" काला लंगोट "
मेरा नाम अब्दुल मजीद है! इस प्रेम कहानी का नायक मैं ही हूँ ! मेरी उम्र तब 18 या 19 साल थी ! शायद हाई स्कूल का इन्तेहान हो चुका था और छुट्टियों चल रही थीं ! लेकिन मुझे पढ़ाई से ज्यादा कबड्डी, कुश्ती ,अखाड़ा ,तालाब में दो तीन घंटे नहाना, दर्ज़नों दोस्तों के साथ गुल्ली डंडा खोलना और दबंगई दिखाने वाले को सबक सिखाना ज्यादा पसंद था ! साथियों के लिए मैं उनका अघोषित मुखिया था ! 1972 या 73 का साल चल रहा था! उस दौर में अवध के गाँव में कुंवारों के लिए इश्क़ एक प्रतिबंधित विषय था ! हमें इकठ्ठा हंसी मजाक करते देख कर डाट कर भगा देना, विवाहित और बुजुर्गों का जन्मसिद्ध अधिकार था ! शादी से पहले इश्क़ करना तो समझो चरित्रहीनता जैसा गुनाह था ! इश्क और सेक्स हमारे लिए बड़ा सनसनी खेज और रहस्यमय विषय थे ! ये वो दौर था जब नौटंकी के लौंडे को लड़की का मेकअप करते हुए देखने के लिए युवा लौंडे स्टेज के पीछे बने मेकअप रूम के अंदर घुस जाते थे !
उस दिन संडे था, दोपहर के वक़्त अम्मा ने कहा कि बाजार से नमक और लाल मिर्च ले आऊं ! उस वक़्त दुकानदार नमक की बोरी दुकान के बाहर ही लगा कर रखते थे! (नमक के डले वाली इन् बोरियो पर अक्सर कुत्ते पेशाब करते नज़र आते थे !) दोनों चीज़ खरीद कर जब मैं बाजार से निकालने ही वाला था कि उस लड़की को पहली बार देखा था ! वो 14 या 15 साल की मध्यम कद और सांवले रंग की एक खूबसूरत लड़की थी ! उसके साथ एक पांच छह साल का लड़का उंगली पकड़ कर चल रहा था ! लड़की के हाथ में एक छोटा थैला था, और वो लगातार मुझे देखे जा रही थीं !
बाजार से लगे हुए गाँव में मेरे कई ठाकुर और बनिया दोस्त थे, मैंने घबरा कर चारों ओर देखा - कहीं कोई देखता नज़र नहीं आया ! मैं बाजार से निकल कर रोड की ओर बढ़ा, वो मुझसे लगभग 20 कदम आगे थी ! अचानक उसने पलट कर मुझे देखा और फिर आगे बढ़ गई ! मैं सोच में पड़ गया, - कौन है ये लड़की ! क्या ये मुझे जानती है ! मुख्य सड़क पर आकर वो बाईं तरफ मुड़ गई ! वह रास्ता मेरे गावं के विपरीत दिशा को जाता था ! अब मैं धर्म संकट में पड़ गया ! थैला लेकर घर जाऊँ या लड़की के पीछे ! वो कुछ दूर जाकर रुक गई और पलट कर मुझे देखने लगी ! अचानक मेरे हाथ का थैला इतना वज़नदार लगा गोया मैंने उसमें पत्थर भर लिया हो ! लड़की अभी भी मुझे देख रही थी और मैं इधर उधर देख कर कंफर्म कर रहा था कि कोई मुझे तो नहीं देख रहा ! आखिरकार मैंने दर्या ए आतिश में कूदने का फ़ैसला कर लिया ! मुझे यह गलतफ़हमी होने में तनिक भी देर न लगी कि खूबसूरत लड़की मेरे ऊपर मर मिटी है !
जहां लड़की खड़ी थी वहाँ से 50 ग़ज आगे मेरे जानकार मित्र रामकुमार के पान की गुमटी थी ! मैं तेजी से आगे बढ़ा और थैला राम कुमार को देते हुए कहा, -' लौट कर ले लूँगा, एक बीड़ा पान लगा दो- स्पेशल वाला -'!
' उस्ताद ! तुम कब से पान खाने लगे' ?
