Monday, 8 April 2024

(व्यंग्य चिंतन) ग़रीबी रेखा पर खड़ा जीव

"व्यंग्य चिंतन "
गरीबी रेखा पर खड़ा जीव

      अब का बताएं भैय्या ! मुझे अपने पिछड़ेपन पर शर्म आ रही है और खासा गुस्सा भी ! वर्मा जी के पड़ोस में बस कर भी मैं ज़माने के हिसाब से खुद को अपडेट न कर पाया ! जब कोरोना आया, तो मैं 2 ग़ज़ दूरी को फॉलो न कर सका, जब कि वर्मा जी फ़ोन की लाइट जलाने से लेकर ताली, थाली,झांझ, मजीरा से ढोल नगाड़ा तक चले गए ! इतना पिछड़ापन होने के बावजूद चौधरी को जागरूक करने की ज़िम्मेदारी भी मेरे ऊपर है! क्या करें, हर ख़बर के सत्यापन की गहन ज़िम्मेदारी मेरी है ! खास ईद के रोज कुछ ऐसा ही हुआ !
     साढ़े 7 बजे सुबह ईद की नमाज़ पढ़ कर अभी मैं घर में घुसा ही था कि दरवाज़ा खोल कर चौधरी अंदर आया! मैं कुछ बोलता, उससे पहले ही चौधरी गुस्से में बोला,- कितै लिकड़ गया सुबह सुबह-'?
  ' आज ईद है, आ गले लग जा !'
' हट जा भारती पाछे नै !!'
     ' क्यों ! क्या हुआ '? 
' मोय पतो है अक् तू कहां ते लिकड़ कै आ  रहो!'
      ' मस्जिद से!'
  ' न ! गरीबी रेखा के नीचे ते लिकड़ के आ रहो ! केले केले  लिकड़ आया ! मुझे गैल न लिया ! हद हो गई बेशर्मी की-'!
      मैं अवाक था ! मैं वाकई मस्जिद से ईद की नमाज पढ़ कर आ रहा था, और चौधरी बड़ा गंभीर आरोप लगा रहा था कि  मैं गरीबी रेखा के नीचे से निकल कर आ रहा हूँ ! एक बारगी तो मुझे भी अपने ऊपर शक होने लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि मैं मस्जिद के बजाय गरीबी रेखा के नीचे से निकल कर आया  हूँ ! लेकिन मुझे भनक तक नहीं लगी , और चौधरी ने देख भी लिया ! क्या इतनी खामोशी से ग़रीबी रेखा के नीचे से ऊपर आया जाता है कि निकलने वाले को भी अपनी आहट न मिले ! ग़ज़ब भयो रामा,,,!
    मैने जेब टटोल कर देखा, जेब में 20 रुपये का एक विकलांग नोट अभी भी मौजूद था ! इस नोट ने  मेरा ढहता हुआ मनोबल  दुरुस्त किया और यक़ीन दिलाया कि मैं वहीं खड़ा हूँ जहां कल शाम था ! मैंने चौधरी को समझाया,- ' मैं ग़रीबी रेखा से बिलकुल बाहर नहीं आया, तुम तलाशी लेकर देख सकते हो ! जेब में वही बीस का नोट है जिसे परसों तुमने  लेने से मना किया था !-'!
    चौधरी सकते में आ गया,- ' वर्मा जी ने मोहल्ले में एक पोस्टर चिपकाया है, कि  पिछले दस साल में साढ़े तेरह करोड़ लोग ग़रीबी रेखा के  नीचे ते बाहर लिकाड़े गए , पर लिस्ट  दिखाई  को न्या !'
    मैंने चैन की साँस ली ! वर्मा जी का इस्कड मिसाइल फेल हो चुका था ! चौधरी कुर्सी पर बैठता हुआ बोला-' उरे कू सुन भारती ! जो लोग गरीबी रेखा ते बाहर लिकड़े सूं , उन्हें पहचाने कैसे-'! 
