Wednesday, 30 June 2021

"धर्म का एक्सचेंज ऑफर"

 ( व्यंग्य)         ''आस्था का एक्सचेंज ऑफर"

            आज़ कल मानसून बड़ा बेईमान हैं ! कोरोना ने गोया मानसून को डस लिया है, कहीं धूप कहीं छांव ! गांव में बारिश हो रही है - दिल्ली जल बिन मछली हुई पड़ी है ! रोजगार विहीन प्राणी बाहर धूप खाता है और घर में बीवी की डांट  ! उधर फेसबुक पर देश के तमाम नटवरलाल' घर बैठे लाखों कमाएं ' का ऑफर दे रहे हैं, लेकिन दिल है कि मानता नहीं। सारे रोजगार कार्यालय सोशल मीडिया पर चले आए हैं । अगर आप संतोषम परम् सुखम मे आस्था रखते हैं और लाखों कमाना पसंद नहीं है तो 'हजारों  रोज़ कमाएं' का ऑफर भी है ! लगता है सारे देवपुरुष फेस बुक पर उतर आए हैं। अब अगर इतने पर भी हम मोक्ष प्राप्त करने में सफल न हुए तो पूर्व जन्म के कर्म आड़े आ रहे हैं! इधर इक हफ्ते से सोशल मीडिया का कलेवर बदल गया है ! संस्कार,सुविचार और रोज़गार बांटने वाले धर्म परिवर्तन में उलझ गए हैं!  
       लॉन्ग लॉन्ग एगो,,,,,, जब लव में जेहाद का फंगस नहीं लगा था , तो अंतर्जातीय विवाह को लव मैरिज कहा जाता था ! आज कल ऐसे सारे विवाह धर्मपरिवर्तन की दंड संहिता के अंदर आते हैं ! पहले धर्म परिवर्तन पर रोक नहीं थी ! ( रोक आज भी नहीं है किंतु यह इस बात पर निर्भर करता है कि प्राणी किस धर्म में जा रहा है !) संविधान कहता है धर्म निजी स्वतंत्रता का विषय है ।वैसे किसी भी धर्म को स्वीकार करना या  न  करना आपकी मर्ज़ी है और कानूनी अधिकार भी !.किंतु थ्योरी और प्रैक्टिकल में भारी फ़र्क होता है ! अब धर्म परिवर्तन करने से पहले पुलिस को सूचना देना आवश्यक है; ताकि जांच अधिकारी तय कर सके कि इस धर्मपरिवर्तन के पीछे घर वापसी है या लव जेहाद ! ये जो दरोगा जी हैं, वो पूछ सकते हैं, -" मेरे मुखबिर ने सूचना दी है कि आपने धर्म परिवर्तन किया है?'
' जी दारोगा जी।'
' ये गुंडा गर्दी नहीं चलेगी , फौरन घर वापसी करो '!
"मगर मैने तो आठ साल पहले धर्म परिवर्तन किया था ! तब तो किसी को कोई दिक्कत नही थी?"
" हम तुम्हें मनमानी नहीं करने देंगे ! फौरन घर वापसी करो वरना घर सहित अन्दर कर दूंगा "!
       " पर मैने तो आठ साल पहले धर्म परिवर्तन किया था दरोगा जी ?"
                 "  यानि आठ साल से समाज में लव जेहाद चला रहे हो ! बेहद संगीन जुर्म है ! इतनी धाराएं लगेंगी कि पुनर्जन्म लेकर सजा पूरी करनी होगी ! चुपचाप घर वापसी कर लो वरना ये केस थाने से बाहर खड़ी भीड़ को दे दूंगा '!
         लव जेहाद - सुनने में ऐसा लगता है गोया गुलाब जामुन केअंदर से छिपकिली बरामद हुई हो ! सारा 'लव' फेंकना पड़ेगा ! कमाल की बात है कि लव  करने वालों को भी पता नहीं चलता कि उनके लव के अंदर जिहाद  घुसा बैठा है ! (लापरवाही के चलते - कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे !) वक्त कितना बदल गया, पहले कभी हैजा आया करता था, फिर स्वाइन फ्लू आया, कोरोना आया - और अब धर्म परिवर्तन आ गया ! सर्व विकास और जीडीपी का फेफड़ा भले सूख रहा हो, लेकिन  "सामाजिक क्रांति" के लिए हमारा समाज बहुत ज़्यादा पोटेंशियल है । अभी अभी खोज करने वालों ने जेहाद की एक नई प्रजाति खोज निकाली है - 'रेहड़ी जिहाद' ! ये सोशल मीडिया के वैज्ञानिकों के कठिन परिश्रम का नतीजा है ! ( कुछ जिहाद पर अभी रिसर्च का काम चल रहा है, जैसे - मुर्गा और अंडा जिहाद, पंचर जिहाद, कारपेंटर जिहाद, कबाड़ी जिहाद, रंगाई पुताई जेहाद - भिखारी जिहाद  आदि !)
      धर्म परिवर्तन के केस में पुलिस धर्म देख रही है, परिवर्तन से उसे कोई लेना देना नहीं है । धर्म परिवर्तन दो तरह का होता है! एक से समाज का भला होता है, दूसरी से शांति सुरक्षा और न्याय को चोट लगती है। कोई और चोट पहुंचाए. यह पुलिस बर्दाश्त नहीं कर सकती । धर्म परिवर्तन के ऐसे हर केस की पुलिस गहन छानबीन करते हैं और यह सुनिश्चित करती है कि किस धर्म परिवर्तन से समाज को नुकसान हो रहा है और किस धर्म परिवर्तन से समाज मजबूत हो रहा है। धर्म परिवर्तन को दो श्रेणी में रखा जाता है; एक लव जिहाद की श्रेणी है और  दूसरी घर वापसी की ! पहले वाले के लिए 'रासुका' का प्रावधान है और दूसरे वाले के लिए 'राशन कार्ड' का ! दूसरे वाले धर्म परिवर्तन ( घर वापसी) से प्रजा तंत्र भी मजबूत होता है !

