" परमारथ के कारने साधुन धरा शरीर" !
मुझे भी अब तक नहीं मालूम था कि साधुओं ने किस लिए शरीर धारण किया है ! अब जाकर पता चला कि साधुगण 'परमार्थ' के ब्रांड एंबेसडर बन कर पृथ्वी पर आए हैं ! पिछले कई दशक से वो परमार्थ कर रहे हैं और जनता उसका "फल" खा रही है ! ( एक प्रसिद्ध साधु के चेले ने तो गुरु के "परमार्थ" को हड़पने के लिए अभी हाल ही में अपने गुरू का ही ' राम नाम सत्य ' कर डाला !) कुछ कॉरपोरेट साधु तो नेताओं के वोट बैंक तैयार करते करते सत्ता के " गॉड फादर" हो गए ! किंतु जब हर दल के अपने अपने गॉड फादर होने लगे तो परमार्थ का लोड बढ़ गया ! शिक्षित और अशिक्षित दोनों तारणहार के आश्रम में होने वाले 'परमार्थ ' से परिचित और मौन थे ! सत्ता पर आस्था का बेताल सवार था ! ऐसे में "साधुन" को 'सद्कर्म' करने से भला कोई कैसे रोक सकता था ! किंतु घनघोर कलियुग मे सतयुग की 'शीरीनी' बांट रहे इन "साधुन" पर तब गाज गिरी जब भाजपा सत्ता में आ गई !
भाजपा के सत्ता में आते ही कई सेवन स्टार बाबाओं के खाते में जमा 'परमार्थ ' की जांच शुरु हो गई! वाणप्रस्थ आश्रम की अंतिम सीढ़ी पर खड़े स्वर्णभस्म खा रहे साधु जेल जाने लगे ! "राम" और "रहीम" दोनों के चरित्र पर कालिख पोत रहे अवतारी पुरूष को उनके 'परमार्थ' समेत जेल भेज दिया गया ! कई साधु देश छोड़ कर निकल भागे और विदेश में आश्रम खोल कर 'परमार्थ ' निर्माण में लग गए ! एक ऐसी पार्टी सत्ता में आई थी जिसमें ओरिजनल साधु थे, अत: डुप्लीकेट साधु और उनके बुरे परमार्थ के "अच्छे" दिन शुरू हो गए थे ! रोज कहीं न कहीं से खबरें आने लगीं कि - ' जो बेचते थे दर्दे दवाए दिल, वो दुकान अपनी बढ़ा गए -!'
परमार्थ के लिए साधु ही परमिट का हकदार है! आम आदमी का किया हुआ परमार्थ शायद मार्केट में नहीं चलता ! सज्जन आदमी के ' परमार्थ ' को मुहल्ले में भी क्रेडिट नहीं मिलता और स्वामी नित्यानंद का "परमार्थ" देश से भाग जाने पर भी ब्रेकिंग न्यूज में आता है ! साधु सन्त चाहते हैं कि वो जो भी करें उसे 'परमारथ' माना जाए ! सांसारिक दृष्टि से देखने पर भले वो लुच्चई नज़र आये, पर वो परमार्थ है ! उसे अन्यथा नहीं लेना चाहिए ! परमार्थ नाना प्रकार के हो सकते हैं ! संत चाहे नंगा होकर मालिश कराए या बलात्कार करे , वो परमार्थ की कटेगरी में ही आएगा ! संत समागम में आईं युवा मलिलाओं पर वो टॉर्च की स्पॉटलाइट डाले या फिर बुरी नजर ! उसके खिलाफ आवाज उठाना चरित्रहीनता और व्यभिचार में आता है ! संत का जन्म नहीं होता बल्कि परमार्थ के लिए वो मानव शरीर धारण करता है ! जेल जाकर भी उसका चाल, चरित्र,और चिंतन "परमारथ" में लगा होता है !
धर्म कोई भी हो, महिलाएं सबसे पहले अवतारी पुरुषों के संपर्क और सम्मोहन में आती हैं ! इसके बाद परमार्थ शुरु हो जाता है ! बाबा की झकाझक सफेद दाढ़ी से एक मोहिनी कंटिया बाहर आती है और आस्था के साथ 'परमार्थ' शुरु हो जाता है ! धीरे धीरे घर के मर्द भी विवेक की चिलम पीना शुरू कर देते हैं ! 'परसाद' और 'परमार्थ' बढ़ता चला जाता है , काम क्रोध मद लोभ से मुक्ति मिलनी शुरू हो जाती है! प्राणी को मृत्यु लोक में रहते हुए भी देवलोक की अनुभूति होने लगती है ! सद्कर्म की कंटिया में फंसा एक जीव मोहल्ले की कई 'मछलियों' को मोक्ष दिलाने का परमार्थ करता है !
