मनसा, वाचा कर्मणा मैं शरीफ आदमी हुआ करता था , पूरी तरह गांधी वादी ! अल्बत्ता दूसरा गाल कभी आगे नहीं किया, ( क्योंकि मैं जनता था कि पीटने वाला एक गाल से कभी संतुष्ट नहीं होता है !) मैं शरीफ तो था, पर इतना नहीं कि कोई मेरे कुरते में नाक पोछ कर भाग जाए ! शारीफ आदमी दूध देने वाली उस लावारिस गाय की तरह होता है जिसे हर आदमी दुहनें की घात में होता है! हमारे गाँव के जमालू भाई ऐसे ही शरीफ लोगों में आते हैं ! हालाकि वो आदमी हैं, मगर लोग उन्हें अक्सर लावारिस गाय समझते हैं, कई ठेकेदार काम लेकर उन्हें मजदूरी कम देते हैँ या रोक लेते हैं ! शोषण या पीडा हद से बढ़ जाए तो शब्द भी समाधान की तरह विलुप्त हो जाते हैँ ! ऐसे में इंसान के आँसू भी दर्द को बहाने से मना कर देतेहैं ! जमालू भाई के एक भी खेत नहीं हैँ, मगर चार बेटियाँ हैँ ! दो बेटियाँ व्याह दी, दो की फिक्र में आज कल शहर में रिक्शा चलाते हैं! सवारी जो दे दे, ले लेते हैँ, कि सवारी कहीं नाराज़ न हो जाए ! इसी शराफत नें उनकी ज़िंदगी की ज्यादातर खुशियों से सारे रंग छींन लिए हैं, शराफत अभिशाप भी होती है !
मैंने शरीफ लोगों पर गहन रिसर्च किया तो जाना कि यहाँ भी नकली माल ज़्यादा है! फर्जी मुस्कराहट के साथ बेहद गर्मजोशी से मिलने वाला हर शख्स शरीफ नहीं होता ! ज़रूरत से ज्यादा गंभीर नज़र आने वाला शख्स भी शराफत को नहीं, 'बगुला' को अपना आदर्श मानता है! ( बच के रहना रे बाबा,,,) मिलावट का माल बेचने वाला जिस कॉन्फिडेन्स और गंभीरता के साथ मिलावटी सामान के शुद्धता की गारंटी देता है,उसे सुनकर तो असली माल को भी हीनता का एहसास होनें लगता है ! अब ये सारे काम शरीफ आदमी के बस का कहां ! वह तो व्यापार के कुरुक्षेत्र में उतरते ही पाप पुण्य के माया मोह में उलझ कर गांडीव फेंक देगा ! शरीफ आदमी पर धर्म का तिलिस्म सवार होता है ! वो सत्य,दया,शील, त्याग, संतोष में परम सुख और दान में आनंद की तलाश में रहता है ! इन्हीं दिव्य अनुभूति की खोज में ज़िंदगी खर्च कर देता है, और एक दिन अपनी आक्रोशित और असंतुष्ट पत्नी को मजधार में छोड़ कर दुनियां से चल देता है ! शरीफ होना और खुशहाल होना दो विरोधी विशेषताएं हैँ! (अपवाद से इनकार नहीं!)
मैं खुद बड़ा शरीफ आदमी हुआ करता था ! शराफत कुर्बानी मांगती है ! शराफत के बारे में 'कबीर' का अनुभव और भी खतरनाक था,- जो घर फूके आपनो चले हमारे साथ - ! बहुत नुकसान उठाने के बाद कबीर को ये ज्ञान प्राप्त हुआ होगा ! तब तक तो बाबा "भारती" का घोड़ा कई बार 'खड़कसिंह' लेकर भाग चुका था ! ) मैं अक्सर सोचता हूँ कि शरीफ आदमी शातिर क्यों नहीं होता ? उसकी फितरत में आक्रमन न सही बचाव तो होता ! अति सरल और सज्जन आदमी किस अजाब में जीता है ! दूसरी तरफ,,,खलनायक तान कर सोता है!
दुनियां में सज्जन और शरीफ लोगों की आबादी ज्यादा है, तभी दुष्ट और 'खल' प्रकृति के प्राणी फलफूल रहे हैँ ! हमारे एक मित्र हैँ, सरवर उज्जैनवाल, कई बार लोगों नें ठगा , हर बार सरवर भाई नें कसम खाई कि अब शराफत के नज़दीक नहीं जाऊँगा, कोई जिये या मरें ! मगर जनाब, वो कहावत है न- आखिरी वक़्त में क्या खाक मुसलामा होंगे-! शराफत छोड़ना कौन सा आसान काम है! जब बदमाशी आपके जीन्स में ही नहीं है, खलनायक बनेगे कैसे ! हमारे अवध में ऐसे नौसिखिया के बारे में भी कहावत है,- चुरावै न जाने लईके भागे-! आखिरकार चोरी करना भी एक कला है और गुंडई करना तो उससे भी बड़ी कला ! तो,,,आज भी सरवर भाई अपने शरीफ होने की किश्त भर रहे हैँ ! समाज हो या सियासत, शरीफ आदमी हर जगह घाटे में है !
15 साल की उम्र से अखबार में छपने लगा था !.शराफत मेरे खून में थीं, इसलिए संपादक फायदा उठाते रहे ! एक सैनिक अखबार नें पूरे 50 आर्टिकल का पेमेंट डकार लिया ! दो चार आर्टिकल का पैसा डकार लेना तो संपादक का जन्मसिद्ध अधिकार होता है! शरीफ आदमी को किसी की जेब से पैसे निकालने की कला नहीं आती, बस लुटना जनता है ! उसे अजनवी नहीं, नजदीकी रिश्तेदार और मित्र लूटते हैं! कई बार तो वो ऐसे आदमी से ठगा जाता है, जिस के बारे में उसके मित्र भी सावधान कर चुके होते हैं कि- ' वो कई लोगों के पैसे खा चुका है-' ! लेकिन शरीफ आदमी,- आ बैल मुझे मार- की आदत से ग्रस्त होता हे, ठगे जाना उसकी नीयति है!
शराफत छोड़ना चाहता हूं, पर कैसे छोड़ना है, वो भी नहीँ आता 62 साल पुरानी बीमारी है ! केजरीवाल जी की खांसी जैसी जिद्दी है ! सच तो यह है कि ज़्यादातर शरीफ आदमी को सही या गलत आदमी को परखने का शऊर ही नहीं होता ! ठगो को मालदार बनाये रखते के लिए खुदा ने शरीफ आदमी को इस चतुराई से वंचित कर दिया है! जब तक है जान,,,,लुटते रहिए !
एक शे'र मुलाहजा फरमाएं,.....
हमें किसी को परखने का भी शऊर नहीं !
हर एक शख्स पर एतबार कर लिया मैंने !!
......[ सुलतान 'भारती']
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