मुझे मेरी मां ने मेरे बचपन का एक किस्सा सुनाया था ! दरवाजे पर भीख मांगने वाले एक फ़कीर ने मुझे देख कर कहा था , -' बडा़ होकर ये बच्चा राजा बनेगा या फ़कीर !"( शायद ये इस बात पर निर्भर था कि मेरी मां उसे खाना खिलाती हैं या दुत्कार देती हैं !) उसके भविष्यवाणी की दूसरी आशंका सच साबित हुई और मै लेखक बन गया ! ( हिंदी का श्रमजीवी लेखक होना किसी श्राप से कम है क्या!) आज वो फ़कीर मुझे मिल जाए तो मैं उसका टेंटुआ दबा दूं ! खाना खाकर भी उसने कैसा अभिशाप दिया कि - ना खुदा ही मिला ना विसाले सनम,,,,,! राजाओं जैसी खुद्दारी और फकीरों जैसी घुन लगी अर्थव्यवस्था ,- अब गाते रहें- पायो जी मैंने राम रतन धन पायो-!
. मैने कई बार सोचा कि अपने लेखक होने का ठीकरा किसी दुश्मन के ऊपर फोड़ दूं , पर ऐसा होनहार और टिकाऊ दुश्मन मिला ही नहीं ! फ़कीर हाथ नहीं लगा वरना मै जेल में होता । दुनियां की कोई भी मां लाड प्यार करते हुए ये नहीं कहती कि - बड़ा होकर मेरा बेटा हिंदी का लेखक बनेगा - ! फ़िर भी अभिशप्त बेटा शेयर मार्केट या सियासत में जानें की बजाय साहित्य की खाई में कूद जाता है - हम बने तुम बने इक दूजे के लिए-! अब देश और दुनियां उस पर गर्व करती है और पत्नी विलाप - ' जीवन में इन्होंने कभी कोई ढंग का काम नहीं किया '!
आजकल मै लेखक पर रिसर्च कर रहा हूं ! कुछ लोग लगातर बढ़िया लिखकर भी छोटे लेखक रह जाते हैं, तो कुछ चांदी की कलम चोंच में लेकर साहित्य में पैदा होते हैं ! ऐसे साहित्यकार की कलम में स्याही की जगह छोटे लेखकों का खून होता है ,जो इस उम्मीद में डोनेट करते रहते हैं कि शायद अंगूठा लेकर पूज्य "द्रोणाचार्य" जी उसको ' विख्याति ' दिला दें ! पर वो ऐसी आत्मघाती दयालुता नहीं दिखाते ! गुरु शिष्य परंपरा में कभी भी दक्षिणा मांग लेने की वीटो पॉवर " गुरू"( घंटाल) अपने पास रिजर्व रखता है ! साहित्य के अधिकतर गुरुओं का आभा मंडल प्रतिभाशाली युवा लेखकों के " अंगूठे" की बदौलत है !
ये जो बड़े लेखक हैं, उनका बड़प्पन कमाल का होता है । मैंने वरिष्ठ लेखक की कुछ दुर्लभ विशेषता भी देखी है , मसलन - वो अपना या अपने गैंग के अलावा किसी और की पूरी रचना पढ़ना घोर अपमान समझते हैं ! ईर्ष्या में सुलगते हुए कोई उत्कृष्ट रचना पढ़ भी लिया तो घंटों अंगारों पर लौटते हैं ! इसके बाद उसके रास्ते में कील गाड़ने का अपने गैंग के खलीफाओं को व्हिप जारी करते हैं , '- ये लेखक बगैर किसी ' फर्टिलाइजर ' ( पुरस्कार ) के ऐसा लिख रहा है ! सारे मठाधीश को सतर्क कर दो कि इसकी रचना कोई ना छापे ! इसकी साहित्यिक प्रतिभा को "संथारा मृत्यु" दिया जाए '- !
बडा रचनाकार कम बोलता है , सोशल मीडिया पर होते हुए भी अजनबी की पोस्ट पर कमेंट नहीं करता ! देश हित या समाज हित वाली किसी भी ऐसी पोस्ट को लाइक नहीं करता जिसके लेखक को जानता नहीं ! उसका टैलेंट आजीवन कोयले की तरह सुलगता है , कभी पूरी तरह जल कर रोशनी नहीं देता ! कई बड़े लेखक आख़िरी घंटी पर फ़ोन उठाते हैं और साहित्य साधकों से ऐसी किफायत से बात करते हैं गोया खुल कर बात कर लिया तो प्रतिभा की पूरी अंगीठी आज ही ठंडी हो जाएगी ! कुछ बड़े लेखक तो इतने अन्तर्यामी होते हैं , कि समीक्षा लिखने के लिए रचना को पढ़ना भी गंवारा नहीं करते ! ( पढ़ कर तो कोई भी समीक्षा कर सकता है !) ये अक्सर बड़े गंभीर और दार्शनिक अंदाज में सोशल मीडिया पर नजर आते हैं , जैसे ओज़ोन की परत में हुए छेद को दुरुस्त करने की जिम्मेदारी इन्होंने ही उठा रखी हो !
प्रदेश साहित्य समिति में बैठे पंजीरी बाटने वाले देवताओं से इनके बड़े मधुर संबंध होते हैं ! प्रदेश की सत्ता में कोई भी पार्टी आए , ये उसी के चारण बन जाते हैं! इनके गैंग वाले दो लाख से लेकर पांच लाख रुपए में डॉक्टर की मानद उपाधि भी दे देते हैं ! आज से पांच साल पहले दिल्ली पुलिस में कार्यरत एक बुद्धिजीवी ने अपना एक व्यंग्य संकलन मुझे पढ़ने को दिया ! बैंक पेज पर उनको मिले साहित्यिक पुरस्कार की लिस्ट देख कर मैं सदमे मे चला गया ! उन्हें " युवा व्यंग्य सम्राट " मिला था ! भारतीय साहित्यिक परंपरा के खिलाफ़ जवानी में ही वरिष्ठ और विख्यात हो रहे थे !
देश में लेखक ज़्यादा हो गए हैं और पढ़ने वाले कम ! लोग दूसरों को पढ़ना ही नहीं चाहते !. अब तो पुरस्कार और प्रसिद्धि पाने में विलंब देख कुछ प्राणी विदेशों में जाकर वरिष्ठ हो आते हैं ! क्या करें - हिम स्खलन की रफ्तार से डिजिटल होती प्रतिभा पुनर्जन्म या बुढापे का इतिजार नहीं कर सकती ! उनका कहना है कि इसी जन्म में - मुझको चांद लाकर दो -!
( ।।। सुलतान भारती ।।। )
No comments:
Post a Comment