Monday, 11 November 2024

[ व्यंग्य भारती ] 'रोटी बेटी माटी'

व्यंग्य "चिंतन"

           'रोटी'   'बेटी'   'माटी' 

    'अरे ओ झुरहू काका,  इतनी सुबह कहाँ बदहवास होकर भागे जा रहे हो, जल्दी में लोटा लेना धूल गये का' ?
      " का बताएं बचवा ! कल नेता जी का भाषण सुनने के बाद रात भर नींद नहीं आई- ! अब खेत देखने जा रहा हूँ कि अपनी जगह है या कोई लेकर भाग  गया-! बड़ी मुसीबत है,  नीलगाय देखू या घुसपैठ-!'
       ' कौन घुसपैठ कर रहा है?'
    " वही जो रोटी, बेटी और माटी छीनने की घात में है , पिछले चुनाव में मंगल सूत्र छीनने की घात में था, पर नेता जी ने वोट लेकर बचा लिया था ! वैसे ससुरा आता तो भी घर में मंगल सूत्र न पाता-!'
        'क्यों ?'
    " सुखना की शादी में खेत गिरवी रख कर पांचू लाला से पैसे लिए थे ! फिर खेत छुड़ाने में तेरी काकी का मंगल सूत्र चला गया ! इस बार कोई नया घुसपैठिया है जो मंगलसूत्र की बजाय माटी, बेटी और रोटी सब छींनने की घात में है-! एक ही तो खेत बचा है '!
   " बुढ़ापे पर रहम खाओ काका ! इस उम्र में इतना दौड़ना घातक है-"!
 "तौ फिर का करी बचवा" ! 
       " नेताओं को सिर्फ वोट दिया करो,  उनके भाषण पर यक़ीन करने लगे तो नींद नहीं आएगी"!
             " हाँ  बेटवा, कल बड़ी मुश्किल से सोये तो सपने में 'पांचू लाला' को देखते ही आंख खुल गई "!
     " ऐसा क्या देखा?"
   " पाचू लाला मेरा खेत कंधे पर रखे शमसान की ओर भागे जा रहे थे,  मुझे याद है,  उन्होंने मुझे देख कर जुबान निकाल कर चिढ़ाया भी था-!" 
   " फिर तो ज़रूर जाओ ! इसी बहाने तुम्हें पता भी चल गया कि घुसपैठिया  बाहर का नहीं है-"!
        " का करें बचवा ! गरीब आदमी को सबसे डरना पड़ता है! सत्तर साल हो गये, डर जाता ही नहीं ! अब तो भूख से ज्यादा चुनाव डराता है-"!
     झुरहू काका चले गये,  ये देखने कि माटी और रोटी बची या नहीं ! 
   गावं से शहर तक  एक अज्ञात खौफ़ वायरल है! बहुसंख्यक को डराया जा रहा है, - " देवतादल को वोट  दो,  वर्ना राक्षस दल जीता तो,,,,ग़ज़ब भयो रामा जुलम भयो रे-! ऐसी महादशा आयी तो तुम्हारी महिलाओं के मंगल सूत्र छींन लिए जाएंगे"! ( आजादी के 75 साल बाद अब " राक्षस समुदाय" की नाभि का अमृत अचानक ऐक्टिवेट हो गया है है-! हनुमान जी ने आग लगा कर लंका का सारा सोना राख कर दिया था,  अब वो नुकसान मंगल सूत्र छींन कर पूरा किया जाएगा-!)
        तुलसी दास ने कहा था, - भय बिन होय न प्रीत-! उस दौर में  'प्रीत' की बड़ी मार्केट वैल्यू थी, आज ' बाँटने' और काटने' का नारा प्रीत पर भारी है ! [ वक़्त वक़्त की बात है , अब डेटर्जेन्ट से बने दूध का 'खोया' असली पर भारी है-! ढाबा से लेकर गाँव की शादी तक 'पनीर' की गंगा बह रही है-) हर जगह बिना  भय के 'प्रीत' का बोलबाला है ! पहले मिलावट में भय था,  अब प्रीत है ! अब शैम्पू से तैयार दूध में ज्यादा मोटी मलाई पड़ती है!
