Wednesday, 14 August 2024

(व्यंग्य चिंतन) पानी

[व्यंग्य चिंतन]  

" ई है "संगम विहार" ज़रा देख बबुआ"! 

    अब का बताएं भैया कि इस बस्ती में 'पानी'की समस्या ने किस तरह नाको चने  चबवा दिए ! दो दिन से  एक कविता याद आ रही है, ज़रा सुनिए -                        नल  से  वाटर  टपक   रहा  ऐसे !
                      किसी  विरहिन के आंसुओ जैसे !
                      तीन   दिन  से  नहीं   नहाये   हैं !
                      जब   से  "संगम विहार" आए हैं !!

      अब आप सोचते होंगे कि संगम विहार ज़रूर राजस्थान, सहारा या सिनाई रेगिस्तान की कोई बस्ती होगी,  जहाँ  अच्छे दिन की कोई पहुंच नहीं है ! अरे नाहीं  हो , ई अनाथ विधानसभा तो देश की राजधानी  दिल्ली में है और  वो भी साउथ दिल्ली में ! हे बाबू i ई मा हैरान होने की कौनो ज़रूरत नाहीं- ! संगम विहार में विकास आते हुए घबराता है ! ऐसी घबराहट उसे हर मौसम में होती है ! चलिए आज आपको उपेक्षा के हाशिए पर जी रहे संगम विहार के विकास की कहानी सुनाते हैं!
      1990 में जब मैं यहाँ आया तो कालोनी बस रही थी ! पानी और बिजली दोनों गायब ! विकास और तारणहार की जगह यहां नीलगाय घूमते थे ! 1993 में विधानसभा बनते ही विकास की सुनामी आ गई ! जनता की मुख्य समस्या पानी थी ,( वैसे सड़क और बिजली भी नहीं थी,  पर उसके बगैर लोगों ने जीने की आदत डाल ली थी!) 1993 में दिल्ली विधानसभा चुनाव का ऐलान हुआ तो संगम विहार की जनता कन्फ्यूज हो गई ! हर पार्टी के तारणहार विकास की लिस्ट लेकर आ गए थे ! जनता की समझ में नहीं आ रहा था कि  किसके वाले  'टूथपेस्ट' में नमक है ! जनता सिर्फ पानी, बिजली और सड़क का विकास चाहती थी, लेकिन यहां चुनाव में उतरे तारणहार-200 बिस्तर वाला हॉस्पीटल, कॉलेज, पार्क, पोस्ट ऑफिस, बैंक, सीवर सब कुछ देने पर उतारू थे !
         जब जनता ने देखा कि इतने सारे  'भागीरथ' गंगा लेकर आ गए हैं तो उनको विकास में कुछ काला नज़र आने लगा ! बस उन्होंने सारे  उम्मीदवारों को छोड़ कर एक आजाद उम्मीदवार को चुन लिया ! ( ये वही साल था जब संगम विहार  के लोग पूरी पूरी रात जाग कर "काला बंदर" ढूँढते थे ! दिन में काला बंदर और विकास दोनों जाने कहाँ छुप जाते थे ! संगम विहार की जनता ने हर पार्टी को मौक़ा दिया और सभी ने ' भरपूर' विकास किया,   पर यहाँ की जनता का दुर्भाग्य देखिये कि विकास उसके दरवाज़े तक नहीं पहुंचा ! ससुरा 'विकास' 'विधायक' के ऑफिस में आकर  पसर  जाता था !
       2015 की "झाड़ू क्रांति" के बाद संगम विहार के आम आदमी को पूरी उम्मीद थी कि - दुख भरे दिन बीते रे भैय्या- अब सुख आयो रे,,,! किन्तु पानी का संकट अभी भी बना हुआ था ! पार्टी सुप्रीमो ने संगम विहार की जनता का जल संकट देख कर वहाँ के विधायक को ही दिल्ली जल बोर्ड का मुखिया बना दिया, पर लगता था पानी ही संगम विहार आने को राजी नहीं था ! विधायक ' स्वर्ग'  (सोनिया विहार) से गंगा का पानी संगम विहार लाना चाहते हैं पर-' पानी है कि मानता नहीं-! बाद में बड़ी अनुनय विनय के बाद जब सोनिया विहार में गंगा का पानी घुसा तो उसने शर्त रख दिया,- मैं सदियों से पापियों को "तारने" में लगी हूँ,  पहले मैं यहां के पापियों को "तारने" का काम करूँगी !
सुना है यहां पर पानी माफ़िया बहुत हैं ! पहले उनके काम आती हूँ  ! और रही यहाँ की गरीब जनता,  तो उसके पास पानी तक तो है नहीं , मेरे धोने लायक पाप कहां से  लायेगी ! ऐसी निष्पाप जनता मेरे किस काम की -'! बस तभी से जनता टैंकर की 'नाभि का अमृत'  ग्रहण कर रही है और गंगा ने अपने पानी को पापियों के "कल्याण" में लगा दिया है-!
       "आप" की महिमा न्यारी, एक बार टिकट दे दिया तो उम्मीदवार को बदलने का जोखिम कौन उठाए ! इसी सोच ने सियासत में चारण पैदा कर दिया ! वर्तमान विधायक ने जगह जगह क्षेत्र में बोर करवा के पानी की कमी का आँशिक  समाधान तो किया है किन्तु अगस्त से दिसंबर तक ही इन बोरबेल में वाटर लेवल कारगर होता है! उसके बाद गर्मी के 6 महीने प्यासी जनता नारा लगाती हैं,,,,
संगम विहार की करूँण कहानी !
टंकी  खाली  -  सड़क  पे  पानी !!
      समझ में नहीं आता कि संगम विहार के लोगों को टैंकर से कब छुटकारा मिलेगा, कब उनके घर के  नलों में पानी आएगा? 
     संगम विहार में पानी की विकट समस्या है और खुद "पानी"भी एक बड़ी समस्या है , छत पर रखी टंकी खाली है और सड़क पर पानी की कोई कमी नहीं ! नाली की गंदगी बीमारी पैदा करती है! सीवर व्यवस्था इतनी अलौकिक है कि बारिस के दिनों में संगम विहार की लड़कों पर नदी बहने लगती  है, - ' शर्म उनको मगर नहीं आती-' ! विकास अभी विलुप्त है,  परंतु जैसे जैसे विधानसभा चुनाव नज़दीक आ रहा है, अप्रवासी 'तारणहार' विकास की वैतरनी लेकर क्षेत्र में आने लगे हैं !
             आज बारिश हुई है और मैं संगम विहार आया हुआ हूँ ! पीपल चौक पर खड़ा हूँ ! नेताओं  के आंख के अलावा हर जगह पानी नज़र आ रहा है ! दूर दूर तक सड़क पर पानी बह रहा है ! बारिश और  नाली का पानी एक होकर- मिले सुर मेरा तुम्हारा- याद दिला रहा है ! हमदर्द तक जाने के आटो वाला 15 रुपये की जगह मुझसे 25 रुपये मांग रहा है ! ( दस रुपया पानी में आटो चलाने के!)  पानी की इस आपदा ने जाने कितने लोगों को आत्मनिर्भर होने का अवसर दिया है !

आज की 'आपदा'  में आटो वाला मुझे भी 'अवसर' समझ रहा है !
                        Sultan bharti (journalist) 





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