इस "तंज" समंदर की लहर दूर तलक है!
आज़ भी मुझे बहुत अच्छी तरह वह दिन याद है जब मैं नई दिल्ली में सुलतान भारती से पहली बार मिला था़ ! जिस अंदाज़ में मेरे परिचित ने मुझसे उनका ज़िक्र किया था, मेरे मस्तिष्क में उनकी छवि एक विराट शख्सियत के कद्दावर साहित्यकार की थी ! मैं नया नया गांव से आया था और थोड़ा घबराया हुआ भी था,पर मिला तो पांच फुट छे इंच के सुलतान भारती को देख कर मेरा उखड़ा हुआ कॉन्फिडेंस वापस आ गया ! लेकिन जब बातचीत शुरू हुई और दस मिनट में अपनेपन की जो बयार हमारे बीच बही कि मुझे यकीन करना मुश्किल हो गया कि मैं उनसे पहली बार मिल रहा हूं!
उनके लहजे में अवध की खुशबू है और आम बातचीत में व्यंग्य की बयार ! वो दिन और आज़,,,,,, हमारे संबंध युवा होते गए और हमारे रिश्तों के आधार में कंक्रीट बढ़ता ही चला गया ।
मैंने अपने पब्लिकेशन से उनकी चार किताबें प्रकाशित की ! हिंदी,उर्दू, अंग्रेजी और संस्कृत का ज्ञान रखने वाले भारती जी का शब्दकोश बेहद समृद्ध और खूबसूरत है ! उनकी शैली सबसे अलग है और उस पर किसी एक भाषा का आधिपत्य नही है ! उपन्यासकार सुलतान भारती - व्यंग्यकार सुलतान भारती से बिलकुल अलग नजर आते हैं ! हालांकि व्यंग्यकार सुलतान भारती का नाम, काम और कद उपन्यासकार सुलतान भारती से बहुत बड़ा है , फिर भी भारती जी आज भी खुद को उपन्यासकार कहलवाना ज़्यादा पसंद करते हैं।
आज वो व्यंग्य लेखन में एक सफल, सक्षम और सशक्त शख्सियत हैं ! देश के लगभग सभी पत्र पत्रिकाओं में सामयिक विषय और मुद्दों पर उनका तीखा व्यंग्य प्रकाशित होता रहता है ! हद से ज्यादा स्वाभिमान उन्हें किसी भी परिस्थिति में झुकने नहीं देता , और शायद इसी लिए वो लेखकों के किसी गैंग में आज तक शामिल भी नहीं हुए ! बड़े निर्भीक व्यंग्यकार हैं, और इसका सबूत उनके व्यंग्य आलेख में नजर आ जाता है !
वो हर हफ्ते अपने ब्लॉग पर एक व्यंग्य डालते हैं, और हर साल एक उपन्यास लिखते हैं ! " बही खाता" उनका तीसरा और बिलकुल ताज़ा व्यंग्य संग्रह है ! उनके शब्दों में व्यंग्य - " विषम परिस्थितियों में सच लिखने के साहस का नाम है ! व्यवस्था के विरोध की साहित्यिक अभिव्यक्ति है !! समाज के भ्रष्ट और छुपे सफेदपोशो के चरित्र का " बही खाता" है -" !!!
" बही खाता" व्यंग्य संग्रह पढ़ कर पाठक खुद यकीन कर लेंगे कि "भारती" जी के चाहने वाले क्यों उन्हें व्यंग्य का "सुलतान" कहते हैं ! 'वीएलएमएस' प्रकाशन "बही खाता" को प्रकाशित कर एक बार फिर खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा है!
नित्यानंद तिवारी
( प्रकाशक )
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