजेंसी लेने के लिए दौड़ रहा था - नहीं मिली !! जानते हो क्यों ? क्योंकि भगवान को पता था कि दवा के मुक़ाबले दारू में ज्यादा प्रॉफिट है ! बस, प्रभु  का  इशारा  समझ में आते ही  मैं - अंधकार से प्रकाश की ओर - आ गया !! "

             सबको सन्मति दे भगवान !!

                                 

Friday, 19 November 2021

(व्यंग्य भारती) "काले कानून बनाम सफ़ेद कानून"

( व्यंग्य भारती)

" काला कानून बनाम सफ़ेद कानून"

    म्हारे समझ में कती न आ रहो अक कृषि कानून इब कूण से कलर का है ! अभी हफ्ता पाच्छे सरकार की नज़र में यू  कानून घणा दुधारू हुआ करता हा ! पर किसानन कू समझाने में सबै फेल हुए ! ता फेर,, देश हित में  ' दरबारश्री ' ने, दुधारू से अचानक बांझ नज़र आने लगे तीनों  कानून कू , वापस ले लिया ! ( बेलाग होकर कहें तो ये फैसला  बड़ी  हिम्मत  और  जोखिम भरा था़ ! जिसने "दरबार श्री ' के समर्थकों और विरोधिओ को सकते में डाल दिया है !)
           विपक्ष और विरोधिओं को किसी करवट चैन नहीं मिलता  !. अब विपक्षी सवाल उठा रहे हैं कि सैकड़ों किसानो की बलि लेने के बाद ही सरकार को  कृषि कानून का नुकसान क्यों नज़र आया ! उसके पहले यही कानून  किसानो को 'मालामाल' करता हुआ नज़र रहा था ! सरकार किसानों को मंहगाई, मंदी और लुटेरों की मंडी से बचा कर आत्मनिर्भर बनाना चाहती थी, लेकिन किसानों को फ़ायदा ही नहीं रास आ रहा था। कमाल है, बौद्धिक चैतन्यता का बड़ा अजीब दौर आ चुका है- लोग अपना फ़ायदा ही नहीं चाहते ! जिस नए कानून से देश के किसान गुफ़ा युग से निकल कर सीधे विश्व गुरु होने वाले थे, उसके ही खिलाफ सड़क पर बैठ गए ! विपक्षी दलों ने तीनों क्रान्तिकारी कृषि कानूनो के विटामिन प्रोटीन और कैल्शियम में घुन ढूढना शुरु कर दिया ! ये हस्तिनापुर की सत्ता के खिलाफ संयुक्त कौरव दलों का सरासर विद्रोह था, फिर भी दरबार श्री के ज्ञानी मंत्री और चारण अज्ञानी  किसानों से - तमसो मा ज्योतिर्गमय - की उम्मीद लगाए बैठे थे!
             सोशल मीडिया के सूरमाओं ने आंख और अक्ल दोनों  पर गांधारी पट्टी बांध ली थी ! ऐसा करने से बुद्धि और विवेक का सारा लावा  ज्वालामुखी की शक्ल में श्रीमुख से बाहर आ रहा था ! इन जीवों की अपनी कोई विचारधारा आत्मचिंतन के आधीन नहीं थी ! इन्हें अधीनता और गुलामी से इतनी नफ़रत थी कि उन्होंने आजादी की एक नई तारीख़ ही ढूंढ कर  निकाल ली ! इन प्रचण्ड वीर समर्थकों के कलम और कलाम दोनो से फेसबुक पर " लावा" फैल रहा था ! आज उन सभी वीर पुरुषों की अक्षौहिणी सेना औंधे मुंह पड़ी है ! कलम कुंद है और गला अवरुद्ध !! अंदर से आग की जगह आह निकल रही है, -' ये क्या हुआ,,,, कैसे हुआ,,, क्यों हुआ !
छोड़ो ये न  पूछो,,,,!!!!"
        लेकिन लोग चुटकी लेने से कहां बाज आते हैं ! तरह तरह के तीर सोशल मीडिया पर उड़ रहे हैं - 'अगला आत्म ज्ञान कब प्राप्त होगा -!' मूर्खो को ज्ञान देने का जोख़िम कौन उठाए ! बुजुर्गों की सलाह तो यह है कि बेवकूफों के मुहल्ले में अक्लमंद होने की मूर्खता नहीं करना चाहिए, वगरना अकेले पड़ जाने का खतरा है-।
दरबार श्री कभी भी कोई कदम ऐसा नहीं उठाते जो "नौ रत्नों" के विमर्श और सहमति के बगैर हो !  बड़े सियासी योद्धा और ज्योतिषाचार्य इस फैसले के पीछे का " लक्ष्य" ढूंढ रहे हैं ! विपक्ष सामूहिक खुशी मनाने की बजाय सामूहिक चिंतन शिविर में बैठ गया है.!
      मगर भक्त सदमे में हैं ! अनुप्राश अलंकार जैसी स्थिति है - नारी बीच साड़ी है या साड़ी बीच नारी है- ? कन्फ्यूजन गहरा गया है !! विषम परिस्थिति है , गांडीव भारी हो गया है ! सोशल मीडिया पर तमाम कौरव योद्धा ललकार रहे हैं ! लेकिन धर्मयोद्धाओं की समझ में नहीं आ रहा है कि पक्ष में पोस्ट डालें या विपक्ष में !! अभी तक जिस कृषि कानून को लागू करने से गंगा पृथ्वी पर उतरने वाली थी,अब बताया जा रहा है कि - राम तेरी "गंगा" मैली,,,,!! अर्द्ध बेहोशी सी चैतन्यता है ! आंखों से गांधारी पट्टी हटा कर भी देख लिया - अंधापन बना हुआ है! लगता है कि आंखों का बुद्धि से संपर्क टूट गया है ! अधर्मी कोलाहल मचा रहे हैं, - आवाज़ दो कहां हो -!! क्रोध में - गाली देने का जी करता है  रे  बाबा....!!
              मित्रों में  'वर्मा ' जी सांड की तरह फुफकार रहे हैं ! निरस्त हुए कृषि कानून की दुधारू उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए कह रहे हैं, - ' कानून को वापस लेने से मुझे तो कुछ ऐसा फील हो रहा है जैसे आलू की फसल को  "पाला" मार गया ! देश हित में लाए गए तीनों कृषि कानून खेत और किसानो को नई दशा और दिशा देते ! अब तो सब कुछ दिशाहीन हो जाएगा -!' मैंने पूछने का दुस्साहस किया, -  ' आपको खेती किसानी का बहुत नॉलेज है ! गांव में खेती होती होगी ना -'?  वो आग बबूला होकर बोले, - भैंस का दूध सेहत के लिए फायदेमंद होता है या नुकसानदेह , ये जानने के लिए  भैंस खरीदने की जरूरत नहीं होती मूर्ख -'!
       चौधरी  कन्फ्यूजन में है ! वो अभी तक फैसला नहीं कर पाया कि उसे खुश होना चाहिए या नाराज़ ! कल मुझसे पूछ रहा था , - " उरे कू सुण भारती ! इब  कानून कूण से रंग कौ हो गयो ?" 
  " कौन सा कानून ? सभी कानून एक जैसे ही हैं !"
" घणा वकीड़ मत नै बण ! मैं किसान वाड़े कानून कौ बात करूं सूं ! पहले तो घणा दुधारू बताया हा, इब के हुआ  !  किसने दूध में नींबू गेर दई ! इब घी न लिकड़ता दीखे कती ! इबै और कितनी दुधारू योजना ते मक्खी लिकाड़ी ज्यांगी "?

        मेरे पास तो नहीं है, किसी बुद्धिजीवी के धौरे जवाब हो तो दे दे !
                                                ( सुलतान भारती)
         
    

Friday, 12 November 2021

"असली आज़ादी की खोज !!

"बही खाता"
              " असली आज़ादी की खोज

       अब जाकर घर बैठे मुझे बढ़िया नस्ल का ज्ञान प्राप्त हुआ है ! धन्य हैं कंगना जैसी विदुषी का, जिन्होंने इस घनघोर कलिकाल  में अवतार लेकर  हमें बौद्धिक रूप से दिवालिया होने से बचा लिया !  इस खोज के उपहार में आपको पद्मश्री सम्मान दिया गया , ये हमारे लिए कम मगर विश्व के लिए गौरव की बात है ! पता नहीं  आप को इस खोज की प्रेरणा कहां से मिली ! कुछ लोग तुम्हारी इस दुर्लभ खोज से इतने सदमे में आ गये गोया उनकी जानकारी को लकवा मार गया हो। जो नई खोज के पक्ष में हैं, वो भक्ति में ओतप्रोत होकर गा रहे हैं - ' आप जैसा कोई इतिहासकार आए,,,, तो बात बन जाए -'!!
             लेकिन यहां तो बात बनने की जगह बिगड़ रही है ! आजादी मिलने की नई तारीख़ को लेकर समर्थक और विरोधी ताल ठोकने लगे हैं !  जैसे ही  नई जानकारी का छींटा जनता के मुंह पर पड़ा,, जनता और कथित बुद्धिजीवियों के बीच खाडी युद्ध शुरू हो गया!  विद्वान भक्त वत्सल नई स्वतंत्रता दिवस के पक्ष में फतवा देते हुए कह रहे हैं कि 1947 के मुकाबले 2014 की आजादी में ज़्यादा फाइबर  है ! हम पुरानी तारीख़ में मिली आजादी का बॉयकॉट करते हैं ,क्योंकि उस आजादी से अचानक हमे गुलामी की बदबू आने लगी है ! नई तारीख़ में मिली आजादी ज़्यादा पोटेंशियल है,क्योंकि ये आजादी हमने रामराज विरोधिओ  से अहिंसा के बल पर हासिल की है! वैसे  2014  के स्वतन्तता संग्राम में हासिल आजादी में " मिनरल्स" भी ज़्यादा है !
              वैसे तो इतिहास में खुदाई का कार्य पिछले कई सालों से प्रगति पर है, फिर भी 2016 के बाद से इसमें  बहुत बड़ी बड़ी कामयाबी हासिल होने लगी है ! खोज के इसी कालखंड में देश को पता चला कि ताजमहल दरअसल "तेजोमहल" है ! इस ख़बर से कई लोग शेयर बाजार की तरह औंधे मुंह गिर पड़े ! उन्होंने समझ लिया कि अब तक जो पढ़ा था, - सब धन धूल समान -'! उत्साही नए इतिहासकार फावड़ा उठाए ऐलान कर रहे थे, - सारे घर के बदल डालूंगा ! कई अंधों को अचानक आंख वालों से ज़्यादा नज़र आने लगा ! जिनके सिलेबस में कभी इतिहास था ही नहीं, वो इतिहास के कोलंबस बन बैठे हैं। ! ये खोज करने और कोमा से बाहर आने का स्वर्ण काल है ! इसी दौर में पता चला है कि लाल क़िला, जामा मस्जिद दोनो के नीचे मंदिर है ! यही नहीं कुतुबमीनार का कुतुबुद्दीन ऐबक से कोई लेना देना नहीं है ! इस खुलासे के बाद सैकड़ों लोग हथौड़ा उठाए 'गुलामी के प्रतीक ' ढूंढ रहे हैं !
          जनता पाषाण युग से निकल कर विकास उत्सव के मंडप में  आ गई है ! ज्ञान चक्षु खुल चुके हैं और जाम ख़त्म हो चुका है ! सतयुग क्वालीफाई करने के लिए चरित्र निर्माण ज़रूरी है ! कांग्रेसियों के तमाम आराध्यदेव जांच के दायरे में आए तो बड़े चौंकाने वाले खुलासे हुए !  पता  लगा  लिया  कि देश को रसातल  में  ले   जानें  में हमारे " बापू" सबसे आगे थे !  ( आसाराम बापू नहीं, देश के बापू ! ) वैज्ञानिकों की ऐसी  टीम आई है जो स्वर्गवासी नेताओं के चरित्र का डीएनए टटोल रही है ! विपक्षी पार्टियों के मर चुके कई राष्ट्रीय नेताओं  का नया चरित्र प्रमाण पत्र सामने आया, जिसका पता खुद "स्वर्गीय" हो चुके  नेता  को भी नहीं था ! इस नई खोज के बाद  कई देवदूतो को स्वर्ग से निष्कासित कर दिया गया !
          देश की आजादी के नए खुलासे के बाद मैं बड़ा धर्मसंकट में हूं! धर्मसंकट ये है कि - 1947 और 2014 दोऊ खड़े , काके लागूं पांय -! अज्ञानियों को जानें कैसे उन्नीस सौ सैंतालीस में आजादी नज़र आ गई थी , जबकि  2014  में मिलने वाली आजादी के ज्यादातर फ्रीडम फाइटर 1950 के बाद में पैदा हुए ! इतिहास और विकास के साथ इतनी बड़ी छेड़खानी पहले कभी नहीं हुई  थी !. हमारे जैसे  अवसरवादी सन सैंतालीस को आजादी का वर्ष समझ कर 1960  के अंदर ही पैदा हो गए  ! लेकिन दो हजार इक्कीस में जब मोहन जोदारो और हड़प्पा से भी गहरी खुदाई हुई तो आजादी की नई तारीख़ बरामद हो गई ! तब से करोड़ों सीनियर सिटीजन अंगारों पर लोट रहे हैं ! वामपंथी इतिहासकारों ने इतनी गलत तारीख़ क्यों डाल दी !! उन्हें तो ये लिखना था कि वगैर आजादी दिए अंग्रेज, सवेरे  वाली  गाड़ी से चले गए थे ! जनता  हॉर्न  बजाती  रहे, जगह मिलने पर उसे चुपचाप आजादी दे दी जाएगी ! आखिरकार  निर्धारित प्रोग्राम के मुताबिक २०१४ में  प्रचंड आजादी मिल गई ! ( फिलहाल अभी गिनती चल रही है  कि  2014   वाले   "स्वतंत्रता संग्राम"  में कितने राष्ट्रभक्त शहीद हुए हैं !      ( पेंशन और पेट्रोल पंप देने के लिए शहीदों से बायोडाटा मांगना बाकी है ! )

      हंगामा है क्यूं बरपा., तारीख़ ही बदली है। अभी तो बहुत कुछ बदला जाएगा ! परिवर्तन की लहर शीत लहर से ज़्यादा कष्ट दे रही है ! मगर विरोधी कितना भी आर्तनाद करें, खुदाई बंद नहीं होगी ! देश की जनता को सच से रूबरू कराने का वक्त आ चुका है ! सबसे पहले इतिहास को गर्म पानी में उबाल कर  कीटाणु रहित किया जाएगा !  राष्ट्रभक्त इतिहासकार "  कुल्हाड़ी और फावड़ा लेकर तैयार बैठे हैं। सोशल  मीडिया के "घटोत्कच"  हर नई खोज को सत्यापित करने में  'खून पसीना' ( खून तुम्हारा पसीना उनका) बहाने में देर नहीं करेंगे!  इसलिए आजादी की नई तारीख़ पर बहस करने से - बच के रहना रे बाबा ! बच के रहना रे ,,,,,!!!

