Tuesday, 12 October 2021

(व्यंग्य "भारती") "क्या करूं, शक्ल ही ऐसी है "

(व्यंग्य "भारती"

               "क्या करूं, शक्ल ही ऐसी है !!" 

          मैं इस मुआमले में  कुछ नहीं कर सकता ! कहीं ज़रूर कुंडली में भारी उलटफेर हो गया जो मैं इस शक्ल सूरत के साथ बीसवीं सदी में पैदा हो गया ! मुझे तो हजारों साल पहले वाले सतयुग में पैदा होना था जब
आदमी को आदमी पहचानता था ! खामखा केजरीवाल के शासन में जीने के लिए भेज दिया जब आदमी को डोमिसाइल से पहचाना जाएगा ! ऊपर से आदमियत भरा चेहरा ! आदमी बनाकर पैदा करना ही था़ तो कम से कम चेहरा तो बदल देते ! भेड़िया, हाइना, शेर, तेंदुआ, जगुआर, नाग, कोबरा या  ब्लैक मोंबा का चेहरा दे देते ! मानव शरीर के साथ  इंसानी सूरत और सीरत  देकर प्रभु तूने अच्छा नहीं किया ! दुनियां बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई,,,,! या फिर इंसान का जिस्म देकर अजगर और कोबरा का कैरेक्टर दे देते ! (जैसा कि आजकल समाज में नज़र आ रहा है !) खुद को सूरत सीरत और शरीर से इंसान पाकर आज मैं ठगा सा महसूस कर रहा हूं ! ऐसी फीलिंग हो रही है गोया कैटफिश से भरे तालाब में किसी ज़िंदा मुर्गे को फेंक  दिया गया हो !
       वो गाना तो आपने सुना होगा, - अच्छी सूरत भी क्या बुरी शै है, जिसने डाली गलत नज़र डाली-! खैर इस कैटेगरी का मैं इकलौता पीस नहीं हूं - एक ढूंढो हज़र  मिलते हैं - ! मैं चेहरे के मासूमियत की बात कर रहा हूं ! कुछ लोगों का चेहरा तो इंसान का होता है लेकिन मासूमियत खरगोश की मिलती है ! ऐसे प्राणी कदम कदम पर अंगौछे की तरह इस्तेमाल होते हैं ! हर कोई उन्हें अंधे की गाय समझ कर  'दुहने ' की घात में रहता है ! कुछ लोग तो शक्ल से इतने सज्जन होते हैं कि कोई भी उनके कुर्ते में नाक पोंछ कर भाग जाए ! ऐसे  'शराफत अली' घर और बाहर दोनों जगह  ऑक्सीजन की कमी महसूस करते हैं ! त्योहार के दिन भी असंतुष्ट रहते हैं!
              कुछ लोग ऐसा फेस लेकर पैदा होते हैं कि गलती न होने पर भी डांट खाते हैं ! समाज के शातिर लोग अपने गुनाह और गलतियों का  'अंडा ' उनके घोंसले में रख देते हैं ! 'शराफत' अली को बुरा लगता है, गुस्सा भी आता है लेकिन मुंह से आवाज़ नहीं आती ! लिहाज़ में मना नहीं कर पाते ! ये जो संकोच और लिहाज़ होता है न, इंसान को बहुत नुकसान पहुंचाता है ! ये  'सतोगुण ' कुदरत उन्हें ही देती है जिन्हें सतयुग में आकर भी जिंदगी की सजा काटनी है ! चाल, चरित्र और चेहरा ऐसा लेकर कलियुग में पैदा हो गए जैसे सतयुग में रजिस्टर बदल गया हो ! घर से ऑफिस तक 'ततैया'  पीछा नहीं छोड़ती !  'सज्जन राम' को इन ततइयों पर गुस्सा बहुत आता है,पर उन्हें लड़ने का तजुर्बा नहीं है ! जहां तक लड़ने और पलट कर जवाब देने का सवाल है, वो सारा आक्रोश और गुस्सा बीवी बच्चों पर निकाल कर उधारी चुका देते हैं!
           ऐसे शराफत अली और ' सज्जन दास ' दुनियां में जिंदगी का सलीब ढोने के लिए भेजे जाते हैं ! ये बेशक अपने परिवार वालों के लिए ज्यादा काम के ना हों, पर दुनियां वालों के लिए बड़े उपयोगी होते हैं ! लोग इन्हें मछली का चारा समझ कर तरह तरह से इस्तेमाल करते हैं ! शहर में इन्हीं  के खून पसीने की कमाई का पैसा ' पीयरलेस ' में डूबता है ! इन्हीं की शरीफ़ बीवी के गहने  साफ़ करने वाले घर से  "साफ़" कर जाते हैं ! इनसे काम लेकर न मालिक पैसा देता है न ठेकेदार ! गांव में इन्हीं के नाम से सरपंच लोन ले लेता है ! दूर दराज भट्ठों पर इन्हीं का परिवार बंधुआ मजदूर बनता है ! शहर से गांव तक - 'अबला चेहरा' हाय तुम्हारी यही कहानी -! मरने से पहले चेहरा पीछा नहीं छोड़ता ! कितना मल्टी पर्पज चेहरा है, - दुनियां भर के चोर उचक्के ठग बदमाश और लूटेरों के काम आता है !
                 ऐसे शराफ़त अली स्वभाव से दयालु और आस्था से घोर धर्मालु होते हैं ! पाप से एक किलोमीटर दूर रहने वाले ऐसे जीव को नर्क से घनघोर डर लगता है! उनकी खुरदरी ज़िंदगी में जन्नत के प्रति काफी सॉफ्ट कॉर्नर होता है ! उनके चेहरे से धर्माधिकारियों को काफ़ी सारी 'राहत' मिलती है! ये पेट काट कर किश्तों में जन्नत का इंटालमेंट देते रहते हैं ! चेहरे  का खामियाजा तो देना ही है , - जब तक है जान , जाने जहान मैं नाचूंगा,,,,! इनका चेहरा अपने आप में इंसानियत का स्प्रे मारता साइन बोर्ड होता है, इसलिए इन्हें ' खर दूषण ' आराम से ढूंढ लेते हैं ! पूरी दुनियां इन्हें लैब में काम आने वाली 'परखनली' समझती है ! कई बार 'शराफत अली' को अपने चेहरे पर शदीद गुस्सा आया, पर चेहरा एक्सचेंज नहीं हो सकता ! इन्सानियत भरा चेहरा ज़िंदगी के लिए अभिशाप हो गया ! आज 'शराफ़त 'और 'सज्जन राम ' के  रोए नहीं चुक रहा , ' मेरे जीन्स बच्चों के दुर्भाग्य न बन जाएं ! मैं इस युग के लिए आउट ऑफ डेट हो चुका हूं ! बच्चों में ज़माने के लिहाज से थोड़ा भेड़िए वाला जीन्स आ जाए तो,,,,,, बात बन जाए -' !
                 