     विकट समस्या थी, -  चिंता मुझे भी होने लगी ! इतनी बड़ी संख्या में लोग गरीबी रेखा से बाहर निकाले गए हैं ! पता नहीं निकलने वाले लोगों को जानकारी है या वो भी अंधेरे में हैं ! मैंने बूमरेंग का रुख वर्मा जी की तरफ मोड़ दिया-' हो न हो, वर्मा जी को सारी जानकारी है! क्या पता अपनी कॉलोनी की लिस्ट उन्होंने ही  सरकार को भेजी हो ! काफ़ी तेज आदमी है-'!
    ' इब कै सारी तेजी लिकाड़ दूँगा-'! चौधरी गुस्से में बोला-'  इब देखता हूँ अक् कैसे लिकड़ता है ग़रीबी रेखा ते बाहर-, वापस धकेल दूँगा-!'
 मैं यही तो नहीं चाहता था ! बड़े मुश्किल से चौधरी को समझा पाया कि ये वर्मा का नहीं केंद्र सरकार का काम है ! अब चौधरी और भी हैरान था,- ' खली , चोकर ,बिनौला  अर  हरा चारा सबै मंहगा हो गयो ! अर् दूध के लिए तू भी रौला काटे अक घना पानी दीखे ! के करूँ बता, पूरो तबेला ग़रीबी रेखा के नीचे घास चर रहो ! साढ़े तेरह करोड़ में छ: भैंस तो ले सकते थे-! ' 
   'हो सकता है अगली लिस्ट में भैंसों का नंबर आ जाए, लो सिवईं पियो-!'
     थोड़ी देर बाद नॉर्मल होकर चौधरी ने विचित्र सवाल पूछ लिया,-' तू कद लिकड़ेगा ग़रीबी रेखा से बाहर-?'
      ' निकालने का काम सरकार का है ! पब्लिक का कर्त्तव्य है- चुनाव से पहले गरीबी रेखा के नीचे जाना, उस बाधा दौड़ में अब मैं क्वालिफाइड हूँ-!'
     "अर् मैं ?"
   " हम और तुम एक ही केटेगरी मे हैं, मगर ग़रीबी रेखा के नीचे से निकालने का काम रोज रोज नहीं, बल्कि पांच साल में एक बार होता है! "
     " तब तक के करूं?"
    ' वेट करो ! पहले भी बाहर आने के लिए साठ पैंसठ साल वेट किया था ! अभी तो जुमा जुमा  दस साल हुए हैं ! - ज्ञानी लोगों ने संतोष को 'परम सुखम'- बताया  है ! रास नहीं आ रहा है का !'
     'थारा उपदेश कुछ खास समझ में न आ रहो-'!
       'तो सुनो, देवासुर समुद्र मंथन के बाद पहली बार पृथ्वी पर अमृतकाल आया है, जब बग़ैर समुद्र मंथन के अमृत पान की अनुभूति हो रही है ! यह जो अनुभूति है, बड़ी काम की चीज़ हैं ! ये हमें जड़ और चेतन का फर्क बताती है ! प्रेम, आनंद और ऑक्सीजन इसी अनुभूति का परिणाम है ! अमृत काल भी इसी अनुभूति की प्रचंड उपस्थिति है ! मेरा ख्याल है कि अब गरीबी रेखा से ऊपर निकलने की मोह माया में नहीं पड़ोगे -'!

    समझ में कुछ न आए तो अपने पर कम मगर सामने वाले पर ज़्यादा गुस्सा आता है !  चौधरी आधी सिवईं छोड़ कर उठ गया !  मैं अभी भी साढ़े तेरह करोड़ वाली लिस्ट को लेकर चिंतित  हूँ ! पता नहीं उस लिस्ट में हमारे मोहल्ले के - कितने आदमी थे- ! ( सांभा है कि बोलता नहीं !)
   

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