        आरोप है कि धर्मपरिवर्तन में संलिप्त अपराधियों ने 'बाय वन गेट वन फ्री' का ऑफर दिया हुआ है। पुलिस का आरोप है कि  26- 27 साल की नाबालिग और मासूम लड़कियों को बहला फुसलाकर  धर्म परिवर्तन  कराया जाता  है। ऐसे मामलों में  एक्सचेंज ऑफर का भी बडा हाथ होता है , -  "तुम मुझे धर्म दो - मैं तुम्हें परिवर्तन दूंगा"! इस एक्सचेंज ऑफर के बाद दोनों की कुंडली में दरोगा जी का प्रवेश होता है ! अब शांति सुरक्षा और न्याय का नंबर आता है । दरोगा जी जानते हैं कि ये "तीनों" चीजें किसको देना हैं और किससे छीन लेना है ! लव जेहाद में बहुत वायरस हैं, केस थाने जाकर और खराब हो जाता है । दरोगा जी चाह कर भी शांति सुरक्षा और न्याय की पंजीरी नहीं बांटते ! यहां तीनों की सप्लाई लाईन थाने के बाहर खड़ी भीड़ के हाथ में होता है ! जैसे जैसे गूलर फूटती है, धर्म, आस्था और संस्कार के भुनगे बेकाबू हो रहे हैं !

       डंडा,लाठीऔर लोहे की सरिया से लैस धर्म रक्षक भीड़ शांति सुरक्षा और न्याय देने के लिए कभी भी थाने में घुस सकती है !!
                            ( सुलतान भारती)

Friday, 25 June 2021

" और अब "तीसरी लहर "

