आनंद ही आनंद !
मुझे भी चाहिए ! क्या करूँ कभी मिला नहीं ! आनंद हमेशा मेरी चाहत और तलाश के केंद्र में रहा, पर कमबख्त पकड़ में नहीं आया। आनंद की खोज में जब जब दौड़ा, तो कभी मँहगाई मिली तो कभी कोरोना ! कुछ लोगों ने तो एक महापुरुष के दिव्य सुझाव पर अमल करते हुए कोरोना में ही आनंद ढूढ़ लिया था ! इस खोज का नामकरण हुआ - आपदा में अवसर ! समाजसेवा और सियासत के व्यवसायी आनंद के ब्रांड एम्बेसडर बने, इसलिए आपदा से हमेशा- दो गज दूरी- आनंद ज़रूरी - का पालन होता रहा ! बेशक लेखक अगली पीढ़ी का आर्किटेक्ट होता है, पर उसकी कुंडली में 'आनंद' वाली रेखा नहीं होती ! उसका दिमाग़ सेटेलाइट कैमरा और सुपर कंप्युटर से ज़्यादा क्रियाशील होता है, किंतु शरीर से लेखक बेहद सुस्त प्राणी होता है ! वो समाज को आनंद से भरी एक ( काल्पनिक) दुनियां दे सकता है किन्तु अपने लिए वास्तविक आनंद चाहता है ! न मिलने के कारण उसके अंदर क्रोध का दावानल उमड़ता रहता है !
मेरी समस्या थोड़ा जटिल है ! आनंद तो मुझे भी चाहिए, किंतु कहां से लाऊँ- आजतक समझ में नहीं आया ! वैसे भी बुद्धिजीवी होते ही प्राणी कई किस्म के आनंद से वंचित हो जाता है! गैर बुद्धिजीवी शख्स भौंडे और फूहड चुटकुले पर भी खुलकर हंस लेता है, वहीं बुद्धिजीवी चुटकुला सुनते ही ऐसी गंभीरता ओढ़ लेता है गोया हंसते ही उसका वज़न कम हो जाएगा ! हमेशा गंभीर बने रहने से उसके अंदर एक कोयला सा सुलगता रहता है ! ऐसे में 'आनंद' संपर्क में आते ही झुलस जाता है ! अति बुद्धिजीवी व्यक्ति से उसकी बीवी कभी सहमत नहीं होती, और बीवी के सांसारिक तर्कों से बुद्धिजीवी सहमत नहीं होता ! ऐसे घर में आनंद की इंट्री हो तो कैसे हो ! वहाँ तो बसंत के महीने में भी पतझड़ टपकता रहता है !
'आनंद' की बढ़ती हुई डिमांड देख कर कई आढ़ती मैदान में आ गए हैं ! ये दिव्य व्यापारी शुरुआत में आनंद के बदले सिर्फ श्रद्धा लेते थे , बाद में युवा शरीर और संपदा पर भी झपटते पाए गए ! हैरत है - 'आनंद' देने वाले आनंद बांट कर भी मालामाल हो गए और लेने वाले गरीबी रेखा के नीचे पहुच गए ! आनंद की अनुभूति तक विलुप्त थी ! लेन देन का ये ऐसा दिव्य कारोबार है जहां सिर्फ आनंद देने वाला सुखी नज़र आता है ! वैसे 'आनंद' तक पहुंचने की प्रक्रिया एक जैसी नहीं है ! किसी किसी को 'संतोष' मात्र से परम 'आनंद' की प्राप्ति हो जाती है ! ( मुझे तो संतोष से एलर्जी है, उधार लेकर गाँव भाग गया !) आज अमृतकाल में संतोष करने वाले लगभग विलुप्त होने के कगार पर है ! समाज और राजनीति में बैठे डायनासोर 'संतोष' को पास भी नहीं फटकने देते ! वो जनता की विरासत वाले इस सतोगुण को जीते जी हाथ नहीं लगाएंगे ! वोटर को चाहिए कि - रूखी-सूखी खाय के सरकारी नलके वाला ठंढ़ा 'संतोष' पीते रहे,,,!
40 डिग्री तापमान में मेरा आत्मविश्वास पसीने पसीने हो रहा है ! कोरोना में बेरोजगार हो गया था, तब से आज तक 'आनंद' से आमना सामना नहीं हुआ , - आवाज़ दो कहां हो !काश मुझे भी आपदा में आत्मनिर्भर होने का हुनर आता ! मेरे जैसे हज़ारों लोग जो दूसरों की जेब में अपना आनंद नहीं ढूँढते, कभी विकास नहीं कर सकते ! अभी अभी गाँव से लौटा हूं! मेरे एक मित्र ने बताया कि कुछ जागरूक लोग 'आनंद' बाँटने गावं तक आने लगे हैं ! मेरे बचपन में तो न बिजली थी न पांच किलो वाला आनंद ! चोर गाँव में मात्र गेहूँ चुराने का जोखिम नहीं उठाते थे ! अब ठग गाँव में जाने लगे हैं ! घर में रखे आनंद को दुगुना करने के लोभ में इस बार काफी लोग आनंद विहीन हो गए !
पहले विकास के बाद आनंद आता था, अब चुनाव प्रचार के दौरान आने लगा है ! ईश्वर की तरह आनंद के भी अनंत रूप हैं! चुनाव प्रचार के दौरान ये साड़ी, सिलैंडर, सिलाई मशीन और दारू की पेटी के शक़्ल में आने लगा है ! इस दौरान हर पार्टी के उम्मीदवार 'आनंद' और ऑफर साथ साथ लाते हैं, ' एक वोट दे दो- दो बोतल आनंद ले लो' ! हमारा मित्र चौधरी इस चुनावी मॉनसून में तीन चार महीने का 'आनंद' इकठ्ठा कर लेता है ! चुनावी मॉनसून में आनंद ही आनंद बरस रहा है! सभी लोग चाहते हैं कि पक्ष विपक्ष का सारा आनंद इधर ही हाथ लग जाये, पता नहीं बाद में किसके कुंडली में वनवास आए -इसलिये मत चूके चौहान!
मैं आनंद को लेकर अभी भी कंफ्यूज हूँ, मिलेगा या नहीं मिलेगा ! चंट लोगों ने बड़ी चतुराई से उपदेश देने का जिम्मा अपने हाथ में ले लिया ! खुद चंदे का आनंद लेते हैंऔर जनता को संतोष में ही परम आनंद ढूढ़ने का सुझाव देते हैं ! मोह माया से दूर रहने और - 'दाल रोटी खाओ प्रभु के गुण गाओ - का उपदेश देते रहते हैं - ! 'आनंद' की खोज में लोग पहले हिमालय पर चले जाते थे ! आजकल लोगों ने आनंद की गठरी स्विस बैंक में जमा करना शुरू कर दिया है ! जैसे ही आनंद पर ख़तरा मंडराता है, प्राणी विदेश भाग जाता है ! बलात्कार में विश्व कीर्तिमान बनाने में लगे एक युवा महामानव ने अभी अभी देश से भाग कर विदेश में शरण ली है ! कई महापुरुषों की नाभि का अमृत विदेश में है, उनकी मज़बूरी है कि वह 'आनंद' से ज़्यादा दिनों तक दूर नहीं रह सकते!
( सुल्तान भारती)
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