मैंने उसे घूरा तो वो अपने काम में लग गया! तभी लड़की अपने भाई के साथ मेरे सामने से गुजरी, इस बार मैंने उसे करीब से देखा ! उसकी आंख और नाक बहुत स्पेशल थी! उसके पैरो में बहुत मामूली सैन्डल थी ! सलवार सूट भी मामूली कपड़े का था ! अलबत्ता कुदरत ने लड़की को उम्र से पहले जवान कर दिया था ! मुझे देख कर वो बार बार अपना दुपट्टा ठीक कर रही थी ! राम कुमार ने पान लपेट कर मुझे पकड़ाया और मैं तेजी से आगे बढ़ा ! मैं जनता था कि कुमार की नज़र मुझ पर ही होगी, इसलिए वहां पर लड़की को पान पकड़ाना खतरे से खाली नहीं था! लड़की के बगल से निकलते हुए मैंने उसे सुनाते हुए कहा, -' आगे नहर के पास मिलता हूँ-!'
" क्यों?"
मैं तो जैसे ज़मीन पर गिरा ! किसी अजनवी लड़की से बात करने का ये पहला प्रयोग ही पंचर हो रहा था, फिर भी हिम्मत दिखाया, -' तुम्हारे लिए पान लाया हूँ-'!
" अच्छा "! लड़की धीरे से बोली !
मैं सूखते गले और धड़कते दिल के साथ आगे बढ़ गया ! नहर 5 मिनट दूर थी और मैं सुखद कल्पना में गोते लगा रहा था ! मेरे 18 दोस्तों में मैं पहला खुश नसीब था जिसे कोई लड़की मौन आमंत्रण दे रही थी ! कल जब दोस्तों को बताऊँगा तो सारे लोग किस तरह छाती पीटते नज़र आयेंगे ! लेकिन मेरे सामने सबसे बड़ी प्रॉब्लम थी कि मैं लड़की से बात शुरू कैसे करूँ !!
नहर जैसे उड़ कर तुरंत करीब आ गई ! मुझे गुस्सा आया, अभी तो मैं कुछ सोच ही नहीं पाया था ! लड़की भी दो मिनट बाद आ पहुंची ! मैं खड़ा रहा, लड़की बगैर मुझे देखे आगे जाने लगी ! एक बार तो मैंने तय किया कि मुझे वापस लौट जाना चाहिय ! तभी लड़की ने पीछे मुड़कर मुझे देखा ! इस बार तो उसने मुझे आने का इशारा भी किया ! मैं यंत्रवत चल पड़ा ! सड़क पर कभी-कभी लोग नज़र आ जाते थे ! मैं तेजी से उसकी ओर बढ़ा! कपड़े में उभरा हुआ उसका जिस्म किसी का भी ईमान खराब कर देने का तिलिस्म रखता था! जैसे ही मैं उसके करीब पहुंचा वो मेरी तरफ घूम कर बोली ,- ' तुम्हारा नाम मजीद है न?'
" हाँ, मगर तुम कौन हो'?
' सबीना ! ये मेरा भाई है, - सईद ! बाजार में मेरे अब्बा कपड़ा सिलते हैं ! मैं रोज दोपहर को उनको खाना देने आती हूँ ! कल भी आऊंगी -'!
आखिरी तीन शब्द मुझे संकेत दे रहे थे और आमंत्रण भी ! मैंने पूछ लिया, -' मगर तुम मुझे कैसे जानती हो-'!
' पिछले साल औघड़ बाबा के मेले में तुम ने मकनपुर के समद को पीटा था न ! फिर पुलिस तुम दोनों को पकड़ कर थाने ले गई थी !'
' हाँ, वो साला मेले में घूम रही एक लड़की को छेड़ रहा था ! इसी बात पर मैंने उसे पीट दिया था !'
" वो रज्जो थी, मेरी सहेली ! उस दिन पहली बार मैंने तुम्हें देखा था ! मुझे तुम बहुत अच्छे लगे थे-! उस दिन के बाद मैं कई दिन तक तुम्हारे बारे में ही सोचती रही-'!
लेकिन मैं तो कुछ और ही सोच रहा था ! अगला गाँव 15 मिनट के फासले पर था और मैं इतनी जल्दी उससे अलग होने के लिए इतनी दूर नहीं आया था ! सड़क के बाईं तरफ हरे भरे खेत शुरू हो गये थे ! बाजरे के खेतों में हाथी भी घुस जाए तो बाहर से नज़र न आए ! उधर वो लगातार बोले जा रही थी -' फिर मैंने तुम्हें कई महीने बाद बसंत पंचमी के रोज देखा,जब तुम अखाड़ा कूदने आए थे ! तुम्हारे साथ तुम्हारे बहुत सारे दोस्त थे जो जोर जोर से चिल्ला कर तुम्हें जोश दे रहे थे ! तुमने काला लंगोट पहना हुआ था ! मैंने तो तुम्हें देखते ही तुम्हारी जीत के लिए रोज़ा रखने की मन्नत भी मांग ली थी-! और तुम जीत भी गए थे !"