               'अब एक और लहर' ! हंगामा है यूं बरपा कि कोरोना की तीसरी लहर आ रही  है - ! कई महापुरुषों को लहर का आना जाना भी साफ साफ नज़र आता है ! हमारे जैसे तो मजबूत होती अर्थव्यवस्था भी नहीं देख पाते ! कुछ मूर्ख सवाल उठा रहे हैं कि ' किस चश्में से ये लहर दिखाई देती है ' !  जिसे सात साल से विकास नहीं नज़र आ रहा, तो लहर कैसे नजर आएगी ! भले आदमी आपदा में भी अवसर देख रहे हैं और ना देखने वाले अभी भी  किसान आंदोलन में अटके पड़े हैं! ( जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी त्यों तैसी !)
                 तो,,,,,"तीसरी. लहर '' आ रही ! पर ये पता नहीं कि कहां से आ रही है ! आखिर किसको बता कर  चली गई थी ! और किस के समझाने पर आने को राज़ी हुई है ! भला आने की सूचना कैसे मिलती है ? अगर डायनासोर होता तो धमक से ख़बर हो जाती, कोरो वायरस तो अच्छे दिन की तरह नजर भी नहीं आता ! लेकिन  ज्ञानी लोगों  को पता चल जाता है कि 'लहर ' आने वाली है ! हो सकता है जैसे आम का फ़ल आने से पहले पेड़ों पर '' बौर" आता है , कुछ वैसा .ही अदृश्य  बौर महामानव भी देख रहे हैं !
                           अगर आज कालिदास होते तो अपने प्रियसी को लिखे जाने वाले पत्र में  "तीसरी लहर" का  वर्णन कुछ इस तरह करते,- " पड़ोस का  दुकानदार माल भर रहा है प्रिये ! उसने बढ़े हुए दाम की नई रेट लिस्ट दूकान के बाहर टांग दी है ! उसकी पत्नी ने पास के बाबा " टुंडे शाह" की मजार पर चादर भी चढ़ा दिया है! मुहल्ले के डॉक्टर ने अपनी क्लीनिक में रंग रोगन कराना शुरू कर दिया है ! युवा महिलाओं को सारे संकट से मुक्त कराने वाले बाबा "अघोरानंद" जी ने आज अख़बार में "पहले आओ पहले पाओ" का विज्ञापन भी दे दिया है ! कस्बे के सूफी  "कोरोना शाह" ने अपनी चमत्कारी ताबीज़ की क़ीमत भी बढ़ा दी है!  डॉक्टर 'किल बिल' ने आने वाले मरीजों के लिए एक नया पैकेज बनाया है , हम अस्पताल के ठीक सामने श्यमसान और कब्रस्तान की सुविधा भी दे रहे हैं, जिससे किसी मुर्दे को कोई असुविधा न  हो - ! हमारे यहां किडनी भी नहीं निकाली जाएगी -! ( दूसरी लहर का स्टॉक अभी क्लियर नहीं है !).बीट कांस्टेबल बगैर फेसमास्क वाले मुहल्ले के लड़कों को दुबारा तलाशने लगा है ! हे प्रिय ! ऐसा प्रतीत होता है जेसे" तीसरी लहर" आ रही हो -"!
                   मैंने  'वर्मा जी' से पूछा , ' ये तीसरी लहर का क्या लफड़ा है ?'   उन्होंने मुझे खा जाने वाले अंदाज़ में देखते हुए ज़हर उगला - ' दूसरी लहर में लिस्ट अधूरी रह गई थी ! दरअसल यमराज के भैंसे ने लिस्ट चबा ली थी ! अब तीसरी लहर में बचे हुए थर्ड क्लास लोगों का यमराज से अपॉइंटमेंट है -'!
        " हां , आपके पड़ोसी बता रहे थे कि पिछली बार आप बाल बाल बचे !"
   '' मुझे तो पीलिया हुआ था़, तेरी तरह कोरोना नहीं ! मगर काठ की हांडी एक ही बार चढ़ती है ! तीसरी लहर में सारे फर्जी लोग नत्थी होंगे " ! 
   " चौधरी कह रहा था कि तीसरी लहर पचपन साल उम्र के लोगों के लिए घातक है !''
     इस बार वर्मा जी खून का घूंट पी कर रह गए। मै जानता कि वो चौधरी को बद्दुआ देने का रिस्क नहीं उठाएंगे ! शाम को चौधरी खुद आकर बोला, - ' उरे कू सुण भारती ! यू तीसरी लहर कूण से  'सटेसन'  पे आ रही  है ! तमै पतो सै ?"
   '' मुझे तो दूसरी वाली का भी पता नहीं चला !"
          '' किसी ने तो देखा होगा ?"
" सरकार ने देखा है, केजरीवाल जी कह रहे हैं कि दिल्ली तैयार है!" 
    " मैं तो कती त्यार न ! भैंसन कू कितै ले जाऊं ! उन्ने कूण सा फेसमास्क द्यूं ! कूण सी वैक्सीन लगाऊं सूं ? "
   "  तुमने खुद को वैक्सीन लगवाई?"
              " ना भई न  !  बुद्धिलाल नू कह रहो - अक - वैक्सीन लगवा कै एक आदमी कती चुम्बक बण गयो ! मैं वैक्सीन लगवा लूं  अर  कदी भैंस चिपटने लग ज्यां - तो के करूंगा ?"
      तीसरी लहर को लेकर जनता चिंतित है ! दूसरी लहर ने चिंता करना सिखा दिया है । पहले तो मैं ख़ुद भी कोरोना का मजाक उड़ाता था ! दूसरी लहर में कोरोना ने मुझे ढूंढ़ लिया ! और अब तीसरी लहर,,,,अब जाने भी दो यारो ! कोरोना जी अब मेरा देश छोड़ कर कहीं और चले जाओ ! यहां तो पहले से ही इतने खतरनाक " कोरोना" मौजूद हैं कि काट लें तो प्राणी उल्टी सांस भी नहीं ले पायेगा ! उन्हें आने के लिए किसी लहर की ज़रूरत नहीं पड़ती ! इनकी खाल इतनी मोटी है कि खून पीने के लिए डेंगू के मच्छर को भी ड्रिल मशीन लेकर आना पढ़ता है !- तीसरी लहर से डर नहीं लगता बाबू ! मोटी खाल से डर लगता है -! ( बार बार अस्पताल से वापस आ जाते हैं !)
                          तो,,,, बा अदब बा- मुलाहिजा होशियार , तीसरी लहर आ रही है। अपने आने का मैसेज अपने 'ग्रुप ' वालों को भेज दिया है ! - तीसरी लहर से कैसे निपटा जाए - इस पर  "लहर विमर्श" चल रहा है ! जनता ने डरना और भागना छोड़ दिया है! अब लहर आए या लकड़बग्घा, हम तैयार हैं ! सबको यकीन हो चुका है कि मर कर ही स्वर्ग मिलेगा, जीतेजी कोई चांस नहीं है ! मुसीबत, मंहगाई और मौत की कोई लहर नहीं होती, इसलिए कभी भी आ सकती है ! कोरोना बगैर लहर के चलने का रिस्क नहीं लेता !. क्या पता रास्ते में बगैर फेस मास्क  के खड़ा कोई भूखा आदमी पूरी लहर निगल जाए ! 

           बिजनेस मैन  'तीसरी लहर ' पर नजर बनाए हुए हैं ! दूसरी लहर में  कमाई के कुछ कीर्तिमान छूट गए थे  वो इस मानसून में पूरे हो जाएंगे। आने वाली 'आपदा ' उनके लिए ढेर सारे अवसर लाएगी ! सात हजार वाला जो इंजेक्शन अप्रैल में सिर्फ साठ या सत्तर हजार में बेचा था, इस बार एक लाख में बेचा जाएगा । देश की अर्थ व्यवस्था   मजबूत करनी है तो शुरुआत घर से करनी होगी ! प्रभो ! इस बार भी 'कृपा' पाइप लाइन में ना फंसे ! आपकी भक्ति और चंदे में यथावत  सहयोग दूंगा! 

   'तीसरी लहर' फिलहाल अभी ऑउटर पर खड़ी है !

(सुलतान भारती)

Thursday, 24 June 2021

प्रिय अबुल हाशिम,

प्रिय अबुल हाशिम,

                 अत्यन्त प्रसन्नता का विषय है कि आप अपने हजारों  चाहने वालों के लिए , अपनी आत्म कथा  "परवाज़ " को पुस्तक की शक्ल में ला रहे हैं  ! आपका संघर्ष , विद्वता, अनुभव, सतत आशावादिता, उपलब्धियां और अनुकरणीय जीवन यात्रा वर्तमान और भावी पीढ़ी के युवाओं के लिए प्रेरणा बनेगी !
              प्रेरक अनुभव जब अल्फ़ाज़ की शक्ल में ढलते हैं तो इतिहास का अंकुर फूटता है और समाज का हर तबका ऐसी कालजई पुस्तक से लाभ और मार्गदर्शन पाता है ! किताब उस मशाल की तरह होती है जो सदियों तक समाज और देश को रोशनी बांटती हैं ! हमें पूरी आशा है कि  आपकी आत्मकथा " परवाज़ " इस मापदंड पर पूरी तरह खरी साबित होगी !

