Saturday, 2 October 2021

''हास्य धारावाहिक"

(  हास्य  धरावाहिक )

      " मारे गए   गुलफाम "
( " सारांश " )       (Synopsis).   
          काल खंड- ( इक्कीसवीं सदी  2021.)

           स्टोरी 

 (  आपदा में अवसर की तलाश में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की रुहेलखंड यूनिवर्सिटी से निकले दो ग्रेजुएट और  जिगरी दोस्त ,,,,, साबिर  और सतबीर ! ! एक इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर, और  दूसरा ग्रेजुएट के अलावा कुश्ती में चैंपियन  और कराटे में ब्लैक बेल्ट ! दोनों किसान के बेटे नौकरी की तलाश में दिल्ली आते हैं ! दोनों गांव की रामलीला में एक्टिंग करते करते भेष बदलने और अभिनय के शौकीन हो चुके हैं ! उन के पास डिग्री के साथ हिम्मत , हिकमत , जोश और हौंसला तो था लेकिन शायद क़िस्मत ब्लैक एंड व्हाइट थी ! लगातार नौ महीने नौकरी के लिए ऑफिसों की परिक्रमा करने के बाद भी जब नौकरी न मिली तो सतवीर जाट की खोपड़ी घूम गई , - उरे कू सुण साबिर !"
          " हां सत्ते !"
  " इब के करेगा भाई "?
    " के करूं  यार ! कल भी नौकरी ढूंढने निकलूंगा !"
" कोल्हू के बैल बण  गे -" सतवीर जाट  बिगड़  गया - " सुबह ते शाम तक नौकरी खातर चक्कर काटते जूते घिस  गे  म्हारे "!
     " तो करें क्या ! गांव लौट चलें "?
" मन्ने के बेरा ( मुझे क्या पता) ! मगर नू लगे अक अपनी
 किस्मत  में  नौकरी  कोन्या ! ''
      " हंबे !" साबिर ने हामी भरी - " घणा धक्का खा लिया सत्ते "! 
        अचानक सतवीर मुस्कराता है, -"  यू दिल्ली ने हमारे गैल बढ़िया न करी ! इब मैं सूद समेत सबै वापस कर द्यूंगा !" 
      " सूद समेत वापस ? ज़रूर तू कुछ गडबड करेगा "!
" इब तक हम नौकरी के पाछे दौड़ते रहे, इब नौकरी बाड़े  हमारे पाच्छे दौड़ांगे "!
 साबिर ने सर पीट लिया, - " जाने अब तुझे क्या फितूर सूझा है "! 
           सतवीर मुस्कराया , - " रामलीला !!"
     " रामलीला ! क्या मतलब ?"
" रामलीला में मैं राम बनता था, अर तू लक्ष्मण "!
      "तो" ?
    " उम्र में तू मेरे ते आठ महीने बड़ो सै, पर जिन्दगी कौ रामलीला  में तू मेरो शागिर्द बनेगो - लक्ष्मण की तरया"!
     साबिर ने अपना सर नोचते हुए पूछा - " पक्का मरवाएगा मुझे ! करना क्या है मेरे बाप ? " 
         " इब तक हम नौकरी ढूंढते थे, इब नौकरी बाड़े मोए ढूंढेंगे ! लोग म्हारे धौरे मोह माया लेकर आंगे अर यहां ते सुकून प्रेम और संतोष लेकर ज्यांगे "!
     "ऐसा कौन सा काम करेगा सत्ते ! मेरे तो कुछ भी पल्ले नहीं पड़ रहा !! ज़रूर किसी बड़ी मुसीबत को न्यौता देने वाला है !! अब मुझे साफ साफ बताओ "!

( और फिर  सतवीर जाट के दिमाग़ से जो  'लाजवाब' प्लान  निकल कर बाहर आया उसे सुनकर इंजीनियर साबिर अली की आंखें फैल गईं ! मगर उस धंधे में कुछ भी गैरकानूनी नहीं था, इसलिए थोडा न नुकर के बाद साबिर भी तैयार हो गया !
      तो,,,, आखिर वो धंधा क्या था ?  दोनों जिगरी दोस्तों ने इस बार  अपने लिए " आपदा" को न्यौता दिया था या   किसी बढ़िया  " अवसर " को !  जानने के लिए देखते रहिए - हास्य, व्यंग्य,सौहार्द और राष्ट्रवाद की चाशनी में सराबोर विख्यात व्यंग्यकार सुलतान भारती की कलम का ताज़ा तिलिस्म- " मारे गए गुलफाम.''!!! बहुत जल्द "डी वी चैनल" पर  !!)

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