       खुदाई का महापर्व शुरु है !

                          ( सुलतान भारती)

 

Sunday, 24 October 2021

व्यंग्य "भारती" "लक्ष्मी मैया लिफ्ट करा दे"

व्यंग्य "भारती"
              " लक्ष्मी मैया लिफ्ट करा दे" 

       मुझे उल्लू भले पसंद हों पर उल्लू को मैं पसंद नहीं हूं !  हर बार दीवाली आने से पहले मुझे बड़ी उम्मीद होती है कि इस बार उल्लू मेरी रिक्वेस्ट फाइल आगे फॉरवर्ड कर देगा , पर पता चला कि - कारवां निकल गया गुबार देखते रहे! मोहल्ले में मैं फिर आत्मनिर्भर होने से रह गया ! उधर हर साल  की तरह इस साल भी "पांचू सेठ" ने दीवाली की रात मे जुआ खेला और अगले दिन गरीबों की झुग्गियों में जाकर मिठाई बांटी - रिंद के रिंद रहे हाथ से जन्नत न गई -!
          तो जनाब मैं बता रहा था कि उल्लू मुझे बिल्कुल पसंद नहीं करता, उसकी वजह से हर साल मेरिट सूची में होते हुए भी मै  लिफ्ट होते होते रह जाता हूं । मुझे ऐसा लगता है कि उल्लू हर बार मेरी फाइल पर 'डाउटफुल' लिख देता है ! लक्ष्मी जी पूछती होंगी, - " डाउट फुल ! कौन है ये ?"
     " इसका नाम सुलतान भारती है, बड़ा खतरनाक आदमी है " !!
   " कैसे ?" 
    " लेखक है !  आपकी धुर विरोधी सरस्वती जी के खेमे का आदमी है !"
         " कभी मेरे बारे में भी कुछ लिखा है ?"
      "लिखता तो मैं इसकी फाइल पर  डाऊटफुल कभी न लिखता ,- ' उल्लू ने  मेरी   फाइल  हटाते  हुए कहा होगा ,-' ये आदमी हमेशा सरस्वती जी की तारीफ़ लिखता रहता है !"
              इतना कहकर उल्लू ने मेरी फाइल की जगह ट्रैफिक पुलिस के एक दरोगा की फाइल  रखते हुए कहा होगा , - " इस पर कृपा कर दें ! हर वक्त इसकी जबान पर एक ही नाम रहता है,- श्री लक्ष्मी जी सदा सहाय - !"
        " क्या चाहता है"?
      " उसी जनसेवा में अपने दोनों बेटों को लाना चाहता है , जिसमें खुद लगा है !"
      इस तरह हर साल दीवाली पर उल्लू जीत जाता है और मैं आत्मनिर्भर होते होते रह जाता हूं !
     पिछली दीवाली पर मेरी फाइल अटका कर मुझे चिढ़ाने के लिए अगले दिन उल्लू मेरे घर की मुंडेर पर आकर बोलने लगा । उसकी आवाज़ सुन कर मैं बाहर आया !   उल्लू  मुझे  देखते  ही  जानबूझ  कर   गाने  लगा ,- " जानें फिर क्यूं जलाती है दुनियां मुझे "!
     बिलकुल ताजा सवेरा था, नीम के पेड़ पर ओस की बूंदें तक अलसाई नज़र आ रही थीं! अन्दर के गुस्से का लावा पीते हुए मैं मुस्कराया , " सुबह  सुबह  तुम्हारा मनहूस दीदार ! मौला जानें क्या होगा आगे "!
     "बधाई हो, तुम्हारी फाइल रिजेक्ट हो गई है ! तुम लिखना छोड़ कर पकौड़े क्यों नहीं बेचते !"
मैं गुस्से में कोयले की तरह सुलग रहा था, फिर भी आग पीते हुए मुस्कराया, -"  घटिया प्राणी की तुच्छ सोच ! जाने लक्ष्मी जी तेरे जैसे पनौती को कैसे झेल रही हैं !!"
    " अंदर से तुम कितना सुलग रहे हो, इस चीज़ का मुझे पूरा अंदाज़ा है ! अगर इस वक्त कोई तुम्हारे श्रीमुख में थर्मोमीटर रख दे तो वो फट जाएगा ! ख़ैर - भाभी जी घर पर हैं ?"
        " कौन भाभी! किसकी भाभी ?"
 " तुम्हारी बीवी, मेरी भाभी ! मुझे बड़ी सहानुभूति है भाभी जी से ! एक लेखक की बीवी होना किसी सज़ा
 से कम नहीं है ! एक सुन्दर, सुशील और संस्कारी महिला ने भला तुम्हारे अंदर क्या देखा था ?"
     " अब तुम मेरे घर के मामले में दख़ल दे रहे हो , औकात में रहो !!"
       " तुम्हें शुगर है, गुस्सा अफोर्ड नहीं कर पाओगे ! बाई द वे - तुम लेखकों की एक आदत मुझे कतई पसंद नहीं है "!
       " क्या ?"
     " तुम लोगों को पूरी दुनियां पर गुस्सा आता है! सारी व्यवस्था निरंकुश और भ्रष्ट नज़र आती है ! हर स्वस्थ गेहूं के अंदर घुन ढूंढने की बीमारी है! वर्तमान की अपेक्षा तुम्हें हर बार अतीत कुछ ज़्यादा सुनहरा नज़र आता है ! भाभी जी की कसम ! कल्पनाओं में जीना छोड़ दो "!
     " कल्पना की बात तेरे जैसे उल्लू की समझ में कभी नहीं आयेगी ! 'कल्पना ' जीवंत और सक्रिय मानसिकता का प्रमाण है, कल्पना - हर निर्माण का भ्रूण है और ' कल्पना ' ही प्रत्येक आविष्कार के जन्म लेने की प्रारंभिक प्रक्रिया है ! लेकिन ये गूढ़ बातें तेरे जैसे मूढ़ के भेजे में कहां आयेंगी "!
       " अपनी पीठ इतनी मत ठोंको की स्पाइनल कॉर्ड पर असर पड़े ! कल्पना के कोलंबस , एक हकीकत और सुन लो ! सुखद कल्पना अंतत: बहुत तकलीफ देती हैं ! खैर - भाभी जी घर पर हैं ?"
      " क्यों ?" 
    "  ईद पर उन्होंने मुझे स्पेशल ड्रायफ्रूट वाली सूतफेनी खिलाई थी !"
      " बदले में तूने मेरी फाइल रिजेक्ट करवा दिया "!
  अचानक उल्लू गंभीर हो गया, - ' एक्चुअली फाइल देखते ही मुझे तुम्हारा चेहरा याद आ जाता है ! विरोधी खेमे के आदमी की जनसेवा मैं नहीं कर सकता ! अगली दीवाली पर अपनी फाइल पर तुम भाभी जी का नाम लिख देना "!
        " उससे क्या होगा ?"
   ' फाइल सैंक्शन हो जायेगी ! और हां, तुम्हारे नाम से एक कविता लिखी है, अगली दीवाली पर फाइल में सबसे ऊपर इसे लिख देना ! फाइल खोलते ही लक्ष्मी जी साइन कर देंगी ! कविता सुनो, बीच में टोकना मत "!

 और उल्लू शुरू हो गया ,,,,,,

"लक्ष्मी मैया लिफ्ट करा दे!
कोठी बंगला गिफ्ट करा दे !!

संगम विहार से ऊब गया हूं !
नॉर्थ ब्लॉक में शिफ्ट करा दे!!       लक्ष्मी मैया,,,,,

रामराज  का  चोला पहने !
रावण को वनवास दिला दे !!,,,,,,,,,,, लक्ष्मी मैया,,,,,,

प्यार   मुहब्बत   भाईचारा !
घर घर की पहचान बना दे!!,,,,,,,,,, लक्ष्मी मैया,,,,,,,,,

सूखे ओंठ सिसकती आंखें!
झोपड़ियों  में  दिए जला दे !!,,,,,,,,,, लक्ष्मी मैया,,,,,,,,

इस दीवाली  बस इतना ही !
निर्धन को "सुलतान"बना दे !!
                  लक्मी मैया लिफ्ट करा दे !!"

        कविता सुना कर  "उलूकराज" उड़ गया और मैं तब से सोच रहा हूं कि बुद्धिजीवियों को आख़र कब तक ये उल्लू  ओवरटेक करते रहेंगे!!
                                          (सुलतान भारती)







Tuesday, 19 October 2021

व्यंग्य "भारती" माय नेम इज़ " ख़ान "

व्यंग्य "भारती"
       माय नेम इज़ "ख़ान"