' तुम्हारा गाँव कौन सा है-?' मैंने पूछा !
" शेखपुर , अभी आधा घंटे दूर है !'
मैंने चैन की साँस ली, उस गाँव का रास्ता खेतों से होकर जाता था, और मुझे नहीं लगता था कि लड़की मेरी किसी बात को नहीं मानेगी ! पर उसका छोटा भाई कहीं खेल न बिगाड़ दे ! लड़की चुप होने को तैयार नहीं थी, -' तुम्हारे ऊपर काला रंग बहुत अच्छा लगता है! तुम वो काला लंगोट अभी भी पहनते हो-?'
अचानक मुझे पान याद आया , निकाल कर लड़की को पकड़ते हुए कहा, -' ये तुम्हारे लिए है"!
'इसमें कुछ मिलाया तो नहीं है! हमारी बड़ी बहन को एक बार एक लड़के ने पान खिला कर उसके साथ 'बुरा काम' किया था !'
' कौन सा बुरा काम ?'
' शादी से पहले अगर लड़की और लड़का सुहाग रात मना लें तो वो बहुत ही बुरा काम है ! अम्मा कहती हैं कि शादी के बाद दूल्हा उस लड़की से प्यार नहीं करता '!
गाड़ी पटरी पर आते आते उतर रही थी ! मैंने थोड़ा गुस्से में कहा, -' सब बकवास है, भला दूल्हा को कैसे पता चलेगा -'?
'अम्मा कहती हैं कि सुहागरात को दूल्हे को सब पता चल जाता है-!'
जैसे गरम लोहे को अचानक पानी में डाल दिया गया हो, सारा परिश्रम व्यर्थ होता नज़र आया ! मैंने इस सदमें से निकलने की आखिरी कोशिश की, -' मैं नहीं मानता ! वैसे भी जब कोई किसी से प्यार करता है तो चाहने वाले को मना कैसे कर सकता है ! तुम्हारे प्यार में उलझ कर मैं तीन किलो मीटर पैदल यहां तक आ गया ! ठीक है, तुम अपने घर जाओ, मैं अपने घर जाता हूँ-!'
मैं सड़क के किनारे एक पेड़ के नीचे रुक गया, वो भी खड़ी हो गई! उसके चेहरे पर सन्नाटा और बड़ी बड़ी आँखों में उलझन और मायूसी साफ नज़र आ रही थी! मैं जहां खड़ा था, मेरी बाईं तरफ से एक चकरोड सीधा उसके गाँव को जाता था ! रास्ते के दोनों तरफ नज़र आ रहे बाजरे के घने लंबे खेत अचानक मुझे चिढ़ाने लगे थे ! दो तीन मिनट की ख़ामोशी में जैसे कई साल समा गए थे !
अचानक उस लड़की ने मेरे दोनों हाथ पकड़ कर धीरे से पूछाः-' क्या तुम भी मुझ से उतना प्यार करते हो, जितना मैं करती हूँ- '!
मैं इस सवाल के लिए बिलकुल तैयार नहीं था ! वो सीधे मेरी आँखों में झाँक रही थी ! वो मेरे साथ लगभग सट कर खड़ी थी ! पान खाकर उसके होंठ बिल्कुल दहक उठे थे! उसकी सांसो की खुशबू ने मुझे लगभग मदहोश कर दिया था ! मैं मना करना चाहता था, मगर मेरे मुँह से निकला-"हाँ "!
'चलो, मुझे थोड़ी दूर तक और छोड़ दो"- वो मुस्कराने लगी- ' यहां सड़क पर आते जाते लोग देख रहे हैँ '!
थोड़ी देर बाद हम बाजरे के घने खेतों के बीच से गुजरती पतली चकरोड से गुजर रहे थे ! दूर दूर तक सन्नाटा ! शायद किस्मत मेरा साथ दे रही थी ! मैंने लड़की की कमर में हाथ डाल कर उसे अपने जिस्म के साथ सटाते हुए कहा,-' मैं तुम्हारे साथ अभी प्यार करना चाहता हूँ, सुहाग रात वाला प्यार-"!
