"अगले जनम मोहे "लेखक" न कीजो'
आज मैं शपथ लेता हूं कि जो कहूंगा सच कहूंगा - सच के अलावा ( ज़माने का लिहाज़ करते हुए ) थोडा बहुत झूठ भी बोलूंगा ! झूठ के बगैर सरवाइव कैसे करूंगा ! वैसे मेरे मज़हब में पुनर्जन्म की सुविधा नहीं है, फिर भी अगर मेरे ' सद्कर्मों ' से खुश होकर मेरे स्वर्ग वाले पैकेज में पुनर्जन्म का ऑप्शन दिया गया तो,,,, मैं किसी कीमत पर लेखक होना पसंद नहीं करूंगा ! जिस शायर ने इश्क को "आग का दरिया " बताया है, उसका सर्वे अधूरा है ! वो हिंदी के लेखक से मिल लेता तो गलतफहमी दूर हो जाती ! सच तो ये है कि लेखक के प्रोफेशन में जितनी आग है उसका फिफ्टी पर्सेंट भी आशिकी में नहीं है। मजनू को जीवन में सिर्फ एक लड़की लैला को झेलना पड़ता था ! उसी में उसका द एण्ड आ गया । अगर मजनूं को इश्क की जगह एक उपन्यास छपवाने के लिए दौड़ना पड़ता तो वह अपने आप मर जाता !
अपनी लाइफ के इंटरवल तक आते आते मुझे ये आत्मज्ञान प्राप्त हुआ कि ऊपर वाले ने मेरे सारे खुदरा गुनाहों के एवज में हिंदी का लेखक बना दिया है , - जा अपने किए की सजा काट -! ऊपर वाला बहुत अच्छी तरह जानता है कि प्राणी के भाग्य पैकेज में अगर इंजीनियर,डॉक्टर, एक्टर, ट्यूटर, मास्टर,शूटर, मिनिस्टर, कॉरपोरेटर, बिल्डर आदि के जीन्स डाला गया तो वो और उसकी फेमिली गुड फील करेगी ! किंतु जिसे मरने से पहले कठोर कारावास देना हो उस लेखक के 'डीएनए' में अच्छे क्वॉलिटी का स्वाभिमान प्लांट कर दो ! बस अब न लेखक के नसीब में सुकून होगा न उसकी फैमिली के ! लक्ष्मी जी दीवाली की रात उसके मुहल्ले में कदम भी नहीं रखेंगी ! उल्लू लैंड करने से पहले लक्ष्मी को इनफॉर्म करेगा, - ' इस मुहल्ले में सरस्वती जी का एक कृपापात्र रहता है , इसलिए लैंड करना बेकार है - आगे चलते हैं '!
मैंने बहुत से लेखक देखे हैं ! लेखक को झेलना बड़ा मुश्किल काम है! ईश्वर की तरह लेखक की व्यथा और वैरायटी भी अनंत है ! मेरे विचार से अपने देश में "लेखक" तीन किस्म के होते हैं ! तीसरे और आखिरी किस्म का लेखक खाते पीते घर का नौनिहाल होता है ! कॉलेज में उसकी क्लास में एक सुदामा जैसा गरीब छात्र है जो रचनाकार है। इस वजह से क्लास की तीनों लड़कियां उस लड़के की ओर आकर्षित हैं ! एक अदद गर्ल फ्रेंड की चाहत में सुविधा भोगी छात्र भी लेखक बन जाता है! लेकिन इसके बावजूद इश्क के बादलों को बगैर मानसून के गुजरते देख वो लेखन छोड़ कर रेस्टोरेंट खोल लेता है! इश्क और लेखन के मुकाबले ये धंधा ज़्यादा पोटेंशियल है ! कभी कभी सुदामा भी अपनी रचना सुनाकर उधार खाने आ जाता है ! ( सुदामा के जाते ही लड़का उसके खाते में पांच रुपए बढ़ा कर लिख लेता है ! )