                       शुभकामना  के साथ 
                   

Monday, 21 June 2021

( व्यंग्य भारती) दाढ़ी के पीछे क्या है !

           '' दाढ़ी" के पीछे क्या है!!


             अपना देश चमत्कारी पुरूषों से लबालब भरा है। इनके दिव्य कारनामों को सामने लाने वाली मीडिया उनसे भी महान है । एक घटना होती है तो पहले दिन कुछ होती है फिर अगले दिन कुछ और नजर आती है, और आखिरकार  थाने जाकर पता चलता है कि जिसको समझा था खमीरा वो भकासू निकला ! वादी सकते में और प्रतिवादी पुलिस की दिव्य जांच से गदगद गाने लगता है, - आज मैं उपर आसमां नीचे,,,,! आए दिन आसमां नीचे और कोरोना कंटेंट ऊपर जा रहा है ! सच को कोहरे में लपेट दिया गया है - सीधी सड़क भी जांच में पगडंडी पाई जा रही है। 
       कोरोना ने अर्थव्यवस्था और आबादी को घातक चोट पहुंचाई, लेकिन ऑक्सीजन लेवल मीडिया का गिरता चला गया । हमारे देश की मीडिया को जाने कौन सा रोग लगा है कि बगैर किडनी के चल रहा है! प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ जनता में अपनी विश्वसनीयता खोता जा रहा है ! अब न्यूज कम - ब्रेकिंग न्यूज़ ज्यादा आती है , जहां खबर के साथ साथ भरोसा भी टूट जाता है ! सिर्फ़ सच दिखाते हैं हम-,' हर खबर पर पहली नजर - ' और ' सच डंके की चोट पर -' देने वाले सच को सात पर्दों में छुपा कर परोसते हैं - ढूंढ सके तो ढूंढ ! मैं सोचता हूं कि अगर सोशल मीडिया न होती तो जनता को क्या क्या झुनझुना दिया जाता ! क्योंकि मीडिया के सारे  'भीष्म पितामह' तो राज सिंहासन से बंधे हैं, सच का चीरहरण दिखाई ही नहीं देता किसी को!
                  ख़बर सुनकर सच को समझना भूसे के ढेर से गेहूं का दाना निकालने जैसा है ! सोशल मीडिया और इलेक्ट्रोनिक मीडिया के बीच में सच कहीं जलेबी बन कर छुप जाता है - ' बूझो तो जानें -!  सच की तालाश में दिल दिमाग पर चोट खाई जनता हल्दी मिला दूध पीकर सो जाती है। सच की संजीवनी खोजने कुछ मीडिया मुगल हिमालय पर बैठ गए हैं और कुछ डिबेट का समुद्र मंथन चला रहे हैं ! जनता हर चैनल पर "किसान आंदोलन के अवशेष" ढूंढ़ रही है, वो कहीं नज़र नहीं आ रहा है ! हर चैनल बस - अंतिम सांस लेता कोरोना और तीसरी लहर - की पदचाप सुना रहा है !
            एक और चैनल है देश में जिसके सामने सोशल मीडिया भी पानी भरे, वो है पुलिस का चैनल , जहां खबरों को कोल्हू में डाल कर सच का जूस निकाला जाता है। वैसे तो सारे मीडिया के लोग खबरों के संकलन के लिए पुलिस के संपर्क में आते ही हैं किंतु पुलिस की अपनी मीडिया कितनी सशक्त और महान है इसकी कल्पना भी है की जा सकती ! शांति , सुरक्षा और न्याय का डंडा लेकर बैठी पुलिस कब किसे क्या दे दे - कहा नहीं जा सकता ! हर आदमी शांति, सुरक्षा और न्याय चहता है मगर थाने जाते हुए पैर कांपता है। ऐसे में पोलिस को कभी कभी जबरदस्ती भी देना पढ़ता है ! जब जब पुरवाई चलती है तो प्राणी को शांति, सुरक्षा और न्याय  पाने का एहसास होता है !
          जून २०२१ के पहले हफ्ते में यूपी के जिला गाजियाबाद में एक बुजुर्ग आदमी को कुछ लोंगो ने पकड़ कर पीटा , जय श्री राम के नारे लगवाए और उनकी दाढ़ी काट ली !  सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल हुआ तो कोहराम मच गया ! ( आज कल क्राइम करने के बाद भागने की जगह वीडियो डालने का फैशन पॉपुलर है ! ) पीड़ित बुजुर्ग को लेकर उनका युवा बेटा स्थानीय थाने पहुंचा !  दाढ़ी के कटने को लाभदायक बताते हुए एक पुलिस वाले ने बुजुर्ग को समझाया ,- तो क्या हुआ ! दाढ़ी कट जाने से अबतुम्हारे चेहरे को बराबर हवा मिल रही है ' ! ( गोया चेहरे को ऑक्सीजन मिलने के रास्ते में दाढ़ी स्पीड ब्रेकर बन गई थी !)
           .पर अभी तो ये बस शुरुआत थी। दाढ़ी कटने को लेकर एक संप्रदाय विशेष में आक्रोश था ! पुलिस को दूर से इस आक्रोश के पीछे ' दंगे की साजिश ' नजर आ गई ! पीड़ित बुजुर्ग सैफी साहब अपने समुदाय के जिस हमदर्द को अपना दुख बांटने वाला और इकलौता मददगार बता रहे थे ,उसी को " माहौल खराब करने" के जुर्म में पुलिस ने अंदर कर दिया ! गनीमत रही कि पुलिस जांच में दाढ़ी गवांने वाले बुजुर्ग अपराधी नहीं पाए गए ! इस तरह यूपी पुलिस की सतर्कता से एक दंगे की  "भ्रूण मृत्यु" हो गई ! किंतु अभी बहुत से खुलासे बाकी थे !
              पुलिस की जांच का अगला खुलासा सुन कर लोगों पर सकता छा गया। पोलिस ने बताया कि दाढ़ी काटने, जै श्री राम का नारा लगवाने और पीटने के इस पूरे मामले के पीछे मॉबलिंचिंग नहीं " ताबीज" थी !. पोलिस ने खुलासा किया कि जांच में पीड़ित बुजुर्ग कारपेंटर नहीं तांत्रिक पाए गए !  उनकी ताबीज़ से प्रतिवादी पक्ष को इन्फेक्शन हो गया था ! इस ख़ोज से पीड़ित बुजुर्ग सन्नाटे में आ गए, क्योंकि वो खुद नहीं जानते थे कि वो ताबीज़ बनाते हैं ! अभी तक उन्हें यकीन था कि वो सिर्फ़ बढ़ई का काम करते हैं ! मुहल्ले वाले अलग सदमे में थे, लोगों ने उन्हें हमेशा लकड़ी का काम करते देखा था ! सहानुभूति अब शक के शिकंजे में थी और पुलिस शांति सुरक्षा और न्याय का डंडा लेकर ताबीज़ पर आकर रुक गई थी !
          पुलिस ने वो दिव्य ताबीज़ खोज लिया था जिसका पता बनाने वाले को भी नहीं था ! ताबीज़ ने एक्टिवेट होकर अपना काम भी शुरू कर दिया था ! दाढ़ी की आड़ में दंगा लेकर खड़ा पहलवान भी पकड़ लिया गया था ! ( खुद पहलवान को पकड़े जाने पर ही पता चला कि दाढ़ी कटने की आड़ में वो दंगा करवाना चाहता था !) अभी इसका खुलासा नहीं हुआ है कि अनिष्टकारी ताबीज़ से प्रतिवादी पक्ष का कितना बड़ा नुकसान हुआ है ! ये भी नहीं पता कि प्रतिवादी पक्ष दाढ़ी काट कर संतुष्ट है या मुआबजा लेकर मानेगा ! रहा दाढ़ी खो चुका वादी पक्ष - तो,,,,उनकी तो लॉटरी लग गई, थोड़े से थप्पड़,चप्पल और डंडे खाकर उन्हें कितनी कीमती जानकारी हाथ लगी कि दाढ़ी काट जाने पर चेहरे को भरपूर ऑक्सीजन मिलती है !
         इस घटना से हमें ढेर सारा सबक मिलता है ! अब अगर आपको रास्ते में पकड़ कर लूट ले तो थाने जानें से पहले अपनी गलती पर आत्म मंथन करें, -' हमें इस मासूम लुटेरे  रास्ते में आना नहीं था ! शरीफ़ आदमी था,सिर्फ लूट पीट कर छोड़ दिया। शायद "ऊपर से" मिले पैकेज में जान से मारना शामिल नही था!-' ! अगर कोई गला रेत कर छोड़ दे तो मरने से पहले अपने कर्मपत्र पर नज़र डालें, कभी आपने उसकी भैंस तो नहीं चुराई थी ? क्या पता आपने चुराया हो और आपको भनक भी ना लगी हो ! ये तो थाने जाकर ही पता चलेगा !
       जांच जारी है - दारोगा जी सौ गुनाहगार को छोड़ देंगे मगर एक बेगुनाह ( दाढ़ी कटाने वाले बुजुर्ग ) को सजा नहीं होने देंगे !! दाढ़ी वाले बुजुर्ग को बचाने के तुफैल में दाढ़ी काटने वालों को छोड़ना ही पड़ेगा !!

