" लक्ष्मी मैया लिफ्ट करा दे"
मुझे उल्लू भले पसंद हों पर उल्लू को मैं पसंद नहीं हूं ! हर बार दीवाली आने से पहले मुझे बड़ी उम्मीद होती है कि इस बार उल्लू मेरी रिक्वेस्ट फाइल आगे फॉरवर्ड कर देगा , पर पता चला कि - कारवां निकल गया गुबार देखते रहे! मोहल्ले में मैं फिर आत्मनिर्भर होने से रह गया ! उधर हर साल की तरह इस साल भी "पांचू सेठ" ने दीवाली की रात मे जुआ खेला और अगले दिन गरीबों की झुग्गियों में जाकर मिठाई बांटी - रिंद के रिंद रहे हाथ से जन्नत न गई -!
तो जनाब मैं बता रहा था कि उल्लू मुझे बिल्कुल पसंद नहीं करता, उसकी वजह से हर साल मेरिट सूची में होते हुए भी मै लिफ्ट होते होते रह जाता हूं । मुझे ऐसा लगता है कि उल्लू हर बार मेरी फाइल पर 'डाउटफुल' लिख देता है ! लक्ष्मी जी पूछती होंगी, - " डाउट फुल ! कौन है ये ?"
" इसका नाम सुलतान भारती है, बड़ा खतरनाक आदमी है " !!
" कैसे ?"
" लेखक है ! आपकी धुर विरोधी सरस्वती जी के खेमे का आदमी है !"
" कभी मेरे बारे में भी कुछ लिखा है ?"
"लिखता तो मैं इसकी फाइल पर डाऊटफुल कभी न लिखता ,- ' उल्लू ने मेरी फाइल हटाते हुए कहा होगा ,-' ये आदमी हमेशा सरस्वती जी की तारीफ़ लिखता रहता है !"
इतना कहकर उल्लू ने मेरी फाइल की जगह ट्रैफिक पुलिस के एक दरोगा की फाइल रखते हुए कहा होगा , - " इस पर कृपा कर दें ! हर वक्त इसकी जबान पर एक ही नाम रहता है,- श्री लक्ष्मी जी सदा सहाय - !"
" क्या चाहता है"?
" उसी जनसेवा में अपने दोनों बेटों को लाना चाहता है , जिसमें खुद लगा है !"
इस तरह हर साल दीवाली पर उल्लू जीत जाता है और मैं आत्मनिर्भर होते होते रह जाता हूं !
पिछली दीवाली पर मेरी फाइल अटका कर मुझे चिढ़ाने के लिए अगले दिन उल्लू मेरे घर की मुंडेर पर आकर बोलने लगा । उसकी आवाज़ सुन कर मैं बाहर आया ! उल्लू मुझे देखते ही जानबूझ कर गाने लगा ,- " जानें फिर क्यूं जलाती है दुनियां मुझे "!
बिलकुल ताजा सवेरा था, नीम के पेड़ पर ओस की बूंदें तक अलसाई नज़र आ रही थीं! अन्दर के गुस्से का लावा पीते हुए मैं मुस्कराया , " सुबह सुबह तुम्हारा मनहूस दीदार ! मौला जानें क्या होगा आगे "!
"बधाई हो, तुम्हारी फाइल रिजेक्ट हो गई है ! तुम लिखना छोड़ कर पकौड़े क्यों नहीं बेचते !"
मैं गुस्से में कोयले की तरह सुलग रहा था, फिर भी आग पीते हुए मुस्कराया, -" घटिया प्राणी की तुच्छ सोच ! जाने लक्ष्मी जी तेरे जैसे पनौती को कैसे झेल रही हैं !!"
" अंदर से तुम कितना सुलग रहे हो, इस चीज़ का मुझे पूरा अंदाज़ा है ! अगर इस वक्त कोई तुम्हारे श्रीमुख में थर्मोमीटर रख दे तो वो फट जाएगा ! ख़ैर - भाभी जी घर पर हैं ?"
" कौन भाभी! किसकी भाभी ?"