चेहरे को लेकर एक गीत है, - दिल को देखो चेहरा न देखो -! अबे जो सामने है वही तो देखेंगे ! पसलियों  के पीछे  छुपे  दिल को तो सिर्फ़ डॉक्टर देखता है ! दिल के मारों को दुनियां पूछती है, (उसमें किक है!) चेहरे से मार खाए इंसान को कोई नहीं पूछता !   मेरे गांव में एक जमालुद्दीन हैं, चेहरे से ही कबूतर की तरह मासूम हैं ! कोई उन्हें संजीदगी से नहीं लेता ! मैंने देखा ही नहीं कि कभी किसी ने उन्हें ' जमालुद्दीन ' कहकर पुकारा हो ! कोई जमालू तो कोई जकालू कहता है, कई बच्चे कचालू कह कर पुकारते हैं ! गरीब और शरीफ़ का नाम लोग रोटी की तरह तोड़ कर इस्तेमाल करते हैं ! किस्मत की सितमजरी देखिए कि तीन बेटियों के बाप हैं, बेटा एक भी नहीं ! बुढ़ापा चल रहा है, पसंद नापसंद की सीमा रेखा कब की मिट चुकी है ! ख़्वाब में अब कोई इंद्रधनुष नहीं उगता ! हंसी का पोखर मुस्कराहट की हद तक सूख गया है । पिछली गर्मियों में मैंने उन्हें बीवी से डांट खाते देखा था ! पता चला कि दस दिन सड़क निर्माण में मजदूरी की थी , मांगने पर ठेकेदार ने डांट कर भगा दिया ! लगातार टूट रहा आदमी अपना हक भी दमदारी के साथ  कहां मांग पाता है !     

  जब मायूसी हद पार करती है तो " जमालू" अपनी बेहद खस्ताहाल सायकल को खूंटी से उतार कर साफ करने लगते हैं ! शायद दोनों के दर्द की शक्लें एक जैसी हो चुकी हैं !!

 मित्रों   कैसा लगा व्यंग्य !  ( सुलतान "भारती" )
           

1 comment:

  1. Khatarnak had tak sachcha aur teekha vyang. Itna teekha ki har pathak ko kuchh sochne par majboor kar de.saadhuvaad Bharti ji.

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