एक प्रगतिशील नेता की नज़र में, कोरोना और जनता में कौन ज़्यादा काम का है - इस गूढ़ सवाल का जवाब सिर्फ़ नेता ही जानता है ! सिर्फ नेता ही जानता है कि कब कहां सतयुग की ज़रूरत है, और कहां विकास की ! नेता ही अपनी दिव्य दृष्टि से देख पाता है कि कहां सतयुग के अभाव में कोरोना की सूनामी आई है और कहां कोरोना खुदकुशी पर मजबूर है ! बहुत हुआ, अब मच्छरासुर और महिषासुर के दिन लद चुके, अब उनके सामने दो विकल्प है - हृदयपरिवर्तन या हलाहल ! विकास के लिए कुछ भी करेगा ! मेरे कई दोस्त और पड़ोसियों को अभी से विकास बगैर चश्मा के नज़र आ रहा है ! (बीच में सिर्फ़ मेरा घर छूट जाता है !)
कल बुद्धिलाल जी मुझे बता रहे थे कि विकास आने से पहले विकास की बयार बहने लगती है, जैसे बसंत के आगमन से पहले पछुआ बयार चलती है ! सियासत में ऐसी बयार तब चलती है जब चुनाव का ऐलान होता है !वर्तमान में ऐसी बयार बंगाल में बह रही है ! इस वक्त देश के कुल विकास का तीन चौथाई हिस्सा बंगाल को "सोनार" बनाने में लगा दिया गया है! सत्तारूढ़ भाजपा विकास का दावा करे तो समझ में आता है, ( क्योंकि अर्थव्यवस्था उन्हीं के हाथ में हैं!) लेकिन सिंहासन बत्तीसी से बाहर बनवास काट रहे लोग भी हंसिया हथौड़ा लेकर दौड़ रहे हैं ! जब वो पावर में थे तो बंगाल का विकास क्यों नहीं किया ! ( तब शायद वोट के लिए विकास की ज़रूरत भी नहीं थी - जैसे आज !)
तो,,,, बंगाल अब ' सोनार बांग्ला ' होने के लिए करीब करीब तैयार खड़ा है ! हर पार्टी के सांतक्लाज जिंगल बेल जिंगल बेल की धुन पर अपनी अपनी स्लेज गाड़ी पर विकास लाद कर निकल चुके है ! सोनार बांग्ला बनाने के लिए वो महापुरुष सबसे आगे हैं जिनका खुद का प्रदेश समस्याओं की मंडी बना हुआ है। अज्ञानी सवाल उठा रहे हैं कि वो पहले अपना प्रदेश क्यों नहीं सुधारते ! क्या मूर्खता भरा सवाल है, - अपना घर आज तक कौन सुधार पाया है ! इसलिए महापुरुष हमेशा दूसरों के लिए अवतार लेते हैं, - परमारथ के कारने साधुन धरा शरीर -! ( कोरोना काल में शरीर की एक्सपायरी डेट पर भरोसा नहीं किया जा सकता , इसलिए सोनार बांग्ला के लिए सारा विकास - काल्ह करे सो आज कर !)
कोरोना काल में विकास की कुंडली बनाने में जो महारथी पिछड़ गए वो कपाल क्रिया में लगे हैं ! लक्ष्य एक ही है कि किसी भी तरह "विकास " में कोई कमी ना रहे ! हर कोई अपने अपने तरीके से सोनार बांग्ला बना रहा है ! विकास का अपना टेंडर विरोधियों के हाथ में जाता देख कर " दीदी" आग बबूला है ! दीदी बिलकुल नहीं चाहती कि उनके होते हुए कोई अनाड़ी आकर सोनार बांग्ला बनाए ! सबसे ज्यादा दीदी मीडिया से खफा हैं, क्योंकि मीडिया ने उनके विकास को ना देखने की शपथ ले रखी है ! बंगाल में घुसते ही मीडिया मुगल आंखो पर धृतराष्ट्र का चश्मा लगा लेते हैं ! इसके बाद उन्हें सब कुछ ' काला' नज़र आने लगता है ! यही वजह है कि टीवी पर मीडिया बंगाल को पूरी तरह "बंजर" दिखा रहा है ! मीडिया की नज़र में हिंदू त्राहि त्राहि कर रहे और मुस्लिम तुष्टिकरण का काजू बादाम खा रहे हैं ! ( इसी हिंदू मुस्लिम के नीर में नींबू डालकर फटे दूध से सत्ता का पनीर प्राप्त किया जाएगा !)
मार्च के इस मनमोहक महीने में एक तरफ़ कोरोणा है दूसरी तरफ नेता ! नेता का मनोबल एवरेस्ट पर है और कोरोना का बंगाल की खाड़ी में ! कोरोना और जनता दोनों नेता के रहमो करम पर जिंदा हैं ! जनता और कोरोना में कब और कौन ज्यादा उपयोगी है, ये सिर्फ नेता ही जानता है ! कब किस प्रदेश को "कोरोना युक्त" होना है और कब "अपराध मुक्त" - यह भी नेता ही तय करता है ! सतयुग में कलियुग और घनघोर कलियुग में सतयुग का अवतरण उसी का चमत्कार है ! सौभाग्य से अब बंगाल के दिन बहुरने का मुहूर्त आ पहुंचा है! अब उसे " सोनार बांग्ला" होने से कोई नहीं रोक सकता ! खोज शूरू हो चुकी है, उपेक्षित इतिहास पुरूष भी ढूंढे जा रहे हैं ! दुर्गा जी के इतने भक्त तो बाढ़ में भी कभी बहकर नहीं आए थे ! सोनार बांग्ला के होने में बाधक सारे ' महिषासुरों ' को बंगाल से खदेड़ दिया जाएगा ! विकास के लिए कुछ भी करेगा ।
अपराध, गरीबी, सतयुगविहीन बेकारी, कोरोना और कुशासन के चंगुल में फंसे बंगाल को "सोनार बांग्ला" बनाने के लिए सारे ' कारीगर ' पहुंच चुके हैं! साथ ही ढेर सारे साइबेरियन "सारस" गली गली आवाज़ लगाते घूम रहे हैं, -' सोना लै जा रे ! चांदी लै जा रे !' अगले मुहल्ले में कोई और कारीगर आवाज़ लगा रहा है ,-' ये "हाथ" नहीं फांसी का फंदा है, ये " हाथ" हमें दे दे दीदी !' कोई अलग ही अंदाज़ में मछलियों को दाना डाल रहा है, '- गरीबों की सुनो ! वो तुम्हारी सुनेगा - तुम एक वोट दोगे - हम पांच साल देगा "!
( इसलिए, सोच समझ कर वोट दें ! क्योंकि तारणहार चुनने के लिए जैसा "करम" करोगे वैसा "फल" भुगतोगे ! )
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