        एक नुक्कड़ की दुकान पर चल रही चर्चा,,,,,,

    "आर्यन खान के पास चिलम मिली थी या गांजा ?"              'कुछ नहीं' !  
" कुछ तो मिला ही होगा , ' दिल धक धक गुटखा'जैसी कोई चीज़  ?"
     " एक अदद बीड़ी भी नही मिली, जो  जिगर वाली आग से सुलगाई जाती ।"
   ' फिर काहे एनसीबी वाले गांजा फूंक रहे हैं बचवा ?"
" चच्चा ! बात ई है कि आर्यन ने फ़ोन पर ड्रग की चर्चा की थी ! इसी जुर्म में उसे आजीवन कारावास देने का समुद्र मंथन चल रहा है !"
    " ऐसा सख्त कानून कब से लागू हुआ ?"
" देर आयद दुरुस्त आयद ! आर्यन खान से इस कानून की शुरुआत हो रही है ! देश की युवा पीढ़ी नशे से मुक्त हो, इसके लिए एनसीबी इतना कठोर परिश्रम कर रही है ! शाहरूख खान को तो खुश होना चहिए चच्चा  !"
   " काहे कुफर बोलते हो बचवा ! बगैर नशा पत्ती के बरामद हुए बच्चे को जेल भेज दिया गया और ऊपर से कहते हो कि बाप को खुश होना चाहिए।" 
      " बगैर गुनाह के गांधी जी ने भी सजा काटी थी ! उनके पास भी अंग्रेजों को कोई पुड़िया नहीं मिली थी "!
     " तो क्या बच्चे को गांधी जी समझ कर पकड लिया गया  है ! ऐसी मुखबिरी किसने की बचवा ?"
   " अंग्रेजों की हुकूमत में गांधी जी के दुश्मन कम थे, आज ज़्यादा हैं ! बहुत सारे लोग गांधी जी की चार्ज शीट लिए घूम रहे हैं! अगर मिल गए तो छोड़ेंगे नहीं ! "
      " गांधी जी ने आखिर बिगाड़ा क्या है ?"
               " उनके अपराध का खुलासा धीरे धीरे हो रहा है। पहले जो इतिहास लिखा गया था , वो पक्षपात पूर्ण था ! उसमें गांधी जी की जगह महात्मा गोडसे के खिलाफ चार्ज शीट दाखिल की गई थी "!
        " मगर गांधी जी की हत्या हुई थी ?"
     " आपने देखा था हत्या होते हुए "?
                " नहीं!"
       " मगर आर्यन खान को ड्रग के बारे में फोन पर बतियाते हुए रंगे हाथ अरेस्ट किया गया है ! ढेर सारी बातचीत बरामद हुई थी"
    " आर्यन खान का मामला गांधी जी जैसा है क्या ?"
      " अभी कुछ कहना मुश्किल है ! जांच चल रही है ! पहले और अब की जांच प्रणाली में बहुत फ़र्क है ! पहले अपराध होने के बाद जुर्म के आधार पर चार्ज शीट तैयार की जाती थी, अब पहले अपराधी को पकड़ा जाता है फिर उसका अपराध ढूंढा जाता है ! आर्यन खान के पास से अभी तक गांजा,चिलम, हशीश, हेरोइन कुछ नहीं बरामद नहीं हुआ है , पर वो अपराधी सबित हो चुका है ! देर सबेर अपराध भी साबित हो जाएगा ! एनसीबी के घर देर है - अंधेर नहीं है "!
        तब से ' चच्चा ' बड़े क्षुब्ध हैं ! उन्हें अपने गंजेहड़ी बेटे की उतनी चिंता नहीं है, जितनी आर्यन खान की फिक्र है ! इस राष्ट्रीय चिन्ता में वो अकेले नहीं हैं,  'वर्मा' जी भी दिलो जान से चिंतित हैं ! कल मेरे सामने आग उगल रहे थे , -' एनसीबी ड्रग माफिया और पेडलर पर लगाम लगाने की जगह नशे की चर्चा करने पर पाबंदी लगा रही है ; घनघोर अन्याय है "!
        ' आर्यन खान उस पार्टी में क्या करने गया था ?''
    " किसी के कहीं जाने पर रोक नहीं है ! क्रूज पर तेरे जैसे फटीचर पत्रकार तो जाएंगे नहीं, आर्यन खान जैसे रईसजादे ही जायेंगे ! ये सुनकर - तुझको मिर्ची लगी तो मैं क्या करूं !!"
      " क्या ये साबित हो गया कि लड़का निर्दोष है ?" '           "एनसीबी ने निर्दोष साबित करने के लिए नहीं पकड़ा है ! अभी दोषी साबित करने की कवायद शुरू है ! वैसे इस केस का हस्र भी ' रिया ' जैसा ही होगा ! ज्यादा खुश होने की ज़रूरत नहीं "!
         वर्मा जी का कोई भरोसा नहीं, कब किसका विरोध करेंगे और कब समर्थन ! सबको पता है कि आर्यन ज्यादा दिन तक जेल में नहीं रहेगा !वो किसी गरीब या मजलूम का बेटा नहीं है, जरूरत पड़ी तो वकील की फौज उतर आएगी ! अपने देश में लोग थाने के अंदर कत्ल कर के जमानत पर बाहर आ जाते हैं ! मेरे मित्र चौधरी को आर्यन खान के जेल जाने की खबर 
 देर से मिली ! उसने सुबह होने का भी इंतजार नहीं किया और सीधा रात ग्यारह बजे मेरा दरवाजा टखटाया, - उरे कू सुण भारती ! शाहरुख कौ छोरा हुक्के के गैल पकड़ा गयो  के ?"
       " ये ब्रेकिंग न्यूज़ कौन लाया?"
' वो  ' लाल बुद्धि ' वाड़ा कह रहो '!
  " तुम्हारा मतलब बुद्धिलाल जी ऐसा कह रहे हैं ! नहीं, ये हुक्का पार्लर का नहीं क्रूज़ का केस है ! एनसीबी को आर्यन खान की बात से पता चला  कि उससे बड़ा नसेहडी और ड्रग माफिया भूतो न भविष्यति "!
      " हे भगवान ! के हो गया छोरे नै !! वैसे कितनी ड्रग पकड़ी  गी  छोरे के गैल ?"
     " एक ग्राम भी नहीं ! न छोरे के पास ड्रग मिली, न  ही बच्चे ने नशा किया था !"
      " ता फेर छोरे कू पकड़ा क्यों ?"
     " आर्यन ने फ़ोन पर ड्रग का नाम लिया था "!
चौधरी गुस्से से चिल्लाया, - ' बावला हो गयो  के ! नाम लेना कूण से अपराध में आवे सै ?"
     " नशे के खिलाफ़ जंग शुरु हो चुकी है ! एनसीबी ने क्रांति का झंडा उठा लिया है । नशा मुक्त समाज की शुरूआत महाराष्ट्र से होगी - एनसीबी का एक ही नारा !
                                      नशा मुक्त महाराष्ट्र हमारा !!
    " दिल्ली क्यों नहीं, इतै दिल्ली में घने स्मैकिए हांडे सूं ! देश की।राजधानी कू  नशा मुक्त बना दे !"
   ' यहां क्रूज़ पर रेव पार्टी की सुविधा नहीं है! कनॉट प्लेस के आस पास बड़े गरीब किस्म के स्मैकिए नज़र आते हैं ! वो भीख मांग कर स्मैक खरीदते हैं !  यहां दिल्ली में रेव पार्टी या गांजा पार्टी नहीं होती, बस छोटी मोटी गौ मूत्र पार्टी होती है "!
      " पूरे प्रदेश में एक ही नशेहड़ी लिकडा के ?"
" नहीं, आठ दस पकड़े गए थे, पर वो या तो नशा लिए हुए थे या ड्रग के साथ पकड़े गए थे! उनमें कोई भी ऐसा हार्ड कोर अपराधी नहीं था जिसकी बातचीत पकड़ी गई हो ! आर्यन खान पर कई धाराएं लगाई जाएंगी !"
      चौधरी  सर पकड़ कर जमीन पर बैठ गया , -' कती  समझ में  न  आ  रहो यू अपराध"!

         लेकिन कुछ लोग बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि आर्यन ने किया क्या है ! उसके नाम के बाद खान का लगना ही किसी बड़े गुनाह से कम नहीं है !  मीडिया की धर्मनिरपेक्षता मुखर होकर नशे के खिलाफ़ धर्मयुद्ध छेड़ चुकी है। ऐसा लगता है गोया आर्यावर्त में इससे पहले कभी किसी ने बीड़ी तक नहीं पिया था ! व्हिस्की से गलाला और तंबाकू से मंजन करने वाले एंकर भी " ड्रग" पर  डिबेट चला  रहे हैं ! अखबार में नशे के खिलाफ़ बड़े बड़े आर्टिकल लिखे जा रहे हैं  ! सोशल मीडिया के कई धर्मयोद्धा ड्रग मुक्त हो चुके देश के माथे पर इसे एक कलंक की तरह देख रहे हैं ! ऐसा लग रहा है गोया आर्यन खान का जुर्म कम से कम आजीवन कारावास पर जाकर रुकेगा , नहीं  तो सतयुग रूठ जाएगा !!

         ( सुलतान भारती)
      

Tuesday, 12 October 2021

(व्यंग्य "भारती") "क्या करूं, शक्ल ही ऐसी है "

(व्यंग्य "भारती"

               "क्या करूं, शक्ल ही ऐसी है !!" 

          मैं इस मुआमले में  कुछ नहीं कर सकता ! कहीं ज़रूर कुंडली में भारी उलटफेर हो गया जो मैं इस शक्ल सूरत के साथ बीसवीं सदी में पैदा हो गया ! मुझे तो हजारों साल पहले वाले सतयुग में पैदा होना था जब
आदमी को आदमी पहचानता था ! खामखा केजरीवाल के शासन में जीने के लिए भेज दिया जब आदमी को डोमिसाइल से पहचाना जाएगा ! ऊपर से आदमियत भरा चेहरा ! आदमी बनाकर पैदा करना ही था़ तो कम से कम चेहरा तो बदल देते ! भेड़िया, हाइना, शेर, तेंदुआ, जगुआर, नाग, कोबरा या  ब्लैक मोंबा का चेहरा दे देते ! मानव शरीर के साथ  इंसानी सूरत और सीरत  देकर प्रभु तूने अच्छा नहीं किया ! दुनियां बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई,,,,! या फिर इंसान का जिस्म देकर अजगर और कोबरा का कैरेक्टर दे देते ! (जैसा कि आजकल समाज में नज़र आ रहा है !) खुद को सूरत सीरत और शरीर से इंसान पाकर आज मैं ठगा सा महसूस कर रहा हूं ! ऐसी फीलिंग हो रही है गोया कैटफिश से भरे तालाब में किसी ज़िंदा मुर्गे को फेंक  दिया गया हो !
       वो गाना तो आपने सुना होगा, - अच्छी सूरत भी क्या बुरी शै है, जिसने डाली गलत नज़र डाली-! खैर इस कैटेगरी का मैं इकलौता पीस नहीं हूं - एक ढूंढो हज़र  मिलते हैं - ! मैं चेहरे के मासूमियत की बात कर रहा हूं ! कुछ लोगों का चेहरा तो इंसान का होता है लेकिन मासूमियत खरगोश की मिलती है ! ऐसे प्राणी कदम कदम पर अंगौछे की तरह इस्तेमाल होते हैं ! हर कोई उन्हें अंधे की गाय समझ कर  'दुहने ' की घात में रहता है ! कुछ लोग तो शक्ल से इतने सज्जन होते हैं कि कोई भी उनके कुर्ते में नाक पोंछ कर भाग जाए ! ऐसे  'शराफत अली' घर और बाहर दोनों जगह  ऑक्सीजन की कमी महसूस करते हैं ! त्योहार के दिन भी असंतुष्ट रहते हैं!
              कुछ लोग ऐसा फेस लेकर पैदा होते हैं कि गलती न होने पर भी डांट खाते हैं ! समाज के शातिर लोग अपने गुनाह और गलतियों का  'अंडा ' उनके घोंसले में रख देते हैं ! 'शराफत' अली को बुरा लगता है, गुस्सा भी आता है लेकिन मुंह से आवाज़ नहीं आती ! लिहाज़ में मना नहीं कर पाते ! ये जो संकोच और लिहाज़ होता है न, इंसान को बहुत नुकसान पहुंचाता है ! ये  'सतोगुण ' कुदरत उन्हें ही देती है जिन्हें सतयुग में आकर भी जिंदगी की सजा काटनी है ! चाल, चरित्र और चेहरा ऐसा लेकर कलियुग में पैदा हो गए जैसे सतयुग में रजिस्टर बदल गया हो ! घर से ऑफिस तक 'ततैया'  पीछा नहीं छोड़ती !  'सज्जन राम' को इन ततइयों पर गुस्सा बहुत आता है,पर उन्हें लड़ने का तजुर्बा नहीं है ! जहां तक लड़ने और पलट कर जवाब देने का सवाल है, वो सारा आक्रोश और गुस्सा बीवी बच्चों पर निकाल कर उधारी चुका देते हैं!
           ऐसे शराफत अली और ' सज्जन दास ' दुनियां में जिंदगी का सलीब ढोने के लिए भेजे जाते हैं ! ये बेशक अपने परिवार वालों के लिए ज्यादा काम के ना हों, पर दुनियां वालों के लिए बड़े उपयोगी होते हैं ! लोग इन्हें मछली का चारा समझ कर तरह तरह से इस्तेमाल करते हैं ! शहर में इन्हीं  के खून पसीने की कमाई का पैसा ' पीयरलेस ' में डूबता है ! इन्हीं की शरीफ़ बीवी के गहने  साफ़ करने वाले घर से  "साफ़" कर जाते हैं ! इनसे काम लेकर न मालिक पैसा देता है न ठेकेदार ! गांव में इन्हीं के नाम से सरपंच लोन ले लेता है ! दूर दराज भट्ठों पर इन्हीं का परिवार बंधुआ मजदूर बनता है ! शहर से गांव तक - 'अबला चेहरा' हाय तुम्हारी यही कहानी -! मरने से पहले चेहरा पीछा नहीं छोड़ता ! कितना मल्टी पर्पज चेहरा है, - दुनियां भर के चोर उचक्के ठग बदमाश और लूटेरों के काम आता है !
                 ऐसे शराफ़त अली स्वभाव से दयालु और आस्था से घोर धर्मालु होते हैं ! पाप से एक किलोमीटर दूर रहने वाले ऐसे जीव को नर्क से घनघोर डर लगता है! उनकी खुरदरी ज़िंदगी में जन्नत के प्रति काफी सॉफ्ट कॉर्नर होता है ! उनके चेहरे से धर्माधिकारियों को काफ़ी सारी 'राहत' मिलती है! ये पेट काट कर किश्तों में जन्नत का इंटालमेंट देते रहते हैं ! चेहरे  का खामियाजा तो देना ही है , - जब तक है जान , जाने जहान मैं नाचूंगा,,,,! इनका चेहरा अपने आप में इंसानियत का स्प्रे मारता साइन बोर्ड होता है, इसलिए इन्हें ' खर दूषण ' आराम से ढूंढ लेते हैं ! पूरी दुनियां इन्हें लैब में काम आने वाली 'परखनली' समझती है ! कई बार 'शराफत अली' को अपने चेहरे पर शदीद गुस्सा आया, पर चेहरा एक्सचेंज नहीं हो सकता ! इन्सानियत भरा चेहरा ज़िंदगी के लिए अभिशाप हो गया ! आज 'शराफ़त 'और 'सज्जन राम ' के  रोए नहीं चुक रहा , ' मेरे जीन्स बच्चों के दुर्भाग्य न बन जाएं ! मैं इस युग के लिए आउट ऑफ डेट हो चुका हूं ! बच्चों में ज़माने के लिहाज से थोड़ा भेड़िए वाला जीन्स आ जाए तो,,,,,, बात बन जाए -' !
                 
