अपना देश चमत्कारी पुरूषों से लबालब भरा है। इनके दिव्य कारनामों को सामने लाने वाली मीडिया उनसे भी महान है । एक घटना होती है तो पहले दिन कुछ होती है फिर अगले दिन कुछ और नजर आती है, और आखिरकार थाने जाकर पता चलता है कि जिसको समझा था खमीरा वो भकासू निकला ! वादी सकते में और प्रतिवादी पुलिस की दिव्य जांच से गदगद गाने लगता है, - आज मैं उपर आसमां नीचे,,,,! आए दिन आसमां नीचे और कोरोना कंटेंट ऊपर जा रहा है ! सच को कोहरे में लपेट दिया गया है - सीधी सड़क भी जांच में पगडंडी पाई जा रही है।
कोरोना ने अर्थव्यवस्था और आबादी को घातक चोट पहुंचाई, लेकिन ऑक्सीजन लेवल मीडिया का गिरता चला गया । हमारे देश की मीडिया को जाने कौन सा रोग लगा है कि बगैर किडनी के चल रहा है! प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ जनता में अपनी विश्वसनीयता खोता जा रहा है ! अब न्यूज कम - ब्रेकिंग न्यूज़ ज्यादा आती है , जहां खबर के साथ साथ भरोसा भी टूट जाता है ! सिर्फ़ सच दिखाते हैं हम-,' हर खबर पर पहली नजर - ' और ' सच डंके की चोट पर -' देने वाले सच को सात पर्दों में छुपा कर परोसते हैं - ढूंढ सके तो ढूंढ ! मैं सोचता हूं कि अगर सोशल मीडिया न होती तो जनता को क्या क्या झुनझुना दिया जाता ! क्योंकि मीडिया के सारे 'भीष्म पितामह' तो राज सिंहासन से बंधे हैं, सच का चीरहरण दिखाई ही नहीं देता किसी को!
ख़बर सुनकर सच को समझना भूसे के ढेर से गेहूं का दाना निकालने जैसा है ! सोशल मीडिया और इलेक्ट्रोनिक मीडिया के बीच में सच कहीं जलेबी बन कर छुप जाता है - ' बूझो तो जानें -! सच की तालाश में दिल दिमाग पर चोट खाई जनता हल्दी मिला दूध पीकर सो जाती है। सच की संजीवनी खोजने कुछ मीडिया मुगल हिमालय पर बैठ गए हैं और कुछ डिबेट का समुद्र मंथन चला रहे हैं ! जनता हर चैनल पर "किसान आंदोलन के अवशेष" ढूंढ़ रही है, वो कहीं नज़र नहीं आ रहा है ! हर चैनल बस - अंतिम सांस लेता कोरोना और तीसरी लहर - की पदचाप सुना रहा है !
एक और चैनल है देश में जिसके सामने सोशल मीडिया भी पानी भरे, वो है पुलिस का चैनल , जहां खबरों को कोल्हू में डाल कर सच का जूस निकाला जाता है। वैसे तो सारे मीडिया के लोग खबरों के संकलन के लिए पुलिस के संपर्क में आते ही हैं किंतु पुलिस की अपनी मीडिया कितनी सशक्त और महान है इसकी कल्पना भी है की जा सकती ! शांति , सुरक्षा और न्याय का डंडा लेकर बैठी पुलिस कब किसे क्या दे दे - कहा नहीं जा सकता ! हर आदमी शांति, सुरक्षा और न्याय चहता है मगर थाने जाते हुए पैर कांपता है। ऐसे में पोलिस को कभी कभी जबरदस्ती भी देना पढ़ता है ! जब जब पुरवाई चलती है तो प्राणी को शांति, सुरक्षा और न्याय पाने का एहसास होता है !
जून २०२१ के पहले हफ्ते में यूपी के जिला गाजियाबाद में एक बुजुर्ग आदमी को कुछ लोंगो ने पकड़ कर पीटा , जय श्री राम के नारे लगवाए और उनकी दाढ़ी काट ली ! सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल हुआ तो कोहराम मच गया ! ( आज कल क्राइम करने के बाद भागने की जगह वीडियो डालने का फैशन पॉपुलर है ! ) पीड़ित बुजुर्ग को लेकर उनका युवा बेटा स्थानीय थाने पहुंचा ! दाढ़ी के कटने को लाभदायक बताते हुए एक पुलिस वाले ने बुजुर्ग को समझाया ,- तो क्या हुआ ! दाढ़ी कट जाने से अबतुम्हारे चेहरे को बराबर हवा मिल रही है ' ! ( गोया चेहरे को ऑक्सीजन मिलने के रास्ते में दाढ़ी स्पीड ब्रेकर बन गई थी !)
