Tuesday, 9 February 2021

" भैंस बड़ी या वेलेंटाइन "

         (व्यंग्य भारती)     

"इश्क में वेलेंटाइन का इन्फेक्शन " 

अल्लाह तेरी कुदरत ! बसंत के मौसम में वेलेंटाइन के रूबरू खड़ा हूं! कलिकाल में यह भी देखना लिखा था - देख लिया ! दिल्ली में आकर ही वेलेंटाइन के बारे में ज्ञान प्राप्त हुआ। जब गांव में था तो इन दिनों वहां बसंत आया करता था़ ! ( आजकल मनरेगा भी आता है !)  शहर में बसंत नहीं वेलेंटाइन आता है -( शहर में बसंत का आगमन अब सिर्फ साहित्य और  समारोह तक सीमित है !) बीसवीं सदी के आठवें दशक तक पूरे देश में बसंत की मोनोपॉली थी ! जवानों से बूढ़ों तक उसी की हुकूमत थी ! फिर फरवरी में जब वेलेंटाइन पैदा हुआ तो,,, फिर उसके बाद चिरागों में रोशनी न रही ! नई जेनरेशन को देसी बसंत की जगह मॉडर्न वेलेंटाइन भा गई ! लोग "लोकल"  की जगह इंपोर्टेड आइटम के लिए "वोकल" होने लगे , और बसंत धीरे धीरे खांसता हुआ शरसैया पर लेट गया। नई जेनरेशन हुक्का पार्लर में वेलेंटाइन सेलिब्रेट करते हुए गाने लगी, - " पापा कहते हैं बडा़ काम करेगा -"! ( अब इससे बडा काम दूसरा था भी नहीं,  अपनी संस्कृति और संस्कार को मुखाग्नि देना था- दे दिया !)
         जब भी वेलेंटाइन किस्म के ' महान काम ' का विरोध होता है तो अभिव्यक्ति की आज़ादी लहूलुहान होने लगती है ! ( ये अभिव्यक्ति की आज़ादी कभी भुखमरी, अपराध , रोज़गार , या मिलावट से आहत नहीं होती !) वेलेंटाइन के पक्ष में तर्क देखिए , ' ये तो प्रेम की अभिव्यक्ति का प्रतीक है !' सुभान अल्लाह ! आज स्वर्ग में बैठे हुक्का पार्लर की ओर हसरत से देख रहे  'मजनू' कितनी हीनता का अनुभव कर रहे होंगे जब फरवरी में लैला  उनसे पूछ रही होगी  ,- ऐ जी ! हम दोनों के बीच में बगैर वेलेंटाइन के जो कुछ हुआ था, वो क्या था -!' उधर "फरहाद" के गले में भी १४ फरवरी अटकी होगी जब "शीरी " ने उससे पूछा होगा ,- ' पूरी जवानी पहाड़ ही काटते रहे, कभी मुझे हुक्का पार्लर क्यों नहीं ले गए ! वेलेंटाइन के बगैर लानत है तुम्हारी चाहत पर ' !
                  लेकिन अब वेलेंटाइन में वायरस टपक रहा है ! चौदह फरवरी से हफ़ता भर पहले ही धर्म योद्धा त्रिशूल लेकर पार्कों में वेलेंटाइन ढूढने लगते हैं ! किसी झाड़ी से कोई  'अभिव्यक्ति की आज़ादी ' बरामद हुई नहीं कि प्रेमी युगल को भाई बहन के पवित्र रिश्ते में बांध दिया जाता है ! इससे संस्कृति  मजबूत होती है और वेलेंटाइन कुपोषित ! पुलिस इस  'कारसेवा ' के दौरान पूरी  सतर्कता और निष्ठा से धर्मयोद्धाओं को सुरक्षा देती है , ताकि इस महान अनुष्ठान में कोई बाधा न आए ! जब से ये धर्म आंदोलन शुरू हुआ है, लोगों ने झाड़ी में जाकर "अभिव्यक्त"  होना छोड़ दिया है ! इस तरह हर साल चौदह फरवरी को हम विश्व गुरू होने की दिशा में थोड़ा आगे बढ़ जाते हैं !