चेहरे को लेकर एक गीत है, - दिल को देखो चेहरा न देखो -! अबे जो सामने है वही तो देखेंगे ! पसलियों  के पीछे  छुपे  दिल को तो सिर्फ़ डॉक्टर देखता है ! दिल के मारों को दुनियां पूछती है, (उसमें किक है!) चेहरे से मार खाए इंसान को कोई नहीं पूछता !   मेरे गांव में एक जमालुद्दीन हैं, चेहरे से ही कबूतर की तरह मासूम हैं ! कोई उन्हें संजीदगी से नहीं लेता ! मैंने देखा ही नहीं कि कभी किसी ने उन्हें ' जमालुद्दीन ' कहकर पुकारा हो ! कोई जमालू तो कोई जकालू कहता है, कई बच्चे कचालू कह कर पुकारते हैं ! गरीब और शरीफ़ का नाम लोग रोटी की तरह तोड़ कर इस्तेमाल करते हैं ! किस्मत की सितमजरी देखिए कि तीन बेटियों के बाप हैं, बेटा एक भी नहीं ! बुढ़ापा चल रहा है, पसंद नापसंद की सीमा रेखा कब की मिट चुकी है ! ख़्वाब में अब कोई इंद्रधनुष नहीं उगता ! हंसी का पोखर मुस्कराहट की हद तक सूख गया है । पिछली गर्मियों में मैंने उन्हें बीवी से डांट खाते देखा था ! पता चला कि दस दिन सड़क निर्माण में मजदूरी की थी , मांगने पर ठेकेदार ने डांट कर भगा दिया ! लगातार टूट रहा आदमी अपना हक भी दमदारी के साथ  कहां मांग पाता है !     

  जब मायूसी हद पार करती है तो " जमालू" अपनी बेहद खस्ताहाल सायकल को खूंटी से उतार कर साफ करने लगते हैं ! शायद दोनों के दर्द की शक्लें एक जैसी हो चुकी हैं !!

 मित्रों   कैसा लगा व्यंग्य !  ( सुलतान "भारती" )
           

Saturday, 2 October 2021

" पतझड़ में बसंतोत्सव"!

( व्यंग्य "भारती")      "पतझड़ में बसंतोत्सव"


          मरहूम अब्बा श्री के नाम में कुछ मिस्टेक थी तो बिजली का बिल लेकर मैं  'बीएसईएस' के ऑफिस पहुंचा ! तारीख़ थी, 04-10-2021 . वहां जाकर पता चला कि सरकारी संस्थान में कोरोना ने बाबुओं को कितनी सुविधा उपलब्ध कराई है ! विंडो के पीछे बैठा क्लर्क मुझे देखते ही गुर्राया, - " प्रॉब्लम बाद में बताना, पहले फेस मास्क ठीक करो ! नाक से नीचे फिसल रहा है ! कोरोना बाटने आए हो क्या "!
  " तुम्हें मेरी नाक में कोरोना नज़र आ रहा है क्या ?"
" किसी के माथे पर लिखा है कि वो कोरोना फ्री है ! लोग जाने क्या क्या लेकर घूमते हैं! खैर तुम क्या लाए हो?"
      " बिजली के बिल में नाम ठीक कराना है"!
" तो पहले गलत नाम क्यों लिखाया था ?"
    "ये गलती तुम्हारे विभाग ने की है !" 
         " तीन नंबर खिड़की पर जाओ !" 
     तीन नंबर खिड़की पर बताया गया कि कोरोना के चलते फिजिकली डॉक्यूमेंट नहीं जमा हो सकते ,  क्या 
भरोसा आप बिजली बिल के साथ साथ ब्लैक फंगस भी  टोपीलेकर आए हों ! ऑन लाइन डॉक्यूमेंट सम्मिट करने lपर  यूवायरस पाइप लाइन में फस जाते हैं ! पीछे खड़े हुए एक सज्जन  बगैर पूछे बताने लगे - " दो महीने से चक्कर काट रहा हूं । ये कागज़ात लेते नहीं और ऑन लाइन एक्सेप्ट नहीं होता ! त्रिशंकु बनकर बीच में लटके रहोगे ! कोरोना  हरामखोरों के लिए कितने अवसर लेकर आया है "!
           लौट के बुद्धू बस स्टॉप पर आए ! शेड पर खड़े होते ही मेरी नज़र एक सरकारी विज्ञापन पर पड़ी ! पढ़ कर मैं सन्न् रह गया ! मुझे अपने पिछड़ेपन पर गुस्सा आने लगा ! आज जाकर मुझे पता चला कि देश  "विकास उत्सव"  मना रहा है ! सचमुच अक्ल के मामले में मैं अभी भी नाबालिग हूं । देश विकास उत्सव मना रहा है और मूर्ख लोग विकास ढूंढ रहे हैं ! गली में छोरा शहर ढिंढोरा,,,,! घर मेंउपलब्ध कनस्तर का आटा अंतिम सांस ले रहा था ! मुझे तुरंत विकास की ज़रूरत थी ! मैं विकास उत्सव के विज्ञापन को इस उम्मीद और आत्मीयता से देख रहा था, गोया अभी अभी आटा समेत कनस्तर बाहर आने वाला है। कनस्तर नहीं आया, उल्टे बस आ गई और एक बार फिर मैं  विकास से वंचित हो गया - करम गति टारे नाहि टरे !
         "विकास उत्सव" के बारे में जानकारी प्राप्त होने के बाद मेरी मन: स्थिति - नींद न आए मुझे चैन न आए कोई जाओ जरा ढूंढ के लाओ - जैसी हो चुकी है ! मैने अपने पड़ोसी 'चौधरी' से मशविरा किया, - "देश विकास उत्सव मना रहा है! "! 
     चौधरी ने मुझे ऐसे देखा जैसे मेरा मानसिक संतुलन ठीक नहीं है! फिर धीरे से बोला , -" फेस मास्क लगाकर लिकड़ा कर घर ते ! आखिर हो गया न कोरोना !! इब घर जा , अर भटकटैया का काढ़ा पी कै सो ज्या !"
       " पर मुझे तो कुछ हुआ भी नहीं!"
" नॉर्मल होता तो दिन में  "विकास उत्सव" के धोरे कदी न जाता ''!
       " मैने बस स्टॉप पर लिखा देखा था। तीन साल से बेकारी ओढ़ कर लेटा हूं, ऐसे में किसी को विकास करते कैसे देख सकता हूं ! मैने सोचा शायद तुम्हें उस जगह का पता हो, जहां बसन्त आया हुआ है "!
       " किस्मत फूट गी  म्हारी ! बारह साड़ लिकड़ गया विकास  अर बसंत कू देखे ! इब तो सुबह शाम तमैं ही देखूं सूं ! कती पतझड़ पसर गयो जिंदगी में " !
         " मैं क्या करूं कहां जाऊं ! सच बड़ा संदिग्ध हो गया है ! हकीकत और प्रोपेगंडा के बीच का फ़र्क ही मिटता जा रहा है ! भूख और खाली पेट के बीच में - संतोषम परम् सुखम - अड़ गया है । स्लोगन ने सच को निगल लिया है ! मैं बड़ी शिद्दत से केजरीवाल की तरह एक स्वस्थ मुस्कराहट चहता हूं ! लेकिन मुस्करा नहीं पा रहा हूं ! जैसे ही सावन की कल्पना करता हूं, सामने पतझड़ आ जाता है ! "
           " गाम लिकड़ ले मेरे गैल तीन दिन के लिए ! उतै धान कौ खेतन में सावन उतरो सै ! वरना विकास उत्सव ढूंढ ढूंढ कै कती पागल हो ज्या  गा "!
       मैंने सोचा, एक से भले दो, जाकर ' वर्मा जी ' से भी
पूछ लिया, - ' सावन के बारे में क्या कहना चाहेंगे ?"
   " सिर्फ इतना कि सावन में अंधा होने पर पूरी ज़िंदगी इंसान को हरा हरा नज़र आता है ! लगता है तेरे  घर में गेहूं आ गया है ! जब तक भाजपा सरकार है, मौज कर ले।"
      " पर फ्री राशन तो केजरीवाल सरकार दे रही है?"
 "  खाते में हर फसल पर पैसा तो मोदी सरकार डालती है ! उसके बगैर गेहूं नहीं उगता, इसलिए अबकी बार मोदी सरकार "!
 " मैं भी विकास उत्सव मनाना चाहता हूं, कैसे मनाऊं" ?
         " तेरे मन में खोट है ! तुझे सच कभी नहीं नज़र आएगा ! जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी त्यों तैसी ! कुछ समझा "?
        " अज्ञानी हूं , मार्ग दर्शन करें "!!
    " ईश्वर नजर नहीं आता किंतु करोड़ों भक्त उसे हर वक्त महसूस करते हैं ! ठीक उसी तरह विकास है, जिन्हें नजर आ रहा है वो 'उत्सव' मना मना रहे हैं, जिन्हें तुम्हारी तरह दूध में मक्खी ढूंढने की बीमारी -उन्हें न "विकास" नज़र आता है  न  "उत्सव" ! तूने- 'फर्स्ट डिजर्व देन डिजायर- ' वाली कहावत तो सुनी होगी न ! पहले खुद को इस लायक़ बनाओ कि तुम्हें " विकास" दिखाई पड़े ! जिस दिन ये योग्यता आ गई तुम अपने आप "उत्सव" मनाने लगोगे ! अभी हट जा ताऊ पाच्छे नै, हवा आने दे "!!

   मैं अभी भी पतझड़ में बसंत ढूंढ रहा हूं !!

( दोस्तों पढ़ कर कमेंट ज़रूर करें !  ( सुलतान भारती )
               


        

''हास्य धारावाहिक"

(  हास्य  धरावाहिक )

      " मारे गए   गुलफाम "
( " सारांश " )       (Synopsis).   
          काल खंड- ( इक्कीसवीं सदी  2021.)

           स्टोरी 

 (  आपदा में अवसर की तलाश में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की रुहेलखंड यूनिवर्सिटी से निकले दो ग्रेजुएट और  जिगरी दोस्त ,,,,, साबिर  और सतबीर ! ! एक इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर, और  दूसरा ग्रेजुएट के अलावा कुश्ती में चैंपियन  और कराटे में ब्लैक बेल्ट ! दोनों किसान के बेटे नौकरी की तलाश में दिल्ली आते हैं ! दोनों गांव की रामलीला में एक्टिंग करते करते भेष बदलने और अभिनय के शौकीन हो चुके हैं ! उन के पास डिग्री के साथ हिम्मत , हिकमत , जोश और हौंसला तो था लेकिन शायद क़िस्मत ब्लैक एंड व्हाइट थी ! लगातार नौ महीने नौकरी के लिए ऑफिसों की परिक्रमा करने के बाद भी जब नौकरी न मिली तो सतवीर जाट की खोपड़ी घूम गई , - उरे कू सुण साबिर !"
          " हां सत्ते !"
  " इब के करेगा भाई "?
    " के करूं  यार ! कल भी नौकरी ढूंढने निकलूंगा !"
" कोल्हू के बैल बण  गे -" सतवीर जाट  बिगड़  गया - " सुबह ते शाम तक नौकरी खातर चक्कर काटते जूते घिस  गे  म्हारे "!
     " तो करें क्या ! गांव लौट चलें "?
" मन्ने के बेरा ( मुझे क्या पता) ! मगर नू लगे अक अपनी
 किस्मत  में  नौकरी  कोन्या ! ''
      " हंबे !" साबिर ने हामी भरी - " घणा धक्का खा लिया सत्ते "! 
        अचानक सतवीर मुस्कराता है, -"  यू दिल्ली ने हमारे गैल बढ़िया न करी ! इब मैं सूद समेत सबै वापस कर द्यूंगा !" 
      " सूद समेत वापस ? ज़रूर तू कुछ गडबड करेगा "!
" इब तक हम नौकरी के पाछे दौड़ते रहे, इब नौकरी बाड़े  हमारे पाच्छे दौड़ांगे "!
 साबिर ने सर पीट लिया, - " जाने अब तुझे क्या फितूर सूझा है "! 
           सतवीर मुस्कराया , - " रामलीला !!"
     " रामलीला ! क्या मतलब ?"
" रामलीला में मैं राम बनता था, अर तू लक्ष्मण "!
      "तो" ?
    " उम्र में तू मेरे ते आठ महीने बड़ो सै, पर जिन्दगी कौ रामलीला  में तू मेरो शागिर्द बनेगो - लक्ष्मण की तरया"!
     साबिर ने अपना सर नोचते हुए पूछा - " पक्का मरवाएगा मुझे ! करना क्या है मेरे बाप ? " 
         " इब तक हम नौकरी ढूंढते थे, इब नौकरी बाड़े मोए ढूंढेंगे ! लोग म्हारे धौरे मोह माया लेकर आंगे अर यहां ते सुकून प्रेम और संतोष लेकर ज्यांगे "!
     "ऐसा कौन सा काम करेगा सत्ते ! मेरे तो कुछ भी पल्ले नहीं पड़ रहा !! ज़रूर किसी बड़ी मुसीबत को न्यौता देने वाला है !! अब मुझे साफ साफ बताओ "!