                 ( सुलतान भारती)
    
 
        

Sunday, 20 June 2021

'अबुल हाशिम' - ज़िंदगी का अपराजेय योद्धा !!

"ज़िंदगी का अपराजेय योद्धा" -   अबुल हाशिम !!


      ज़हीन,  जुझारू,  जीवट और  जंगबाज शख्सियत के धनी हाशिम साहब को मैं पिछले तीस सालों से जानता हूं! मैं उन दर्जन भर खुश किस्मत लोगों में खुद को शुमार करता हूं जिन्होंने बहुमुखी प्रतिभा के धनी अबुल हाशिम साहब की विराट शख्सियत को बेहद करीब से देखा है ! चुनौती उन्हें जोश देती है और जीत एक और चुनौती को स्वीकार करने का हौंसला !
                      उनकी अबतक की जिंदगी - संघर्ष , सतत परिश्रम, जीत , अपार जोश और कभी न थकने का एक नायाब दस्ताबेज है ! संघर्ष की सीढियों पर कामयाबी के पदचिन्हों का पीछा करते युवाओं के लिए उनकी जीवनी तमाम नुक्ते और नक्शे खोलती है ! पैंसठ साल के चिर युवा अबुल हाशिम साहब के बारे में कोई भी जानकार बे शाख्ता यही कहेगा,-  उनके लिए असंभव कुछ भी नहीं -'!
            बहुत बेचैन हूं उनकी आत्मकथा  '' परवाज़ " को पढ़ने के लिए ! उनके चाहने वालों ने उन्हे कई भूमिका में देखा है , और अब एक शानदार शाहकार के लेखक के रूप में देखेंगे! मुझे उम्मीद है कि  ''परवाज़" में उनके हजारों चाहने वाले प्रशंसकों को उनकी जिंदगी के कई बंद पन्नों से मुलाकात होगी !