" तुम्हारी बीवी, मेरी भाभी ! मुझे बड़ी सहानुभूति है भाभी जी से ! एक लेखक की बीवी होना किसी सज़ा
से कम नहीं है ! एक सुन्दर, सुशील और संस्कारी महिला ने भला तुम्हारे अंदर क्या देखा था ?"
" अब तुम मेरे घर के मामले में दख़ल दे रहे हो , औकात में रहो !!"
" तुम्हें शुगर है, गुस्सा अफोर्ड नहीं कर पाओगे ! बाई द वे - तुम लेखकों की एक आदत मुझे कतई पसंद नहीं है "!
" क्या ?"
" तुम लोगों को पूरी दुनियां पर गुस्सा आता है! सारी व्यवस्था निरंकुश और भ्रष्ट नज़र आती है ! हर स्वस्थ गेहूं के अंदर घुन ढूंढने की बीमारी है! वर्तमान की अपेक्षा तुम्हें हर बार अतीत कुछ ज़्यादा सुनहरा नज़र आता है ! भाभी जी की कसम ! कल्पनाओं में जीना छोड़ दो "!
" कल्पना की बात तेरे जैसे उल्लू की समझ में कभी नहीं आयेगी ! 'कल्पना ' जीवंत और सक्रिय मानसिकता का प्रमाण है, कल्पना - हर निर्माण का भ्रूण है और ' कल्पना ' ही प्रत्येक आविष्कार के जन्म लेने की प्रारंभिक प्रक्रिया है ! लेकिन ये गूढ़ बातें तेरे जैसे मूढ़ के भेजे में कहां आयेंगी "!
" अपनी पीठ इतनी मत ठोंको की स्पाइनल कॉर्ड पर असर पड़े ! कल्पना के कोलंबस , एक हकीकत और सुन लो ! सुखद कल्पना अंतत: बहुत तकलीफ देती हैं ! खैर - भाभी जी घर पर हैं ?"
" क्यों ?"
" ईद पर उन्होंने मुझे स्पेशल ड्रायफ्रूट वाली सूतफेनी खिलाई थी !"
" बदले में तूने मेरी फाइल रिजेक्ट करवा दिया "!
अचानक उल्लू गंभीर हो गया, - ' एक्चुअली फाइल देखते ही मुझे तुम्हारा चेहरा याद आ जाता है ! विरोधी खेमे के आदमी की जनसेवा मैं नहीं कर सकता ! अगली दीवाली पर अपनी फाइल पर तुम भाभी जी का नाम लिख देना "!
" उससे क्या होगा ?"
' फाइल सैंक्शन हो जायेगी ! और हां, तुम्हारे नाम से एक कविता लिखी है, अगली दीवाली पर फाइल में सबसे ऊपर इसे लिख देना ! फाइल खोलते ही लक्ष्मी जी साइन कर देंगी ! कविता सुनो, बीच में टोकना मत "!
और उल्लू शुरू हो गया ,,,,,,
"लक्ष्मी मैया लिफ्ट करा दे!
कोठी बंगला गिफ्ट करा दे !!
संगम विहार से ऊब गया हूं !
नॉर्थ ब्लॉक में शिफ्ट करा दे!! लक्ष्मी मैया,,,,,
रामराज का चोला पहने !
रावण को वनवास दिला दे !!,,,,,,,,,,, लक्ष्मी मैया,,,,,,
प्यार मुहब्बत भाईचारा !
घर घर की पहचान बना दे!!,,,,,,,,,, लक्ष्मी मैया,,,,,,,,,
सूखे ओंठ सिसकती आंखें!
झोपड़ियों में दिए जला दे !!,,,,,,,,,, लक्ष्मी मैया,,,,,,,,
इस दीवाली बस इतना ही !
निर्धन को "सुलतान"बना दे !!
लक्मी मैया लिफ्ट करा दे !!"
कविता सुना कर "उलूकराज" उड़ गया और मैं तब से सोच रहा हूं कि बुद्धिजीवियों को आख़र कब तक ये उल्लू ओवरटेक करते रहेंगे!!
(सुलतान भारती)
बेहतरीन
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है भारती जी , सुबह सुबह पढ़ कर मज़ा आ गया।
ReplyDeleteबहुत सुंदर व्यंग्य । वाह