( और फिर  सतवीर जाट के दिमाग़ से जो  'लाजवाब' प्लान  निकल कर बाहर आया उसे सुनकर इंजीनियर साबिर अली की आंखें फैल गईं ! मगर उस धंधे में कुछ भी गैरकानूनी नहीं था, इसलिए थोडा न नुकर के बाद साबिर भी तैयार हो गया !
      तो,,,, आखिर वो धंधा क्या था ?  दोनों जिगरी दोस्तों ने इस बार  अपने लिए " आपदा" को न्यौता दिया था या   किसी बढ़िया  " अवसर " को !  जानने के लिए देखते रहिए - हास्य, व्यंग्य,सौहार्द और राष्ट्रवाद की चाशनी में सराबोर विख्यात व्यंग्यकार सुलतान भारती की कलम का ताज़ा तिलिस्म- " मारे गए गुलफाम.''!!! बहुत जल्द "डी वी चैनल" पर  !!)

Monday, 20 September 2021

" अपना अपना स्टैमिना है जी "

(व्यंग्य ''भारती"). "अपना अपना स्टेमिना है  साहब !"

             अब आपसे क्या छुपाना,,,,, अपने स्टेमिना को लेकर मैं कुछ खास सैटिसफाइड नहीं हूं ! दरअसल मैं स्टेमिना को लेकर अक्सर कन्फ्यूज हो जाता हूं कि इस पर भरोसा करूं या न करूं ! ऐसे स्टेमिना को लेकर कोई कैसे खुश हो सकता है जिसकी स्टोरी में शादी के बाद कोई महिला मित्र न हो ! ( धर्मपत्नी शादी से पहले मित्र हो सकती है,शादी के बाद तो,,,, हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता  है !) विश्व विख्यात ब्रिटिश लेखक चार्ल्स डिकेंस का मानना है कि - लगातार असफलता आदमी को अपनी नजर में बौना कर देती है-! ( मुझे भी लगता है कि पिछले तीन साल से मेरा कद काफ़ी कम हुआ है !) लेकिन मैं,,, चार्ल्स तोरी बतियां न मानू रे ,,,,,,!!
                स्टेमिना ,,,,,,बोले तो क्षमता की सबकी अलग कहानी है ! सब अपने स्टेमिना को धार देते रहते हैं ! बड़ी अजीब अजीब चीज़ो में लोगों ने अपनी क्षमता यानि स्टेमिना को डेवलप किया हुआ है! हमारे गांव में एक सज्जन ने रात के घनघोर अंधेरे में दूसरे के पेड़ का महुआ चुराने का स्टेमिना था ! इस स्टेमिना के चलते वो एक रात पेड़ से टपक पड़े और सुबह टूटी हुई टांग के साथ बरामद हुए ! जिसके पेड़ के नीचे पैर तुड़वा कर   बरामद हुए थे, उसी शख्स ने उन्हें अस्पताल पहुंचाया ! उन्हें टांग टूटने का उतना दुख नहीं था जितना। उस रात महुआ न चुरा पाने का !
            किसी किसी में दूध के अंदर पानी मिलाने का ऐसा गज़ब का स्टेमिना होता है कि लैक्टोमीटर तो दूर खुद भैंस भी नहीं पहचान पाती !  मजे की बात ये है कि मिलावट को न दूधिया कुबूल करता है न भैंस ! ऐसी विषम परिस्थिति में अगर ग्राहक उसे गलत बताए तो भैंस और दूधिया दोनों बुरा मान जाते हैं ! मैंने अपने दोस्त चौधरी से एक दिन शंका ज़ाहिर की,- " अपनी भैसों को कोविड वैक्सीन लगवाई "?
       " तूने लगवा ली  के ?"
  " हां , एक लगवा ली, दूसरा लगना है "!
" दूसरा लगने के बाद भी तू चलता फिरता नज़र आया ता फेर भैसन कू लगवा लूंगा " !
  " मैं तो इसलिए पूछ रहा था कि तुम्हारी भैंसें आजकल पानी बहुत पी रही हैं" !
   "  मन्ने के बेरा ! पर तमै कैसे पता चल्या ?"
    " दूध के नाम पर सिर्फ सफेदी बची है "!
चौधरी भड़क उठा, " तमैं भैसन के कैरक्टर पे उंगली ठाने ते पहले नू सोच्या को न्या - अक - थारी सेहत उन्हीं की बदौलत बची रह गी "! 
    " सेहत का ही तो रोना है चौधरी ! नए साल में उधार दूध पीना शुरू किया था, चौथे महीने ही मुझे कोरोना ने धर दबोचा ! आठ किलो वजन खा गया ! काश भैंस ने मेरे बारे में से सीरियसली सोचा होता"!
       चौधरी ने मुझ पर ब्लेम लगाया, - " सबै गलती थारी है, तमै दूध का पेमेट हर महीने कर देना चाह ! नब्बे दिन तक तमै कूण  धार  देगो ! या में भैंस की गलती कोन्या  भारती ! कोई और भैंस होती तो इब तक थारा सर फाड़ देती "!
          भैंस का स्टेमिना सुन कर मैं चुप हो गया !
       कुछ लोग अपने स्टेमिना को लेकर गलतफहमी पाल लेते हैं ! गलतफहमी में जीना और कोमा में जीना एक जैसा है ! दोनों सूरतों में आदमी सिर्फ जीने का भ्रम बनाए होता है !  गलतफहमी में जीना बडा घातक होता है। प्राणी अपनी इमेज को अचानक ही कद्दावर मान लेता है और फिर सारे मुहल्ले से उम्मीद करता है कि उसके इस नए अवतार को लोग तस्लीम करें ! ऐसा महामानव मुहल्ले से लेकर महानगर तक कहीं भी बरामद हो सकता है ! कल दक्षिण दिल्ली ( संगमविहार) के कोरोणा वैक्सीन सेंटर में आए 4 फुट 11 इंच के एक महापुरुष मुझे अपना परिचय देते हुए कह रहे थे -" मुझे नहीं जानते! मुझे तो संगम विहार का बच्चा बच्चा जानता है !! कहीं बाहर से आए हो क्या "?
             " नहीं तो ! मैं भी संगम विहार से हूं"!
       " फिर मुझे कैसे नहीं पहचाना ! खैर अब गलती सुधार लो, और मुझे अंदर जाने दो ! "
       लेखक को अपने टैलेंट को लेकर अक्सर गलतफहमी हो जाती है ! वो चहता है कि सारी दुनियां उसे पढ़े मगर वो किसी को न पढ़े ! अपनी इमेज बिल्डिंग के लिए वो थोक में झूठ बोलता है,, - झारखंड साहित्य अकादमी मुझे सम्मानित करना चाहती है, मगर मैने मना कर दिया। मैं नक्सल प्रभावित राज्य में जाना ही नहीं चाहता ! दरअसल मैं प्रेम और श्रृंगार रस का पुजारी हूं, बंदूक और बारूद के नाम से ही मेरी रचना दूषित हो जाती है ! " साहित्य सम्मेलन में आमंत्रित न किए जाने का कारण वो कुछ यूं बताते हैं, -" लिस्ट फाइनल करने से पहले आयोजक का फ़ोन आया था, मैंने आमंत्रित किए जाने वाले कवियों की लिस्ट मांगी ! नाम देखने के बाद खुद जानें से मना कर दिया ! कम से कम रचनाकार का स्टेमिना और स्टैंडर्ड तो बराबर का होना चाहिए"!
   
        झूठ सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान हो चुका है, पता नहीं कैसे - सत्यमेव जयते - का नगाड़ा पीटा जा रहा है ! हर कदम पर झूठ की मार्केटिंग ज़ारी है ! झूठ के स्टेमिना के सामने सत्यमेव जयते का ऑक्सीजन लेवल लगातार
गिर रहा है और विधायिका चाहती है कि  "सत्य"  को सिर्फ  स्लोगन (नारा) के भरोसे  "जयते"  मान  लिया जाए ,- मगर मैं क्या करूं, दिल है कि मानता नहीं !!
                                           _  (  सुलतान भारती)


Thursday, 16 September 2021

( व्यंग्य"भारती") परमारथ के कारने साधुन धरा शरीर

                       (व्यंग्य "भारती")

          " परमारथ के कारने साधुन धरा शरीर" !

              मुझे भी अब तक नहीं मालूम था कि साधुओं ने किस लिए शरीर धारण किया है ! अब जाकर पता चला कि साधुगण 'परमार्थ' के ब्रांड एंबेसडर बन कर पृथ्वी पर आए हैं ! पिछले कई दशक से वो परमार्थ कर रहे हैं और जनता उसका "फल" खा रही है ! ( एक प्रसिद्ध साधु के चेले ने तो गुरु के "परमार्थ" को हड़पने के लिए अभी हाल ही में अपने गुरू का ही ' राम नाम सत्य ' कर डाला !) कुछ कॉरपोरेट साधु तो नेताओं के वोट बैंक तैयार करते करते  सत्ता के  " गॉड फादर" हो गए ! किंतु जब हर दल के अपने अपने गॉड फादर होने लगे तो परमार्थ का लोड बढ़ गया ! शिक्षित और अशिक्षित दोनों  तारणहार के  आश्रम में होने वाले 'परमार्थ ' से परिचित और मौन थे ! सत्ता पर आस्था का बेताल सवार था ! ऐसे में "साधुन" को  'सद्कर्म' करने से भला कोई कैसे रोक सकता था ! किंतु घनघोर कलियुग मे सतयुग की 'शीरीनी'  बांट रहे इन "साधुन" पर तब गाज  गिरी जब  भाजपा  सत्ता में आ गई  !
                 भाजपा के सत्ता में आते ही कई सेवन स्टार बाबाओं के खाते में जमा 'परमार्थ ' की जांच शुरु हो गई! वाणप्रस्थ आश्रम की अंतिम सीढ़ी पर खड़े स्वर्णभस्म खा रहे साधु जेल जाने लगे ! "राम" और "रहीम" दोनों के चरित्र पर कालिख पोत रहे अवतारी पुरूष को उनके 'परमार्थ' समेत जेल भेज दिया गया ! कई साधु देश छोड़ कर निकल भागे और  विदेश  में  आश्रम खोल कर  'परमार्थ ' निर्माण में लग  गए ! एक ऐसी पार्टी सत्ता में आई थी जिसमें ओरिजनल साधु थे, अत: डुप्लीकेट साधु और उनके बुरे परमार्थ के "अच्छे" दिन शुरू हो गए थे ! रोज कहीं न कहीं से खबरें आने लगीं कि - ' जो बेचते थे दर्दे दवाए दिल, वो दुकान अपनी बढ़ा गए -!'
        परमार्थ के लिए साधु ही परमिट का हकदार है! आम आदमी का किया हुआ परमार्थ शायद मार्केट में नहीं चलता ! सज्जन आदमी के ' परमार्थ ' को मुहल्ले में भी क्रेडिट नहीं मिलता और स्वामी नित्यानंद का "परमार्थ" देश से भाग जाने  पर भी ब्रेकिंग न्यूज में आता है ! साधु सन्त चाहते हैं कि वो जो भी करें उसे 'परमारथ' माना जाए ! सांसारिक दृष्टि से देखने पर भले वो लुच्चई नज़र आये, पर वो परमार्थ है ! उसे अन्यथा नहीं लेना चाहिए ! परमार्थ नाना प्रकार के हो सकते हैं ! संत चाहे नंगा होकर मालिश कराए या बलात्कार करे , वो परमार्थ की कटेगरी में ही आएगा ! संत समागम में आईं युवा मलिलाओं पर वो टॉर्च की स्पॉटलाइट डाले या फिर बुरी नजर ! उसके खिलाफ आवाज उठाना चरित्रहीनता और व्यभिचार में आता है ! संत का जन्म नहीं होता बल्कि परमार्थ के लिए वो मानव शरीर धारण करता है ! जेल जाकर भी उसका चाल, चरित्र,और चिंतन "परमारथ" में लगा होता है !
             धर्म कोई भी हो, महिलाएं सबसे पहले  अवतारी पुरुषों के संपर्क और सम्मोहन में आती हैं ! इसके बाद परमार्थ शुरु हो जाता है ! बाबा की झकाझक सफेद दाढ़ी से एक मोहिनी कंटिया बाहर आती है और आस्था के साथ 'परमार्थ' शुरु हो जाता है ! धीरे धीरे घर के मर्द भी विवेक की चिलम  पीना शुरू कर देते हैं ! 'परसाद' और 'परमार्थ' बढ़ता चला जाता है , काम क्रोध मद लोभ से मुक्ति मिलनी शुरू हो जाती है! प्राणी को मृत्यु लोक में रहते हुए भी देवलोक की अनुभूति होने लगती है ! सद्कर्म की कंटिया में फंसा एक जीव  मोहल्ले की कई  'मछलियों' को मोक्ष दिलाने का परमार्थ करता  है ! 
         न  "साधु जन" में कोई कमी आई है न  'परमार्थ' में ! यूपी के सुल्तानपुर स्थित मेरे गांव में एक दशक पहले भूईसर ( मुंबई) से एक सैयद बाबा पधारे ! वो सर से लेकर पैर तक परमार्थ में डूबे हुए थे ! भक्त और बाबा की शोहरत इन्फेक्शन की रफ्तार से फैली ! भक्तों में नर नारी दोनों की प्रचुरता । बाबा  मुस्लिम और हिंदू दोनों के चहेते थे ! बाबा के प्रचारक बाबा को काम क्रोध मद लोभ से कई किलोमीटर दूर बताते थे ! कुछ विरोधी भक्तों ने दबे स्वर में बताया कि- बाबा के पैर का दर्द युवा  महिलाओं  के  दबाने  से  ही  दूर  होता है-!  यही नहीं, बल्कि ऐसे संवेदनशील अवसर पर  पुरुष भक्तों के दर्शन मात्र से बाबा का पैर दर्द बढ़ जाता था ! पारिवारिक और सांसारिक मोह माया से मुक्त पैंसठ वर्षीय बाबा अविवाहित बताए जाते थे ! विगत वर्ष सैय्यद बाबा अचानक मुंबई प्रवास में   "स्वर्गीय" हो गए ! उन्हें दफनाने के लिए पैतृक गांव गोंडा लाया गया !  उनकी मय्यत में गए भक्त ये देख कर सदमे में आ गए कि मोह माया से परे होने का ढोंग करने वाले सय्यद बाबा शादीशुदा और बाल बच्चेदार थे ! जिस जमीन पर दफनाए गए ,वो भी एक विवादित भूखंड था ! स्वर्गीय होकर भी - माया तू न गई मेरे मन से - !
        ये जो पर्मारथ है न ! कभी कभी ठग और लुटेरे भी आजमाने लगते हैं ! उम्र के इंटरवल तक अविवाहित रहे एक साधु को अचानक गृहस्थ आश्रम के प्रति मोह उत्पन्न हुआ ! कई युवकों ने मिलकर एक कमसिन लड़के को साड़ी में दूर बिठाकर साधु से कहा, -' इस लड़की को पति बहुत मारता है , ससुराल से भाग आई है ! गरीब की बेटी है आपके साथ सुखी रहेगी -' ! कामिनी मोह में साधु अंधे हो चुके थे। मंदिर के सामने वरमाला पड़ी और रात में डकैती ! साधु को नशीली चीज पिला कर हनीमून से पहले ही, जीवन भर का जमा किया  'परमार्थ' , समेट कर दुल्हन  गैंग के साथ फरार हो चुकी थी ! होश में आने पर बाबा महीनों अंगारों पर करवटें बदलते रहे!