इस प्रजाति के एक जबरदस्त लेखक हमारे मित्र हुआ करते थे ! ( वो अब नहीं रहे।) जब घर वाले उनकी शादी ढूंढ रहे थे तभी उन्हें एक विवाहित महिला से इश्क हो गया ! उन्होंने महिला को भनक भी नहीं लगने दिया कि कोई उसके प्रेम में आकंठ डूबा सूखे तालाब में छलांग मार रहा है! जब दो छोटे बच्चो की मां को पता चला तो वो घबरा गई ! उसने अपने पति को बताया ! पति ने बड़ी नेक सलाह दे डाली, - ' लाला जी ( प्रेमी के बाप )काफ़ी बुजुर्ग हैं, जल्दी मर जाएंगे ! आज कल यही लौंडा दूकान पर बैठता है। सावधानी से ईश्क करना और जब भी दूकान पर जाना बड़े बेटे 'रिंकू' को साथ लेकर जाना -" । ये इश्क तीन महीने में ही दूकान को खोखला कर गया ! लाला जी खुद दुकान पर बैठने लगे तो प्रियसी ने जाना छोड़ दिया। बस 'गम -ए- हिज्र' में आशिक़ लेखक बन गया और दो महीने में ढाई सौ पेज़ का एक उपन्यास लिख डाला ! विपरीत प्रतिभा देख घर वाले घबरा गए ! आखिरकार मर्ज का पटाक्षेप करने की रणनीति बनाई गई और आनन फानन मेरे मित्र की शादी कर दी गई ! और इस तरह एक "महान लेखक" रेगिस्तान में भटकने से बच गया !
दूसरे श्रेणी का लेखक 'वानप्रस्थ आश्रम' की बेला में लेखक होना शुरू होता है ! पूरी ज़िंदगी वो लेखन के बारे में सोचता भी नहीं ! कभी साहित्यिक प्रोग्राम में जाता भी नही ! वो बड़ा बिज़नेस मैन हो सकता है, या सरकार में बैठा उच्च स्तरीय अधिकारी ! सेवामुक्त होने के बाद अचानक उसके अंदर प्रतिभा की गूलर फूटती है और लेखन के तमाम भुनगे उसे काटने लगते हैं। वो फ़ौरन अंग्रेज़ी में एक किताब लिखना शुरू कर देता है, और ऐलान करता है कि -' उक्त किताब में सत्तारूढ़ पार्टी के कई मंत्रियों के चेहरे बेनकाब होंगे -'! विपक्ष उस किताब का कंक्रीट चेक किए बिना हजारों किताबें ख़रीद कर लेखक को बेस्ट सेलर लेखक बना देता है ! ( पढ़ने के बाद पता चलता है कि - जिसको समझा था खमीरा वो "भकासू" निकला -!)
अव्वल नंबर यानि प्रथम श्रेणी का लेखक 'गॉड गिफ्टेड' लेखक होता है ! उसका डी एन ए अलग होता है! वो लेखन के अलावा कोई और काम करना अपना अपमान समझता है ! उसकी खसरा खतौनी में खेत कम और खुद्दारी ज़्यादा होती है ! ( खेत उसे मरने नहीं देते और खुददारी उसे जीने नहीं देती !)वो दुर्वासा ऋषि की तरह घर से क्रोध लेकर चलता है ! भेदभाव, झूठ, नफ़रत,असहिष्णुता, सांप्रदायिकता, धर्मांधता, और चाटुकारिता से घोर विरोध के चक्कर में वो मोहल्ले में अकेला पड़ जाता है! वो सत्ता और व्यवस्था का भी कट्टर विरोधी है इसलिए अक्सर घर के कनस्तर में आटा नही होता ! उसे कोई भी सत्ता व्यवस्था रास नहींआती ! अपने देश के अलावा उसे पूरी दुनिया दोषमुक्त नज़र आती है ! मगर उसकी कहकशां में ज्ञान, शब्द सामर्थ, संभावना, सद्भावना और मुहब्बत की भरमार होती है ! उसकी रचनाओं को फ्री में छापने वाले संपादक और प्रकाशक से भी ' वो' सहमत और संतुष्ट नहीं होता !
