Saturday, 2 October 2021

" पतझड़ में बसंतोत्सव"!

( व्यंग्य "भारती")      "पतझड़ में बसंतोत्सव"


          मरहूम अब्बा श्री के नाम में कुछ मिस्टेक थी तो बिजली का बिल लेकर मैं  'बीएसईएस' के ऑफिस पहुंचा ! तारीख़ थी, 04-10-2021 . वहां जाकर पता चला कि सरकारी संस्थान में कोरोना ने बाबुओं को कितनी सुविधा उपलब्ध कराई है ! विंडो के पीछे बैठा क्लर्क मुझे देखते ही गुर्राया, - " प्रॉब्लम बाद में बताना, पहले फेस मास्क ठीक करो ! नाक से नीचे फिसल रहा है ! कोरोना बाटने आए हो क्या "!
  " तुम्हें मेरी नाक में कोरोना नज़र आ रहा है क्या ?"
" किसी के माथे पर लिखा है कि वो कोरोना फ्री है ! लोग जाने क्या क्या लेकर घूमते हैं! खैर तुम क्या लाए हो?"
      " बिजली के बिल में नाम ठीक कराना है"!
" तो पहले गलत नाम क्यों लिखाया था ?"
    "ये गलती तुम्हारे विभाग ने की है !" 
         " तीन नंबर खिड़की पर जाओ !" 
     तीन नंबर खिड़की पर बताया गया कि कोरोना के चलते फिजिकली डॉक्यूमेंट नहीं जमा हो सकते ,  क्या 
भरोसा आप बिजली बिल के साथ साथ ब्लैक फंगस भी  टोपीलेकर आए हों ! ऑन लाइन डॉक्यूमेंट सम्मिट करने lपर  यूवायरस पाइप लाइन में फस जाते हैं ! पीछे खड़े हुए एक सज्जन  बगैर पूछे बताने लगे - " दो महीने से चक्कर काट रहा हूं । ये कागज़ात लेते नहीं और ऑन लाइन एक्सेप्ट नहीं होता ! त्रिशंकु बनकर बीच में लटके रहोगे ! कोरोना  हरामखोरों के लिए कितने अवसर लेकर आया है "!
           लौट के बुद्धू बस स्टॉप पर आए ! शेड पर खड़े होते ही मेरी नज़र एक सरकारी विज्ञापन पर पड़ी ! पढ़ कर मैं सन्न् रह गया ! मुझे अपने पिछड़ेपन पर गुस्सा आने लगा ! आज जाकर मुझे पता चला कि देश  "विकास उत्सव"  मना रहा है ! सचमुच अक्ल के मामले में मैं अभी भी नाबालिग हूं । देश विकास उत्सव मना रहा है और मूर्ख लोग विकास ढूंढ रहे हैं ! गली में छोरा शहर ढिंढोरा,,,,! घर मेंउपलब्ध कनस्तर का आटा अंतिम सांस ले रहा था ! मुझे तुरंत विकास की ज़रूरत थी ! मैं विकास उत्सव के विज्ञापन को इस उम्मीद और आत्मीयता से देख रहा था, गोया अभी अभी आटा समेत कनस्तर बाहर आने वाला है। कनस्तर नहीं आया, उल्टे बस आ गई और एक बार फिर मैं  विकास से वंचित हो गया - करम गति टारे नाहि टरे !
         "विकास उत्सव" के बारे में जानकारी प्राप्त होने के बाद मेरी मन: स्थिति - नींद न आए मुझे चैन न आए कोई जाओ जरा ढूंढ के लाओ - जैसी हो चुकी है ! मैने अपने पड़ोसी 'चौधरी' से मशविरा किया, - "देश विकास उत्सव मना रहा है! "! 
     चौधरी ने मुझे ऐसे देखा जैसे मेरा मानसिक संतुलन ठीक नहीं है! फिर धीरे से बोला , -" फेस मास्क लगाकर लिकड़ा कर घर ते ! आखिर हो गया न कोरोना !! इब घर जा , अर भटकटैया का काढ़ा पी कै सो ज्या !"