          सोशल मीडिया पर ऐसे ठगों का पूरा टिड्डी दल मौजूद है जो - साधून धरा शरीर - के गेटअप में कुछ यूं जाल बिछाते हैं, - 'कोई गारंटी नहीं, कोई डॉक्यूमेंट नहीं ! पांच मिनट में फटाफट लोन लीजिए  -'! ( इस सादगी में कौन न फंस जाए ऐ खुदा ! लगता है कि इनकम टैक्स विभाग की रेड से बचने के लिए दानवीर हातिमताई नोट की बोरी फेंकना चाहते हैं !) साहित्यकारों को फंसान  के लिए अलग तरह की कंटिया है, -  'क्या आप लेखक हैं और अपनी किताब को दुनियां के 175  देशों में देखना चाहते हैं ? यदि  'हां ' तो हमारे  'परमारथ प्रकाशन ' से किताब छपवाएं  और दुनियां के अगले बेस्ट सेलर  राइटर बने - '! ( पूरे शहर के प्रकाशकों द्वारा ठुकराई गई रचना को लेकर रचनाकार  "बेस्ट सेलर"  होने के लिए फौरन व्हेल के मुंह में छलांग मार देता है !)

              परमार्थ में लगा  "साधुन धरा शरीर" कलियुग में खूब फल फूल रहा है और सचमुच के परमार्थ  में सब कुछ गवां कर संत खुद को सीख दे रहा है - " नेकी कर और जूते खा " !! 

                        ( सुलतान भारती )।      
          ( दोस्तों, कमेंट ज़रूर करें , प्रतीक्षा रहेगी आपके शब्दों की !)



Wednesday, 15 September 2021

आदरणीय नड्डा जी,

आदरणीय जे पी नड्डा जी
भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष
 राष्ट्रीय कार्यालय दिल्ली
पिन 110001

संदर्भ -- यशस्वी प्रधान मंत्री के सर्वजन हिताय कार्यक्रम " प्रधान मंत्री जन कल्याण जागरूकता अभियान '' के बढ़ते प्रभाव एवम जुड़ते जनसमुदाय के विषय में !
--,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

आदरणीय नड्डा जी,
                   भारत के यशस्वी प्रधानमन्त्री और विश्व राजनीति के धुरंधर नेता हमारे नरेंद्र मोदी जी की सभी योजनाएं सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय की कसौटी पर खरी उतरी हैं ! उनका सदैव यह प्रयास रहा है कि देश की १४५ करोड़ आबादी का सहभागी बने अंतिम ज़रूरत मंद आदमी तक उनकी योजना की सूचना एवम सहभागिता का लाभ पहुंचे !
                किंतु सत्ता का वनवास काट रहे विपक्ष के दुष्प्रचार एवम हमारे जनसंपर्क की कमी के चलते ग्रामीण क्षेत्रों में हमारे पी एम की जनकल्याणकारी योजनाओं की सटीक और सामयिक जानकारी जनता को नहीं मिल पाती ! अपने कुत्सित स्वार्थ के चलते विरोधी दल प्रधानमन्तरी जी के इन बहुमुखी जनकल्याण योजनाओं के व्यापक प्रचार एवम प्रसार की गति कुंद करने में लगे रहते हैं! ( मिसाल के तौर पर  "तीन तलाक" के मुद्दे को देखिए ! मुस्लिम समाज की महिलाओं के चतुर्मुखी आजादी, बराबरी एवम विकास के लिए उठाए गए इस क़दम को भी विपक्ष ने अपने दुष्प्रचार की सामग्री बना ली है !) 
         हमारे संगठन में हर वर्ग के शिक्षित, समर्पित और संगठित युवा शामिल हैं! हमारा लक्ष्य है कि प्रधान मंत्री जनकल्याण योजनाओं से शहर से लेकर गांव के आखिरी आदमी तक  को जागरूक करना, जिससे देश के हर उस जरूरतमंद को इन योजनाओं का लाभ मिल सके , जिनको लक्ष्य कर हमारे पीएम ने ये योजनाएं शुरु की हैं !
        आशा है आप हमारे संगठन को जनहित और राष्ट्रहित में जागरूकता अभियान से जोड़ने की अनुमति प्रदान करेंगे - धन्यवाद

      ।।                    राष्ट्र हित में सदैव समर्पित आपका
                    

Thursday, 2 September 2021

("व्यंग्य भारती") दिल तो पागल है!!

           " दिल तो पागल है "

             अब इसमें मेरा क्या कसूर ! शाम को अच्छा भला था, सुबह बारिश होते ही बौरा गया । मैने अपने दिल से बात चीत शुरू की, -' हाय ! कैसे हो !'
       ' तुम से मतलब ?'
   " काहे भैंसे की तरह भड़क रहे हो ! मैने तो सिर्फ  हाल चाल पूछा है - ! शाम को तुम नॉर्मल थे, सुबह का मानसून देख कर भड़के हुए हो, दिले नादान तुझे हुआ क्या है !'
       " जहां बेदर्द मालिक हो वहां फरियाद क्या करना ! काश मैं किसी आशिक के जिस्म में होता ! मजनू, फरहाद - रोमियो में से किसी के बॉडी में फिट कर देते, पर किस्मत की सितमज़री देखो , लेखक के पहलू में डाल दिया ! दुनियां बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई !"
       मुझे हंसी आ गई, - ' अब बगावत करने से क्या हासिल होगा ! आख़री वक्त में क्या ख़ाक मुसलमा होंगे ! तुम्हें तीस साल पहले सोचना चाहिए था !"
         " बस यही तो रोना है ! मुझे सोचने की सलाहियत नहीं दी गई। तुम्हारे सर के अंदर जो सलाद भरा है, वो तय करता है कि मुझे कब रोना हैऔर कब आत्मनिर्भर होना है ! तुम्हारे पल्ले बंध कर रोना रूटीन हो गया और आत्मनिर्भरता ख़्वाब "!
         " दिल को संतोषी होना चाहिए"!
    " दिल पर दही की जगह नींबू मत टपका ! अभी जाने कब तक सजा काटनी होगी ! जिंदगी में कोई चार्म नहीं रहा ! लेखक का दिल होना किसी अभिशाप से कम नहीं है ! हमें काश तुमसे मोहब्बत न होती "!
      ''' गोया तुम्हें अभी भी मुझसे मोहब्बत है !"
   ''' मुहब्बत और लेखक से ! मैं इतना भी मूर्ख नहीं !           "आखिर तुम्हें एक लेखक से इतनी नफ़रत क्यों है?"
        " तुम्हे पता है कि जिस्म का हर अंग रेस्ट करता है, सिर्फ दिल को ऐसी सजा दी गई है कि उसे दिन रात जागते रहना है ! मेरी ट्रेजेडी ये है कि मैं लेखक के जिस्म में हूं और लेखक जल्दी मरते ही नहीं "!
       " क्या बकवास है !!"
   " बकवास नहीं सच है, तुमने कभी किसी लेखक को सत्तर अस्सी साल से पहले मरते हुए देखा ?"
        " मेरे पास इसका कोई रिकॉर्ड नहीं, पर तुम्हें किसी लेखक के बारे में ऐसा नहीं कहना चाहिए "!
     " क्यों नहीं कहना चाहिए, जिस आदमी का किसी बैंक में सेविंग अकाउंट तक न हो, वो विजय माल्या और नीरव मोदी के खातों के जांच करवाने के लिए परेशान हो तो बुरा तो लगेगा ही "!
       " लेखक खुदा की बनाई हुई वो रचना है, जो  समाज और सत्ता का प्रदूषण दूर करने में उम्र खर्च कर देता है ! वो अतीत से ऑक्सीजन लेता है और वर्तमान से नाखुश रहता है ! दुनियां के लिए  भविष्य की अपार संभावनाओं की तलाश करने वाला लेखक अक्सर अपने बच्चों को खूबसूरत भविष्य नहीं दे पाता ! हकीकत में वो वर्तमान समाज का पंखहीन फरिश्ता है !"
      " अपनी तारीफ कर रहे हो !  बाई द वे, तुम्हें लेखक होने की सलाह किसने दी थी ?"
    " यही तो रोना है कि ये सलाह किसी ने नहीं दी ! इस दरिया ए आतिश में उतरने का फ़ैसला मेरा ही था !"
   दिल बड़बड़ाया, - " जैसा करम करोगे वैसा फल देगा भगवान "!
           हर इंसान के दिल की बनावट एक जैसी होती है, लेकिन कुंडली एक जैसी नहीं होती है । करने वाला दिमाग़ होता है, लेकिन इल्जाम दिल पर लगता है ,- शादी शुदा थे, लेकिन अपने से आधी उम्र की लड़की पर दिल आ गया ! दिल ही तो है !! इसमें खां साहब का क्या कुसूर ? दिल के हाथों मजबूर हो गए"!  ( पता लगा कि दिल के हाथ पैर भी होते हैं !)
           आदमी गुनाह करने के बाद भी बेकसूर बताया जाता है! सारी गलती दिल की होती है ! सुपारी काटने से लेकर सजा काटने तक सारा कुकर्म दिल करता है तो फिर शरीर का क्या कुसूर ! लेकिन इसके बावजूद दिल के बारे में दलील दी जाती है - दिल तो बच्चा है जी -! अस्सी साल तक जिसका बचपना न जाए , वो कुसूरवार
नहीं माना जायेगा ! इसका फायदा उठाकर दिल एक से एक खुराफात करता रहता है, - टकरा गया तुमसे दिल ही तो है -! दिल और दिमाग़ में ज़्यादा खुराफाती कौन है, इसे लेकर साहित्यकारों और साइंसदानों में सदियों से बहस छिड़ी ! वैज्ञानिक कहते हैं , जब पूरा शरीर दिमाग़ के आधीन है तो दिल की क्या बिसात ! ऐसे में - दिल बेचारा बिन 'सजना' (दिमाग़) के माने न -!
        इंसान जानबूझ कर दिल को कटघरे में खड़ा करता है, - ये दिल ये पागल दिल मेरा,,, करता फिरे आवारगी -! ' मैंने तो दिल के हाथों मजबूर होकर तीसरी शादी कर ली -! अच्छा तो गोया दिल ने गला दबा दिया था ! दिले नादान तुझे हुआ क्या है! इतनी गुंडा गर्दी का सबब क्या है -! इतना आग मूतेगा तो हार्ट फेल होना ही है ! लोग दिल की आड़ में कितनी पिचकारी चलाते हैं ! हमारे एक परिचित के  दिमाग में 'हनुमान ग्रंथि' उग आई है ! वो हमेशा अपने मित्रों की 'इमेज़ ' के लंका दहन में ही लगे होते हैं ! वो भी सारा किया धरा दिल पर मढ देते हैं - दिल है कि मानता नहीं -!!

    बच के रहना रे बाबा - दिल तो छुट्टा  (सांड) है जी !!

                   ( सुलतान भारती)
  

Monday, 23 August 2021

( व्यंग्य भारती) "भगवान का दिया सब कुछ है"

          " भगवान का दिया सब कुछ है "!