         " परवाज़" की प्रतीक्षा में बेकरार
                  सुलतान भारती
( - मुंशी प्रेमचंद साहित्य सम्मान - से सम्मानित  साहित्यकार)
 वी

Wednesday, 16 June 2021

(व्यंग्य " भारती" ) सोशल मीडिया के वीर

   " सोशल मीडिया के घुड़सवार"           ( व्यंग्य)


                अगर आप का मन लड़ने के लिए उतावला है और लड़ने के लिए कोई मिल नहीं रहा है तो कोई बात नही, फेस बुक पर आइए ! लड़ाई के लिए यहां अनंत योद्धा और विषय हैं!  घर में फोन है ना ! स्मार्ट फोन है जहां, हल्दी घाटी है वहां !! योद्धा ही योद्धा - एक बार (फेस बुक में) घुस तो लें !! सोशल मीडिया पर एक से एक महारथी चक्रव्यूह उठाए खडे हैं ! बस उनके पोस्ट में एक बार नत्थी हो जाइए , फिर तो आपका शुद्धिकरण करके दम लेंगे !  फेस बुक पर अनगिनत अक्षोहिणी सेनाये ( ग्रुप) मौज़ूद है, किसी में भी नत्थी हो जाइए । ऐसी पैदल सेना है जिसमें ज्यादातर अक्ल से पैदल हैं! ऐसे धर्म योद्धा हैं जिनकी अक्ल  "आड  इवन" के हिसाब से चलती है । 
                  आजकल अनुकूल बयार पाकर इनके संस्कार का ऑक्सीजन लेवल सौ से उपर जा रहा है ! संप्रदाय विशेष के बारे में इतनी  "रिसर्च पूर्ण" जानकारी फेस बुक पर उडेलते हैं कि इतिहासकार गश खाकर गिर जाए ! ( सनद रहे - यहां पर अपील , साक्ष्य, तर्क या प्रमाण का कोई विकल्प नहीं है ! अब अगर विरोधी खेमें के किसी 'बुद्धिजीवी ' के ज्ञान में उबाल आ गया और उसने साक्ष्य मांग लिया तो बस !! इस अक्षम्य अपराध के एवज में सैकड़ों ततैया बुद्धि वैभव लेकर टूट पड़ते हैं , और आपत्ति दर्ज़ कराने वाले को अंतत: देशद्रोही साबित कर दिया जाता है !     
                               सोशल मीडिया के कुछ विद्वानतो व्हाट्स ऐप और फेसबुक को सार्वजनिक शौचालय समझ बैठे है ! बहस करो तो अक्ल का लोटा फेंक कर मारते हैं ! घमासान जारी है, कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं ! इस देवासुर संग्राम में बहुधा बुद्धिजीवी ही परास्त और अपमानित होता है ! अनन्त योद्धा हैं और ब्रह्मांड तक फैला युद्धक्षेत्र !! अक्ल के घोड़े दौड़ रहे हैं और घुड़सवार खुद अक्ल से पैदल है ! यहां युद्धविराम मना है , पूरी पूरी रात योद्धा इतिहास खोदते रहते हैं ! सुबह को जब दुनियां जाग कर काम में लगी होती है तो ये योद्धा नींद में चरित्र निर्माण का अगला अध्याय ढूंढ रहे होते हैं ! जागते ही सोशल मीडिया एकाउंट चेक करते हैं कि कहीं कोई  ' हिरण्यकश्यप ' नत्थी हुआ या सारा एकाउंट अभी भी सात्विक है !
            सब्जेक्ट और माइंड दोनों सेट हैं! इसके बाद तो बुद्धि या विवेक को पास भी नहीं फटकने देते ! अब योद्धा अपना ज्ञान उड़ेलता है जिसे फौरन पंद्रह सौ लाइक और ९९९. कमेंट से बघार दिया जाता है ! (इतने योद्धा हर वक्त कुरुक्षेत्र में मौजूद रहते हैं!) इतना बुद्धि वैभव आते ही पैदल योद्धा ख़ुद को ऐरावत पर बैठा महसूस करता है।  कॉमेंट की सूक्ष्म जांच में विरोधी खेमे का ' देशद्रोही' बरामद होते ही पांडव सेना " जय श्री राम" के उदगार के साथ दिन का पहला यलगार शुरू कर देती है !  यहीं से संस्कार का मानसून शूरू हो जाता है !
                      ये विद्वता का निर्द्वंद मैराथन है, जहां प्रतिद्वंदी  की  टांग  खींचने और गाली देने  पर  कोई  पाबंदी नहीं है ! सुविधा ये है कि प्रतिद्वंदी " फेस बुक" पर है  "फेस टू फेस" नहीं ! यह बेलगाम प्रतिभा का ऐसा अभयारण्य है जहां  द्रोण और एकलव्य दोनों का विवेक धर्म से संक्रमित  है। ( एकलव्य की दलित विनम्रता ने उसे क्या दिया - सिर्फ़  विकलांगता !! )  महाभारत काल में कौरव खेमें में  मीडिया की सुविधा के नाम पर सिर्फ "संजय" उपलब्ध थे ! उनके पोस्ट का बेनिफिट सिर्फ अंधे धृतराष्ट्र को था  ! संजय के ज्ञान को  चुनौती गांधारी भी नहीं दे सकती थी, उसने खुद ही आंख पर पट्टी बांध ली थी। अब दोबारा सोशल मीडिया पर द्वापर लौट आया है। दिव्य ज्ञान से लैस तमाम संजय ज्ञानोपदेश में लगे हैं , धृतराष्ट्र झुंड के झुंड लाइक और कमेंट कर रहे हैं ! ऐसे में अगर किसी ने बीच में पांडव बनने का प्रयास किया तो उसके लिए लाक्षागृह तैयार है ।
            पिछले पखवाड़े फेस बुक पर हमारे दो मित्र इसी खाड़ी युद्ध में उलझ गए ! पत्रकारिता और समाज सेवा को समर्पित दोनों महामानव सोशल मीडिया पर गुथ गए ! कोई गलती मानने को राजी नहीं !. दोनों अपने अपने बायोडाटा से एक दूसरे को दो दिन तक धमकाते रहे, पर शिमला समझैता हो न  सका ! कुछ बुद्धिजीवियों ने सुलह वाली पोस्ट डाली तो कुछ ने पेट्रोल उड़ेला ! तीसरे दिन दोनों फोन पर भिड़ गए ! अब दो बुद्धिजीवी लंबे वक्त के लिए विरोधी हो चुके हैं ! और,,,,,, ये सब हुआ दिल्ली में अगले साल होने वाले नगर निगम चुनाव के ऊपर ! इसी को कहते हैं - सूत न कपास जुलाहों में लट्ठम लट्ठा !!  योद्धा तैयार हैं!