      सियासत में अब 'शेर' की तादाद बढ़ रही है! पार्टी के चारण गली में नारा लगा रहे हैँ, - 'देखो देखो कौन आया-!' भीड़ पहचान बता रही है-' शेर आया! शेर आया-!' पान की गुमटी पर एक बुजुर्ग शेर की तारीफ़ कर रहा है,-' तीन कत्ल और एक दर्ज़न डकैती का केस चल रहा है ! बलात्कार के केस में तीन महीना पहले अंदर गये थे ! पिछले हफ्ता ज़मानत पर बाहर आए हैं ! इस बार भी यही जीतेगे -! मुन्ना भैय्या के होते मजाल है कि कोई दूसरा क्षेत्र में दबंगई करे-!'  'भय' ने  'प्रीत' का माहौल बना दिया है ! चुनाव से पहले का विकास अंकुर ले रहा है ! अगली गली में नारा लग रहा है-
       "मंगलसूत्र"- की मज़बूरी है !
       "मुन्ना भैय्या "  ज़रूरी   है !!
मुन्ना भैया की सख्त ज़रूरत वायरल हो रही है!
               कभी हमारा देश- विभिन्नता में एकता-के लिए जाना जाता था, आज एकता की बजाय - बांटने और काटने- वाला नारा ज्यादा पापुलर है ! बड़े वाले विकास पुरूष डरा रहे हैँ कि 'देवता दल' को वोट न दिया तो 'दानव मोर्चा' पॉवर में आ जाएगा ! उनके सत्ता में तुम्हारा 'कटना' तय है,  खैरियत इसी में है कि ' बंटने' से बचो !  
     आकाशवानी होते ही सभी चुनाव पहचान पत्र लेकर लाइन में खड़े हो गये! कोई इतना भी नहीं पूछ रहा कि काटेगा कौन ! क्या देश संविधान विहीन हो चुका है ! पुलिस की भूमिका खत्म हो गयी है ? बहरकैफ, नई सुरक्षा व्यवस्था में सिर्फ देवताओ की पार्टी को वोट देने मात्र से सुरक्षा चक्र प्राप्त हो जाएगा !  लेकिन यक्ष प्रश्न तो ये है कि काटने  वाला कौन है, कहां का है और कहां रहता है? कभी मंगल सूत्र , कभी घर पर कब्जा और इस बार रोटी बेटी और माटी तीनो पर कब्ज़ा करने की तैयारी ! प्रशासन इतने बड़े अपराधी की सारी गुप्त योजनाएं कैसे जान लेता है? और जान लेने के बावजूद उन पर कोई ऐक्शन क्यों नहीं लेता ? 
      मैं भयभीत होने की कोशिश में बार बार चिंतित हो रहा हूँ !  शाम होते होते खबर चौधरी तक पहुंची तो उसने सुबह होने का भी इन्तेज़ार न किया,-'  उरे कू सुन भारती ! यू बाँटने अर् काटने का के मामला सै -! घना हंगामा है -!'
     "  मैंने भी सुना  है, पर कोई नहीं बता रहा है कि बांट कौन रहा है!'
      ' बुद्धि लाल  बता रहो, अक् कोई पंचर वाड़ा "अब्दुल"  है जो पहले मंगलसूत्र खींच कै भागा था, इब के भैंस अर् तबेला ठाकर भागने वाड़ा सै -! एक घंटे ते ढूंढ रहा हूँ,  कित मिलेगो -?'
 
           तब से मैं खुद परेशान हूँ,  लोग हर चुनाव में चौधरी को भड़का देते हैं  ! मेरे खुद समझ में नहीं आ रहा कि हर चुनाव से पहले 'अब्दुल'  पंचर का काम छोड़ कर  'चंबल' क्यों चला जाता है!
           अब  फिर "पंचर वाले अब्दुल" को "सुल्ताना डाकू" साबित किया जाएगा !

              ( Sultan bharti)
       

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