'सबका साथ सबका विकास'
आसमान से गिरे ख़जूर में अटके ! सामने हाल में सोने की बजाय मैं ये सोच कर छत पर बने कमरे में सोने चला गया कि चौधरी समझेगा कि मैं घर में नहीं हूँ! अभी मुझे ठीक से नींद की खुमारी भी नहीं आ पायी थी कि चौधरी आ गया-' नीचे कूलर की हवा गरम लग रही- के ! दो घंटे ते कितै हाँड रहो!'
' पर मैं तो कहीं गया ही नहीं-!'
'मन्ने के बेरा '- चौधरी कुर्सी पर बैठता हुआ बोला-'इब नू बता अक थारा विकास हो गयो के'?
नींद के खुमारी की वज़ह से मैं कुछ और समझा, मैंने कहा, - ' वो तो तीस साल बीत गए ! अब तो बच्चे काफ़ी बड़े हो गये !'
चौधरी बिगड़ गया, - ' केले ही विकास कर लई मन्ने बताया कोन्या ?'
जैसे अंगारा छू लिया हो, मैं एक दम से खुमारी से बाहर आ गया! मैंने तुरंत सफ़ाई दी, - 'मैंने समझा तुम मेरी शादी के बारे में पूछ रहे हो!'
' मेरे गैल तू भी बुढ़ापे में आ लिया पर 'लव जिहाद' ते इब तक बाज न आ रहो-'!
" अब मैंने क्या किया?"
' परे कर लव जिहाद ने, नू बता- थारा विकास हो लिया, या कॉंग्रेस ने रोक रख्या सै ?'
'कॉंग्रेस कैसे विकास रुकेगी, वो तो विपक्ष में है!'
'तभी तो कोई विकास ने होने दे रही ! न खुद विकास कर रही, अर् न होने दे रही ! इब केले प्रधान मंत्री जी के करें-!'
विकट समस्या थी ! टीवी में खबर सुन कर चौधरी रुके हुए विकास को लेकर चिंतित था ! बस उसे शंका थी कि कहीं कॉंग्रेस से सांठ गांठ करके मैंने चुपचाप अपना विकास न कर लिया हो ! मेरी तरफ से आश्वस्त होकर चौधरी ने नई शुरुआत कर दी, -'देश की अर्थव्यवस्था घनी ऊपर लिकड़ गी, इब भैंस तो सस्ती हो ज्यागी ?'
मेरी नींद उड़ चुकी थी ! ऊपर से चौधरी के सारे सवाल ' विकास' और 'आत्मनिर्भरता' के बारे में थे, जिसमें हम दोनों ही कुपोषण के शिकार थे ! चौधरी भैंसों के भविष्य को लेकर चिंतित था और मेरा खुद उसकी भैंसों से मानवीयता का नाता था!( इन भैंसों ने ही कहीं न कहीं हम दोनों को एक बेहतरीन रिश्ते में बाँध रखा था !)
मैंने कहा ,-' सरकार तो किसानों के हक में है ! बहुत सारी स्क़ीम लाई है ! मुर्गा, बकरी,गाय और भैंस का फॉर्म खोलने के लिए शहर से देहात तक किसान फायदा उठा रहे हैँ-!'
चौधरी ने फिर सवाल दागा, -' पर कदी कॉंग्रेस ने विकास रोका, फिर,,,,,!'
'कॉंग्रेस बनवास काट रही है, वो क्यों किसानों का विकास रोकेगी ?'
मेरे बारे में चौधरी की शंका थमने का नाम ही नहीं ले रही थी,- 'मेरे धोरे एक सवाड़ हा, सही सही बतावेगो-'?
' किस बारे में-?'
' तेरी आत्मनिर्भरता के बारे में-'!
' पूछ लो "!
" इब के लोकसभा चुनाव में कॉंग्रेस ने घनी सीट लूट लई , इब तेरे धोरे कितने मंगलसूत्र इकठ्ठा हो गये-?"
मैं तो आसमान से गिरा,ये कैसा सवाल था ! मैंने घबराकर पूछा,-' क्या मुफ़्त अनाज की योजना में गेहूं के साथ मंगलसूत्र भी मिलने लगा है-'?
चौधरी ने मुझे चेतावनी दी, -' घना बुद्धिजीवी होने की ज़रूरत कोन्या-! मोय पतो है-अक् -कॉंग्रेस कू वोट देकर तम लोग मंगलसूत्र लूटना चाह रहे, पर के कर सकै, सत्ता में आने के लिए आत्मनिर्भर न हो पाए ! फिर भी इतनी सीट पाकर थोड़ा बहुत मंगलसूत्र तो छींना ही होगा ? के करेगा इतना लूट कै -! ऐसी आत्मनिर्भरता किस काम की ?"
मुझे हंसी आ गई-' अच्छा तो मेरी ये वाली आत्मनिर्भरता तुम्हारे गले में अटक रही है ! भाई मेरे, मैं लूटपाट में आत्मनिर्भर होने के मामले में बिलकुल अयोग्य हूँ ! मंगलसूत्र की कौन कहे मैं तो किसी का मोबाइल भी छीन कर नहीं भाग सकता ! अल्बत्ता दो बार चोर मेरा मोबाइल लेकर भाग चुके हैं ! अब तुम खुद सोचो मैं 'मंगलसूत्र' लूट कर कैसे आत्मनिर्भर हो सकता हूँ-?'
चौधरी के चेहरे पर सुकून नज़र आने लगा, -'इब चाय तो मंगा ले, इतना विकास तो होगा तेरे धौरे ?'
पांच मिनट बाद चाय और बिस्कुट दोनो आ गया ! मैंने चौधरी से पूछा,- ' इस बार गाम ते बड़ी जल्दी आ लिया-'?
चौधरी की आंखें आसमान में कुछ ढूढ़ने लगी थीं, -' गाम बदल गयो भारती! इब किसी के गैल थारे धौरे बैठने का वक़्त है न लगाव ! सब की चादर लंबी हो - ली ! उतै अर बुरा हाल सै, सरकार विकास के खातिर ग्राम कू पैसा भेजे, पर विकास ग्राम प्रधान के दरवाज़े से आगे जाने कू त्यार कोन्या ! खैर, विकास ने परे कर, अर् नू बता- अक् ,,,,बचपन में कदी तूने मंगलसूत्र छीना था-?"
आज पहली बार मैंने चौधरी को घूर कर देखा तो चौधरी ठहाका मार कर हंसने लगा !
[Sultan 'bharti' Journalist]
No comments:
Post a Comment