         कोरोना ने हाय राम बडा दुख दीन्हा ! काम धाम कुछ है नहीं ! समय बिताने के लिए सोशल मीडिया पर जाता हूं तो वहां फेस बुक वॉल पर ततैया छितराए बैठे हैं। कुछ मित्र सिर्फ इसलिए नाराज़ हैं कि मैं उनकी 'अद्वितीय रचनाओं ' पर मनभावन कमेंट नहीं करता !कई महामानव ऐसे हैं जिन्हें सिर्फ नारियों की पोस्ट में विद्वता का छायावाद नजर आता है ! कुछ मित्रों ने अकारण खुद को वरिष्ठ साहित्यकार मान लिया है, और अपना लोहा मनवाने के लिए रोज पोस्ट का अश्वमेध यज्ञ वाला घोड़ा छोड़ते हैं ! समझदार और सहिष्णु लोग लाइक कर के मुख्यधारा में बने रहते हैं। तर्क और विवेक वाले  विरोध करते हैंऔर अगली सुबह मित्र सूची से सस्पेंड कर दिए जाते हैं ! चलो रे डोली उठाओ कहांर,,,,,!!
            " सोशल मीडिया  तू ना गई मेरे मन से !!

( सुलतान भारती)

Wednesday, 9 June 2021

' ' बदनाम होने की चाहत''

 (  व्यंग्य )          

                  मैं बदनाम होना चाहता हूं । चालीस साल से 'नाम' कमाने में लगा था़ , नाम तो कमाया मगर नाक नहीं बढ़ी ! जवानी के बेहतरीन पच्चीस साल सामने से ट्रेन के डिब्बे की तरह गुजर गए ! उम्र का बही खाता देख रहा हूं, नाम तो है - नेफे में नोट नहीं है । जब मैं नाम कमाने में लगा था, इतने वक्त में पड़ोस के पांचू लाला बनिया से सेठ हो गए ! बस उन्होंने नाम नहीं कमाया !! वो अच्छे खासे बदनाम हैं! लोग कहते हैं कि उनकी दुकान पर बिकने वाले हर मसाले में मिलावट है ! उन पर ये गंभीर आरोप है कि लाला अपने पालतू घोड़े की लीद को मसाले में इतनी सफाई से मिलाता है कि घोड़ा भी ना पकड़ पाए ! बदनामी को बैलेंस करने के लिए उनकी एनजीओ गरीब और अनाथ लड़कियों की शादी कराती है!  ( लड़के चाहे जितना अनाथ और गरीब हों , पांचू लाला उन पर कृपा नहीं करते !).उनकी इस दयालुता का रहस्य उनका घोड़ा भी नहीं जान पाया।
         मैं पांचू लाला से काफी प्रभावित हूं और अब मैं भी बदनाम होना चाहता हूं ! कोरोना काल चल रहा है - ये आपदा में अवसर का मौसम है ! सोशल मीडिया पर धर्मयुद्ध जारी है ! कोरोना में बहुमत को राष्ट्रीय आपदा नजर आ रही है तो किसी को रामराज ! ( जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी त्यों तैसी !) आपदा अपनी जगह है - अवसर अपनी जगह ! घुटनों में सर देकर बैठी जनता टीवी खोलती है, समाचार आ रहा है - ऑक्सीजन रोक कर डॉक्टर ने कई मरीजों की जान ली - ! अगला समाचार है - मरीज के रिश्तेदारों ने एक डॉक्टर को पीट पीट कर लहूलुहान किया -! ( हिसाब बराबर - ! ) बदनामी में बड़ा ग्लैमर है ! बदनाम आदमी को सलामी देने वाले ज्यादा हैं । भय बिन होय न प्रीति,,, का फॉर्मूला कलियुग में ज्यादा हिट है ! तमाम बदनाम और बदमाश लोगों ने "आपदा'' में ही बड़ी बड़ी फसल काटी है ! बाढ़ की आपदा में सिंघाड़े की खेती सबको नहीं आती है , मै बपुरा बूडन डरा रहा किनारे बैठ,,,! इसलिए अब तक बदनाम नहीं हो पाया !
           बदनामी में करियर बनाना है तो साहस और बेशर्मी दोनों चाहिए। ( साहस की कमी नहीं पर बेशर्मी को लेकर थोड़ा चिंतित हूं!) जैसे जैसे उमर निकल रही है, मेरी घबराहट बढ़ रही है ! आख़र कब मुझे अक्ल आयेगी और कब मैं बदनाम हो पाऊंगा ! अभी जवानी के कुछ अवशेष बाकी हैं !  बाद में बदनाम होने पर बृद्धाश्रम वाले भी इंट्री नहीं देंगे! अपने अंदर झांक कर देखता हूं ! 'गुरु' वाला स्थान खाली है ! देश में बदनाम महापुरुषों की कमी नहीं है - एक  ढूढ़ों  हजार मिलते हैं - वाली प्रचुरता  है !  ' राम रहीम' से लेकर संत ज्ञानेश्वर तक किसी से भी कोचिंग लेकर ' असीम आनन्द ' की प्राप्ति हो सकती है ! तो,,, मन रे परसि हरि के चरन !!