            मंहगाई है, बेकारी है, कोरोना है, लगातार लुढ़कती जीडीपी है, आए दिन लाठियां खाते और सर फड़वाते किसान हैं ! डीजल, पेट्रोल, रसोई गैस सिलेंडर , सरसों के तेल का रोना क्यों ! ये सब भगवान का किया धरा है ! इसमें  किसी का कोई दोष नहीं !  'वो' अच्छे दिन लाना चाहते थे किंतु विपक्ष के बरगलाने पर भगवान कोरोना और ब्लैक फंगस लेकर आ गए ! देश में मानसून से लेकर मंहगाई तक केे बिगड़े सुर के पीछे सिर्फ और सिर्फ भगवान का हाथ है ! भगवान जब देने पर उतारू हो जाए तो अच्छा बुरा नहीं देखते ! आजकल ऊपर वाला देने के मूड में है फिर भी प्राणी शक कर रहा है,- ' काम  मांगा था, कोरोना तो नहीं मांगा था  -! ' (नीचे वाले तेरा जवाब नहीं- !)
              इधर नफ़रत का गुड़ चबैना बांटने वाली मीडिया अगस्त में बेचैन थी कि तभी ऊपर वाले ने तालिबान की शक्ल में नफ़रत का नया लिफाफा भेज दिया ! अब मीडिया खुश है - कुछ दिन के लिए जबान को  'हलाहल' हासिल हो गया ! उम्मीद है कि तालिबान के भरोसे सितंबर आराम से पार हो जाएगा ! बाकी तीन महीने सूखा पड़ा तो भगवान का दिया ' हिंदू मुस्लिम' का गुड़ चबैना तो है ही ! आज कल इसी समुद्र मंथन से सारे रत्न प्राप्त हो रहे हैं ! मीडिया के लिए ये अमृत है तो सत्ता पक्ष और विपक्ष के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर ! इसी डिटर्जेंट से सारे दाग " अच्छे" नज़र आते हैं ! सब इसी हमाम में कूद पड़े हैं, अब किसी को विकास की कोई जरूरत नहीं रही ! लोग दावा कर रहे हैं, ' भगवान का दिया सब कुछ है -'! ( पर अभी नजर नहीं आ रहा है !) हिंदू मुस्लिम से कभी फुर्सत मिली तो वो ' सब कुछ' मैं भी ढूंढने निकलूंगा - !
             देता तो भगवान ही है, लेकिन देने से पहले वो शायद लिस्ट चेक नहीं करता ! लेन देन में कहीं कुछ गडबड है ! पात्र कुपात्र और कर्म पत्र  टेली नहीं करते। लगता है कि बड़ी जल्दी में पैकेज साइन किया गया है ! अब देखो ना - 'आटे' की जगह कनस्तर में 'आपदा' आ गई है ! उधर मसाले में लीद मिलाने वाले  'पांचू सेठ' ने एक और विधवा आश्रम खोल लिया है ! उद्घाघाटन में आए मंत्री जी विधवाओं को देखकर बहुत खुश नज़र आ रहे थे ! पांचू सेठ और मंत्री जी दोनों  'भगवान का दिया सब कुछ ' देख कर अपनी खुशी छुपा नहीं पा रहे थे । फीता काट कर मंत्री जी माइक पर बोल रहे थे, - ' यत्र नार्यः पूज्यंते रमंते तत्र देवता : मनुष्य को हर हाल में खुश रहना चाहिए - जाहे विधि राखे राम ताहि विधि रहिए -! पांचू सेठ के पास भगवान का दिया सब कुछ है ! सेठ जी पंचतत्व से बने हैं, इसलिए पांचू कहे जाते हैं ! हम सब उसी  "पंच तत्व" से बने हैं, इसलिए हमें इन तत्वों में विलीन होकर परमानंद की प्राप्ति करनी चाहिए ! इस 'काम' में' क्रोध'  कैसा ! इस नाशवान शरीर की यही सदगति है -'! पांचू सेठ ने सबसे पहले ताली बजाई ! पंचतत्व वाले  'गूढ़ आध्यात्म' का रहस्य वो दो साल पहले ही समझ गए थे, जब नेता जी के सुझाव पर पहला विधवा आश्रम खोला था !
             गाने का एक मुखड़ा है,- ना जाने किस भेष में  मिल जाएं भगवान-! यानि भगवान भेष बहुत बदलते हैं ! उनकी इस आदत के चलते ठग, चोर उचक्के, व्यापारी और लुटेरे  को ' भगवान ' होने में कभी कठिनाई नहीं पेश आई ! दुनियां ठगी जाती है और ऊपर वाला सोच में पड़ जाता है कि ये मैने कब किया  -! धार्मिक ठगों से तो भगवान आए दिन ठगा जाता है । कभी रावण ने संत बनकर मां सीता को ठगा , तो कभी खड़क सिंह ने कुपोषित मरीज़ बनकर बाबा भारती को ठग लिया ! खड़क सिंह ने भी घोड़ा छीन कर अपने गैंग में कहा होगा - ' आज भगवान का दिया सब कुछ है , - कट्टा है, बंदूक है, फरसा है और अब सुलतान जैसा घोड़ा भी है -'! ये लेन देन का ऐसा मामला है कि भगवान् को मुफ़्त में मिला क्रेडिट रास नहीं आता ! खुश होने की जगह खुदा सोचने लगता है कि - ये  सब कुछ मैने कब दिया ? कट्टा - पिस्तौल तो मेरे पैकेज में था ही नहीं - ! 
             - भगवान का दिया सब कुछ है' - ऐसा भगवान को क्रेडिट देने के लिए नहीं , इल्ज़ाम लगाने के लिए  बोला जाता है - " बापू पानी की तरह दारू पीने लगे थे, भगवान से उनकी खुशी नहीं देखी गई ! बस एक दिन पिताजी ने अंधेरे में ' सुरा' की जगह 'सल्फास' की शीशी गटक ली-! वैसे  भगवान का दिया गांजा, भांग, दारू और सल्फास सब कुछ था घर में ! शुक्र है कि मरने के मामले में भी किसी से कुछ मांगना नहीं पड़ा !"  हरि अनंत हरि कथा अनंता, किस किस अपराध में उसे याद किया जाता है, - ' लड़के ने पढ़ाई में बहुत मेहनत की थी पर खुदा को मंजूर नहीं था ! अब देखो ना - कोरोना जैसी आपदा में भी पास होने का अवसर नहीं मिला -'! ( ईश्वर को लड़के की जगह खुद बैठ कर इक्जाम दे देना था ! )
                    भगवान का दिया सब कुछ है - लूट मार, अपहरण, हत्या, लाठी चार्ज, घोटाला और रोजाना मजबूत होती अर्थव्यवस्था ! और क्या चहिए, रूखी सूखी खाय कर ठंडा पानी पीव ! मानसून को ममता दीदी ने बंगाल की खाड़ी में रोक लिया है ! दिल्ली जल बिन मछली हुई  पड़ी है और केजरीवाल कह रहे हैं कि- ' हम तो पानी फ्री दे रहे हैं ! इसके बाद भी अगर नल में पानी नहीं आ रहा तो मोदी जी दोषी हैं ! आज कल तो हमारी आत्मा  ( यूपी और उत्तराखंड के अलावा ) काम क्रोध मद लोभ की तरफ़ देखती भी नहीं है ! पार्टी में भगवान का दिया 'भगवंत मान' हैं  - और ले कर क्या करूंगा  -!"
          ' भगवान का दिया सब कुछ है'- ये कहने में क्या जाता है ? हकीकत यह है कि भगवान कितना भी दे दे, इंसान उसे चैन से बैठने नहीं देगा ! रोज एक नई लिस्ट फरिश्ते लेकर आ जाते हैं ! हफ्ते  में एक वक्त जुमा की नमाज़ पढ़ कर प्राणी पूरे छे दिन दुआ मांगता है, - ' इस बार तेरह नंबर वाले घोड़े पर सट्टा लगाऊंगा ! मौला देख लेना, मुझे रोज़ रोज़ मांगने की आदत नहीं है -'! इंसान ही दूसरे इंसान को गलत सीख देता है - संतोषम परम् सुखम का पालन करना चाहिए -! सीख हमेशा दूसरों को दी जाती है , अपनी चाहत की लिस्ट तो - देवो न जाने कुतो मनुष्य: - ! सूद पर पैसा देने वाला अगले दिन से ही उसका  खेत निगलने का ख़्वाब देखने लगते हैं ! मूल रकम पाकरआत्मा को मोक्ष नहीं मिलता ! सूद से ही घर में  संतोषम परम् सुखम आता है !
            ( मित्रों ! व्यंग्य पढ़ कर कमेंट जरुर करें !)

( सुलतान भारती )

             

               

Tuesday, 17 August 2021

(व्यंग्य " भारती") अगले जनम मोहे लेखक न कीजो

                 व्यंग्य "(भारती") "
       "अगले जनम मोहे  "लेखक" न  कीजो'

         आज मैं शपथ लेता हूं कि जो कहूंगा सच कहूंगा - सच के अलावा ( ज़माने का लिहाज़ करते हुए ) थोडा बहुत झूठ भी बोलूंगा ! झूठ के बगैर सरवाइव कैसे करूंगा ! वैसे मेरे मज़हब में पुनर्जन्म की सुविधा नहीं है, फिर भी अगर मेरे ' सद्कर्मों ' से खुश होकर मेरे स्वर्ग वाले पैकेज में पुनर्जन्म का ऑप्शन दिया गया तो,,,, मैं किसी कीमत पर लेखक होना पसंद नहीं करूंगा ! जिस शायर ने इश्क को "आग का दरिया " बताया है, उसका सर्वे अधूरा है ! वो हिंदी के लेखक से मिल लेता तो गलतफहमी दूर हो जाती ! सच तो ये है कि लेखक के प्रोफेशन में जितनी आग है उसका फिफ्टी पर्सेंट भी आशिकी में नहीं है। मजनू को जीवन में सिर्फ एक लड़की लैला को झेलना पड़ता था ! उसी में उसका द एण्ड आ गया । अगर मजनूं को इश्क की जगह एक उपन्यास छपवाने के लिए दौड़ना पड़ता तो वह अपने आप मर जाता !
                  अपनी लाइफ के इंटरवल तक आते आते मुझे ये आत्मज्ञान प्राप्त हुआ कि ऊपर वाले ने मेरे सारे खुदरा गुनाहों के एवज में हिंदी का लेखक बना दिया है , - जा अपने किए की सजा काट -! ऊपर वाला बहुत अच्छी तरह जानता है कि प्राणी के भाग्य पैकेज में अगर इंजीनियर,डॉक्टर, एक्टर, ट्यूटर, मास्टर,शूटर, मिनिस्टर, कॉरपोरेटर, बिल्डर आदि के जीन्स  डाला गया तो  वो और उसकी फेमिली गुड फील करेगी ! किंतु जिसे मरने से पहले कठोर  कारावास देना हो उस  लेखक के  'डीएनए'  में अच्छे क्वॉलिटी का स्वाभिमान प्लांट कर दो !  बस अब न लेखक के नसीब में  सुकून होगा न उसकी फैमिली के ! लक्ष्मी जी दीवाली  की  रात  उसके मुहल्ले में कदम भी  नहीं  रखेंगी ! उल्लू  लैंड  करने से पहले लक्ष्मी को इनफॉर्म करेगा, - ' इस  मुहल्ले में सरस्वती जी का एक कृपापात्र रहता है , इसलिए लैंड करना बेकार है - आगे चलते हैं '!
            मैंने बहुत से लेखक देखे हैं ! लेखक को झेलना बड़ा मुश्किल काम है!  ईश्वर की तरह लेखक की व्यथा और  वैरायटी भी अनंत है ! मेरे विचार से अपने देश में "लेखक" तीन किस्म के होते हैं ! तीसरे और आखिरी किस्म का लेखक खाते पीते घर का नौनिहाल होता है ! कॉलेज में उसकी क्लास में एक सुदामा जैसा गरीब छात्र है जो रचनाकार है। इस वजह से क्लास की तीनों लड़कियां उस लड़के की ओर आकर्षित हैं ! एक अदद गर्ल फ्रेंड की चाहत में सुविधा भोगी छात्र भी लेखक बन जाता है! लेकिन इसके बावजूद इश्क के बादलों को बगैर मानसून के गुजरते देख वो लेखन छोड़ कर रेस्टोरेंट खोल लेता है! इश्क और लेखन के मुकाबले ये धंधा ज़्यादा पोटेंशियल है ! कभी कभी सुदामा भी अपनी रचना सुनाकर उधार खाने आ जाता है ! ( सुदामा के जाते ही लड़का उसके खाते में पांच रुपए बढ़ा कर लिख लेता है ! )
     इस प्रजाति के एक जबरदस्त लेखक हमारे मित्र हुआ करते थे ! ( वो अब नहीं रहे।) जब घर वाले उनकी शादी ढूंढ रहे थे तभी उन्हें एक  विवाहित महिला से इश्क हो गया ! उन्होंने महिला को भनक भी नहीं लगने दिया कि कोई उसके प्रेम में आकंठ डूबा सूखे तालाब में छलांग मार रहा है! जब दो छोटे बच्चो की मां को पता चला तो वो घबरा गई ! उसने अपने पति को बताया ! पति ने बड़ी नेक सलाह दे डाली, - ' लाला जी ( प्रेमी के बाप )काफ़ी बुजुर्ग हैं, जल्दी मर जाएंगे ! आज कल यही लौंडा दूकान पर बैठता है। सावधानी से ईश्क करना और जब भी दूकान पर जाना बड़े बेटे 'रिंकू'  को  साथ  लेकर जाना -" । ये इश्क तीन महीने में ही दूकान को खोखला कर गया ! लाला जी खुद दुकान पर बैठने लगे तो प्रियसी ने जाना छोड़ दिया। बस 'गम -ए- हिज्र' में आशिक़ लेखक बन गया और दो महीने में ढाई सौ पेज़ का एक उपन्यास लिख डाला ! विपरीत प्रतिभा  देख  घर  वाले घबरा गए ! आखिरकार मर्ज का पटाक्षेप करने की रणनीति बनाई गई और आनन फानन  मेरे मित्र की शादी कर दी गई ! और इस तरह एक "महान लेखक" रेगिस्तान में भटकने से बच गया !
         दूसरे श्रेणी का लेखक 'वानप्रस्थ आश्रम' की बेला में लेखक होना शुरू होता है ! पूरी ज़िंदगी वो लेखन के बारे में सोचता भी नहीं ! कभी साहित्यिक प्रोग्राम में जाता भी नही ! वो बड़ा बिज़नेस मैन हो सकता है, या सरकार में बैठा उच्च स्तरीय अधिकारी ! सेवामुक्त होने के बाद अचानक उसके अंदर प्रतिभा की गूलर फूटती है और लेखन के तमाम भुनगे उसे काटने लगते हैं। वो फ़ौरन अंग्रेज़ी में एक किताब लिखना शुरू कर देता है, और ऐलान करता है कि -' उक्त किताब में सत्तारूढ़ पार्टी के कई मंत्रियों के चेहरे बेनकाब होंगे -'! विपक्ष उस किताब  का  कंक्रीट  चेक  किए बिना हजारों  किताबें ख़रीद  कर  लेखक को बेस्ट सेलर लेखक बना देता है ! ( पढ़ने के बाद पता चलता है कि - जिसको समझा था खमीरा वो "भकासू" निकला -!)
            अव्वल नंबर यानि प्रथम श्रेणी का लेखक 'गॉड गिफ्टेड' लेखक होता है ! उसका डी एन ए अलग होता है! वो लेखन के अलावा कोई और काम करना अपना अपमान समझता है ! उसकी  खसरा खतौनी में खेत कम और खुद्दारी ज़्यादा होती है ! ( खेत उसे मरने नहीं देते और खुददारी उसे जीने नहीं देती !)वो दुर्वासा ऋषि की तरह घर से क्रोध लेकर चलता है ! भेदभाव, झूठ, नफ़रत,असहिष्णुता, सांप्रदायिकता, धर्मांधता, और चाटुकारिता से घोर विरोध के चक्कर में वो मोहल्ले में अकेला पड़ जाता है! वो सत्ता और व्यवस्था का भी कट्टर विरोधी है इसलिए अक्सर घर के कनस्तर में आटा नही होता ! उसे कोई भी सत्ता व्यवस्था रास नहींआती ! अपने देश के अलावा उसे पूरी दुनिया दोषमुक्त नज़र आती है ! मगर उसकी कहकशां में ज्ञान, शब्द सामर्थ, संभावना, सद्भावना और मुहब्बत की भरमार होती है ! उसकी रचनाओं को फ्री में छापने वाले संपादक और प्रकाशक से भी ' वो' सहमत और संतुष्ट नहीं होता ! 
                 प्रथम श्रेणी के लेखक को पहचानें कैसे ? बहुत आसान है, असली लेखक की बीबी हमेशा दुखी नज़र आती है। वो अपनी सभी सहेलियों को नेक सलाह देती रहती है - ' कभी किसी लेखक से शादी मत करना ! आर्टिकल के चैक इतने लेट आते हैं कि एक चैक के इंतज़ार में दो बार खुदकशी कर सकती हो-'! लेखक की मुहल्ले में किसी से पटती नहीं और नौकरी बार बार छूट जाती है ! असली लेखक अपनी प्रशंसा को भी शक की नजर से देखता है ! चौबीस कैरेट शुद्ध लेखक के जीन में कहीं न कहीं नास्तिकता परवरिश पाती है !   वो  इस  दुनियां और दुनियां बनाने वाले से भी बहुत ज़्यादा कन्विंस नहीं होता ! उसे न स्वर्ग की चाहत होती है न दोजख का खौफ ! अलबत्ता उसकी सच्चाई और इंसानियत से खुश ऊपर वाला उसे कई 'आमंत्रित'  संकट से उबारता रहता है ! अपने खुद्दार और बागी स्वभाव के चलते उसके दोस्त सीमित , प्रशंसक और विरोधी असीमित होते हैं ! ज़िंदगी एक इस्तीफे की शक्ल में हमेशा उसकी जेब में होती है !  इसलिए अगले जनम के बारे में उसकी दिली तमन्ना होती है कि,,,,,,,