           चौदह फरवरी सामने खड़ी है ! दूध की डेयरी चलाने वाले मेरे पड़ोसी चौधरी ने मुझ से पूछा, - " उरे कू सुण भारती ! बैलन के गैल कूण आ गयो चौदह फरवरी कू ! टांय टांय सा कछु नाम सै ?"
   " बैलन के गैल टांय टांय ? ओह समझा - वेलेंटाइन !"
   " हंबे ! घणी जल्दी समझ लई ! नू लागे - अक - तू भी टांय टांय के चक्कर में सै !"
     " बिलकुल नहीं !" मैं चिल्लाया " तुम्हारी भैंसो की कसम, मैं वेलेंटाइन के सख़्त खिलाफ़ हूं !"
       "  कदी भूल कै अभिव्यक्ति के धोरे मत जाना ! थारी उमर ते बसंत लिकड़ गयो , लेकिन या पतझड़ में तू लार टपका रहो !" 
         मैंने आह भरी, - " जब उम्र में बसंत था तो अब्बा श्री ने बगैर पूछे मेरी शादी कर दी और वेलेंटाइन की जगह कुंडली में बीबी आ गई ! तब से आज तक घर के बाहर अभिव्यक्ति का मौका ही नहीं मिला - ऐसे अकाल में चरित्र अपने आप ही मज़बूत हो जाता है !"
           चौधरी भी अतीत में खो गया, " म्हारी जिंदगी में कदी ' टांय टांय ' आई  कोन्या ! इब बीबी अर भैंस के बीच में किसी की जरूरत न बची ! खैर, परे कर टांय टांय नै , अर नू बता - यू फ़रवरी में ही क्यूं आवे सै ? "
      " अंग्रेजो के पास हमारी तरह वक्त नही होता , इसलिए उन्होंने फादर, मदर, दोस्त, दुश्मन, प्यार मुहब्बत सबको एक एक दिन दिया है ! ये जो टांय टांय यानि वेलेंटाइन है , इसे प्यार मुहब्बत करने के लिए चौदह फरवरी दे दी गई है !"
          " साड़ के बाकी दिन प्यार क्यों न कर सकैं बावली पूंछ ?"
मेरे पास तो चौधरी के ' सवाड़ ' का जवाब अब तक नहीं है ! प्यार को धर्म, संप्रदाय और देश की सीमा से मुक्ति की हिमायत करने वाले उसे  चौदह फरवरी की बंदिश में क्यों रखना चाहते हैं !
      जब जूतों का आविष्कार नहीं हुआ था, तब की एक कहानी है ! रोज रोज पैरों में लगती धूल से परेशान एक राजा ने क्रोध में आकर ऐलान कर दिया कि - ' सारे जानवरों को मार कर उनकी खाल से राज्य की समस्त धरती ढक दी जाए , ताकि मेरे पैरों में धूल न लगे -'! इस आपदा से बचाने के लिए एक बुद्धिमान आदमी ने तब उस राजा को सुझाव दिया था़ -' सरकार ! पृथ्वी को चमड़े से ढकने की बजाय आप अपने पैर ढक लें तो भी धूल नहीं लगेगी -'! विरोध ने वेलेंटाइन को ऑक्सीजन ही मुहैया कराया है ! बेहतर होता कि संस्कार और संस्कृति को बचाने के लिए पार्क की झाड़ियों में कंघी करने की जगह हम नई जेनरेशन को अपने शानदार तहजीब को अपनाने की प्रेरणा दें!

         बाय द वे - वेलेंटाइन का समर्थन और विरोध 14 फ़रवरी तक ही सीमित है !  15 फरवरी को  वेलेंटाइन सवेरे वाली गाड़ी से निकल जाती है । उसी दिन संस्कार और संस्कृति कोरोना फ्री हो जाती हैं और सारे धर्म योद्धा एक साल के लिए कोमा में चले जाते हैं !!

          कि मैं कोई झूठ बोल्या !!!

            (  सुलतान भारती )

    

       

No comments:

Post a Comment