' कहां !' उसकी मुस्कराहट उड़ गई!
' यहीं इसी बाजरा के खेत में'!
मैं बेकाबू होता जा रहा था, ज़िंदगी में पहली बार किसी लड़की को अपने बाहों में भर कर खड़ा था ! अचानक मैंने उसे कमर के नीचे से पकड़ कर ऊपर उठा लिया तो उसका छोटा भाई देख कर हंसने लगा ! लड़की बोली, -' कहीं मेरे भाई ने अम्मा से बता दिया तो मुझे बड़ी मार पड़ेगी' !
' तो तुम मुझ से प्यार नहीं करती?"
" बहुत करती हूँ, तुम्हें दुबारा देखने के लिए रोज़े रखे थे "!
मुझे उसके रोज़े या चाहत में कोई इंट्रेस्ट नहीं था, और मेरे समूचे वज़ूद में जैसे गरम लावा दौड़ रहा था, -' अगर इतना प्यार है तो अब और न तड़पाओ -"
मैं अभी भी उसे बाहों में उठाए खड़ा था ! लड़की ने मुस्करा कर कहा, -' कोई देख लेगा, अब नीचे उतार दो!'
मैंने नीचे उतार दिया तो लड़की ने पहले पान थूका, फिर मुझे अपने बाहों में भर कर बोली,' सच सच बताना मजीद ! क्या तुम बाद में मेरे साथ शादी कर लोगे ?'
ऐसा लगा गोया किसी ने मुझे बर्फ की सिल्ली पर लिटा दिया हो ! भला हमारे और सोहागरात के बीच में शादी का क्या काम ! लड़की कह रही थी,- 'तुमने पान दिया, मैंने खाने से पहले खोल कर भी नहीं देखा कि अंदर बेहोश करने की दवा है या ज़हर ! क्योंकि मैं तुम्हें प्यार करती हूँ ! तुम आग में कूदने को कहोगे - कूद जाऊँगी -'!
मुझे गुस्सा आ गया- "तो फिर प्यार करने में इतना नखरा क्यों कर रही हो "!
हैरत थी, इस बार सबीना ने शादी का नाम ही नहीं लिया, बल्कि मुझे बाहों में कसते हुए कहने लगी,- ' ठीक है,जो होगा देखा जाएगा, मैं तुम्हें नाराज़ नहीं कर सकती ! एक बार क्या दस बार के लिए भी मना नहीं करूंगी ! अब तो गुस्सा थूक कर मुस्करा दो "!
मैंने मुस्कराते हुए उसे खींच कर सीने से लगा लिया, - ' शुक्रिया "!
" तुम्हारे होंठ लड़की की तरह लाल क्यूँ हैं?"
" मैं कोई नशा नहीं करता, इसलिए ! सिर्फ तुम्हारे साथ प्यार करने का नशा है "!
लड़की ने मेरे होंठों को चूमते हुए कहा ,-' कल दोपहर को अब्बा को खाना देने अकेले आऊंगी ! तुम वहीं आसपास रहना ! जब अब्बा खाना खा लेंगे तो मैं बाहर आकर इशारा करूगी, तुम मेरे से पहले आकर इसी बाज़रे के खेत में मेरा इन्तेज़ार करना "!
" मैं आ जाऊँगा, पर आज क्यों नही?"
" लगता है कि जुनून में तुम्हें मेरा भाई भी नहीं नज़र आ रहा ! अभी तो हम उसकी आंखों के सामने हैं तो कोई बात नहीं, लेकिन जब हम खेत के अंदर जाकर सुहागरात वाला प्यार करेंगे तो उसे क्या क़ह कर खेत के बाहर खड़ा करेंगे! उसने खेत में आकर देख लिया तो,,,! मेरे बाप तो काट कर मुझे नहर में डाल देंगे-'!
मैं उसके होंठों को चूमना चाहता था , लेकिन किस करने की बजाय उसे छोड़ते हुए कहा, -' ठीक है, अब तुम जाओ ! कल इसी खेत में मिलेंगे ! तुम कहो तो आज रात मैं इसी खेत में सो जाऊँ!"
लड़की ने मुझे हैरत से देखा, फिर बाहों में भर लिया, - 'मैंने तुमसे मिलने की दुआ माँगी थी ,रोज़े रखे तभी तुम मिले ! मैं फिर रोज़े रख कर दुआ मांगूंगी कि तुम ज़िंदगी में हमेशा आगे रहो, अखाड़े की तरह !'