       " पर मुझे तो कुछ हुआ भी नहीं!"
" नॉर्मल होता तो दिन में  "विकास उत्सव" के धोरे कदी न जाता ''!
       " मैने बस स्टॉप पर लिखा देखा था। तीन साल से बेकारी ओढ़ कर लेटा हूं, ऐसे में किसी को विकास करते कैसे देख सकता हूं ! मैने सोचा शायद तुम्हें उस जगह का पता हो, जहां बसन्त आया हुआ है "!
       " किस्मत फूट गी  म्हारी ! बारह साड़ लिकड़ गया विकास  अर बसंत कू देखे ! इब तो सुबह शाम तमैं ही देखूं सूं ! कती पतझड़ पसर गयो जिंदगी में " !
         " मैं क्या करूं कहां जाऊं ! सच बड़ा संदिग्ध हो गया है ! हकीकत और प्रोपेगंडा के बीच का फ़र्क ही मिटता जा रहा है ! भूख और खाली पेट के बीच में - संतोषम परम् सुखम - अड़ गया है । स्लोगन ने सच को निगल लिया है ! मैं बड़ी शिद्दत से केजरीवाल की तरह एक स्वस्थ मुस्कराहट चहता हूं ! लेकिन मुस्करा नहीं पा रहा हूं ! जैसे ही सावन की कल्पना करता हूं, सामने पतझड़ आ जाता है ! "
           " गाम लिकड़ ले मेरे गैल तीन दिन के लिए ! उतै धान कौ खेतन में सावन उतरो सै ! वरना विकास उत्सव ढूंढ ढूंढ कै कती पागल हो ज्या  गा "!
       मैंने सोचा, एक से भले दो, जाकर ' वर्मा जी ' से भी
पूछ लिया, - ' सावन के बारे में क्या कहना चाहेंगे ?"
   " सिर्फ इतना कि सावन में अंधा होने पर पूरी ज़िंदगी इंसान को हरा हरा नज़र आता है ! लगता है तेरे  घर में गेहूं आ गया है ! जब तक भाजपा सरकार है, मौज कर ले।"
      " पर फ्री राशन तो केजरीवाल सरकार दे रही है?"
 "  खाते में हर फसल पर पैसा तो मोदी सरकार डालती है ! उसके बगैर गेहूं नहीं उगता, इसलिए अबकी बार मोदी सरकार "!
 " मैं भी विकास उत्सव मनाना चाहता हूं, कैसे मनाऊं" ?
         " तेरे मन में खोट है ! तुझे सच कभी नहीं नज़र आएगा ! जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी त्यों तैसी ! कुछ समझा "?
        " अज्ञानी हूं , मार्ग दर्शन करें "!!
    " ईश्वर नजर नहीं आता किंतु करोड़ों भक्त उसे हर वक्त महसूस करते हैं ! ठीक उसी तरह विकास है, जिन्हें नजर आ रहा है वो 'उत्सव' मना मना रहे हैं, जिन्हें तुम्हारी तरह दूध में मक्खी ढूंढने की बीमारी -उन्हें न "विकास" नज़र आता है  न  "उत्सव" ! तूने- 'फर्स्ट डिजर्व देन डिजायर- ' वाली कहावत तो सुनी होगी न ! पहले खुद को इस लायक़ बनाओ कि तुम्हें " विकास" दिखाई पड़े ! जिस दिन ये योग्यता आ गई तुम अपने आप "उत्सव" मनाने लगोगे ! अभी हट जा ताऊ पाच्छे नै, हवा आने दे "!!

   मैं अभी भी पतझड़ में बसंत ढूंढ रहा हूं !!

( दोस्तों पढ़ कर कमेंट ज़रूर करें !  ( सुलतान भारती )
               


        

No comments:

Post a Comment