           इस बार किसी मित्र से सलाह नहीं लूंगा ! मैं नहीं चाहता कि  "चौधरी" या "वर्मा जी" को इसकी भनक भी लगे। पहले चुपचाप बदनाम हो लेते हैं ! इस उपलब्धि पर वर्मा जी का - दिल जलता है तो जलने दे -! अब बेसिक प्रॉब्लम ये है कि बदनाम होने की शुरुआत कहां से करूं !
बैंक को गठरी में बांध कर विदेश भागने में अच्छी खासी बदनामी है, लेकिन पास में पासपोर्ट तक नही है! जनहित में फाइनेंस कंपनी खोल कर मुहल्ले को ठगने से भी थोक में बदनामी हासिल होगी, पर उसके लिए इन्वेस्ट करना पढ़ेगा ! मेरे बदनाम होने की कोई सूरत नज़र नहीं आती ! ले दे कर "छेड़खानी" ही अफोर्ड कर सकता हूं ! लेकिन छेड़ूं किसे ? कॉलोनी में सब पहचानते हैं और दूसरे मुहल्ले में छेड़खानी करूं तो सही सलामत लौट पाने की क्या गारंटी है ! ( अस्पताल के बेड पर पड़ कर बदनामी को एंज्वॉय नहीं करना चाहता !)
            हमारे यूपी में एक देहाती कहावत है- या तो नाम सपूते या कपूते -! यानि बेटा चाहे 'सपूत ' निकले या ' कपूत ' दोनों सूरतों में नाम कमाएगा -!( ये हमारे यूपी वालों का ही कलेजा है जो ऐसी कड़वी  कहावत को पैदा करते हैं!) मैने भी सपूत होकर नाम कमाने की बड़ी कोशिश की , पर मेरा नंबर आते आते मानसून रुक जाता है  ! कई जगह सपूत होकर नाम कमाना चाहा , पर वहां पर जमे कपूत ने ठीया लगने ही नहीं दिया ! प्राइवेट हो या सरकारी , हर जगह सपूत से ज्यादा कपूत की टीआरपी देखी है! मुझे लगता है,  हमारे समाज में दो तरह के संस्कार पनप रहे हैं ! शरीफ, संवेदनशील और सचरित्र सपूतों को सतयुग वाला वैक्सीन दिया जाता जाता है - सत्यम ब्रूयात -! कपूतों पर पाप पुण्य की कोई प्रेत छाया नहीं होती ! उनका स्टेमिना इतना सॉलिड होता है कि कोरोना में कोविड इंजेक्शन की जगह कुकुरमुत्ता का काढ़ा भी काम कर जाता है !
                हमेशा 'सपूत ' को ही कांवर ढोना पढ़ता है !
कपूत को हर फील्ड में ग्रेस माक्र्स मिल जाता है! बाप भी अपने कपूत का बचाव करते हुए कहता है, " तुम्हें उसके मुंह नहीं लगना चाहिए था "! ज़माने की नब्ज पहचानने वाले बाप घर में भी कपूत को प्रीफ्रेंस देने लगे हैं , - मेरा नाम करेगा रोशन जग में बेटा नाकारा -! ( पडोसी  का खेत दबाना या बंजर हडपना सपूत के बस का नहीं होता ! ऐसे मौके पर सपूत बेटा संस्कार ओढ़ लेता है, " देख पराई चूपडी मत ललचावे जीव ''!) इसलिए अब बदनाम होने की तमन्ना है। नाम कमा कर नींद गवां बैठा । कोरा नाम कमाने से क्या फायदा कि बाल काटने के बाद नाई मालिश भी ना करे !
                    लेखन जैसे व्हाइट कॉलर जॉब में भी  'कपूत ' लोगों की कमी नहीं  है ! आम के पेड़ में कलम बांधना तो सबने सुना होगा , मै एक ऐसे लेखक को जानता हूं जो दूसरों के रचनाओं की शाख काट कर अपने लेख में रोप लेते हैं ! ऐसे लेखक कोरोना में भी फल फूल रहे हैं और सच्चे लेखक "अच्छे दिन" के उम्मीद में आह भर रहे हैं - ' अबहूं  न  आए  बालमा  सावन बीता जाए -'!!
                      ( सुलतान भारती )