मैं मुस्कराया -" अच्छा !"
" कल वही काला लंगोट पहन कर आना जिसे पहन कर तुम अखाड़ा कूदने आए थे ! बहुत अच्छे लगते हो काले लंगोट में-'!
मैं घबरा गया,-" मैं लंगोट पहन कर इतनी दूर कैसे आऊंगा?"
सबीना खिलखिला कर हंसी, -" मेरा मतलब पाजामा के नीचे लंगोट पहन कर आना-!"
" ठीक है, पहन कर आऊंगा!'
" सलाम वालेकुम, कल मिलेंगे "!
और,,,,,,,, वो चली गई !
वो रात अंगारों पर कटी ! अगले दिन दोपहर को बाजार गया तो देख कर धक्का सा लगा, सिलाई करने वाले की दुकान बंद थी ! पूछने पर पता चला कि सबीना का बाप आज आया ही नहीं ! मेरा माथा ठनका ! मैं लगभग भागता हुआ दो किलो मीटर दूर बाजरे के खेत में पहुंचा ! तीन घंटे अंदर बिता कर मायूस होकर बाहर आया ! पास के एक ऊंचे दरख्त पर चढ़ कर सूरज डूबने तक शेखपुर गाँव की ओर ही देखता रहा ! अब मेरे दिल में उसे पाने की नहीं बस उसे देखने की चाहत थी ! मैं उसे किसी मुसीबत में नहीं देखना चाहता था, और दिल बार बार कह रहा था कि सबीना मुसीबत में है ! उस दिन मैं 9 बजे रात को घर लौटा था !
एक हफ्ता जैसे सजा काटते हुए बीता !
एक हफ्ते बाद सिलाई की दुकान खुली, मगर दोपहर में खाना लेकर एक औरत आई ! उसकी शक़्ल देखते ही मैं समझ गया कि वो सबीना की माँ है ! या मौला ! सबीना कहां है ! मैं दोस्तों का दर्द तो बांट लेता था, पर अपना बढ़ता हुआ नासूर किसी दोस्त को बताया भी नहीं ! 04 महीने निकल गए, एक बार फिर सिलाई की दुकान दस दिन तक बंद रही ! मैं कॉलेज जाने लगा था, पर पढ़ाई में मन नही लगता था ! दोस्तों में अजनबी की तरह बैठने लगा ! मेरी चाहत घुन बनकर मुझे खाने लगी थी !
एक दिन मैंने अपने अजीज दोस्त आरिफ को सारी बात बता दी ! उसने मुझे जम कर फटकार लगाई,-' आज छह महीने बाद बता रहे हो ! कोई बात नहीं, मैं अपनी अम्मा को उसके घर भेजता हूँ! मगर एक बात बताओ, अम्मा से क्या कहूँगा ?"
मैंने सर झुकाते हुए कहा, -" मैं सबीना से शादी करना चाहता हूँ !"
" तुम सैयद हो, वो पठान ! तुम्हारे घर वाले राजी हों जाएँगे?"
" मेरी मां मुझे बहुत चाहती हैं, मैं अपनी माँ को मना लूँगा-! और वैसे भी उसके अलावा मैं किसी किसी से शादी नहीं करूँगा-!'
"वो लोग तो फौरन मान जायेंगे ! मेरे यार जैसा खूबसूरत दामाद कहां पायेगे !"
पर किस्मत के बुलंद सितारे टूट चुके थे ! आरिफ की माँ टीचर थी और सब लोग उनका सम्मान करते थे ! दो दिन बाद वो सबीना के माँ बाप से मिल कर लौटी तो मेरे लिए बहुत बुरी खबर लाई, -" बेटा ! बुरा मत मानना , गलती तुम्हारी है ! जिस दिन तुम सबीना से आखिरी बार मिले थे, हमें तभी बता देते ! अब तो जो होना था वो हो गया-"!
मुझ में सुनने की भी ताब नहीं बची थी ! मैं एक गुनाहगार की तरह सर झुकाये बैठा था और वो बता रही थीं, -" उस दिन सबीना कई घंटे देरी से घर पहुंची तो मां को शक हुआ ! सईद ने पूछने पर जो कुछ बताया उस से पता चला कि लड़की किसी लड़के साथ बाजार से यहां तक आई थी ! फिर घर वालों ने लड़की को खूब पीटा , मगर उसने तुम्हारा नाम नहीं बताया ! सबीना के बाप ने भागदौड़ कर चार महीने के अंदर ही उसकी शादी अपने साले के लड़के से कर दिया ! आजकल लड़की लड़का अहमदआबाद में हैं! सबीना की माँ ने बताया कि शादी के बाद तो लड़के की किस्मत ही पलट गई है, खूब कमा रहा है! वहाँ अपना घर खरीद लिया है-! गाँव में भी पक्का घर बनवा रहा है "!