न "साधु जन" में कोई कमी आई है न 'परमार्थ' में ! यूपी के सुल्तानपुर स्थित मेरे गांव में एक दशक पहले भूईसर ( मुंबई) से एक सैयद बाबा पधारे ! वो सर से लेकर पैर तक परमार्थ में डूबे हुए थे ! भक्त और बाबा की शोहरत इन्फेक्शन की रफ्तार से फैली ! भक्तों में नर नारी दोनों की प्रचुरता । बाबा मुस्लिम और हिंदू दोनों के चहेते थे ! बाबा के प्रचारक बाबा को काम क्रोध मद लोभ से कई किलोमीटर दूर बताते थे ! कुछ विरोधी भक्तों ने दबे स्वर में बताया कि- बाबा के पैर का दर्द युवा महिलाओं के दबाने से ही दूर होता है-! यही नहीं, बल्कि ऐसे संवेदनशील अवसर पर पुरुष भक्तों के दर्शन मात्र से बाबा का पैर दर्द बढ़ जाता था ! पारिवारिक और सांसारिक मोह माया से मुक्त पैंसठ वर्षीय बाबा अविवाहित बताए जाते थे ! विगत वर्ष सैय्यद बाबा अचानक मुंबई प्रवास में "स्वर्गीय" हो गए ! उन्हें दफनाने के लिए पैतृक गांव गोंडा लाया गया ! उनकी मय्यत में गए भक्त ये देख कर सदमे में आ गए कि मोह माया से परे होने का ढोंग करने वाले सय्यद बाबा शादीशुदा और बाल बच्चेदार थे ! जिस जमीन पर दफनाए गए ,वो भी एक विवादित भूखंड था ! स्वर्गीय होकर भी - माया तू न गई मेरे मन से - !
ये जो पर्मारथ है न ! कभी कभी ठग और लुटेरे भी आजमाने लगते हैं ! उम्र के इंटरवल तक अविवाहित रहे एक साधु को अचानक गृहस्थ आश्रम के प्रति मोह उत्पन्न हुआ ! कई युवकों ने मिलकर एक कमसिन लड़के को साड़ी में दूर बिठाकर साधु से कहा, -' इस लड़की को पति बहुत मारता है , ससुराल से भाग आई है ! गरीब की बेटी है आपके साथ सुखी रहेगी -' ! कामिनी मोह में साधु अंधे हो चुके थे। मंदिर के सामने वरमाला पड़ी और रात में डकैती ! साधु को नशीली चीज पिला कर हनीमून से पहले ही, जीवन भर का जमा किया 'परमार्थ' , समेट कर दुल्हन गैंग के साथ फरार हो चुकी थी ! होश में आने पर बाबा महीनों अंगारों पर करवटें बदलते रहे!
सोशल मीडिया पर ऐसे ठगों का पूरा टिड्डी दल मौजूद है जो - साधून धरा शरीर - के गेटअप में कुछ यूं जाल बिछाते हैं, - 'कोई गारंटी नहीं, कोई डॉक्यूमेंट नहीं ! पांच मिनट में फटाफट लोन लीजिए -'! ( इस सादगी में कौन न फंस जाए ऐ खुदा ! लगता है कि इनकम टैक्स विभाग की रेड से बचने के लिए दानवीर हातिमताई नोट की बोरी फेंकना चाहते हैं !) साहित्यकारों को फंसान के लिए अलग तरह की कंटिया है, - 'क्या आप लेखक हैं और अपनी किताब को दुनियां के 175 देशों में देखना चाहते हैं ? यदि 'हां ' तो हमारे 'परमारथ प्रकाशन ' से किताब छपवाएं और दुनियां के अगले बेस्ट सेलर राइटर बने - '! ( पूरे शहर के प्रकाशकों द्वारा ठुकराई गई रचना को लेकर रचनाकार "बेस्ट सेलर" होने के लिए फौरन व्हेल के मुंह में छलांग मार देता है !)
परमार्थ में लगा "साधुन धरा शरीर" कलियुग में खूब फल फूल रहा है और सचमुच के परमार्थ में सब कुछ गवां कर संत खुद को सीख दे रहा है - " नेकी कर और जूते खा " !!
( सुलतान भारती )।
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