प्रथम श्रेणी के लेखक को पहचानें कैसे ? बहुत आसान है, असली लेखक की बीबी हमेशा दुखी नज़र आती है। वो अपनी सभी सहेलियों को नेक सलाह देती रहती है - ' कभी किसी लेखक से शादी मत करना ! आर्टिकल के चैक इतने लेट आते हैं कि एक चैक के इंतज़ार में दो बार खुदकशी कर सकती हो-'! लेखक की मुहल्ले में किसी से पटती नहीं और नौकरी बार बार छूट जाती है ! असली लेखक अपनी प्रशंसा को भी शक की नजर से देखता है ! चौबीस कैरेट शुद्ध लेखक के जीन में कहीं न कहीं नास्तिकता परवरिश पाती है ! वो इस दुनियां और दुनियां बनाने वाले से भी बहुत ज़्यादा कन्विंस नहीं होता ! उसे न स्वर्ग की चाहत होती है न दोजख का खौफ ! अलबत्ता उसकी सच्चाई और इंसानियत से खुश ऊपर वाला उसे कई 'आमंत्रित' संकट से उबारता रहता है ! अपने खुद्दार और बागी स्वभाव के चलते उसके दोस्त सीमित , प्रशंसक और विरोधी असीमित होते हैं ! ज़िंदगी एक इस्तीफे की शक्ल में हमेशा उसकी जेब में होती है ! इसलिए अगले जनम के बारे में उसकी दिली तमन्ना होती है कि,,,,,,,
हमारी रूह को तुम फिर से कैदे जिस्म मत देना !
बड़ी मुश्किल से काटी है 'सजाए ज़िंदगी' हमने !!
( मित्रों कमेंट ज़रूर करें !! (सुलतान भारती)
Shaandar
ReplyDeleteसच्चे इंसान और ईमानदार लेखक के जीवन संघर्ष पर बेहद तीखा बेहद सच्चा व्यंग।
ReplyDeleteअपनी लाइफ के इंटरवल तक आते आते मुझे ये आत्मज्ञान प्राप्त हुआ कि ऊपर वाले ने मेरे सारे खुदरा गुनाहों के एवज में हिंदी का लेखक बना दिया है , - जा अपने किए की सजा काट -! ऊपर वाला बहुत अच्छी तरह जानता है कि प्राणी के भाग्य पैकेज में अगर इंजीनियर,डॉक्टर, एक्टर, ट्यूटर, मास्टर,शूटर, मिनिस्टर, कॉरपोरेटर, बिल्डर आदि के जीन्स डाला गया तो वो और उसकी फेमिली गुड फील करेगी ! किंतु जिसे मरने से पहले कठोर कारावास देना हो उस लेखक के 'डीएनए' में अच्छे क्वॉलिटी का स्वाभिमान प्लांट कर दो
ReplyDeleteबहुत खूब सुलतान भाई जान निकाल दी तुमनी। मुरली
[23/08, 06:59] Murli Manohar Srivastava: सुलतान भाई आज आपका व्यंग्य पढ़ा डोर में जोड़े बिना नहीं रह सका। लेखकों में मतभेद नहीं होगा तो वे लेखक किस बात के।
ReplyDeleteसो डिफरेंस आफ ओपिनियन को चलने दीजिए। आपके बिना मुझे डोर में अधूरापन महसूस हो रहा था।
[23/08, 07:02] Murli Manohar Srivastava: यह हम सभी के पढ़ने योग्य एक शानदार व्यंग्य है, जो सुलतान भारती को व्यंग्य लेखन की दुनियां में एकदम यूनिक बना देता है। बड़े ही मारक बिम्ब हैं।
सभी से एक ही बात कहूंगा लेखक विभिन्न विचार धारा के हो सकते हैं। लेकिन आंतरिक रूप से एक दूसरे से अपने गुणों के कारण जुड़े रहते हैं भले एक दूसरे का विरोध करें। 🙏🙏