.पर अभी तो ये बस शुरुआत थी। दाढ़ी कटने को लेकर एक संप्रदाय विशेष में आक्रोश था ! पुलिस को दूर से इस आक्रोश के पीछे ' दंगे की साजिश ' नजर आ गई ! पीड़ित बुजुर्ग सैफी साहब अपने समुदाय के जिस हमदर्द को अपना दुख बांटने वाला और इकलौता मददगार बता रहे थे ,उसी को " माहौल खराब करने" के जुर्म में पुलिस ने अंदर कर दिया ! गनीमत रही कि पुलिस जांच में दाढ़ी गवांने वाले बुजुर्ग अपराधी नहीं पाए गए ! इस तरह यूपी पुलिस की सतर्कता से एक दंगे की "भ्रूण मृत्यु" हो गई ! किंतु अभी बहुत से खुलासे बाकी थे !
पुलिस की जांच का अगला खुलासा सुन कर लोगों पर सकता छा गया। पोलिस ने बताया कि दाढ़ी काटने, जै श्री राम का नारा लगवाने और पीटने के इस पूरे मामले के पीछे मॉबलिंचिंग नहीं " ताबीज" थी !. पोलिस ने खुलासा किया कि जांच में पीड़ित बुजुर्ग कारपेंटर नहीं तांत्रिक पाए गए ! उनकी ताबीज़ से प्रतिवादी पक्ष को इन्फेक्शन हो गया था ! इस ख़ोज से पीड़ित बुजुर्ग सन्नाटे में आ गए, क्योंकि वो खुद नहीं जानते थे कि वो ताबीज़ बनाते हैं ! अभी तक उन्हें यकीन था कि वो सिर्फ़ बढ़ई का काम करते हैं ! मुहल्ले वाले अलग सदमे में थे, लोगों ने उन्हें हमेशा लकड़ी का काम करते देखा था ! सहानुभूति अब शक के शिकंजे में थी और पुलिस शांति सुरक्षा और न्याय का डंडा लेकर ताबीज़ पर आकर रुक गई थी !
पुलिस ने वो दिव्य ताबीज़ खोज लिया था जिसका पता बनाने वाले को भी नहीं था ! ताबीज़ ने एक्टिवेट होकर अपना काम भी शुरू कर दिया था ! दाढ़ी की आड़ में दंगा लेकर खड़ा पहलवान भी पकड़ लिया गया था ! ( खुद पहलवान को पकड़े जाने पर ही पता चला कि दाढ़ी कटने की आड़ में वो दंगा करवाना चाहता था !) अभी इसका खुलासा नहीं हुआ है कि अनिष्टकारी ताबीज़ से प्रतिवादी पक्ष का कितना बड़ा नुकसान हुआ है ! ये भी नहीं पता कि प्रतिवादी पक्ष दाढ़ी काट कर संतुष्ट है या मुआबजा लेकर मानेगा ! रहा दाढ़ी खो चुका वादी पक्ष - तो,,,,उनकी तो लॉटरी लग गई, थोड़े से थप्पड़,चप्पल और डंडे खाकर उन्हें कितनी कीमती जानकारी हाथ लगी कि दाढ़ी काट जाने पर चेहरे को भरपूर ऑक्सीजन मिलती है !
इस घटना से हमें ढेर सारा सबक मिलता है ! अब अगर आपको रास्ते में पकड़ कर लूट ले तो थाने जानें से पहले अपनी गलती पर आत्म मंथन करें, -' हमें इस मासूम लुटेरे रास्ते में आना नहीं था ! शरीफ़ आदमी था,सिर्फ लूट पीट कर छोड़ दिया। शायद "ऊपर से" मिले पैकेज में जान से मारना शामिल नही था!-' ! अगर कोई गला रेत कर छोड़ दे तो मरने से पहले अपने कर्मपत्र पर नज़र डालें, कभी आपने उसकी भैंस तो नहीं चुराई थी ? क्या पता आपने चुराया हो और आपको भनक भी ना लगी हो ! ये तो थाने जाकर ही पता चलेगा !
जांच जारी है - दारोगा जी सौ गुनाहगार को छोड़ देंगे मगर एक बेगुनाह ( दाढ़ी कटाने वाले बुजुर्ग ) को सजा नहीं होने देंगे !! दाढ़ी वाले बुजुर्ग को बचाने के तुफैल में दाढ़ी काटने वालों को छोड़ना ही पड़ेगा !!
( सुलतान भारती)
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