मेरी सारी उम्मीदें रेज़ा रेजा बिखर गई ! सारी बाजी हार चुका था ! सारे सपने टूट चुके थे ! बस मुझे ये खुशी थी कि सबीना अपने परिवार के लिए लकी साबित हुई ! मेरे दिल पर अपने आप को गुनाहगार समझने का जो बोझ था, वो थोड़ी देर के लिए कम हो गया था ! मैंने तो प्यार की आड़ में गुनाह करने का इरादा किया था, लेकिन खुदा ने मुझे गुनाहगार होने और सबीना को बर्बाद होने से बचा लिया था ! पर हमारे उस मासूम पाकीजा इश्क़ का हस्र क्या हुआ जिसे रोज़ा और दुआ ने परवान चढ़ाया था !
लोग कहते हैं कि वक़्त सारे घाव भर देता है ! मैं पढ़ाई में डूब गया ! पांच साल बाद मेरी भी शादी हो गई ! फिर मैं शहर आ गया, नई ज़िंदगी में खुद को व्यस्त रखने में मशगूल हो गया ! स्वभाव के बिल्कुल विपरीत मैं अखबार में लिखने लगा ! फिर पत्रकार बना, और एक निहायत अजनबी शहर में मैं बेहतरीन लेखक और कहानीकार बन गया ! आज बहुत सारे फ़ैन हैं मेरे ! आजकल किताब लिख रहा हूँ ! दोस्त कहते हैं कि मेरे शब्द में दर्द और दर्द में तिलिस्म होता है ! मेरे आर्टिकल कमाल के होते हैँ ! मैं कैसे बताऊँ कि एक गुनाहगार लड़के को मिली ये दौलत किसके रोज़े और दुआओं की बदौलत है !
वक़्त की परवाज में चालीस साल और निकल गए ,,,,!
आज मैं 63 साल का हूँ, और गाँव आया हुआ हूँ ! ये वही महीना है ,जब खेतों में बाज़रा के पेड़ लहलहा रहे हैँ ! बहुत कुछ बदल गया है! सड़क के किनारे पेड़ों की जगह मकान उग आए हैं ! शाम का वक़्त है, हवा की सरगोशी मुझे लगातार आगे बढ़ने को प्रेरित कर रही थी ! मेरे कदम अपने आप उत्तर की ओर बढ़ने लगे, जैसे आगे की चकरोड पर मुझे कोई ख़ज़ाना हासिल होना है ! आज ज़माने बाद मैंने पैंट के नीचे काला लंगोट पहना है ! इसे मैंने 40 साल से संभाल कर रखा है ! अब यादों के अलावा कुछ है भी नहीं ! मैं अपलक सूनी पगडंडी में खो गया, जहाँ धीरे धीरे दो परिचित चेहरे उभर रहे थे ! काफी देर बाद पास के दरख्त पर बैठा मोर चीखा तो मैं यादों से बाहर आ गया ! सूरज अपनी सारी लाली समेट कर पश्चिम में दरख्तों के पीछे छुपने में लगा था !
मैं वापस लौट पड़ा ! वैसे मेरा कोई इरादा नहीं कि मैं सबीना से मिल कर राख में दबी चिंगारी कुरेदूँ ! बस मैं तो एक बार उसे दूर से देख कर खुशी खुशी इस दुनियां को खैरबाद कह दूँगा !
दोस्तों ! अगर ये महज कहानी होती तो सबीना मुझे ज़रूर मिलती, मगर यह तो सलीब पर चढ़ी किसी बदनसीब इंसान के पुरदर्द ज़िंदगी की कड़वी हक़ीक़त है ! और,,,, हक़ीक़त कभी मानवीय कल्पना और संवेदनाओं के हिसाब से रास्ते नहीं बदलती !
अब तो खुदा से बस एक ही दुआ है, - कि,,,,,,
हमारी रूह को तुम फिर से कैद-ए-जिस्म मत देना!
बड़ी मुश्किल से काटी है 'सज़ा ए ज़िंदगी' मैंने !!
( Sultan bharti)