हमारी रूह को तुम फिर से कैदे जिस्म मत देना !
बड़ी  मुश्किल से काटी है 'सजाए ज़िंदगी' हमने !!

      ( मित्रों कमेंट ज़रूर करें !!      (सुलतान भारती)           
 

Tuesday, 10 August 2021

व्यंग्य ("भारती") आज का "एकलव्य"

                " आज  का एकलव्य "

               महारथी द्रोण ने स्पोर्ट सेक्रेटरी को बुला कर आदेश दिया, - ' धनुर्विद्या के सारे स्टूडेंट को एस.एम.एस भेजो, सुबह सारे लोग लाक्षागृह स्टेडियम के ग्राउँड  टाइम पर पहुंचें ! नो एनी एक्सक्यूज़ !!' सचिव ने पूछ लिया ' ऐसी कौन सी इमरजेंसी है सर ! ओलंपिक को तो अभी तीन साल बाकी हैं !"
   ' इसी सोच के चलते गोल्ड मेडल को तरस जाते हो ! नो आरगूमेंट  इन दिस रिगार्ड ! जो कहा है करो !" इतना कहकर कोच द्रोणाचार्य अपनी कार की ओर चले गए !
उनके जाने के बाद कैंटीन के शेफ ने सेक्रेटरी से पूछा, -'का हो शुकुल ! चीफ साहेब काहे फायर हो रहे हैं ?'
       " ओलंपिक चैंपियन पैदा कर रहे हैं ! कल पांडव और कौरव दोनों खानदान के तीरंदाज़ को ग्राउण्ड में बुलाया है ! लेकिन ये हाथी के दिखाने वाले दांत हैं ! मामला कुछ और है !" 
      " ऐसा क्या"?
" बीस साल से इनका कैरेक्टर स्कैन कर रहा हूं! ये हस्तिनापुर के नहीं सिंहासन के वफादार हैं ! राजनीति में कमजोर विपक्ष का होना किसी कारावास से कम दुखदाई नहीं होता ! द्रोण जी बड़े माहिर खिलाड़ी हैं "!
     " मैं समझा नहीं भइया ?"
" अरे वर्मा जी ! मामला जलेबी की तरह सरल है ! द्रोण जी  पिछले बीस साल से कोच बने हुए हैं - कोऊ होय नृप हमें का हानि -! पांडव और कौरव दोनों एक दूसरे के प्रबल विरोधी, और ये दोनों दलों के पूज्यनीय ! जुए की आड़ में कोई हारे या किसी महिला का चीर हरण हो , ये सत्ता के साथ बने होते हैं ! लगता है मामला कुछ और है! दाल में कुछ काला है वर्मा जी "!
" आप को ऐसा क्यों लगता है "?
  " हम तो बादल की जगह हवा की  नमी परख कर ही मानसून का मिजाज़ परख लेते हैं!"
      " अब आप क्या करेंगे ?"
    " स्टिंग ऑपरेशन ! उनके कांफ्रेंस हॉल में खुफिया कैमरा लगा देता हूं ! कल भांडा फूट जाएगा "!
        लेकिन अगले दिन द्रोण ने प्लान चेंज कर दिया ! स्टेडियम की बजाय धनुर्धर अर्जुन को अपने बंगले पर बुला कर पूछा -' ये एकलव्य कौन है जानते हो ?'
       " क्लस्टर कॉलोनी का कोई दलित धनुर्धारी है जो बांस की तीर धनुष से ओलंपियन होने की प्रैक्टिस कर रहा है"!
     " कभी आमना सामना हुआ है ?"
 " आई डोंट बोदर गुरु जी ! ऐसे छोटे लोगों का तो मैं प्रणाम भी नहीं स्वीकारता ! मामला क्या है ?"
     " मामला गंभीर है, दो साल पहले पड़ोसी राज्य के एक दलित नेता का लेटर लेकर ये लड़का एकलव्य मेरे दफ़तर में आया था ! मैने उसका बायोडाटा और परफॉर्मेंस देखी - गज़ब का धनुर्धारी है ! उसे ओलंपिक टीम में शामिल करने पर एक गोल्ड मेडल पक्का है ! तभी मैंने फैसला कर लिया था कि देश के किसी भी स्टेडियम में उसे घुसने नहीं दूंगा ! एकलव्य तुम्हारे करियर के लिए कोरोना है "!
       " तो अब तक वो हस्तिनापुर में कर क्या रहा है गुरुदेव ? उस पर  'रासुका' लगा कर फ़ौरन अंदर काहे नाहीं करते !"
   ' क्रोध नहीं कौन्तेय ! मानसून बदल गया है- अब किसी दलित के साथ खुले आम दबंगई नहीं कर सकते ! और "कृष्ण" के होते ये संभव नहीं है ! कुछ और करना होगा "!
       " उसकी बस्ती पर बुल्डोजर चलवा दो ! और भी कई ऑप्शन हैं गुरु जी -, डीडीए से सर्कुलर जारी करवाओ या फिर पूरी बस्ती को वनविभाग की संपत्ति घोषित करवा दो "!
        " नहीं हो सकता , तुम्हारा फार्म हाउस भी वहीं पर है - अर्जुन समझा करो "!
         " तो फिर उसे अर्बन नक्सली घोषित कर सीधे एनकाउंटर करवा दो"! 
     " अगर ऐसा हुआ तो मरणासन्न विपक्ष को तुरंत  ऑक्सीजन सिलेंडर मिल जाएगा अर्जुन ! मामले की गंभीरता को - जानम समझा करो - ! सुना है  एकलव्य मेरी मूर्ति लगाकर धनुष विद्या सीख रहा है  ! मेरी परमीशन के बगैर  ?"
      " फिर तो  उस पर सीधा राजद्रोह का केस बनता है ! बगैर किसी मुकदमे के बीस साल के लिए अंदर करवा दो ! या फिर इसका नाम अलकायदा को फंडिंग करने वालों के साथ नत्थी कर दो "!
        " कहा न  कि कृष्ण जी के होते ऐसा कुछ नहीं हो सकता वत्स ! लेकिन ठहरो, एक रास्ता है ! सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी ! एकलव्य ! मैं आ रहा हूं -अब तो तू गया !!"
         " कैसे ?"
   " मैं उससे गुरु दक्षिणा मांगूगा " !  
        " जो चाचा श्री देते हैं उससे पेट नहीं भरता क्या ! ये भीख मांगने की आदत अच्छी नहीं है।"
          " मैं आटा नही अंगूठा मांगने जा रहा हूं वत्स ! अब तुम प्रैक्टिस छोड़ो और किसी बढ़िया प्राइवेट हॉस्पिटल की तलाश करो ! सर्जन अपने फेवर का होना चाहिए!. अंगूठा ऐसा काटे कि चौबीस घंटे में पूरे हाथ में इंफेक्शन हो जाए जिस से तीसरे दिन पूरा हाथ काटना पड़े ! इस बार गुरुदक्षिणा में पूरा हाथ चाहिए !  अपने  सारे दरबारी चैनल कल हॉस्पिटल में होने चाहिए ! कल हमारे फेवरिट चैनल दिन भर  गुरुदक्षिणा में अंगूठा देने वाले दलित शूरवीर की प्रशंसा करते रहें !"
            '' इस विज्ञापन से क्या होगा ?''
    " दूसरे मूर्ख शिष्यों को अंगूठा देने की प्रेरणा मिलेगी , अर्जुन समझा करो "!

       लेकिन,,,,,रातों-रात पांसा पलट गया था ! अगली सुबह जब द्रोण एकलव्य की बस्ती में पहुंचे तो वहां का मंज़र देख कर उनके पैरों के नीचे से जैसे जमीन ही खिसक गई ! जहां कल तक उनकी मूर्ति लगी थी, वहां 'बाबा भीम राव अम्बेडकर     की मूर्ति नज़र आ रही थी और एकलव्य को सम्मानित करते हुए खुद युवराज दुर्योधन दलित जनसभा को संबोधित करते हुए माइक पर ऐलान कर रहे थे , - ' आप लोगोँ ने मेरा जो सम्मान किया  है, मैं अभिभूत हूँ ! आने वाले ओलंपिक में हस्तिनापुर से इस बार ओलंपिक दल के मुखिया होंगे- हमारे  मित्र धनुर्धारी एकलव्य कुमार ! कल से अपने सारे काम छोड़कर शाही कोच गुरु महारथी द्रोणाचार्य  एकलव्य को ट्रेनिंग देने आया  करेंगे ! " 
            सुन कर  गुरु द्रोण को चक्कर आ गया !  मंच पर फूल मालाओं से लदे योगीराज कृष्ण के होंठों पर मुस्कराहट देख कर द्रोणाचार्य को सारा खेल  समझ में  आ गया था  ! 
   समय "चक्र" ने अपना काम कर दिया था !

                                     ( सुलतान भारती )